Saturday, October 29, 2011

इन तितलियों को संघर्ष करने दो

                                                बचपन में एक गुरूजी थे ....वो एक कहानी सुनाते थे ......यूँ कि एक biology  क्लास में गुरूजी बच्चों को दिखा रहे थे   कि कैसे एक तितली अंडे को  फोड़ के बाहर निकलती है ......सब बच्चे बड़े गौर से देख रहे थे ......कई सारे अंडे थे .......तितलियाँ  अण्डों  को तोड़ कर बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही थीं ......... पंख फडफडा रही थी ....हाथ  पैर चला रही थी .........बहुत देर तक ये जद्दो जहद चलती रही ....तभी एक बच्चे को ये देख कर दया आ गयी ......उसने एक अंडे को तोड़ दिया ...और वो तितली आज़ाद हो गयी और बाहर आ गयी ..............पर बाकी सब तितलियाँ इतनी खुशनसीब न थीं .........क्योंकि बाकी बच्चे सब इतने  दयालु  न थे ....सो उन बेचारियों  का संघर्ष चलता रहा  , चलता रहा ...........खैर  समय  होने  पर वो सब भी एक एक कर के अपने अण्डों को तोड़ कर बाहर निकल  आयीं ...........पूरी क्लास रूम में तितलियाँ ही तितलियाँ थीं ....रंग बिरंगी खूबसूरत तितलियाँ ..........सब तितलियाँ धीरे धीरे उड़ने लगी और फिर उड़ते हुए बाहर पार्क में चली गयीं ........पर एक तितली थी जो कोशिश करने पर भी उड़ नहीं पा रही थी .........वो वहीं टेबल पर ही बैठी थी .........कुछ देर उसने कोशिश की  पर नहीं उड़ पाई ...और फिर थोड़ी देर बाद मर गयी .........टीचर भी हैरान था और बच्चे भी समझ नहीं पा  रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ .......फिर उस लड़के ने बताया कि ये वही तितली थी जिसका अंडा उस लड़के ने फोड़ दिया था ...........तब टीचर ने उन्हें बताया कि तुमने उस पर दया कर के अपनी नादानी से उसकी  जान ले ली ............उस अंडे के भीतर जब वो संघर्ष कर रही थी ...हाथ पैर मार रही थी .....पंख फडफडा रही थी .....उसी संघर्ष से उसके हाथों पैरों और पंखों  में इतनी ताकत आती कि वो जीवन भर उनसे उडती रहती ...........तुमने वो मौक़ा उससे छीन लिया ........नतीजा तुम्हारे सामने है .............
                                              मेरा शहर जालंधर बड़ा ही खूबसूरत शहर है .......साफ़ सुथरा सा .......खूब खुली चौड़ी चौड़ी सडकें हैं ..........पिछले एक साल में 5  नए fly  over  बन गए हैं ....इस से अब traffic  की भीड़ भाड़ भी कम हो गयी है ..........हर कालोनी में बड़े बड़े पार्क हैं जिनमे खूबसूरत फूल पौधे और मखमली घास लगी है .........नगर निगम हर पार्क की देख रेख करता है .....हर पार्क में बुजुर्गों  के टहलने  के लिए बाकायदा cemented  ट्रैक बना हुआ है .................. बच्चों के लिए झूले लगे हुए हैं ..............पर उनके खेलने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है ..............मौज मस्ती के लिए तो है ......पर खेलने के लिए नहीं .............यानी कि अगर वो फुटबाल , volleyball या ऐसी कोई गेम खेलना चाहें तो इतने बड़े पार्क में कोई जगह नहीं ..........पर बच्चे तो आखिर बच्चे ठहरे .....वो कहाँ बाज आते हैं ......पर पार्क में खेलना मना  है .....क्यों भैया .....इस से घास और फूल पौधे खराब होते हैं .......अब हमारे घर के पास एक पार्क है .....वहां कालोनी की welfare  assosiation  के प्रधान  एक retired  colonel  साहब हैं  ...वो पार्क के रख रखाव पे बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं .....क्या मजाल कि कोई बच्चा कोई फुटबाल ले आये ...........अब समस्या ये की वो भी खडूस और मैं भी खडूस .....मैं उनसे भिड़ गया ..............मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की.........के जनाब  ये बच्चे हैं ,  इस उम्र में इनके लिए ये बहुत ज़रूरी है की ये खूब भागें दौडें .............medical  science  भी कहती है कि एक स्वस्थ बच्चे को कम से कम दो घंटे ऐसी physical  activity  करनी चाहिए कि उसकी heart  beat 120  से ले कर 200  के बीच रहे ....इससे उसका heart  , lungs , muscles  और पूरी body , strong और fit  होगी .........अब आज के शहरी जीवन में बेचारे बच्चे वैसे ही पढाई के बोझ के मारे .......उनके पास पहले ही टाइम नहीं ........न खेल उनकी और उनके parents  की प्राथमिकता ........और अब अगर वो थोडा बहुत खेलना भी चाहें तो आप नहीं खेलने देंगे .........उन्होंने तर्क दिया कि खेलना है तो stadium  जाएँ ........अजी जनाब 6  किलो मीटर दूर है stadium  .........फिर इतना टाइम कहाँ है बच्चे के पास ..........दूसरे पूरे शहर के लिए सिर्फ एक stadium  ........सोच के देखिये ...शहर का हर बच्चा stadium  जा सकता है क्या ??????? 30  - 40  बच्चों के लिए एक फुटबाल ground  जितनी जगह चाहिए ........शहर में 50  stadium  भी कम पड़ जायेंगे ...........हर कालोनी में इतना बड़ा पार्क है ....हज़ारों पार्क हैं जालंधर में ............. साले बुड्ढे .........कब्र में तेरे पाँव लटके हैं ......पर तुझे अपने टहलने के लिए हर पार्क में एक ट्रैक चाहिए ...........पर हर पार्क में तू एक बास्केटबाल कोर्ट नहीं बनवा सकता .........तुझे इन फूल पौधों की तो चिंता है ....कहीं ये पौधा खराब न हो जाए ..........पर ये जो फूल से बच्चे ....जो बेचारे सारा दिन बस्ते के बोझ तले दबे ........जंक फ़ूड खा के मोटाते बच्चे ........सारा दिन विडियो गेम खेल रहे हैं ...........इनकी भी थोड़ी चिंता कर ले यार ............
                                                   मुझे तरस आता है इन ,  तथा कथित पढ़े लिखे समझदार ......बुद्धिजीवियों पर ...................देश के बच्चों के प्रति इनके रवैये पर ........मैं काफी समय से इनके बीच काम कर रहा हूँ ........हमारे देश में शहरी बच्चों की फिटनेस बहुत खराब है .........बच्चे मोटे हो रहे हैं या under weight  हैं ......उनकी eating habits बहुत खराब हैं ....पर parents बेखबर हैं ........या लापरवाह हैं .....या यूँ कह लीजिये लाचार हैं .............पश्चिमी देशों में स्कूल में physical  activity  पे बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाता है .............यहाँ जालंधर में एक नया स्कूल खुला .....उसका प्रिंसिपल एक अँगरेज़ था ......उसने स्कूल uniform    बदल के track suit और sports shoes कर दी .........और सुबह एक घंटा की vigourous  physical  activity cumpulsory कर दी ........हमारे बेहद समझदार परेंट्स को ये बात समझ न आयी और मैनेजमेंट ने उस प्रिंसिपल को भगा दिया ..............अब सारे बच्चे टाई लगा के स्कूल आते हैं  और सारा दिन खूब मन लगा के पढ़ते हैं ............
                                              हमारी कालोनी के उस कर्नल साहब को ये बात अब तक समझ नहीं आयी है .........वो सुबह hat लगा के और हाथ में छोटा सा डंडा ले के उस पार्क में morning  walk करता है .....कालोनी के बच्चे अपने PC पे विडियो गेम खेल कर सेहत बना रहे हैं ..................पर मैंने भी कर्नल  से पक्की दोस्ती  कर ली है और मैं उसे रोज़ समझाता हूँ कि हर कालोनी में एक पार्क होना  चाहिए ......जिसमे एक भी फूल पौधा नहीं होना चाहिए .....पर ढेर सारे बच्चे होने चाहिए .........ground  होने चाहिए .........जहां बच्चे खूब दौड़े भागें ......खेले कूदें ..........धूल मिट्टी में , पसीने से लथपथ ......होने दो अगर गंदे होते हैं कपडे ..........फूटने दो घुटने ........बहने  दो पसीना , और थोडा बहुत खून .............और सुबह सडकें खाली होती हैं .....तुम साले बुढवे .........वहाँ जा के टहला करो , अगर बहुर शौक है टहलने का ....और कम्पनी बाग़ में खूब फूल पत्ती है ...वहाँ जा के सूंघ गुलाब का फूल ....इन  तितलियों को संघर्ष करने दो .....हाथ पाँव से मज़बूत होने दो ..........क्योंकि कल सारी दुनिया फतह करनी है इन्हें .....कालोनी के उस पार्क में यही फूल खिलते अच्छे लगेंगे .............










