Thursday, June 19, 2014

इराक के सैनिकों की समर्पण गाथा

                                       राजस्थान के राजपूतों का इतिहास शौर्य की गाथाओं से भरा पड़ा है . मेरा बचपन राजस्थान में बीता . हाडौती अंचल में रहने का मौका मिला . हाडौती यानि कोटा , बूंदी , झालावाड और बाराँ , इन चार जिलों का संभाग हाडौती कहलाता है . यहाँ हाड़ा राजपूतों का शासन हुआ करता था . मुझे कोटा में पढने का और बूंदी में नौकरी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ . हाड़ाओं की शौर्य गाथाओं में दो कथाएँ बड़ी प्रसिद्द हैं .कहा जाता है की एक बार एक हाडा राजकुमार ने युद्ध भूमि में जाने से पूर्व अपनी नवविवाहित रानी के पास सन्देश भिजवाया ........ युद्ध भूमि में जा रहा हूँ , कोई निशानी भेज दो ........क्षत्राणियों में पति की वीरगति के बाद जौहर की परम्परा थी . कहा जाता है हाड़ी रानी ने अपना सर ही काट कर भिजवा दिया था . उसके बाद वो योद्धा रानी का कटा सर ही गले में लटका के युद्ध भूमि में लड़ा और वो युद्ध आज भी हाडौती की धरती पे लडे गए सबसे भयंकर युद्धों में गिना जाता है . हाडी रानी का बलिदान आज भी हाड़ौती की लोक गाथाओं में रचा बसा है . वहाँ आज भी घरों में इस गाथा के चित्र और पेंटिंग्स मिल जाती हैं .
                                      एक और गाथा है . मेवाड़ के राणा उदय सिंह जी , यही अपने राणा प्रताप के पिता जी , एक बार उन्होंने गुस्से में भरे दरबार में कह दिया की जब तक बूंदी के गढ़ पे मेवाड़ का झंडा नहीं लहरा दूंगा अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा . सेना पति ने कहा , राजन ये क्या कह दिया . वो बूंदी का गढ़ है . उसपे मेवाड़ का झंडा ? असंभव है . अब राजा पछताए . क्या किया जाए . प्रधान मंत्री ने रास्ता निकाला . मेवाड़ के अपने ही एक गढ़ पे बूंदी का झंडा लगा दिया और अपनी सेना के 100 हाड़ा योद्धाओं को वहाँ भेज दिया . एक नकली युद्ध होना तय हुआ जिसमे एक घंटे की तलवारबाजी के बाद हाड़ा राजपूतों को समर्पण करना था और बूंदी का ध्वज उतार गढ़ पे मेवाड़ का झंडा लहराने का उपक्रम होना था . कहा जाता है कि जब मेवाड़ की टुकड़ी गढ़ में घुसी तो हाडे उनपे टूट पड़े और सबकी गर्दनें उतार ली . हाहाकार मच गया . मान मनव्वल हुई . हाडे किसी भी कीमत पे समर्पण को तैयार न हुए . फिर सचुमुच का युद्ध हुआ और वो 100 हाडे शाम तक मेवाड़ की सेना से लोहा लेते रहे . सांझ ढले जब आखिरी हाड़ा योद्धा गिरा तब जा के राणा ने गढ़ पे बूंदी का झंडा उतार के मेवाड़ का झंडा लहराया . बूंदी के ग्रामीण अंचलों में आज भी उन सौ योद्धाओं की याद में मेला लगता है .
                                       सच कहूं तो पहले मैं इसे अतिशयोक्ति मानता था . कोरी गप्प मानता था . . बूंदी प्रवास के दौरान चित्तौड़ के जौहर मेले में जाने का मौका मिला . चित्तौड़ गढ़ में 16000 क्षत्राणियों द्वारा अग्नि में आहुति दे जौहर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है . वहाँ हाड़ाओं का इतिहास सुनने का मौक़ा मिला . लोक गाथाओं में . फिर भी विश्वास नहीं होता था . फिर जब कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की शौर्य गाथा पढी , उसपे सालों रिसर्च की तो समझ आया की राजपूताने की शौर्य गाथाएं कोरी गप्प नहीं .
                                       इराक ने दुनिया को एक तस्वीर दिखा दी है . इराक ने दुनिया को दो किस्म के मुसलमान दिखाए हैं .........एक वो जिनके हाथ में तलवार है , खून से सनी तलवार . और वो विजेता है . और एक दूसरा है जो समर्पण की मुद्रा में है ..........पराजित . हाथ पीछे बंधे हैं . सर ज़मीन से टिका है . और उसकी गर्दन के पीछे बन्दूक की नाल है . और वो चुपचाप अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा है . liberal मुसलमान ने जिहादी मुसलमान की तलवार के सामने गर्दन झुका दी है . हाथ पीछे बंधे हैं . आँखें भीचे इंतज़ार कर रहा है .........अपनी मौत का ........ मेरे बाप ने अपनी जवानी में एक कविता लिखी थी ......
एक सिर चाहिए
एक फिर चाहिए
एक हाड़ी सी रानी का सिर चाहिए .

Sunday, May 25, 2014

56 इंच का सीना ...........

