उन दिनों जब मैं NIS पटियाला में प्रवक्ता होता था तो sports psychology पढ़ाते हुए अक्सर अपने स्टूडेंट्स को एक कहानी सुनाया करता था .
Arctic क्षेत्र के बर्फीले प्रदेशों में जब snowmobiles नहीं हुआ करती थी तो आवागमन का साधन sledge होती थी जिसे sledge dogs खींचा करते थे . कुत्तों का एक समूह उस लकड़ी की गाड़ी को घसीट के ले जाता था जिसपे सामान या आदमी लदे होते थे .......... कुत्ते सब एक दुसरे से एक चमड़े की मज़बूत रस्सी से बंधे होते थे . सबसे आगे एक कुता होता था , अकेले ...........और फिर उसके पीछे दो दो की जोड़ी में कुत्ते बंधे होते थे .
सुबह जब मालिक गाडी निकालता तो कुत्ते अपने आप अपनी अपनी जगह आ कर खड़े हो जाते थे . अब इसमें सबसे मजेदार बात ये है की कौन सा कुत्ता कहाँ खडा होगा इसमें मालिक का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था . ये कुत्तों का आपसी मामला होता था जिसे वो आपस में निपट लेते थे .
ज़ाहिर सी बात है की सबसे आगे खड़े होने की ही मारा मारी थी . सबसे कमज़ोर सबसे पीछे और सबसे दिलेर और सबसे तगड़ा सबसे आगे . तो कुत्तों के इस समूह में पीछे वाले कुत्ते आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते थे . इंच दर इंच आगे बढ़ते थे . रात को जब विश्राम का समय आता और सारी दुनिया सो जाती तो कुत्तों की दुनिया में वर्चस्व की लड़ाई शुरू होती . हर कुत्ता अपने से आगे वाले से लड़ कर उसे हरा कर अगले दिन सुबह उसकी जगह पे कब्ज़ा करने की फिराक में रहता था . जिसमे ज्यादा ताकत होती , हिम्मत होती , दिलेरी होती वो दुसरे की छाती पे चढ़ बैठता और अगले दिन एक पायदान आगे सरक जाता ......... आगे वाला कुत्ता चुप चाप हार मान कर पीछे आ जाता था ......... इसी तरह सीढी दर सीढी लड़ते झगड़ते , चढ़ते आखिर वो समय आ जाता था जब सबसे आगे वाला सिर्फ एक कुत्ता बच जाता था . वहाँ पहुँचने का भी सिर्फ एक ही रास्ता था ............ फैसला हमेशा युद्ध भूमि में ही होता था .
रात को जब सारी दुनिया सो जाती थी , तो कुत्तों के टेंट से सारी रात गुर्राने और लड़ने के आवाजें आती रहती थी . मालिकों को मालूम होता था की वहाँ क्या चल रहा है .............. पर वो बिलकुल भी हस्तक्षेप नहीं करते थे . क्योंकि वो जानते थे की यही प्रकृति का नियम है ......... उस जान लेवा बर्फीली सर्दी में जिसे 400 किलो वज़न वाली गाडी खींचनी है , रोजाना सैकड़ों किलोमीटर .........उसकी छाती में कलेजा होना ही चाहिए ........ और किसकी छाती में कितना बड़ा कलेजा है , इसका फैसला रात को होता था . जूनियर कुत्ता अपने से सीनियर को देख के नथुने फुलाता था . बाल उसके खड़े हो जाते थे . गुर्राता था . आँखें दिखाता था , दांत दिखाता था और फिर टूट पड़ता था ......... और फिर एक दिन निर्णायक लड़ाई होती थी ......... जो तगड़ा पड़ता पटक के छाती पे चढ़ जाता था ........ और फिर अगली सुबह विजयी हो कर ........शान से सबसे आगे जा खडा होता था ...... पर तभी तक जब तक की कोई और न आ जाए पीछे से ......उसकी छाती पे चढ़ने वाला ............ वर्चस्व की इस लड़ाई में मालिकों का सिर्फ एक काम होता था ......... रात को लगे ज़ख्मों पे अगले दिन मरहम लगा दिया करते थे . जो सबसे आगे खडा होता था , अक्सर उसकी छाती पे पुराने ज़ख्मों के बहुत से निशाँ होते थे ...........
मोदी वो sledge dog है जो इंच दर इंच .........सीढी दर सीढी ............ मेहनत कर के .......लड़ के .........झगड़ के .........सबकी छाती पे चढ़ के आज सबसे आगे आ खडा हुआ है . 56 इंच की छाती पे बहुत से निशाँ हैं पुराने ज़ख्मों के .
जबकि राहुल गाँधी वो sledge dog है जिसे मालिक सोनिया गाँधी ने , ज़बरदस्ती , अन्य कुत्तों को मार के , डरा धमका के ......सबसे आगे खडा कर दिया है और बाकी के कुत्ते भी कान गिराए , पूँछ दबाये चुप चाप पीछे खड़े हैं . sledge को जैसे चलना है चल ही रही है ............
दोस्तों .....ख़ुशी मानिए की आपकी sledge के सबसे आगे मोदी खडा है .....शान से .........सीना ताने ......56 इंच का सीना ...........
Arctic क्षेत्र के बर्फीले प्रदेशों में जब snowmobiles नहीं हुआ करती थी तो आवागमन का साधन sledge होती थी जिसे sledge dogs खींचा करते थे . कुत्तों का एक समूह उस लकड़ी की गाड़ी को घसीट के ले जाता था जिसपे सामान या आदमी लदे होते थे .......... कुत्ते सब एक दुसरे से एक चमड़े की मज़बूत रस्सी से बंधे होते थे . सबसे आगे एक कुता होता था , अकेले ...........और फिर उसके पीछे दो दो की जोड़ी में कुत्ते बंधे होते थे .