Thursday, October 27, 2011

अन्ना भी भ्रष्ट......इसलिए , कौन सा लोकपाल ....कहाँ का लोकपाल

                                              लीजिये टीवी की ब्रेकिंग न्यूज़ है .....अपने गाँव रालेगन सिद्धि में अन्ना हजारे खड़े हो कर मूतते पकडे  गए हैं .........चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है .......टीवी चैनल के संवाद दाता सुबह से गला फाड़ रहे  हैं  .........और मैं सुबह से देख रहा हूँ ...पहले तो मुझे समझ ही न आया की  माजरा क्या है ........फिर एक चैनल पे उन्होंने तफसील से समझाया की कैसा  चरित्रहीन आदमी है जो खडा हो कर मूतता है ........अब मेरी समझ में फिर भी नहीं आया क्योंकि ऐसा तो मैं भी करता हूँ ....मैं क्या सारी दुनिया करती है ......काफी देर बाद पता चला की कभी कुछ साल पहले अन्ना हजारे अपने गाँव में किसी खेत में खुरपी से घास खोद रहे  थे .....और फिर जब लघुशंका के लिए गए तो खड़े खड़े ही काम निपटा रहे  थे सो किसी शैतान किस्म के पत्रकार ने फोटो खींच लिया ....उस समय  तो ये फोटो किसी काम का था नहीं .......इसलिए यूँ ही पड़ा था .......फिर जब जन लोक पाल का आन्दोलन चला तो कांग्रेस की चांडाल चौकड़ी ने        
IB , RAW और CBI की ड्यूटी लगाईं की इन सालों की जांच करो और कोई मामला ढूंढ कर निकालो .........सो प्रशांत भूषण ,केजरीवाल और किरण बेदी के खिलाफ तो मामले मिल गए पर अन्ना हजारे के खिलाफ कोई मामला मिल नहीं रहा था . उधर  अपने मनीष तिवारी पहले ही घोषणा किये बैठे थे की किशन बाबू राव हजारे तुम ऊपर से नीचे तक खुद भ्रष्टाचार में डूबे
हुए  हो .........यहीं से मुसीबत हो गयी .......आधिकारिक घोषणा हो गयी और मामला कोई मिल नहीं रहा था ....सो परधान मन्तरी आफिस से निर्देश गया की सब काम छोडो ...पहले कोई मामला ढूँढो उस बुढवा के खिलाफ .....और मामला भी ऐसा होना चाहिए जिसमे ऊपर से नीचे तक 
involve हो ..........अब IB , RAW  और CBI वाले बोले , अरे साहब हम लोग देश की आतंरिक और बाहरी  सुरक्षा की जिम्मेवारी छोड़ के अब यही सब करेंगे  ????????   पहले ही इतना दबाव है की हाई कोर्ट पे बम फूट गया और हम लोग सो रहे  थे ...........पूरा महकमा तो बलकिशुना और  रमदेउआ  के पीछे लगा रखा है ......अब आना हजारे के लिए तो नई भरती करनी पड़ेगी ......सो चिदम्बरम बोले ठीक है ....जो प्रणव दा के पीछे लगा रखे हैं उन्हें हटा के अन्ना के पीछे लगाओ ........महीनों से पूरा गृह मंत्रालय लगा था .....कुछ नहीं मिला ......बस वही एक फोटो मिला उस पत्रकार के लैपटॉप से .......मामला एकदम फिट बैठ रहा था कांग्रेस के हिसाब से क्योंकि मूतने पर ऊपर से नीचे की तरफ जाता है ........सो सुबह से दिखा रहे  हैं TV पे ........देखो कितना भ्रष्ट आदमी है .......खड़ा हो कर मूतता है .......बेचारे अन्ना हजारे सुबह से सफाई देते घूम रहे  हैं की अरे भाई ....इसमें हमारी कोई गलत मंशा नहीं थी...वो तो मैं हमेशा से ही खड़ा हो कर ही मूतता हूँ ....दरअसल मेरे घुटनों में दर्द रहता है इसलिए बैठ नहीं सकता .....पर कांग्रेस का भी अपना तर्क  है  , वो सही है की धोती कुरता पहनने  वाले आदमी को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ध्यान रखना चाहिए .....ये तो सरासर राष्ट्र का अपमान है .......हमारे ऋषि मुनियों का अपमान है ....धोती कुरते का अपमान है .....वो धोती जिसे बापू पहनते थे ...चाचा नेहरु पहनते थे .......अरे भाई आपको अगर इतना ही खडा हो के मूतने का शौक है तो कोट   पैंट  पहन लो यार .....जींस टी शर्ट पहन लो ....उतार फेंको ये गांधी वादी चोला .........महात्मा अन्ना हजारे ...अब तुम  पहचान लिए गए हो .......तुम्हारी पोल खुल चुकी है .....बंद करो ये गाँधी वाद का नाटक ........और बंद करो ये जनलोकपाल का आन्दोलन ...........राजा दिग्विजय सिंह का बयान आया है ......अन्ना को पहले अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए .....जो लोग खुद खड़े हो कर मूतते हो उन्हें कोई हक़ नहीं की वो दूसरों पर ( राजा ,कनिमोड़ी ,कलमाड़ी ,येदियुरप्पा ) कीचड उछालें ........सुबह से बरखा दत्त , वीर संघवी ,प्रभु चावला और अन्य बेहद इमानदार पत्रकार और TV  anchors  गला फाड़ रहे  हैं ........नहीं अन्ना जी , ये बताइये की जब आप खुद इतने भ्रष्ट है तो कैसे सिस्टम को
clean   करने की बात करते हैं                                      मेरा सुबह से शर्म के मारे बुरा हाल है .....मैं भी बहुत लोकपाल लोकपाल चिल्लाता था ........पिछले कई महीनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ झंडा उठाये घूम रहा था ...अब आज जा के पता लगा की मैं तो खुद बहुत बड़ा भ्रष्ट हूँ .......मैं यूँ ही बेचारे राजा रानी को गरिया रहा था ........बेचारे गरीब जेल में हैं ...जबकि जेल में तो अन्ना और उनकी टीम को होना चाहिए .....मुझे होना चाहिए .......






Wednesday, October 26, 2011

.गाय हमारी माता है ....आगे कुछ नहीं आता है

                                          आज सुबह सुबह facebook  खोला तो सामने भाई हरीश मेहता का update  सामने था ....कुछ बेरहमों की बर्बरता .......कुछ butchers  की फोटो है ....मुसलामानों को गरिया रखा है ......गाय का कटा सर दिखाया है .........  स्वाभाविक सी बात है लोगों को बुरा लगेगा ....emotional  मुद्दा है ये .........अब इसके आगे लिखने से पहले मैं एक बात का स्पष्टीकरण दे देना चाहता हूँ की भैया मैं कोई communist  या अँगरेज़ सरपरस्त या मुसलमान ,  इसाई नहीं हूँ ....मैं कट्टर हिन्दू ........जनसंघी ........कट्टर आर्य समाजी .....कट्टर भाजपाई ....बाबा रामदेव का पक्का चेला हूँ ........... डाक्टर प्रवीण तोगड़िया   का लेक्चर सुनने में मुझे भी बड़ा मज़ा आता है ........मुसलमानों को गरिया के मेरी आत्मा को भी शांति मिलती है ...........इसलिए कृपया मेरी बातों को अन्यथा न लिया जाए .......
                                         पिछले महीने मैं बूढ़े बाप की बीमारी के कारण गाँव में था ........सुबह बैठे थे हम सब ....चाय पी रहे थे ....तभी पता नहीं कहीं से एक बछडा आ गया हमारी चारदीवारी के अन्दर ......बड़े भाई ने उसे बाहर हांक दिया ..........वो बगल के खेत में घुस गया .....फिर बेचारे को वहाँ से भगाया ....दूर तक छोड़ के आये ....घंटे भर बाद वो फिर हाज़िर हो गया ..........अब बड़े भाई का धैर्य चुक गया ...वो लगे गरियाने .....मैंने पूछा किसका है ...कहाँ से आया है .....अरे पता नहीं किसका है ......छोड़ देते हैं साले .........मैं यूँ ही बोल पडा अरे इसको बाबा रामदेव की गौशाला में भेज दो .......नहीं तो प्रवीण तोगड़िया के पास भेज दो ....उमा भारती भी हैं .......इसपे पिता जी पिनक गए .......अरे इसको भी भेज दो और मुझे भी भेज दो ......मैंने उनसे कहा की आप झगडा मत कीजिये इस मुद्दे पर , तर्क कीजिये ........इस देश में गोरक्षा हो ये मैं भी चाहता हूँ .......पर होगी कैसे ........एक बछड़ा ये कहीं से आ गया ....एक आपके घर में भी है .......पूरे गाँव में सैकड़ों होंगे .....बैल अब कोई पालता नहीं , क्योंकि खेती सारी tractor  से होती है ......एक गाय है आपके घर ...उसे ही बड़ी मुश्किल से चारा डाल पाते हैं ....अब ये जो बछड़े और कटड़े हर साल पैदा होते हैं इनका क्या करें .....पाल सकते नहीं ...छुट्टा छोड़ सकते नहीं .........अभी एक ने ही नाक में दम कर रखा है ....सब छोड़ देंगे तो क्या हाल होगा ........इतना सुन के पिता जी मुझे गरियाने लगे ...........मैंने उनसे कहा .....देखिये ...गाली देने से काम नहीं चलेगा .....पिछले 20  साल में कम से कम 30 -35  गाय भैंस के बच्चे हुए आपके घर में ...........अब मादाएं तो पाल ली आपने .....बेचारे नर कहाँ हैं .....मैं नहीं चाहता की वो किसी slaughter  house  में  जा के कटें .........उन 10 -15  बछड़ों का मैं क्या करूँ .........कैसे गो रक्षा करूँ ....... अब इसका जवाब बाबा राम देव जी देने की कोशिश करते हैं .....दुनिया भर का गणित बताते हैं ...पता नहीं कहाँ कहाँ से श्लोक सुनाते हैं ...गाय की महिमा अपरम्पार है ..........गो मूत्र से ले कर गोबर और दूध और न जाने क्या क्या बखान करते हैं ...सारी बात सही है ....पर practically  possible  नहीं है ........अब बैल पाल कर , हल जोत कर खेती नहीं हो सकती ......बैल गाडी चल नहीं सकती ..........तो फिर क्या करोगे इनका ....इन बछड़ों का ...........आज क्या करते है लोग ....चोरी से .....लोगों की नज़र बचा के 300  रु में बेच देते हैं ....कसाइयों को .........वो सब इन्हें पैदल हांक कर ले जाते हैं वहाँ बंगाल ....जहां cow  slaughter  ban  नहीं है ........और ये सब वहाँ काटे जाते हैं और डब्बे में पैक हो के europe  और middle  east  को export  होते हैं .......
                                             अब मैं एक प्रश्न पूछ रहा हूँ ....गोरक्षा के इन झंडाबरदारों से ........मैं अपनी बूढी गाय भैंसों का , इन बछड़ों का क्या करूँ ..........मेरे पिता जी कहते है की अरे बेकार गाय को slaughter  house  भेज   दोगे  ?????  तो बेकार बाप को भी भेज दो ............मैंने कहा की एक ही बुज़ुर्ग है न घर में .....20  - 25   होते तो सचमुच सोचना पड़ता की कैसे निपटाएं ........एक किसान के पास तो सैकड़ों गाय बछड़े हो जाते हैं , कुछ सालों में ...क्या करें उनका   ........आज से 15  साल पहले पंजाब  सरकार ने एक कंपनी..... punjab  meats  नाम था ......उसको slaughter  house  खोलने का license  दिया .......यही अभिनव बिंद्रा जो olympic  gold  medallist  हैं उनके के पिता जी की कम्पनी थी .......रोपड़ के पास अत्याधुनिक प्लांट लग रहा था ....किसानों में ये बात फैली तो रातों रात बछड़ों  और कटड़ों  के रेट 10  गुना बढ़ गए .......हज़ार रु का कटड़ा 8000  में बिकने लगा ....फिर गोरक्षा वालों ने हल्ला मचाया और सरकार डर गयी ...उसने licence  रद्द कर दिया .......प्रोजेक्ट बंद हो गया ....Mr  bindraa    आज तक उसका मुकदमा बैंक से लड़ रहे हैं ....कुछ 10 -20  करोड़ का क़र्ज़ है उसी प्रोजेक्ट का ...और आज भी पंजाब में कटड़ा 500  रु का बिकता है ....आज भारत में dairy  farming    इसी लिए घाटे का सौदा है ......भारत में विश्व की सबसे ज्यादा cattle  population  है ..........पर वो सारी हमारी इन बेवकूफाना policies  और मुह्चोरी की वजह से बेकार जाती है ...या चोरी छिपे   औने पौने दामों में बिकते हैं ....जो चीज़ हमारी agrarian  economy  का इतना बड़ा assett  है वो बेकार हो रहा है .......बेचारी गाय और उसका बछड़ा तो फिर भी कट ही रहे हैं ....चोरी छिपे ही सही ..........तो भैया जिस काम को चोरी छिपे कर ही रहे हो उसे कायदे से कर लो यार ...पर उमा भारती को और बाबा रामदेव को कौन समझाएगा ..........इसलिए .....गोरक्षा जिंदाबाद .........बछड़ा 300  में बेच के ....गाय हमारी माता है ...आगे कुछ नहीं आता है 








