Thursday, October 31, 2013

भले मानस का लंगर

                                     एक बार कहीं किसी गाँव में एक बाप रहता था।  अब बाप किस्म के लोगों का ये सामाजिक कर्त्तव्य होता है कि वो ढेर सारे बच्चे पैदा करे।  हमारे शास्त्रों में लिखा है कि ढेर सारे बच्चे पैदा करना हमारा सांसारिक , सामाजिक और आध्यात्मिक कर्त्व्य  है , सो इस जिम्मेवारी का वो  बखूबी निर्वहन करता था।    इन बच्चों के साथ एक प्रॉब्लम होती है कि इन्हे भूख बहुत लगती है।  हमेशा भूख से बिलबिलाते रहते हैं।  चिल्ल पों मची रहती है।  बाप यूँ देखने में तो बड़ा जिम्मेवार किस्म का लगता था पर उसका कोई भी काम ठीक से नहीं होता था।  बच्चे भूखे मर रहे थे।  बाप जो खाना बनवाता था वो किसी काम का नहीं होता था।  पर बाप मस्त था।  अब चूंकि गाँव में किसिम किसिम के लोग होते हैं।  कुछ लोगों को बच्चों पे दया आ गयी।  एक भले मानस ने अपने घर चार रोटियां बनवाईं और बेचारे भूखे बच्चों को चटनी के साथ खिला दी।  रोटियां किसे अच्छी नहीं लगतीं।  बच्चे रोज़ाना पहुँचने लगे।  भले मानस के घर लंगर चलने लगा।

                                    बाप को खबर लगी।  एक दिन उसने भले मानस का दरवाज़ा खटखटाया। 
कौन है भाई तू ?  सुना है लंगर चलाता है ?  

जी मैं भला मानस हूँ।  बच्चे भूखे थे सो जितनी मेरी औकात है उतना खिला देता हूँ।  

अच्छा , तो तू भला मानस है।  किस से पूछ के तूने ये लंगर शुरू किया ?  क्या क्वालिफिकेशन है तेरी ?  लंगर चलाने का लाइसेंस है तेरे पास  ? तेरी औकात क्या है बे , जो तू लंगर चलाने लगा ? किसकी परमिशन से लंगर चला रहा है ?   

अजी मेरी क्या औकात है कि मैं लंगर चला सकूं।  जो रूखा सूखा बन पड़ता है खिला देता हूँ ।  

क्या कहा ? रूखा सूखा खिलाता है ?  साले तू तो बच्चों को भूखा मार देगा।  बेचारे मासूम बच्चों को malnutrition हो जाएगा।  सुन कल हवेली में आ जाना , हम तुझे बताएँगे , बच्चों के लिए लंगर कैसे चलाना है।  

अगले दिन भला मानस हवेली पहुंचा तो दरवाज़े पे दरबान खड़ा था।  उसने रोक लिया।  भला मानस किसी तरह सौ का नोट दे के अंदर पहुंचा।  बाप जी व्यस्त थे सो मुलाक़ात न हुई।  कई दिन चक्कर काटता  रहा।  फिर जा कर बाप जी से मुलाक़ात हुई। 

हम्म्म्म ……… भूखे बच्चों के लिए लंगर चलाना है ? कहाँ चलायेगा ? 

सरकार छोटा सा घर है मेरा।  उसी में चला लूंगा।  

अबे ऐसे कैसे चला लेगा ? बाप का माल है क्या ? 4 एकड़ में हवेली बनानी पड़ेगी पहले।  फिर हम आयेंगे मुआयना करने।  ऐसे झोपड़ी में थोड़े चलेगा लंगर।  और खिलायेगा क्या ? रूखा सूखा खिला के काम नहीं चलेगा। शाही पनीर , मलाई कोफ्ता और दाल मखनी खिलानी पड़ेगी।  साथ में  आचार चटनी और पापड भी देना पडेगा . सलाद में प्याज , टमाटर और मूली होनी चाहिए . और ऊपर से नीबू . 

जी हुज़ूर .

और सुन . नीबू का बीज सलाद में नहीं पड़ना चाहिए   . अगर एक भी बीज आ गया तो लाइसेंस रद्द हो जाएगा .

जी हुज़ूर .

अच्छा , नमक कौन सा डालता है ? नमक आयोडीन युक्त होना चाहिए . समझा ? 

जी हुज़ूर . 

कौन कौन लड़का खाना खाने आता है उसका पूरा रिकॉर्ड रखना है . कौन है , कहाँ का है , बाप का नाम , डेट ऑफ़ बर्थ .सब रिकॉर्ड रखना है . रोज़ाना हाज़िरी लगनी चाहिए . जिस दिन खाना खाने न आये उस दिन उसके बाप की अप्लिकेशन आनी चाहिए कि आज हमारा बच्चा आपके लंगर में खाना खाने नहीं आयेगा . 

