Monday, July 25, 2011

इश्क कि दास्ताँ है प्यारे ....ज़रा प्यार से पढना ...दास्ताने कलकत्ता .....

पिछले दिनों सरकार ने चवन्नी बंद कर दी.जब ये खबर मैंने अखबार में पढ़ी तो मुझे दुःख हुआ ,,,,,चवन्नी के लिए नहीं ...कलकत्त्ते वालों के लिए ....अरे नामुरादों ये सब करने से पहले कम से कम कलकत्ते वालों से तो पूछ लिया होता ........ अब दिल्ली में बैठे ये सरकारी बाबू क्या जानें कि भारत में अब भी एक जगह है जहाँ चवन्नी चलती है भैया ...और धड़ल्ले से चलती है ....और मुझे लगता है कि अगर बंद न होती तो अभी सालों चलती ........लीजिये सुनिए किस्सा -ए- कलकत्ता और आप ही बताइये ........हमारे एक भाई रहते हैं कलकत्ते में ...उनके साथ मैं एक दिन पास के बाज़ार चला गया .....वहां सब्जी और रोज़मर्रा का सामान बिकता है ....वहां मैंने एक दुकान देखी ........उस ज़माने में जब PCO चला करते थे तो छोटा सा एक केबिन होता था जिसमे घुस के लोग बतियाते थे ..........बस उतनी बड़ी दुकान थी .....और मज़े की बात कि चारों तरफ से बंद थी ........उसमें न जाने कहाँ से घुस के वो दुकानदार बैठा था ......और एक छोटी सी window थी ......उसमें से गर्दन घुसा के ग्राहक सामान मांगते थे .......एक लड़की आयी और उसने अपनी लिस्ट सुना दी ....10 पैसे की हल्दी ....25 पैसे का मसाला ......5 पैसे का नमक ......15 पैसे की लाल मिर्च .....10 पैसे का जीरा ........3 रु की अरहर की दाल ...1 रु का तेल ........और बस यूँ ही कुछ और items ......( ये बात 2004 की है )......दुकान दार बड़े मनोयोग से छोटी छोटी पुडिया बाँधने लगा .........अब मैं गया था दिल्ली से ....मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था .......वाकई हिन्दुस्तान में दो हिन्दुस्तान बसते हैं ...ये मैंने उस दिन देखा ........एक जो सचमुच 5 -10 रु रोज़ में गुजारा कर लेता है और दूसरा जो 100 का नोट तो बस यूँ ही उड़ा देता है ........उस दिन से मैंने बंगाल को और बंगाली संस्कृति को बड़े गौर से देखना शुरू किया ........उन दिनों तक भी कलकते में लोग 1000 रु की नौकरी करते थे ....कैसे गुज़ारा कर लेते थे ...........इसका बस एक ही जवाब है .......तिनके तिनके की सम्हाल ....उसका सदुपयोग और संरक्षण ........अब एक उदाहरण लीजिये .........आपके घर में नई कुर्सी आयी ...वो फोल्डिंग वाली ....lawn chair कहते हैं जिसे .........अब उसके पैरों में और उसके हत्थे पर एक polythene लिपटा होता है ....वो polythene कितने दिन चलेगा ......तो मेरे एक दोस्त बोले ..अरे उसे तो हम नोच के पहले दिन ही फेंक देंगे फिर कुर्सी घर में लायेंगे ..............एक दूसरे दोस्त बोले ...चलो हो सकता है दो चार दिन चल जाए ..........पर भैया बंगाल में कुर्सी पर लिपटा वो polythene 25 साल चलेगा ..........इसका मतलब कुर्सी भी तो 25 साल ही चलेगी .........इतना सम्हाल के रखते है बंगाली अपनी हर चीज़ को ...........और बंगाल ने इसे एक संस्कृति के रूप में अपनाया है ............शुरू में मैं इसके लिए उनका मज़ाक उड़ाया करता था ..........आज मैं कायल हूँ उनके इस गुण का .......धरती माँ पेट तो सबका भर सकती है ...पर सबकी विलासिता पूरी करने का सामर्थ्य नहीं है उसमें .....पश्चिमी जगत भोग विलास की पराकाष्ठा में डूब कर संसाधनों का अंधा धुंध दोहन कर रहा है ,,,,बंगाल ने चिर काल से मितव्ययिता का पालन किया है .........
मेरे एक मित्र है ...पंजाबी है ...कलकत्ते में व्यापार करते हैं ...शौक़ीन आदमी हैं ...वो एक किस्सा सुनाने लगे ..........किसी ऑफिस में कुछ लोगों को 2000 रु का bonus दे दो ........तो वो लोग क्या करेंगे ........सो UP बिहार वाले की बीवी तो अपनी 6 साल की बेटी की शादी( जो अभी 10 साल बाद होनी है ) के लिए कोई गहना बनवा लेगी या 10 साड़ियाँ खरीद के रख देगी ...........पंजाबी पट्ठा arrow की दो शर्ट खरीद लेगा ............पर अपने बंगाली बाबू सीधे स्टेशन जायेंगे और कालका मेल से शिमला की दो टिकट बुक करायेंगे ....एक झोले में दो जोड़ी कपडा ...पानी की एक बोतल और एक बोरा मूढ़ी ....(चावल की जो लाइ होती है....puffed rice )...और चल पड़े घूमने .........इस धरती पे अगर घूमने का कोई सबसे ज्यादा शौक़ीन प्राणी है वो अपने ( नीरज जाट जी के बाद ) बंगाली बाबू ही होते हैं ..........tourism बंगालियों की नस नस में हैं ...........वो अलग बात है की टूरिस्ट प्लेस वाले सब दुकान दार इन्हें गरियाते हैं .........भला ऐसा क्यों .......इसका भी एक किस्सा है .........हम दोनों मियां बीवी मसूरी गए हुए थे .......निपट off season था ...खाली पड़ी थी मसूरी .........सो एक दुकानदार से यूँ ही गप्पें मारने लगे ....वो बताने लगा की बस कुछ दिनों में बंगाली season शुरू हो जाएगा .......वो क्या .....दुर्गा पूजा पे बंगाली घूमने निकल पड़ेगा ....हमने कहा की चलो आपके लिए तो अच्छा ही है ...वो बोला अरे क्या ख़ाक अच्छा है ...सारा दिन भीड़ भाड़ रहेगी .........चिल्ल पों मची रहेगी ......बिक्री बट्टा एक पैसे का नहीं होगा .........वो क्यों भैया .,......अरे भैया .......बंगाली एक धेला भी खर्च नहीं करता ........जी हाँ ....बंगाली बहुत सस्ते में टूर निपटा देता है .........हर टूरिस्ट प्लेस पर बंगालियों के स्पेशल होटल होते हैं जहाँ आज भी 50 -60 रु में रूम मिलते हैं .........और 10 -20 रु में भर पेट भोजन ...बाकी नाश्ते के लिए एक बोरा लाइ ले के चलते हैं ...........सारा दिन में एक आध कप चाय पी तो पी नहीं वो भी टाल गए ( नीरज जाट जी आप उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं )...........पर घूमने जायेंगे साल में 4 -6 बार .........बंगाल का अदना सा आदमी भी ....जो 1000 की नौकरी करता है साल में एक बार घूम आता है .........सो वो दुकान दार बताने लगा ...सबसे अच्छा टूरिस्ट गुजराती ..और सबसे घटिया ...बंगाली ............शहर भर के बंगाली जितनी बिक्री करायेंगे ....उस से ज्यादा एक गुजरातन करा देगी .......तो मैंने उस से डरते डरते पूछा ..और ये अपने UP बिहार वाले ......वो बोला , इनका कोई चक्कर नहीं ....ये घूमने आते ही नहीं ...... साल में एक बार खिचड़ी पे गंगा नहा आये ...हो गया tourism ........सो मैंने अपनी बीवी को समझाता हूँ .........देखो बंगालियों से कुछ सीखो ....ये क्या फ़ालतू की शौपिंग ....वो भी टूरिस्ट प्लेस पर .........1 के 4 रु वो भी घटिया सामान के ........घूमो फिरो खाओ पियो ...मस्त रहो ..........नो शौपिंग .......
कलकत्ते की एक गली में एक छोटी सी दर्जी की दुकान पर मैं चला गया किसी काम से ...अँधेरा हो चुका था , बत्ती गुल थी ...और श्रीमान जी torch जला के कुछ पढ़ रहे थे ....एक दम तन्मय भाव से ...मेरी उपस्थिति का कोई अहसास नहीं था उन्हें ........मुझे भी कौतूहल हुआ ..ऐसा क्या है है भाई ....देखा तो मोटी सी एक किताब थी...... बांगला में ......मैंने पूछा क्या है दादा .........उपन्यास है ....किसका ...कौन सा ......पता लगा की शरत चन्द्र का समग्र था ...........साहित्य पढने के बेहद शौक़ीन होते हैं बंगाली .........इश्क है उन्हें शरत ,बंकिम ,टैगोर,विभूति भूषण ,और तारा शंकर बंदोपाध्याय,माइकल मधुसूदन दत्त और नजरुल इस्लाम से .............उनके घरों में अच्छी खासी library मिल जायेगी आपको ........और किताबों की देखभाल .....वाह क्या बात ........किताबों की जो इज्ज़त बंगाली करते हैं कोई नहीं करता ....किसी बंगाली की कोई किताब आपको जीर्ण शीर्ण हालत में नहीं मिलेगी ...और क्या मजाल की कोई किताब गुम हो जाए ...या वो आपको समय से ना लौटाएं ..........जान बसती है बंगालियों की .....किताबों में .........एक बहुत ही घटिया और गंदे आदमी और घटिया लेखक ( खुशवंत सिंह ) ने कहा है कि किसी शहर का बौद्धिक स्तर अगर जानना है तो उस शहर कि book shops से पता चल जाता है .........कलकती पे ये बात बखूबी बैठती है ...वैसे इस पैमाने पर तो मैं लखनऊ को कलकत्ते से भी ज्यादा नंबर दूंगा ........कलकत्ता बुद्धिजीवियों का शहर है......... जैसे मैं कई बार मज़ाक में कहता हूँ कि हमारे पंजाब में लुधिआना और जालंधर बैलों के शहर हैं .......कलकत्ते और लखनऊ कि हर तीसरी दुकान किताब की होती है और पंजाब की हर तीसरी दुकान दारु की होती है ...........ठेका अंग्रेजी अते देस्सी .......पढ़े लिखे लोग बताते है कि देश में कुछ राजधानियां हैं और कुछ संस्कार धानियां है .........कौन सी हैं संस्कार धानियां ????? वो हैं बनारस .....पूना .......कलकत्ता ....जबलपुर ........अब जबलपुर और पूना के बारे में तो मैं ज्यादा नहीं जानता पर बनारस और कलकत्ता ...वाह ...सचमुच ...संस्कार धानियाँ हैं देश की ......आज भी जो साहित्य और ललित कलाओं का सृजन यहाँ होता है ........कलाओं के पनपने के लिए जो माहौल यहाँ मिलता है ...यहाँ की मिटटी से ...यहाँ की हवाओं से ...कला की खुशबू आती है ....कलकत्ते में आज भी कमाल का साहित्य लिखा और पढ़ा जाता है .....आज भी बेहतरीन फिल्में बनती हैं .....नृत्य, संगीत ( रबिन्द्र संगीत ,भारतीय शाश्त्रीय संगीत ,बऊल ) ,fine arts .....ड्रामा ...सबका केंद्र है कलकत्ता ......
पर बंगालियों की फ़ुटबाल के प्रति दीवानगी की अगर चर्चा न की तो उनका चरित्र चित्रण अधूरा रह जाएगा .........पर ये अगले अंक में तब तक इंतज़ार कीजिये ..........

