Thursday, August 4, 2011

भीगी भीगी सी मसूरी ........सावन में

तीन दिन पहले हम दोनों बाप बेटा मसूरी में थे ......भीगी भीगी सी मसूरी ...साफ़ सुथरी सी ...धुली पुंछी .......गीली गीली सी ........पहले से तय था की बाइक पे जायेंगे .....अब घूमने का मज़ा तो bike पे ही आता है ........कार में बड़ा बंद बंद सा लगता है ....घुटा घुटा सा ........दो दिन पहले अखबार में पढ़ा था की उत्तराखंड में भारी बारिश की संभावना है पर मौसम विभाग की रिपोर्ट को ठेंगा दिखा के चल पड़े हम दोनों ........सुबह सुबह ...और अभी 20 किलोमीटर ही गए होंगे की जोर की बारिश गयी ...एक पेड़ के नीचे शरण ली ....सो कुछ देर तो उसने साथ दिया पर फिर टपकने लगा ....अच्छे से भीग गए ...अब अक्ल आयी की biking पे निकलो तो polythene का टुकडा ज़रूर रखो साथ ...खैर बारिश रुकी तो टी शर्ट निचोड़ के दुबारा पहनी ,और चल पड़े .............आगे जा के polythene भी खरीद लिया .......देहरादून पहुंचे ...एक दोस्त के यहाँ coffee पी,गप्पें मारी ...दानू ने bowling ally में bowling की मुफ्त में ,खूब enjoy किया ........वहां से चले तो थोड़ी ही देर में पहाड़ शुरू हो गए ...वाह ........खुशबू से महकते पहाड़ ........ताजगी से भरे ....जगह जगह झरने गिर रहे थे ..........पहाड़ों के गीले पत्थरों पे काई उग आयी थी ....घास सब हरी हो गयी थी ..........पहाड़ों की वो खुशबू आते ही मुझे अपना बचपन याद जाता है जो पहाड़ों पर बीता ....किशोरावस्था गंगटोक और कलिम्पोंग में बीती ..... किशोरावस्था के अनुभव सबसे ज्यादा प्रभाव डालते है मनुष्य के पूरे व्यक्तित्व पर ........तो पहाड़ पर पहुँचते ही बचपन की वो जानी पहचानी सी खुशबू पहाड़ों की ...ऐसा लगता है की मैं फिर से 14 साल का हो कर गंगटोक पहुँच गया हूँ .........12 साल पहले गया था मैं पहली बार मसूरी ........जैसी तब थी आज भी वैसी ही है मसूरी .........नैनीताल भी वैसा ही है .......जैसा बीस साल पहले था ,जबकि गंगटोक और कलिम्पोंग तो एकदम से concrete के जंगल में बदल गए ........सो इसका कारण बताया हमारे एक दोस्त ने ........दरअसल मसूरी और नैनीताल में जो भी खाली ज़मीन पड़ी है वो वन विभाग यानी फोरेस्ट डिपार्टमेंट की है इसलिए उस पर कभी भी कोई निर्माण नहीं होगा .....यानी शहर में जितने मकान हैं उतने ही रहेंगे ...और जिस ज़मीन पे पेड़ जंगल हैं वो हमेशा जंगल ही रहेंगे ...........इसलिए मसूरी ऐसी ही रहेगी ....सो मसूरी हमारा पसंदीदा हिल स्टेशन है .......इसका एक और कारण भी है ..........वो ये की मुझे और मेरी पत्नी को खाली खाली से ...एकदम शांत ,सुनसान और साफ़ सुथरे से हिल स्टेशन ही पसंद हैं ........अब आप कहेंगे मसूरी और खाली ....जी हाँ ...off season में जाइए ....मसूरी खाली मिलेगी आपको ........उसमें भी एक ख़ास बात है .........जो मसूरी का main बाज़ार है उसमें तो अच्छी खासी रौनक और भीड़ भाड़ रहती है ..............और फिर स्टेट बैंक के सामने वाली गली में घुस के 100 मीटर आगे गए तो गए camel back road पर ......और वो एकदम शांत ....सुनसान सी ...साफसुथरी सी ........सुकून देने वाली ....सो आप एक ही शहर में रौनक मेला ,चमक दमक और शांति ,दोनों का मज़ा ले सकते हैं ......सिर्फ 100 मीटर के अंतर पे ........सो camel back road पे हमारा पसंदीदा होटल है .........emerald heights .......पिछले दस सालों से वहीं रुकते रहे हैं हम लोग.... बेहद खूबसूरत ,उसकी बालकोनी में बैठ के ज़न्नत सा सुख मिलता है ........वहीं ठहरे हम दोनों बाप बेटा .........मसूरी में bike अन्दर लाने पे 100 रु का टैक्स लगता है और शाम 4 से 10.30 बजे तक नो एंट्री रहती है ..........इस से फ़ालतू का शोर शराबा भी नहीं होता शहर में ........देर तक हम लोग बाज़ार में टहलते रहे .....शाम को bike से लाल टिब्बा गए जो की शहर का सबसे ऊंचा पॉइंट है ............घने बादल थे वहां ....और फुहार पड़ रही थी .......सो जल्दी ही वापस आना पड़ा .......रात भर बारिश होती रही ............सुबह उठे तो सुनसान सी camel back road मानो बुला रही थी ......निकल पड़े .......