Sunday, January 29, 2012

सृष्टि का कण कण पूज्य है .....सो उतारो आरती

                                                      पिछले दिनों यहाँ पतंजलि योग पीठ में एक शिविर में मंच पे स्वामी रामदेव जी के साथ उनके युवा सहयोगी स्वामी गणेशानंद जी विराजमान थे . स्वामीजी को कुछ देर बाद दिल्ली के लिए निकलना था सो उन्होंने घोषणा की कि अब इसके बाद का शिविर पूज्य गणेशानंद जी लेंगे . स्वयं से बीस वर्ष छोटे युवक को पूज्य कह कर संबोधित करना कुछ अटपटा लगा ....सो उन्होंने बताया कि एक बार गुजरात में किसी संत के आश्रम में गए थे . वहां सब छोटे बड़े लोगों को पूज्य कह कर संबोधित किया जाता है . स्वामी जी ने इस पर प्रश्न किया कि महाराज .....पूज्य तो स्वयं से बड़े और श्रेष्ठ को बुलाना चाहिए ............तो उन संत ने उत्तर दिया कि इस सृष्टि का कण कण पूज्य है ..........ये हमारे भारत की गौरवशाली संस्कृति की एक छोटी सी झलक है ....यही झलक देखने लोग खिचे चले आते हैं भारत भूमि की ओर ............. 
                                                  बनारस ने प्राचीन काल से ही देश विदेश के सैलानियों और घुमक्कड़ों को आकर्षित किया है . बनारस दरअसल गंगा के किनारे ही बसता है और उसकी आत्मा भी गंगा के किनारे ही घूमती रहती है  या यूँ कहिये भटकती रहती है  .देशी विदेशी सैलानियों को बनारस में एक चीज़ जो सबसे ज्यादा आकर्षित करती है वो हैं गंगा के घाट और वहाँ की तंग गलियाँ . हर शाम जब सूरज डूबने लगता है तो सैलानी वहाँ दशाश्वमेध घाट पे अपने अपने कैमरे ले के जम जाते हैं , बनारस के पण्डे पुजारियों का एक ग्रुप  रेशमी धोतियाँ पहने, माथे पे त्रिपुंड धारण किये , बड़े बड़े ,शुद्ध देशी घी से भरे  multi  storied दीपक लिए ,  अपना अपना स्थान ग्रहण कर लेते  है .......य्य्ये बडे बड़े स्पीकर , माइक और पूरा तामझाम , और फिर शुरू होती है गंगा आरती .....शास्त्रीय संगीत गाने वालों का भी एक ग्रुप शामिल होता है .....फिर वो सब शुद्ध शास्त्रीय रागों में गंगा जी की आरती गाते हैं .....कई सारे पण्डे पुजारी  वो बड़ा सा दीपक लहरा लहरा के गंगा जी की आरती उतारते हैं  ....लोग भाव विभोर हो कर देखते सुनते हैं , टूरिस्ट फिल्म बनाते हैं
..........गंगा .......माँ गंगा .....पतित पावनी गंगा ........पुण्य सलिला , पाप नाशिनी , मोक्ष प्रदायिनी , गंगा मैय्या और ऐसे न जाने कितने ही भारी भरकम नामों और विशेषणों का उल्लेख करते फूले नहीं समाते बनारस के टूरिस्ट गाइड ........और टूरिस्ट भी इमोशनल हो जाता है .....भारत की गौरवशाली परम्परा में सृष्टि का कण कण पूज्य है , सो हम लोग वहाँ रोज़ शाम गंगा जी की आरती उतारते हैं  ......
