Wednesday, July 20, 2011

कलकत्ते से इश्क की दास्ताँ .....भाग 1

घुमंतू लोगों को अक्सर कुछ जगहों से इश्क हो जाता है .....अब किसी शहर से या किसी जगह से इश्क होने के सौ कारण हो सकते है .......कुछ लोगों को चंडीगढ़ बहुत अच्छा लगता है ..........मैं वहां बचपन में रहा भी हूँ ...अभी भी अक्सर आना जाना होता है ...........पर उस शहर ने आज तक मुझे कभी appeal नहीं किया ......अजीब बेजान सा शहर है ......अजनबी सा.........कोई आत्मा नहीं है उसकी ......मुझे जिन शहरों ने सबसे ज्यादा आकृष्ट किया उनमें एक है कलकत्ता .....हो गया होगा कोलकाता ....पर अपने लिए तो अब भी कलकत्ता ही है ..........अब क्यों अच्छा लगता है ...ये तो बताना बड़ा मुश्किल है भैया ........ये इश्क की बात है ......सुनते हैं की लैला कोई बहुत सुन्दर नहीं थी .....काली सी थी ...भोंडी सी ...पर मियां मजनू तो फ़िदा हो गए ना .....उनके लिए तो वही हूर परी थी ......सो अब हमें कलकत्ता क्यों अच्छा लगा बताना बड़ा मुश्किल है .....एक मित्र हैं हमारे ....एक दिन उनसे बस यूँ ही चर्चा होने लगी तो उन्होंने नाक भौं चढ़ा दी कलकत्ते के नाम पर ....हाय हाय कितना गन्दा शहर है ......अब भैया जैसा भी हो हमें तो इश्क है कलकत्ते से .......क्यों ???? अब ये बताना तो बड़ा मुश्किल है फिर भी .......100 कारण गिना सकता हूँ .......कोई भी शहर ,जाना तो अपने लोगों से ही जाता है .....सडकें , इमारतें ,बाज़ार ,ये सब तो बाद में आती हैं ....पहले तो लोग होते हैं किसी शहर में ......सो बड़ा जीवंत शहर है .......उसकी एक आत्मा है ........एक रूह है कलकत्ते की .....जाओ तो लगता है बात करती है आपसे .......शहर के बीचों बीच बहती गंगा .........पानी से लबा लब भरी हुई ...साफ़ सुथरी सी ........और उसके बीच चलते वो steamer ......स्थानीय भाषा में लौंच कहते हैं उन्हें ......कहीं भी जाना हो आपको ....एक आध चक्कर steamer में लग ही जाता है .......किराया मात्र दो रूपया .......कलकत्ते के लोग ...निजी वाहन नहीं रखते .......मेरे एक मित्र वहां एक बिल्डिंग में रहते हैं ....24 फ्लैट हैं उसमे ......सब या तो बैंक कर्मी हैं या मारवाड़ी businessman .....अब दिल्ली की ऐसी किसी बिल्डिंग में जहाँ 24 फ्लैट हों तो वहां कम से कम 25 -50 गाड़ियाँ या टू व्हीलर होंगे ,पर वहां कलकत्ते में पूरी बिल्डिंग में एक भी गाडी या स्कूटर नहीं .......सब लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट ( steamer , बस सेवा और मेट्रो ) से चलते हैं और संभव हो तो पैदल ......बंगाल को भद्र लोक कहा जाता है और बंगालियों को भद्र जन ....सो भद्र जन जब शाम को काम से घर लौटते हैं तो ...सबसे पहले मछली ......फिर घर में सजाने के लिए आधा दर्ज़न रजनी गंधा , पत्नी के बालों में लगाने के लिए गजरा ....गमकता हुआ ...चमेली और रात की रानी का ...........एक कुल्हड़ मिष्टी दोई ...यानी मीठी दही का .......६ पीस सोंदेश ......(वाह याद कर के ही मुह में पानी आ गया ).........बंगाली बाबू काम से वापस आये तो भद्र महिला दरवाज़े पर आ कर स्वागत करती है ....सजी धजी ....मुस्कुराती .......आगे बढ़ कर हाथ से ब्रीफ केस और लिफाफा थाम लेगी ...बाबू सीधे बाथ रूम में .....फ्रेश हो कर बाहर निकले तो लक दक कलफ लगे धोती कुरते में ...........तब तक महिला ने रजनी गंधा फूलदान में लगा दी ........गजरा अपने बालों में ..........चाय तैयार है ....3 -4 किस्म की घर में बनी नमकीन साथ में ....पूरा घर साथ बैठ कर चाय पीता है ....और फिर भद्र जन ने उठा लिया हारमोनियम ........माँ गाने लगी ...बेटी नृत्य कर रही है .......ये एक पारंपरिक बंगाली परिवार का दृश्य है ....हालांकि समय बदल गया है फिर भी बंगालियों ने अपनी पुरातन संस्कृति को बचा कर रखा है .......इतिहास गवाह है की कला साहित्य और संस्कृति का जितना बड़ा केंद्र बंगाल रहा उतना कोई नहीं रहा .....संगीत और नृत्य के बाद बच्चे पढने बैठ गए और साथ ही बाबू ने भी अपनी किताब उठा ली......बंगाली पढने के बेहद शौक़ीन होते हैं .........महिला रसोई में ...और बंगाली रसोई ....वाह .....क्या बात .......इस धरती पे अगर कोई सबसे मित व्ययी प्राणी है तो वो भद्र जन ........आपको ये जान कर ताज्जुब होगा की आज भी लोग कलकत्ते में 1500 से ले कर 3000 की नौकरी करते हैं और इज्ज़त से जीते हैं .......बंगालियों ने बेहद कम खर्च में शान से जीने का सिस्टम बनाया है ........