Thursday, March 24, 2011

दो पत्र ....एक शहीद ने लिखा ...दूसरा chief of army staff ने


दोस्तों...... पिछला ब्लॉग लिखने के लिए जब मै सामग्री जुटा रहा था शहीद capt विजयंत थापर की ये चिट्ठी नेट पर मिल गयी.......ये चिट्ठी उन्होंने अपनी शहादत से एक दिन पहले अपने परिवार को लिखी ....आप भी पढ़ लीजिये




dearest papa ,mama,birdie and granny

1)by the time you get this letter ,i will be observing you all from the sky enjoying the hospitality of apsaras.

2) I have no regrets ,in fact even if i become a human again i'll join the army and fight for my nation

3) If you can come , please come and see where the indian army fought for your tomorrow.

4) As far as the unit is concerned ,the new chaps should be told about this sacrifice . I hope my photo will be kept in the 'A' coy mandir with Karni mata.

5) what ever organ can be taken should be done.

6) Contribute some money to the orphanage and keep on giving 50/-rs to Rukhsana per month and meet yogi baba.

7) Best of luck to birdie ,never forget this sacrifice of these men .Papa you should feel proud.Mama so should you .Meet .............(i loved her ). Mama ji forgive me for everything wrong i did .

OK then.its time for me to join my clan of the dirty dozen.my alpha party has 12 chaps .best of luck to you all.

live life king size

yours Robin.

एक पत्र लिखा था हमारे चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ दीपक कपूर ने .........महाराष्ट्र के मुख्या मंत्री को ........आदर्श हाऊसिंग सोसाईटी में एक फ्लैट पाने के लिए .........दरअसल वहां उसी व्यक्ति को फ्लैट मिल सकता था जो ......1) महाराष्ट्र का स्थाई निवासी हो 2) जिसकी आमदनी 15000 से 30000 के बीच हो ......तो अपने दीपक कपूर जी दोनों शर्तें ही पूरी नहीं करते थे .......क्योंकि महाराष्ट्र के वो हैं नहीं और उनकी तनख्वाह उन दिनों 90000 रु थी .......सो उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री विलास राव देशमुख को पत्र लिख कर निवेदन किया की कृपया मेरे केस में ये स्थाई निवासी वाली शर्त हटा ली जाये ......और जब आमदनी की बात आई तो उन्होंने एक फर्जी सेलरी स्लिप लगा कर अपनी तनख्वाह 23000 रु दिखा दी और आदर्श में एक फ्लैट अपने नाम आवंटित करा लिया .......वैसे जब वो ये सारी तिकड़म लड़ा रहे थे तो बताते हैं कि उनके पास पहले से 8 फ्लैट और प्लाट गुडगाँव .मुंबई और पंचकुला जैसे शहरों में थे .......पंचकुला में उन्होंने अपने स्कूल मेट मुख्य मंत्री हुडा साहब से जुगाड़ भिड़ा के एक प्लाट ले लिया था ...कौड़ियों के दाम .....पर वहां एक नियम है कि आप ऐसे प्लाट को 5 साल बेच नहीं सकते .......सो बेचारे गरीब आदमी ने एक और चिट्ठी लिखी मुख्य मंत्री हुडा को ....कि मेरी कुछ पारिवारिक मजबूरियां हैं ......इस लिए मेरे केस में कृपया ये 5 साल वाली शर्त हटा ली जाये .......पिछले दिनों ये चिट्ठी देश के सारे अख़बारों में छपी थी ......अब दीपक कपूर जी सफाई देते घूम रहे हैं रक्षा मंत्री को ........
कई बार मैं सोचता हूँ कैसे कैसे लोग भरे पड़े हैं दुनिया में ........एक है कि 22 साल की उम्र में जान दे दी ....और मरते मरते भी कह गया ...अगर फिर दुबारा जनम मिला तो फिर भर्ती हूँगा फ़ौज में ...अपने देश के लिए लड़ने के लिए .........अगर कोई अंग बचा हो मेरे शरीर में..... तो निकाल लेना .....फूंकने से पहले ......ताकि काम आ सके किसी के .........दे देना, कुछ पैसे उस अनाथ आश्रम के लिए, जिस से कि जी सकें वो बच्चे इज्ज़त से.... जिनका कोई नहीं है इस दुनिया में ........ चिंता थी उसे रुख़साना की ......वो 6 साल की बच्ची ,कश्मीर की ,जिसे दिया करता था वो 50 रूपये हर महीने ,ताकि वो पढ़ सके ........मरते हुए भी उसे चिंता थी उस लड़की की ......जिसे प्यार करता था वो .......पर अपने देश से ज्यादा नहीं ..........अपने भाई को हिदायत दे के मरा ...की भूलना मत उन लोगों की शहादत को .......जो तुम्हारे भविष्य के लिए मरे .....
और एक है .......उसी लड़के का बॉस .......जान दे रहा .......मरा जा रहा है बेचारा ...........एक और फ्लैट के लिए .........एक और प्लाट मिल जाये किसी तरह से ......पारिवारिक मजबूरियां हैं बेचारे की .......
वो चिट्ठी , जो मरते मरते विजयंत थापर ने अपने मां बाप को लिखी थी ....दीपक कपूर के लिए लिखनी चाहिए थी ..........

