बड़े दिनों से तमन्ना थी कोई फिल्म समीक्षा लिखने के ……. इधर कुछ बेहतरीन फिल्में देखी भी थीं ……पर मौक़ा न मिला या मूड न बना ……पर मेरे फेसबुक मित्र शेखर सुमन ने एक फिल्म की तारीफ की अपने स्टेटस अपडेट में …you tube से डाउनलोड की और आज देख डाली……… Listen अमाया। ……… अरसे बाद एक बेहतरीन फिल्म देखने को मिली। बल्कि मैं यूँ कहूंगा की मेरी लिस्ट में , जो मुझे आज तक की सबसे बेहतरीन दस हिंदी फिल्में देखने को मिली उन दस में listen अमाया को भी आज जगह मिल गयी। उम्र के तीसरे पड़ाव पे ज़िन्दगी में आये अकेलेपन और खालीपन को बहुत संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया है निर्देशक , अविनाश कुमार सिंह ने। अब ये जनाब कौन हैं। इनके इतिहास भूगोल का कुछ अता पता नहीं है। यहाँ तक की विकिपीडिया भी खामोश है इनके बारे में। पर अपनी पहली ही फिल्म में बन्दे ने एक बेहद परिपक्व निर्देशक के रूप में अपना सिक्का जमा लिया है। एक अत्यंत संवेदनशील विषय पे उन्होंने एक बेहतरीन फिल्म बनायी है जिसमें बिलकुल भी नाटकीयता नहीं है। ….फ़िल्म की पट कथा बहुत चुस्त है और संवाद शानदार है। …पर सबसे बढ़िया बात है फिल्म का ट्रीटमेंट
human relations पे फिल्म बनाने में गुलज़ार साहब का कोई जवाब नहीं। मानवीय संबंधों पे उन्होंने मौसम , आंधी , कोशिश , परिचय , नमकीन , माचिस , मेरे अपने जैसी बेहतरीन कालजयी फिल्में बनायी हैं और वैसे भी एक कवि और लेखक के रूप में उनकी पकड़ का जवाब नहीं है। परन्तु एक नए निर्देशक के रूप में जो प्रस्तुति अविनाश कुमार सिंह ने दी है वो उन्हें बहुत परिपक्व निर्देशक के रूप में स्थापित कर देती है। वो सिर्फ एक जगह चूकते दिखाई देते हैं। फिल्म के गाने। हिंदी फिल्मों में गाने हमेशा से एक समस्या रहे हैं और न जाने क्यों भारतीय निर्देशक फिल्म बनाते समय गानों का लोभ संवरण नहीं कर पाते। गाने फिल्म की स्टोरी के फ्लो को रोक देते हैं। गानों के माध्यम से कहाने कहने या कहानी को आगे बढाने की कला मुझे अब तक सिर्फ गुलज़ार साहब और अनुराग कश्यप में दिखाई दी है। कहने का मतलब ये की अगर फिल्म में गाने न होते तो ज़्यादा मज़ा आता। फिल्म का बेक ग्राउंड स्कोर और सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है।
अभिनय के लिए सिर्फ इतना कहूंगा की फिल्म में किसी ने अभिनय नहीं किया है। सबने अपने पात्रों को जिया है। दीप्ति नवल और फारूख शेख के लिए कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। वैसे एक बात कहूं , आज से पहले मैंने कभी फारूख साब को एक अभिनेता के रूप में बहुत सीरियसली नहीं लिया था , पर Listen अमाया देखने के बाद उनके अभिनय से मैं अभिभूत हूँ। नयी अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। पर एक बात तय है की अगर आपने चेन्नई एक्सप्रेस देखी है तो कृपया इस फिल्म को न देखें। हाँ यदि आपको चेन्नई एक्सप्रेस देख कर किसी प्रकार का अपराध बोध हुआ हो , हीन भावना आयी हो या गुस्सा आया हो तो आप listen अमाया देख कर प्रायश्चित कर सकते हैं।
अंत में मैं अपने मित्र शेखर सुमन जी का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिनकी प्रेरणा से मैंने ये बेहतरीन फिल्म देखी।
human relations पे फिल्म बनाने में गुलज़ार साहब का कोई जवाब नहीं। मानवीय संबंधों पे उन्होंने मौसम , आंधी , कोशिश , परिचय , नमकीन , माचिस , मेरे अपने जैसी बेहतरीन कालजयी फिल्में बनायी हैं और वैसे भी एक कवि और लेखक के रूप में उनकी पकड़ का जवाब नहीं है। परन्तु एक नए निर्देशक के रूप में जो प्रस्तुति अविनाश कुमार सिंह ने दी है वो उन्हें बहुत परिपक्व निर्देशक के रूप में स्थापित कर देती है। वो सिर्फ एक जगह चूकते दिखाई देते हैं। फिल्म के गाने। हिंदी फिल्मों में गाने हमेशा से एक समस्या रहे हैं और न जाने क्यों भारतीय निर्देशक फिल्म बनाते समय गानों का लोभ संवरण नहीं कर पाते। गाने फिल्म की स्टोरी के फ्लो को रोक देते हैं। गानों के माध्यम से कहाने कहने या कहानी को आगे बढाने की कला मुझे अब तक सिर्फ गुलज़ार साहब और अनुराग कश्यप में दिखाई दी है। कहने का मतलब ये की अगर फिल्म में गाने न होते तो ज़्यादा मज़ा आता। फिल्म का बेक ग्राउंड स्कोर और सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है।
अभिनय के लिए सिर्फ इतना कहूंगा की फिल्म में किसी ने अभिनय नहीं किया है। सबने अपने पात्रों को जिया है। दीप्ति नवल और फारूख शेख के लिए कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। वैसे एक बात कहूं , आज से पहले मैंने कभी फारूख साब को एक अभिनेता के रूप में बहुत सीरियसली नहीं लिया था , पर Listen अमाया देखने के बाद उनके अभिनय से मैं अभिभूत हूँ। नयी अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। पर एक बात तय है की अगर आपने चेन्नई एक्सप्रेस देखी है तो कृपया इस फिल्म को न देखें। हाँ यदि आपको चेन्नई एक्सप्रेस देख कर किसी प्रकार का अपराध बोध हुआ हो , हीन भावना आयी हो या गुस्सा आया हो तो आप listen अमाया देख कर प्रायश्चित कर सकते हैं।
अंत में मैं अपने मित्र शेखर सुमन जी का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिनकी प्रेरणा से मैंने ये बेहतरीन फिल्म देखी।
चलिए हमारा पोस्ट लिखना फलीभूत हुआ... उसके बाद आपको मिला के दो और लोगों ने फिल्में देखकर उसकी समीक्षा लिखी है.. अच्छा लगा, ऐसी फिल्मों का वाहवाही बटोरना ज़रूरी हो जाता है ताकि ऐसी कहानी को प्रोडूसर मिल सकें वरना तो लोगों को चेन्नई एक्सप्रेस देखना पड़ेगा.. अच्छी फिल्में बंद ही हो जायेंगी... फिलहाल तो आपको बधाई और शुक्रिया भी... :)
ReplyDeletethanks Shekhar , for this beautiful film ....keep suggesting good films .....
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी ..
ReplyDeleteआभार !