Tuesday, May 31, 2011

गीला जैसलमेर और सूखी चेरापूंजी

पिछले दिनों एक लेख  पढ़ा ...शायद भास्कर में ......की जैसलमेर में साल में औसतन 11 दिन बारिश होती है और चेरापूंजी में 180 दिन .......सो मन हुआ की इसपे ज़रा और जानकारी जुटाई जाये .......सो पता लगा की जैसलमेर जो की एक सूखा रेगिस्तान है ...जहाँ रेत के सिवाय और कुछ नहीं है औसतन 150 मिली मीटर यानी 6 इंच ही बारिश होती है साल भर में ..........और चेरापूंजी .जो की विश्व का दूसरा सर्वाधिक गीला यानि  wet स्थान है वहां औसतन 11777 मिली मीटर या 464 इंच वर्षा होती है हर साल ....यानि की साल में औसतन 180 दिन जम के पानी बरसता है ......अब सुनिए असली बात ...वो ये की जैसलमेर में कभी भी यानी साल भर लोगों को पानी की कमी से नहीं जूझना  पड़ता यानी की .....पीने और नहाने धोने के लिए पर्याप्त पानी लोगों के पास रहता है साल भर और सुनते हैं की अपनी चेरापूंजी का ये हाल है भैया की वहां के लोग पानी की भयंकर कमी से परेशान हैं और बेचारी औरतें कई कई किलोमीटर पैदल चल के पीने लायक पानी ढो कर लाती हैं ........क्यों चकरा गए न आप भी   ? ? ? ? तो भैया सोचने वाली बात है की ऐसा क्यों है  ? सीधी सी बात है ......जैसलमेर तो सदियों से सूखा रहा है ....पानी हमेशा से ही वहां एक दुर्लभ और अत्यंत कीमती संसाधन रहा है इस लिए हमेशा से ही लोग उसे सहेजते आये हैं ...उन्हें मालूम है की पानी की एक एक बूँद की क्या कीमत होती है ......और उसे कैसे बचा के रखना है ............इस लिए वहां एक बूँद पानी भी सम्हाला जाता है ........हर घर में एक छोटी सी बावड़ी होती है और वर्षा का सारा पानी उसमे इकठ्ठा होता है ...गाँव और शहर के चारों ओरे तालाब ही तालाब होते हैं .......बावड़ियाँ होती हैं ....और उन्हें भी हमेशा सहेज के रखते हैं लोग .........जहाँ कहीं भी पानी है उसके आसपास एकदम साफ़ सफाई रखते हैं ....समाज का सबसे बड़ा धार्मिक कार्य बावड़ी ,तालाब और कूआं खुदवाना ही माना जाता है ...लोग धर्मार्थ  प्याऊ चलते हैं .......स्वाभाविक सी बात है ऐसी जगह पानी की कमी कैसे हो सकती है .........
                                   अब देखिये चेरापूंजी वालों को ....उन्होंने पानी की इज्ज़त कभी की नहीं .....ये तो उनके संस्कारों में ही नहीं है .....सो लो भोगो अब ......श्रीमान जी लोग एक एक बूँद के लिए तरस रहे हैं .......पर फिर भी सुधरने को तैयार नहीं हैं ....अभी भी वाटर मैनेजमेंट सीखने को तैयार नहीं हैं ..........हाँ सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन चालू आहे .......हुआ यूँ की एक घुड़सवार सरपट दौड़ा चला जा रहा था ...रास्ते में उसने देखा की दो लोग आम के पेड़ के नीचे लेटे हैं  और उनमे से एक हाथ हिला कर उसे बुला रहा है ....उसने सोचा की मुसीबत में लगते है........ भला आदमी था .....घोडा मोड़ के वापस लाया ....तो एक आदमी बोला ....भैया वो सामने जो आम पड़ा है वो पकड़ा दो .....अब घुड़सवार को बहुत गुस्सा आया ...उसने कहा की बड़े आलसी आदमी हो यार तुम ....एक आम नहीं उठा कर खा सकते ........इसपर वो दूसरा आदमी जो लेटा था बोल पड़ा की ठीक कहते हो भाई तुम ....ये सचमुच बहुत ही निकम्मा और आलसी आदमी है ......कल सारी रात कुत्ता मेरा मुह चाटता रहा पर इसने एक बार भी नहीं भगाया .........ठीक यही हाल है अपने चेरापूंजी वालों का ....प्यासे मर जायेंगे पर सुधरेंगे नहीं ..........
                                       तो भाइयों मुझे तो ये समझ आया की महत्व इस बात का नहीं है की ईश्वर ने आपको कितना दिया ....बल्कि ये महत्त्वपूर्ण है की उसने आपको जो कुछ भी, थोडा बहुत, दिया है उसे आपने कितना सम्हाल कर रखा और उसका कितना सदुपयोग किया ......अब चाहे वो बुद्धि हो, बल हो, talent हो ,अवसर हों ,विद्या हो या संसाधन हों ..........बहुत थोड़े से भी असीम सुख प्राप्त किया जा सकता  है .............और बहुत ज्यादा होने पर भी सुख की कोई guarentee नहीं है
.......वैसे जैसलमेर और चेरापूंजी दोनों ही बहुत खूबसूरत जगहें हैं .............घूमने लायक .........जैसलमेर मैं देख आया हूँ ...चेरापूंजी बाकी है .....अगली पोस्ट में आपको जैसलमेर की सैर कराऊंगा ............