Tuesday, October 25, 2011

आपका भगवान् किस जात का है

                                              मेरे एक दोस्त हुआ करते थे  .....यादव जी थे ......एक दिन खबर आई कि  मर गए ......बढ़िया आदमी थे .......भरी जवानी में मर गए ...heart  attack  से मरे थे .......दुःख हुआ .......हम लोग फूंक ताप के आ गए .......कुछ दिन बाद पता चला कि श्रीमान जी जातिवाद की भेंट चढ़ गए ........मेरी बीवी ने पूछा कि दिल की बीमारी का जातिवाद से क्या सम्बन्ध होता है ....क्या ये अहीरों को ज्यादा होती है .......मैंने कहा भाग्यवान ........क्या बेवकूफों जैसी बात करती हो ......वो बोली नहीं ,जैसे यादव जी लोगों के घर दूध मलाई ज्यादा होता है न , हो सकता है कि घी दूध ज्यादा खाने से दिल के मरीज़ हो जाते हों ........अब मेरी बीवी ठहरी पंजाब के शहर की लड़की........ वो क्या जाने की पूर्वांचल में जातिवाद का क्या मतलब होता है .........सो उसे  खोल के समझाना पड़ा ....पूरा डिटेल में ......विस्तार से ....अब बात यूँ है कि जातिवाद हमारे देश में है तो तकरीबन हर जगह ....कहीं कम कहीं ज्यादा .......पर हम पुरबियों ने इसमें कुछ ज्यादा ही महारथ हासिल की है ........देश के बाकी हिस्सों में लोग अपनी जात में शादी करते हैं ...और कुछ ( या काफी सारे ) जाहिल किस्म के लोग अपनी जाती के उम्मीदवार को वोट देते हैं .......बस जातिवाद यहीं ख़तम हो जाता है ...पर हमारे यहाँ पूर्वांचल में ये ज्यादा व्यापक है ........
                                        हमारे गाँव के बगल में एक कस्बा है छोटा सा .....सादात .......वहाँ तीन बड़े intermediate  college  ( + 2  स्तर के स्कूल   ) चलते हैं .....अब तो उनके मैनेजमेंट ने डिग्री कॉलेज भी शुरू कर लिए हैं ........एक राजपूतों का है ....बापू इंटर कॉलेज , एक यादवों का ....समता  इंटर कॉलेज  , और एक भूमिहारों का  , गोविन्द इंटर कॉलेज .......अब आप इलाके के किसी भी लड़के से पूछ लो ....क्या नाम है बेटा  ?????? सुरेश यादव ....  समता में पढ़ते हो  ????? जी हाँ ....अगर नाम है सुरेश सिंह तो बापू में पढता होगा और अगर नाम है सुरेश राय तो गोविन्द में पढ़ेगा ......यानी पढ़ाई भी अपनी जात के स्कूल में .....अब इन स्कूलों में हेडमास्टर से ले कर मास्टर और चपरासी तक सब एक जात के ........मैंने कई बार कुछ parents से ये जानने की कोशिश की कि वो ऐसा क्यों करते हैं .......तो उन्होंने मुझे बताया कि वो उस माहौल में comfortable  फील करते हैं ........अबे तेरा बेटा कोई अफगानिस्तान में युद्ध लड़ने जा रहा है जो तू comfortable  फील करना चाहता है ....अब आइये ज़रा अस्पताल और डाक्टरों की बात करते हैं ....लोग डाक्टर भी अपनी जात का खोजते हैं .......तो मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था जब उनकी पहले दिन तबियत खराब हुई तो घरवाले लाद के ले गए केशव डाक्टर के पास ....केशव यानी केशव यादव .....झोला छाप डाक्टर हैं  ....बड़ा अस्पताल चलाते हैं ..........उन्होंने सुई लगा के घर भेज दिया ...जाओ कुछ नहीं हुआ है ....दूध में हल्दी डाल के पिलाओ ठीक हो जाएगा .........तीन दिन बाद फिर तबियत खराब हुई तो घरवाले फिर लाद फाद के ....सरकारी अस्पताल के सामने से होते हुए पहुंचे कमला यादव के पास ....वो भी झोला छाप .........जब तक उनकी समझ में कुछ आता , यादव जी टें बोल गए ......रोआ राट मची ...लाद के सरकारी अस्पताल पहुंचे ...वहाँ MD cardiologist  था ...उसने revive  करने की कोशिश की ,  पर तब तक पंछी उड़ चुका था .....बाद में पता चला की तीन दिन पहले पहला heart  attack  हुआ था .......उसमे तो बच गए ......दूध हल्दी पी रहे थे ....फिर आज दूसरा हुआ तो वो साथ ही ले गया ..........अगर यादव जी अपना जातिवादी पूर्वाग्रह त्याग कर पहले दिन ही अस्पताल चले जाते तो शायद आज हमारे बीच होते .....पर क्या करें वो कमबख्त सरकारी डाक्टर ब्राह्मण था ....और आप तो जानते ही है कि यी ब्राह्मण कितने कमीने होते है , लिहाजा मेरे दोस्त ,यादव जी ने , जान दे दी पर किसी ब्रह्मण डाक्टर के पास नहीं गए .
                                                 मोदी के गुजरात में ये आरोप लगाया जाता है की वहाँ मुसलामानों का सामाजिक बहिष्कार हो रहा है ....हिन्दू मुसलामानों की दुकान से सामान नहीं लेते .......... ....मेरे एक  दोस्त हैं मुसलमान ......... बड़े पुराने दोस्त है ...कई साल तक हम साथ रहे ...कई साल बाद मैंने ये नोट किया की ये जनाब आज तक कभी किसी हिन्दू की दुकान पे नहीं गए .........अब मुसलमान हलाल meat  खाने के लिए मुसलमान की दुकान से ही खरीदते हैं ..........यहाँ तक तो जायज़ है .......पर उनका तो दही दूध ,कपडा लत्ता ,दावा दारु ,यहाँ तक की छोटा से छोटा सामान भी मुसलमान की दूकान से आता था .........किसी हिन्दू की दुकान पर उन्होंने आज तक पैर नहीं रखा .......फिर मैंने अपने इर्द गिर्द बाकी मुसलामानों को भी नोट करना शुरू किया ........... वो भी अपने मजहब का ही मदरसा ,स्कूल कॉलेज ,university  ,अस्पताल डाक्टर खोजते हैं ...........सुना है कि आजादी से पहले हिन्दुस्तान में रेलवे स्टेशनों पर हिन्दू मुसलामानों के लिए अलग टूटियां होती थीं जहाँ लिखा होता था .....हिन्दू पानी .....और मुस्लिम पानी .........कमबख्त पानी को भी मजहब में बाँट रखा था .........कई ढाबे आज भी दिख जाते हैं ......... ABC हिन्दू होटल ........मैंने इसके बारे में पूछा तो पता लगा कि यहाँ हिन्दू होटल का मतलब शाकाहारी होता था जैसे  यहाँ पंजाब में वैष्णु होटल कहते हैं .......पर हिन्दू मुसलमान आज भी अलग होटलों में ही खाना पसंद करते हैं .........
                                                पिछले दिनों जब देश में जन गणना  होने लगी तो लालू ,  मुलायम ,  शरद यादव और पासवान जैसे नेता हिल गए ....... मनमोहन सिंह की सरकार चाहती थी कि जातीय आधार पे जन गणना न हो ...पर इन बेचारों की तो दुकानदारी ही इनकी जात से चलती है ....जात न रही तो ये कहाँ के रहेंगे .......व्यक्तिगत जीवन में VP singh  बेहद इमानदार आदमी थे ....उनके जैसे इमानदार नेता भारतीय राजनीति में कम ही हुए हैं ........परन्तु राजनैतिक रूप से उन जैसा बेईमान भारतीय राजनीति में न हुआ ......अपनी व्यक्तिगत राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए इस व्यक्ति ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर भारतीय समाज में जातिवाद को बेहद मजबूती से पुनर्स्थापित कर दिया .......अन्यथा 90  के दशक में भारत जाति प्रथा की इन बेड़ियों को तोड़ता लग रहा था  ........ आज 20  साल बाद भी हमारे देश में जाति वाद पल्लवित पुष्पित हो रहा है .......फल फूल रहा है ....नित नयी ऊँचाइयों को छू रहा है .........पिछले दिनों अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में इसका एक रूप देखने को मिला .......बताया गया की दलित और मुसलमान इसमें शामिल नहीं .....क्यों भैया ........तो एक श्रीमान जी हैं ....उदित राज जी ....दलितों के स्वयंभू प्रवक्ता कहाते हैं ....वो बोले ये आन्दोलन है संसद विरोधी ......संसद विरोधी है तो संविधान विरोधी हुआ .........अब संविधान बनाया बाबा साहेब ने , सो जो संविधान विरोधी वो बाबा साहब का विरोधी ...और जो बाबा साहब का विरोधी वो दलित विरोधी .......इसलिए अन्ना हजारे का ये आन्दोलन दलित विरोधी है ....हम इसमें शामिल नहीं होते ....हम इसका विरोध करते हैं .........अच्छा भैया मुस्लिम विरोधी कैसे हुआ  ??????? वो यूँ की RSS  ने समर्थन कर दिया न .....अब जिस चीज़ का समर्थन RSS  करेगा उसका विरोध तो मुसलामानों को करना लाज़मी है .......सो मुसलमान भी अन्ना के आन्दोलन के विरोध में है ............
                                                     पर यहाँ तक तो गनीमत है ........पिछले महीने एक और इलहाम हुआ मुझे  ...वहां गाजीपुर में एक बहुत बड़े संत महात्मा के निजी कक्ष में बैठा हुआ था मैं ...साथ में कुछ और भक्त गण भी थे ....काफी देर बाद ये अहसास  हुआ की सभी भक्त राजपूत थे ....मैंने धीरे से अपने उस मित्र से पूछा जो मुझे ले के गया था ......क्या बात है ......बाबा ठाकुरों से घिरे हैं .....वो बोले हाँ ठाकुरों के ही बाबा हैं ये ........पिछले दिनों एक TV चैनल पे रिपोर्ट आ रही थी कि दो अहीरों ने सोनिया ,  मनमोहन की नाक में दम कर रखा है .........बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने .....सुना है कि दोनों अहीर हैं ..........फिर मुझे ये बताया गया की अपने भगवान् राम ...अरे वही रामायण वाले ...वो भी तो ठाकुर ही थे ......और कृष्ण जी अहीर थे ........सो बाकी जात वालों को बड़ी हीन भावना हुई सो सबने अपनी अपनी जात का भगवान् खोजना शुरू कर दिया ........सो आपको ये जान कर आश्चर्य होगा की वहां पूर्वांचल में भगवान् लोग भी सरनेम लगाने लगे हैं .........
                                                   आधुनिक समय में ये दकियानूसी सोच ख़तम होनी चाहिए ........पर ये दिनोदिन बढ़ रही है .......  भारतीय समाज में एक बहुत बड़े समाज सुधार आन्दोलन की ज़रुरत है जो इस रोग से समाज को मुक्त करा सके ........... अन्यथा भारतीय राजनीती इसे और गहरे गर्त में ले जाएगी .  