Sunday, March 20, 2011

सज़ा तो बच्चों को मिली .......

अमृतसर का एक बहुचर्चित केस है ....एक नर्स ने अपने अस्पताल से मंजू नामक महिला का एक नवजात बच्चा एक औरत रंजीत कौर को चार लाख में बेच दिया और उसकी जगह कहीं से ला कर एक लड़की रख दी ।लड़का अपने नए घर में अमर प्रताप के नाम से सिख रीति रिवाज़ से पलने लगा और लड़की मुस्कान के नाम से ....... 5 साल बाद वो नर्स ऐसे ही एक अन्य केस में पकड़ी गयी तो ये केस भी खुल गया । अब मंजू एवं उनके पति हरीश ने अपना लड़का वापस लेने के लिए केस कर दिया ......तीन साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद विद्वान् जज ने मंजू एवं हरीश के पक्ष में फैसला देते हुए अमर प्रताप को उनको सौंप दिया और नर्स रमेश रानी , रंजीत कौर और उसके पति सुखविंदर सिंह को 7 साल की सज़ा सुना दी । साथ ही पुलिस को यह आदेश भी दिया की मुस्कान के असली मां बाप का भी पता लगाया जाये ..... ऊपरी तौर पर देखा जाये और कानून की दृष्टि से देखा जाये तो यह एक सीधा सादा केस है जिसमे न्याय हुआ है ....दोषियों को सज़ा मिली है .....मिलनी भी चाहिए ।
परन्तु इस केस में दो निर्दोष बच्चे मारे गए है .....सबसे बड़ी सज़ा उन्ही दोनों को मिली है । मानवीय दृष्टिकोण से उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है .कृपया इन तथ्यों पर गौर करें ....

1) अमर प्रताप ने अपना सारा जीवन रंजीत कौर की गोद में बिताया ....उसने उसे बहुत प्यार से पाला .....कोर्ट केस के दौरान वो जब भी कोर्ट में आता था तो अपनी मां (रंजीत कौर ) से चिपका रहता था। यदि उसे उस से दूर करने की कोशिश की जाती थी तो जोर जोर से रोता था । अब उसे एक विद्वान जज के आदेश पर हमेशा के लिए अपनी मां से दूर कर दिया गया है ....

२) मुस्कान सांवले या यूँ कहें की काले रंग की एक बच्ची थी जिसे नर्स किसी झोपड़ पट्टी से खरीद लाई थी । हरीश और मंजू को पहले ही दिन से शंका रहती थी की कुछ गड़बड़ हुई है । क्योंकि उसकी शक्ल सूरत उनके परिवार में किसी से भी नहीं मिलती थी , फिर भी उन्होंने मुस्कान को लाड़ प्यार से पाला । आज मुस्कान 11 साल की है और ये जानती है की मंजू एवं हरीश उसके असली मां बाप नहीं हैं ...वो किसी झोपड़ी में पैदा हुई थी ।

3) अमर प्रताप का नाम अब बदल गया है....शुरुआत उसने एक सिख बच्चे के रूप में की थी पर अब उसके केश काट दिए गए हैं और उसे हिन्दू रीति रिवाज़ से पाला जा रहा है .....

4) अमर प्रताप ये जानता है की उसके असली मां बाप जेल में हैं ...और ये लोग ....हांलाकि अच्छे लोग हैं ........प्यार भी करते हैं .......फिर भी ......