Sunday, May 29, 2011

सावधान ........आपके आसपास ज़मीन में chinese bamboo गड़े हुए है

                 दोस्तों........अपने लेख कई बार मैं एक कहानी सुना के शुरू करता हूँ जो ज़्यादातर काल्पनिक होती है ....आज फिर एक कहानी सुना रहा हूँ ,,,,,पर ये काल्पनिक नहीं है. यह एक सच्ची घटना है .........काफी पुरानी बात है ...एक लड़की थी ........बचपन में एकदम सामान्य ........सामान्य से घर में जन्मी थी .अक्सर बीमार रहती थी .....बचपन में पैर जल गए ...महीनों बिस्तर में पड़ी रही ....dull सी personality थी ......स्कूल जाने लगी ......पढने में शुरू से ही dull थी ....बाकी activities में भी कोई बहुत अच्छी  नहीं थी .........सो ऐसे बच्चों को स्कूल में भी कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं मिलता ..........वो अक्सर back benchers बन के रह जाते हैं ...स्कूल के गुमनाम चेहरे ........तो साहब उसके जीवन में शुरू से ही एक सिलसिला शुरू हो गया ....fail होने का ......हर टेस्ट में fail .....क्लास टेस्ट में ...fail ....unit टेस्ट में fail ....half yearly ....fail ...annual exam ...fail ....अब CBSE  बोर्ड  की कोई policy है शायद की पांचवीं तक किसी को fail नहीं करना है ...उसे अगली क्लास में promote कर देना है ......   सो वो fail होते होते 6th में पहुँच गयी ........अब साहब fail होना तो उसका जैसे trade mark हो गया था सो वो 6th में भी fail हो गयी ......इस बीच ऐसा भी नहीं था की घर वालों ने कोई कोशिश नहीं की  ...पर तमाम कोशिशों का कोई रिजल्ट नहीं निकला ....और ये भी नहीं की स्कूल वालों का कोई दुराग्रह था क्योंकि स्कूल तो उसका हर 2 या 3 साल में बदल जाता था ....खैर जब 6th   में भी फेल  हो गयी तो इस बार promotion नहीं हुआ ...उसी क्लास में रोक दी गयी ......घर वालों ने हाथ पाँव  जोड़ के किसी तरह अगली क्लास में promote कराया .......और इसी तरह वो लुढ़कते पुढ़कते .......consistently  and   persistently   ....हर एक टेस्ट में fail होती हुआती 10th में पहुँच गयी  .......अब CBSE  बोर्ड के exam में कौन सी सिफारिश चलनी थी सो वहां भी उसने असफलता का झंडा गाड़ दिया .....यानी 10th   में भी फेल.......... अब आप ये बताइये की क्या किया जा सकता है ..........एक बच्चा जो लगातार 10 साल तक रोजाना fail हुआ उसका क्या किया जा सकता है .....कभी सोच के देखा है ????????? 10th   fail लड़की का क्या future   होता है ....आइये मैं बताता हूँ १) वो 11th में admission नहीं ले सकती .इसलिए BA का भी कोई चांस नहीं ......
२) वो सारी जिंदगी 10th fail कहलाएगी .
३) उसे कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी .....चपरासी की भी नहीं .....अब तो फ़ौज में भी भर्ती नहीं हो सकती ...वहां भी 10th पास मांगते हैं .....
४) उसकी शादी किसी अच्छे,  पढ़े लिखे well settled लड़के से नहीं होगी .... अजी 10th फ़ैल लड़की से कौन शादी करना चाहता है आजकल .....
५) कहने का मतलब उसका future ख़तम ......
                                                               आइये अब ये देखते हैं की ऐसे बच्चे ,जो की पढ़ाई में dull होते हैं उनके साथ क्या होता है समाज में ........रोज़ रोज़ का तिरस्कार .....teachers की रोज़ रोज़ की डांट फटकार  ...कई बार तो मार पीट .....हर रोज़ हर subject में failure का ठप्पा ......ऊपर से घर में डांट ....उन्हें पूरी तरह नकारा ...निकम्मा ...कामचोर ....नालायक ....मान लिया जाता है ........सहपाठियों द्वारा तिरस्कार ,दुत्कार ....ऐसे बच्चों से अक्सर तेज़ तर्रार बच्चे कोई मेल मिलाप नहीं रखते .......और वो और ज्यादा dull होते चले जाते हैं .......उन्हें एक ऐसे सिस्टम ने failure ...नकारा घोषित किया है जो की एक फूल प्रूफ सिस्टम माना  जाता है ........जो हर साल लाखों करोड़ों बच्चों का मूल्यांकन करता है ...सैकड़ों साल पुराना एक जांचा परखा सिस्टम है .......अब आप यूँ समझ लीजिये की जौहरियों की एक संस्था जो हर साल लाखों पत्थरों का मूल्यांकन करती है  ,उसने एक पत्थर का 10 साल मूल्यांकन कर के उसे पत्थर घोषित कर दिया और बाकियों को हीरा तो ऐसी  संस्था के ऊपर शक भी कैसे किया जा सकता है .......तो साहब अब आप कल्पना कीजिये की उस लड़की का क्या हुआ होगा ...........
                                                                ज्यादातर लोग यही कहेंगे की शादी कर के  बच्चे पाल रही होगी ........तो सुनिए साहब ....जिस दिन उस लड़की को certified नकारा यानि failure ....... घोषित किया गया ,उसके ठीक 10 साल बाद वो लड़की राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में ....हिन्दुस्तान की नामचीन और महान हस्तियों की तालियों की गडगडाहट के बीच ,अपने field में सर्वोत्कृष्ट सेवाओं और उपलब्धियों  के लिए ...देश का सबसे बड़ा पुरस्कार ,खुद महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों से प्राप्त कर रही थी .......उस लड़की का नाम है भारती सिंह ......और उसे मैं इसलिए जानता हूँ क्योंकि वो मेरी सगी छोटी बहन है ..........और मैंने उसे प्रतिदिन ......असफलता से आगे निकल कर सफलता की बुलंदियों तक पहुँचते देखा है .......भारती ने 1996   में भारत का sports  का सर्वोच्च   पुरस्कार ...arjuna   award   प्राप्त किया और वो अपने करियर में विश्व के सबसे महान weightlifters में गिनी गयीं ...और उन्होंने world champonship और asian games में कई पदक जीते ......olympics में उन दिनों women weightlifting नहीं थी ....नहीं तो वहां  भी मेडल जीतती .उन्होंने हाल ही में CISF से ASSISTANT COMMANDANT के पद से volunteery retirement  लिया है ...अगर वो अपनी पूरी नौकरी करती तो शायद DIG या IG बन के retire होतीं ......अब सोचने वाली बात ये है की आखिर  गड़बड़ कहाँ हुई इस कहानी में ...और भारती सिंह की लाइफ में turning point कहाँ से आया .  गौर से देखने पर पता लगता है की वो जीवन में कभी भी एक dull या failure बच्चा नहीं थी ...दरअसल हमारा सिस्टम उसको गलत पैमाने से नाप रहा था .........अब साहब अगर आपको quadratic equation ...और trignometry नहीं आती तो आप fail .......अगर आप लिखने में spelling mistake करते हैं तो आप fail .....सूर्य ग्रहण कैसे लगता है ...ये आपने रटा  नहीं है तो आप fail .......फिर आपमें चाहे जितनी भी प्रतिभा है ....चाहे आप किसी अन्य field में विश्व की महानतम हस्ती बनने  की क्षमता रखते हों ..........पर चूंकि आपको quadratic equation नहीं आती इसलिए आप फेल  ...और आपका future   ख़तम .......हमारे education system ने तो आपको fail यानी नकारा घोषित कर दिया है .......अब आप ऐसा करो सब्जी की रेड़ी लगा लो सड़क पे ........कायदन होना तो ये चाहिए की सिस्टम उस बच्चे का मूल्यांकन करे और यह बताये की बेशक इस बच्चे को trignometry नहीं आती ..और ये shakespeare के नाटकों पर निबंध नहीं लिख सकता ...पर इसमें ...xyz field में अपार क्षमता है लिहाजा इसे 10th   में पास किया जाता है और आगे पढने की इजाज़त दी जाती है ...इसे आगे  इस इस field में पढाई करनी चाहिए .........अब मुझे आप ये बताइये की भारती सिंह के केस में ...भारती सिंह fail हुई या भारती सिंह का मूल्यांकन करने में हमारा education system fail हुआ ........दरअसल भारती सिंह तो एक विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं ...पर उस प्रतिभा को पहचानने में हमारे अकादमिक महारथी और हमारा अकादमिक सिस्टम fail हो गए और खामखाह 10 साल तक उस बेचारी बच्ची को haress करते रहे ...उसे दुत्कारते रहे ..........अब ये तो उसकी हिम्मत  थी की उसने हार नहीं मानी और तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करती रही और एक दिन दुनिया के शीर्ष पर विराजमान हुई .......पर न जाने ऐसी कितनी भारती सिंह होंगी इस दुनिया में जिसे ये सिस्टम अपने पैरों तले  कुचल देता है. 