Wednesday, July 20, 2011

कलकत्ते से इश्क की दास्ताँ .....भाग 1

घुमंतू लोगों को अक्सर कुछ जगहों से इश्क हो जाता है .....अब किसी शहर से या किसी जगह से इश्क होने के सौ कारण हो सकते है .......कुछ लोगों को चंडीगढ़ बहुत अच्छा लगता है ..........मैं वहां बचपन में रहा भी हूँ ...अभी भी अक्सर आना जाना होता है ...........पर उस शहर ने आज तक मुझे कभी appeal नहीं किया ......अजीब बेजान सा शहर है ......अजनबी सा.........कोई आत्मा नहीं है उसकी ......मुझे जिन शहरों ने सबसे ज्यादा आकृष्ट किया उनमें एक है कलकत्ता .....हो गया होगा कोलकाता ....पर अपने लिए तो अब भी कलकत्ता ही है ..........अब क्यों अच्छा लगता है ...ये तो बताना बड़ा मुश्किल है भैया ........ये इश्क की बात है ......सुनते हैं की लैला कोई बहुत सुन्दर नहीं थी .....काली सी थी ...भोंडी सी ...पर मियां मजनू तो फ़िदा हो गए ना .....उनके लिए तो वही हूर परी थी ......सो अब हमें कलकत्ता क्यों अच्छा लगा बताना बड़ा मुश्किल है .....एक मित्र हैं हमारे ....एक दिन उनसे बस यूँ ही चर्चा होने लगी तो उन्होंने नाक भौं चढ़ा दी कलकत्ते के नाम पर ....हाय हाय कितना गन्दा शहर है ......अब भैया जैसा भी हो हमें तो इश्क है कलकत्ते से .......क्यों ???? अब ये बताना तो बड़ा मुश्किल है फिर भी .......100 कारण गिना सकता हूँ .......कोई भी शहर ,जाना तो अपने लोगों से ही जाता है .....सडकें , इमारतें ,बाज़ार ,ये सब तो बाद में आती हैं ....पहले तो लोग होते हैं किसी शहर में ......सो बड़ा जीवंत शहर है .......उसकी एक आत्मा है ........एक रूह है कलकत्ते की .....जाओ तो लगता है बात करती है आपसे .......शहर के बीचों बीच बहती गंगा .........पानी से लबा लब भरी हुई ...साफ़ सुथरी सी ........और उसके बीच चलते वो steamer ......स्थानीय भाषा में लौंच कहते हैं उन्हें ......कहीं भी जाना हो आपको ....एक आध चक्कर steamer में लग ही जाता है .......किराया मात्र दो रूपया .......कलकत्ते के लोग ...निजी वाहन नहीं रखते .......मेरे एक मित्र वहां एक बिल्डिंग में रहते हैं ....24 फ्लैट हैं उसमे ......सब या तो बैंक कर्मी हैं या मारवाड़ी businessman .....अब दिल्ली की ऐसी किसी बिल्डिंग में जहाँ 24 फ्लैट हों तो वहां कम से कम 25 -50 गाड़ियाँ या टू व्हीलर होंगे ,पर वहां कलकत्ते में पूरी बिल्डिंग में एक भी गाडी या स्कूटर नहीं .......सब लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट ( steamer , बस सेवा और मेट्रो ) से चलते हैं और संभव हो तो पैदल ......बंगाल को भद्र लोक कहा जाता है और बंगालियों को भद्र जन ....सो भद्र जन जब शाम को काम से घर लौटते हैं तो ...सबसे पहले मछली ......फिर घर में सजाने के लिए आधा दर्ज़न रजनी गंधा , पत्नी के बालों में लगाने के लिए गजरा ....गमकता हुआ ...चमेली और रात की रानी का ...........एक कुल्हड़ मिष्टी दोई ...यानी मीठी दही का .......६ पीस सोंदेश ......(वाह याद कर के ही मुह में पानी आ गया ).........बंगाली बाबू काम से वापस आये तो भद्र महिला दरवाज़े पर आ कर स्वागत करती है ....सजी धजी ....मुस्कुराती .......आगे बढ़ कर हाथ से ब्रीफ केस और लिफाफा थाम लेगी ...बाबू सीधे बाथ रूम में .....फ्रेश हो कर बाहर निकले तो लक दक कलफ लगे धोती कुरते में ...........तब तक महिला ने रजनी गंधा फूलदान में लगा दी ........गजरा अपने बालों में ..........चाय तैयार है ....3 -4 किस्म की घर में बनी नमकीन साथ में ....पूरा घर साथ बैठ कर चाय पीता है ....और फिर भद्र जन ने उठा लिया हारमोनियम ........माँ गाने लगी ...बेटी नृत्य कर रही है .......ये एक पारंपरिक बंगाली परिवार का दृश्य है ....हालांकि समय बदल गया है फिर भी बंगालियों ने अपनी पुरातन संस्कृति को बचा कर रखा है .......इतिहास गवाह है की कला साहित्य और संस्कृति का जितना बड़ा केंद्र बंगाल रहा उतना कोई नहीं रहा .....संगीत और नृत्य के बाद बच्चे पढने बैठ गए और साथ ही बाबू ने भी अपनी किताब उठा ली......बंगाली पढने के बेहद शौक़ीन होते हैं .........महिला रसोई में ...और बंगाली रसोई ....वाह .....क्या बात .......इस धरती पे अगर कोई सबसे मित व्ययी प्राणी है तो वो भद्र जन ........आपको ये जान कर ताज्जुब होगा की आज भी लोग कलकत्ते में 1500 से ले कर 3000 की नौकरी करते हैं और इज्ज़त से जीते हैं .......बंगालियों ने बेहद कम खर्च में शान से जीने का सिस्टम बनाया है ........तो बात हो रही थी बंगाली रसोई की ...सो एक सामान्य से बंगाली परिवार की थाली में भी मछली , 5 -7 किस्म की सब्जी ,दाल ,सलाद ,आचार (3 -4 किस्म का ) ,चटनी ,पापड और न जाने क्या क्या होगा .......सब कुछ बहुत थोडा सा पर बेहद स्वादिष्ट ........जैसे ...एक आलू की भुजिया ,एक परवल को एक दम पतला पतला काट के उसकी भुजिया ,दो तीन किस्म की पत्ते वाली सब्जी ...आप किसी बंगालिन को सब्जी खरीदते देख लें तो हैरत में पड़ जाएँ ....उसकी शौपिंग लिस्ट कुछ ऐसी हो सकती है .......2 आलू ,एक परवल, 100 ग्राम मटर ,एक बैंगन ,एक प्याज ,और इसी तरह एक एक पीस कुछ अन्य हरी सब्जियां .......टोटल बिल ...यही कोई 5 -7 रूपये ....जी हाँ आज की इस महंगाई के ज़माने में भी .......बंगालियों के बारे में एक कहावत है की कुछ भी अगर हरा है और खाने लायक है तो बंगालन उसकी बेहतरीन सब्जी बना सकती है ....इसलिए बंगाल में आज भी सैकड़ों किस्म के हरे पत्तों और फूलों की सब्जी बनाई जाती है ......बंगालिन मटर के छिलके भी नहीं फेंकती ....उसे भी छील कर उनकी सब्जी बना देती है ........यहाँ ये महत्व पूर्ण नहीं है की बंगालिन की रसोई में क्या कुछ है ..........महत्व इस बात का है की उसने कितने प्यार से भोजन बनाया है ..........हमारे एक दोस्त थे बंगाली ...वो कहा करते थे की भोजन में कुछ हो चाहे न हो ...प्रेम भरपूर होना चाहिए ......बंगाल की थाली प्रेम से परिपूर्ण होती है .........और बंगाली मिठाई ...वाह क्या बात है .....मुझे लगता है की माँ अन्नपूर्णा की विशेष कृपा रही है बंगाल पर .....वहां का सन्देश ( सोंदेश )...और रसगुल्ला ( रोशोगुला ) भाई वाह ...क्या बात है .......शायद धरती पे सबसे स्वादिष्ट अगर कुछ है तो ये दोनों ......और रसगुल्ले में भी अलग अलग किस्में ...एक होता है खजूर के गुड का रसगुल्ला .........अब इसपे मुझे एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आ रहा है .....हम दोनों कलकत्ते गए थे, वहां 8 -10 दिन रहे ...सो हमारे एक भाई ...जिनसे हमारा विशेष अनुराग था ..वो रोज़ शाम को सन्देश ...रसगुल्ले और मीठी दही ले के आते थे ...वो भी कलकत्ते की नामी मशहूर दुकानों से .........और सारा दिन हम लोग घर से बाहर रहते सो खाते पीते ही थे ...अब हमारी श्रीमती जी मीठे की विशेष प्रेमी हैं सो एक दिन उन्होंने बस हद ही कर दी .........सुबह 8 बजे हम लोग घर से निकले और उन्होंने बाहर निकलते ही बोहनी कर दी ...और फिर दिन भर में 5 -7 बार अलग अलग दुकानों पर रसगुल्ले खाती रही ....मैंने बिलकुल नहीं टोका .........दिन बीत गया ...शाम को घर पे भी कुल्हड़ आया हुआ था रसगुल्लों का ...सो उन्होंने वो भी निपटा दिया ..........और जब सारे रसगुल्ले ख़तम हो गए ....और उन्होंने वो चाशनी भी पीने का मूड बनाया तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया ........प्रिये ....बस करो सुबह से लगभग 80 रसगुल्ले खा चुकी हो .......... अब चाशनी पे तो रहम करो ....और ये बस फट पड़ी ....देखो कितना पापी आदमी है .........सुबह से मेरे रसगुल्ले गिन रहा है ..........अरे मैं कोई रोज़ रोज़ थोड़े ही कलकत्ते आउंगी ........अब कहाँ नसीब होगा जीवन में कलकत्ते का रसगुल्ला ...........वाकई बड़े नसीब वालों को नसीब होती है कलकत्ते की मिठाई .......
कलकत्ते की चाय का ज़िक्र न हुआ तो इश्क की ये दास्ताँ अधूरी रह जायेगी .............वैसे मैं ये मानता हूँ की हिन्दुस्तान में सबसे घटिया चाय हरियाणा और पंजाब में मिलती है और सबसे बेहतरीन चाय कलकत्ता ,बनारस ,दक्षिण भारत ,राजस्थान और बम्बई ( भाड़ में जाएँ राज ठाकरे और शिव सेना ) में मिलती है ........पर कलकत्ते की गलियों में छोटी छोटी चाय की दुकानों पर जो चाय बनती है उसका मज़ा ही कुछ और है ........मैं दावे से कहता हूँ की चाय न पीने वाला आदमी भी अगर वहां चाय बनती देख ले तो उसका भी दिल मचल उठेगा एक प्याले के लिए .......पहले एक बड़े से बर्तन में चाय को घंटों उबालते रहते हैं फिर एक लम्बी ...गहरी सी चाय छलनी में अलग से चाय पत्ती डाल के उसे अलग अलग गिलास में छानते हैं .....फिर एक तरफ अलग से खौलते दूध के बस दो चम्मच ,फिर आपके स्वाद के चीनी ...और लीजिये साहब बेहतरीन कड़क चाय ...........इतनी स्वादिष्ट की एक कप से कुछ न बने ...दूसरा भी हो जाए तो कुछ तसल्ली हो ..........कलकत्ते से इश्क की ये दास्ताँ आगे भी जारी रहेगी ..............