                                                 

लालू का बिहार बनता उत्तरप्रदेश


                                              एक बार ट्रेन में एक नेताजी मिल गए थे .....बिहार से थे ......नेता मूलतः बड़ा मजेदार प्राणी होता है .........उससे गप्पें मारने में बड़ा अच्छा टाइम पास होता है , सो अपन शुरू हो गए .........उन दिनों अपने लालू जी सत्ता में थे ......और उन्हें गरियाने में बड़ा सुख मिलता था .........ज़रा सा कहीं मौका मिला नहीं की निकालने लगे भड़ास .....और यकीन मानिए ऐसे जो फेवरिट पात्र होते है ....उन्हें गरिया के बड़ा मज़ा आता है ........इतनी शान्ति मिलती है की आत्मा तृप्त हो जाती है .....यूँ लगता है जैसे तपते रेगिस्तान में बारिश की बूँदें पड़ गयी हों .........
                                       तो उस दिन ट्रेन में तोप के मुह के सामने थे अपने लालू जी ...... और वो जो नेता जी थे वो भी लालू विरोधी ही निकले .........फिर बिहार की बदहाली पर बिहारियों को गरियाने का सिलसिला चल पड़ा .........मुख्य विलेन लालू जी थे ........तो उन नेता जी ने बड़ी अच्छी टिप्पणी की एक ........उनका तर्क था की लालू और उनके आन्दोलन ने बिहार की दलित , दबी कुचली , ज़मींदारों और सामंतों की सताई हुई गरीब जनता को आत्मसम्मान से जीना सिखाया ....और उन्हें इस अगड़े सामंतों के सामने खडा कर दिया ........उन्हें उनके राजनैतिक और सामाजिक हक़ दिलवाए .........अब वो भी ठाकुर साहब और यादव जी के सामने खड़े हो कर गरिया सकते थे ...........उनकी इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ ..........उस दौर में ये ज़रूरी भी था ......पर उसके बाद लालू जी को तुरंत इस अराजकता को सम्हाल लेना चाहिए था  और कानून व्यवस्था और विकास पर ध्यान देना चाहिए था ..........इसमें वो चूक गए और बिहार को उन्होंने 15  साल तक गर्त में धकेल दिया .........अब बमुश्किल नितीश बाबू ने बिहार को सम्हाला है ......एक सज्जन मिले पिछले दिनों ........बिहार से थे ....वो बताने लगे की अब हालात काफी सुधर गए हैं   .....ये की उनके गाँव में बिजली आ गयी है ....बगल वाले गाँव में भी खम्बे गड़ गए हैं .....जल्दी  ही तार भी बिछ जायेंगे  .........मैं आश्चर्य चकित था ...मैंने पूछा ...बिहार में अब आयी  है बिजली ....सन 2011  में ....वो बोले अजी नहीं जनाब .....हमारे गाँव में बिजली तो सन 62 में ही आ गयी थी ........पर लालू जी के राज में जब अराजकता फैलने लगी तो बिजली मिलनी बंद हो गयी ......फिर चोर लोग खम्बों से तार चुरा ले गए .......उसके बाद लोगों ने उन खाली पड़े खम्बों को भी उतार लिया और अपने अपने हिसाब से सदुपयोग कर लिया ..........अब ये बातें आपको अजीब सी लग रही होंगी .....सहसा मुझे भी विश्वास न होता ....पर मैं एक बार 2001 में  बिहार के सिमुलतला ( अब ये झारखंड में है ) में ये नज़ारा देख चुका हूँ जहां पिछले 6  महीने से बिजली नहीं थी क्योंकि तार चोर 8  किलो मीटर तार काट ले गए थे ....इसकी चर्चा मैं अपने पूर्व लिखित पोस्ट  http://akelachana.blogspot.com/2011/05/blog-post_24.html  लालू यादव का सिमुलतला  में भी कर चुका हूँ ........
                                          पिछले दिनों अपने गाँव जाने का मौका  मिला  .......इस बार बनारस से गाजीपुर के बीच बस से यात्रा करनी पड़ी .....वो सड़क जो नब्बे के दशक में एक दम चिकनी हुआ करती थी .....जिसपे हम लोग 100 -120  पे कार दौडाते थे ........उसपे गड्ढे थे ....गड्ढे भी ऐसे वैसे नहीं ........ये बड़े बड़े गड्ढे ....पूरी सड़क टूटी पड़ी थी .........70  किलोमीटर के सफ़र में बस से तीन चार घंटे लग गए .......national  highway -29  है ये ........इसके बारे  में कहा जाता था की 2010 तक ये 4 लेन हो जाएगा .......आज उस सड़क पे चलना दूभर हो गया है .....उधर गुजरात के बारे में सुनते हैं कि वहाँ की गाँव की सडकें भी शानदार बन गयी हैं ........बिहार में सुनते हैं कि जिस सफ़र में पहले चार घंटे लगते थे अब एक घंटे में पूरा हो जाता है ........अगर सड़कों को पैमाना मान लिया जाए तो बिहार गुजरात बनने की ओर अग्रसर है और उत्तरप्रदेश लालू जी का बिहार बन रहा है .........हमारे गाँव में सन 65 में 6 घंटे बिजली आती थी .....आज भी 6 घंटे ही आती है .......बहिन मायावती जी को इतिहास से सबक लेना चाहिए ........मतदाताओं को अपने बिहारी और गुजराती भाइयों से कुछ सीखना चाहिए..........दलित महापुरुषों की मूर्तियाँ और पार्क बनवा कर दलितों में आत्मसम्मान का भाव जागृत करना निस्संदेह आवश्यक है .....परन्तु पेट यदि भरा हो तो शायद ये आत्मसम्मान का भाव ज्यादा देर तक टिकेगा .......तेज़ी से लालू का बिहार बनते उत्तर प्रदेश की जनता को दीपावली की शुभ कामनाएं ........