                                   यहाँ एक बात मैं और साफ़ कर देना चाहता  हूँ की अपने professional career में भारती ने सिर्फ sports में ही excell नहीं किया बल्कि हर field में टॉप किया ..........कॉलेज से BA किया 2nd division ...बढ़िया अंग्रेजी बोलती है .........फिर CISF में सब  इंस्पेक्टर के पद पर ज्वाइन किया और promotion ले कर assistant commandant तक पहुंची .......300 से 500 मर्दों की कंपनी को सफलता पूर्वक कमांड किया .....लखनऊ .जोधपुर और दिल्ली के international airports की security की incharge रही और इस दौरान लीडरशिप की मिसाल पेश की ....अपने करियर के दौरान उन्होंने कुछ ऐसे cases solve किये जहाँ उनकी intelligence को देख के उनके senior officers दंग रह गए, CISF की ट्रेनिंग की passing out parade में बेस्ट कैडेट घोषित हुई और परेड को command किया .......1 किलोमीटर लम्बे मैदान में हजारों dignitries की भीड़ के सामने 1500 officers को command देना कोई हंसी खेल नहीं होता ....अच्छे अच्छों की टांगें कांपने लगती हैं ......जब वो retirement लेने लगी तो उनके एक senior ऑफिसर  ने कहा था की आप गलती कर रही हैं ...अगर आप पूरी नौकरी करेंगी तो IG बन के retire होंगी .........विचारणीय विषय ये है की हमारे education system ने शुरू में ऐसी विलक्षण प्रितभा को पहचानने  में चूक कैसे कर दी ........क्या ये सिस्टम ऐसी ही हज़ारों लाखों  प्रतिभाएं हर साल नष्ट कर रहा है ......मैं अक्सर ये प्रश्न अपने व्याख्यानों में उठता हूँ ........तो कुछ लोग इसका ये जवाब देते हैं की आप जिस सिस्टम की इतनी आलोचना कर रहे हैं वही सिस्टम विश्व स्तरीय प्रतिभाएं पैदा भी तो कर रहा है ....तो इसका जवाब ये है मेरे दोस्त ...की खराब से खराब सिस्टम भी कुछ results तो देता ही है ....100 किलो सरसों में 35 किलो तेल निकलना ही चाहिए ........अब अगर एक कोल्हू 20 किलो निकालता है तो आप उसे 20 किलो के लिए शाबाशी देंगे या उससे उस 15 किलो का हिसाब मांगेंगे जो waste हो गया .........
                                            यहाँ मैं ये बता दूं की इस success स्टोरी में उनके parents का क्या role रहा ....पहले तो उन्होंने उसे किसी तरह (व्याख्या करने की ज़रुरत नहीं है ) 10th पास कराया .अब चूंकि उसका maths और science से पिंड छूट गया इसलिए आगे पढ़ाई में कोई समस्या नहीं हुई .दुसरे जब उसे इतने सालों तक नाकारा घोषित किया जाता था तब उसके parents रोजाना ground में ये सिद्ध करते थे की देखो ...you are the best ...तुम तो यहाँ दौड़ में लड़कों को भी हरा देती हो ...you are the best ......तुम तो एक दिन world champion बनोगी ........और वो रोज़ इसी तरह जीतती रही ...रोज़ शाम को उसके लिए तालियाँ बजती थीं ......शाम को वो दिन भर का अपमान और तिरस्कार भूल जाती थी .........और इसी तरह धीरे धीरे ..एक दिन वो सचमुच world champion बन गयी ......ज़रा कल्पना करें ...अगर उसके parents भी स्कूल वालों की तरह उसे नाकारा मान लेते तो  ?????????
                                             moral  of the story

                                                                                                    
1 ) अगर आपका बच्चा आज पढने में कमजोर है तो ,निराश न हों .......वो कल का thomas alva edison हो सकता है .

2 ) सब बच्चों को 9 नंबर का जूता पहना के मत दौड़ाओ ...........भाई मेरे सबके पाँव छोटे बड़े होते हैं .......आखिर एक ही  question paper और एक ही syllabus  से सारे देश के बच्चों का मूल्यांकन कैसे  किया जा सकता है .......
3 ) 20 किस्म का बीज एक साथ खेत में डाल दोगे ...तो ध्यान रखो सबका जमाव एक साथ नहीं होगा .........मूंग तीसरे दिन जम जाएगी ,आम १५ दिन बाद निकलेगा ,सूरन ( जिमीकंद, yam ) दो महीने बाद जमेगा और chinese bamboo ...... 2 साल बाद निकलेगा ...इसलिए आपको कोई हक़ नहीं की आप उस बेचारे chinese bamboo को निकम्मा ,नाकारा  या failure घोषित करें ......क्योकि आपको पता होना चाहिए की chinese bamboo बेशक शुरू में थोडा ज्यादा टाइम लेता है germination में ,पर जिस दिन वो जमीन तोड़ के ऊपर आ जाता है तो सिर्फ 7 हफ्ते  में 40 फुट  लम्बा  हो जाता है ........
सावधान : कृपया ध्यान दीजिये .....आपके इर्द गिर्द ज़मीन में ,आपके घर में , स्कूल में   या समाज में .........कुछ chinese bamboo गड़े हो सकते  हैं ....कृपया उन्हें  अपने पैरों तले न कुचलें   .......क्योंकि  एक दिन वो जमीन तोड़ के बहार निकलेंगे और देखते देखते 40 फुट के हो जायेंगे .......

Saturday, May 28, 2011

confused राजा की confused प्रजा .........