किस लड़के ने किस दिन कितनी रोटी खाई इसका भी रिकॉर्ड रखना है ....... ज़्यादा खाई तो क्यों खाई , कम खाई तो क्यों खाई , इसका कारण भी लिखना होगा . हर लड़के को चार रोटी खाना ज़रूरी है ..... अगर लड़का तीन दिन ना आये तो चौथे दिन उसे हर हालत में 16  रोटी खिलानी पड़ेगी . 

जी हुज़ूर .........

 रोटी एकदम गोलाकार होनी चाहिए . उसका diameter 4  इंच होना चाहिए .  और मोटाई 3 MM से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए . 

जी हुज़ूर .........

 और दाल रोज़ाना बदल के बनानी है ....... उसमे जीरा लहसुन प्याज टमाटर डाल के तड़का लगाना है . थाली स्टील की होनी चाहिए . उसका वज़न 325  ग्राम होना चाहिए . और उसका diameter 14  इंच से कम नहीं होना चाहिए . 

डाइनिंग हॉल 22 *24 का होना चाहिए . उसमे 5  पंखे होने चाहिए . खिड़की इतनी बड़ी होनी चाहिए . डाइनिंग टेबल ऐसा होना चाहिए . कुर्सी ऐसी चाहिए . उसपे Sunmica  सफ़ेद होना चाहिए . 

जी हुज़ूर 

और सुन , खाना कौन बनाता है ?

हुज़ूर मेरी बीवी बना देती है .....

ऐसे नहीं चलेगा . खाना बनाने के लिए बावर्ची रखो . वो Hotel management institute का MBA होना चाहिए .उसकी पगार कम से कम 24000 होनी चाहिए।  12 % PF  काटना है। 

जी हुज़ूर ……

पानी कहाँ से लाते हो ? 

जी गाँव के कुँए से निकाल लेते हैं। 

ऐसे नहीं चलेगा।  किसी बच्चे को हैजा हो गया तो ? पहले पानी का सैंपल टेस्ट कराओ , सरकारी लैब से।  फिर लंगर चलाने का लाइसेंस मिलेगा। 

हुज़ूर मैं तो छोटा मोटा गरीब आदमी हूँ।  कुछ सरकारी मदद मिल जाती  तो बच्चे अच्छे से खा पी लेते।  

अबे बाप का माल है क्या ? सरकारी मदद कहाँ से दे दें तुझे।  बेटा लंगर तो घर से ही चलाना पडेगा। 

इस प्रकार महीनों बाप जी के चक्कर काट के और मोटा चढ़ावा चढ़ा के भले मानस को लंगर चलाने का लिसेंस मिला। 

भले मानस ने 4 एकड़ में  शानदार हवेली बनवाई है।  बढ़िया रंग रोगन करवाया है।  सुन्दर सुन्दर खाना बनाने वालियां हैं।  अंग्रेजी बोलती हैं।  सुना है कि 800 रु में एक थाली मिलती है।  शानदार भोजनालय चल रहा है। बाप अब भी मस्त है।  पर कुछ गरीब बच्चे अब भी चटनी भात खा रहे हैं ………  


देश में बच्चों की शिक्षा दीक्षा सरकार की ज़िम्मेवारी है .............. इसमें सरकार बहुत बुरी तरह फेल हुई है ......... सरकारी स्कूलों का इतना बुरा हाल है कि वहाँ कोई भी जाना नहीं चाहता .........ऐसे में प्राइवेट संस्थाएं खुलती हैं ........... मैंने भी किसी ज़माने में ऐसी ही एक संस्था शुरू की थी ......... पर उसे मान्यता देने में सरकार की इतनी सारी शर्तें हैं , इतनी अड़ंगेबाजी है , इतनी लाल फीता शाही है कि कोई छोटा मोटा आदमी वो शर्तें पूरी कर ही नहीं सकता ........... आज एक प्राइवेट स्कूल खोलना कम से कम   दो से दस करोड़ रु तक का प्रोजेक्ट है ........अब भैया जो दस करोड़ लगाएगा वो समाजसेवा तो करेगा नहीं ...वो तो दूकान चलायेगा .........इसलिए शिक्षा की दूकान चल रही  है .........लगभग हर किस्म कि शिक्षा , प्राइमरी हो या सेकेंडरी , या फिर उच्च शिक्षा .....सब बाज़ार बन चुके हैं ......... सरकार जब भी फेल होगी आप बाज़ार के हवाले , बाज़ार के रहमो करम पे हो जायेंगे .........