                                               फिर हुआ यूँ की हम लोग सपरिवार यहाँ जालंधर आ गए .हमारे पड़ोस में एक सिख परिवार रहा करता था . मियां बीवी और उनके दो बच्चे प्रथम तल पर और ऊपर उनके बूढ़े माँ बाप .  पहले दिन अल्ल्स्सुबह जोर जोर की आवाज़े आने लगी तो मेरी नींद खुली ........ वैग्रू वैग्रू वैग्रू  वैग्रू ......... मैंने कहा की कमबख्त ये कौन सी बला आन पडी .......कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ...... मेरे बेटे ने बताया कि पडोसी भगवान् का नाम जप रहे हैं ......मैंने पूछा कि ये वैग्रू क्या हुआ .....उसने बताया कि वैग्रू नहीं वाहेगुरु वाहेगुरु .......तब मुझ मंद बुद्धि को समझ आया कि गुरु नानक देव जी का नाम जप रहे हैं ........सो पूरा परिवार सुबह 5  बजे शुरू हुए तो 9  बजे तक वैग्रू वैग्रू करते रहे ..........मैंने अपना सर पीट लिया की ये साले धार्मिक किस्म के लोग तो जीना हराम कर देंगे और हम ठहरे एक नंबर के नास्तिक ,पापी और मलेच्छ . खैर समय के साथ हमने इस noise  pollution  के साथ जीना सीख लिया . फिर धीरे धीरे पता चला कि बहू अपने पति और बच्चों के साथ नीचे रहती है सास ससुर ऊपर रहते हैं .....बच्चों को ऊपर जाने की सख्त मनाही है ...और बहू माँ बाप को पानी तक नहीं पूछती ........ बुढ़िया अपना खाना अलग बनाती है ......अलबत्ता सारा परिवार सुबह 4  घंटे  वैग्रू वैग्रू जपता है .......एक दिन बूढा कहीं बाहर गयी थी ....... बुढऊ  heart attack  से चल बसे .....शाम को वापस आयी तो पता चला  और रोआ राट मची ...... बाप मर गया , बहू बेटा नाम जपो .......भारत की गौरव शाली परंपरा में कण कण पूज्य है ........
                                      उधर अँगरेज़ साला .....कुछ नहीं पूजता ........ एक नंबर का materialistic है ...पिछले दिनों discovery  channel  पे एक प्रोग्राम देख रहा था . टेम्स  नदी पे एक ब्रिज बन रहा था सो उसके ठेकेदार से जो करार हुआ की उसमे ये तय था की पुल बनाने की प्रक्रिया में अगर एक बूँद भी cement  वाला गंदा पानी गिर गया  तो कम्पनी पे दस हज़ार पोंड का जुर्माना लगेगा ......अँगरेज़ Thames की पूजा  नहीं करता , रोज़ शाम को आडम्बर पूर्ण आरती का ढोंग नहीं करता पर पूरी नदी में एक बूँद भी गन्दा पानी या एक तिनका भी गंदगी  का गिरने नहीं देता ....यहाँ साले हरिद्वार और बनारस में tourists  को दिखाने के लिए गंगा आरती करते हैं ....सुना है की अब पटना में भी होगी गंगा जी की आरती .....और पूरे देश का गू मूत गंगा में बहाते हैं ........गंगा और इसकी सहायक नदियाँ पूरे देश का untreated  sewer ले के आती हैं .........आज हमारी एक एक नदी एक गंदे sewer  में तब्दील हो गयी है .......  पूरा देश एक garbage dump बन गया है ,और हम साले सृष्टि का एक एक कण पूज रहे हैं .   