तो बात हो रही थी बंगाली रसोई की ...सो एक सामान्य से बंगाली परिवार की थाली में भी मछली , 5 -7 किस्म की सब्जी ,दाल ,सलाद ,आचार (3 -4 किस्म का ) ,चटनी ,पापड और न जाने क्या क्या होगा .......सब कुछ बहुत थोडा सा पर बेहद स्वादिष्ट ........जैसे ...एक आलू की भुजिया ,एक परवल को एक दम पतला पतला काट के उसकी भुजिया ,दो तीन किस्म की पत्ते वाली सब्जी ...आप किसी बंगालिन को सब्जी खरीदते देख लें तो हैरत में पड़ जाएँ ....उसकी शौपिंग लिस्ट कुछ ऐसी हो सकती है .......2 आलू ,एक परवल, 100 ग्राम मटर ,एक बैंगन ,एक प्याज ,और इसी तरह एक एक पीस कुछ अन्य हरी सब्जियां .......टोटल बिल ...यही कोई 5 -7 रूपये ....जी हाँ आज की इस महंगाई के ज़माने में भी .......बंगालियों के बारे में एक कहावत है की कुछ भी अगर हरा है और खाने लायक है तो बंगालन उसकी बेहतरीन सब्जी बना सकती है ....इसलिए बंगाल में आज भी सैकड़ों किस्म के हरे पत्तों और फूलों की सब्जी बनाई जाती है ......बंगालिन मटर के छिलके भी नहीं फेंकती ....उसे भी छील कर उनकी सब्जी बना देती है ........यहाँ ये महत्व पूर्ण नहीं है की बंगालिन की रसोई में क्या कुछ है ..........महत्व इस बात का है की उसने कितने प्यार से भोजन बनाया है ..........हमारे एक दोस्त थे बंगाली ...वो कहा करते थे की भोजन में कुछ हो चाहे न हो ...प्रेम भरपूर होना चाहिए ......बंगाल की थाली प्रेम से परिपूर्ण होती है .........और बंगाली मिठाई ...वाह क्या बात है .....मुझे लगता है की माँ अन्नपूर्णा की विशेष कृपा रही है बंगाल पर .....वहां का सन्देश ( सोंदेश )...और रसगुल्ला ( रोशोगुला ) भाई वाह ...क्या बात है .......शायद धरती पे सबसे स्वादिष्ट अगर कुछ है तो ये दोनों ......और रसगुल्ले में भी अलग अलग किस्में ...एक होता है खजूर के गुड का रसगुल्ला .........अब इसपे मुझे एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आ रहा है .....हम दोनों कलकत्ते गए थे, वहां 8 -10 दिन रहे ...सो हमारे एक भाई ...जिनसे हमारा विशेष अनुराग था ..वो रोज़ शाम को सन्देश ...रसगुल्ले और मीठी दही ले के आते थे ...वो भी कलकत्ते की नामी मशहूर दुकानों से .........और सारा दिन हम लोग घर से बाहर रहते सो खाते पीते ही थे ...अब हमारी श्रीमती जी मीठे की विशेष प्रेमी हैं सो एक दिन उन्होंने बस हद ही कर दी .........सुबह 8 बजे हम लोग घर से निकले और उन्होंने बाहर निकलते ही बोहनी कर दी ...और फिर दिन भर में 5 -7 बार अलग अलग दुकानों पर रसगुल्ले खाती रही ....मैंने बिलकुल नहीं टोका .........दिन बीत गया ...शाम को घर पे भी कुल्हड़ आया हुआ था रसगुल्लों का ...सो उन्होंने वो भी निपटा दिया ..........और जब सारे रसगुल्ले ख़तम हो गए ....और उन्होंने वो चाशनी भी पीने का मूड बनाया तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया ........प्रिये ....बस करो सुबह से लगभग 80 रसगुल्ले खा चुकी हो .......... अब चाशनी पे तो रहम करो ....और ये बस फट पड़ी ....देखो कितना पापी आदमी है .........सुबह से मेरे रसगुल्ले गिन रहा है ..........अरे मैं कोई रोज़ रोज़ थोड़े ही कलकत्ते आउंगी ........अब कहाँ नसीब होगा जीवन में कलकत्ते का रसगुल्ला ...........वाकई बड़े नसीब वालों को नसीब होती है कलकत्ते की मिठाई .......
कलकत्ते की चाय का ज़िक्र न हुआ तो इश्क की ये दास्ताँ अधूरी रह जायेगी .............वैसे मैं ये मानता हूँ की हिन्दुस्तान में सबसे घटिया चाय हरियाणा और पंजाब में मिलती है और सबसे बेहतरीन चाय कलकत्ता ,बनारस ,दक्षिण भारत ,राजस्थान और बम्बई ( भाड़ में जाएँ राज ठाकरे और शिव सेना ) में मिलती है ........पर कलकत्ते की गलियों में छोटी छोटी चाय की दुकानों पर जो चाय बनती है उसका मज़ा ही कुछ और है ........मैं दावे से कहता हूँ की चाय न पीने वाला आदमी भी अगर वहां चाय बनती देख ले तो उसका भी दिल मचल उठेगा एक प्याले के लिए .......पहले एक बड़े से बर्तन में चाय को घंटों उबालते रहते हैं फिर एक लम्बी ...गहरी सी चाय छलनी में अलग से चाय पत्ती डाल के उसे अलग अलग गिलास में छानते हैं .....फिर एक तरफ अलग से खौलते दूध के बस दो चम्मच ,फिर आपके स्वाद के चीनी ...और लीजिये साहब बेहतरीन कड़क चाय ...........इतनी स्वादिष्ट की एक कप से कुछ न बने ...दूसरा भी हो जाए तो कुछ तसल्ली हो ..........कलकत्ते से इश्क की ये दास्ताँ आगे भी जारी रहेगी ..............

