पिछले दिनो यहाँ जालंधर में एक बड़ी दुर्भाग्य पूर्ण घटना घटी .....हुआ यूँ कि एक सरदार जी अपने दो बेटों के साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने गए ........सरदार जी एक स्थानीय बैंक में मेनेजर हैं ......दो बेटे हैं . बड़ा बेटा पढ़ लिख के MBA कर के एक MNC में एक बहुत अच्छे package पे job कर रहा है ..... छोटे का visa लग गया है .....वो उच्च शिक्षा ग्रहण करने ( या यूँ कहिये की वहां मेहनत मजदूरी करने ) ऑस्ट्रेलिया जा रहा है . बड़े बेटे की शादी तय हो गयी है . अगले हफ्ते बारात जानी है ......घर में ख़ुशी का माहौल है सो तीनों बाप बेटा स्वर्ण मंदिर गए माथा टेकने ....वहाँ से माथा टेक के लौट रहे थे तो करतारपुर चौक के पास एक ट्रक जो reverse gear में back कर रहा था उस से इनकी 10 साल पुरानी मारुती 800 touch हो गयी और कमबख्त हेड लाइट फूट गयी .....इसके अलावा एक छोटा सा dent भी पड़ गया .......बस फिर क्या था . उतर पड़े तीनों बाप बेटे .......और वाक् युद्ध शुरू हो गया ........अब उच्च शिक्षित MBA और managerial level को लोग सड़क छाप ट्रक ड्राईवर से वाक् युद्ध करेंगे तो क्या रिजल्ट निकलेगा ? वहाँ कौन सी round table conference होनी थी ? सो ट्रक ड्राईवर महोदय ने गाली गलौज शुरू कर दी . और इस तरह first round में बैंक मेनेजर साहब और उनके दोनों होनहार पुत्र पराजित हो गए ......अब चक्कर ये हैं की पराजय को सम्मान पूर्वक गले लगाना सबके बस की बात नहीं होती . सो बाप बेटे लड़ाई को अगले लेवल पे ले गए ....और उन्होंने हाथा पाई शुरू कर दी जो शीघ्र ही मारपीट में तब्दील हो गयी .........अब हुआ यूँ की दोनों सेनाओं में जन बल का बहुत ज्यादा अंतर था .....यहाँ कौन सा कुरुक्षेत्र का धर्म युद्ध होना था जहां एक योद्धा से एक ही लडेगा .....यहाँ तो 3 :1 का ratio था .और तीनों बाप बेटा ने उस ट्रक ड्राईवर को 5 - 7 हाथ जड़ दिए .....और भैया , पता नहीं क्या हुआ कि बेचारा ट्रक ड्राईवर वहीं युद्ध भूमि में ही गिर पड़ा और वीरगति को प्राप्त हो गया . अब मेनेजर साहब पिछले 6 महीने से अपने दोनों बेटों के साथ जेल में बंद हैं और 302 का मुकदमा लड़ रहे हैं ......बड़े बेटे की नौकरी चली गयी है और शादी खटाई में पड़ गयी है , छोटे के ऑस्ट्रेलिया settle होने के सपने भी चकना चूर हो गए हैं .........जो परिवार कल तक अपने सौभाग्य और ईश्वर की असीम अनुकम्पा के लिए मत्था टेक रहा था अब जेल में दिन काट रहा है .
मेरे बच्चे prfessional sportsmen हैं .......बड़ा बेटा 110 किलो का पहलवान है , कुश्ती जैसे बेहद आक्रामक खेल में भारी भरकम आदमी को सामान्य जीवन में handle करना अक्सर बड़ा tricky हो जाता है . एक coach के रूप में हम उन्हें मैदान में बेहद आक्रामक होना सिखाते हैं पर मैदान से बाहर आते ही उन्हें सामान्य जीवन में शांत और संयत रखना होता है .......बच्चे इतनी आसानी से खुद पे काबू नहीं रख पाते .....मैदान में भी देखा जाता है कि उनमे अक्सर आपस में झड़प हो जाती है ......मैं हमेशा अपने बेटे को घर में शांत रखने की कोशिश में लगा रहता हूँ ..........उसे रोजाना 10 -20 बार कहना पड़ता है ........शांत पुत्र भीम ......शांत . इस क्रम में पिछले दिनों मैंने उसे वो सरदार जी के साथ घटी घटना सुनायी .उस दिन वो 50 साल का , अधेड़ , अपने ऊपर काबू न रख सका . 10 साल पुरानी मारुती कार ....अरे उसका dent हज़ार दो हज़ार में ठीक हो जाता , इस छोटी सी बात के लिए वहाँ उस दिन सड़क पे लड़ने की ज़रुरत नहीं थी . पर गुस्से में सरदार जी सब कुछ भूल गए ....स्थिति का मूल्यांकन कर ही नहीं पाए .....उस दिन उनका फ़र्ज़ तो ये बनता था कि लड़कों को शांत करते , पर वो तो खुद इतना excite हो गए कि आपा खो बैठे और स्वयं युद्ध में शामिल होगये .
professional sports में , जब आप पिछड़ गए हों , जब हार का खतरा सर पे मंडरा रहा हो ...........जब सब कुछ दाव पे लगा हो .........तो भी हम खिलाड़ियों को समझाते हैं .....शांत पुत्र भीम शांत ........आपे से बाहर न हो . ........relaxe .....टाइम आउट लो ...........4 बार deep breathing करो . अपने दिल दिमाग और शरीर पे काबू रखो ........ नयी रण नीति बनाओ .......और फिर आगे बढ़ो ...........पतंजलि योग पीठ में , स्वामी राम देव जी के सानिध्य में रह कर एक बहुत अच्छी चीज़ सीखने को ये मिली कि सामान्य जीवन में भी , जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों ...........जब घोर निराशा ने घेर रखा हो , या जब कभी यूँ ही थोडा सा depress या down फील कर रहे हों , या बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाये कभी .....तो.......खुद से कहें ...शांत पुत्र भीम ....शांत ........चार गहरी सांसें लें .....deeeeeeeeep breath ..... और आप देखेंगे की आप सचमुच एकदम शांत हो जायेंगे . दरअसल ये deep breathing ही तो प्राणायाम है ........ये गहरी सांस लेना ही तो भस्त्रिका प्राणायाम है .....आप एक बार कर के तो देखिये .....ऐसा प्रतीत होता है कि तपते रेगिस्तान में बारिश की फुहार पड़ गयी हो .....उबलते उफनते दूध को ठन्डे पानी की चंद बूँदें ही शांत कर देती हैं ............प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत और संयत रह कर ही जीता जा सकता है . इसलिए ......शांत पुत्र भीम .....शांत
dhanyavad
ReplyDeletebilkul sahi kaha.
main ab es shiksha ka palan karunga
इस प्रेरक पोस्ट के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteखेल इसीलिये बने हैं कि आदमी अपनी कुंठा, गुस्सा, भडास को मैदान में निकाल दे और बाकि समय में जिन्दगी खुशी से जी सके। पर आज लोग बच्चों को खेलकूद से दूर करके डॉक्टर, इंजिनियर बनाने में लगे हैं। और इन्हीं दबावों के चलते आज इंजिनियर पेशे के लोग सबसे ज्यादा हत्या और आत्महत्या कर रहे हैं, इसी पेशे वालों के परिवार सबसे ज्यादा टूट रहे हैं।
प्रणाम