Sunday, November 20, 2011

महाराजा भूपेन्द्र सिंह का ......चैल ...land of romance

                                            दो तीन साल पहले की बात है .....हम दोनों मियाँ बीवी घूमने गए .....शिमला .......मैं तो पहले हो आया था पर श्रीमती जी ने देखा नहीं था ....जब भी कहीं घूमने का प्रोग्राम बनता वो हर बार कहतीं शिमला चलो शिमला चलो .........अब चूँकि मैं इन्हें अच्छी तरह जानता हूँ  सो मैं हर बार टाल जाता था .......अरे किसी नई जगह चलते हैं .....किसी छोटे हिल स्टेशन पे चलते हैं ....... अच्छा खुद तो देख आये .......इसलिए मुझे नहीं ले के जाना चाहते ........  अच्छा भाग्यवान चल .......और चल पड़े हम दोनों .........कालका से शिमला  toy ट्रेन से गए .....बड़ा अच्छा सफ़र रहा ........कालका से शिमला ....by  train ......आपकी जिंदगी का एक यादगार सफ़र हो सकता है ...... खैर शिमला पहुंचे .......स्टेशन की सीढियां चढ़ के ऊपर आये ........पैदल ही चलते हुए मेन  मार्केट में पहुंचे  ......मैडम जी ने नाक भौं सिकोडी .......ये कहाँ ले आये ............बाप रे बाप ...इतनी भीड़ .......इतना traffic .....धुंआ .....धूल .....शोर शराबा ........चिल्ल पों मची थी ........खैर अब पहली समस्या थी वो पहाड़ जैसे बैग जो हमने कंधे पे लाद रखे थे  ......इनसे तो छुटकारा हो ........होटल में कमरे ढूँढने लगे .....घटिया से कमरे 2-2 हज़ार के ......मुझे मसूरी का emerald  heights  और camel back road  याद आ गया .........शहर के बीचो बीच ....मेन बाज़ार से सिर्फ 200  मीटर की दूरी पे शांत सुनसान सी रोड ....जहां बरसती बूंदों की झिमिर झिमिर और झींगुरों की आवाज़ के अलावा कुछ सुनायी नहीं देता .....और उस बेहद खूबसूरत होटल के शानदार कमरे ..........सन 2000  में हम पहली बार गए थे वहाँ तब 125  रु में ठहरे थे फिर 200  हुआ ....फिर 350  ...इस साल गए तो 500  लगे ( off  season  में ) ....और यहाँ शिमला में 2000 रु ......खैर भैया ......रूम लिया नहाए धोये .....एक बार शहर घूमने की formalty  की ( वही घिसी पिटी माल रोड ) और अगली सुबह भाग लिए ..........मैडम जी का मूड खराब था ....बिलकुल मज़ा नहीं आया ..........तो मैंने उन्हें ढाढस बंधाया ........मैं हूँ न ......चलो चैल चलें ....वो कहाँ है ....अरे बस बगल में ही ............फिर ट्रेन पकड़ी , कंडाघाट उतरे ......वहाँ से सिर्फ 30  किलो मीटर .....चैल ........शिमला से  by road  बमुश्किल 45  किलोमीटर ...चैल पहुँचने से पहले ही नज़ारा बदल चुका था ......2250  मीटर यानी 7380  फीट की ऊंचाई पर चैल देवदार, pine और oak  के   घने जंगलों के बीच शांत ...........सुनसान ........बेहद खूबसूरत , चैल ....न कोई शोर शराबा ....न चहल पहल ..........न कोई traffic  न tourists  की  भीड़ .........मज़े की बात किसी होटल का कोई agent  नहीं , आपसे ये पूछने के लिए कि....कमरा दिखा दूं सर  ....जब हम उस मिनी बस से उतरे तो हमारे साथ कुछ स्थानीय  लोग थे और बस हम दोनों .....उस दिन शायद उस शहर में ( अगर उसे शहर कहा जाए ) बस हम ही दोनों tourists  थे....... शहर के नाम पे एक चौक में 15-20  छोटी छोटी दुकानें .......दो एक रेस्तौरंट्स ...............और शहर शुरू होने से पहले ख़तम ........खैर उस मुख्य चौराहे से कुछ दूर घने पेड़ों के बीच हमने एक होटल में कमरा ले लिया ........चाय पी , नहाए धोये और बाहर का जायजा लेने निकल पड़े ........ बाहर प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा कुछ नहीं था .......चैल कि कहानी भी अजीब है .......हर शहर की एक कहानी होती है ....इतिहास है .....पर चैल की कहानी बड़ी अजीब सी है ....इसका इतिहास बड़ा मजेदार है ......पटियाला   के महाराजा भूपेंद्र सिंह ......अरे यही अपने capt  अमरिंदर सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के दादा जी , और अपनी केंद्रीय मंत्री परनीत कौर के ददिया ससुर ....सुनते हैं की बड़े ही रंगीन मिजाज़ आदमी थे ........बिगडैल भी .......सुनते हैं की उन्होंने एक बार शिमला के माल रोड पे घुमते हुए एक लड़की छेड़ दी .......और वो लडकी निकली viceroy  की........... कुछ जगह ये भी   लिखा है की दरअसल उनका viceroy  की लड़की से चुपके   चुपके   affair  चल रहा था ....... पर  महाराजा ने जो स्वयं अपने मुह से  किस्सा बताया वो यूँ था की महाराज सड़क पे घोडा दौड़ा रहे थे .....मोहतरमा वहां पैदल सैर कर रहीं थी ........अब उनपे धुल का गुब्बार जो उड़ा तो उन्होंने गाली दे दी ......bloddy  indian ... सो महाराज ने घोडा मोड़ लिया और खांटी पंजाबी में बोले ....तू गाल किद्दां कड्डी ओये ...तैनू पता मैं कौन आं .......  प्पैन्चोद चक  के लै जूँ  .......( तुने गाली कैसे निकाली ओये ...पता है मैं कौन   हूँ ....उठा के ले जाऊंगा ) .........खैर   साहब जो भी हुआ हो , बात ऊपर   तक पहुंची और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भूपेंद्र सिंह को शिमला से निष्कासित कर दिया .....वहाँ घुसने पर पाबंदी लगा दी गयी ........अब राजा बुरे फंसे ....क्योंकि उनकी तो पूरी गर्मी वहीं कटती थी , शिमला में ........सो बिगडैल राजा ने कह दिया ......अपने पास रखो अपना शिमला ...नहीं चाहिए .....और अपने दरबारियों से बोले नया शिमला बसाओ ....सो दरबारियों ने शिमला से भी खूबसूरत और ऊंची जगह खोज निकाली .......चैल ......और महाराज ने वहाँ एक महल बनवाया , एक क्रिकेट का मैदान बनवाया जो आज भी विश्व का सबसे ऊंचा मैदान है .....और चैल का नैसर्गिक सौंदर्य सचमुच लाजवाब है ...शांत ......स्निग्ध ...... पवित्र .....अनछुआ .......  ज़िदगी की दौड़ भाग से दूर .......चारों तरफ जहां तक निगाह जाती है ,  सिर्फ घने पेड़ों का जंगल .......सामने वाली पहाड़ी पे दूर दूर बिखरे हुए पहाड़ी मकान .........शहर से बाहर निकलते ही सेबों के बाग़ ....जब हम गए तो फसल पूरे शबाब पर थी .........चैल के सौंदर्य को शब्दों में कहना बड़ा मुश्किल है .......माहौल बड़ा ही रोमांटिक था ........एक सज्जन मिल गए .....कोई ठाकुर साहब थे ....लोकल थे ...........पुराने किस्से सुनाने लगे ....कैसे रौनक लगती थे राजा के ज़माने में ......सुनते हैं की बड़े बड़े अँगरेज़ अफसर उस ज़माने में राजा के कार्यक्रमों में न्योता पाने के लिए जुगाड़ लगाते थे .........ये सारे किस्से सुन के मुझे अपने दिन याद आ गए ....वो दिन , जो मैंने खुद महाराजा भूपेंद्र सिंह के घर में बिताये थे .....और दो चार दिन नहीं जनाब , पूरे 4  साल .....
                                         जी हाँ , NIS patiala  में ....राष्ट्रीय खेल संस्थान  NIS  ,  दरअसल महाराजा भूपेंद्र सिंह के महल , मोती बाग़ में बसा हुआ है ....वहाँ से मैंने पढ़ाई की और फिर वहीं एक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हो गया ......वहाँ के एक एक कमरे में भूपेंद्र सिंह की छाप दिखती थी .......समय के साथ सब ख़तम हो गया ....सारे कालीन और furniture  या तो टूट फूट गया या तहस नहस हो गया .........पर एक कमरा आज भी है .....महाराज का मुख्य drawing  room , वो आज भी जस का तस सुरक्षित और संरक्षित है .........गाहे बगाहे खुलता है ....जब कोई बहुत ख़ास मेहमान आता है .....एक बार मुझे वहाँ बैठ के चाय पीने का मौका मिला था ...जब महाराजा नेपाल NIS आये थे ..........इतना खूबसूरत की बयान नहीं हो सकता ..........फिर एक पुस्तक हाथ लगी ....दीवान जर्मनी दास की the  prince   .....उसे  पढ़ के उस महल के स्याह किस्से पता चले ....यूँ की राजा के हरम में 365  औरतें ( यूँ तो उन्हें रानी कहते थे ) होती थीं .....फिर राजा का बेडरूम देखा ......महारानी का रूम भी देखा 4 -5  पटरानियाँ होती थीं बाकी 350  के आसपास रानियाँ  ......फिर एक दिन ये अहसास हुआ की वो जो Old  boys  hostel  हुआ करता था .....उन्ही कमरों में वो रानियाँ रहा करती थीं जिन्हें बस एक रात इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता था ........कितनी तो उसमे घुट घुट के मर जाया करती थीं ....पटियाला रियासत की वो मासूम लड़कियां जिनकी खूबसूरती के बारे में राजा के जासूसों ने उसे खबर कर दी थी  और उसने उन्हें उठवा लिया था ...ज़बरदस्ती या उनके बाप की रजामंदी से .......
                                             पर उस धरती के बारे में ये भी कहा जाता है की it is the land of romance  ........हमारे एक DEAN  हुआ करते थे ...... उन्होंने 35  साल बिताये थे NIS में ....जब हमारा आखिरी दिन आया तो बोले ........I hope you would have enjoyed your stay in NIS patiyala ......this is the land of romance ....in the last 35 years ....i have seen so many romances and love stories ....... blooming under the trees of moti bag .....आज भी गूंजते हैं ये शब्द मेरे कानों में .....क्योंकि खुद मेरे जीवन में भी रोमांस वहीं शुरू हुआ ....मोती बाग़ में ......मैंने अपने जीवन का  सबसे बेहतरीन सबसे हसीन समय पटियाला के मोती बाग़ में ही बिताया ......वहीं मेरी शादी हुई ...बेटा भी वहीं पैदा हुआ ........उस दिन वहाँ चैल के जंगलों में भी माहौल बहुत रोमांटिक था ......बहुत देर तक हम उन सुनसान सड़कों पर टहलते रहे ...हाथों में हाथ लिए .......अगर आप अपनों के साथ कुछ फुर्सत के क्षण बिताना चाहते हैं ...चैल से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती ........पर ख्याल रहे ....शौपिंग की कोई गुंजाइश नहीं और बच्चों के लिए कोई आकर्षण नहीं है ....