Sunday, July 10, 2011

वो naxalite भी हो सकता था

आज सुबह मेरे एक सहयोगी एक लड़के को ले कर मेरे कमरे पे आ गए ......बोले नया लड़का है ....आजीवन सेवाव्रती बनने के लिए आया है ....आज दिन में इसका interview है ...तब तक आपके साथ रह लेगा ....उसे मेरे पास छोड़ के चले गए ............अब उसका interview था दिन में 2 बजे ....वहां तो बाद में देता ...पहले मैंने लेना शुरू कर दिया ...और फिर एक बार शुरू जो हुआ तो पूरे तीन घंटे चला ........और जो कहानी निकल के आयी वो आपके सामने हुबहू प्रस्तुत है .........कमल कान्त ...उम्र 18 वर्ष .....बारहवीं पास ........science से .....लगभग 45 % अंक ले कर .......उड़ीसा का रहने वाला है ......JHARSUGUDA स्टेशन पे उतर के लगभग 80 किलोमीटर दूर ..........एक गाँव है सेंदरी टांगर...झारसुगुडा से उसके गाँव पहुँचने के लिए तीन बसें बदलनी पड़ती हैं ....यहाँ पतंजलि योग पीठ में आजीवन राष्ट्र सेवा की इच्छा से आया है ......जाति का हरिजन ( मोची ) है ......उसके गाँव में लगभग 100 घर हैं ......लगभग 85 घर आदिवासी , 15 घर हरिजन और 4 -5 घर अन्य जातियों के हैं ......इनके गाँव से 2 किलोमीटर दूर मेन रोड पर एक काफी बड़ा गाँव है ....पामरा........ब्राह्मणों का गाँव है...अन्य जातियां भी रहती हैं .......पामरा में बिजली है पर इनके गाँव में नहीं है ....एक स्कूल है सरकारी ...1 से 5 क्लास तक ....पर मास्टर सिर्फ 2 हैं ........गाँव में 5 हैण्ड पम्प हैं सरकारी ....दो कुए थे जो अब सूख चुके हैं .......गर्मियों में वो हैण्ड पम्प फेल हो जाते हैं .........फिर उन दिनों पानी की बड़ी गंभीर समस्या पैदा हो जाती है .......गाँव के लोग तालाब के किनारे छोटे छोटे गड्ढे खोदते हैं उनमे जो थोडा सा पानी आता है उसे छान के ...उबाल के पीते हैं ...फिर जब वह पानी भी सूख जाता है तो गाँव की औरतें 2 किलो मीटर दूर ,पामरा से handpipe से पानी भर के लाती हैं ...वहां भी लम्बी लम्बी लाइन लगती है ...तो उस गाँव के लोग भी इन्हें दुत्कारने लगते हैं ...इसे ले कर रोज़ झगडे होते हैं ...........अब पीने के पानी का इतना झंझट है तो नहाना फिर दूर की बात है ...अब जिसे बहुत शौक हो वो 5 किलोमीटर दूर एक नदी पर नहा आता है ..पर भैया गर्मियों में जब तापमान 45 डिग्री हो जाता है तो ये शौक ज़्यादातर लोग नहीं पाल पाते.
खेती पूरी भगवान् भरोसे है ....बीस साल पहले एक छोटी नहर खुदी थी जिसमे आज तक पानी नहीं आया ......अपने पीने के लिए पानी नहीं तो गाय भैंस को कहाँ से पिलायें सो जानवरों को 6 महीना पालते है और 6 महीना छुट्टा छोड़ देते हैं .........अनाज में चावल हो जाता है ...थोडा बहुत गेहूं ...और मिर्च .......सरकार BPL कार्ड पे चावल देती है ...दाल हम खरीद लेते हैं ....मुख्य भोजन दाल भात ही है ...सब्जी अगर कभी मिल जाए तो मज़ा आ जाता है .........वैसे मिर्च की चटनी से भी चावल खा लेते हैं .. नमक के साथ पानी मिला के भी खाते ही हैं सब लोग ....पेट तो भर ही जाता है ...पर............(बहुत सी बातें बिना कहे ही कही जाती हैं) गाँव के हर घर में चावल की कच्ची शराब यानि हंडिया ...और महुआ यानी दारु उतारते हैं ........सब लोग पीते हैं ....सब लोग ......यहाँ तक की सातवीं क्लास का बच्चा भी पीता है ...तम्बाखू और गुटके का भी खूब चलन है .........गाँव में बिजली नहीं है फिर भी लोग battery रखते हैं जिसे 10 रु में बगल के गाँव पामरा से चार्ज करा लेते हैं ...फोन भी वहीं चार्ज करते हैं ....फोन तकरीबन सबके पास है ....टीवी भी........ पर उसपे सिर्फ CD चला के फिल्म देखते हैं .......हिदी फिल्में ही देखते हैं ज़्यादातर ...स्कूल में हिंदी आठवीं क्लास से शुरू होती है .......फिर भी सब लोग काम चलाऊ हिंदी तो जानते ही हैं ...वो कैसे भैया ????? फिल्म देख के .......कोटिशः धन्यवाद बॉलीवुड को .......हिंदी की जितनी सेवा और प्रचार प्रसार इस संस्था ने किया उतना किसी ने नहीं किया ...........गाँव की सड़क आज भी मिटटी की है जो बरसात में कीचड में बदल जाती है ..........सबसे नज़दीक काम चलाऊ डाक्टर 17 किलोमीटर दूर है और कायदे का अस्पताल 47 किलोमीटर दूर ...................सबसे नज़दीक हाई स्कूल 17 किलोमीटर ...कॉलेज 30 किलोमीटर दूर है .......गाँव के 4 -5 लड़के हाई स्कूल पास हैं ...graduate एक भी नहीं है ........लडकिय सिर्फ 5th तक ही पढ़ पाती हैं .
बगल के गाँव के ऊंची जाती के लोग हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते ....छूआ छूत मानते है ....उनके घर में प्रवेश वर्जित है ......बाहर बैठना पड़ता है ...पहले तो जमीन पर बैठा देते थे ...अब कुर्सी तो देते है ...पर सम्मान नहीं .....हमारे लिए अलग गिलास रखते हैं ....शादी विवाह में बुलाते तो हैं पर दूर बैठाते हैं ....... चमारों और आदिवासियों के लिए अलग लाइन लगती है ............सबसे अलग बैठा कर खिलाते हैं .........मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता ....इसलिए मैं ऐसे किसी कार्य क्रम में जाना नहीं चाहता .........मैं science से 12th पास हूँ इसलिए कुछ दिन गाँव के स्कूल में मैंने पढ़ाया भी है ...पामरा में कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढाता हूँ , फिर भी, मेरे साथ भी अस्पृश्यता का व्यवहार होता ही है .......हमारे गाँव से दो किलोमीटर दूर जंगल शुरू हो जाता है ...फिर वहां से आगे थोड़ी दूर एक पहाड़ी है ...उसके उस पार दो गाँव हैं .....एकमा और बोम्देरा .......वहां माओ वादी आते है ...कहते कुछ नहीं हैं ...बस लेक्चर देते हैं ...फिर भजन गाते हैं ........वहां अब 24 घंटा पुलिस आती है ....CRP भी है ......पहले उन गाँवों तक जाने के लिए रास्ता नहीं था ...अब पुलिस और CRP की गाडी जाने के लिए रास्ता बनाया है सरकार ने ...............आज़ादी के 65 साल बाद भी उस गाँव में सरकार पीने के पानी का ....बिजली का ........सड़क का ...स्वास्थय सेवाओं का ...शिक्षा का....या भरपेट भोजन का इंतज़ाम नहीं कर पायी .....पर crpf की गाडी जाने के लिए रास्ता बना दिया है सरकार ने ......crpf के कैंप के लिए रोज़ सरकारी tanker पानी ले कर जाता है .........
फिर क्या हुआ ........मैं बस सवाल पूछे जा रहा था और वो भोला भाला सा.... मासूम सा बच्चा मेरे सवालों के जवाब दिए जा रहा था ...........मैंने पूछा ...तुम्हे यहाँ आने की प्रेरणा कैसे मिली ....पातंजलि योग पीठ की योग कक्षा चलती है पामरा में ...वहां योग सिखाते हैं ....वहां के योग शिक्षक जीवन दानी हैं ...देश की सेवा में लगे हैं .......उनसे प्रेरणा ले कर और उन्ही से address वगैरह ले कर वो यहाँ आया था .....कुछ देर बाद वो लड़का चला गया ......मैं सोचने लगा ..........आज मेरे सामने जो लड़का बैठ था ,राष्ट्र सेवा को तत्पर .....बस बाल बाल बच गया ........उसका भाग्य अच्छा था जो आज वो यहाँ पतंजलि योग पीठ हरिद्वार में बैठा था ...वरना ये भी हो सकता था की वो किसी naxalite कैंप में बैठा बन्दूक चलाना सीख रहा होता ......