बच्चा कानून नहीं जानता ........उसे कानून से कोई मतलब नहीं ...कानून गया भाड़ में .......वह तो सिर्फ इतना जानता है की उसकी माँ ....जो उसे दिलो जान से प्यार करती थी .......उस पे जान छिड़कती थी...... उस से छीन ली गयी है । आज जेल में है ......मुस्कान ये जानती है की ये मेरे असली मां बाप नहीं ....मैं तो किसी झोपड़ पट्टी में पैदा हुई थी .......भाग्य ने यहाँ पंहुचा दिया ......पर अब चूँकि घर का असली वारिस मिल गया है ......तो ......
आज तो दोनों बच्चे छोटे हैं ....पर बहुत जल्दी बड़े हो जायेंगे ......आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में जब डाक्टर अंग प्रत्यारोपण करते हैं तो उन्हें एक ही चिंता रहती है ......कि शरीर कहीं नए अंग को reject न कर दे । क्या guarantee है कि कुछ साल बाद जब अमर प्रताप 18 साल का हो जायेगा , तो अपनी असली मां को नहीं ढूंढेगा ......अक्सर हम लोग अखबारों में पढ़ते हैं कि फिजी, सूरीनाम , और मारीशस जैसे देशों से लोग अपने पुरखों का गाँव घर खोजते हुए आते हैं .......अनाथालयों से गोद लिए गए बच्चे अपने असली मां बाप को ढूँढने की कोशिश करते हैं .....यहाँ तो एक सयाने बच्चे को उसकी मां से ज़बरदस्ती ले लिया गया है .......बताया जाता है कि जब अमर प्रताप को अंतिम बार उसकी मां से अलग किया गया तो वहां एक ह्रदय विदारक दृश्य उत्पन्न हो गया था ......
कहा जाता है कि कानून अँधा होता है, संवेदनाओं और भावनाओं की भाषा नहीं समझता । पर क़ानून की एक भावना यह भी है की चाहे 100 मुलजिम छूट जाएँ पर एक बेक़सूर को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए .....पर इस केस में सबसे बड़ी सज़ा तो बेक़सूर बच्चों को ही मिली है .......और एक बात और है ....अगर मुस्कान के गरीब मां बाप ने भी अपनी लड़की वापस लेने के लिए केस कर दिया तो.......... ?????????? क्या जज साहब मुस्कान को उस झोपड़ पट्टी में वापस भेज देंगे .....या अपने स्व विवेक का प्रयोग करेंगे .......और हरीश और मंजू .....क्या मुस्कान को उसके असली मां बाप को सौंप देंगे ...... ??????????? कानूनी तौर पर दोनों बच्चों को लगातार मनो चिकित्सक की counselling दी जा रही है .......ऐसा आदेश दे कर जज साहब ने अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली है ...कानून का पेट तो भर दिया है .....पर जैसे कानून संवेदना और भावना की भाषा नहीं समझता वैसे ही संवेदनाएं और भावनाएं भी कानून की भाषा नहीं समझती ......दुनिया का कोई मनोचिकित्सक अमर प्रताप को ये नहीं समझा सकता कि मां और biological mother में क्या अंतर होता है .....क्यों कि मां तो मां होती है .........उसमें कोई किन्तु परन्तु नहीं चलता ......
मुझे ऐसा लगता है कि अगर ये मामला किसी गाँव की पंचायत में आया होता तो वो इससे ज्यादा तर्कसंगत और मानवीय फैसले पर पहुँच सकते थे .......क्यों ??????? आप होते तो क्या फैसला करते ?

१) अगर मुस्कान के मां बाप भी मुकदमा कर दें तो क्या उन्हें उनकी लड़की दे दी जानी चाहिए ?
२) जज साहब फैसला दे भी दें और अगर मुस्कान उस झोपड़ पट्टी में जाने से मना कर दे तो ........?
३) १८ साल का.... यानि बालिग़ होने के बाद अगर अमर प्रताप अपनी असली मां रंजीत कौर के पास वापस जाने का फैसला कर ले तो ???????
४) अब जब की उन्हें अपना बेटा वापस मिल गया है ,अगर हरीश और मंजू का व्यवहार मुस्कान के प्रति बदल
जाये तो ?????????
५) अपने नए भाई ....जिसके आने की वजह से मुस्कान की position वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी ....उसके प्रति इर्ष्य और द्वेष की भावना रखने लगे तो ?????????