धीरे धीरे टहलते हुए ....दूर तक गए ....एक दम सुनसान था सब कुछ ...सिर्फ मोर्निंग वाल्क करने वाले बुजुर्गों के groups ....आपस में बातें करते ...हंसी ठिठोली करते ...एक दूसरे का हाल चाल लेते मिले ...camel back road पर जगह जगह view points बने हुए हैं जहाँ आप घंटों बैठ कर खूबसूरत पहाड़ों को निहार सकते हैं ............वहां निरंकारी आश्रम की कैंटीन में बढ़िया चाय पी .......सुबह सुबह सिर्फ वहीं चाय मिलती है ........वहां एक बुज़ुर्ग दंपत्ति Mr एंड Mrs gulaati नाश्ते में शानदार परांठे खिलाते हैं ...ऐसे बढ़िया परांठे की आपने खाए होंगे .........देर तक वहां टहलते मैं bird watching कर रहा था ........मसूरी में जो बुलबुल पायी जाती है उसकी एक कलगी होती है जो यहाँ नीचे plains में नहीं होती ........पर एक चीज़ देख के बहुत दुःख हुआ की हम हिन्दुस्तानी अपने इन बेहतरीन हिल स्टेशंस को कितनी बेरहमी से गन्दा करते हैं .....वहां हर जगह चिप्स और अन्य चीज़ों के wrappers बिखरे हुए थे ......पढ़े लिखे लोग भी इतने लापरवाह ......मुझे लगता है की ये हमारे education system की कमी है की हमने अपने बच्चों को साफ़ सफाई का पाठ ही नहीं पढ़ाया ........अपने देश के ज़्यादातर टूरिस्ट स्पोट्स से मुझे एक शिकायत रहती है की वहां स्थानीय cuisine नहीं मिलता ......अरे भैया .....छोले भठूरे ....bread omlett और शाही पनीर तो हम हमेशा खाते ही हैं मेरे भाई..........अपने यहाँ का स्थानीय भोजन खिलाओ यार ....पर दुकान दार बेचारा क्या करे ....वो कहता है बाबू जी आप पहले आदमी मिले हो जो ऐसा खाना मांग रहे हो ...............एक बार हम मनाली गए और जान बूझ कर एक घर में रुके और उसमें हमारी एक शर्त थी की आप हमें स्थानीय खाना खिलाएंगे .....और फिर उन दोंनो सास बहू ने हमें क्या मजेदार लिग्डी की सब्जी , किस्म किस्म के साग....... किस्म किस्म की चटनियाँ और वो पत्ते में बेसन लपेट के उसे steam कर के उसके पकोड़े और फिर उसकी सब्जी और न जाने क्या क्या खिलाया ............राजस्थान ,कश्मीर और गुजरात में स्थानीय भोजन खूब मिलता है restaurants में पर हिमाचल में नहीं मिलता .........
नाश्ते के बाद धनौल्टी जाने का प्रोग्राम था ...सो हम लोगों ने bike उठाई और चल पड़े ..........पर थोडा आगे जाने पर इतने घने बादल थे की कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ..........बादलों में फुहार पड़ रही थी और हम दोनों भीग रहे थे ....ऊपर से ठण्ड भी लगने लगी थी ..........फिर मुझे ख्याल आया की पुराने ज़माने में सावन बरसता था ....अरे भैया बड़े नसीब वालों को मिलती है सावन की फुहार आजकल ............बड़े बुज़ुर्ग बताते हैं की पुराने ज़माने में जब सावन बरसता था ....सावन की फुहार ....यानी सावन की झड़ी लग जाती थी ...........लगातार हफ़्तों झिमिर झिमिर पानी बरसता रहता था ...........अब तो धुल उडती है सावन में ........चका चक बनारसी ने सावन का चित्रण किया है एक अपनी एक कविता में ........की जब हफ़्तों सूर्य भगवान् के दर्शन न हों , जब बागों में झूले पड़ जाएँ ,जब घर में बूँदें टपकने लग जाएँ ,जब प्रियतम से मिलने को मन मचलने लगे ,और जब खटिया अपनी चौथी टांग उठा ले ( जब बरसात में चारपाई गीली हो कर एक दम tight हो जाती है तो उसकी एक टांग उठ जाती है ) और जब दरवाज़े फूल कर बंद न हों तो समझ लेना चाहिए की सावन आ गया ............सो उस दिन हम सावन की फुहार का मज़ा ले रहे थे वहां ....और फिर अचानक जोर की बारिश होने लगी ......हम लोग एक चाय की दुकान पर रुके हुए थे ........उस गीले से मौसम में उस दिन उस दुकान दार ने बेहतरीन चाय पिलाई ........तभी पता चला की आगे रास्ता land slide के कारण बंद हो गया है .........वहां से हमने वापस मुड़ने का निर्णय लिया क्योंकि मौसम खराब होता जा रहा था .....और हम आधे रास्ते से ही लौट आये .......रास्ते में एक जगह खाना खाया ..एकदम सामान्य सा भोजन और दो घंटे बाद हम देहरादून में थे .............सो धनौल्टी और उससे आगे कनाताल जाने का हमारा कार्यक्रम अधूरा छोट गया जो हम अब अगले ट्रिप में पूरा करेंगे ...........