 









Saturday, January 28, 2012

कलकत्ते के रिक्शा वाले और ये अंग्रेजी स्कूल की teacher

                                                      किसी ज़माने में कलकत्ते में वो रिक्शे चला करते  थे जिन्हें आदमी   पैदल चलते या दौड़ते हुए खींचा करते थे . फिर किसी NGO  ने हो हल्ला मचाया , कुछ मानवाधिकार संगठनों को भी ilhaam  हुआ .....वो भी राग अलापने लगे कि    अरे ये तो अमानवीय है .....degrading  है .......सो बात बंगाल की सरकार तक पहुंची और फिर उन्होंने वो रिक्शे ban  कर दिए .............तो वो बेचारे रिक्शे वाले सब बोले कि  अरे बाबू लोग मानवीय हो या  अमानवीय ....इस से हम लोगों का पेट भरता है , परिवार चलता है .....सरकार बोली ....चिंता मत करो ये पैदल खींचने वाला रिक्शा बंद किया है , साईकिल रिक्शा चलता रहेगा ...सो तुम सब साईकिल रिक्शा खरीद लो .....फिर सरकार और कुछ NGO  ने लोन वगैरह की भी व्यवस्था की और सभी ने साईकिल रिक्शे चलाने शुरू कर दिए ...... पर मेरी समझ  में ये नहीं आया कि  वो पहले वाला रिक्शा अमानवीय कैसे था और ये जो नया वाला साईकिल रिक्शा है ये मानवीय कैसे हो जाता है ........ देश के हर शहर , कसबे गाँव में रिक्शा चलता है .....अगर जनगणना हुई हो तो शायद ये भी खुलासा हो जाए कि  रिक्शा अकेले इस देश में रोज़गार का सबसे बड़ा बड़ा साधन है . अब एक आदमी तपती दुपहर में , या कडकडाती सर्दी में , या फिर मूसलाधार बारिश में आपको ढ़ो के ले जा रहा है ......और आप राजा बाबू की तरह ठाठ से पीछे बैठे हैं ......हुआ तो ये अमानवीय ही , पर इस रिक्शे से उसका पेट भरता है भाई , उसका परिवार पलता है ........ तो फिर जो काम देश के लाखों करोड़ों लोगों को आजीविका देता हो , जिसे लोग हंसी ख़ुशी करते हो ,  वो अमानवीय कैसे हो सकता है. 
                                        पर हमारे जैसे लोग जो  ठलुआ चिंतन करते हैं ....... जिन्होंने  देश की विभिन्न समस्याओं की सिर्फ चर्चा परिचर्चा और विचार विमर्श करने में ही अपना जीवन गला दिया , उनके लिए ये   बड़ा ज्वलंत मुद्दा है . सो हमने इस अमानवीय रोजगारों की सूची में कुछ नए धंधे  जोड़ दिए हैं , मसलन आपको बैठा के पालकी ढोना , अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाना , बहंगी में सामान ढोना  या फिर अपनी पीठ पर भारी भरकम सामान ढोना ( पहाड़ों पे और तंग गलियों में ) , मंडियों में ट्रक के ट्रक भरना और खाली करना , बाल्टियों से आपके घर में पानी भरना , मैला सर पे ढोना , crushers  के धूल भरे माहौल में काम करना , ( जहां 2 -3  साल में लोगों को TB  हो जाती है  ) . होटलों और ढाबों में जूठी प्लेटें धोने के बारे में आपका क्या विचार है ?????  या फिर दुबई और सउदी अरब में जहां जला देने वाली धूप में मजदूर दिन भर काम  करते है , या फिर वहाँ इंग्लॅण्ड में शून्य से 20  डिग्री नीचे हड्डियां जमा देने वाली ठण्ड में खुले आसमान के नीचे काम करते लोग .....या फिर उस दिन बनारस रेलवे स्टेशन पे मानव मल मूत्र से भरे गटर में डुबकियाँ लगा कर काम करते वो तीन आदमी ..........ये तमाम लोग जो ये सब काम करते हैं , क्या ये सब मानवीय है .......... 