Friday, July 8, 2011

जीवन उत्सव है ये ...चलते रहना चाहिए ........

                             एक बार मैं और पिता जी ...हम लोग मोटर साईकिल से कहीं जा रहे थे .......अचानक एक चिर परिचित सी गंध आयी उन्हें ...वो अनायास ही बोल पड़े ....अरे यार बचपन याद आ गया ........दरअसल हम लोग एक तालाब के पास से गुज़र रहे थे ....बरसात का मौसम था और तालाब में सनई सड़ रही थी और उसकी  महक ....दुर्गन्ध तो मैं नहीं  कहूँगा .......चारो और फ़ैल रही थी ......पहले पूर्वांचल में सनई यानी  पटसन ( शायद ) की खेती होती थी ...यह एक सरकंडे  नुमा घास होती है लम्बी लम्बी ....पक जाने पर इसे काट के तालाब में डाल देते थे ....कुछ दिनों में सड़ने लगती थी .....वही गंध चारों और फैलती थी ............फिर इसे निकाल के इसका छिलका उतर लेते थे .........फिर साल भर घर के बुजुर्ग उससे रस्सी बनाते थे और उसी से चारपाइयाँ ....जानवरों के पगहे ,कुँए की डोर और कृषि में काम आने वाली बेहद मज़बूत रस्सी बनती थी .........सो उस दिन भी उस तालाब से वही चिरपरिचित  गंध आ रही थी .....हिन्दुस्तान बड़ी तेज़ी सा बदला है इधर ....कहाँ की सनई  और कौन सी रस्सी ...अब सब ready made है ......ऐसी ही सोंधी  सोंधी सी खुशबु आया करती थी कभी गाँव से जब भाड़ झोंक के दाना भूनती थी गाँव की भड भूजन .....हमारे यहाँ उसे भरसाय  बोलते हैं ......और एक जात है गोंड़.... जिसका पैत्रिक पेशा ही दाना भूनना होता था ........शाम को जब भरसाय से धुआं उठाना शुरू होता तो चल पड़ती थी घर की माताएं दाने ले कर ....चना ...मक्की ...लाइ ......और ना जाने क्या क्या .....फिर वहां घंटों गप्प सड़ाका भी होता ...और देर शाम दाने भुनवा के लौटती ...........सब बदल गया गाँव में भी .....पर हाँ एक चीज़ है जो नहीं बदली ....और न कभी बदलेगी ......ऐसा मुझे विश्वास है ........गाँव में जब कडाके की गर्मी पड़ रही होती है ....जून में ....जब ताल तलैया  सब सूखने लगते हैं तो एक गज़ब का उत्सव होता है पूर्वांचल में ........इस पे आज तक किसी discovery   या NGC ने documentry नहीं बनाई ,पर है बड़ा मजेदार वो उत्सव ..... आज मैं आपको उसका किस्सा सुना रहा हूँ ...........हाँ तो भैया जब गाँव के किसी सार्वजनिक ताल में पानी जब नाम मात्र का रह जाता है तो एक दिन गाँव के सब लड़के औए अधेड़ और कुछ शौक़ीन मिजाज़ बूढ़े .....जिनका बचपन अभी तक जिंदा है ...वो सब जुट जाते हैं तालाब के पास मछली मारने .......तो फिर बाकायदा प्लानिंग बना के उस तालाब का बचा खुचा पानी उबह देते हैं .....यानी खाली कर देते हैं ....अब लिख देना तो बहुत आसान है पर उस पानी को उबह देना अपने आप में एक बड़ा काम है ....पुराने जमाने  में तो सब बच्चे लग जाते थे और हाथों से ही या फिर जो कुछ मिला ...थाली ...परई  .....कुछ भी उसी से पानी उलीचते थे ...अब वो पानी जाता कहाँ होगा ....सो तालाब के सूखे हिस्से में एक मोटी सी मेढ़ बना के उसके उस पार पानी उबहते थे ....इसमें सब लपटते थे तो 4 -6 घंटा लग जाता था ...कई बार तो पूरा दिन भी ...अब तो लोगों के पास डीज़ल इंजन हो गए हैं सो अब ये काम मात्र एक दो घंटे में भी हो जाता है ........फिर शुरू होता है मछ्ले पकड़ने का सिलसिला ...अब मछलिय भी दो किस्म की होती हैं ...एक जो पानी में ऊपर रहती हैं वो तो सब बड़ी आसानी से पकड़ ली जाती हैं ....पानी कम होना शुरू हुआ तो शिकार शुरू .........पर असली लड़ाई शुरू होती है  उन मछलियों से जो कीचड में ....वो भी गहरे कीचड में रहती है ......उन्हें पकड़ना हंसी खेल नहीं ...सो जो एकदम एक्सपर्ट लड़के होते हैं वही पकड़ पाते हैं उसमें भी एक होती है सिंघी .......गहरे कीचड में रहती है ...और बड़ा खतरनाक डंक होता है उसका .......एकदम बिच्छू जैसा ........इसलिए उसे experts ही पकड़ पाते हैं ....फिर भी 2 -4 को तो वो डंक मार ही जाती हैं ..........फिर जो रोआ राट मचती है थोड़ी देर के लिए ......  फिर सब ठीक हो जाता है और जल्दी ही सेना जुट जाती है काम में ...एक और होती है मांगुर ...वो भी बड़ी कीमती मछली है ...उसकी पीठ में कांटे  होते हैं ...बड़े नुकीले .......उसे भी सब नहीं पकड़ पाते .........अब इस उत्सव के जो रोमांच है वो है पूरे गाँव के लोगों का इसमें participation .....छोटे बड़े सब ,उंच नीच, भेद भाव भूल के लग जाते है .....कड़ी धूप में सारा दिन, कीचड में लथ पथ ........और फिर टीम भावना ...वाह ...उत्साह ....गज़ब का .......आज कोई काम चोरी नहीं करता ........और शोर शराबा ....हो हल्ला........ हा हा  ही ही....... अररररे निकल गयी ....अरे तू हट ....मुझे पकड़ने दे ........अरे सिंघी है....हट हट ....अबे हट ......मार देगी ना तो रोता फिरेगा ........और तब तक किसी को मार दिया ...और फिर वो पिल्ले की तरह चाऊं  चाऊं  रोता फिरा थोड़ी देर ...... कुछ देर तालाब से बाहर निकल के बैठा ...फिर सब भूल भाल के फिर कूद पड़ा .........मछली पकड़ी ...हाथ से फिसल गयी ....अररररे ...एक किलो की रोहू थी ....कोई बात नहीं कहाँ जायेगी ...और तभी एक मिनट बाद ही किसी और ने पकड़ ली ............पर एक बात है जनाब , पूरी की पूरी मछली एक जगह इकट्ठी होगी ........फिर शाम को पूरी इमानदारी से बराबर बंटेगी ..........और फिर वहां कोई भेद भाव नहीं .....फिर क्या तो ठाकुर साहब ..और क्या यादव जी और क्या मुसहर ........इस खेल में सब बराबर हैं ........अब हर आदमी ने सहयोग दिया है भाई ...किसी ने कुछ किसी ने कुछ .....मेरे जैसे अगर कुछ न भी करें तो तालाब के किनारे बैठे तो रहे .....सबके लिए पीने का पानी तो लाये बाल्टी भर के ...सो हिस्सा बराबर लगेगा भैया ......अब शाम को सारी मछली एक जगह इकट्ठी है ...फिर मछली का वर्गीकरण ......अब पचास किस्म की मछली होती है एक natural तालाब में ...सो अब  अलग अलग ढेर लगेगा सबका .....अब भैया सिंघी और मांगुर तो सबको चाहिए .........क्योंकि वही सबसे tasty होती है ......सो पूरी इमानदारी से बंटती है ....अरे भाई इसका परिवार बड़ा है ...इसको ज्यादा दे दो ......अरे कोई बात नहीं मेरी कम कर दो भैया हमारे यहाँ सिर्फ चार लोग हैं खाने वाले ..........अरे भाई उनके घर से कोई नहीं आया आज ....लड़के बाहर गए थे ...फिर भी हिस्सा लगेगा भैया ..............अरे इनको सिंघी न मिली ...कोई बात नहीं मांगुर दे दो .....फिर नंबर आता है पढिना  का .........उसकी भी बहुत डिमांड रहती है .......फिर कवई ...गिरई  ....रोहू ...भाकुर .....नैन .....टेंगना .....और ना जाने क्या क्या ...सबके अलग अलग शौक़ीन हैं ..........अरे ये टेंगना है ......इसका जूस बहुत अच्छा बनता है ....अब एक होती है जिसे कहते हैं सिधरी .........ये एकदम छोटी छोटी होती है ........इतनी छोटी की यूँ समझ लीजिये की पाँव भर में  200 पीस ...पर भैया इसके भी शौक़ीन होते हैं लोग ...इसे अच्छी तरह फर्श पे रगड़ के साफ़ कर के तवे पर भून के खाते हैं ....तो भैया शाम ढलते ढलते शिकार ख़तम हुआ ....पूरे सेना शानदार विजय प्राप्त कर के लौट रही है ....काश मेरे पास इस शिकार की फोटो होती ....कभी मौका मिला तो ज़रूर खीचूँगा .......सब लोग  कीचड से सने ऊपर गर्दन  तक ......कमर में सिर्फ एक कपडा लपेट रखा है ...नंगे बदन ........घर पहुंचे ........तब तक घर पे बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है .........प्याज कट रही है ....लहसुन अदरक छिल रहा है ......सरसों पीसी जा रही है सिल पर ........यहाँ भी कमान लड़के ही सम्हालते हैं ..........देर रात तक बनती है .....फिर मिल बाँट कर खाते हैं सब . अगर किसी के घर में नहीं बनती तो वो अपना हिस्सा ले के किसी दोस्त मित्र के यहाँ पहुँच जाता है ............पर ये पुरुषों का उत्सव है ........औरतें ...लड़कियां ????? वो बेचारी कहीं नहीं हैं scene में .....बस रोटी बना देती हैं उस दिन ........ .......वैसे कभी कभी छोटी  लडकियां , 8-10 साल  तक की बच्चियां शामिल  हो जाती  हैं  .......ज़बरदस्ती .......पर हमारे देश में बेचारी औरतों को ऐसे मौज मस्ती के आयोजनों से दूर ही रखा जाता है .......पर आज इस पोस्ट में इस्पे ज्यादा लिखने पर विषयांतर हो जाएगा ( जल्दी ही लिखूंगा इस विषय पर भी ).
                                                    ज़माना बदल गया ......मौज मस्ती जीवन से गायब हो रही है ...बड़ी तेज़ी से ....फिर भी कुछ लोग हैं जो मौका निकाल ही लेते है ..........जीवन उत्सव है ये ...चलते रहना चाहिए ........