7 comments:

  1. मेरी भावनाओं को आपके शब्द मिल रहे हैं... इश्क तो हमें भी है कलकत्ते से... आगे की कड़ियों का इंतज़ार है बेसब्री से... :)

    ReplyDelete
  2. बहुत जीवंत वर्णन है ऐसे ही लिखते रहिये | अगली किश्त का इंतज़ार है |

    ReplyDelete
  3. अब हम क्या कहे ... हम तो उसी मट्टी में पाले बड़े है ... बस दफ़न कहीं और होंगे ... यही गम रहेगा ... ओ आमार कोलकाता ... आमी तोमाये भलो बाशी !!!

    ReplyDelete
  4. कोलकाता से ये इश्क का रंग बहुत अच्छा लगा... सच पूछिए तो मुझे भी कोलकाता बेहद पसंद है.... कुछ बात है यहाँ में... यहाँ भीड़ में खुद को खो देना बहुत अच्छा लगता है. और गुड़ के रसगुल्ले.... आपकी पोस्ट में उसका ज़िक्र सुनकर फिर से मन हो आया है.. मगर अभी तो जाड़ा आने में काफी समय बाकी है. फिर पता नहीं उस समय अपना ठिकाना कहीं और न बदल जाएँ..... कोलकाता के बारे में तो अभी बहुत कुछ बाकी है..... इसे पूरा जरूर कीजियेगा......

    ReplyDelete
  5. कलकत्ते से इश्क की दास्तान बढ़िया रही ..

    ReplyDelete
  6. After reading this I feel unfortunate enough to not have visited Kolkata (Calcutta) ever. I will plan to explore this cultural city soon.

    ReplyDelete