                        उन दिनों जब मैं NIS  पटियाला में प्रवक्ता होता था तो sports psychology पढ़ाते हुए अक्सर अपने स्टूडेंट्स को एक कहानी सुनाया करता था .

Arctic क्षेत्र के बर्फीले प्रदेशों में जब snowmobiles नहीं हुआ करती थी तो आवागमन का साधन sledge होती  थी जिसे sledge dogs खींचा करते थे . कुत्तों का एक समूह उस लकड़ी की गाड़ी को घसीट के ले जाता था जिसपे सामान या आदमी लदे होते थे .......... कुत्ते सब एक दुसरे से एक चमड़े की मज़बूत रस्सी से बंधे होते थे . सबसे आगे एक कुता होता था ,  अकेले ...........और फिर उसके पीछे दो दो की जोड़ी में कुत्ते बंधे होते थे .

सुबह जब मालिक गाडी निकालता तो कुत्ते अपने आप अपनी अपनी जगह आ कर खड़े हो जाते थे .   अब इसमें सबसे मजेदार बात ये है की कौन सा कुत्ता कहाँ खडा होगा इसमें मालिक का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था . ये कुत्तों का आपसी मामला होता था जिसे वो आपस में निपट लेते थे .

ज़ाहिर सी बात है की सबसे आगे खड़े होने की ही मारा मारी थी .   सबसे कमज़ोर सबसे पीछे और सबसे दिलेर और सबसे तगड़ा सबसे आगे . तो  कुत्तों के इस समूह में पीछे वाले कुत्ते आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते थे . इंच दर इंच आगे बढ़ते थे . रात को जब विश्राम का समय आता और सारी  दुनिया सो जाती तो कुत्तों की दुनिया में वर्चस्व की  लड़ाई शुरू होती . हर कुत्ता अपने  से आगे वाले से लड़ कर उसे हरा कर अगले दिन सुबह उसकी जगह पे कब्ज़ा करने की फिराक में रहता था .  जिसमे ज्यादा ताकत होती , हिम्मत होती , दिलेरी होती वो दुसरे की छाती पे चढ़ बैठता और अगले दिन एक पायदान आगे सरक जाता ......... आगे वाला कुत्ता  चुप चाप हार मान कर पीछे आ जाता था ......... इसी तरह सीढी  दर सीढी  लड़ते झगड़ते , चढ़ते आखिर वो समय आ जाता था जब सबसे आगे वाला सिर्फ एक कुत्ता बच जाता था . वहाँ पहुँचने का भी सिर्फ एक ही रास्ता था ............ फैसला हमेशा युद्ध भूमि में ही होता था .

रात को जब सारी  दुनिया सो जाती थी , तो कुत्तों के टेंट से सारी  रात गुर्राने और लड़ने के आवाजें  आती रहती थी  . मालिकों को मालूम होता था की वहाँ क्या चल रहा है .............. पर वो बिलकुल  भी हस्तक्षेप नहीं करते थे . क्योंकि वो जानते थे की यही प्रकृति का नियम है ......... उस जान लेवा बर्फीली सर्दी में जिसे 400 किलो वज़न वाली गाडी खींचनी  है , रोजाना सैकड़ों किलोमीटर .........उसकी छाती में कलेजा होना ही चाहिए ........ और  किसकी छाती में कितना बड़ा कलेजा है , इसका फैसला रात को होता था . जूनियर कुत्ता अपने से सीनियर को देख के नथुने फुलाता था . बाल उसके खड़े हो जाते थे . गुर्राता था . आँखें दिखाता था , दांत दिखाता था और फिर टूट पड़ता था ......... और फिर एक दिन निर्णायक लड़ाई होती थी ......... जो तगड़ा पड़ता पटक के छाती पे चढ़ जाता था ........ और फिर अगली सुबह विजयी हो कर ........शान से सबसे आगे जा खडा होता था ...... पर तभी तक जब तक की कोई और न आ जाए पीछे से ......उसकी छाती पे चढ़ने वाला ............ वर्चस्व की इस लड़ाई में मालिकों का सिर्फ एक काम होता था ......... रात को लगे ज़ख्मों पे अगले दिन मरहम लगा दिया करते थे . जो सबसे आगे खडा होता था , अक्सर उसकी छाती पे पुराने ज़ख्मों के बहुत से निशाँ होते थे ...........

मोदी  वो sledge dog है जो इंच दर इंच .........सीढी  दर सीढी  ............  मेहनत  कर के .......लड़ के .........झगड़ के .........सबकी छाती पे चढ़ के आज सबसे आगे आ खडा हुआ है . 56 इंच की छाती पे बहुत से निशाँ हैं पुराने ज़ख्मों के .

जबकि राहुल गाँधी वो sledge dog है जिसे मालिक सोनिया गाँधी ने , ज़बरदस्ती , अन्य कुत्तों को मार के , डरा  धमका के ......सबसे आगे खडा कर दिया है और बाकी के कुत्ते भी कान गिराए , पूँछ दबाये चुप चाप पीछे खड़े हैं . sledge को जैसे चलना है चल ही रही है ............

दोस्तों .....ख़ुशी मानिए की आपकी sledge के सबसे आगे मोदी खडा है .....शान से .........सीना ताने ......56 इंच का सीना ...........