Thursday, July 7, 2011

माँ ...वहां तो बड़ा खतरनाक जंगल है

                                    पुरानी बात है  ....एक लड़का था ...बहुत brilliant था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया ....हमेशा 100 % score किया science में ....अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं ...सो उसका भी selection हो गया ....IIT CHENNAI में ........वहां से B Tech किया .....वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया ...वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की .......M Tech वगैरा कुछ किया होगा .....फिर वहां university of california से MBA किया .......अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है ...सुनते हैं की वहां भी हमेशा टॉप ही किया ......वहीं नौकरी करने लगा ...बताया जाता है की 5 बेडरूम घर था उसके पास .........शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत  लड़की से हुई थी ............बताते हैं की ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में .........अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती ........एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में .....पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए..... अमेरिका में settle हो गए ....मोटी तनख्वाह की नौकरी ...बीवी बच्चे ....सुख ही सुख ......इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे ....the end ........
                                               अब एक दोस्त हैं हमारे ...भाई नीरज जाट जी ...एक नंबर के घुमक्कड़ हैं ......घर कम रहते हैं  सफ़र में ज्यादा रहते हैं ......ऐसी ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही .....4 -6 दिन पहाड़ों पर घूमना ,trekking करना उनके लिए आम बात है ...ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर जाते है ....फिर आ के किस्से सुनाते हैं ....ब्लॉग लिखते  हैं ........उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है ......न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना ( सफ़र में )........फिर भी कोई टेंशन नहीं चल पड़े  घूमने ...बैग कंधे पर लाद  के .......मेरी बीवी कहती है अक्सर ...की एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए ....नीरज जाट जैसे ....जो न खुद घर रहता है ...न दूसरों को रहने देता  है ......बहला फुसला के ले जाता है अपने साथ  ..........पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुन के रश्क होता है ....कितना rough n tough है यार ये आदमी ....कितना जीवट है इसमें   .........बड़ी सख्त जान  है 
                                              आइये अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा  आ जाते हैं  .....तो आप उस इंजिनियर लड़के का क्या future देखते हैं लाइफ में  ?????? सब बढ़िया ही दीखता  है ....पर नहीं ........आज से तीन साल पहले उन्होंने वहां अमेरिका में .....सपरिवार आत्महत्या कर ली ........अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली ........what went wrong   ????????? आखिर  ऐसा  क्या हुआ ....गड़बड़  कहाँ  हुई .........ये कदम उठाने से पहले उन्होंने बाकायदा अपनी wife से discuss   किया ...फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा ...और उसमें  बाकायदा justify किया अपने इस कदम को ...और यहाँ तक लिखा की यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन  परिस्थितयों  में ..........उनके इस केस को और उस suicide नोट को california institute of clinical psychology ने study किया है ....what went wrong ......हुआ यूँ था की अमेरिका की आर्थिक मंदी में उनकी नौकरी चली गयी ........बहुत दिन खाली बैठे रहे ...नौकरियां ढूंढते रहे ..........फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए फिर भी जब नौकरी न मिली .....मकान की किश्त जब टूट गयी ...तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी ....कुछ दिन किसी petrol pump पे तेल भरा बताते हैं .........साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली ख़ुशी ख़ुशी .....और वो बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी ...ख़ुशी ख़ुशी .......जी हाँ लिखा है उन्होंने ...की हम सब लोग बहुत खुश हैं ....की अब सब कुछ ठीक हो जायेगा ........सब कष्ट ख़तम हो जायेंगे  ..........इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने .......this man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure .........यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया की असफलता का सामना कैसे किया जाए  ..........
                                               आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं ..........बहुत तेज़  था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया ........ऐसे बहुत से parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते है की बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये ....कोई गलती न हो उस से ....... गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा  पाप कर दिया ...और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं .....हमेशा फर्स्ट आने के लिए .....फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद ,घूमना फिरना ,लड़ाई झगडा ,मार पीट  ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को .....12 th  कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर .वहां से निकले तो MBA .और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी ....अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी  .........य्यय्य्ये बड़े बड़े targets  .........कमबख्त ये दुनिया स्स्सस्साली .........  बड़ी कठोर है ......और ये ज़िदगी ...अलग से इम्तहान लेती है ....आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब  नहीं उसे ........वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता .....ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है ....और सवाल साले ...सब out ऑफ़ syllabus होते हैं .........टेढ़े मेढ़े ...ऊट पटाँग ....और रोज़ इम्तहान लेती है ...कोई डेट sheet नहीं ......
                                          एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे .....दिल्ली में ........ mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहां .......तभी एक लड़की ....रही होगी यही कोई 7 -8 साल की अचानक जोर जोर से रोने लगी  .........हम लोग दौड़े ....क्या हुआ भैया  .....देखा तो वो लड़की गिर गयी थी. वहां ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में वो गीली मिटटी लग  गयी थी .......और थोड़ी उसकी frock में भी ........सो वो जार जार रो रही थी ...खैर हमने उसके हाथ धोये ....और ये बताया की कुछ नहीं हुआ बेटा ...ये देखो.....धुल गयी मिटटी .......खैर साहब थोड़ी देर में उसकी माँ आ गयी  ......high heels पहन के .......और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई......की आप लोग ठीक  से काम  नहीं करते हो ....लापरवाही करते हो ............कैसे गिर गया बच्चा ..........अगर कुछ हो जाता तो  ????????    सचमुच इतना बड़ा हादसा  ...भगवान् न करे  किसी के साथ  हो जीवन में ........ एक और आँखों देखी घटना है मेरी ..........कैसे माँ बाप अपने बच्चों को spoil करते हैं ........हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे ..........बच्चे स्कूल बस से आते थे ...........ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हलकी सी चोट लग गयी  .....यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट .......अब वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा .....बस यूँ समझ लीजे चिंघाड़ चिंघाड़ के .....क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे ............खैर मामूली सी बात थी ......हमने उसे फर्स्ट ऐड दे के बैठा  दिया  .............तभी  भैया ....यही  कोई 10 मिनट  बीते  होंगे  .........उस   बच्चे के माँ बाप पहुँच  गए स्कूल .... और फिर वहां जो रोआ  राट मची ........वो बच्चा जितनी जोर से रोता ...उसकी माँ उस से ज्यादा जोर से चिंघाड़ती .........और उसका बाप जोर जोर से चिल्ला रहा था ....पागलों की तरह .............मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है ....आप लोग अभी तह हॉस्पिटल ले के नहीं गए.......अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है ..........मेरा वो दोस्त जो वहां PTI था उसके साथ हम एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में गए......अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए ...........वहां पर भी उस लड़के का बाप CT Scan ...Plastic surgery न जाने क्या क्या बक रहा था .........पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज  दिया ........एक और किस्सा उसी स्कूल का ...एक श्रीमान जी सुबह सुबह आ के लड़ रहे थे ....क्या हुआ भैया ..........स्कूल बस नहीं आयी ..... हमें आना पड़ा छोड़ने ..........बाद में पता चला श्रीमान जी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर ....उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था ....और लड़का उनका 10 साल का था ..........
                                             क्या बनाना चाहते हैं आज कल के माँ बाप अपने बच्चों को ...........ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएंगे ..........आज से लगभग 15 साल पहले ..मेरा बड़ा बेटा 4 -5 साल का था ...अपने खेत पे जा रहे थे हम ...बरसात का season था ....धान के खेतों में पानी भरा थे ......मेरे बेटे ने मुझे कहा..... पापा ........     मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा ...पैदल चलो .........और वो चलने लगा ...और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया .....कपडे सब कीचड में सन गए...........अब वो रोने  लगा ....मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा ...उठो .....वो वहीं बैठा बैठा रो रहा था ....उसने मेरी तरफ हाथ बढाए .....मैंने कहा ..अरे पहले उठो तो ........और वो उठ खड़ा हुआ ........मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया ......हम फिर चल पड़े ....थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया .....पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी .....उसने सिर्फ इतना ही कहा ...अर्र्रे .......और हम सब हंस दिए .....वो भी हंसने लगा ..........और फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया ...........मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप बेटा बीसों बार उस खेत पे गए होंगे .............वो उसके बाद वहां से आते जाते कभी नहीं गिरा ..
                                                कल मैं नीरज  जाट  जी की  करेरी झील की  trekking  वाली पोस्ट पढ़ रहा था ............4 दिन उस सुनसान बियाबान में ...जिसका रास्ता तक नहीं पता ...इतनी बारिश और ओला वृष्टि में ......ऊपर से ले कर नीचे तक भीगे ......भूखे प्यासे ........न रहने का ठिकाना न सोने का ......उस कीचड भरे मंदिर  के कमरे में .....उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में रात बिता के भी ........कितने खुश थे ......इतना संघर्ष शील आदमी ...क्या जीवन में कभी हार मानेगा ..........काश कार्तिक राजाराम ........जी हाँ यही नाम था उस लड़के का .......उसे भी बचपन में गिरने की ...गिर गिर के उठने की ......बार बार हारने की और हार के बार बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती ............कठोपनिषद  में एक मंत्र है ......उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत .....उठो जागो .......और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो ..............शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल ....इतना सुकुमार मत बनाइये की वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त न कर सकें ........एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था ....एक मेमना अपने माँ से दूर निकल गया ...वहां पहले तो भैंसों के झुण्ड में घिर गया .......उनको पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह ...अभी थोडा ही आगे बढ़ा था की एक सियार उसकी तरफ झपटा .....किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई ....तो सामने से भेड़िये आते दिखे ..........बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका  रहा ....किसी तरह माँ के पास  पहुंचा  तो बोला .....माँ ...वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है ............maa ... there is a jgungle out there ........इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिये ...........