Wednesday, November 16, 2011

घुमरी परौते का वर्ल्ड कप .........


                                       आज कल यहाँ पंजाब में कबड्डी का वर्ल्ड कप चल रहा है .......बड़ी चर्चा है ...... अखबारों में चर्चा है ......टीवी पे लाइव आ रहा है ....... एक दिन शाहरुख आये .........फिर कटरीना आयीं ......... ऐश्वर्या उम्मीद से हैं वरना वो भी आतीं .....बड़ा जलवा है ...........सुखबीर बादल साहब ने कहा है कि कबड्डी को ओलम्पिक में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं ........ ये सब देख के कुछ उम्मीद मुझे भी बंधी ......मेरी भी बड़ी दिली तमन्ना है कि घुमरी परौते का भी वर्ल्ड कप हो .......घुमरी परौते को भी ओलम्पिक में शामिल किया जाए ........अब आप सोच रहे होंगे कि ये घुमरी परौता क्या बला है .......... हर क्षेत्र के अपने अपने खेल  होते हैं .....जैसे पंजाब में कबड्डी खेलते हैं वैसे ही हमारे यहाँ पूर्वांचल में बच्चे घुमरी परौता खेलते हैं .......ये बड़ा ही कलात्मक गेम है .......फिगर स्केटिंग या रिदमिक जिम्नास्टिक तो इसके आगे कुछ भी नहीं ........गज़ब का perfection चाहिए ...... शरीर पे नियंत्रण चाहिए ....... इसमें छोटे बच्चे मूतते हुए गोल गोल घुमते हैं और इससे उस मूत्र की धार से जो circle  बनता है उसकी quality  , उसकी perfection पे ही विजेता का चुनाव होता है .........और उसमे जिसके सबसे ज्यादा चक्कर लगते हैं उसके पॉइंट अलग से मिलते हैं ....... इस गेम का प्रचार प्रसार और लोकप्रियता अपार है ......जैसे mother tongue  होती है न वैसे ही इसे mother sport  तो नहीं पर father sport  ज़रूर कह सकते हैं .....क्योंकि माताओं का तो मैं कह नहीं सकता पर हम सबके बाप इसी गेम को खेल के बड़े हुए हैं ........पूर्वांचल  का लड़का लड़का यही खेल के बड़ा होता है .........और जहां तक लोकप्रियता और प्रसार की बात है तो UP  बिहार का तो ये स्टेट गेम घोषित हो सकता है ....और बाकी सारी दुनिया में भी कम या ज्यादा ....किसी न किसी रूप में खेला ही जाता है .......और यकीन मानिए जब घुमरी परौते का वर्ल्ड कप होगा तो ये किरकेट का IPL फीका पड़ जाएगा .......क्योंकि जो audience  value  और entertainment  value घुमरी परौते की है वो फुटबाल किरकिट की कहाँ ......हर आदमी को अपना बचपन याद आ जायेगा .........लोग गेम देखते देखते इमोशनल हो जायेंगे .......गाँव याद आ जायेगा .......कुछ तो बीअर पी के वहीं शुरू हो जायेंगे .........live  telecast  होगा.......जब कैमरा आसमान से  arial  shot  लेगा....स्लो मोशन में मूत की एक एक धार दिखाएँगे .........देखिये कितना परफेक्ट सर्किल बनाया  है इंडिया के खिलाड़ी ने ...अब देखते हैं south  korea  का खिलाड़ी इस रिकॉर्ड को तोड़ पाता है क्या ???? वाह कितना मज़ा आएगा .......    अब कबड्डी को ही ले लीजिये ......बमुश्किल पंजाब और हरियाणा के कुछ जिलों में ये सर्किल कबड्डी खेली जाती है ( जी हाँ ये उस नेशनल स्टाइल कबड्डी से अलग होती है ) .......जबकि हमारा घुमरी परौता तो UP बिहार की 10  करोड़ जनता का प्रिय खेल है ....जन जन का खेल है .......कबड्डी का वर्ल्ड कप हो सकता है तो घुमरी परौते का क्यों नहीं ........तो फिर पंजाब की बादल सरकार अगर कबड्डी का वर्ल्ड कप करा के वाह वाही लूट सकती है तो हम क्यों नहीं .........
                                        कबड्डी का वर्ल्ड कप करा के अपने सुखबीर बादल जी खिलाड़ियों के मसीहा बन गए हैं ........सुनते हैं कि इसका कुल बजट पचासों करोड़ रूपये है .........कल अखबार में फोटो छपी थी ...य्य्ये मोटी मोटी तोंद ले के खिलाड़ी आये हुए हैं ........इंडिया और पाकिस्तान को छोड़ कर किसी टीम का कोई स्तर नहीं ........सारे matches  one  sided  हो रहे हैं ....उस दिन नेपाल और ऑस्ट्रेलिया का मैच हो रहा था ...स्कोर था 21 -  1 .....सो आलोचना से बचने के लिए आयोजकों ने हाफ टाइम में हाथ पाँव जोड़े कि अरे भैया   ....दूसरी टीम को भी एक आध अंक बना लेने दो यार  .....मैच एकदम one sided  हो रहा है .......पंजाब सरकार वाह वाही लूट रही हैं फर्जी वर्ल्ड कप करा के .......50  करोड़ खर्च दिए इस फर्जी आयोजन पे ........खेलों और खिलाड़ियों के मसीहा बन रहे हैं .....अखबारों में पूरे पूरे पेज के विज्ञापन छाप रहे हैं .........उधर उनके sports  hostels  और wings  में बच्चे भूखे मर रहे हैं ......हॉस्टल में एक दिन की diet  120  रु है ....जब दूध 20  रु और दाल 24  रु किलो थी  तब भी 120  रु ही थी ..आज दूध 36  रु और दाल 85  रु हो गयी ...पर diet  अब भी 120  रु ही है .....उसमे भी ठेकेदार 30 -40  रु एक बच्चे पे कमाता भी है ........विंग में बच्चों के पास फुटबाल नहीं है .........सामान सब ख़तम हो गया है ........मैदान की घास कटे दो महीने हो गए ........कभी पंजाब पहलवानी कुश्ती का गढ़ होता था ....इस बार एक भी मेडल नहीं आया पंजाब का ,  national  champion ship में .....देखते देखते sports  पंजाब से ख़तम हो गयी ........रोम जल रहा है ....nero कबड्डी का वर्ल्ड कप करा रहा है ........जब मेरी सरकार आएगी उत्तर प्रदेश में , तो मैं भी घुमरी परौते का वर्ल्ड कप कराऊंगा  
                                     

Tuesday, November 15, 2011

मुगलिया सल्तनत के युवराज ........