                                      सो हुआ यूँ की मैं और मेरी धर्म पत्नी एक बार कलकत्ते गए ........बात तब की है जब ये हाथ वाले रिक्शे बंद नहीं हुए थे सो हम दोनों वैसे ही एक रिक्शे पे बैठ के कहीं जा रहे थे ........ हम दोनों की भारी भरकम काया को वो  पतला दुबला सा आदमी दौड़ता खींचता चला जा रहा था ....पसीने से तरबतर ....सो ये देख के मेरी धर्म पत्नी का दिल पसीज गया ....वो द्रवित हो कर बोली देखो बेचारा कितनी मेहनत कर रहा है ....किसी पशु की तरह ....सो मैंने उन्हें ये suggest  किया कि  उन्हें उसकी कुछ मदद करनी चाहिए  , मसलन उतर के पैदल चल लेना चाहिए ....वगैरा वगैरा , पर इसके लिए वो हरगिज़ तैयार न हुई ....खैर गंतव्य पर उतर के उन्होंने उसे 20  रु की भारी भरकम टिप दी और हम अपने रस्ते हो लिए . हम दोनों वहाँ गए थे अपने स्कूल के लिए कुछ अध्यापकों  की नियुक्ति करने . हमारे स्कूल में स्थानीय teachers जो पढ़ाते थे , वो सब उन दिनों 600  से ले कर 1000  रु पाते थे और हमने सुना था की कलकत्ते में बहुत सस्ते teachers मिल जाते हैं . हम वहाँ गए और हमने interview  लिए . बहुत से लोग आये . 6 -7  लोग हमने छांट लिए .वो सब लोग 1200  से 2000  ( साथ में भर पेट भोजन और रहने के लिए एक कमरा ) तक में पढ़ाने के लिए तैयार हो गए .एक हफ्ता कलकत्ते  में रह के हम लोग लौट रहे थे .  सुबह ट्रेन पकडनी थी  . रिक्शे वाले से मैंने पूछा कि  क्यों भैया कितना कमा लेते हो ? उसने मुझे बताया की 100  -150  रु बन जाता है रोजाना .जिन teachers  को ले के हम जा रहे थे वो सब वहाँ कलकत्ते के स्कूलों में 600 -800  की नौकरी करते थे और हंसी  ख़ुशी हमारे साथ 2000  में जा रहे थे  . मैंने अपनी बीवी से पूछा की MA , बी एड  पास आदमी को 30  -40  रु दे के पढवाना अमानवीय है कि नहीं ???????? 
                                  खैर ये बात तो बहुत पुरानी है ....लगभग 10 साल पुरानी ........आज मेरी बीवी पंजाब के एक बड़े स्कूल की प्रिंसिपल है ....उसके स्कूल में 15 -20  teachers  हैं .......सब एक से एक खूबसूरत , पढी लिखी , फर्राटे से अंग्रेजी बोलती हैं , ऊंची एडी की sandil  पहनती हैं और दिन में 3 बार लिपस्टिक लगाती हैं .......अलबत्ता तनख्वाह सबकी 3500  से 5000  के बीच है ........मेरी बीवी को आज भी रिक्शे वालों पर हमेशा तरस आता है और अब भी वो उन्हें हमेशा 10 -20  रु की टिप ज़रूर देती है . 
  


Friday, January 27, 2012

शांत पुत्र भीम .....शांत

                              पिछले दिनो यहाँ जालंधर में एक बड़ी दुर्भाग्य पूर्ण घटना घटी .....हुआ यूँ कि एक सरदार जी अपने दो बेटों के  साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने गए ........सरदार जी एक स्थानीय बैंक में मेनेजर हैं ......दो बेटे हैं . बड़ा बेटा पढ़ लिख के MBA कर के एक MNC में एक बहुत अच्छे package  पे job  कर रहा है .....  छोटे   का visa  लग गया है .....वो उच्च शिक्षा ग्रहण करने ( या यूँ कहिये की वहां मेहनत मजदूरी करने ) ऑस्ट्रेलिया जा रहा है . बड़े बेटे की शादी तय हो गयी है . अगले हफ्ते बारात जानी है ......घर में ख़ुशी का माहौल है सो तीनों बाप बेटा स्वर्ण मंदिर गए माथा टेकने ....