कई साल पुरानी बात है .......श्रीनगर से वापस आ रहा था .......एक शेयर taxi में ......हम दस लोग थे .......रास्ते में ट्राफिक पुलिस ने रोक लिया ............एक हज़ार रु का चालान काटने लगे .....ड्राईवर एक कश्मीरी नवयुवक था .........उसने ज़रा सी उफ़ भी नहीं की .......तभी हम लोगों में से एक मुसाफिर बोल पड़ा ......अरे साहब गरीब आदमी .............तभी वो ड्राईवर बोल पड़ा ..हे ....कौन सा गरीब आदमी .......काहे का गरीब ........काटने दो चालान .........खैर हम लोग चालान कटवा के फिर चल पड़े ............थोड़ी देर बाद ड्राईवर बोला कि पगड़ी उस आदमी के पैरों में रखो जो पगड़ी की कीमत जानता हो .............मुझे उस लड़के की ये बात आज तक याद है ...और मैं इस वाक्य को अक्सर quote करता हूँ .........
समाचार आया है की बाबा ने अनशन तोड़ दिया है .........4 जून की दमनकारी पुलिसिया कार्यवाही के बाद सरकार का दंभ ........उसका हठ ........ आन्दोलन रत जनता की भावनाओं की उपेक्षा ............अड़ियल रवैया ........इसकी मिसाल आज़ाद भारत में कम ही मिलती है ..........जिस तरह से सरकार ने नागरिकों के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों.....हमारे fundamental rights का हनन किया ...दमन किया .........सिर्फ इमरजेंसी में ही ऐसा देखने को मिला था ...........संविधान की धारा 19 कहती है कि भारत के सभी नागरिकों को ये अधिकार है कि वो अपनी बात कह सकें ....freedom of expression and speech ,किसी भी सार्वजनिक स्थल पे एकत्र हो कर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर सकें ,freedom to assemble peacefully without arms ....... इस विषय में supreme court की एक ruling भी है कि ऐसी किसी aseembly को या प्रदर्शन या सत्याग्रह को सरकार धारा 144 लगा के रोक नहीं सकती ............जब तक की उसके पास कानून व्यवस्था के ध्वस्त होने का कोई मज़बूत आधार न हो .........उस दिन राम लीला मैदान में ऐसी कोई स्थिति नहीं थी ...या जंतर मंतर पे 8 जून को अन्ना के सत्याग्रह में कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं थी ...........फिर भी सरकार ने वो सत्याग्रह नहीं होने दिया ..............लोकतंत्र में सरकारें बेशक बहुमत के आधार पर चलती हैं फिर भी भारत देश का एक भी आदमी .....जी हाँ ...एक भी आदमी ........अगर कोई बात कहता है ...तो उस बात का भी महत्व है .........न तो उस आवाज़ को दबाया जाना चाहिए न नज़र अंदाज़ किया जाना चाहिए ..........पर जिस तरह पिछले 9 दिनों में सरकार ने बाबा के आमरण अनशन के प्रति असंवेदनशीलता का प्रदर्शन किया ...वो उपेक्षा सिर्फ बाबा की नहीं हो रही थी बल्कि उन करोड़ों हिन्दुस्तानियों की भावनाओं की हो रही थी जो बाबा के नीतियों से सहमती रखते हैं ..........सरकार ने एक तरह से कह दिया था ....अनशन करता है तो करे ....मरता है तो मरे .....हम नहीं जायेंगे मनाने ......आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था ......काले धन के खिलाफ था ....पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ है .ये महत्वपूर्ण नहीं है की आन्दोलन कौन कर रहा है ........मुद्दा महत्वपूर्ण है .......मुद्दे को पूरा देश समर्थन दे रहा है .........सरकार कहती है ...मांगें तो मान ली .....कौन सी मांगें ....कब मान ली .......क्या एक्शन प्लान है सरकार का .......सरकार कहती है हम भ्रष्टाचार को ले के संजीदा हैं .........कब तक आयेंगे results आपकी संजीदगी के ......आपकी संजीदगी आपके actions में दिखाई क्यों नहीं देती .......देश को इन सवालों के जवाब जानने का हक है .......पूरा देश चिंतित था ...रामदेव के स्वास्थ्य को ले कर ...परन्तु सरकार और कांग्रेस पार्टी ने कभी कोई चिंता व्यक्त नहीं की .......इसलिए अब इस अनशन का कोई महत्व नहीं रह गया था ............भूखा बच्चा माँ के सामने रोता है क्योंकि उसे मालूम होता है की ममतामयी माँ से मेरा रोना देखा नहीं जाएगा ...और वो तुरंत खाना देगी .........इस बेशर्म ,बेहया और बेईमान सरकार के सामने रोने का कोई फायदा नहीं ...........
पगड़ी उसके पैरों में रखो जो पगड़ी की इज्ज़त जानता हो ....सत्याग्रह उसके सामने करो जो सत्याग्रह का महत्व जानता हो ............. इस सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है ........
"इस सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है"
ReplyDeleteलाख टके की बात।
पगड़ी उस आदमी के पैरों में रखो जो पगड़ी की कीमत जानता हो ...
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बहुत सही कहा आपने!
sau pratishat sahi baat
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