                                      कल  एक लेख लिखा था .......उसमे बेचारे आम हिन्दुस्तानी को भेड़ बकरी बना रखा है मैंने ........जोर जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए , चुप चाप नहीं सहना चाहिए ....क्रान्ति का झंडा बुलंद कर देना चाहिए ........वगैरा वगैरा .....अब आज का अखबार पढ़ के तो अपन हड़क गए .....सो भाइयों ,  कल के अपने क्रांतिकारी विचार  मैं वापस लेता हूँ .....जान है तो जहान है .......देश गया चूल्हे भाड़ में ......पहले अपनी जान बचाओ .......
                        दरअसल हुआ यूँ है कि कल अपने युवराज गए थे फूलपुर ........उत्तर प्रदेश में .......वहां एक रैली करने पहुंचे तो समाजवादी पार्टी के कुछ कार्य कर्ता लोग लगे काले झंडे दिखाने ...........पहले जैसे लाल झंडा देख के सांड भड़क जाते थे अब वैसे ही काले झंडे देख के अपने नेता जी लोग भड़क जाते हैं .........वैसे मैंने पढ़ा है कि काले झंडे दिखाना या काली पट्टी बाँध के प्रदर्शन करना लोकतंत्र में विरोध का एक शांति पूर्ण तरीका है और हमारा संवैधानिक अधिकार है ..........भारत का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को ये अधिकार देता है कि वो शांति पूर्वक इकठ्ठा होकर प्रदर्शन कर सके ,  विरोध कर सके . पर  भैया कल तो गज़ब हो गया ......युवराज वहीं खड़े थे .......उस लड़के ने काला झंडा क्या दिखाया , भड़क गए . अब जब जहाँपनाह नाराज़ हो जाएँ तो दरबारियों ,कारिंदों का ये फ़र्ज़ बनता है कि वो कुछ करें ....सो वहाँ खड़े थे अपने जतिन प्रसाद जी और परमोद तिवारी जी .....अब तिवारी जी तो लगभग बुढ़ा गए हैं पर जतिन प्रसाद की गिनती अभी लौंडा लाफाडियों में होती है ....यानी अभी बच्चे हैं .......वैसे हैं तो अभी युवराज भी बच्चे ही ...सपना चाहे वो परधान मनतरी बनने का देखते हों ....... सो जतिन प्रसाद का खून खौल उठा ....अरे इस साले की ये हिम्मत .......युवराज को काला झंडा दिखाता है  .....और फिर वो ये भूल गए की वो केंद्रीय मंत्री भी हैं .........साथ में परमोद तिवारी भी बुढापा भूल गए और दोनों  लगे बेचारे उस कार्यकर्ता को गिरा के मारने ..........लातों जूतों से मारा ....पटक के मारा .......थप्पड़ घूसों से मारा .........जब ये दोनों नेता वहाँ अपनी मर्दानगी दिखा रहे थे तो युवराज खड़े चुपचाप तमाशा देख रहे थे ..........इधर युवराज बड़े  angry young man  टाइप बयान देते हैं ....कभी उनको UP  की दुर्दशा देख के गुस्सा आता है ....कभी रोना आता है और कभी तरस आता है ....अब ये तो पता नहीं की उस बेचारे गरीब आदमी को सड़क पे पिटते देख उनके मन में क्या भाव  जागृत हुआ , पर भैया अपन तो हड़क गए ..........
                          वैसे एक बात बताऊँ आप को  ????????  हड़क तो मैं उसी दिन गया था जब ये सरकार बाबा और अन्ना के अनशन पर पाबंदियां लगा रही थी . जंतर मंतर पे मत करो ......बुराड़ी में करो ..........5000  से ज्यादा लोग नहीं होने चाहिए .......50  से ज्यादा कारें नहीं होनी चाहिए .........4  दिन से ज्यादा प्रदर्शन नहीं चलेगा ..............धारा 144  लगा दो ....सिर्फ योग कराओ ....सरकार के खिलाफ भाषण मत दो ...........अनशन मत करो .........अनशन से क्या होने वाला है ...........अनशन किसी समस्या का हल नहीं है ...........तू  होता  कौन है बे  अनशन करने वाले ....कभी कोई चुनाव जीता है ????????? तेरी औकात क्या है   ???????? मुझे तो सरकार की नीयत पे उसी दिन शक हो गया था ...........ये सरकार भूखा भी रखेगी और रोने भी नहीं देगी ........पीटेगी भी और रोने भी  नहीं देगी .
                                 उस रात , वहाँ दिल्ली में ,  जब मनमोहन सिंह और अपने चिदंबरम बाबू की पुलिस ने हमें राम लीला मैदान में बाबा के अनशन से ज़बरदस्ती उठा के बाहर फेंक दिया ...और जब हम इकट्ठे हो कर जंतर मंतर जाने लगे तो पुलिस ने हमें दौड़ा दौड़ा के पीटा...सड़क पे लिटा के पीटा ....लाठियों से मारा .........तो मैंने बड़ी शहादत भरी मुद्रा में ब्लॉग लिखा .............मेरी बीवी ने कमेन्ट किया की हे प्राण नाथ ....ज्यादा भगत सिंह बनने की कोशिश मत करो ...........चुपचाप घर चले आओ और ये जो तीन तीन पैदा कर रखे हैं इन्हें पाल लो ..........देश की चिंता मत करो ....पडोसी के घर में भी एक भगत सिंह है .....देश वो सम्हाल लेगा ...........पर ये जिहाद करने का भूत अगर एक बार लग जाए तो जल्दी पिंड नहीं छोड़ता है ........... पर अब तो डर लगने लगा है .......हिटलर के समय की कहानियाँ सुनी हैं मैंने ........सुना है कि उस समय वहां नाजी एक लाइन में खड़ा कर के लोगों को गोली मारते थे और फिर ये गिनते थे कि एक गोली कितने लोगों के पार निकल जाती है ............ जर्मन अफसरों की औरतें दुधमुहे बच्चों को हवा में उछाल कर उस पे मशीन गन से गोलियां चलाती थीं  फिर बाद में गिनती थी कि कितनी गोलियां लगीं ...........अब इसमें कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता ........पर ये सच है की  मंत्री जी पीट रहे थे और युवराज देख रहे थे ..........सुना है की मुगलिया सल्तनत में बादशाह के दरबार में भूखे  शेर के सामने , पिंजरे में एक आदमी को डाल देते थे और वो उसे मार के खा जाता था ...........जहाँपनाह तमाशा देखते थे ........
एक बड़ा पुराना शेर है ..................इब्तिदा इ इश्क है , रोता है क्या ...............
                                                   आगे आगे देखिये होता है क्या .................देखिये माँ बेटा क्या क्या करते कराते हैं .........









Monday, November 14, 2011

भेड़ बकरियों के सर पे priority banking

                          कुछ  महीने  पहले की बात है , मैं बैंक गया था , AXIS BANK , कुछ पैसे डलवाने थे खाते में ....लम्बी लाइन लगी थी . सुबह के समय भीड़ हो ही जाती है ,सभी धैर्य पूर्वक अपनी बारी का इंतज़ार कर रह थे ....तभी एक श्रीमान जी आये ....उनके गले में axis  बैंक का पट्टा पड़ा हुआ था सो मैं समझ गया की बैंक के ही कर्मचारी हैं ......वो सबसे आगे आ कर खिड़की से नोटों का एक बड़ा सा बण्डल पकडाने लगे ....मैंने कहा भाई साहब मैं क्या आपको शकल से बेवक़ूफ़ लगता हूँ .....वो एकदम सकपका गया ....क्या हुआ भाई साहब ........नहीं आप ये बताओ की क्या मैं बेवक़ूफ़ हूँ जो इतनी देर से लाइन में खड़ा हूँ ....और आप आये और सबसे आगे पहुँच गए .....जनाब मैं बैंक का स्टाफ हूँ ......हुज़ूर आप चाहे जो हों , पर लाइन में आइये .......वो बोले कोई priority  customer है ....मैं बोला साहब priority  customer  है तो आपके लिए है .....कोई बहुत बड़ा करोड़ पति , अरब पति आपका ग्राहक है , आप उसे special  treatment  देना चाहते हैं , ये बड़ी अच्छी बात है ....वो इतना अमीर आदमी क्यों हम लोगों की तरह , भेड़ बकरियों की तरह यहाँ लाइन में खडा होगा ....आप उसे वहाँ AC  में बैठाइए ,  मसनद लगा के , 4  आदमी उसे पंखा झलें जैसे शाहजहाँ को झलती थीं दासियाँ , जब वो तख्ते ताउस पे बैठता था .......मेनेजर साहेब उसके पैरों की मालिश करें .......बादाम रोगन से ........आप सब उसकी चाकरी कीजिये ......पर भैया मुझसे क्यों करा रहे हो यार .......मेरे सर पे चढ़ के क्यों ऐश करेगा वो ..........पहले वो लड़की सारा काम रोक के उसके पैसे जमा करेगी तब तक मैं खड़ा रहूँगा ......इतना महत्त्वपूर्ण आदमी है , तो उसके लिए अलग से काउंटर खोल   लो यार ....आम आदमी के सर पे बैठा के उसे priority  customer  मत बनाओ ..... अब ऐसे मुद्दों पर ,  सार्वजनिक स्थलों पर जब मैं जिहाद करता हूँ तो ज़रा जोर जोर से बोलता हूँ , अगल बगल खड़े लोगों को उकसाता हूँ ...........उनसे संवाद स्थापित करता हूँ और तुरंत एक ग्रुप बन जाता है ...सभी जोर जोर से बोलने लगते हैं और मैनेजमेंट के लिए बड़ी असहज स्थिति बन जाती है .........खैर जब वहाँ scene  create  हो गया तो तुरंत मेनेजर अपने केबिन से उठ के आया .....उसने मुझे 25  बार सर सर कहा और बोला सर आप मुझे दीजिये मैं आपके पैसे जमा करवा देता हूँ ....मैं फिर उसके सर पे सवार हो गया ....अबे यही तो मुद्दा है ........मेरे काम तू फिर पीछे से करवा देगा ....ये जो बाकी खड़े हैं ये बेवक़ूफ़ हैं  ???????  इस queue  का मतलब क्या है  ??????  भारत का आम आदमी तो बेचारा है न ...निरीह है न .......यूँ ही सड़क पे धक्के खाने के लिए पैदा हुआ है न .......उसे priority  कब मिलेगी   ????? आम आदमी को पीछे धकेल  कर ख़ास आदमी को आगे खडा करना बंद करो........हम आम लोगों का हिस्सा ये रसूख वाले कब तक खायेंगे .....इतनी भीड़ है तुम्हारे बैंक में ....एक और काउंटर शुरू क्यों नहीं करते ........ खूब बवाल कटा उस दिन बैंक में ......पब्लिक कुछ देर चिल्लाई .....फिर सब शांत हो गए ....... 
                                     आज फिर एक बैंक में गया था .....तीन चार लोग खड़े थे लाइन में मुझसे आगे  ....आज फिर वही सब कुछ दोहराया गया .....मैं चुपचाप देखता रहा .....सब भेड़ बकरियों की तरह खड़े रहे .......कोई कुछ नहीं बोला ....किसी ने आवाज़ नहीं उठायी ......... मैं भी कुछ जल्दी में था .....एक बार बोलने भी लगा था ....फिर खुद को रोक लिया .........अपनी बारी आने तक इंतज़ार किया , पैसे जमा कराये और आ गया .......तब से अब तक यही सोच रहा हूँ .......हम हिन्दुस्तानी क्यों चुपचाप सब सह रहे हैं ....क्यों नहीं लड़ते सच्ची बात के लिए ......अपने हक़ के लिए .........क्या हम सचमुच गुलाम कौम हैं ?????????   क्या कोई दिन आएगा , जब उठ खड़ा होगा हिन्दुस्तान , अपने साथ होने वाली इन नाइंसाफियों के खिलाफ ...........








     

Friday, November 11, 2011

बेचारा किसान ........