कृपया अपनी राय comments में व्यक्त करें ..........और बहस कों आगे बढायें ।

Saturday, March 12, 2011

बेटा ...माँ तो यहीं रहेगी ....इसी पुराने घर में .....

पंजाब के एक शहर में एक डॉक्टर साहब हैं ....शहर के जाने माने सर्जन हैं ....अपना खुद का अस्पताल चलाते हैं .....काफी सफल अस्पताल है .....पत्नी भी डॉक्टर है ......भरा पूरा परिवार है ......सुख शांति है ......पिता जी बचपन में ही गुजर गए थे ....तब जब वो बमुश्किल एक या दो साल के थे ......उनकी मां भरी जवानी में विधवा हो गयीं ......पर उन्होंने पुनर्विवाह करने से मना कर दिया ....एक ही बेटा था उसे पढ़ाया लिखाया ....डॉक्टर बनाया ...आज बेटा एक सफल डाक्टर है ...खूब पैसा कमाता है .......परिवार पहले पुराने शहर में पुश्तैनी मकान में रहता था ....तंग गलियों में पुराना सा मकान था ....डाक्टर साहब जब भी उस घर को ठीक ठाक कराने की बात करते तो माँ कहती ...इसको क्या ठीक कराना ...नया मकान बनायेंगे ......स्वाभाविक सी बात है .....डॉक्टर साहब को नया मकान तो बनाना ही था .....सो उन्होंने बनाया ......पुराने शहर से बाहर एक नयी कालोनी में उन्होंने महल जैसा घर बनाया .......गृह प्रवेश हुआ ...डाक्टर साहब ने शानदार पार्टी दी .सब लोग शामिल हुए .....सब कुछ ठीक ठाक था ...पर अगले दिन जब नए घर में शिफ्ट होने की बात आई तो मां ने बहू और बेटे से कहा ....बेटा तुम लोग जाओ ,मैं तो यहीं रहूंगी .....डाक्टर साहब भौचक्क.....अरे ये क्या हुआ ....मां क्यों नाराज़ हो गयी .....परेशान हो गए...पत्नी से पूछा कोई बात हुई है क्या .....पत्नी ने कहा नहीं कोई बात नहीं हुई ......डाक्टर साहब की पत्नी को मैं स्वयं जानता हूँ ...बहुत ही अच्छी ,सभ्य सुसंस्कृत महिला हैं .....एक आदर्श बहू....माँ का सचमुच बहुत ध्यान रखती हैं और उनसे अपनी माँ की तरह ही प्यार भी करती है .....अब दोनों पति पत्नी परेशान ....डरते डरते माँ से पूछा ....क्या बात हो गयी ....माँ बोली की बेटा कोई बात नहीं हुई ...कोई नाराजगी नहीं है ......कोई परेशानी भी नहीं है , पर मैं नए घर में नहीं जाउंगी .....तुम लोग आराम से वहां रहो ... मैं यही रहूंगी .....
बहू और बेटे ने बहुत मिन्नतें की ......हाथ पाँव जोड़े ....पर मां टस से मस नहीं हुई .जब बच्चों ने बहुत ज्यादा आग्रह किया .....कारण पूछा, तो बोली .......बेटा दो साल का था तू जब तेरे पिता जी मरे ....आज तीस साल हो गए उन्हें गए ....पर आज भी वो मुझे यहाँ दिखाई देते हैं .....मैं उन्हें यहाँ महसूस करती हूँ .....इस घर के एक एक कण में वो रचे बसे हुए हैं ......यहाँ मुझे लगता है कि मैं आज भी उनके साथ रहती हूँ ....तेरे उस नए घर में मुझे तेरा बाप नहीं दिखेगा बेटा ......इसलिए मुझे उन से अलग मत कर ...मुझे यहीं रहने दे .....बहू बेटा चुप हो गए ....उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था .....कोई तर्क नहीं था ....
ये बात कोई 15 साल पुरानी है .....डाक्टर साहब उस नए वाले घर में रहते हैं .....माँ अब भी उसी पुराने घर में रहती है ....वो घर आज भी वैसा ही है जैसा पहले था .....डाक्टर साहब के लाख आग्रह के बावजूद माँ ने उसे renovate नहीं करने दिया .....वो उसे उतना ही maintain करते हैं की उसका पुराना स्वरुप बरकरार रहे .... आज की नयी पीढ़ी के बच्चों को शायद ये बात समझ में नहीं आयेगी । उन्हें ये माँ की हठ धर्मिता , जिद या पागलपन लग सकता है ....आज के युग में ,जब पाश्चात्य सभ्यता ने प्रेम की परिभाषाएं बदल दी हैं ....जहाँ रिश्ते पल भर में टूट जाते हैं .....प्रेम का ये 50 साल पुराना मॉडल दकियानूसी ...outdated लगता है .....
मुझे ये किस्सा खुद डॉक्टर साहब की पत्नी ने सुनाया था......उत्सुकता वश मैं माँ से मिलने उस पुराने घर गया .....मुझे ये देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि वो बूढी महिला आज भी कितनी खुश है ....उतनी ही खुश जितनी आज की कोई नव विवाहिता अपने पति के साथ होगी .......

