जहाँ तक बात योग की है तो योग मात्र चार आसन और deep breathing मात्र नहीं है ......ये एक जीवन दर्शन है ........यानि एक संपूर्ण जीवन शैली है ....जो आपके thought process और stress level को regulate करती है ...आपके life style में changes लाती है .......अब आपकी पूरी medical science खुद कहती है की सारी problems की जड़ ये stress और life style ही है .....इसे योग से ठीक किया जा सकता है ........योग को इस से सरल भाषा में नहीं समझाया जा सकता .......पर इसे फील करने के लिए आपको इसे करना पड़ेगा ....इस से पहले मैं भी ये सारी बातें सिर्फ सुनता था .......पिछले एक महीने से योग कर रहा हूँ ....6 किलो वज़न कम हो चुका है ....बिना किसी dieting के.........स्ट्रेस गायब है जिंदगी से ........मैं अपने जीवन में आनंद महसूस कर रहा हूँ ...वैसे मैंने सुना है की आनंद की अनुभूति कोकीन का shot लेने के बाद भी होती है .......अब ये आप को decide करना है कि आपको कौन सा आनंद चाहिए ......किसी आदमी के लिए कुटिया में भी आनंद ही आनंद है और अपने मुकेश भाई अम्बानी को अपने उस 23 मंजिला घर में भी आनंद मिला या नहीं मैं कह नहीं सकता ........और आज मुझे ये भी पढने को मिला कि बाबा के ज़्यादातर समर्थक intellectually challenged lower middle class लोग हैं ......मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ .....की हम सब लोग जो उस दिन रामलीला मैदान में भूखे प्यासे बैठे थे ...रात भर पुलिस से पिटते रहे ......अगले दिन धूप में...... 41 डिग्री में ....सारा दिन अपने दोस्तों को ढूंढते रहे ........( तकरीबन सबके फोन बंद हो चुके थे ..चार्ज न होने के कारण ) हम लोग वाकई intellectuals नहीं है ....intellectual होते तो अपने बेडरूम में ac 16 डिग्री पे चला के सोते ...देश तो जैसे तैसे चल ही रहा है .......intellectual वो होता है जो morning walk पे भी अपनी SUV में जाता है .......जिसकी लड़की की शादी में 850 dishes serve होती हैं जिसमे 25 किस्म के तो पुलाव होते हैं .......हम दाल भात खाने वाले लोग ........हमें बात बात में कंधे उचका के oh noooo ....oh shit कहना तक नहीं आता .......हम भोजपुरी और हरयाणवी में बात करने वाले लोग .......हम कहाँ के intellectual .....
ये भी कहा जा रहा है की बाबा को अपना काम करना चाहिए ........जिसका जो काम है उसे वो करना चाहिए ......सबको सिर्फ अपना काम करना चाहिए ......बात भी सही है .......बाबा को योग सिखाना चाहिए ....चंदा बटोर के बड़ा सा AC आश्रम बना के अपने भक्तों से चरण पुजवाने चाहिए ..........किसान खेती करे ...student पढ़ाई करे ...दुकानदार दुकान चलाये ....... गृहणी घर का झाड़ू पोंछा करे ......अभिनेता फिल्म बनाए ...लोगों की शादी में नाचे और पेप्सी बेचे ......हम अखबार और चैनल चलायें .....नेता देश चलायें .......सही बात है ..हम साले दो कौड़ी के लोग ...खेती बाड़ी छोड़ के यहाँ क्या कर रहे हैं, दिल्ली में .......हम अनशन करेंगे तो इनकी बेटी की शादी में 850 dishes बनाने के लिए अन्न कौन उगाएगा .......हमारा बाप ???????? ऊपर से हमें मालूम ही क्या है काले धन की इन कानूनी पेचीदगियों का ......अंतरराष्ट्रीय कानूनों का ...अर्थशास्त्र का .....हमें जा के अपना काम करना चाहिए ......हमने क्या ठेका ले रखा है देश का ....country will be run by these generals of democracy .........ये काम हमें कपिल सिब्बल ,चिदंबरम .मोंटेक .और मनमोहन सिंह,बरखा दत्त और वीर संघवी और cp surendran के लिए छोड़ देना चाहिए .......ये सब विद्वान् ...पढ़े लिखे लोग हैं ....सम्हाल लेंगे ......