Sunday, October 23, 2011

भारतीय लोकतंत्र में आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई

                                               बहुत पहले ....उन दिनों ,  जब बिहार में लालू प्रसाद का राज था ....तो टीवी पर एक परिचर्चा आ रही थी . प्रश्न आया की आखिर लालू जी बिहार में कानून व्यवस्था को टाईट क्यों नहीं करते .....इस पर एक सज्जन ने कहा की लालू यादव जान बूझ कर ये अराजकता बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि कानून व्यवस्था ठीक होने से लालू जी का वोटर नाराज़ हो जाता है .......जी हाँ ....एक वर्ग ऐसा भी था जो उस अराजकता को एन्जॉय कर रहा था .......उसी अराजकता से उसकी रोज़ी रोटी ( लूट पाट ) चल  रही थी .........
                                    आज भारत सरकार से ये प्रश्न अक्सर पूछा जाता है की आखिर वो आतंकी घटनाओं पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रही है .......अमेरिका ने दूसरा 9 /11  नहीं होने दिया ......उन्होंने कैसे रोक लिया ........हम क्यों नहीं रोक पाते ...........अब इसका कोई एक सीधा सा जवाब तो नहीं हो सकता .........पर इसका एक बहुत बड़ा कारण भारत का लोकतंत्र ,भारत की राजनीति ज़रूर है ......... आतंकवाद रोकने के लिए भैया सख्ती करनी पड़ेगी .........निगरानी करनी पड़ेगी .....तालाशी लेनी पड़ेगी ......लोगों को पूछताछ के लिए बुलाना पड़ेगा .........मोहल्ले में कौन कहाँ रहता है ...कौन आया कौन गया इसकी जानकारी रखनी पड़ेगी ............अब किसकी निगरानी करोगे ....किस से पूछ ताछ करोगे ........दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है ....तो निश्चित रूप से शक के दायरे में मुसलमान ही रहेंगे ......तो  यहाँ भारत में जैसे ही पुलिस किसी मुसलमान के घर घुसी , बवाल मच जाता है ........देखो बेचारे मुसलमान को सता रहे हैं ...फिर शुरू हो जाता है मीडिया ...सातवें सुर में ........हाय हाय देखो बेचारे मुसलमान को पकड़ लिया ......सिर्फ मुसलामानों से पूछताछ हो रही है .........उसके मदरसे की निगरानी हो रही है .......मोहल्ले में मुसलामानों की गिनती कर रही है सरकार .......हाय हाय  मेरी तालाशी सिर्फ इसलिए ली क्योंकि मैं मुसलमान हूँ .......और सरकार तुरंत दबाव में आ जाती है ....तुरंत गृह मंत्री से बोलती है ..........अरे भाई क्या कर रहे हो  ????? इनका वोट  भी लेना है यार .......पिछले साल जब पूना में बम धमाके हुए तो सरकार ने बाकायदा गृह विभाग को निर्देश भेजा की ...सम्हाल के ....मुस्लिम भाइयों को बुरा न लगे .....पिछले सालों में आम तौर पर आतंकी घटनाओं से सिर्फ मुसलामानों को जोड़ के देखा जाता था ....फिर उसमे एक हिन्दू एंगल जुड़ गया .......समझौता ट्रेन ब्लास्ट और मालेगांव में हिन्दुओं का हाथ पाया गया .......तब जा के सरकार की जान में जान आयी ....चलो मामला कुछ तो बैलेंस हुआ .........और फिर मुंबई के पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे रातों रात मुसलामानों के मसीहा हो गए ...........और फिर जब 26 /11  हुआ तो अंतुले साहब और दिग्विजय सिंह ने बाकायदा बयान  दिया कि  देख लेना भैया ...हेमंत करकरे भी मरे हैं ...कहीं RSS का हाथ न हो ............वाह ...सुभान अल्लाह ........क्या approach  है आतंकवाद के प्रति .......आपको क्या लगता है  ? क्या ये बयान बस यूँ ही दे दिए गए ........26/11 के बाद जब मुस्लिम समाज अपराध बोध से ग्रस्त था ...तो इस एक बयान  ने उस पे मरहम लगाने का काम किया ...चलो हम ही नहीं RSS  भी है आतंकी संगठन ....सिर्फ हम ही नहीं , हिन्दू भी आतंकी होता है .....हिन्दू आतंकवाद जैसी चीज़ भी है दुनिया में ...........और आपको क्या लगता है ? दिग्विजय सिंह ने यूँ ही कह दिया ...." ओसामा जी " .......वो ( कांग्रेस ) जानते हैं की मुसलमान ओसामा को "जी" मानता है ........यह एक बहुत बड़ी और बड़ी कडवी सच्चाई है कि  पूरी दुनिया का मुसलमान ओसामा को हीरो मानता है ......कहीं सरेआम तो कहीं चुपचाप .......तो ओसामा " जी " कहने से वोट मिलते हैं भाई .......नहीं तो ये नेता तो अपने बाप को भी जी न बोलें .........मजबूरी है भारतीय लोकतंत्र की ......14 करोड़ मुसलमान का वोट .........आज भारत के राजनेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को  SIMI और इंडियन मुजाहिदीन जैसा संगठन  बताते हैं ....लालू और मुलायम ,  सिमी पर लगे प्रतिबन्ध का विरोध करते हैं ..........वो कहते हैं कि सिमी पर लगाया है तो RSS पर भी लगाओ ....आपको क्या लगता है कि ऐसा वो क्यों करते हैं .....सिर्फ मुस्लिम जनमानस को संतुष्ट करने के लिए ......आतंकवादी का ठप्पा लगने से पैदा हुए ज़ख्मों पर मरहम लगाने के लिए ........
                              UPA 1  में जब मनमोहन की सरकार आयी तो जो काम सबसे पहले सरकार ने किया वो ये की POTA  हटा दिया  ...ये कह के कि ये draconian  law  है ..... कि इसका दुरुपयोग होता है ....हो सकता है ..........और ये की पहले से बहुत से कानून हैं जो निपट सकते हैं आतंकवाद से .......किसी नए कानून की ज़रुरत नहीं ......लो हो गया मुसलमान खुश .....मिल गए वोट .....हो गया आतंकवाद ख़तम ........नरेन्द्र मोदी ने अरसा पहले GUJKOKA का ड्राफ्ट भेजा था केंद्र के पास ...लौटा  दिया गया ........क्योंकि केंद्र सरकार मानती है कि यह कानून सिर्फ  मुसलामानों को परेशान करने के लिए लाया जा रहा  है .........इस से मुसलमान नाराज़ हो जाएगा ..........जबकि ठीक ऐसा ही कानून शब्दशः महाराष्ट्र में लागू है ..........UPA की सरकार कहती है की वर्तमान कानून ,  जो कि  unlawful activities के लिए है ....वही पर्याप्त है आतंकवाद से निपटने के लिए .........जबकि आतंकवाद से  निपटने के लिए बेहद सख्त कानून की ज़रुरत है ........ज़बरदस्त  राजनैतिक  इच्छाशक्ति की ज़रुरत है ...........परन्तु भारतीय लोकतंत्र में मुसलामानों के वोट का गणित इसकी इजाज़त नहीं देता .
                                   







Tuesday, October 18, 2011

बनारस का लौंगलता ..........bhaag 4

                                                                  कल जब बनारसी भोजन पे लिख रहा था तो सोचा की चलो बहुत हो गया ......पर फिर कुछ ऐसी लाजवाब चीज़ें याद आ गयी जिनके बिना ये पोस्ट अधूरी है ...........यूँ तो बनारस की सारी मिठाई है ही लाजवाब , पर वहां एक ऐसी मिठाई बनती है जो और कहीं नहीं बनती या बिकती ..........उसे कहते हैं लौंग लता ........वैसे पाक कला के विश्लेषक इसे मिठाई मानने से इनकार कर सकते हैं ............मेरे एक मित्र ने इसका विश्लेषण यूँ किया की .........अरे भाई मिष्ठान्न ....यानी की मिठाई .....ये बड़ा नफासत भरा शब्द है ...........इसमें  स्वाद ,सुन्दरता ,नजाकत ,मिजाज़ ,होना ज़रूरी है ........ उसमे महँगी महँगी item पड़नी चाहिए .....खोया ,छेना होना चाहिए ......महंगे मेवे ,बादाम ,काजू ,किशमिश ,पिस्ता ,केसर होना चाहिए ......उसे  चांदी  की वर्क  से सजा होना चाहिए ..........अबे मिठाई कोई पेट भरने की चीज़ थोड़े ही होती है ..........ये तो मज़ा लेने की चीज़ होती है .........कमबख्त लौंगलता इनमे से किसी पैमाने पर खरा नहीं उतरता ..........न इसमें मिजाज़ है ....न नफासत ........न सौंदर्य ........न नजाकत ........मेरे एक और मित्र ने इसका बड़ा अच्छा विश्लेषण किया ........वो कहते हैं की ये बनारस की मिठाई है ही नहीं .........ये गाजीपुर की मिठाई है ( गाजीपुर ,बनारस का पडोसी जिला है ) ........इतनी बेढब ......बेडौल चीज़ बनारसी हो नहीं सकती .....ये गाजीपुर के अहीरों की मिठाई है .........इसे देख के लगता है की गाजीपुर का कोई लठैत खड़ा है ........दुकान में पड़ा यूँ लगता है जैसे  stage  पर विश्व सुंदरियो के बीच कोई पहलवान खडा हो ..........जी हाँ , कमबख्त लौंगलता है ही ऐसा .........मैदे को गूंद कर ........उसे रोटी की तरह बेल लेते हैं ........फिर उसमे थोडा सा खोया और एक चुटकी लौंग डाल के उसे fold  करके घी में deep  fry  कर लेते हैं ....फिर खूब गाढ़ी  चाशनी में डुबो कर निकाल लेते हैं ..........एक खा लो ,पेट भर जाता है ........गली गली में बिकता है .......जितनी दुकान की सब मिठाई बिकती है उतना अकेला बिकता है .......और जो एक बार खा लेता है दीवाना हो जाता है ..........इसके बारे में एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आता है मुझे .....मेरे एक मित्र कलकत्ते में रहते   हैं .....घूमने फिरने और खाने पीने के  बेहद शौक़ीन ....बनारस  आये तो हमने उन्हें लौंगलता भी खिलाया ........वो उन्हें इतना भाया की  उन्होंने 32 पीस घर के लिए pack करा लिए ......और रास्ते में ही सारे खा गए   .....घर तक एक न  पहुंचा  .......  banaaras में इसकी लोकप्रियता को देख के दिल्ली के कुछ हलवाइयों ने इसे दिल्ली में भी introduce  किया था .....इसे नया नाम दिया .......लवंग लतिका ......अब दिल्ली की designer मार्केट में वो कितना टिका होगा ये  मुझे मालूम नहीं ......... पर एक बात तो तय है की दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ....और आजकल के इस  फैशन के दौर में जहां looks का महत्व बहुत बढ़ गया है .....इन बड़े शहरों के हलवाइयों और chefs ने मिठाइयों की शक्ल बदल कर रख दी है....जहां सारा focus शक्ल  पर आ  गया है ...वहाँ का तो slogan हो  गया है  ....fashion के इस दौर में स्वाद की आशा न करें ....स्वाद कहीं पीछे  छूट गया है , पर बनारस की पारंपरिक मिठाई बनाने की शैली में कोई बदलाव नहीं आया है ...वहां आज भी वही पारंपरिक looks हैं ....पर स्वाद गज़ब का है ......और एक बात मैं  इसमें  जोड़ना  चाहता  हूँ  की अगर आप कभी बनारस जाएँ तो मिठाई खाने  के लिए उन दुकानों को ढूंढें जो टूरिस्ट एरिया से दूर  ....कहीं किसी कोने में ......तंग गलियों में हों  .......क्योंकि  tourists को तो कुछ भी परोस दिया जाता है जनाब ....पर असली खांटी बनारसी को आप यूँ ही कुछ भी नहीं खिला सकते .......इसलिए मिठाई उसी दुकान पे खाइए जहाँ  लोकल  बनारसी खाता  है ........पर एक बात और भी है .......बनारस की छोटी से छोटी और घटिया से घटिया दुकान की मिठाई भी किसी बड़े शहर की बड़ी दूकान की मिठाई से अच्छी होती है .........