                                   जब से मैंने होश सम्हाला है दुनिया बदल गयी ...कहाँ से कहाँ पहुँच गयी ..........सब कुछ बदल गया ...पर एक प्राणी नहीं बदला ........हमारा बेचारा किसान ....अन्न दाता .......60  साल पहले भी बेचारा था .........आज भी बेचारा ही है .........पहले भी गरीब था आज भी गरीब ही है ........पर एक बात  है ,  पहले ख़ुदकुशी नहीं करता था ....अब पट्ठा मौका पाते ही ख़ुदकुशी कर लेता है ...........जैसे ही खबर आती है मीडिया में प्रलाप शुरू हो जाता है ........अरुंधती रॉय , तीस्ता सेतलवाड  जैसे professional आलापी प्रलापी शुरू हो जाते हैं ...बेचारा किसान  ....ह्हाय हाय रे  ....मर गया रे  ...कोई बचाओ  रे  ......ज़ालिम  सरकार  है ...सुनती  नहीं है ........कोई किसान के लिए कुछ करो रे ........फिर सरकार चुनाव से एन पहले उठती है और तथाकथित किसान के मुह में एक लालीपॉप घुसेड देती है .............जनता खुश हो जाती है , अखबार और TV वाले भी खुश हो जाते हैं पर कुछ दिन बाद फिर कोई कमबख्त कीट नाशक पी जाता है ....फिर वही प्रलाप शुरू ...........तो कुछ साल पहले की बात है की ये सब देखते देखते एक दिन मेरा ह्रदय एकदम द्रवित हो गया बेचारे किसान की ये दर्द भरी गाथा सुन के .............तो मैंने अपने लेवल पे ये जानने की कोशिश की कि या इलाही ये माजरा क्या है ..........चलो पता लगाया जाए .........सो पहले तो मैंने कोई किसान ढूंढना शुरू किया .........आईडिया ये था कि उसी से पूछा जाए कि बता भाई तेरी प्रॉब्लम क्या है .........सो कई साल ढूंढता रहा कोई किसान न मिला ....अब आप सोचेंगे कि देखो साला क्या फालतू बात लिख रहा ...पर यकीन मानिए जनाब वहाँ मुझे अपने गाँव के आसपास कोई किसान न मिला .........दरअसल हम वहाँ चलाते थे एक स्कूल ...सैकड़ों लोग आते थे हमारे पास ......जिस किसी ठलुए से पूछो ........profession ????? तो वो कह देता कृषि ....फिर हम उससे कहते अबे सही सही बता ....तो पता चलता कि सब कुछ है ज़मीन जायदाद है ......कृषि भूमि है पर खेती कोई नहीं करता .........वो यूँ कि गाँव में दो किस्म के लोग है , एक वो जिनके पास थोड़ी या ज्यादा ज़मीन है .........दूसरे वो जो तथाकथित भूमिहीन हैं .........सो जिनके पास ज़मीन है ...वो और उनकी औलादें तो हैं नवाब वाजिद अली शाह कि औलाद .......उनका तो status down हो जाता है खेत में जा के फावड़ा चलाने से .....इसलिए उन्हें मजदूर चाहिए खेती के लिए ......सो मजदूरी वो करेगा जो भूमिहीन है .......ऐसे लोग भू स्वामी के  साथ या तो आधे कि हिस्सेदारी कर लेते हैं यानी अधियरा ....या अधिया की खेती ....इसमें तय ये होता है की भैया ज़मीन मेरी मेहनत तुम्हारी ....लागत बराबर बराबर और फसल बराबर बराबर ..............पर इसमें होता क्या था की अधियरा ज़मींदार साहब का हिस्सा चुरा लेता था ...सो भू स्वामियों ने चौथी पे खेती कराना शुरू किया ....उसमे ये होता की ज़मीन मेरी ...लागत ( जुताई , खाद , बीज ,कीटनाशक ) सब मेरी ....मेहनत तेरी .....फसल के ३ हिस्से मेरे और एक हिस्सा तेरा यानी २५ % तेरा .................
                                                                     अब इस पूरी स्टोरी में चक्कर ये है की जिसकी ज़मीन है वो खेत में पांव रख के नहीं राज़ी .........और मजदूर वर्ग जिन्हें गाँव में बनिहार कहा जाता था कभी .......उन बेचारों को कुछ मिलता ही नहीं था सो वो किस लिए हाड तोड़ मेहनत करें ...सो उन्होंने इस में interest लेना बंद कर दिया ....उनके लड़के दिल्ली बम्बई जा के मजदूरी करने लगे ....slums में रहने लगे ........कुछ वहाँ हरियाणा पंजाब के भूस्वामियों ( किसान तो मैं उन्हें भी नहीं मानता ) के पास काम करने लगे .......पर वो भी नौकर हुए , किसान न हुए ....अपनी तो एक स्पष्ट सोच है ...वो ये की 6 लोगों का एक परिवार अगर सचमुच किसानी करे ......प्रति दिन दो घंटे ...यानी साल में 730 घंटे काम करे अपने खेत में .....तो आराम से 10 एकड़ की खेती कर सकता है .......पर जिसने कसम खा रखी है की हर काम मजदूरों से ही कराना है वो काहे का किसान ?????? सो पहली बात तो ये की इस किसान word में ही बहुत बड़ा घपला है .........पूरा घोटाला है ......वो कैसे ........सुनिए , किसान क्रेडिट कार्ड है लोगों के पास ......एक लाख तक का लोन मिलता है ......इसपे research करा के देख लो , 95 % लोग ये लोन ले के कृषि के अतिरिक्त अपनी अन्य ज़रूरतों पर खर्च कर देते हैं ......खेती तो बस यूँ ही...... टुटहूँ  टूं ही होती है .........यानि घिसटती पिटती..... सरकार मुफ्त बिजली देती है किसान को ...पर कितने किसान उससे सिचाई कर रहे हैं ....या thrasher चला रहे हैं .........किसान की बीवी heater पे खाना बना रही है .......आज तक सरकार ने कृषि के नाम पे अरबों रूपये की subsidy  दी.....पर उसका असली लाभ चंद  गिने चुने बड़े किसान उठा रहे हैं ...........agriculture का basic infrastructure आज भी zero है .......food supply chain   नदारद है ....food processing industry नहीं है ......फल और सब्जी की 90 % उपज आज भी औने पौने दाम में बिकती है ..........dairy , fishery , piggery , horticulture सबकी growth नगण्य है ......... देश का बहुत बड़ा भाग आज भी असिंचित है .......खेती की return zero है ....जिस venture से return zero है उसमे कोई क्यों अपना टाइम और energy invest करेगा ......दुसरे आज ज़्यादातर किसानों की लैंड होल्डिंग इतनी कम हो चुकी है कि एक किसान के पास बमुश्किल आधा बीघा खेत है उसमे वो बेचारा ......नंगा क्या नहाए क्या निचोड़े .........आज भारत में तथाकथित  70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लिप्त है ....किसी ज़माने में USA में भी ऐसा ही था ....पर वहाँ आज कृषि पूरी तरह mechanize हो चुकी है और अब वहाँ सिर्फ 3 % लोग ही कृषि में लिप्त हैं ........भारत में भी कमोबेश वो स्थिति आ रही है ..........so called किसान कृषि से उदासीन हो रहा है ......मजदूर NAREGA ,  MANREGA में मस्त है .......
                                             तो फिर ख़ुदकुशी कौन कर रहा है  ??????  और क्यों कर रहा है ??????  जरा नज़दीक से झाँक  के देखिये .........ख़ुदकुशी का मूल कारण उपभोक्तावाद का  कुचक्र है .........उस में फंस  कर ऊट पटांग खर्चे करने वाले लोगों ने ख़ुदकुशी की  है ..........कृषि के नाम पर लोन ले कर उसे अन्य कामों में खर्च करने वाले  .........महंगे आडम्बर पूर्ण समारोह ....विवाह ........चैनल टीवी और सिनेमा प्रभावित मूर्खता पूर्ण जीवन शैली ........जहां भी किसी बड़े किसान ने आत्महत्या की है उसका मूल कारण यही रहा है ( जहां तक दक्षिण की बात है , वहाँ तो ख़ुदकुशी का फैशन है ....रजनी कान्त या खुशबू की फिल्म फ्लॉप हो जाए तो लोग फांसी लगा लेते हैं )........अन्यथा फसल खराब होना या दाम न लगना .......भारतीय कृषि में ये कौन सी नयी बात है ......भारतीय किसान तो सदियों से इसका आदी है ...........पंजाब और महाराष्ट्र की बहुत सी NGOs  और सरकारी संस्थाओं ने इसपे जांच की है और ये चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं ....परन्तु इसे सार्वजनिक करने की हिम्मत न मीडिया जुटा पाया है न सरकार ....एक दो लेखकों ने दबे छुपे स्वरों में कुछ लिखा पढ़ा है ....पर सब डरते है क्योंकि ये सच बोलने वालों को तुरंत हृदयहीन , दुष्ट , पापी ,घोषित कर दिया जाएगा ...क्योंकि बेचारे किसान से सहानुभूति रखना आजकल फैशन में जो है ........