4 comments:

  1. मन खुश हो गया इस लेख को पढ कर,
    सौ रुपये टैक्स वो भी बाइक पर ये कब से लगने लगा है,
    ऐसा ही सौ रुपये मनाली में भी लगता है,
    चारपाई की टाँग उठी व बैठी, वैसे आज से दस साल पहले व आज में बहुत बदल गयी है मंसूरी।

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  2. बहुत अच्‍छी भीगी भीगी सी पोस्‍ट !!

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  3. You can always opt for home stays ...they are becoming popular for their authentic tagline.
    The best thing I liked ,you and Danu on the bike together ,the bonding which is almost palpable.:)
    So next time I go there I'm surely gonna look for that state bank ke saamne vaali sadak..I would like to see what you and Ruskin bond are all gung-ho about.

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  4. 12-13 बार मसूरी जा चुका हूँ। लगभग हर साल जुलाई या अगस्त के महिने में ही गया हूँ। मुझे भी मसूरी बिल्कुल वैसी ही लगती है, कोई बदलाव नहीं। और मुझे मसूरी इसलिये पसन्द है क्योंकि इस जगह जैसा वातावरण और मौसम किसी दूसरे बडे (नैनीताल, शिमला, डल्हौजी जैसे) हिलस्टेशन पर नहीं मिलता।

    प्रणाम

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