Monday, June 13, 2011

काश वो दिन वापस आते ...........

मेरे पसंदीदा फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप द्वारा produced ताज़ा तरीन फिल्म 'शैतान ' का review पढ़ रहा था .......अभी देख नहीं पाया हूँ .....कहानी सुनते हैं कुछ यूँ है की कुछ youngsters मस्ती करते हुए किसी मुसीबत में फंस जाते हैं ....उस से निकलने के लिए हाथ पाँव मारते हैं और इसी बीच उनके अन्दर का शैतान जाग उठता है ......... अब मैं सोचने लगा की क्या वाकई हमारे अन्दर बैठा शैतान यूँ ही कभी मौका पा के बाहर आ जाता होगा ....वास्तविक जीवन में भी ......अपने अन्दर झाँका तो वाकई ऐसे बहुत से किस्से निकल आये ..........कुछ हंसाने वाले ....कुछ गुदगुदाने वाले ...........
बहुत पुरानी बात है ......शायद 86 -87 की .....दिल्ली में था .....उस जमाने की बहु चर्चित फिल्म basic instinct रिलीज़ हुई थी ....तब तक ये multiplex का ज़माना नहीं आया था ......single screens ही हुआ करते थे .......उन दिनों दिल्ली में एक मात्र चाणक्य सिनेमा ही हुआ करता था जहाँ नई अंग्रेजी फिल्में लगा करती थी ........सो एक मित्र के साथ पहुँच गए हम ...प्लान था 6 से 9 देखेंगे और रात खाना खा के 11 बजे तक कमरे में वापस .........वहां पहुंचे तो हाउस फुल ......हॉल के सामने वाली मार्केट में एक उस्मान भाई हुआ करते थे ...उनका ढाबा था .......हमेशा फिल्म देख कर उनके यहाँ खाना खाते थे ....गप्पें मारते थे सो उनसे अच्छी खासी यारी हो गयी थी .....हाउस फुल का बोर्ड देख के भागे भागे उनके पास पहुंचे की उस्मान भाई कुछ जुगाड़ करो यार ....हॉल के सामने ही ढाबा होने की वजह से उस्मान भाई के हॉल के स्टाफ से links थे ....पर कुछ न हो सका और उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए ..... अब कोई चारा नहीं था ...सो तय किया की 9 से 12 देखेंगे .........तीन घंटे वहीं मार्केट में घूमे फिरे ...उस्मान भाई से जी भर के गप्पें मारी बढ़िया खाना खाया .....chicken curry और butter naan .....टिकेट के लिए विंडो पर पहुंचे तो होश उड़ गए .........बाप रे बाप ...इतनी भीड़ ....70 के दशक का amitabh bachhan का ज़माना याद आ गया ......अब लाइन में सबसे पीछे खड़े हो के तो मिल चुका टिकेट .....खैर टिकेट बिक्री शुरू हुई और हम दोनों बेचारे.... हारे जुआरी .....कारवां लुटते देखते रहे ..........बमुश्किल 5 मिनट बीते होंगे, की वो ....जिसे कहते हैं ...अन्दर बैठा शैतान...... जाग उठा .......अब हमसे और देखा न जा रहा था ,सो उठे और बुकिंग विंडो की तरफ बढे ........वहां ज़बरदस्त भीड़ थी .........पर ज़्यादातर लोग आसपास के IIT और AIIMS के स्टुडेंट्स थे ... वो बेचारे ठहरे 40 -40 किलो के मर्द और मैं था 90 किलो का तगड़ा पहलवान .......सो मैं भीड़ में घुस गया, एक दम ...जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुसा था .............सबसे पहले मेरा एक ही लक्ष्य था की किसी तरह विंडो तक हाथ पहुँच जाए ..........खैर जैसा की फिल्मों में दिखाते है की अंतिम सीन में मरता हुआ हीरो किसी तरह रेंगता हुआ हेरोइन तक पहुँच कर उसका हाथ थाम लेता है ....कुछ उसी अंदाज़ में मैंने वो टिकेट विंडो पकड़ ली ........मोटे शीशे की खिड़की थी ....उसे पकड़ के मैंने एक झटका पहले लेफ्ट मारा और एक राईट ...........अब वो बेचारे पढ़ पढ़ के सूख गए डाक्टर इंजिनियर मुझ पहलवान का धक्का कहाँ बर्दाश्त कर पाते ...........चीख पुकार मच गए ......oh my god .....save me ....oh shit .........ये क्या हो रहा है .....पर कौन था वहां उनकी सुनने वाला उस रात रामलीला मैदान की तरह ....मैदान साफ़ था और मै विंडो पे सबसे आगे खड़ा था ......मैंने उस से 2 टिकट मांगे ........यही कोई 20 रु का एक टिकट रहा होगा .......वो बोला खुल्ले दो ......अब खुल्ले कहाँ से लाऊँ ??????मैंने कहा भाई मेरे तू 100 रु के पूरे दे दे .....और उसने मुझे 5 टिकटें पकड़ा दीं ........आप सोच सकते है .........क्या मनोदशा रही होगी हम दोनों की .........सचिन तेंदुलकर को वर्ल्ड कप जीत के वो ख़ुशी नहीं मिली होगी जो हमें वो टिकटे पा के मिली ......हम दोनों विजयी भाव से वहाँ बने एक चबूतरे पे बैठ के तमाशा देख रहे थे ...और उन बेचारों पे तरस खा रहे थे .........