Tuesday, November 8, 2011

लो जी ......अब जुल्फों वाले बाबा भी आ गए

                                               आज के अखबार में है खबर , कि  अब श्री श्री रविशंकर जी भी कूद पड़े हैं मैदान में .........भ्रष्टाचार के खिलाफ ........... उन्होंने जौनपुर में एक कार्यक्रम में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम शुरू की है .वो सत्संग कर के लोगों से भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने की अपील कर रहे हैं . उसपे समाजवादी पार्टी के एक नेता जी हैं आज़म खान साहेब , उनकी एक टिप्पणी आई है ............ लो जी अब एक जुल्फों वाले बाबा भी आ गए ............मुझे ये बात समझ नहीं आती कि अगर ये बाबा लोग ऐसा कर रहे हैं तो सत्ता प्रतिष्ठान और राजनैतिक दलों में ये बचैनी क्यों है ? तल्ख़ टिप्पणियां क्यों हो रही हैं  ??????  दूसरी बात ये कि क्या बाबा लोग को ऐसा करना चाहिए ? क्या स्वामी रामदेव को काले धन के खिलाफ मुहिम चलानी चाहिए ? उस दिन जब रामलीला मैदान से बाबा को पुलिस उठा के हरिद्वार छोड़ आयी तो बहुत से लोगों ने ये प्रश्न पूछा .........क्या ज़रुरत है आपको ये सब करने की ? दरअसल उनका कहने का मतलब ये है कि , क्यों पंगा ले रहे हो यार ? बाबा गिरी बढ़िया चल ही रही है . भक्त लोग चरणामृत ले ही रहे हैं .मुख्यमंत्री लोग माथा टेकते हैं..... लाइन लगा के .........AC आश्रम है यार .योगा सिखाओ , पैर पुजवाओ .चन्दा बटोरो .ऐश करो ........ बाबा हैं की मरे जा रहे हैं .......धूल फांक रहे हैं सड़कों की .......सुबह 5 बजे भोंकना शुरू करते हैं .........रात 11  बजे तक भोंकते हैं .........न आप चैन से जियेंगे न दूसरों को जीने देंगे ...............9  महीने में एक लाख किलोमीटर घूम दिए ......अब फिर चल पड़े हैं .......इस बार दो लाख Km दौड़ेंगे ........सरकार पीछे पड़ी है .....एक एक कागज़ छान रही है ........ चरित्र हनन कर रही है ....जेल भेजने की तैयारी कर रही है .....बाबा फिर भी अड़े है ........फांसी पे लटका दो ....गोली मार दो .......... मंज़ूर है .........पर राष्ट्र धर्म निभाऊंगा .......सन्यासी का धर्म निभाऊंगा   .......निजी बातचीत में वो बड़ी तफसील से समझाते हैं ....अच्छा ये बताओ ....ये न करूँ तो और क्या करूँ ......बैठ जाऊं सचमुच आश्रम में .........चुपचाप .....यही एक ही जीवन तो मिला है काम करने के लिए ....और आजतक जो कुछ किया क्या वो अपने लिए किया ?????? मुझे कौन सी बेटी ब्याहनी है .....मेरे कौन से बेटे हैं जिनके लिए धन जोड़ना है .....पर हाँ , मेरे 121  करोड़ बेटे हैं ....उनके लिए जो कुछ बन पड़ेगा करूँगा .............एक और बात कहते हैं की आखिर सारी दुनिया क्या करती है .......एक बीवी होती है , 2 -3  बच्चे होते हैं और उस एक बीवी और 2 -3  बच्चों को खुश रखने में सारी जिंदगी बिता देते हैं लोग ................पर नहीं ........मैंने अलग रास्ता चुना है .........मैं 121  करोड़ माताओं बहनों और बच्चों को खुश रखने की कोशिश करूंगा ..............
                                                        पर कोढ़ में खाज हो गयी है . अब तक दो ही थे ......बाबा और अन्ना ...अब ये तीसरे आ गए ........जुल्फी बाबा ...श्री श्री ..........दो ने ही जीना हराम कर रखा था ........तीन तो जान ले लेंगे ........... उस दिन दिग्विजय सिंह भड़ास निकाल रहे थे ...आज आज़म खान बोले हैं ....कल कोई और भी बोलेगा ........... आखिर दिक्कत क्या है इन्हें ........... दरअसल लगता यूँ है की अन्ना और बाबा लोगों  की मुहीम का  राजनैतिक लाभ सीधे सीधे BJP को हो रहा है ........स्वाभाविक सी बात है होगा भी .....होना भी चाहिए ........अरे भाई जो vacuum  बन रहा है उसे कोई भरेगा भी तो ..........ये मुहिम कांग्रेस को कमज़ोर करती है सो इसका सीधा फायदा बीजेपी को पहुंचता है ..........सो कांग्रेस का खीजना तो लाज़मी है ....अब ये जो आज़म खान साहब झल्लाए हैं वो यूँ की उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भाजपा और प्रखर हिंदुत्व का विरोध और मुस्लिम हितों का संरक्षण कर पनपती रही है ..............बाबा और श्री श्री की मुहिम से हिन्दू वोट भ्रष्टाचार के विरोध में संगठित हो रहा है  ( क्योंकि इन बाबा लोगों की सभाओं,  सत्संगों ,  शिविरों में ज़्यादातर श्रोता हिन्दू ही होते हैं ) सो नेता जी लोग डर रहे हैं की भैया ये पूरा माल मलीदा कहीं भाजपा की झोली में न गिर जाए ........सो विरोध कर रहे हैं ........पर एक बात तय है ........ऐसा तो हो नहीं सकता कि ये बाबा लोग और अन्ना सब भाजपा के हाथों बिक गए हैं ......... ये तो अपना स्वाभाविक धर्म निभा रहे हैं ......अब इसका जो तात्कालिक नफ़ा नुक्सान जिसको होना है सो होगा ....पर ये बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण है........... एक अत्यंत व्यापक और विकराल समस्या के प्रति ........... कटु सत्य ये है कि भ्रष्ट आचरण भारत देश के रोम रोम में समा गया है ...........हमारी पूरी सोच ही विकृत हो चुकी है .......हमने इसे एक शाश्वत सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया है .........हमने इस से हार मान ली है .........ये मान लिया है कि यही सही तरीका है ......भ्रष्ट कार्य शैली ही सही जीवन शैली है . चारित्रिक पतन की पराकाष्ठ ये है कि कोई अगर इमानदारी का व्यवहार कर रहा है तो हंसी का पात्र है ...हेय दृष्टि से देखा जा रहा है ......पागल कहा रहा है ...........सिर्फ एक जन लोकपाल बिल ला कर इस समस्या को दूर नहीं किया जा सकता ..............इसमें तो पूरे राष्ट्र को लगना होगा .......भारत का प्रत्येक बुद्धि जीवी .........प्रत्येक मेहनत कश आदमी ...सभी साधू संत महात्मा ,  समाज सेवी ,अध्यापक ,कवि ,लेखक ,पत्रकार , फिल्मकार , कलाकार जब इस समाज सुधार आन्दोलन में कूदेंगे तभी कुछ सफलता मिल सकती है .......... गंदगी से बजबजाती नाली में घुस के उसे हाथों से साफ़ करना पड़ता है ........भयंकर बदबू उठती है ..........सब कुछ बर्दाश्त कर के लगे रहना पड़ता है .....यहाँ पंजाब में संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने पवित्र नदी काली बेई ....जो एक सीवर में तब्दील हो चुकी थी .....उसे एक महा अभियान चला कर साफ़   किया .....सालों ये काम चलता रहा ....लाखों लोग उसमे शामिल हुए .......तसले फावड़े बाल्टियां ले के कूद पड़े ..............हर व्यक्ति ने अपनी सामर्थ्यानुसार , श्रद्धानुसार सहयोग दिया .....और आज वो साफ़ मीठे पानी की एक खूबसूरत  नदी है ............भारत देश की इस चारित्रिक नदी को साफ़ करने के लिए भी जब सब लोग कूद पड़ेंगे तभी कुछ होगा ........मुझे ताज्जुब होता है .....अभी तक सिर्फ श्री श्री ही आये  ????????  बाकी लोग किस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं ???????




Monday, November 7, 2011

क्यों डरते हैं अन्ना और उनकी टीम ....... बाबा से ?????