                                            एक बार की बात है .एक था राजा .बहुत समझदार था .चालाक भी बहुत था .प्रजा भी थी.बहुत समझदार थी .चालाक भी बहुत थी .अब राजा का फ़र्ज़ ठहरा अपने देश की और प्रजा की बाहर के दुश्मनों से और पडोसी राज्यों से रक्षा करना .सो उसने एलान किया की हम फ़ौज यानि आर्मी बनायेंगे ......सो उसने बहुत सारे टैक्स प्रजा पे लाद के ,गरीब बच्चों का पेट काट के फ़ौज बनाई. टैंक  खरीदे ,बख्तरबंद गाडिया खरीदीं .बहुत सारी तोपें भी खरीदीं .राजा बहुत खुश था ...प्रजा भी खुश थी...आखिर देश में फ़ौज बनी थी.चमचमाते हुए ,भारीभरकम टैंक आये थे ........40 किलोमीटर दूर तक मार करने वाली तोपें आयी थीं ........सो कुछ दिन बड़ा जोश रहा देश में .....बीच चौराहे पर परेड हुई , सारी प्रजा ने उन तोपों को देख के तालियाँ  बजाई .........फिर बात आयी गयी हो गयी ....अब लड़ाई कोई रोज़ रोज़ थोड़े ही होती है ........तोपें गोदाम में खड़ी खड़ी बोर होने लगी ....उन्होंने तो सोचा था की काफी सारा एक्शन होगा लाइफ में ...काफी सारा adventure होगा .........पर ये क्या ....यहाँ तो इस शेड में खड़े हैं पिछले दो साल से ...यूँ कहें की पड़े हैं दो साल से .......सो वो तोपें बोरे हो गयीं ....कुछ उनमे से confuse हो गयीं .......राजा तो अपने महल में मस्त था ...उसे कोई टेंशन नहीं थी की पीछे से क्या हो रहा है .....सो बहुत सारी तोपों और बख्तरबंद गाड़ियों और tanks   ने decide किया की  कुछ और करेंगे ....कुछ ने मुंसीपाल्टी में apply कर दिया की भैया हम तो बोरे हो गए यहाँ खड़े खड़े सो हमें तो लगा लो कूड़ा फेंकने में .....कुछ ने tourism डिपार्टमेंट में apply कर दिया की हम तो tourists की सेवा करेंगे ........उन्हें ही अपनी पीठ पर चढ़ा के घुमाएंगे .......कुछ तोपों ने कहा की हमें तो तैनात कर दो बच्चों के पार्क में .....बच्चे हमारी नाल पे चढ़ के झूला झूलेंगे .........अब मुंसीपाल्टी को क्या फर्क पड़ता है उसे तो कूड़ा फिकवाना है ....फिर कूड़ा चाहे कूड़े वाला ट्रक ढोए चाहे बख्तरबंद गाड़ियां  ............पर कुछ तोपें ऐसी थी जिन्होंने कहा की भाई देखो ये गलत है ....we are topes ....and we should remain topes ......सो कुछ तोपें तो खड़ी रही अपनी बैरक में और कुछ मस्ती से कूड़ा ढोती  रही ........अब देश में बहस छिड़ गयी की भैया ये क्या हो रहा है ........तो कूड़ा ढोने   वाली तोपों ने कहा की आखिर हम भी तो देश की सेवा ही कर रहे हैं .......बात तो पते की थी सो सब चुप हो गए ...राजा भी मस्त हो गया ........प्रजा तो पहले ही मस्त थी .......
                                               फिर एक दिन राजा के दिमाग में आया की अगर पडोसी ने हमला कर दिया तो क्या होगा ........क्या हम इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं ....तो वजीर ने कहा की महाराज फ़ौज तो जितनी बड़ी उतनी अच्छी ....जितनी मजबूत उतनी अच्छी ......तो राजा ने कहा की ठीक है फ़ौज को और मज़बूत करो .......तो वजीर  ने सुझाव दिया की लड़ाई के लिए तो पूरे देश को तैयार रहना चाहिए ............तो साहब राजा ने आर्डर कर दिया की ठीक है अब से कूड़ा फेंकने वाले ट्रक भी इतने मज़बूत बनेंगे की लड़ाई में काम आ सकें ...सो कूड़े के ट्रक अब bulletproof  बनने लगे . ....राजा बहुत खुश हुआ और अपने महल में चला गया .......प्रजा पहले से भी ज्यादा खुश हो गयी क्योंकि उसने अखबार में फुल पेज का advertisement देखा की देश बहुत तरक्की कर गया है और अपने तो कूड़े के ट्रक भी बुल्लेट प्रूफ हैं....
                                    अब जिस देश के कूड़ा ढोने वाले ट्रक भी bulletproof हों वो तो बहुत मजबूत देश हुआ इसमें कोई शक नहीं  .......अब कूड़े  वाले ट्रक में attitude आ गया .....वो जब देखो तब ...जिस किसी से भिड़ जाता था .........इधर बहुत सी  तोपें जो अब तक फ़ौज की barrak में खड़ी थीं उन्हें अचानक ये इलहाम हुआ की यार यहाँ तो गर्मी ही बहुत है .........उफ़ कितना धूल धक्कड़ है ......कितने गंदे लोग हैं यहाँ के ....काले कलूटे ...यहाँ की औरतें सुन्दर नहीं हैं ...........लोगों में civil sense तो है ही नहीं ...सडकें टूटी हुई हैं .........corruption बहुत ज्यादा है ...और ये की यहाँ अपना कोई future नहीं है ........इसलिए हम तो यहाँ अब नहीं रहेंगे ..........सो उनमे से बहुत सी तोपें तो निकल ली पतली गली से ..............चली गईं ठन्डे ,साफ़ सुथरे और सभ्य लोगों के देश में .............लोगों को कानो कान खबर तक नहीं हुई .........फिर एक दिन भैया मचा जो हल्ला ....अरे तोपें कहाँ गयीं .......इतनी कम कैसे रह गयीं ..........पर राजा चूँकि relaxe जो कर रहा था सो उस तक बात न पहुंची .......वजीर ने सब लोगों को समझा दिया की ....अबे कुछ जानते भी हो ....हमारी इन तोपों ने वहां जा के कितना नाम रोशन किया है मुल्क का .........उनकी तो सारी फ़ौज ही हमारी वाली तोपों के बल पे चल रही है ........कितनी इज्ज़त है हमारी तोपों की वहां ........अब ये गर्व करने की बात तो थी ही सो जनता की छाती गर्व से चौड़ी हो गयी....वो खुश हो गयी और फिर से अपने अपने काम में busy हो गयी ........ इधर कूड़े वाले ट्रक जो थे उनने मौका देखा और हो गए सब फ़ौज में भारती ..........फिर धीरे धीरे सब ठीक हो गया ....फ़ौज की गिनती पूरी हो गयी .......कुछ तोपें कूड़ा ढोने में लग ही गयी थीं .....बाकी कुछ वहां दूर ....साफ़ सुथरे देशों में settle हो गयी....अलबत्ता ये बात अलग है की सबको वहां भी फ़ौज में जगह न मिली सो कुछ वहां कूड़ा ढोने लग गयीं ........
                                    पर फिर एक दिन भैया ....मचा जो हल्ला ....आया आया ......दुश्मन आया .......और फिर जिसके हाथ जो लगा ...ले के दौड़ा .......डंडा लाठी ईंट पत्थर .........जो कुछ हाथ लगा ले के दौड़ पड़े लोग .....औरतें बेलन ले के पहुँच गयीं ....घुडसवार को घोड़ा न मिला तो गधे पे चढ़ के ही कूद पड़ा मैदान में .........देश भक्त जनता जो ठहरी .......अब पुब्लिक का जोश देख के दुश्मन की सिट्टी पिट्टी गुम....सो वो लौट गया उलटे पाँव ..........राजा को पता चला ......बड़ा खुश हुआ ...उसने कहा विजय पर्व मनाओ .........सो पब्लिक जश्न में डूब गयी ....लोगों ने गेहूं बेच के पटाखे खरीदे .....आतिश बाजी हुई सारी रात .........राजा फिर चला गया महल में relaxe करने .......जनता फिर busy हो गयी ...अपने अपने काम में ...अब तक busy है .........
                                     तो भैया ये है स्टोरी अपने मुल्क की .......एक हैं चेतन भगत ...IIT से इंजीनियरिंग कर के .IIM से MBA करने चले गए .........फिर कुछ साल एक बैंक में बीमा और fixed deposit बेचते रहे लोगों को और अब उपन्यासकार हो गए है.  बाकी उन जैसे कितने हैं देश में ये पता नहीं .............एक थे गौतम गोस्वामी ....MBBS ,MD करके IAS हो गए और लगे पटना में DM बन के बाढ़ पीड़ितों की सेवा करने ....घोटाले में जेल गए और वहीं मर खप गए ............एक और दोस्त हैं हमारे ....MD डॉक्टर हैं .......पिछले बीस साल से इनकम टैक्स की कमिश्नरी कर रहे हैं ....और  हम लोग यहाँ गाँव में झोला छाप डाक्टरों से इलाज करवा रहे हैं ......हम हिन्दुस्त्तानियो की खून पसीने की कमाई चूस के सरकार ये बड़े बड़े मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज चलाती है और डाक्टर साहब वहां अमेरिका में जा के मानवता की सेवा कर रहे हैं ..........हमारे एक और दोस्त हैं वो geology में MTech कर के पंजाब नेशनल बैंक की क्लर्की कर रहे हैं ...... और बिहार का teacher sunday ,monday की spelling नहीं जानता और teacher बन के बैठा है ......देश के नौनिहालों का भविष्य बना रहा है .........फ़ौज कहती है अच्छे अफसर नहीं मिल रहे ....quality से समझौता करना पड़  रहा है .....पद खाली पड़े हैं .........लड़का कहता है देश और फ़ौज गयी चूल्हे भाड़ में यहाँ तो सिर्फ मोटी तनख्वाह चाहिए ....... तो भैया बात ये है की मुझे ये समझ नहीं आ रहा की कौन confused   है .......मैं confuse हूँ या ये लड़के confused है ....या फिर इनके employers confused है ........या सरकार confused है .....या हम सभी confused है .......और अपनी समझ में ये भी नहीं आ रहा की इसका उपाय  क्या है .......अब आप ही बताओ ........अपन तो confused हैं ..........