वहाँ से माथा टेक के लौट रहे थे तो करतारपुर चौक के पास एक ट्रक जो reverse  gear  में back  कर रहा था उस से इनकी 10 साल पुरानी मारुती 800  touch  हो गयी और कमबख्त हेड लाइट फूट गयी .....इसके अलावा एक छोटा सा dent  भी पड़ गया .......बस फिर क्या था . उतर पड़े तीनों बाप बेटे .......और वाक् युद्ध शुरू हो गया ........अब उच्च शिक्षित MBA  और managerial  level  को लोग सड़क छाप ट्रक ड्राईवर से वाक् युद्ध करेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगा ?  वहाँ कौन सी round  table  conference  होनी थी ? सो ट्रक ड्राईवर महोदय ने गाली गलौज शुरू कर दी . और इस तरह first  round  में बैंक मेनेजर साहब और उनके दोनों होनहार पुत्र पराजित हो गए ......अब चक्कर ये हैं की पराजय को सम्मान पूर्वक गले लगाना सबके बस की बात नहीं होती . सो बाप बेटे लड़ाई को अगले लेवल पे ले गए ....और उन्होंने हाथा पाई शुरू कर दी जो शीघ्र ही मारपीट में तब्दील हो गयी .........अब हुआ यूँ की दोनों सेनाओं में जन बल का बहुत ज्यादा अंतर था .....यहाँ कौन सा कुरुक्षेत्र का धर्म युद्ध होना था जहां एक योद्धा से एक ही लडेगा .....यहाँ तो   3 :1  का ratio  था .और तीनों बाप बेटा ने उस ट्रक ड्राईवर को 5 - 7  हाथ जड़ दिए .....और भैया , पता नहीं क्या हुआ  कि बेचारा ट्रक ड्राईवर वहीं युद्ध भूमि में ही गिर पड़ा और वीरगति को प्राप्त हो गया . अब मेनेजर साहब पिछले 6  महीने से अपने दोनों बेटों के साथ जेल में बंद हैं और 302  का मुकदमा लड़ रहे हैं ......बड़े बेटे की नौकरी चली गयी है और शादी खटाई में पड़ गयी है , छोटे के ऑस्ट्रेलिया settle  होने के सपने भी चकना चूर हो गए हैं .........जो परिवार कल तक अपने सौभाग्य और ईश्वर की असीम अनुकम्पा के लिए मत्था टेक रहा था अब जेल में दिन काट रहा है .  
                                       मेरे बच्चे prfessional  sportsmen  हैं .......बड़ा बेटा 110 किलो  का पहलवान है , कुश्ती जैसे  बेहद आक्रामक खेल में भारी भरकम आदमी को सामान्य जीवन में handle  करना अक्सर बड़ा tricky  हो जाता है . एक coach  के रूप में हम उन्हें मैदान में बेहद आक्रामक होना  सिखाते हैं  पर मैदान से बाहर आते ही उन्हें सामान्य जीवन में शांत और संयत रखना होता है .......बच्चे इतनी आसानी से खुद पे काबू नहीं रख पाते .....मैदान में भी  देखा जाता है कि उनमे अक्सर आपस में झड़प हो जाती है ......मैं हमेशा अपने बेटे को घर में शांत रखने की कोशिश में लगा रहता हूँ ..........उसे रोजाना 10 -20  बार कहना पड़ता है ........शांत पुत्र भीम ......शांत . इस क्रम में पिछले दिनों मैंने उसे वो सरदार जी के साथ घटी घटना सुनायी .उस दिन वो 50  साल का , अधेड़ , अपने ऊपर काबू न रख सका . 10  साल पुरानी मारुती कार ....अरे उसका dent  हज़ार दो हज़ार में ठीक हो जाता , इस छोटी सी बात के लिए वहाँ उस दिन सड़क पे लड़ने की ज़रुरत नहीं थी . पर गुस्से में सरदार जी सब कुछ भूल गए ....स्थिति का मूल्यांकन कर ही नहीं पाए .....उस दिन उनका फ़र्ज़ तो ये बनता था कि लड़कों को शांत करते , पर वो तो खुद इतना excite  हो गए कि आपा  खो बैठे और स्वयं युद्ध में शामिल होगये .  