                                                         क्यों डरते हैं अन्ना .....बाबा से ......मुझे याद है जब जंतर मंतर में अन्ना का पहला अनशन हो रहा था ...........पूरा देश उद्वेलित था ...........आजादी के बाद ..........बापू और JP  के आन्दोलन के बाद ये पहला जन आन्दोलन था .....यूँ लग रहा था जैसे अन्ना ने पूरे देश की दुखती रग को छू लिया है ........दुनिया उमड़ पड़ी थी .........पर सबकी जुबां पे सिर्फ एक ही सवाल था .....बाबा कहाँ हैं .....वो क्यों नहीं आये ........उनका समर्थन क्यों नहीं मिल रहा ........उधर बाबा वहाँ हरिद्वार में राम कथा सुन रहे थे .......बाल मुरारी बापू आये हुए थे ........इधर अनशन , उधर राम कथा ......लाखों की भीड़ उमड़ी हुई थी वहाँ योग पीठ में ......विशाल योग भवन में तिल रखने की जगह नहीं थी ......पर सबकी जुबां पर फिर वही  सवाल ....बाबा क्यों नहीं गए ............फिर चौथे दिन बाबा गए ......एक घंटे के लिए ........formalty  कर के चले आये ......लोगों ने चैन की सांस ली ......भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस लडाई में बाबा भी साथ हैं .............उसके बाद अन्ना फिर जुटे अगस्त में , रामलीला मैदान में ...........बड़ी सरगर्मी थी ........ सरकार ने उठा के अन्ना को तिहाड़ में बंद कर दिया .........पुब्लिक जुटी हुई थी तिहाड़ के सामने ........और वहाँ model  town  में छत्रसाल स्टेडियम के सामने .....बाबा फिर आये .... दिन भर रहे और चले गए ...........स्टार न्यूज़ पे दीपक चौरसिया कवर कर रहे थे .........उन्होंने उस पत्रकार से पूछा ....बाबा भी आये हैं ?????? उस पत्रकार ने कहा ,  हाँ ...आये हैं ....वो तो यूँ ही चले आते हैं बस ,  बिना बुलाये ..........दूसरे के आयोजनों में ........महफ़िल लूटने ....मुफ्त का प्रचार पाने के लिए ....हम लोग वहां योग पीठ में बैठे ये कार्यक्रम देख रहे थे .....ये वाक्य सुन के हम सब तिलमिला गए ..........क्यों गए बाबा ऐसे कार्यक्रम में ..........कुछ दिन बाद विशिष्ट कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग में बाबा हम लोगों से मुखातिब थे ..........दिल की बातें हो रही थी ......एकदम दिल से ......कहने लगे मान अपमान ,यश अपयश .....इन बातों से मैं ऊपर उठ चुका हूँ .....मैंने संघर्ष का रास्ता चुना है ..............समाज और राष्ट्र  के लिए कार्य कर रहा हूँ ,  सो यश अपयश तो लगा ही रहेगा ............राष्ट्र की अपेक्षा थी , कि  मुझे जाना चाहिए ....सो मैं गया ......बिना बुलाये भी गया .
                               अब हमारे सामने यक्ष प्रश्न था की अन्ना ने उस आन्दोलन में स्वामी जी को साथ क्यों नहीं लिया ......क्यों नहीं बुलाया .......जबकि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ चल रही लड़ाई में जब स्वामी जी ने बिगुल फूंका तो सबको साथ ले के चले ....जहां भी जाते हैं वहाँ के स्थानीय संतों से अवश्य मिलते हैं ....अपने कार्यक्रमों में बुलाते हैं और अपने साथ मंच पे ....बराबर बैठाते हैं ....और कई बार तो वरिष्ठ जन को तो अपने से भी ऊपर बैठाते हैं .........अपने से बहुत छोटों को भी श्रद्धेय और पूज्य कह कर बुलाते हैं ...एक बार एक एकदम नए सन्यासी .....28-30 साल आयु रही होगी , उनके साथ मंच पर बैठे थे ....बाबा ने उन्हें पूज्य कह कर संबोधित किया ....फिर बोले जी हाँ .........सृष्टि का कण कण पूज्य है ....हर व्यक्ति सम्मानित है ....तो ये भावना है बाबा की ........तो जब उन्होंने पहली रैली की रामलीला मैदान में ....फरवरी 2011 में,  तो सबको बुलाया ...सबको ....रामजेठमलानी , गुरुमूर्ति ,किरण बेदी , साधू संत ....सभी धर्मों के ...सब आये ...अन्ना भी आये .........उस दिन हम लोग गाँव में TV पे देख रहे थे ...सो जब अन्ना बोलने लगे तो एक सज्जन ने पूछा .......ये कौन हैं .....अन्ना हजारे हैं .....अच्छा कौन हैं ....क्या करते हैं ....मैंने उन्हें डिटेल में बताया ...वो बोले ...अच्छा ?????? पहले कभी नाम नहीं सुना .....जी हाँ उन दिनों तक यहाँ उत्तर भारत में आम जन अन्ना को कम ही जानते थे ......उस दिन अन्ना ने वहां बाबा के मंच से घोषणा की कि वो भी  अनशन पे बैठ रहे हैं ....4 अप्रैल से .......लोकपाल बिल के लिए .....मेरे पिता जी की टिप्पणी थी ...अच्छा ये भी ??? मैंने कहा क्यों ....बुरा क्या है .......वो बोले बुरा नहीं है पर अलग अलग नहीं ....युद्ध एक साथ ........सगठित हो कर लड़ना चाहिए .........खैर अन्ना अनशन पर बैठे ........पर उन्होंने बाबा को नहीं बुलाया .......उन दिनों मैं वहाँ गाजीपुर में काम कर रहा था ........सबकी जुबान पे एक ही प्रश्न ........बाबा साथ हैं न ??????? आये क्यों नहीं ....कोई बात है क्या ????? अंत में बाबा आये और हाजिरी दे के चले गए .........आम जनता क्या जाने की बुलाया था या नहीं ....या क्यों नहीं बुलाया  ????? हम लोगों ने पूछा उस दिन ....आपको क्यों नहीं बुलाया ....कोई मन भेद है क्या .....बाबा हंस के रह गए ....बोले बस यूँ ही ....पर कोई मन भेद नहीं है ........पर उत्तर दिया एक अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ता ने ......... दरअसल बाबा का व्यक्तित्व   बहुत बड़ा है ........10 -15  साल से गाँव गाँव में ...पूरे देश में घूम घूम के काम कर रहे हैं ....कोई कोना नहीं छोड़ा ....एक एक दिन में 10 - 10  सभाएं करते हैं ........ सारा दिन लगे रहते हैं ......उनका support  base  सिर्फ urban  middle  class  तक सीमित नहीं है , गाँव का बच्चा बच्चा जानता है उन्हें ..........उन्हें किसी प्रचार की ज़रुरत नहीं है ...........उनकी समस्या ये है की वो जहां जाते है छा जाते हैं ........बहुत विराट व्यक्तित्व है उनका ........हर महफ़िल लूट लेते हैं ....सो अपने से बड़ा व्यक्तित्व अपने कार्यक्रम में अन्ना afford  नहीं करते ......उनके सहयोगी सब ...the so called team Anna ....वो तो बेचारे बच्चे हैं अभी .........उनकी क्या बात करें ........पर एक बात तय है कि कोई वैचारिक मतभेद नहीं है ...........लक्ष्य एक है ...शत्रु एक है ......युद्ध का तरीका एक है ....दोनों ही आन्दोलन अहिंसक हैं .........फिर भी दो टीमें हैं ....दोनों  अपने अपने तरीके से अलख जगा रहे हैं .........भ्रष्टाचार रुपी दानव से लड़ रहे हैं ......दोनों की अपनी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है .........परन्तु सरकार और मीडिया दोनों ,  इन दोनों में मतभेद  और मनभेद सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं ......सरकार तो कुटिल है .......दुष्ट है .......परन्तु मीडिया की मजबूरियां हैं .....उन्हें हर समय कुछ नया परोसना है .......चटपटा ....मसालेदार .........जिसे लोग चटखारे ले ले के देखें ..........बैलेंस भी बनाना है .......सरकार को खुश भी रखना है .....गरियाना भी है ............ उसे रोज़ एक नया  हीरो चाहिए और रोज़ एक नया विलेन ..........कुछ दिन का हीरो ही अगर विलेन  बन जाए तो डिश थोड़ी मजेदार बन जाती है ..............TRP भी तो चाहिए बेचारों को .........परन्तु वो चाहे जितना प्रलाप कर लें ....भ्रष्टाचार  के विरुद्ध दोनों टीमें मैदान में डटी हैं ...........आप बस इन्हें अपना समर्थन देते रहिए ........बस वैचारिक समर्थन ........अंत में ये लड़ाई आप ही जीतेंगे ....याद रखिये ....बाबा और अन्ना हमारी ही लड़ाई लड़ रहे हैं .....आपके और मेरे लिए लड़ रहे हैं   