Thursday, May 26, 2011

सबसे निचले पायदान पर बैठे लोग ......

                                          आज बिहार के super thirty के संचालक आनंद भाई का लेख पढ़ा हिन्दुस्तान में ......पढ़ के बहुत अच्छा लगा ....कि इतने गरीब  मगर प्रतिभावान बच्चे  IIT  में  पहुँच रहे हैं ...सिर्फ अपने पुरुषार्थ के बल पर .....और आनंद कुमार जैसे लोग जो चाहते तो आज करोडपति नहीं अरबपति होते आज भी इन गरीब बच्चों के साथ काम कर रहे हैं ...मुफ्त में .......बिना एक भी पैसा लिए .....कही से कोई चंदा नहीं लेते ...न sarkar से न किसी पूंजीपति से ..........आनंद आज भी एक पुरानी हीरो होंडा motorcycle पे चलते हैं.  कुल दो जोड़ी कपडे और एक चप्पल ही उनकी जमा पूँजी है ........super thirty के बारे में बता दूं आपको ....ये पटना में एक शेड  के नीचे चलने वाला एक coaching center है जहाँ इसके संचालक श्री आनंद कुमार पूरे देश से 30 बेहद गरीब मगर प्रतिभावान बच्चों को चुन कर उन्हें इंजीनियरिंग के enterance exam की तैयारी कराते  हैं ..........कोई पैसा नहीं लेते .....यहाँ admission मिलने का एक ही criteria है .......प्रतिभा ...और गरीबी ......और इस coaching center   कि खासियत ये है कि पिछले दस बारह सालों से ....जब से ये चल रहा है .......इसके सभी बच्चे IIT में सेलेक्ट हुए हैं ........आज तक कोई फेल नहीं हुआ ......इस बार बताते हैं कि पूरे देश से बच्चे यहाँ पढने आये हुए थे.....जिस बिहार से लोग भाग के बाहर जाते हैं वहां अब बाहर के लोग आ रहे हैं .......लगता है इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है .......
                                             मैंने अपने जीवन के कुछ साल  गाँव में बिताए हैं .....और इस बात को बड़ी शिद्दत से महसूस किया है कि हमारे समाज ने सचमुच गाँव में रहने वाले लोगों को सीढ़ी के आखिरी पायदान पे बैठने के लिए मजबूर कर रखा है ........मेरे गाँव में आज से 40 साल पहले 6 घंटे रोज़ बिजली आती थी ....20 साल पहले भी 6 घंटे रोज़ आती थी आज भी 6 घंटे रोज़ आती है ........गाँव से कुछ दूर एक क़स्बा है ....जहाँ 4 ATM हैं ........on an average ....2 out of service रहते हैं  और जो एक आध चल रहा होता है उसके  सामने दिन के समय आम तौर पर 50 से 100 लोगों तक की लाइन होती है .........वो एक ATM  2 -3 लाख लोगों को cater करता है .......वहीँ शहर में हम लोग  हर कदम पर atm देखते  हैं ........मुझे याद है सन 1990 में मुझे दिल्ली में नौकरी मिली थी .....केंद्रीय सरकार में .....पर सिर्फ तीन  महिना वो नौकरी कर के मैंने वापस अपने गाँव जा कर कुछ करने का निर्णय लिया ......तो मेरे एक बुजुर्ग ताऊ जी ने कहा था कि लोग गाँव से दिल्ली जाते हैं और तुम दिल्ली से गाँव आना चाहते हो ........और मुझे ये भी अच्छी तरह याद है कि उस दौरान में सैकड़ों लोगों से मिला था और सिर्फ एक आदमी ने ये कहा था कि नहीं तुम ठीक कर रहे हो .......गाँव के लिए न सरकार कुछ करना चाहती है न समाज ,न कोई NGO ..........जबकि सुना है कि 70 प्रतिशत हिदुस्तान इन गावों में ही रहता है ......ऐसे में आनंद जी जैसे लोगों  का काम देख के उम्मीद जगती है ..........
                                                 यहाँ पतंजलि योग पीठ .हरिद्वार में ग्रामोत्थान योजना पर कार्य चल रहा .....इसके तहत पूरे देश से कुछ गाँव चुन कर उनमे कार्य कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जायेगा और स्वयं ग्रामवासी ये कार्य करेंगे .........अन्ना  हजारे ये कार्य सफलता पूर्वक अपने गाँव रालेगन सिद्धि और अन्य आसपास के क्षेत्रों में कर चुके हैं ........इसमें एक योजना तो हर घर में सोया बीन का दूध पहुंचाने की है ...ये दूध सिर्फ २ रु लीटर घर पे बनाया जा सकता है और अत्यंत पौष्टिक होता है ....इसके बारे में मैं विस्तार से अपने एक पूर्व लेख में  लिख चूका हूँ.
                                                 एक अन्य बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना है गाँव में सस्ती सुन्दर टिकाऊ आवासीय योजना .......10 से 20 हज़ार रु में मकान .......भारत कि पारंपरिक भवन निर्माण शैली .......जिसमे कि स्थानीय सामग्री ....मिटटी ....लकड़ी...बांस ..जैसी चीज़ों से मकान बनाते थे ....उस शैली को पुनर्जीवित करना ......अब आप सोच रहे होंगे कि मैं गाँव वालों के लिए झोंपडिया और कच्चे  मकान बनाने कि बात कर रहा हूँ .....जी नहीं ......आधुनिक वैज्ञानिक मापदंडों पर खरा,भूकंप रोधी ,बेहद मज़बूत ,जिसकी लाइफ 500 साल से भी ज्यादा होगी ,maintenance free ,और सुदर ....जी हाँ ....इतना सुन्दर कि आप देखते रह जाएँ .......आपने शहर में जो अब तक सबसे खूबसूरत मकान देखा है उस से ज्यादा सुन्दर .......इस काम में हमारे साथ एक सिविल इंजिनियर ,एक architect ,एक interior designer , एक राज मिस्त्री और एक कारपेंटर की टीम कार्य कर रही है .......और गाँव कि ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए ऐसे घर डिजाईन किये जा रहे हैं जो 10 या 20 हज़ार में तैयार honge ...सारे furniture समेत ....अलबत्ता सारा या ज़्यादातर furniture मिटटी का ही बना होगा ........double bed , सोफा, कुर्सियां  ,टेबल  ,अलमारी इत्यादि ....... इस घर को बनाने में सारा कार्य ...यानि श्रमदान गृहस्वामी स्वयं करेगा .......material सारा स्थानीय रहेगा ...अर्थात यथा संभव वही चीज़ें इस्तेमाल होंगी जो आसपास ही पैदा होती हैं ....घर में एक आधुनिक kitchen और बाथरूम होगा ........ये घर सिविल इंजीनियरिंग के अनुरूप और 8 .5 richter scale के भूकंप को बर्दाश्त करने लायक होगा .........आगे चल के देश के हज़ारो ...लाखों लोगों को इस तरह के मकान बनाने कि ट्रेनिंग दी जाएगी ......
                                             अपने युवराज राहुल गाँधी जी भी सुना है आजकल गावों में काफी कार्य कर रहे हैं .......अक्सर उनकी फोटो किसी झोपडी में  खाना खाते हुए छप जाती है ......मैंने सुना है की वो एक रात किसी विदेशी diplomat के साथ किसी झोपडी में सोये भी थे .......पर यहीं थोड़ी सी चूक हो जाती है.......... उनकी फोटो खाना खाते छपी थी ....और वो उस झोपडी में सोये थे .........मेरा एक विनम्र सुझाव है उन्हें ........किसी दिन ...दिन भर काम करने के बाद ......मूसलाधार बारिश में किसी चूती हुई झोपडी में रात बिताएं .....भूखे .....और सोने की कोशिश करें .........सुना है की भूख की पीड़ा को भरे पेट समझा नहीं जा सकता .........प्रधान मंत्री बनने की जो ट्रेनिंग वो ले रहे हैं आजकल ....उसके तहत उन्हें एक किसान के घर 2 -3 साल रह के खेती करनी चाहिए ....तभी वो एक किसान की पीड़ा को ....उसकी भूख को ........उसकी समस्याओं को समझ पाएंगे ..........आखिर  70 % हिन्दुस्तान तो इन्ही गावों में रह के खेती करता है राहुल जी .........