Wednesday, July 6, 2011

एक plate चूहा curry ....मिर्च मसाला तेज़

                                  हमारे गाँव  में मुसहर जाती   के लोग रहते हैं ......पूरे UP और बिहार में रहती है ये जाती .....बड़े फक्कड़ मस्त किस्म के लोग होते है ....आज़ाद पंछी .......कहीं एक जगह टिक के नहीं रहते .......अलग पहचान में आते हैं ...एकदम काले रंग के ....गाँव से अलग दूर बस्ती होती है इनकी.....अक्सर सूअर पालते हैं .........पर कोई काम या नौकरी टिक के नहीं करते ....जब मन किया उठ के चल दिए .........पर बड़े मेहनती होते  हैं ....बहुत ही जीवट वाले ....अब इनके बारे में एक और बात जो बहुत प्रचलित है ,वो ये की ये चूहे मार के खाते है ....इस से इन बेचारों को बड़ी हेय दृष्टि से  देखा जाता है ..........समाज में अगर कोई अति दलित ...बल्कि महा दलित .......वो तथा कथित सीढ़ी के आखिरी पायदान पर बैठा व्यक्ति अगर कोई है ........तो मुसहर ...........अब मैंने एक बार ये जानने की कोशिश की, की  ये चूहे किसी मजबूरी में खाते हैं क्या ??????  तो जो बात निकल के ई वो ये की हो सकता है कभी कोई मजबूरी रही होगी पर आज अगर कोई मुसहर चूहा खा रहा है तो वो अपनी जातिगत ....सांस्कृतिक ...अति प्राचीन परंपरा का निर्वाह कर रहा है ....मज़े लेने के लिए खा रहा है ............भूख कोई कारण  नहीं है .....अक्सर इनके बच्चों की शिकायत आती है की आज मुसहरों के लड़कों ने बहुत उत्पात मचाया ....हमारे गन्ने या गेहूं के खेत में सब घुस के चूहे पकड़ रहे थे .........अब चूहे कोई छोटे मोटे नहीं भैया .....एक एक चूहा एक एक किलो का होता है ...अब उसे पकड़ने के लिए ये सब उनके सारे बिल बंद कर के .....उनमे पानी भरते हैं ...बाल्टियों से ...फिर जब चूहे भागते हैं तो सब उन्हें दौड़ा के डंडों से मारते है ........अब इतनी धमाचौकड़ी होगी किसी के खेत में ,तो नुकसान तो होगा ही ....पर ये कोई भूख की मजबूरी नहीं ...उनकी तो ये मौज मस्ती है ...शिकार समझ लीजे.......इसके अलावा जो मिल जाए ,ये नहीं छोड़ते ....केकड़ा ,कछुआ ,और कोई भी वन्य जीव ......इसके अलावा और भी अन्य तथा कथित छोटी जातियां और उनके बच्चे तालाबों के किनारे घोंघा सीप वगैरा भून के खाते है ....अब हम so called उंच जाती के लोग इसे अच्छा नहीं समझते ........एक बार हमारे घर के बच्चों ने अपने उन दोस्तों के साथ घोंघा खा लिया था सो हमारी ताई जी ने बाकायदा गंगा जल से नहला के हवन कराया था ...........तो भैया ये तो भूमिका है मेरी आज की पोस्ट की ...असली किस्सा तो अब शुरू हो रहा है ............सो हुआ यूँ की श्रीमती जी संजीव कपूर साहब की recipe book ले आयीं खरीद के और लगी उसमे से देख देख के बनाने पकवान ...रोज़ रोज़ ..........सो एक दिन बोली की आज ये गोवा की dish है prawn balchao इसको बनाते हैं ........अब सैदपुर क़स्बे में कहाँ से आते prawns ....यानी झींगा मछली ....तो हमने कहा झींगा न सही कोई और सही ....सो मछली आयी और बहुत कायदे से बनी ..........अब goan cuisine की ये खासियत है की उसमे तकरीबन हर dish में vinegar ...यानी गन्ने का सिरका पड़ता है .......और उस से बहुत ही अच्छा taste आता है ............और ख़ास बात ये की पूर्वांचल में गन्ने का सिरका  काफी प्रचलित है ...बहुत ही अच्छी quality का बनता है और खूब खाया जाता है आंचार में और प्याज आदि में सो हमें तो उस goan dish में सिरके की वजह से बहुत मज़ा आया ........पर दिक्कत ये है की सिरके का taste सबको नहीं भाता ....धीरे धीरे डेवेलोप होता है ........तो हमने अपने एक दोस्त को भी वो dish खिलाई पर उन्हें कतई पसंद नहीं आयी .......और इस तरह  goan dishes अक्सर हमारे घर में बनने लगी ........अब goan cuisine में sea food काफी खाया जाता है .......सो हमारे मन में बड़ी  तीव्र  इच्छा  थी  की हम भी sea food खाएं  ...........और एक दिन भैया चल दिए हम दोनों मियां बीवी गोवा की ओर ......पर गलती ये हो गयी की हमारे साथ हमारे एक मित्र भी सपत्नीक लटक लिए ...........अब वो दोनों खाँटी पूर्वांचल के ........दाल भात चोखा .........पूड़ी कचौड़ी वाले..... चटनी के साथ ....और हम दोनों ठहरे मार्को पोलो और वास्को दी गामा के बाप .........हम तो दो साल से ठान के बैठे थे की गोवा में तो goan food और उसमे भी ख़ास तौर पे sea  food .......सो वहां पहुँचते ही शुरू हो गए .........और हमने एक बार तो मित्र महोदय को taste कराया और न उनको पसंद आना था न आया .....सो हमने उनसे कह दिया की भैया ....हमारी तुम्हारी कोई रिश्तेदारी नहीं खाने पीने में ...तुम अपना जुगाड़ देख लो ...हमारे चक्कर में तो भूखे मर जाओगे ...........और भैया हम दोनों जो शुरू हुए ........50 किस्म की तो मछली मिलती है वहां .......और क्या restaurent में ...क्या ठेले पे ....क्या सड़क पे और क्या beach पे ....जहाँ मिली वहां खाई ....जो मिली वो खाई ........सबसे  बड़ी बात की थी भी बड़ी सस्ती  5 -10 रु में पूरी साबुत मछली आधा किलो की ....तवे पर fried .......इतना तक तो ठीक था ....फिर आयी  see food की बारी  ......... वो वहां के एक बड़े नामी restaurant में गए खाने .......सारी dishes 120 से ले के 180 रु plate .........( बात दस साल पुरानी है ) ....खैर खूब जम के खाया  ...अच्छी भी लगी सारी dishes   ............अब ये पूछिए खाया क्या क्या ....oysters ,lobsters ,और shell fish ....इसके अलावा एक plate prawn balchao .....और एक mackarel fried .........बिल ज्यादा नहीं यही कोई 1200 रु आया था .......खा पी के निकले तो श्रीमती जी बहुत खुश थीं .....तृप्ति का भाव उनके चेहरे पर झलक रहा था ...वैसे भी 5 star type restaurant का मज़ा ही कुछ अलग होता है ...और इससे पहले तो हमने सारा भोजन सड़क छाप ठेलों और beach पर ही खाया था ....निपट सस्ता .....10 -20 रु का ........खाया पीया सो गए ...अगले दिन सुबह गप्पें  मार रहे थे ........हमने अपनी उन भाभी जी को बताया  की कैसे हमने कल रात सी फ़ूड खाया .......और ये की बड़ा मज़ा आया ...और ये की अब तो घर जा के भी बनायेंगे ....recipe मैंने कल उस restaurant के कुक से पूछ ली है .........इस पे दोनों महिलायें बोल पडीं ...वहां सैदपुर में see food कहाँ से आएगा ........मैंने कहा .....अबे काहे का सी फ़ूड .........lobster माने केकड़ा .....धक्के खाते हैं हमारे यहाँ तालाबों में ......और oyster और shell fish माने घोंघा और सीप जो उन्ही तालाबों के किनारे बस यूँ ही पड़े रहते हैं ...और गाँव के बच्चे बरसात के दिनों में गोहरे की आग पे भून के खाते हैं .........वही घोंघा जिसे खाने पर ताई जी ने बच्चों को गंगा जल से नहला के हवन कराया था घर में .......अब हमारी वो भाभी जी बोल पड़ी ...राम राम कैसे मलेच्छ  लोगों से पाला पड़ा ....घोंघा खा के आये वो भी 1200 रु में ......ऊपर से तुर्रा ये की goan food खाया ....sea food खाया .............और आपकी जानकारी   के लिए बता  दूं  की समुद्र  की मछली और see food से लाख  दर्जे अच्छी और tasty , pond की fish और oysters , lobsters और shell fish होते हैं ...
                                               अब लाख टेक का सवाल तो ये हुआ भैया की सारी दुनिया सीप ,घोंघा ,केकड़ा ,कछुआ  ,बिल्ली और कुत्ता खा के मज़े ले रही है ....तो इन बेचारे मुसहरों को क्यों गाँव से बाहर लखेद रखा है .............उन्हें पढ़ा लिखा के आदमी बनाओ और गाँव के अन्दर ला के बसाओ यार ........अब काला कलूटा होना या मौज मस्ती के लिए चूहा खाना कोई disqualification  तो नहीं  ..........तो फिर अगली  बार ........हो जाए एक plate चूहा curry ..... वहाँ china में  ???????