                                       professional  sports  में , जब आप पिछड़ गए हों , जब हार का खतरा सर पे मंडरा रहा हो ...........जब सब कुछ दाव पे लगा हो .........तो भी हम खिलाड़ियों को समझाते हैं .....शांत पुत्र भीम शांत ........आपे से बाहर न हो . ........relaxe  .....टाइम आउट लो ...........4  बार  deep  breathing  करो  . अपने दिल दिमाग और शरीर पे काबू रखो ........ नयी  रण नीति बनाओ .......और फिर आगे बढ़ो ...........पतंजलि योग पीठ में ,  स्वामी राम देव जी के सानिध्य में रह कर एक बहुत अच्छी चीज़ सीखने को ये मिली कि सामान्य जीवन में भी , जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों ...........जब घोर निराशा ने घेर रखा हो , या जब कभी यूँ ही थोडा सा depress  या down  फील कर रहे हों , या बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाये कभी .....तो.......खुद से कहें ...शांत पुत्र भीम ....शांत ........चार गहरी सांसें लें .....deeeeeeeeep breath ..... और आप देखेंगे की आप सचमुच एकदम शांत हो जायेंगे . दरअसल ये deep breathing  ही तो प्राणायाम है ........ये गहरी सांस लेना ही तो भस्त्रिका प्राणायाम है .....आप एक बार कर के तो देखिये .....ऐसा प्रतीत होता है कि तपते रेगिस्तान में बारिश की फुहार पड़ गयी हो .....उबलते उफनते दूध को ठन्डे पानी की चंद बूँदें ही शांत कर देती हैं ............प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत और संयत रह कर ही जीता जा सकता है . इसलिए ......शांत पुत्र भीम .....शांत 

Monday, January 23, 2012

सूअर family

                                                             आजकाल  टीवी और अखबारों में एक किस्सा बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है . अपने एक बंगाली बाबू हैं  अनुरूप बाबू और सागरिका जी ......रहते वहाँ दूर नोर्वे में हैं पर बच्चे पाल रहे हैं एकदम खांटी हिन्दुस्तानी स्टाइल से  ...यानी की अपने हाथ से बच्चों को खाना खिलाते हैं .........अपने साथ ही सुलाते हैं .......अब भैया वहाँ की सरकार को ये बड़ा नागवार गुज़रा है सो वो बच्चे छीन के ले गयी है ...कहती है की तुम दोनों नालायक लापरवाह हिन्दुस्तानी बच्चों का सत्यानाश कर दोगे ......इन्हें हम कायदे से पालेंगे .......अब यहाँ वहाँ सब जगह हाय तोबा मची है ....सुना है की अब भारत सरकार का विदेश मंत्रालय सीधी बात कर रहा है वहाँ की सरकार से . इत्तेफाक की बात है की अभी परसों ही मैंने एक फिल्म भी देखी ...evelyn  .....लगभग इसी विषय पे ......james  bond  फिल्मों के मशहूर एक्टर Pierce  Brosnon  की फिल्म है जिसमे वो लगभग ऐसी ही परिस्थितियों में   Irish government  से लड़ता है .अब इस किस्से पर मैंने अपनी बीवी से कहा की देखो अगर मैं और तुम ...हम लोग अगर वहाँ नोर्वे में होते तो हम दोनों को तो कम से कम 150  साल की जेल हो जाती और बच्चे पलते सरकारी आश्रम में .......वो यूँ की हमारे तीन बच्चे और एक मेरे भाई की बेटी .....कुल हो गए चार ....शुरू के 10 -15  साल तो वहाँ गाँव में रहे .....वहाँ हर रात बच्चों का ये झगडा होता की दादी के साथ कौन सोयेगा ..........चारों उन्ही के साथ सोना चाहते थे .......उसी bed  पे सब घुस के सो जाते .......