Saturday, March 5, 2011

कोई बात नहीं ....मैं इसे ठीक कर लूंगी ....positive attitude

बात लगभग 16 साल पुरानी है .तब मेरी बेटी डेढ़ या दो साल की रही होगी । हम दोनों कहीं जा रहे थे ट्रेन से । बनारस के रेलवे स्टेशन से हमें गाड़ी पकडनी थी । बनारस में स्टेशन पर लकड़ी के खिलोने बिकते हैं .....शायद शहर में ही कहीं बनते होंगे ......हाकर टोकरियों में रख कर बेचते हैं .....उसके हाथ में एक झुनझुना था .....एक लकड़ी के टुकड़े पर spring से दो छोटे छोटे लट्टू से fix थे ....हिलाने पर टिक टिक बजता था ..... उसे मालूम था माल कैसे बिकेगा ........वह मेरी बेटी के सामने उसे टिक टिक बजाने लगा .......मेरी बेटी ने तुरंत हाथ बढ़ा दिए । पापा.......दो रुपये की चीज़ थी ....मैंने ले दी ..........वो घटना आज भी मेरी आँखों के सामने घूम रही है ......खिलौना हाथ में आते ही .....मानो सारी दुनिया जीत ली हो ......सारी कायनात मुट्ठी में हो ....उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था .......पूरे जोश के साथ वह उसे जोर जोर से हिलाने लगी ....टिक टिक टिक टिक .......उसे खुश होते देख मुझे उससे भी ज्यादा ख़ुशी हो रही थी ........हम दोनों के सुख का कोई थाह नहीं था .......सुख एक मानसिक अवस्था है .......इसका बाहरी आडम्बर से कोई लेना देना नहीं है ...पर विडंबना यही है कि हम हमेशा सुख को बाहरी आडम्बर में ही खोजते हैं ......जीवन में ख़ुशी और सुख तो चारों ओर बिखरे हुए हैं ...कोई चुनने वाला चाहिए .....पर इश्वर से हम दोनों की वह ख़ुशी देखी नहीं गयी ......दो रु का वह खिलौना ....पतले से स्प्रिंग से जो लट्टू जुड़े हुए थे .....वो स्प्रिंग टूट गया ......मुझे एक झटका सा लगा ....एक क्षण के लिए निराशा हुई .....हमारे उस असीम आनंद में बाधा जो पड़ गयी थी .....पर अपनी डेढ़ साल की बेटी की पहली प्रतिक्रिया मुझे आज तक याद है .......उसे एकदम झटका सा लगा .......मानो सब कुछ बर्बाद हो गया हो .....जैसे दुनिया ही लुट गयी हो ......उसके चेहरे पर निराशा के भाव आए .....उसने सिर्फ इतना ही कहा ....ओह्ह्ह ......टूट गया .....पर तुरंत .......मुश्किल से एक दो क्षण बाद उसने खुद को सम्हाल लिया ......उसने उस झुनझुने के वो सारे टुकड़े समेटे और मुस्कुरा कर बोली ...कोई बात नहीं ...मैं इसे ठीक कर लूंगी .....
मुझे नहीं पता ...डेढ़ साल के बच्चे में इतनी अक्ल होती है क्या ....कि किसी चीज़ को ठीक किया जा सकता ......शायद उसने मेरे चेहरे पर पर निराशा के भाव पढ़ लिए थे और मुझे तसल्ली देना चाहती थी .....या ये उसकी एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी ....शायद और कोई बच्चा होता तो जोर जोर से रोता .........पर उस दिन इस छोटी सी घटना से मेरी डेढ़ साल कि बेटी मुझे ये सिखा गयी कि .......कोई बात नहीं ....दुनिया ख़तम नहीं हुई है .....कोई बात नहीं ....मैं इसे ठीक कर लूंगी .....लोग पता नहीं क्यों जीवन में इतनी जल्दी हार मान लेते हैं .......