सुबह जब मालिक गाडी निकालता तो कुत्ते अपने आप अपनी अपनी जगह आ कर खड़े हो जाते थे . अब इसमें सबसे मजेदार बात ये है की कौन सा कुत्ता कहाँ खडा होगा इसमें मालिक का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था . ये कुत्तों का आपसी मामला होता था जिसे वो आपस में निपट लेते थे .
ज़ाहिर सी बात है की सबसे आगे खड़े होने की ही मारा मारी थी . सबसे कमज़ोर सबसे पीछे और सबसे दिलेर और सबसे तगड़ा सबसे आगे . तो कुत्तों के इस समूह में पीछे वाले कुत्ते आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते थे . इंच दर इंच आगे बढ़ते थे . रात को जब विश्राम का समय आता और सारी दुनिया सो जाती तो कुत्तों की दुनिया में वर्चस्व की लड़ाई शुरू होती . हर कुत्ता अपने से आगे वाले से लड़ कर उसे हरा कर अगले दिन सुबह उसकी जगह पे कब्ज़ा करने की फिराक में रहता था . जिसमे ज्यादा ताकत होती , हिम्मत होती , दिलेरी होती वो दुसरे की छाती पे चढ़ बैठता और अगले दिन एक पायदान आगे सरक जाता ......... आगे वाला कुत्ता चुप चाप हार मान कर पीछे आ जाता था ......... इसी तरह सीढी दर सीढी लड़ते झगड़ते , चढ़ते आखिर वो समय आ जाता था जब सबसे आगे वाला सिर्फ एक कुत्ता बच जाता था . वहाँ पहुँचने का भी सिर्फ एक ही रास्ता था ............ फैसला हमेशा युद्ध भूमि में ही होता था .
रात को जब सारी दुनिया सो जाती थी , तो कुत्तों के टेंट से सारी रात गुर्राने और लड़ने के आवाजें आती रहती थी . मालिकों को मालूम होता था की वहाँ क्या चल रहा है .............. पर वो बिलकुल भी हस्तक्षेप नहीं करते थे . क्योंकि वो जानते थे की यही प्रकृति का नियम है ......... उस जान लेवा बर्फीली सर्दी में जिसे 400 किलो वज़न वाली गाडी खींचनी है , रोजाना सैकड़ों किलोमीटर .........उसकी छाती में कलेजा होना ही चाहिए ........ और किसकी छाती में कितना बड़ा कलेजा है , इसका फैसला रात को होता था . जूनियर कुत्ता अपने से सीनियर को देख के नथुने फुलाता था . बाल उसके खड़े हो जाते थे . गुर्राता था . आँखें दिखाता था , दांत दिखाता था और फिर टूट पड़ता था ......... और फिर एक दिन निर्णायक लड़ाई होती थी ......... जो तगड़ा पड़ता पटक के छाती पे चढ़ जाता था ........ और फिर अगली सुबह विजयी हो कर ........शान से सबसे आगे जा खडा होता था ...... पर तभी तक जब तक की कोई और न आ जाए पीछे से ......उसकी छाती पे चढ़ने वाला ............ वर्चस्व की इस लड़ाई में मालिकों का सिर्फ एक काम होता था ......... रात को लगे ज़ख्मों पे अगले दिन मरहम लगा दिया करते थे . जो सबसे आगे खडा होता था , अक्सर उसकी छाती पे पुराने ज़ख्मों के बहुत से निशाँ होते थे ...........
मोदी वो sledge dog है जो इंच दर इंच .........सीढी दर सीढी ............ मेहनत कर के .......लड़ के .........झगड़ के .........सबकी छाती पे चढ़ के आज सबसे आगे आ खडा हुआ है . 56 इंच की छाती पे बहुत से निशाँ हैं पुराने ज़ख्मों के .
जबकि राहुल गाँधी वो sledge dog है जिसे मालिक सोनिया गाँधी ने , ज़बरदस्ती , अन्य कुत्तों को मार के , डरा धमका के ......सबसे आगे खडा कर दिया है और बाकी के कुत्ते भी कान गिराए , पूँछ दबाये चुप चाप पीछे खड़े हैं . sledge को जैसे चलना है चल ही रही है ............
दोस्तों .....ख़ुशी मानिए की आपकी sledge के सबसे आगे मोदी खडा है .....शान से .........सीना ताने ......56 इंच का सीना ...........
बेहतर , बढ़िया .
ReplyDeleteजिन्हें संघर्ष द्वारा स्थान बनाना पड़ता है, सफ़लता पर उन्हीं का अधिकार जमता है।
ReplyDeleteमुझे अपने बारे में पता है और अपने सीने के बारे में भी मैं क्या करूं ?
ReplyDeleteमोदी वो sledge dog है जो इंच दर इंच .........सीढी दर सीढी ............ मेहनत कर के .......लड़ के .........झगड़ के .........सबकी छाती पे चढ़ के आज सबसे आगे आ खडा हुआ है . 56 इंच की छाती पे बहुत से निशाँ हैं पुराने ज़ख्मों के .
ReplyDeleteBahut sarthak aur bahut kuch kahti huyi post...
isiliye kehta hun blog likha karo, hamara jab man hoga aake padh liya karenge. bahut achha, maja aa gaya :)
ReplyDeleteबेहतरीन.
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteWaah
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति,चटपटी तुलना,कांगेसियों को मिर्च लगना तय है
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