Wednesday, May 25, 2011

अस्पृश्यता............तेरी छूआछूत बहुत खराब ..........मेरी छुआछूत बहुत अच्छी......

दो तीन साल पुरानी बात है ......हमारे गाँव में , घर पे कुछ निर्माण  कार्य चल रहा था.......बगल के गाँव के मिस्त्री और मजदूर काम कर रहे थे ....हमारे यहाँ ,पूर्वी उत्तरप्रदेश में मजदूरों को मजदूरी के साथ दिन का भोजन देना पड़ता है ......ग्रामीण समाज ,भारत में आज भी बहुत दकियानूसी सोच रखता है ........दलितों से आज भी अस्पृश्यता  का व्यवहार होता है .........लोग उन्हें आज भी पत्तल और कुल्हड़ में ही भोजन कराते हैं .......पर मैंने आज तक कभी इस  पुरानी ,घटिया , सड़ी गली परंपरा का पालन नहीं किया ........ मिस्त्री और दोनों मजदूर हरिजन ....यानी जात के चमार थे ...........पहले दिन जब भोजन का समय हुआ ,और जब भोजन परोसा गया तो वो लोग असहज हो गए .....और उन्होंने सकुचाते हुए कहा की बाबू ....हम तो चमार है ......यानी हम ठाकुर साहब कि थाली में कैसे खायेंगे .......हमारे लिए तो पत्तल लगाओ .......पर मैंने उन्हें समझा  दिया कि हम लोग कोई छुआछूत  नहीं मानते हैं .......मनुष्य तो सभी बराबर होते हैं ....वगैरा वगैरा .......और एक छोटा सा lecture पिला के उसको normal किया और बड़े प्रेम से .......बढ़िया भोजन कराया ..........अब वो तो साहब अपना फैन  हो गया ....एकदम भक्त टाइप ... हम तो उसके लिए एकदम गाँधी जी हो गए ......सारा दिन काम करता ......गप्पें मारता रहता ......काम करता रहता .......अब बातचीत में अक्सर ऐसे topic छिड़ ही जाते थे जहाँ मैं अपनी progressive सोच ज़ाहिर कर देता ........तो साहब 4 -5 दिन में तो वो एकदम परमानेंट भक्त बन गया ........उसका बस चलता तो वो अपने गाँव में  बाबा साहेब की मूर्ति के बगल में मेरी भी मूर्ती लगवा देता .........खैर साहब छठे दिन हुआ यूँ कि काम कुछ ज्यादा था सो एक मजदूर और बढ़ा दिया गया ,और वो चौथा मजदूर हमारे ही गाँव का एक मुसहर था ........मुसहर यानि एक अति दलित जाति जो कि दलितों में भी सबसे निचले पायदान पे हैं ....... यानी महा दलित .......तो जब दोपहर में जब भोजन का समय हुआ और सब लोग खाने बैठे तो मुसहर की भी थाली लगी ........और वो पट्ठा हाथ मुह धो के जब लाइन में बैठा तो मिस्त्री भड़क गया ..........हे तू यहाँ कैसे ........चल उधर चल के बैठ ........मैंने उस से पूछा कि क्यों क्या हुआ ?????   तो वो बोला हमलोग इसके साथ बैठ के नहीं खायेंगे ......इसके लिए अलग से पत्तल लगाओ ........इतना सुन के मैंने वो गाँधी जी वाला चोंगा जो मैंने 5 -6 दिन से ओढ़ रखा था उतार फेंका ....और असली ठाकुर साहब हो गया ......और उसे मैंने समझा दिया कि बेटा ....ये तो यहीं खायेगा ......हाँ तुम्हारे लिए अब अलग से पत्तल और पुरुआ लगेगा .........तो साहब उन  श्रीमानजी  ने दो दिन तक सबसे अलग बैठ के पत्तल में भोजन ग्रहण किया .....और पूरे दो दिन तक उनको महात्मा गाँधी से ले कर  नेल्सन मंडेला तक का दर्शन शास्त्र पढ़ाया गया .......और फिर तीसरे दिन उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की कि उन्हें वापस बिरादरी में शामिल कर लिया जाए ......और वो उस मुसहर के साथ बैठ के एक ही थाली में खाने को तैयार हो गए .......
                                            ये हमारे देश के दलित आन्दोलन की बहुत ही कडवी सच्चाई है .....हमारे पोलिटिकल  लीडर्स ने सामजिक न्याय के नाम पर ये नकली लड़ाई पिछले पैंसठ  साल में लड़ी है ..........दलितों में भी एक creamy layer बना दी गयी है ....और आरक्षण की पूरी मलाई इस creamy layer ने ही खाई है ......इस से वो creamy layer तो मोटी  होती चली गयी और बेचारे महा दलितों की स्थिति और ज्यादा खराब होती चली गयी .........आज देश में जो naxalite और माओवादी movement चल रहा है उसके मूल कारणों  में ये भी एक है .......इन महा दलितों को समाज की मुख्या धारा में शामिल करने का कभी प्रयास नहीं किया गया ......राम विलास पासवान ,मायावती ,लालू प्रसाद यादव ,मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस हमेशा से अपने आप को इनका मसीहा घोषित करते रहे हैं ....अब बिहार में पहली बार नितीश कुमार ने इन महा दलितों के लिए एक सकारात्मक पहल की है .....बाबा रामदेव जी के नेतृत्व में भी इस दिशा में बहुत अच्छा काम हो रहा है .....दिव्य योग पीठ हरिद्वार के कार्यकर्ता सुदूर गाँव में जा कर जगह जगह सामूहिक  योग शिविर लगा के जनजागरण का कार्य कर रहे हैं ......इनके शिविरों में सभी लोग जात पात भुला कर एक साथ भोजन करते हैं ......राष्ट्र को एक नए समाज सुधार आन्दोलन की ज़रुरत है .......honour killing जैसी समस्याओं से  सिर्फ क़ानून बना कर नहीं निपटा जा सकता .