मशहूर गायक गुलाम अली की मशहूर ग़ज़ल की या पंक्तियाँ मुझे हमेशा याद रहती हैं

वक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर
गम न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी

और अपनी बेटी का मुस्कुराता हुआ चेहरा और ये कहना की ...कोई बात नहीं मैं इसे ठीक कर लूंगी ..........

Friday, March 4, 2011

हम चुप क्यों रहते हैं ?....हल्ला बोल

पिछला एक महीना सफ़र में बीता ... अपने गाँव जाने का मौका मिला ..और फिर कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पंद्रह दिन बिताये ..... हमारा देश कितना खूबसूरत है ....ये देखने का मौका मिला....इस के अतिरिक्त यात्रा का सुख ....travelling से बड़ी कोई education नहीं .... कुछ अनुभव बड़े ही मजेदार रहे ..... टीवी पर नई फिल्म ......ये साली ज़िन्दगी .....के प्रोमो देख कर ही मैंने ये मन बना लिया था कि ये फिल्म ज़रूर देखनी है ....अच्छी फिल्म मैं हमेशा सिनेमा हॉल में ही बैठ कर देखता हूँ ....और अच्छी फिल्म देखना और संगीत सम्मलेन सुनना , ये दो काम मेरी ज़िन्दगी के अत्यंत ज़रूरी काम हैं सो इनके लिए मैं समय निकाल ही लेता हूँ ...या यूँ कहिये कि ये दो निहायत ज़रूरी काम करने के बाद अगर समय बच जाए तो बाकी के काम हो पाते हैं ...... हॉल में बैठ कर फिल्म देखने का मज़ा ही कुछ और है .....सो बनारस के ip mall में देखी .......mall में तीन बार पूरी तलाशी ले कर ही अन्दर जाने दिया गया .....हॉल में घुसने से पहले तीसरी बार तलाशी कि बाद सुरक्षा कर्मियों ने मेरी पानी कि बोतल वही रखवा ली ......मैंने पूछा क्यों ?????? तो उन्होंने कहा कि पानी की बोतल और खाने पीने का कोई सामन अन्दर नहीं ले जा सकते......मैंने पूछा क्यों ????? जवाब मिला अन्दर कैंटीन में सब कुछ मिलता है ..... मैंने कहा की जब मेरे पास अपना पानी है तो मैं क्यों आप की कैंटीन से 25 रु की पानी की बोतल खरीद कर पीयूं ?????? जवाब मिला ....यहाँ का यही नियम है ....देखिये बाकी सब लोग भी तो अपनी बोतल यही रख के गए हैं........मैंने सुरक्षा कर्मियों से कोई बहस नहीं की ......सीधा मेनेजर के ऑफिस में गया .......वहां उनसे कहा की आप कैसे मुझे अपनी कैंटीन से पानी खरीदने के लिए मजबूर कर सकते हैं .....उसने मुझसे तर्क करने की कोशिश की पर मैं अड़ा रहा ......अंत में उसने अपने आदमी से कहा ...साहब की बोतल वापस दे दो ......इस पूरे प्रकरण में पूरे तीन मिनट की फिल्म छूट गयी ......फिल्म बहुत ही अच्छी थी ....मज़ा गया .......अरसे बाद एक अच्छी फिल्म देखी ........