कुछ देर बाद मैंने महसूस किया की हमारे इर्द गिर्द एक किस्म का मजमा सा लग गया था जैसे मदारी के इर्द गिर्द लग जाता है ...इस से पहले की मै कुछ समझ पाता एक लड़का .......सकुचाते हुए आया .......और बोला ...भाई साब टिकेट एक्स्ट्रा है .....हमने कहा नहीं .........तो वो बोला भैया कुछ एक्स्ट्रा पैसे ले लो ....मैंने उस से कहा ...क्यों बे हम तुझे ब्लैकिये नज़र आते हैं .........वो पीछे हट गया ...पर उसने हार नहीं मानी थी .....और कमबख्त एक विचार का प्रतिपादन तो कर ही गया .........अब कहते है की विश्व की बड़ी बड़ी क्रांतियाँ एक विचार की ही तो देन हैं .........सो वो विचार अब पनपने लगा .....भीड़ में भी और हमारे अन्दर भी .....वो बोला ...दे दो भाई साब .......तो मेरे वो मित्र बोल पड़े ...अच्छा चल कितने पैसे देगा .......30 ले लो ....मैंने कहा चल बे ......तब तक उनमे से कोई बोला 40 ले लो ........अब कमान मेरे उस मित्र ने सम्हाल ली ........और बोले ,देखो भाई 3 टिकटें हैं .......उसको मिलेंगी जो सबसे ज्यादा पैसे देगा .......तो साहब बाकायदा नीलामी हुई .......बढ़ चढ़ के बोली लगी ........यूँ मानो हुसैन साहब की नंगी........ देवी देवताओं वाली पेंटिंग बिक रही हो .....और मुझे याद है शायद 60 या 70 तक गयी .......और हमने भैया वो 3 टिकटें बेच दीं ....अब देखिये..... शैतान जब जाग जाता है तो क्या कुछ करता है ..........मैंने कहा की यार देख अपन आये थे entertainment के लिए ........वो तो हो गया ....फुल्टू .......अब ये 2 भी बेच देते हैं फिल्म कल देख लेंगे ........पर उसमें कुछ गैरत बाकी थी सो उसने ये विचार कुचल दिया ...एकदम केंद्र सरकार की तरह .......खैर साहब बड़े मज़े से फिल्म देखी ..........मनः स्थिति ही कुछ ऐसी थी ..........इतनी हसीन शाम, फुल entertainment ......वो भी बिलकुल मुफ्त .........बड़ा मज़ा आया ...बेहतरीन फिल्म थी ......रात बारह बजे बाहर निकले ........ऑटो लिया .....50 रु में .........आम दिन होता तो हम दोनों का तो हार्ट फेल हो जाता ऑटो लेने में .........पर आज कोई गम नहीं था ....ऑटो वाला चल पड़ा .......थोड़ी दूर ही चले थे की एक आदमी ने हाथ दिया .........सवारी पीछे बैठी हो तो दिल्ली के ऑटो वाले इस तरह नहीं रुकते ...........पर हमने कहा रोक ले यार ...इतनी रात गए बेचारा कहाँ जाएगा ........उसने रोक लिया ........अब हमने उस से पूछा ...हाँ भाई साब कहाँ जाओगे ...उसे भी उधर ही जाना था जिधर हम जा रहे थे ......मैंने कहा 50 रु लगेंगे ....और वो झट से मान गया ....हमने बैठा लिया .........थोड़ी ही देर में वो अन्दर बैठा शैतान ....कमबख्त फिर जाग गया .........घर के पास रेड लाईट पर ऑटो रोका ...और उसे 10 रु पकडाए ........ऑटो वाला इससे पहले की कुछ बोलता हमने उसे कपिल सिब्बल की तरह समझा दिया की बेटा अगर हम पीछे बैठे हैं तो ऑटो तो हमारा हुआ न .......सो किराया तो हम शेयर करेंगे ...न की तू ..........50 रु ये भाई साब देंगे ....10 ये रहे ........तू भी खुश हम भी खुश .........तेरा नेट प्रोफिट 10 रु........ हमारे प्रोफिट पे तू दिमाग मत लगा ..............अब ये तो तर्क ही ऐसा था की सुप्रीम कोर्ट मान जाए ...उस बेचारे की क्या मजाल .......दोनों भाई हँसते खिलखिलाते घर पहुंचे ............वो मस्ती भरे दिन अब भी याद आते हैं .............क्या बचपन था ...क्या अल्हड ...मदमस्त जवानी थी ..........काश वो दिन वापस आ पाते ..........

4 comments:

  1. यह बातें भूलने की नहीं होती
    वो सब तो इस जिन्दगी मैं तो
    नहीं बुला सकता

    ReplyDelete
  2. we mast din yun hi yaad banker chalte hain aur hum saajha kerte rahte hain , maza aa gaya tkt ki jeet per

    ReplyDelete
  3. Mai aur Shreya dekh aye film :d Bari der se bechaini ho rahi thi, kisko bayan Karoo kitni achi film hai.. After gulal this would be the next best thing that happened to Hindi cinema. Amazing movie !!! So next time when you are thanking god for all the blessings that we have ...remember to thank him for anuraag kashyap as well . Deven bhai I was hoping u too would chip in with some of your anecdotes. :)

    ReplyDelete
  4. आपने रोचक अंदाज में वर्णन कर के बचपन की याद दिला दी | बचपन के दिन भी क्या दिन थे ........

    ReplyDelete