Monday, October 17, 2011

बनारसी भोजन ..........वाह...... भाग 3

                                    बनारस के भोजन की चर्चा चल रही है .......अब आजकल ढाबों और restaurants पे मिलने वाला खाना तो पूरे देश में एक सा ही मिलने लगा है .........वही घिसी पिटी recipes ..........कहीं  अच्छा  तो कहीं खराब  .......और फिर हमारे tourists भी तो वही घिसे पिटे .............अबे maggi और omlett तो तूने जिंदगी भर खाए ही हैं .....शाही पनीर तो भैया तू रोज़  खाता ही है  ............बनारस आया है यार ....... बनारस की  typical बनारसी dishes खा के देख  ....पर समस्या ये है की न कोई मांगता है न कोई बनाता  है .........पर अपना तो एक नियम  है .......जहां जाओ वहाँ का खाओ  ........कश्मीर में जा के मैंने  कभी रोज़मर्रा वाली चाय नहीं पी ....हमेशा वहां की नमकीन .....नून चाय ही पी ......हिमाचल जाते हैं तो भरसक किसी के घर में as a paying guest  ठहरते है और पहले ही तय कर लेते हैं ....भैया लिंगड़ी  की सब्जी खिलानी पड़ेगी ....ये वहाँ की एक जंगली घास होती है ....बेहद स्वादिष्ट ........सो अगर आप कभी बनारस जाएँ  तो वहां की typical dishes खाइए ....... कुछ आम  तौर पे  मिल जाती है ....कुछ आपको  ख़ास आर्डर  पे बनवानी  पड़ेगी .........सबसे पहले बाटी चोखा .......यूँ बाटी है तो मूलतः राजस्थान का भोजन पर UP ,  Bihaar में खूब खाया जाता है ....पर यहाँ की खासियत है चोखा ......यानी आलू  बैगन  और टमाटर को आग पे भून के ( roasted ) ,mash कर के उसमे ढेर सा कच्चा प्याज  ,लहसुन  ,अदरक , हरी  मिर्च  .........यहाँ  तक  सो सब  ठीक  है ....इसके  बाद  असली  typical   taste   के लिए कच्चा सरसों का तेल ....लो जी तैयार हो गया चोखा ..........ये बाटी चोखा वहां आम तौर पर ठेलों पे खूब बिकता है .........इसके अलावा मकुनी .......आटे में सत्तू की मसालेदार filling की deepfried balls ...........इसे  चटनी के साथ खाते है .......और फिर सुबह मिलने वाली घुगनी .....वाह ......काले चने की सूखी मसालेदार चटपटी करारी सब्जी ....कुल्हड़ में गर्मागर्म चाय के साथ ..........ये सब वहाँ का street food है ......ठेलों पर बिकता है .........अब कुछ ऐसी dishes जिन्हें खाने के लिए आपको मेरे  जैसा  कोई ठलुआ  दोस्त  ढूंढना  पड़ेगा  .........निमोना  .....यानी  हरे  मटर  को shallow fry   कर के ...सिल  पे बारीक  पीस  के उसकी thick gravvy में मसालेदार  preperation .......एक और typical बनारसी dish ....जिसे ज्यादा बनारसी भी न जानते होंगे ..........मूछी  .....ये एक ऐसी कढ़ी  है जो बिना दही के बनाई जाती ........बेसन की मसालेदार gravvy में बेसन की deep fried बूंदी ........एक और बेसन की बड़ी  मजेदार दिश .....खड़रा  कहते हैं इसे ......बेसन को खूब गाढ़ा फेंट के उसमे spices ,नमक मिर्च मिला के तवे पे shallow fry करते हैं  .....फिर मसालेदार gravvy बना के उसमे इन्हें डाल के cook करते हैं ....एक और बेहतरीन पुरबिया dish ........पर भैया बनारस में जा के अगर दलघुसरी न खाई तो जनम व्यर्थ ..........तो लीजिये साहब पेश है दलघुसरी .........यानी चने की डाल की पूड़ी ........चने की दाल में लहसुन ,कुछ spices , और नमक डाल के  उसे खूब boil करते हैं ......पानी सुखा कर उसे अच्छी तरह mash कर के इसकी filling कर के deepfried पूड़ी बनायी जाती है जिसे एक typical पुरबिया  चटनी के साथ खाते हैं .........इसका combination है बखीर ....वाह........ another yummy बनारसी   dish ....ये एक खीर है .....बिना दूध की ......जी हाँ गन्ने के ताज़े रस में cooked चावल की खीर ......ये आमतौर पे रात में बनाई जाती  है ...सर्दियों में .........एक और बेहतरीन dishहै .....इसमे आटे  में  बहुत से मसाले डाल  कर खूब कड़ा गूंद  लेते हैं  ....फिर उसके balls   बना के उबलती  हुई दाल में  डाल देते हैं  ....१५ -२० मिनट  पाक जाने  के बाद उसे निकाल कर deep fry करते हैं  .....फिर उसी दाल के साथ खाते हैं  ........इसका नाम तो मुझे मालूम नहीं  पर  बेहद स्वादिष्ट होती है ये ....खास तौर  पे तब जब  दाल में  हींग  का तडका लगा  हो .............ये सारी  dishes आम तौर पे कही किसी restaurant  में नहीं मिलेगी .....इन्हें आपको किसी के घर बनवा के खाना पड़ेगा ................इसके अलावा और न जाने क्या क्या ......non veg dishes भी हैं बहुत सारी ......जैसे पूर्वांचल में मछली बहुत शौक से खाई जाती है ....... इसके अलावा हांडी में बना गोश्त ......मिटटी की हंडिया में गोहरे ( कंडे,उपले ) की धीमी आंच पे दही की मलाई में बना खड़े मसालों के साथ बना मुर्गा या बकरा ............इसके अलावा बनारस शहर में रात को दूध पीने का रिवाज़ है ........जगह जगह लोहे की बड़ी बड़ी कडाहियों में धीमी आंच में उबलता दूध ....जिसे कुल्हड़ में serve किया जाता है  ..........इसी के साथ रबड़ी खाने का भी चलन है ...........दूध और दूध से बनी सारी चीज़ें बनारस में लाजवाब होती हैं ..........
                                                           अगर आप चाय के शौक़ीन हैं तो आप जीवन की सबसे स्वादिष्ट चाय यहाँ पी सकते हैं ..........दो किस्म की चाय मिलती है यहाँ ........एक वो जो आमतौर पर हर जगह मिलती है .......यहाँ उसके साथ butter toast खाने का रिवाज़ है ........पर इसे मैं चालू चाय मानता हूँ ....ख़ास शौकीनों के लिए ख़ास चाय .......ख़ास ख़ास जगहों पर देर शाम और आधी रात तक मिलती है .........वो है बनारस की असली चाय .........देर तक केतली में उबलती खूब strong चाय .....उसे ग्लास में छान के ....उसमे आपके  taste के हिसाब से चीनी और खौलता दूध ऊपर से मिलाते हैं .........बेहतरीन बनारसी चाय ..........
                                                  इन सबके अलावा , बनारस एक अत्यंत लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पर्यटक केंद्र है, इसलिये यहां तमाम विदेशी और देशी cuisines के बेहद लोकप्रिय restaurants है ......जहां  italian, mexican, japanese, israeli  ,korean ,russian ,thai  ,राजस्थानी ,गुजराती ,south  indian  सब  मिलता है .........
बनारस से इश्क की दास्ताँ अगले अंक में जारी रहेगी ..........