Saturday, November 5, 2011

मेरा क्या है ...सब आपका है .......आपके लिए है ........बाबा राम देव

                                     पिछले दिनों खबर आयी कि  मुकेश भाई अम्बानी अपने 5000  करोड़ के घर में शिफ्ट नहीं हो रहे ......कुछ वास्तु दोष रह गया है शायद.....कमबख्त 5000  करोड़   रुपया खर्च के भी दोष रह गया  ??? 27  मंजिला घर बनवाया है 6  लोगों के रहने के लिए  ........168  कारें खड़ी हो सकती हैं .......8  मंजिलें तो पार्किंग के लिए हैं ....कई सारे swimming  pool  है ....helipad  है ...........ऐसे लोगों को हमारे यहाँ धन पशु कहा जाता है .....एक और धन पशु है .....दिल्ली में .....कांग्रेस पार्टी के नेता हैं ...........कँवर सिंह तंवर ....हाल ही में उन्होंने अपने बेटे की शादी की ........सुनते हैं की 10  दिन समारोह चला ...........18000  मेहमान थे ..........लड़की वालों ने अपने रिश्ते दारों को BMW दे के विदा किया ....दामाद को हेलिकोप्टर दिया दहेज़ में ............लड़के की हजामत बनाने वाले नाइ को ही ढाई लाख का गिफ्ट दिया ..............सुनते हैं की 100  करोड़ से ज्यादा खर्च हो गया एक शादी में ..........पूरी दुनिया में इस शादी के चर्चे रहे ............recepton  में सोनिया शाहरूख खान और ऐश्वर्य राय जैसी हस्तियाँ पहुंची थी ............रईस लोग आहें भर रहे थे ....काश हम भी अपनी बिटिया ऐसे ही ब्याह पाते .........इन ख़बरों को पढ़ के याद आया ....सोने की चिड़िया है हिन्दुस्तान 
                                     पिछले दिनो अपने दिग्गी राजा ....यांनी कि मध्य प्रदेश की राघो गढ़ रियासत के राजा ....अपने दिग्विजय सिंह जी फरमा रहे थे की A , B , C , तीन टीमें थी RSS  की , सो एक , यानी राम देव को तो कुचल दिया ......और बाकी को देख लेंगे ............और ये तो वो हमेशा से बोलते आये हैं की बाबा नहीं ठग है .....चोर है ....बिजनेस करता है .............हाथ पैर बाँध के नदी में फेंक देना चाहिए .........और न जाने क्या क्या . इसके अलावा हमारा मीडिया भी अक्सर उनसे ये पूछता है ......हाय इत्ती सारी दौलत ......इतनाआआआआआ   सारा रुपया है आपके पास ....इतनी सारी दवाइयां बेचते हैं आप ......इतने बड़े बिजनेस मैन है , बड़ी गाडी में चलते हैं ......चार्टर प्लेन में उड़ते हैं  ..........वगैरा वगैरा .....अब इतने दौलत मंद आदमी ....इतने बड़े रईस से ईर्ष्या होना तो स्वाभाविक है .............
                                      अब चूँकि मैं पातंजलि योग पीठ से जुड़ा हूँ ....वहाँ महीनों रहा हूँ .........वहाँ की एक एक चीज़ को गौर से , बड़े नज़दीक से देखा है ...........एक बात तो मैं भी मानता हूँ ....बाबा है वाकई रईस .....इसमें कोई शक नहीं ............लोग कहते हैं की आज से मात्र 18 साल पहले बाबा हरिद्वार की गलियों में साइकिल पे चलता था .....बात सही है ...सुनते हैं की एक बार बाबा ने एक पंसारी से हज़ार रु की जड़ी बूटिया उधार मांगी थी और उसने मना कर दिया था ....वही बाबा आज 1100  करोड़ का मालिक हो गया ...........फ़कीर था....... रईस हो गया.....बड़े नज़दीक से देखा है मैंने बाबा को .........मीडिया को रईस दीखता होगा बाबा ....पर आज भी सचमुच फ़कीर है ............वो अलग बात है की बाबा ने मात्र 5-7 सालों में एक साम्राज्य खड़ा कर दिया है.....पर किसके लिए ..........एक किस्सा सुनाता हूँ ........देश के एक top boxing  coach अपने 30  स्टुडेंट्स को ले कर पतंजलि आना चाहते थे ....योग सीखने ......6  दिन का शिविर लगाना चाहते थे ........उन्होंने मुझसे संपर्क किया .........वो पूछने लगे क्या खर्च आएगा .......... मैंने कहा कुछ ख़ास नहीं .......3  दिन यहाँ धर्मशाला में फ्री में रहने को मिलेगा .....बाकी तीन दिन का 50  रु के हिसाब से एक bed  का दे देना  ....और बाकी भोजन पानी तो फ्री मिलता ही है तीनों समय .......... सो उन्होंने हाँ भर दी ....मैं इस सम्बन्ध में आचार्य बाल कृष्ण जी से मिला ....पूरी बात बतायी .......वो बोले क्या बात करते हो ....राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी ...धर्मशाला में रुकेंगे ..........नहीं residential  blocks  में  AC rooms  में रुकवाओ ........खिलाड़ी हैं इसलिए अलग से भोजन की विशेष व्यस्था करवाओ ....दूध घी मक्खन पनीर फल फ्रूट हर चीज़ की व्यस्था करो ....लाने के लिए स्टेशन पे बस भेजो ...............वो तीस खिलाड़ी 7  दिन वहाँ योग पीठ में रुके .....योग सीखा ........सबके medical  chekup  हुए .....एकदम फ्री .........आज योग पीठ में सैकड़ों हज़ारों लोग पूरे देश से आते है योग सीखने और इलाज कराने ..............धर्मशाला है वहाँ ....3  दिन तक फ्री रुकने की व्यस्था ........इसके बाद 50  रु bed  ( ठलुए  मुफ्त खोरों को रोकने के लिए ) ....दिन रात फ्री लंगर चलता है ..........इतना बड़ा आयुर्वेदिक अस्पताल है ....फ्री सेवा ..........जो लोग धर्मशाला में नहीं रुकना चाहते उनके लिए 150  से ले के 400  रु bed  तक की cooler  और AC  रूम में सुविधा ............इसके अलावा जो दवाइयां वहाँ आश्रम में मिलतीं हैं उनकी कीमत बाज़ार में बिकने वाली अन्य ब्रांड्स से 75  % से ले कर 3000  % तक कम हैं .........यानी बेहद सस्ती ........इसके अलावा बाबा के सैकड़ों सेवा प्रकल्प चल रहे हैं ...........कितने ही गुरुकुल आज बाबा के अनुदान और मदद से चल रहे हैं ....लाखों योग कक्षाएं पूरे देश में .....आज बाबा ने योग को घर घर पहुंचा दिया है .........परन्तु सारी संपत्ति ट्रस्ट की है जिसमे बाबा के अलावा उनके परिवार का एक भी सदस्य नहीं है ......उनके परिवार का एक भी कोई बैंक खाता नहीं है ........उनके एक भाई वही हरिद्वार में काम देखते हैं और वेतन पाते हैं .......एक बड़े भाई गाँव में खेती करते हैं ........सुनते हैं की पुट्टपर्ति में साईं बाबा के निजी कक्ष से 7 करोड़ रुपया और 35 किलो सोना मिला था ......बाबा के निजी कक्ष में गया हूँ मैं .......वहाँ 7 रु नहीं मिलेंगे ......चटाई बिछा के सोते हैं ...जमीन पे .....NON AC रूम में ........ दो जोड़ी कपडे है .....खुद धोते हैं ..........उबली हुई सब्जी और एक गिलास दूध ....यही भोजन है .....बाबा कहते हैं ....मेरा क्या है  ? सब आपका है ....आपके लिए है ...आपके पैसे से बना है .........बाबा की कौन सी बेटी है जिसके 18000  बारातियों को पकवान खिलाने हैं .......दहेज़ में BMW देनी है ...........अलबत्ता उन मुक्केबाज लड़कियों को देख के बोले ये मेरी बेटियाँ हैं ....इन्हें ओलम्पिक के लिए तैयार करो ......कोई चिंता मत करना ...मैं हूँ न ........
                                       एक फ़कीर ने हम आम हिन्दुस्तानियों के लिए इतना कुछ बना दिया ......योग सिखा दिया ...........पर मीडिया और नेता मुकेश अम्बानी और कँवर सिंह तंवर सारीखों का गुणगान करते है , तलवे चाटते हैं ...........बाबा को ठग और चोर बताते हैं ...........




Thursday, November 3, 2011

चल बे .......पैसे निकाल ........चल त्यौहार मना ......

                                      छठ पूजा का त्योहार बीत गया,  ........   अखबारों में खूब चर्चा रही ...........बाजारों में खूब रौनक रही ............खूब खरीदारी हुई .............आदमी पे आदमी चढ़ा जा रहा था ............खूब राजनीती हुई ......मुझे याद आया कि हिन्दुस्तान वाकई बदल गया यार ..........मुझे वो रात याद आ गयी .........दिवाली की रात थी ....1985  में ........मैं दिल्ली से अपने गाँव गया था ...दिवाली के अगले दिन हमारे गाँव में कुश्तियां होती हैं सो उसमे लड़ने गया था ........साथ में एक दोस्त भी था ............शाम सात बजे बनारस उतरे ....8  बजे तक सैदपुर पहुंचे ......वहाँ से एक और बस पकड़ के 8  किलो मीटर दूर अपने गाँव पहुंचना था ..........रात के नौ बजे थे ....बस चली तो चारों और घुप्प अँधेरा था .........दिवाली की , अमावास की रात और किसी गाँव में एक दिया तक नहीं ........न कोई पटाखा  ....न कोई शोर शराबा ....मैं हैरान था ......आखिर हुआ क्या .......मैंने अपने दोस्त से कहा कि ज़रूर यहाँ कोई बहुत बड़ी दुर्घटना हुई है .......इसलिए लोग दिवाली नहीं मना रहे ..........खैर घर पहुंचे तो वहाँ  मेरे चचेरे बड़े भाई सूरन की सब्जी बना के हमारा इंतज़ार कर रहे थे ......पूर्वांचल में दीवाली की रात सूरन ( जिमीकंद , yam  ) की सब्जी  खाने की परंपरा है ........खाना खाते हुए मैंने पूछा ....क्या हुआ ?????  लोग दिवाली नहीं मना रहे ???????? क्यों , मनाई तो है ........अरे क्या मनाई ...न कोई दिया ...न रोशनी ...न पटाखे ..........अरे दिए जलाए थे शाम को .....बुझ बुझा गए ....इतने महंगा हुआ है तेल सरसों का ......... किसके पास है कि सारे रात जले ..........खाना खाओ और सो जाओ ............उस दिन एक नया हिन्दुस्तान देखा मैंने ............फिर 1990  के बाद हम वहीं रहने लगे .........रक्षा बंधन वाले दिन भी कुछ नहीं ....दोपहर में एक पंडित जी आये .....उन्होंने सबके कान पे ताज़े उगे जौ के पौधे रखे  ( पता नहीं क्या कहते हैं उन्हें ) .....शायद कलाई में रक्षा भी बाँधी ....दो रु ले के चले गए .....ये था  रक्षा बंधन .........तब कोई बहन किसी को राखी नहीं बांधती थी वहाँ गाँव देहात में ..........फिर एक दो साल बाद अचानक राखी बाँधने का चलन हो गया ...हमारा एक भतीजा अपनी बहन से राखी बंधवाने 20  किलो मीटर दूर गया और लौटा तो कलाई में शायद 20  राखियाँ बंधी थी .....शायद पूरे गाँव से बंधवा आया था .....आज राखी पे हमारे घर के सामने वाली सड़क पे जाम लग जाता है .............बहना जा रही है भैया को राखी बाँधने .......... धीरे धीर लोग दीवाली भी मनाने लगे ....फिर 94 -95  की बात रही होगी ....मैंने ध्यान दिया कि अचानक बाज़ार में बहुत से नए स्टाल खुल गए है जहां ढेर सा नए नए किस्म का फल फ्रूट बिक रहा है .............खैर बात आयी गयी हो गयी ....अगले साल फिर यही देखा ...तो एक बार बस यूँ ही पूछ लिया ....ये क्या चक्कर है ...ये अचानक इतने सारे फ्रूट के स्टाल क्यों ....साथ में एक दोस्त था .....बोला ...अरे नहीं जानते ....छठ है न .......वो क्या होता है   ???????  अरे बिहारिनों का कोई व्रत होता है .........व्रत में इतना फ्रूट खाती हैं ......अरे नहीं ,  खाती नहीं हैं .......कोई पूजा वूजा होती है .....हमने कहा होती होगी .............और फिर बिहारियों को चार मोटी मोटी गाली दे के चर्चा समाप्त हो गयी ( बिहार उन दिनों भ्रष्टाचार का प्रतीक था न ....इसलिए ) ........फिर दो तीन साल बाद गाँव में एक बार बड़ी चर्चा सुनी कि कोई एक भाभी हमारी ,  पड़ोस की , छठ का व्रत कर रही है ...वो पहली बार हमारे गाँव में किसी औरत ने छठ का व्रत किया था .....अपन ठहरे परम्परावाद और ढोंग ढकोसले के घोर विरोधी सो फिर चार मोटी मोटी गालियाँ दी ....उस भाभी को .....इस व्रत को ......ढोंग ढकोसले को .....ये साला बिहार का कोढ़ यहाँ UP  में भी फ़ैल गया ....वगैरा वगैरा .........पर भैया ये कोढ़ एक बार जो फैला तो ऐसा फैला की पूरे देश में फ़ैल गया ........आज हमारे गाँव में सैकड़ों औरतें ये व्रत करती हैं .........वहाँ बम्बई में संजय निरुपम और शिव सेना कटने मरने को तैयार है .........अखबार छठ की बधाइयों से भरे पड़े हैं ..........लुधिआना जालंधर में आप्रवासी मजदूरों  को खुश करने के लिए तालाबों नहरों के पास राजनैतिक पार्टियां टेंट लगा के बैठी हैं .......... बधाइयां दे रही हैं . ( इस व्रत में लोग नदी तालाब में कमर भर पानी में खड़े हो कर सूर्य को जल चढाते हैं ) अब  जालंधर में कहाँ से लायें नदी तालाब सो  एक नहर जो बरसों से सीवर  में तब्दील हो गयी है ......गंदगी से बजबजाती ....उसमे बाकायदा नहर विभाग से पानी छुड्वाया गया .......अब उस गन्दी घिनौनी नहर में भाई लोग घुस के पूजा कर रहे है और अखबार गरिया रहा है कि देखो नहर विभाग ने नहर की सफाई भी नहीं कराई .......फुल राजनीति हो रही है ........मीडिया ने अपना पूरा रोल अदा किया है .............छठ पूजा तेज़ी से पूरे देश में लोकप्रिय हो गयी है ............पूर्वांचल समाज में ( यहाँ पंजाब में इन्हें आप्रवासी मजदूर लिखा जाता है और आम बोलचाल में " साले भइये " .........बड़ी हिकारत से देखते हैं इन्हें .......पर जब खुद जा के वहाँ इंग्लॅण्ड अमेरिका में जब खुद भइयों की तरह दुत्कारे जाते हैं तो शिकायत करते हैं की देखो racial abuse हो रहा है ) ................
                                       बहुत बड़ा बाज़ार बन चुकी है ये दुनिया ...........माल बेचना है , चाहे जैसे .........सो त्योहारों के बल पे बेचो .....नए त्यौहार इजाद कर रहा है बाज़ार ...........किसी ज़माने में valentine's  day आया था वो अभिजात्य वर्क का त्यौहार था ...........पर बाज़ार को जल्दी ही समझ आ गया की माल बेचना है तो आम आदमी के लिए त्यौहार इजाद करो ............लोगों को त्यौहार मनाना सिखाओ ........सो बाज़ार  हमें याद दिलाता है की ....अबे ये वाला त्यौहार नहीं मनाते हो ............ बड़े backward  घटिया लोग हो यार ........... त्योहारों से वोट बैंक बन रहा है ........TITAN लोगों को बता रही है की राखी पे जब बहना राखी बांधे तो उसे बदले में आप ये हमारी घडी उसे पहना दो .........त्यौहार पे घडी बेच मारो  .......दिवाली पे मिठाई मत दो ,  जहर है .............कुरकुरे दो यार ...........कैडबरी की चोकलेट दो भाई ..........बाज़ार लोगों को याद दिला रहा है .......... धनतेरस आ गयी भाइयों ...........निकालो पैसे ........फिर भैया दूज ............करवा चौथ .........अक्षय तृतीया ........और न जाने कौन कौन सी तीज .........सीधे सादे पर्व होते थे हमारे समाज के ......... आज बाज़ार का instrument  बन गए हैं ............सालों पहले उत्सव फिल्म देखी थी ........उसमे देखा की किसी समय भारत में साल में 200 उत्सव मनाये जाते थे ........लगता है भारत में वो दिन लौट रहे हैं ...वो दिन दूर नहीं की जब भारतीय बाज़ार भी साल में 200  उत्सव मनवाएगा हमसे .....