फिर एकाध को उठा के इधर उधर किसी दुसरे bed  पर सुला दिया जाता ....पर सुबह जब सो के उठते तो पाते की सब उसी bed  में घुस के सो रहे है ......जिसकी भी नींद रात को खुलती   वो दादी को ढूंढता हुआ उन्ही के   साथ घुस जाता .......फिर हम सब यहाँ जालंधर आ गए और दादी वहाँ गाँव में ही रह गयी ....एक मकान किराए पर लिया ....उसमे कुल तीन कमरे थे ....दो कमरों में दो डबल bed  लगा दिए और तीसरे कमरे में एक सिंगल .........पर यहाँ हर रात को झगडा होता  माँ के साथ सोने के लिए ........पर बच्चे अब बड़े हो चुके थे ...बड़ा लड़का तो 100  किलो का पहलवान हो गया था ........सो एक bed  पर कितने आते सो जिसे bed  पे जगह नहीं मिलती वो वहीं नीचे दरी बिछा लेता , पर सोते सब उसी कमरे में ...एक साथ ...माँ बाप के साथ ही .......मैं धर्मपत्नी से मज़ाक में कहा करता था की कभी सर्दी के मौसम में सूअरों को एक साथ सड़क के किनारे  सोते देखा है ....पूरा परिवार .....सब एक साथ एक के ऊपर एक घुस मुस के सोते हैं ....सो हमारी भी सूअर family  ही है   .....आजकल बच्चे सब बड़े हो गए हैं ....पर सूअर फॅमिली की तरह एक साथ सबका सोना बदस्तूर जारी है ..........ये तो एक साधारण सा उदाहरण है .....इसके अलावा भी पूरे परिवार के एक साथ पड़े  रहने के और भी बहुत से कारण होते ही हैं भारतीय परिवारों में ......हाल तक सब लोग एक साथ बैठ कर टीवी देखा करते थे .....अभी चंद साल पहले तक पूरे मोहल्ले के लोग एक साथ बैठ कर टी वी देखा करते थे ....रामायण और महाभारत के दिनों में तो मुझे याद है की अक्सर घरों में सुबह आँगन में बाकायदा दरियां बिछा दी जाती थीं और मोहल्ले के तमाम लोग बैठ कर देखते थे ...और कई तो उनमे  नितांत अपरिचित हुआ करते थे ..........
                                  एक अन्य कारण जो भारतीय मध्यम वर्गीय संपूर्ण परिवार को एक कमरे में सुलाता है वो है AC ....पछली गर्मियों में हम दोनों मियां बीवी , दिल्ली में अपनी बहन के घर गए थे ....वहाँ उसका पूरा परिवार और हम दोनों एकदम निर्विकार भाव से उनके drawing room में गद्दे बिछा के और AC  चला के सोये .....और हम में से किसी की भी भावनाएं आहात नहीं हुई और शीला दीक्षित और मनमोहन सिंह जी ने भी बिलकुल बुरा नहीं माना .........एक और किस्सा याद आता है मुझे .......पुरानी बात है .....हम दोनों जम्मू गए थे ....अपने एक दोस्त के घर ........छोटा सा घर था उनका ........उसी छोटे से घर में उनका भरा पूरा संयुक्त परिवार रहा करता था ......पर उस छोटे से घर में भी अथाह प्रेम था .....रात को हमारे लिए एक अलग कमरे में अलग बिस्तर लगा दिया गया ....तो मैंने अपने उस यार से कहा ...देख भाई हम आये हैं तुझसे मिलने ........अपन तो यहीं सोयेंगे ...इसी कमरे में  तेरे साथ ...देर  रात तक गप्पें मारेंगे .......अपना बिस्तर तो यहीं लगा दे ......जमीन पे .....उसके पिता जी कुछ असहज हो रहे थे पर हमने उन्हें समझा लिया .........पिछले 20  सालों में कितनी ही बार हम उनके घर गए ...........हर बार वहीं ...उसी कमरे में गद्दे बिछा के सोते हैं ........खुस्किस्मती से हम लोगों की ego आड़े नहीं आती ......... भारतीय परिवार और समाज की वात्सल्य , प्रेम , अपनत्व , और साहचर्य की भावनाओं को पाशात्य जगत को समझने और ग्रहण करने    में सदियों लगेंगी .