Sunday, March 20, 2011

सज़ा तो बच्चों को मिली .......

अमृतसर का एक बहुचर्चित केस है ....एक नर्स ने अपने अस्पताल से मंजू नामक महिला का एक नवजात बच्चा एक औरत रंजीत कौर को चार लाख में बेच दिया और उसकी जगह कहीं से ला कर एक लड़की रख दी ।लड़का अपने नए घर में अमर प्रताप के नाम से सिख रीति रिवाज़ से पलने लगा और लड़की मुस्कान के नाम से ....... 5 साल बाद वो नर्स ऐसे ही एक अन्य केस में पकड़ी गयी तो ये केस भी खुल गया । अब मंजू एवं उनके पति हरीश ने अपना लड़का वापस लेने के लिए केस कर दिया ......तीन साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद विद्वान् जज ने मंजू एवं हरीश के पक्ष में फैसला देते हुए अमर प्रताप को उनको सौंप दिया और नर्स रमेश रानी , रंजीत कौर और उसके पति सुखविंदर सिंह को 7 साल की सज़ा सुना दी । साथ ही पुलिस को यह आदेश भी दिया की मुस्कान के असली मां बाप का भी पता लगाया जाये ..... ऊपरी तौर पर देखा जाये और कानून की दृष्टि से देखा जाये तो यह एक सीधा सादा केस है जिसमे न्याय हुआ है ....दोषियों को सज़ा मिली है .....मिलनी भी चाहिए ।
परन्तु इस केस में दो निर्दोष बच्चे मारे गए है .....सबसे बड़ी सज़ा उन्ही दोनों को मिली है । मानवीय दृष्टिकोण से उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है .कृपया इन तथ्यों पर गौर करें ....

1) अमर प्रताप ने अपना सारा जीवन रंजीत कौर की गोद में बिताया ....उसने उसे बहुत प्यार से पाला .....कोर्ट केस के दौरान वो जब भी कोर्ट में आता था तो अपनी मां (रंजीत कौर ) से चिपका रहता था। यदि उसे उस से दूर करने की कोशिश की जाती थी तो जोर जोर से रोता था । अब उसे एक विद्वान जज के आदेश पर हमेशा के लिए अपनी मां से दूर कर दिया गया है ....

२) मुस्कान सांवले या यूँ कहें की काले रंग की एक बच्ची थी जिसे नर्स किसी झोपड़ पट्टी से खरीद लाई थी । हरीश और मंजू को पहले ही दिन से शंका रहती थी की कुछ गड़बड़ हुई है । क्योंकि उसकी शक्ल सूरत उनके परिवार में किसी से भी नहीं मिलती थी , फिर भी उन्होंने मुस्कान को लाड़ प्यार से पाला । आज मुस्कान 11 साल की है और ये जानती है की मंजू एवं हरीश उसके असली मां बाप नहीं हैं ...वो किसी झोपड़ी में पैदा हुई थी ।

3) अमर प्रताप का नाम अब बदल गया है....शुरुआत उसने एक सिख बच्चे के रूप में की थी पर अब उसके केश काट दिए गए हैं और उसे हिन्दू रीति रिवाज़ से पाला जा रहा है .....

4) अमर प्रताप ये जानता है की उसके असली मां बाप जेल में हैं ...और ये लोग ....हांलाकि अच्छे लोग हैं ........प्यार भी करते हैं .......फिर भी ......