ऐ मेरे शहर ए बनारस.......भाग 2

                                                तो बात चल रही  थी बनारस की संगीत परंपरा की ...........कबीर चौरा से जो परंपरा शुरू हुई वो धीरे धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गयी ........बनारस चूंकि प्राचीन काल से ही शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा इसलिए पूरे विश्व से छात्र वहां आते रहे हैं ...........यही संगीत में भी हुआ .......जहान  भर से संगीत के छात्र आते रहे और सीखते रहे ....आज हिन्दुस्तानके शास्त्रीय संगीत में बनारस घराने की छाप दिखती है ......यहाँ के उस्ताद लोग  गुरु शिष्य परंपरा में अपने चेलों को बिना कोई पैसा लिए सिखाते हैं .......लड़के पहले तो गुरु के घर में ही रहते थे ......अगर जगह न हो तो बाहर कहीं कमरा ले लेते हैं ..........आज भी आप कबीर चौरा चले जाएँ तो हर कोने से संगीत की स्वर लहरियां उठती सुन जायेंगी ...............बनारस अत्यंत प्राचीन काल से धर्म और संस्कृति का केंद्र रहा ......हमेशा से ही लोगों को आकृष्ट करता रहा ........हिंदुत्व में चूंकि कभी कोई बंधन नहीं रहा ...सोचने की और पूजा पद्धति की पूरी आजादी रही इसलिए हमेशा बनारस में नयी सोच पनपती रही ........वो चाहे आज से 2700  साल पहले महात्मा बुद्ध रहे हों या हाल के कबीर या रविदास ..........बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ यहाँ बनारस में .......सारनाथ ,  कोई 6 -7  किलोमीटर दूर एक घना जंगल  हुआ करता था कभी ....जहाँ गौतम बुद्ध ध्यान लगाते थे ....आज सारनाथ एक बहुत बड़ा tourist  spot  है जहाँ सारी दुनिया के buddhists  चले आते है ...शांति की खोज में ..........
                                                   संस्कृति और शिक्षा का केंद्र होने के कारण दुनिया जहां के लोग यहाँ आते रहे और यहीं के हो कर रह गए ....इसलिए इस क्षेत्र में कलाओं के विकास हेतु एक ऐसी ज़मीन तैयार हुई जिसमे  आज तक फसल लहलहा रही है  ......सभी ललित कलाएं यहाँ पनपी ...संगीत हो या साहित्य , चित्र कला .....नाट्य ....नृत्य........ तुलसी ने रामचरित मानस का बहुत बड़ा भाग यहाँ गंगा किनारे , बनारस में बैठ के लिखा ...वो जगह आज तुलसी घाट कहलाती है और उसकी मूल पांडुलिपि का एक भाग आज भी यहाँ सुरक्षित रखा है .......प्राचीन भारत के संस्कृत साहित्य से शुरू हुई परम्परा आज भी जीवित है ....आज भी जो  साहित्य बनारस में लिखा पढ़ा जाता है उसकी मिसाल देश में नहीं मिलती .........
                                                    बनारस चूंकि शुरू से धर्म और संस्कृति का केंद्र रहा इसलिए यहाँ ज्यादा रुझान सरस्वती की साधना का रहा ....लक्ष्मी के उपासकों के लिए कुछ था नहीं ......सो सरस्वती के साधकों की फक्कड़ मस्ती और अलमस्त जीवन शैली बनारस में रच बस गयी ..........काशी शिव की नगरी थी .....भांग शिव को बेहद प्रिय थी ......सो उनके उपासकों ने भी शुरू कर दी .......काशी की भांग ठंडई ( बादाम के साथ भांग घोट का बनाया गया अत्यंत स्वादिष्ट पेय ).........आज भी गली गली में बिकती है ....पर आप कृपया सावधानी से ग्रहण करें .....हालांकि दुकानदार नए लोगों से पूछ लिया करते है ....क्यों बाबू....चलेगा घोटा  ?????? आप हलकी फुलकी मिलवा सकते हैं .........अब भांग पीने के बाद कमबख्त भूख बड़ी तेज़ लगती है ......सो बनारस का भोजन .......वाह .....वाह .....क्या बात है .....इसपे तो मैं 4 -6  पोस्ट्स लिख सकता हूँ  ....सो बनारस में भोजन की शुरुआत होती है सुबह के नाश्ते से .........ऐसा बताते हैं की पुराने ज़माने में कोई बनारसी कभी घर पे  नाश्ता नहीं करता  था ......वहां जगह जगह दुकानों पे और ठेलों पे कचौड़ी जलेबी बिका करती थी ....आज भी बिकती है ....एक पूरी गली है बनारस में ....नाम है कचौड़ी गली ......वो केंद्र था कभी बनारसी नाश्ते का ........अब ये कचौड़ी असल में पूड़ी है जिसे थोडा अलग ढंग से बनाते हैं .........उसमे उड़द की दाल की पीठी भरते है और उसे करारा कर के तलते है .........पहले देसी  घी  में बनती  थी ...अब refined  में बनाते हैं .......साथ में सब्जी .....आज भी दोने और पत्तल (पेड़ के पत्तों से बनी use  and  throw plates )  में ही परोसते हैं .....फिर उसके बाद जलेबी ........ये कचौड़ी और जलेबी का combination  है ....जैसे coke  और चिप्स का है ........अब जलेबी तो दुनिया जहां में बिकती है ....पर बनारस की जलेबी की तो बात ही कुछ और है .........यूँ  बात तो बनारस की हर मिठाई  की अलग है ......बनारस शुरू से मिठाई  का गढ़  रहा है ....ऐसा बताते हैं की शिव जी को रबड़ी बहुत पसंद थी .......सो माता पार्वती का पूरा दिन रबड़ी बनाने  में ही बीत जाता था ....लोग बताते हैं की आज भी बनारस में वैसे  ही रबड़ी बनती है जैसी   पार्वती जी बनाती  थी  ........बनारस की रबड़ी मलाई  ...वाह ....इसके  बाद बर्फी  .......रसगुल्ले ........गुलाब जामुन.......खीर मोहन और न जाने क्या क्या ........   ये मिठाइयाँ  तो दुनिया जहान में बनती  हैं पर जो बात बनारस में है वो कहीं नहीं .....जैसे जो बात कलकत्ते के सन्देश में है वो कहीं और आ ही नहीं सकती  ......
                                   एक बहुत बड़े हलवाई ने एक बार नई दुकान खोली अम्बाला में ...कारीगर मंगवाए  बनारस से ........पर वो बात नहीं आयी   ......मालिक ने पूछा क्या हुआ  ???????? कारीगर बोले .......बाबू ,  असली दम वहां के मावे  ( खोया )में होता  है .....सो भैया मावा बनारस से आने लगा ....पर वो बात नहीं आयी ........तो कारीगर बोले अजी वहां का पानी ही कुछ और है ....तो मालिक बोला ...अबे मिठाई में कौन सा पानी पड़ता है ??????? अजी आबो हवा का फर्क पड़ता है ........बनारस की आबो हवा में ही कुछ बात है ............
बनारस की लस्सी के बिना तो कहानी  पूरी हो नहीं सकती  .....दुनिया की सबसे अच्छी लस्सी बनारस में बिकती है ....एकदम गाढ़ी  ......मजेदार  .......yummmmy   .......ये   पंजाब हरियाणा की लस्सी तो लस्सी के नाम पे कलंक है .......... तो ये तो था नाश्ता ........अभी तो दोपहर का भोजन बाकी है फिर शाम को जो बनारस में चाट का culture  है वो लाजवाब है ..........और फिर पान ......पान के बिना तो दास्ताने बनारस अधूरी रह जायेगी ...........पर वो अगले अंक में ........पढ़ते रहिये ....फिर हाज़िर होते हैं ब्रेक के बाद ............




 

Sunday, October 16, 2011

दास्तान - ए - इश्क -ए - बनारस .........भाग 1

किसी ज़माने में मशहूर शायर और फिल्मकार गुलज़ार साहब ने एक सीरियल बनाया था ........मिर्ज़ा ग़ालिब .......उसमे दिखाया था की मिर्ज़ा कलकत्ते जाते हुए बनारस में रुके ....और बनारस उन्हें इतना भाया की वहां 6 महीने रुके रहे जबकि उन्हें कलकत्ते पहुँचने की बड़ी जल्दी थी ............जब चलने लगे तो आह भर कर बोले की अगर ज़माने की मजबूरियां न होती तो बनारस में ही रह जाते .....फिर जाते जाते एक बात और कह गए  .....ऐ खुदा .....बनारस को बुरी नज़र से बचाए रखना ...........खैर  ये तो बड़ी पुरानी बात हो गयी  ........फिर एक बार मेरा एक बड़ा पक्का यार जो की  basketball का coach है , एक टूर्नामेंट में बनारस आया ....मैं उससे मिलने गया ....सारी बातों के बाद पता चला की जनाब बड़े खफा हैं ....मैंने पूछा अबे हुआ क्या ......वो बोला ........गंदे घटिया  लोग और गन्दा घटिया शहर .......फिर मैंने वो मिर्ज़ा ग़ालिब की बात बतायी .............तो वो बोला की ज़रूर मिर्ज़ा को गंदगी बड़ी पसंद होगी.......... मैंने कहा   ,चलो माना की शहर गन्दा है   पर   लोगों   ने क्या कर दिया  ...वो क्यों  गंदे और घटिया हो गए ........फिर जो उसने किस्सा सुनाया वो यूँ था की BHU में जो बास्केटबाल का टूर्नामेंट चल रहा था उसमे ये लोग officiating कर रहे थे ...और वहां कुछ लड़के जो मैच देख रहे थे वो बीच बीच में रेफ़री को गरिया रहे थे ...सो रेफ़री साहब ने आयोजकों से शिकायत की की इन्हें रोको .....तो आयोजक बोले ....अरे साहब इन्हें अपना काम करने दीजिये और आप अपना काम करिए ........अरे साहब कमाल करते हैं आप ....हम क्या यहाँ  गालियाँ सुनने आये हैं ......अजी नहीं साहब ये गालियाँ नहीं .....ये तो शिव जी का प्रसाद है ......तो आप यूँ कीजिये ...आप ही ये प्रसाद  बोरे  में भर के ले  जाइए  ...हमें  नहीं चाहिए  ........और रेफ़री साहब ने मैच रोक  दिया ....फिर उसके  बाद  गा गा  के ......और भिगो  भिगो के जो गालियाँ वहां गाई गयीं  और किस तरह वो टूर्नामेंट ख़तम हुआ वो भी एक किस्स्सा  ही है ...........तो ये किस्सा सुन  के मैं बड़े जोर  से हंसा और बोला ....तुम  नहीं समझोगे  बेटा  ....शहरे  बनारस की  ये गालियाँ वाकई  शिव जी का  प्रसाद है .........ले जाओ  ........
                                             अब आपको भी ये पढ़ के अजीब सा ही लगेगा ....जी  हाँ बनारस में गालियाँ गाई जाती है , ख़ास मौकों पर .....ख़ुशी के मौकों पर ...ठेठ  बनारसी अंदाज़ में एन्जॉय करने के लिए........ बड़ा निराला शहर है ....बनारस ........मुझे  इश्क है बनारस से ....बनारस है ही इश्क करने लायक .......ऐ खुदा बनारस को बुरी नज़र से बचाए रखना .......कुछ शहर होते हैं ....कुछ राजधानियां  होती हैं ....पर कुछ संस्कारधानियां होती हैं .......कहते  हैं की हिन्दुस्तान  में जो संस्कार धानियां थीं या हैं वो हैं बनारस , कलकत्ता , पूना ,और जबलपुर ...........सुनते हैं एक और हुआ करती  थी संस्कारधानी  .....पर शायद उसके लिए किसी ने दुआ न की और उसे बुरी नज़र लग गयी ....लाहौर ........
                                            कहाँ से शुरू करूँ ,  दास्ताने इश्क ए बनारस .....या काशी ...........लोग कहते हैं की दुनिया का सबसे पुराना शहर है .......शिव की नगरी है ...गंगा जी की नगरी है .......काशी ........मंदिरों का शहर है ....बताते हैं की पचास हज़ार से ज्यादा मंदिर हैं छोटे बड़े ......इतने सारे मंदिर  ??????  दरअसल काशी  की पुरानी परंपरा रही है .........जब भी कोई  घर बनाता  था , उस ज़माने में ......तो घर के बाहरी हिस्से में सामर्थ्य के अनुसार छोटा या बड़ा ...... मंदिर ज़रूर बनवाता था ...जैसे  आजकल  लोग अपने घरों  में पूजा का एक कमरा  बनवा  लेते हैं .......आज भी वो मंदिर यूँ ही खड़े हैं बनारस के हर कोने में ..........सो मंदिरों का शहर है बनारस ........कुछ लोग भूतों  का शहर भी कहते हैं .....city of ghosts ....वो यूँ की हज़ारों सालों से भारत में मान्यता रही है की काशी में मरने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं ........सो लोग अपने अंतिम दिन बनारस में बिताते हैं ....आज भी हज़ारों लोग मरने के लिए बनारस आते हैं .....(ख़ुदकुशी करने नहीं ) वो चाहते हैं की अंतिम सांस काशी में निकले ..........और जो यहाँ मर न सके ...उनकी इच्छा होती है की की अंतिम संस्कार ही काशी में हो जाए गंगा किनारे .........सैकड़ों संस्कार होते हैं आज भी यहाँ मणिकर्णिका घाट पे और हरिश्चंद्र घाट पे ....वहां जहाँ कहते हैं की राजा हरिश्चंद्र के ज़माने से आज तक कभी आग न बुझी ....लाखों साल हो गए .........
                                            खिचे चले आते हैं लोग ...सिर्फ मरने वाले ही नहीं .......जीने वाले भी ........अलमस्त जिंदगी जीने वाले भी ........सबकी अपनी अपनी वजहें है ..........tourists के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है बनारस ..........हर किस्म के टूरिस्ट के लिए ........देसी हो चाहे विदेशी ......तीर्थ यात्रा काशी के बिना पूरी नहीं होती ...तीन लोक से न्यारी काशी ......ऐसा कहते हैं ....... पर इन गोरों को क्या मिलता है .........गंगा किनारे घाटों पर पड़े रहते हैं .....तंग सीलन भरी गलियों में घूमते रहते हैं ....कुछ गलियां तो इतनी तंग हैं की एक साथ दो आदमी निकल नहीं सकते .......एक अजीब सी कशिश है इन गलियों में .........गंगा किनारे इन घाटों पर .....यूँ तो गंगा आधे हिन्दुस्तान में बहती है .......पर बनारस की गंगा की तो बात ही कुछ और है ...........और यहीं गंगा के किनारे एक ऐसी अलमस्त फक्कड़ जीवन शैली ने जन्म लिया .......बनारस अपने फक्कडपन के लिए जाना जाता है .......किसी ज़माने में ,ठेठ बनारसी अंदाज़ में , लोग अलस्सुबह सूर्योदय से पहले गंगा किनारे पहुँच जाते थे .......वहां घंटों निपटना नहाना ,फिर विश्वनाथ जी के दर्शन करना , फिर भांग ठंडई.और बनारसी लस्सी के बाद ....ठेठ बनारसी नाश्ता ....कचौड़ी जलेबी का ......वाह क्या बात है ........साक्षात माँ अन्नपूर्णा विराज जाती हैं  ...बनारस के ठेलों पर सुबह नाश्ते के समय ..........आज भी .........कभी बनारस आयें तो बनारस की कचौड़ी जलेबी का नाश्ता करना न भूलें ...........सुबह चार बजे का निकला बनारसी 10 बजे घर पहुँचता था ................क्या अलमस्त फक्कड़ जीवन रहा होगा  उन दिनों ...........और इसी फक्कडपन से निकली ,बनारस में गाली गाने की परंपरा .........जी हाँ हर ख़ुशी के मौके पर ...या जब भी मस्ती का मूड हो .....जो की बनारसियों का हमेशा रहता है ........बारहों महीने चौबीसों घंटे .........वो गरियाते हैं ........गाली गाई  जाती है ...कविता में ....लोक गीतों में ....स्वर में गा गा के गरियाते हैं ......जी हाँ बनारस में गालियों का पूरा साहित्य है ....नित नयी गालियाँ  ईजाद होती हैं .....फिर मज़े ले ले के सुनायी जाती हैं .....होली पे तो बाकायदा एक कवि सम्मलेन होता है .......गालियों का .......अस्सी घाट पे ....हज़ारों की भीड़ जमा होती है .........एक से एक धुरंधर कवि जुटते हैं .........और फिर जो गालियों भरी कविता का दौर चलता है रात भर .....उसकी बाकायदा एक किताब छपती है हर साल .....कैसेट,CD  निकलती है ........अब आप ही बताइये बनारस की गालियाँ शिव जी का प्रसाद न हुई तो क्या हुई ????????
                                            पर यूँ न समझिएगा की बनारस में सिर्फ गाली ही गयी जाती है .....वहां एक गली है जनाब .......नाम है कबीर चौरा .....उस एक गली में  आज तक जितने संगीतकार हुए उतने पूरे मुल्क में न हुए  ....बनारस घराना शास्त्रीय  संगीत का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध घराना है ............आज भी बनारस में हज़ारों संगीतज्ञ रहते हैं ...........एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आता है .........संकट मोचन मंदिर में संगीत सम्मलेन चल रहा था ....हम दोनों मियां बीवी बैठे थे .......पंडाल खचा खच भरा था ......तिल रखने की जगह न थी  .....सबसे अंत में पंडित जसराज का गायन था .....रात ढाई बजे वो बैठे .............भीड़ चंपी हुई थी ...मेरी पत्नी जालंधर से गयी थे ...वो बोली ...अरे भीड़ तो जालंधर में भी होती है पर रात के ढाई बजे तो हॉल खाली हो ही जाता है ..........तो बगल में बैठा बनारसी बोला ....दरअसल वहां के लोग संगीत भी सुनते हैं ......पर बनारसी संगीत ही सुनते हैं ........जालंधर में भी संगीत सम्मलेन होते हैं ........साल में 3 -4 .....बनारस में रोज़ होते है 2 -4 .........
बनारस से इश्क की ये दास्ताँ आगे भी जारी रहेगी ..........