Tuesday, November 1, 2011

साधू अब नहीं आएगा खेत पे

                                       नेता हमारे ...हमेशा परेशान रहते हैं............आखिरी पायदान पे खड़े उस बेचारे गरीब के लिए .....जी मचल रहा है बेचारों का .....कुछ कर गुज़ारना चाहते हैं ......काफी कुछ किया भी ........मैंने सुना है की अरबों रुपया खर्च होता है उनपे ....सस्ती  दर पे अनाज देती है सरकार .....सुना है कपड़ा भी मिलता है ........इंदिरा आवास योजना में घर भी बना के देती है ......फिर आरक्षण भी तो है , हर चीज़ में ..........मेरे गाँव में भी कुछ हैं ऐसे ही गरीब .....सीढ़ी के आखिरी पायदान पे खड़े लोग .  बीस साल  से मैं उन्हें देख रहा हूँ . जहां खड़े थे अब भी वहीं खड़े हैं ....मुसहर हैं जात के ...........गाँव से एकदम अलग एक कोने में बस्ती होती है इनकी .........किसी जमाने में सूअर पालना ही इनका मुख्य पेशा होता था ......चूहे मार के खाते थे इसलिए शायद मुसहर कहाने लगे ......घुमंतू टाइप   के लोग होते थे ....पर अब कुछ सालों से टिक कर एक ही गाँव में रहने लगे हैं ...उनमे एक हैं साधू मुसहर ........पिछले पंद्रह साल से  वो हमारे घर पे खेती बाड़ी और पशुपालन का कार्य करते रहे हैं  .....पर पिछले साल से उन्होंने काम छोड़ दिया ........1500  रु और खाना पीना मिलता था हर महीने ...........और साल में कोई 7 -8  क्विंटल गेहूं और इतना ही चावल ...........साल भर पहले जब नरेगा शुरू हुई तो उन्होंने काम में लापरवाही शुरू कर दी ..........हमने उनसे कहा भी की अरे भाई काम करते रहो ...साथ में नरेगा भी खटो   .......पर उसने छोड़ दिया .........क्यों ??????? आठ आदमी हैं उनके घर में , यानी नरेगा के आठ जॉब कार्ड .............एक आदमी को दस दिन काम मिलता है  यानी 1200  .....लगभग दस हज़ार रु महीना .....इसी दस हज़ार ने बवाल मचा रखा पूरे देश  में ......अब होता यूँ है की पहले कभी साधू के घर में यूँ इकट्ठे दस हज़ार रु नहीं आये थे ....अब आने लगे हैं ....सो अब पैसे आते ही पहला काम जो होता है वो  ये की हर महीने 2 -4  किलो दाल आने लगी ......... उनकी दाल में भी अब तडका लगने लगा प्याज में जीरा और लहसुन डाल के .........गाहे बगाहे मुर्गा भी आ जाता है ......लड़के अब शेम्पू  से नहाते हैं .....अब भैया शेम्पू  तो फैक्ट्री में चार केमिकल घोल के बन जाता है ....पर अरहर की दाळ कमबख्त खेत में पैदा होती  है वो भी आठ महीने बाद  ......अगर मौसम साथ दे , तो ............उसी तरह बाकी अनाज और फल सब्जियां .............अब साधू मुसहर का परिवार गेहूं चावल तो पहले भी खाता था .....पर रूखा सूखा .....किसी तरह नमक चटनी के साथ .........अब दाळ सब्जी के साथ खाने लगा ....इसलिए गेहूं चावल की खपत कम हो गयी .............जी हाँ चटनी के साथ 10  रोटी खा के भी पेट नहीं भरता पर दाळ रोटी के साथ दो रोटियों  में ही भर जाता है .....इसलिए देश में पिछले कुछ सालों में गेहूं चावल की मांग कम हुई है पर दलहन , तेलहन ,फल , सब्जी , अंडे , मांस , मछली , इत्यादि की मांग बेतहाशा बढ़ गयी है ..........दूसरे सरकार ने पिछले कई दशक से कृषि पर ध्यान नहीं दिया है ......कृषि उत्पादन बढाने के लिए न तो इनके पास कोई कार्य योजना है न इच्छा शक्ति ........ऊपर से कोढ़ में खाज यूँ हो गयी की पिछले कई साल से मौसम धोखा दे रहा है ....प्रतिकूल मौसम ने कृषि उत्पादन ख़ास तौर पे दलहन तेलहन को बहुत नुकसान पहुचाया है ..........खाद्य पदार्थों  की कीमतें तो बेतहाशा बढ़नी ही थी ..........पर नरेगा ने जो संकट शुरू किया है वो आने वाले समय में और बढ़ने जा रहा है ............क्योंकि साधू ने अब हमारे खेत पे काम करना बंद कर दिया है .........असल में बात ये है की यूँ तो हम कहलाते तो हैं किसान .....पर हमारे बाप ने कभी खुरपी , फावड़ा या हल की मुठिया हाथ में नहीं पकड़ी .........वो तो सरकार के खाते में चूँकि जमीन हमारे बाप के नाम पे थी सो हम भी किसान कहाए वरना हमारा तो बेटा मक्की का पौधा देख के पूछता है की पापा ये किस चीज़ का पेड़ है ..........हमारी बीवी की तो मेहदी नहीं उतरी आज तक हाथ पैर से ...........वो तो आज भी पांव खेत में नहीं रखती ..........उसके तो बाप ने कह के विदा किया था ....जमीन पे मत उतारना ............मैले हो जायेंगे ........सो खेती तो हमेशा से साधू मुसहर ही करते आये हैं ...कल तक कर ही रहे थे ......पर अब नरेगा में पैसा पा रहे हैं ........सो गेहूं चावल की चिंता नहीं है ..........इसलिए अब वो हमारी खेती नहीं कर रहे .....और तो और उनके लड़कों ने भी कलकत्ता , बम्बई ,सूरत और लुधियाना   जाना बंद कर दिया है .............पंजाब हरियाणा के किसान परेशान हैं ........कारखाने बंद होने की कगार पे हैं .......क्यों ??????? क्योंकि सधुआ नहीं आया .......... और साला सधुआ ........( मेरे पिता जी के शब्दों में ) ........वहाँ नरेगा में दिन भर में चार खांची मट्टी फेकता है .......चार बार इधर उधर चुत्तड़ मटकाता है .....चांप के खाता है और फ़ों मार के सोता है ...............साले काम धाम एक पैसे का नहीं करेंगे ....खाने को चाहिए चार पसेरी ...........( ये मेरे बाप का डायलोग   है .....कृपया इसके लिए मुझे न गरियाया जाए ) .....देखिये और क्या क्या गुल खिलाती है ये दोनों  बहनें नरेगा और मनरेगा   ....सधुआ पेट भर रोटी क्या खाने लगा , पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है ............