                                       






Tuesday, July 5, 2011

हमारे दादा के पास हाथी था ...सचमुच का

                                            केरल के एक मंदिर के तहखानों से खजाना मिला है ......मिला क्या अभी तो मिल रहा है ....भाई लोग गिन रहे हैं ...अंदाज़े लगा रहे हैं .....सुना है की अब तक एक लाख करोड़ रु की सम्पदा मिल चुकी है ........सब तरफ से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं ......बहुत से लोगों को याद आ गया की अरे भारत तो सोने की चिड़िया होता था ......अब यदि आप इतिहास पर नज़र दौडाएं तो बहुत कुछ पढने को मिलता है .....पता नहीं कितनी बार मुहम्मद गजनवी ने सोमनाथ का मंदिर लूटा ......और कहते हैं की पता नहीं कितने हज़ार ऊँटों पे लाद के ले गया था और फिर पता नहीं कौन कौन से गजनवी   ...गोरी ...नादिरशाह और न जाने कौन कौन हुआ है जिसने लूटा ...फिर सुनते हैं की 300 साल अँगरेज़ लूटते रहे  .....राजीव दीक्षित जी कहा करते थे की clive हमारे देश से सोना लूट के 900 जहाज़ों में भर के ले गया था .......अब हमारे जैसे भुक्खड़ जिन्हें जिंदगी में पेट  भर दाल रोटी नसीब न हुई ....टूटी चप्पल फटकार के सड़क पर घूमते हैं ......हमसे कोई कहे की हमारे  दादा के पास हाथी था तो हम तो यही कहेंगे की देखो साला छोड़ रहा है लम्बी लम्बी .......अबे इतनी ढील मत दो यार ....उलझ जायेगी भैया ........
                                            पर आज का अखबार देख के तो यही लग रहा है भैया की सचमुच हमारे दादा के पास हाथी था ......अब  हमने हिन्दुस्तान के बड़े बड़े  मंदिरों का नाम सुना है ......एक बार मदुरै चले गए .......वहां सुना था की कोई नामी मंदिर है सो खानापूर्ति करने के लिए चले गए ....किसी से पूछा कहाँ है मिनाक्षी मंदिर ......उसने कहा बस थोडा आगे .........आगे बढे तो एक मंदिर सा दिखा ........5 -7 मंजिला लग रहा था दूर से ......वहां पहुंचे तो पता लगा की भैया ये मंदिर नहीं ...ये तो उसका गेट है ...मंदिर तो अन्दर है .....और भैया अन्दर गए तो देखते रह गए .......उसे मंदिर कहना तो गलत  होगा  ...मंदिर  क्या था छोटा मोटा शहर था भैया .........दो घंटे पैदल घूमते रहे ...अंत में थक हार कर बैठ गए ....बाद में एक नक्शा खरीदा उसका, तो पता चला की अभी तो एक चौथाई ही घूमा है ......अब इतना बड़ा मंदिर देखने के लिए तो अन्दर गाडी की व्यवस्था होनी चाहिए .....अब मुझे लगा की औरंगजेब  अगर इसको भी तोड़ के मस्जिद बनाता तो 500 -700 मस्जिद निकल आती एक में ......... इतना सब देख के हम एक चाय की दूकान पे बैठ गए ...वहां एक सज्जन मिल गए ...बताने लगे की अरे ये तो कुछ भी नहीं ....हिन्दुस्तान में तो इससे भी बड़े बड़े मंदिर हुआ करते थे ..............और इतने बड़े बड़े तो उनके तहखाने होते थे जहा सोना हीरे जवाहरात भरे रहते थे ............हमने मन ही मन कहा देखो साला छोड़ रहा है लम्बी लम्बी .......फिर मुझे उसमे एक हिंदूवादी, साम्प्रदायिक, RSS का agent दिखने लगा जो ऐसी लम्बी लम्बी गपाश्टक छोड़ के ,बेचारे मुसलमानों को बदनाम करके, देश का साम्प्रदायिक सौहार्द छिन्न भिन्न कर रहा है ....देश को तोड़ने की बात कर रहा है ......अब आज का अखबार पढ़ के मुझे ये समझ नहीं आ रहा की ये अखबार लम्बी लम्बी छोड़ रहा है ...या वो तमाम लोग लम्बी लम्बी छोड़ते थे जो आज तक कहते थे की भारत सोने की चिड़िया ...और न जाने क्या क्या था ....यहाँ कोई गरीब था ही नहीं .....और भैया इस मंदिर का तो हमने आज तक नाम ही नहीं सुना था .....अगर इसके तहखाने में इतना निकला तो बाकी जो बड़े बड़े नामी मंदिर थे ,जो लूट लिए गए ...उनके तहखाने में क्या कुछ रहा होगा ...........
                                      आज सुबह ,यहाँ योगपीठ में बाबा रामदेव बताने लगे की हमारा देश कितना संपन्न था .....यहाँ कोई गरीब था ही नहीं .....हर आदमी धन्ना सेठ होता था ........अब जो लोग दान में इतना कुछ दे रहे हैं उनके पास इससे ज्यादा ही रहा होगा ......... अब ये तो इतिहासकार लोग ही बताएँगे की सच्चाई क्या है ...ये सारी सम्पदा दान की थी ....टैक्स की थे ...या राजाओं ने या पुरोहितों ने जनता का शोषण कर के जमा की थी ........आखिर इतनी सम्पदा को सहेज के रखने का मतलब क्या था ....यह जन कल्याण के कार्यों में खर्च क्यों न हुई .........इसपे बाबा रामदेव बताने लगे की पूरे विश्व को सामान एक्सपोर्ट  होता था यहाँ से ......और बदले में सिर्फ सोना चांदी और हीरे जवाहरात आते थे ....हम कुछ import नहीं करते थे ........यूरोप और अरब में तो कुछ था ही नहीं ....बात भी सही है ....अरब में तब कौन सा तेल था  ??????? खजूर के अलावा होता ही क्या रहा होगा ......यूरोप का पता नहीं .....खैर जो भी है बताया जाता है की भारत की आम जनता इतनी सुखी थी की किसी को कोई कमी नहीं थे ....सोना चांदी इफरात था .....पैसा खर्च करने की जगह ही नहीं थी ......सो कहाँ खर्च करते .....बस यूँ ही पड़ा रहता था ......
                                    अब अपन यहाँ कंफ्यूज  हो जाते हैं  ...एक बार मन करता है की इन बातों पर विश्वास कर लें ....हाँ यार सचमुच सोने की चिड़िया था अपना देश ......चलो रहा होगा ......पर आज क्या है    ????????? और आगे क्या होगा ........इसका बहुत अच्छा जवाब आज यहाँ बाबा रामदेव ने हरिद्वार में दिया ..........दोस्तों ....अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है .....भारत अब भी सोने की चिड़िया बन सकता है .......आखिर 120 करोड़ इमानदार और मेहनती लोग हैं यहाँ ......( एक करोड़ चोर डाकू मैंने छोड़ दिए हैं ) .....ज़रुरत है इन 120 करोड़ लोगों का  चरित्र निर्माण कर के इन्हें राष्ट्र की सेवा में ...राष्ट्र के पुनर्निर्माण के पथ पर अग्रसर किया जाए .......इन्हें आत्मग्लानि और निराशा की गर्त से बाहर निकाला जाए ........भारत आदि काल से ही आर्थिक ,सामजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से पूरे विश्व का गुरु रहा है ...आगे भी रहेगा .......आवश्यकता है पुनर्जागरण की , व्यवस्था परिवर्तन की .........भारत की युवा पीढ़ी से मेरा अनुरोध है की पश्चिम की और ताकना बंद कर के अपने गौरवशाली अतीत में झांकें .......वहीं से हमें आगे की दिशा तय करने का संबल मिलेगा ........