सुना है कि अनशन और सत्याग्रह से कोई समस्या हल नहीं होती है ....समाज चलाना ये संतों साधू सन्यासियों का काम नहीं ..........पर मेरे भाई जरा पीछे नज़र तो मारो ...ये देश जो आज थोडा बहुत कुछ है इसमें ,दयानंद ,विवेकानंद ,राम मोहन रॉय ,इश्वर चन्द्र विद्यासागर ,गाँधी और विनोबा जैसे संतों की ही देन है .............समाज को इन्ही लोगों ने सुधारा ......जात पात ,छुआ छूत ,बाल विवाह ,सती प्रथा , स्त्री शिक्षा , बंटे हुए समाज को जोड़ने का काम किया .......पर इन democratic generals ने ???????? . जो जात पात इस देश से जा रहा था उसे पुनर्स्थापित किया ......मंडल कमीशन ....वी पी सिंह ,आरक्षण की राज नीति , जाट आन्दोलन ,गुर्जर आन्दोलन , विकराल भ्रष्टाचार , regionalism , भाषा की लड़ाई .....ये सब किसकी देन है ....... democracy के इन genrals की .....अब इसे ठीक कौन करेगा ...ये लोग ....जी नहीं .......इन संतों के नेतृत्व में ...आप और मैं .......
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
- दुष्यन्त कुमार
एक आदमी के विचार थे
ReplyDeleteजिस अखबार मैं छपे थे वोह पुरानी हो गई है अब
कौन पूछता है उस विचार
आप ने ब्लॉग लिख कर महत्व पूरण बना दिया
ठाकुर साब आप भी दिल पे ले लेते हो
आपके एक एक शब्द से सहमति है....
ReplyDeleteसाधुवाद !!!!
आपने दिल और दिमाग का पूरा उपयोग कर लिखा है | बाबा से सहमत नहीं पर आपकी लेखन शैली की दाद देने के लिए दिल मजबूर है | आप जैसे समर्थ लेखक धार का रुख मोड़ देने की कुवत रखते हैं | आपको पढ़कर अच्छा लगा | आपको लेखन और रेखा जी को आपके ब्लॉग से परिचित कराने के बहुत बहुत साधुवाद |
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए आभार!
ReplyDeleteआप कितना भी कह लो, ये पढे लिखे अनपढ, अपनी झुंझलाट दिखा ही देते है।
ReplyDeleteहै कोई बराबरी का, कोई बाबा के आगे कुछ भी नहीं है
अंग्रेजी को ही पढाई समझा जाता है, देश भले ही आजाद हो जाए, लेकिन अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से अभी तक आजाद नहीं हुए हैं लोग।
ReplyDeleteअष्टाध्यायी पढना इनके बस की बात नहीं है। भारतीय प्राचीन वैदिक शिक्षा प्रणाली स्वामी (मालिक) बनाना सिखाती है, बाबू क्लर्क या नौकर नहीं।
मु्झे तरस आता है ऐसे लो्गों पर
Ajit JI, aap kahan ho?
ReplyDeleteachchhi jankari aabhar aapka.
ReplyDeleteदोस्तों शुक्रिया ....आप लोगों ने मेरा इतना उत्साह बढ़ाया .....अभी तो मैं लिखना सीख रहा हूँ .....thanx everybody ....
ReplyDeleteajit
सहमत हूँ...... योग को फिर से रामदेव बाबा ने ही नयी पहचान दी ...... और जन जन तक पहुँचाया ..... अनगिनत शारीरिक और मानसिक व्याधियों का हल है यह .....
ReplyDeleteaapke lekh ka ek ansh yaha se copy karke visfot par dala hai asha hai anyatha nahi lenge
ReplyDeleteaashya kewal aapke vicharo se sabhi ko avgat karana hai naki chori karna
aapke lekh ne dimaag hila kar rakh diya hai
अजित जी बहुत अच्हा लगा आप की लेखनी को पढ़ कर. पूरी तरह से आपके विचारों से सहमत हूँ.
ReplyDeleteविवेक सिंह भाटी, जयपुर (राजपूताना)
स्वामी जी .जो कहते हैं उसमे जीते हैं ,,और हम सभी उनके साथ हैं ..मैं भी 4 जून को दिल्ली में था ....अब आजीवन सेवा वर्ती बनने कि तयारी है
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति को नष्ट करने का स्वप्न देखने वाले मैकाले के मानस पुत्र तो शोषणात्मक उदर पोषण व सांसारिक सुख को प्रदान वाली शिक्षा को शिक्षा समझते है । इन्हें यह नहीं पता कि संस्कृत शिक्षा न केवल व्यक्ति का भौतिक विकास करती है अपितु साथ ही साथ आध्यात्मिक विकास करके उसे सही अर्थो में मनुष्य भी बनाती है ।
ReplyDeleteएक सच्ची व सार्थक प्रस्तुती ...... आभार ।
बहुत सही लिखा है आपने, हम तो बाबा के साथ हैं, बाबा अभी राजनीती से अनभिज्ञ हैं इसलिए चक्कर में फंस गए :(
ReplyDeleteबाबा जी योग के गुर जानते हैं पर राजनीती के गुर सिखने के लिए किसी को गुरु बनाना होगा या फिर चाणक्य बन कर किसी चन्द्रगुप्त को तरासें ,
ReplyDeleteलूण करण छाजेड