खूबसूरत मकबरे में दफ्न सपने

                                            असली नाम तो याद नहीं ,पर प्यार से रानी कहते थे उसे ........बाप बचपन में ही मर गया था .....तहसीलदार हुआ करता था ............उसकी जगह मां को अनुकम्पा नियुक्ति मिल गयी थी ...........तीन भाई बहन थे ............वो सबसे बड़ी थी . मां ने अच्छे से पढ़ाया लिखाया था .....अच्छे से यानी दसवीं ,  बारहवीं और BA .........बेटा सबसे छोटा था .....बेटा ....वो भी सबसे छोटा , तो लाडला होना तो जायज़ ही है .....बेटे को एक प्राइवेट  कॉलेज से इंजीनियरिंग कराई और  बेटी को स्थानीय कॉलेज से BA...... फिर BA कराने के बाद उसे यहाँ भेज दिया था .....अपने ननिहाल जहां उसके मामा और नाना उसके लिए लड़का ढूंढते थे ........जिससे कि उसकी शादी हो जाए .......किसी तरह ........बड़े बड़े सपने देखा करती थी ......बड़ी बड़ी बातें किया करती थी .......आगे और पढना चाहती थी .......खूब खूब पढना चाहती थी ..........बड़ी मस्त लड़की थी .....जोर जोर से हंसती थी ....फिर मुझ जैसा बातूनी और गपोड़ी साथ बैठा हो तो माहौल ही  अलग टाइप का बन जाता है ........सो हम लोग सारा दिन बैठ के गप्पें मारते थे ......मै सारा दिन उसे किस्से सुनाता था ......बहस  होती थी ....हर विषय पर वो अपनी राय रखती थी ........कभी उसने मेरी हाँ में हाँ नहीं मिलाई .......हर बात में एक नया तर्क देती थी .......उसकी अपनी एक personality थी ..........मैं उसे कहा करता था कि  तुम्हे तो वकालत करनी चाहिए ........या फिर पत्रकारिता .......इसपे वो एकदम चुप हो जाती थी .......उसे  इस बात का तनाव रहता था की उसकी शादी को ले कर पूरा परिवार परेशान रहता था .........पूर्वांचल में पढ़ी लिखी ( ये " पढ़ा लिखा " शब्द बड़ा जटिल है और इसका अर्थ बड़ा व्यापक होता है ) लड़की की शादी बहुत बड़ा काम होता है ....इतना बड़ा , atlantic ocean को तैर के पार करने जैसा ...........लड़की इस बात से तनाव में रहती थी कि  वो कितना बड़ा बोझ है अपने परिवार पर ..........खैर किसी तरह उसकी शादी हो ही गयी ....बनारस के एक अच्छे परिवार में ......उसके ससुर एक बैंक के बड़े अधिकारी थे ....उसका पति दिल्ली की किसी  कम्पनी में काम करता था .........अच्छा ख़ासा सम्पन्न परिवार था . शादी  के बाद उससे संपर्क टूट गया ..........फिर एक दिन , 2 -3 साल बाद मैं बनारस किसी काम से गया था ,किसी से मिलने .....फिर मुझे अचानक ये अहसास  हुआ कि  मैं तो रानी के घर के सामने से ही निकल रहा हूँ ,और मैंने बस यूँ ही , अनायास ही घंटी बजा दी .....एक छोटू टाइप लड़के ने दरवाज़ा खोला ,फिर एक बुज़ुर्ग महिला आयीं .........और फिर उन्होंने रानी को बुलाया ......वो मुझे देख के आश्चर्य चकित थी ,कि  मैं कहाँ से टपक पड़ा और मैं उसे देख के आश्चर्य चकित था कि  इसे क्या हो गया ,  वो चमकती बनारसी साडी में ,गहनों से लदी फदी ,ऊपर से नीचे तक ,और पूरे फ़िल्मी मेकप  में ..........सोलहों श्रृंगार किये .....अब मैं ठहरा एक नंबर का हंसोड़ ,गंवार और मुहफट आदमी ......मैंने छूटते ही उससे पूछा , ये क्या नाटक फैला रखा है .....एकता  कपूर  की शूटिंग  चल  रही है क्या घर  में  ????????  पर उसे जवाब  देने  का मौका  नहीं मिला  क्योंकि  वो उसकी सास  टाइप औरत  उसके बगल  में आ  कर बैठ  गयी थी ..........लगभग आधा घंटा रहा मैं वहां पर .....उसकी सास जमी रही वहीं पर .........चाय नाश्ता  हुआ .....इधर उधर की बातें हुई .........क्या करती हो आजकल सारा दिन ??????  करना क्या है .....टीवी देखती हूँ सारा दिन .........मैंने पूछ लिया कुछ करती क्यों नहीं ......जवाब उसकी सास ने दिया .......किस चीज़ की कमी है घर में ????? ज़रुरत ही क्या है कुछ करने की  ???????? हमें कोई बहू से नौकरी करवानी है ??????? अब इसके बाद पूछने के लिए कुछ बचा न था ........बहुत सी बातें हुई इस दौरान .......मूक भाषा में ........जब तक मैं वहाँ रहा ...हम बातें करते रहे ..........उसी मूक भाषा में ........मैंने पूछा उससे ....क्या हुआ उन सपनों का .....जो तुम देखा करती थी ..........वो बोली , दब गए इन गहनों के बोझ तले ........मैंने पूछा कहाँ गयी वो हंसी ....जो तीसरे मोहल्ले भी सुनायी देती थी .......छुपी हुई है , मेकप की इस मोटी परत के पीछे ..........क्या करती हो सारा दिन  ?????? एक चमकती हुई ट्राफी की तरह पड़ी हूँ इनके drawing room में  .........क्या हुआ तुम्हारे career का .....फुल टाइम house wife होना भी तो career ही है .......
                                                         पिछले दिनों उस लड़की के मामा आये थे मुझसे मिलने ....मैंने पूछा कैसी है रानी .......कहाँ है ..........क्या करती है ??????? वहीं रहती है बनारस में ......बहुत खुश है ....बहुत सुखी है ....एक बेटी है .....भरा पूरा परिवार है ....किसी चीज़ की कमी नहीं है ...........अजी कुछ करने की ज़रुरत ही नहीं ....बड़ा सम्पन्न परिवार है .......मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि जा कर उसे देख आऊँ .......एक खूबसूरत मकबरा है वो........संगे मर्र्मर्र का ........ जिसमे दफ्न है उसके वो सारे सपने