Monday, July 4, 2011

कहाँ खो गयीं वो चिट्ठियां ......

                                   आज एक पुराने सूटकेस में कपडे की पोटली में लिपटा एक बण्डल मिला .....खोल के देखा तो वो वो तमाम चिट्ठियां और greeting cards थे जो मैंने पिछले  20 -22 सालों में अपनी पत्नी को लिखे  थे  .....ये सिलसिला शादी से पहले शुरू हुआ था और तब तक चलता रहा जब तक ये कमबख्त मोबाइल फोन नहीं आ गया ......वो पोटली खोली और पढने लगा .......तब तक श्रीमती जी भी आ गयीं ......वो भी साथ में शामिल हो गयीं ....बहुत सी  पुरानी यादें ताज़ा हुई ...वो तमाम घटनाएं जो भुला दी गयी थीं एक एक कर याद आने लगीं ........बहुत सी लड़ाइयाँ याद आयीं ...बहुत से गिले शिकवे .....बहुत सी मान मनौव्वल ......और कुछ नसीहतें .....और ढेर सारी प्यार मोहब्बत ......वो कागज़ को मुड़े तुड़े टुकड़े ....कुछ तो एकदम फटे हुए थे .....पर कितनी कहानियों की याद दिला गए ........कायदे से खाया पिया करो ....इस से तुम्हारे गर्भ में पल रहा हमारा बच्चा हृष्ट पुष्ट होगा ......माँ की बातों का बुरा मत माना करो ....वो दिल की बहुत साफ़ है ........उसकी बातों की टेंशन मत लिया करो ......आज फलानी फिल्म देखी मैंने .......या आज ये कुछ हुआ ऑफिस में ....या ये की कितना मिस कर रहा हूँ तुम्हे .....वो चिट्ठी जो मैंने अपनी बेटी के पैदा होने के बाद लिखी थी .......या वो कुछ छोटे छोटे नोट्स ....i am sorry वाले ......वो सब सम्हाल के रखे थे .....और मेरी बीवी ......कमबख्त....... उसे यहाँ तक याद था की ये वाली लड़ाई किस बात पर हुई थी ......जवानी के 10 -12 सालों की यादें ताज़ा हो गयीं ....पर जब से ये मोबाइल का ज़माना आया .....चिट्ठियों का ये सिलसिला बंद हो गया ......ज़रुरत भी क्या थी ....खट्ट  से एक सेकंड में बात हो जाती है ....या बहुत किया तो SMS भेज दिया .......अब sms को कौन सम्हाल कर रखेगा .............और रखे भी तो कैसे .......पिछले दिनों एक गाने के बोल सुने ....आशिकी कितनी आसान हो गयी है आजकल .....और वो भी क्या ज़माना था .....communication का कोई तरीका ही नहीं था ......एह ही तरीका था, पत्र लिखो ....प्रेम पत्र ....अब लिख तो दिया ....पर पहुंचाएं कैसे .......किसी तरह पहुचाते थे ...अपने किसी छोटे भाई बहन से ...या फिर मोहल्ले के किसी बच्चे से ....बहुत हिम्मत की तो खुद पकड़ा दिया ......पर ऐसा मौका या इतना बड़ा कलेजा तो नसीब वालों को ही मिलता था .....फिर अब बेचारी लड़की की मुसीबत ...पढ़े कहाँ ...कहाँ छुपा कर रखे .....कई कई बार पढना जो होता था ...सहेली को भी दिखाना है अभी ..........और इसी बीच कभी कभार माँ या घर का कोई देख लेता था ....किताब में पड़ा मिल जाता था ........फिर बेचारी की कुटम्मस होती ........माँ चुटिया पकड़ के पिटाई करती ....उस जमाने की माएँ भी तो एकदम सोलहवीं शताब्दी की थीं ......एकदम दकियानूसी ......अब तो भैया ज़माना ही बदल गया है ........लड़के लड़कियां भी modern उनके माँ बाप भी modern ....आशिकी भी modern ......तो फिर प्यार के इज़हार का तरीका भी modern ...अब तो मुझे लगता है की शायद sms भेज के ही काम चल जाता होगा .....घंटों बातें होती हैं ......सबसे बड़ी सुविधा तो मोबाइल कम्पनियों ने दे दी है ....मुफ्त में बतियाओ रात भर ......पर इस सब के बीच चिट्ठियां ग़ुम हो गयीं ......कागज़ का वो छोटा  सा  टुकड़ा  जो सुख देता था .......वो इस sms या email में कहाँ मिलता है ....और फिर डाकिये का इंतज़ार .......रोज़ उस से पूछना ..........भैया हमारी कोई चिट्ठी नहीं आयी  आज ?????.माँ कहती थी बहुत दिनों से बेटे की चिट्ठी नहीं आयी .........और जब आती थी तो  वो किसी से पढवाती थी ....फिर उससे request करती की भैया जवाब भी लिख दे .....मुझे याद है ...बचपन में हमारी एक चचेरी भाभी थी .......भैया हमारे कलकत्ता .....(अब तो कोलकाता हो गया वो भी ) में रह के कमाते थे ...सो जब उनकी चिट्ठी आती तो हम सब बच्चे  बाकायदा शोर मचाते .....एक जलूस की शकल में ....पूरा ceremonially उसे ले के आते ....और फिर एक रूपये की रिश्वत ले के वो चिट्ठी उनको देते ......अब हमारी भाभी को तो ये सौदा बहुत महंगा पड़ने लग गया .....ऊपर से हमारी ताई जी ने उनकी एक आध चिट्ठी गायब कर दी ...सो भैया ने गाँव के डाकिया को चिट्ठी लिख के बाकायदा ये हिदायत दी की मेरी चिट्ठी मेरी बीवी के हाथ में ही देना ....सो वो श्रीमान जी एक दिन आ कर दरवाज़े पर डट गए ,,,और फिर भाभी जी घूँघट निकाल कर आयीं और उन्होंने दरवाज़े के पीछे से हाथ निकाल के चिट्ठी थाम ली  .......अब साहब जब ये बात हमारे ताऊ जी तक पहुंची तो उन्होंने लिया डाकिये को तरिया ....माँ बहन के गालिया दी अलग से और टांग वांग तोड़ने की धमकी दी ......इकबाल मियां नाम था उस डाकिये का ...........अब भी है ...बूढा हो गया है .....अब कभी हमारे घर नहीं आता ....क्योंकि अब कोई चिट्ठी नहीं आती हमारे घर ......एक और बात याद आयी  ...हमारे बड़े ताऊ जी कलकत्ता से चिट्ठी लिखते ....पोस्ट कार्ड पे ...साथ में जवाबी पोस्ट कार्ड भी भेजते .........फिर छोटे ताऊ जी उसका जवाब लिखते ...और उस छोटे से पोस्ट कार्ड पे इतना कुछ लिखते ...इतने बारीक अक्षरों में ..छोटा छोटा ........पूरी रामायण लिख देते .......हम कहते थे हे भगवान् पढने वाला कैसे पढता होगा .......लेंस लगा का पढ़ते रहे होंगे शायद .......और फिर अंतर्देशीय पत्र .....inland letters चूंकि महंगे थे थोड़े ...सो उसे अमीर लोग ही afford कर पाते थे ....सरकारें सालों तक पोस्ट कार्ड के दाम नहीं बढ़ाती थीं ....बाद में ये भी पता चला की भैया पोस्ट कार्ड में भी सरकार subsidy देती है ......बच्चे डाक  टिकटें जमा करते थे .....एक दूसरे से अदला बदली करते थे .........हमारा एक दोस्त हुआ करता था .उसके कोई रिश्तेदार बाहर विदेश में रहते थे सो उसके पास विदेशी सुन्दर सुन्दर stamps होती थीं ...वो हमें इतरा के दिखाता था ........ अब हमारे पास कहाँ से आती विदेशी डाक टिकट ...सो हमने एक जुगाड़ बैठाया .......बनारस की बात है      BHU के बड़े डाक खाने के एक आदमी से दोस्ती कर ली और वो हमें विदेशी पत्रों से उतार के stamps दे देता था ...पर भैया थोड़े दिन बाद उसकी complaint होने लगी ...और हमारा ये जुगाड़ ख़तम हो गया ...........एक कहानी पढ़ी थी बचपन में ......की कोई एक बूढा शिकारी अपनी बेटी की चिट्ठी के इंतज़ार में पूरी जिंदगी गुज़ार देता है .....रोज़ सुबह आ के डाक खाने के बाहर  बैठ जाता है ...और जब डाक खाना खुलता है तो पोस्ट मास्टर से पूछता है .......मेरी कोई चिट्ठी आयी है क्या ...........सारा  दिन वहां बैठ के इंतज़ार करता है ...और अगले दिन फिर आ जाता है .......बहुत ही मार्मिक कहानी थी .....आज के बच्चे ....मुझे तो लगता है की ये शायद  मोबाइल हाथ में ले के ही पैदा होते हैं क्या .....ये बेचारे  चिट्ठियों के उस रोमांच  और रोमांस  से वंचित  रह गए ....कहाँ खो गयीं वो चिट्ठियां ......