बच्चा कानून नहीं जानता ........उसे कानून से कोई मतलब नहीं ...कानून गया भाड़ में .......वह तो सिर्फ इतना जानता है की उसकी माँ ....जो उसे दिलो जान से प्यार करती थी .......उस पे जान छिड़कती थी...... उस से छीन ली गयी है । आज जेल में है ......मुस्कान ये जानती है की ये मेरे असली मां बाप नहीं ....मैं तो किसी झोपड़ पट्टी में पैदा हुई थी .......भाग्य ने यहाँ पंहुचा दिया ......पर अब चूँकि घर का असली वारिस मिल गया है ......तो ......
आज तो दोनों बच्चे छोटे हैं ....पर बहुत जल्दी बड़े हो जायेंगे ......आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में जब डाक्टर अंग प्रत्यारोपण करते हैं तो उन्हें एक ही चिंता रहती है ......कि शरीर कहीं नए अंग को reject न कर दे । क्या guarantee है कि कुछ साल बाद जब अमर प्रताप 18 साल का हो जायेगा , तो अपनी असली मां को नहीं ढूंढेगा ......अक्सर हम लोग अखबारों में पढ़ते हैं कि फिजी, सूरीनाम , और मारीशस जैसे देशों से लोग अपने पुरखों का गाँव घर खोजते हुए आते हैं .......अनाथालयों से गोद लिए गए बच्चे अपने असली मां बाप को ढूँढने की कोशिश करते हैं .....यहाँ तो एक सयाने बच्चे को उसकी मां से ज़बरदस्ती ले लिया गया है .......बताया जाता है कि जब अमर प्रताप को अंतिम बार उसकी मां से अलग किया गया तो वहां एक ह्रदय विदारक दृश्य उत्पन्न हो गया था ......
कहा जाता है कि कानून अँधा होता है, संवेदनाओं और भावनाओं की भाषा नहीं समझता । पर क़ानून की एक भावना यह भी है की चाहे 100 मुलजिम छूट जाएँ पर एक बेक़सूर को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए .....पर इस केस में सबसे बड़ी सज़ा तो बेक़सूर बच्चों को ही मिली है .......और एक बात और है ....अगर मुस्कान के गरीब मां बाप ने भी अपनी लड़की वापस लेने के लिए केस कर दिया तो.......... ?????????? क्या जज साहब मुस्कान को उस झोपड़ पट्टी में वापस भेज देंगे .....या अपने स्व विवेक का प्रयोग करेंगे .......और हरीश और मंजू .....क्या मुस्कान को उसके असली मां बाप को सौंप देंगे ...... ??????????? कानूनी तौर पर दोनों बच्चों को लगातार मनो चिकित्सक की counselling दी जा रही है .......ऐसा आदेश दे कर जज साहब ने अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली है ...कानून का पेट तो भर दिया है .....पर जैसे कानून संवेदना और भावना की भाषा नहीं समझता वैसे ही संवेदनाएं और भावनाएं भी कानून की भाषा नहीं समझती ......दुनिया का कोई मनोचिकित्सक अमर प्रताप को ये नहीं समझा सकता कि मां और biological mother में क्या अंतर होता है .....क्यों कि मां तो मां होती है .........उसमें कोई किन्तु परन्तु नहीं चलता ......
मुझे ऐसा लगता है कि अगर ये मामला किसी गाँव की पंचायत में आया होता तो वो इससे ज्यादा तर्कसंगत और मानवीय फैसले पर पहुँच सकते थे .......क्यों ??????? आप होते तो क्या फैसला करते ?

१) अगर मुस्कान के मां बाप भी मुकदमा कर दें तो क्या उन्हें उनकी लड़की दे दी जानी चाहिए ?
२) जज साहब फैसला दे भी दें और अगर मुस्कान उस झोपड़ पट्टी में जाने से मना कर दे तो ........?
३) १८ साल का.... यानि बालिग़ होने के बाद अगर अमर प्रताप अपनी असली मां रंजीत कौर के पास वापस जाने का फैसला कर ले तो ???????
४) अब जब की उन्हें अपना बेटा वापस मिल गया है ,अगर हरीश और मंजू का व्यवहार मुस्कान के प्रति बदल
जाये तो ?????????
५) अपने नए भाई ....जिसके आने की वजह से मुस्कान की position वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी ....उसके प्रति इर्ष्य और द्वेष की भावना रखने लगे तो ?????????

कृपया अपनी राय comments में व्यक्त करें ..........और बहस कों आगे बढायें ।

3 comments:

  1. watever one decides ,somebody is going to be hurt and feel cheated .there is no right or wrong decision in such a case .
    i feel the judgement passed is correct .As ranjit kaur was initially wrong and now its on to harish and manju to treat muskan with same love and care as she got before the brother came bak to the family

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  2. क्या कहूँ?
    बच्चों के कोमल मस्तिष्कों और हृदयों पर क्या गुजर रही होगी?

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  3. वाकई अगर ये मामला किसी गाँव की पंचायत में आया होता तो वो इससे ज्यादा तर्कसंगत और मानवीय फैसले पर पहुँच सकते थे

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