Tuesday, May 24, 2011

लालू यादव का सिमुलतला ........

professional घुमक्कड़ों की एक problem होती है ..दरअसल वो हर चौथे दिन मुह उठा के चल देते हैं .....अब तो खैर इन्टरनेट और ब्लॉग्गिंग का जमाना है सो नीरज भाई जैसे लोगों से सलाह और मार्गदर्शन मिल जाता है .............पर हमारे ज़माने में तो मोबाइल फोन भी अभी कायदे से नहीं आया था ...इसलिए हम लोगों को एक समस्या होती थी की अब कहाँ जाएँ .......और ये बड़ी विकट समस्या होती है की आखिर जाएँ कहाँ .....तो हम दोनों मियां बीवी तो अंत तक तय नहीं कर पाते थे की आखिर जाना कहाँ है .........कई बार तो हम स्टेशन पे पहुँच के ..... enquiry ऑफिस पे जा के ये देखते की कौन कौन सी ट्रेन है ....कौन सी किस रूट पे जाती है ...किस रूट पे कौन सा पर्यटन स्थल पड़ता है ...किस ट्रेन में जगह मिलेगी वगैरा वगैरा .......एक बार तो हम दोनों ये सोच के निकले की ३.३० पे रांची एक्सप्रेस पकड़ के रांची जायेंगे ....पर जब स्टेशन पे पहुचे तो वो एक घंटे लेट थी और बुंदेलखंड एक्सप्रेस निकल रही थी so आनन फानन में प्रोग्राम change और अपने राम बुंदेलखंड पकड़ के खजुराहो निकल लिए ...........और वाकई बड़ा मज़ा आया उस ट्रिप में ........और रांची रह गया तो आज तक हम लोग रांची नहीं जा पाए .......तो इस समस्या का हल यूँ निकला की एक दिन एक स्टेशन पर एक bookstall पर हमें एक किताब मिल गयी ....भ्रमण संगी.......जो शायद हम जैसे लोगों के लिए ही छापी गयी है ......और उसे अगर आप हिन्दुस्तान के tourists की bible कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी .....पूरे हिन्दुस्तान में अगर कोई छोटी से छोटी जगह भी है घूमने लायक ....अगर वहां कुछ है देखने लायक तो वो आपको भ्रमण संगी में मिल जाएगी .......और इतना ही नहीं ...पूरा डिटेल ....कौन कौन सी ट्रेन ...बस..... flight ..वहां जाती है ....क्या timing है .....कितना भाड़ा है ....कौन कौन से होटल है कितने रूम है क्या रेट है ...उन सबके फोन नंबर ......कहाँ क्या मिलता है ........सब कुछ ...सब कुछ ......उसके नज़दीक और कौन से spots है और फिर उसकी डिटेल ....सो भैया हम लोगों ने वो किताब ले ली और उसे पढना शुरू किया ..और फिर इतना पढ़ा ...इतना पढ़ा की अगर वो IAS की परीक्षा में अगर कोई subject होता तो अपने राम तो इंडिया में टॉप कर जाते .......तो जैसे देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन कर के रत्न वगैरह निकाले थे उसी तरह हमने भी उसमे से बहुत कुछ खोज निकाला और लगे एक एक कर के उनका मज़ा लेने ...सो उनमे एक जगह थी ......सिमुलतला .......ये बात आज से कोई 15 साल पुरानी है .........तो चल पड़े हम लोग सिमुलतला घूमने ........हमें ये पता था की सिमुलतला बिहार के घने जंगलों में बसा हुआ एक health resort है जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता ,जलवायु ,पानी ,खान पान सब कुछ बहुत अच्छा है ......चूंकि बंगाल के काफी पास है इस लिए बंगालियों में बहुत लोकप्रिय है ...........और यहाँ गुरुदेव rabindra nath tagore ...बापू गाँधी टाइप विभूतियाँ महीनों स्वस्थ्य लाभ हेतु आती रही हैं ...रहती रही हैं वगैरा वगैरा .......सो चल दिए हम दोनों मीया बीवी ....रात की एक ट्रेन पकड़ी बनारस से ......एक दम खाली ......रास्ते में एक आदमी और चढ़ा ...लगा हमें डराने ........रात में ...अकेले ...तुम दोनों ...बिहार में ......अबे कोई लूट लेगा .......हमने उस से कहा ..अबे चल ...हमें कोई क्या लूटेगा .......और हमें लूट के क्या पायेगा ...अबे चल ....कोई इतनी आग थोड़े ही लगी है .......हम भी up वाले हैं ....etc etc .खैर साहब हम दोनों सुबह सही सलामत सिमुलतला उतर गए ..........सिमुलतला आने से कोई एक घंटा पहले से ही पटरी के दोनों तरफ घना जंगल शुरू हो गया था ...और हम दोनों बहुत खुश की वाह क्या इलाका है... कितना खूबसूरत ...वाह ........ खैर सिमुलतला उतरे .......स्टेशन पे कोई platform नहीं था बस एक छोटा सा शेड था ......अलबत्ता वेटिंग रूम था ....सो हमने स्टेशन मास्टर के कान में गुरुमंत्र मारा और उसने चाबी दे दी ......अन्दर गए तो देखा पानी नहीं है ......ASM से पूछा तो वो बोला साहब यहाँ पानी नहीं है ...तो भैया फ्रेश कैसे हों ......अब वो बेचारा लाचार ......सोचा बाहर चल के किसी होटल में रूम ले के ही काम शुरू किया जाए .......बाहर निकले तो बाज़ार के नाम पे 10 ..15 ......गुमटी नुमा दुकानें थीं ......पूछा भैया ...यहाँ कोई होटल है ...तो पता चला नहीं साहब यहाँ कोई होटल वोटेल नहीं है ....हमने कहा अरे भाई होटल न सही ...कोई rest house ...lodge वगैरा ....नहीं साहब कुछ नहीं है .......अरे भाई लोग आते हैं तो रुकते कहाँ हैं ??????? अरे साहब जो आते हैं वो अपने अपने घर में रुकते हैं ...........अब अपन कनफुजिया गए ........कैसा tourist spot है भाई .......तभी जैसे उस बेचारे को इलहाम हुआ ...हाँ साहब एक धरम शाला है वहां पर ...कुछ दूर आगे ........हम दोनों बैग लादे वहां पहुंचे ........