अगले दिन वाराणसी के रेलवे स्टेशन की irctc की कैंटीन में मेरे बेटे ने राजमा चावल की प्लेट मंगाई राजमा क्या थे बस रंगीन पानी में कुछ राजमा पड़े थे .......तभी मैंने ध्यान दिया की मेरी बगल वाली टेबल पर एक लड़का अपनी प्लेट यूँ ही बिना खाए छोड़ कर चला गया था .......मैंने मेनेजर को अपने पास बुलाया ......पहले तो वो नहीं रहा था ....फिर जब मैंने अपनी आवाज़ ज़रा ऊंची की तो वो आया ....मैंने उससे कहा ज़रा गिन कर बताइये इस में राजमा के कितने दाने हैं .......इतना सब कुछ देख कर बाकी लोग भी शुरू हो गए और मेरी हाँ में हाँ मिलाने लगे और कैंटीन की खराब व्यवस्था को कोसने लगे .....मैंने शिकायत पुस्तिका मंगाई तो मेनेजर गिडगिडाने लगा ......एक अच्छा ख़ासा नाटक हो गया .....मेरे बेटा इस पूरे प्रकरण में असहज महसूस कर रहा था ......क्या पापा ...आप भी ...छोटी सी बात पे पीछे ही पड़ जाते हैं ........वह मुझे रोज़ देखता है छोटी छोटी ऐसी ही बातों पर बहस करते हुए ....लोगों से उलझते हुए ......
एक दुकान में जब मैंने दुकानदार को 100 का नोट पकड़ाया तो उसने मुझे 8 रु के सिक्के देने की बजे 8 टॉफियां पकड़ा दी .....जब मैंने उससे पूछा की ये क्या है ....तो उसने जवाब दिया की खुले नहीं हैं ..... मैंने उससे पूछा की क्या आप मुझसे 92 रु की बजे 92 टॉफियां ले लेंगे ......इस पर वो नाराज़ हो गया और बहस करने लगा .......मेरे बच्चे मुझसे कहते हैं की पापा आप हमेशा 1 या 2 रु के लिए ही झगड़ा करते हैं ......उनको लगता है की मुझे अपनी सोच को थोड़ा बड़ा करना चाहिए .......
पर मैं उनसे एक ही बात कहता हूँ कि...... बेटा ....मेरी औकात इतनी नहीं है की मैं इस देश में एक लाख पचहत्तर हज़ार करोड़ की चोरी रोक सकूं .....इतनी औकात तो बेचारे मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी की भी नहीं है ......पर हाँ मैं ip मॉल में पानी की एक बोतल के लिए तो आवाज़ उठा ही सकता हूँ ......irctc की कैंटीन में अच्छे राजमा चावल के लिए तो लड़ ही सकता हूँ ........ट्रेन में चाय वाले से तो कह ही सकता हूँ की पूरी 150 ml चाय दो .......आपको क्या लगता है ...कि..... अगर वो लड़का........ जो उस दिन उस कैंटीन में अपनी राजमा चावल की प्लेट छोड़ कर चुप चाप चला गया ...अगर वह भी मेरी तरह चिल्लाता ....और रोजाना कुछ लोग इसी तरह चिल्लाते ....तो व्यवस्था में थोडा सुधार नहीं होता ???????
भ्रष्टाचार एक सामाजिक समस्या है और हमेशा एक रु से शुरू होता है ....सबसे खतरनाक स्थिति तब होती है जब इसे सामाजिक मान्यता मिल जाती है ......हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है की अत्याचार को सहन करना सबसे बड़ा पाप है........और अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम आवाज़ तो उठा ही सकते हैं ......इसके लिए कौन सी कुर्बानी देनी है..... भगत सिंह की तरह ......अरे हाँ .....कुर्बानी पर मुझे ध्यान आया की उस दिन वाराणसी के ip mall में कितनी बड़ी क़ुरबानी दी मैंने ...आप सोच भी नहीं सकते .......उस पूरे प्रकरण में पूरे तीन मिनट की फिल्म छूट गयी ........ आप के लिए छोटी सी बात हो सकती है जनाब ....पर मेरे लिये तो कुर्बानी ही है क्योंकि फिल्म मैं हमेशा शुरू से अंत तक ही देखता हूँ ...एक दम पहले frame से आखिरी वाले तक .........तब तक...... जब तक की ये लिखा जाये ..........A vishal bhardwaj film ।

हम चुप क्यों रहते हैं
चुप चाप सहते हैं
मुह खोल
हल्ला बोल