देखा तो वहां भी जीवन का कोई चिन्ह नज़र नहीं आया ........एक दम मंगल ग्रह जैसा माहौल था ......खैर कुछ देर तक गेट पीटने के बाद एक आदमी न जाने कहाँ से प्रकट हुआ .....उसने ..गेट खोला .......हमने पूछा की भैया रूम है ....और जब उसने अपनी मुंडी ऊपर नीचे हिलाई तो यकीन मानिये .......हमें तो लगा जैसे साक्षात् भगवान् के ही दर्शन हो गए .......उसने रूम खोला ......तो एकदम नंगा ....जी हाँ ....निपट नंगा ....यानि रूम में कुछ नहीं ....मैंने पूछा भैया ये क्या है ....आदमी कहाँ उठेगा बैठेगा .......वो बोला बाबु जी सामने टेंट हाउस से खटिया ....गद्दा....चादर......तकिया .और बाल्टी लोटा किराये पर लाइए ......सामने कुए से पानी खीचिये और निपटिये नहाइए ...हम दोनों ठठा के हँसे ....और मैडम जी बोलीं ...ओह ये तो adventure tourism हो गया ......तो साहब हम दोनों ने ये decide किया की सब कुछ cancel ...... खाली फ्रेश हो जाओ किसी तरह .....और निकलो यहाँ से ........खैर साहब उसी भले आदमी से पानी ले के दोनों मिया बीवी open air में ,फ्रेश हुए ,ब्रुश किया और मुह चुपड़ के हो गए तैयार घूमने के लिए ........पर मन में एक चिंता तो थी ही की रात कहाँ रुकेंगे ....खैर देखा जायेगा ......एक चाय की दूकान पे पहुचे .......उस से दोस्ती कर ली और पूछा की भैया ये माजरा क्या ....ये कैसा टूरिस्ट स्पोट है ...इसका रहस्य क्या है भैया ........तो चाय बनाते बनाते पहले तो वो ठिठका ...फिर उसने चारो तरफ देखा ....मुझे लगा ये तो मुझे ओसामा बिन लादेन का पता बताने जा रहा है ......वो बोला भैया ...यहाँ कोई घूमने नहीं आता ...तो होटल किसके लिए खुलेगा .......क्यों घूमने नहीं आता .....अरे साहब यहाँ रखा क्या है ......क्यों भाई इतनी खूबसूरत जगह तो है ........अरे साहब कोई ख़ाक घूमने आएगा .....पिछले 6 महीने से बिजली नहीं आई .......6 महीने से ......6 महीने से बिजली नहीं आयी....क्यों .....अरे साहब चोर लोग रात में 7 -8 किलोमीटर तार काट के ले गए ......मैडम जी की कुछ समझ में नहीं आया......तो मैंने उन्हें समझाया ....की चोरों का gang 6 महिना पहले 7 -8 km तक की बिजली की तारें रात में काट के ले गए .......वाह रे लालू यादव का बिहार ....तो फिर govt ने दुबारा तार नहीं लगाया ......अरे साहब एक बार पहले तार काट के ले गए थे तो सिरकर ने 4 साल में तार दुबारा लगाया ...और अभी 3 -4 महीने ही हुए थे की फिर काट के ले गए ....6 महीने हो गए ...देखिये कब दुबारा लगता है .......
खैर साहब ...हम लोग चाय पीते हुए बिहार की दशा पे विचार विमर्श करते रहे ........तो उसी चाय वाले ने हमें बताया की आपको अगर घूमने जाना है तो आप लोग गाँधी जी के आश्रम चले जाइये .......ये वही जगह थी जहाँ अपने गान्ही बाबा जब सिमुलतला आये थे तो रुके थे ......वहां आपके रहने की भी व्यवस्था हो जाएगी ......पता चला वो आश्रम घने जंगलों में 5 किलोमीटर दूर था ......मैडम जी इतनी दूर पैदल चलने से...वो भी बैग लाद के साफ़ नट गयीं ......अब इसका हल भी उस चाय वाले ने ही निकाला ........बाबू जी ....सामने से साईकिल किराए पर ले लीजिये ......हां ये ठीक रहेगा ....और भैया हम दोनों ने साईकिल पे बैग लादे और चल दिए आश्रम की तरफ .........कच्ची सड़क थी .......सड़क के दोनों तरफ सैकड़ों घर ,farmhouse टाइप के बने हुए थे ....सबपे ताले जड़े हुए थे .......कई कंपनियों और banks के होलीडे होम्स भी बने हुए थे ....पर सब बंद ....बाद में पता चला की उस जमाने में ........भद्र लोक यानी बंगाल से भद्र जन यानी बंगाली बाबू इस शानदार जगह पर छुट्टियां मनाने आते थे .....रईस लोगों ने यहाँ cottages बना रखी थीं .......जहाँ उनका एक चौकीदार साल भर रह के देखभाल और साफसफाई .करता था ...पर जब धीरे धीर बिहार का पतन होने लगा तो भद्र जन ने आना बंद कर दिया ........धीरे धीर चौकीदार भी भाग गए ......धीरे धीरे चोरों ने उन खाली घरों में हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया ..........अंत में सब उजाड़ बियाबान खंडहर में तब्दील हो गए ..........आज भी वहां ऐसे सैकड़ों घर खाली पड़े हैं ........खैर थोड़ी देर में घना जंगल शुरू हो गया ......सब कुछ शांत .....एकांत ......चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य ............२ किलोमीटर बाद एक गाँव पड़ा ......और एक छोटी सी पहाड़ी के उसपार वो गाँधी आश्रम ......उसका हाल भी कमोबेश सिमुलतला जैसा ही था .........उजाड़ बियाबान .......खँडहर ......कुछ अवशेष बाकी थे उन ग्रामोत्थान परियोजनाओं के ...जो कभी शुरू की गयी होंगी ....गाँव के लोगों के लिए .......वहां पहुंचे तो एक चौकीदार प्रकट हुआ ......उसने हमें पानी पिलाया ....हाल चाल लिया ......फिर बोला स्वागत है आप लोगों का ....कमरा तो है मेरे पास पर बिस्तर नहीं है .......हमने पूछा कुछ खाने के लिए ? उस बेचारे ने फिर हाथ खड़े कर दिए .......हमने पूछा तुम क्या खाओगे ...बोला बाबूजी मैं तो बगल के गाँव का हूँ ......शाम को घर चला जाऊँगा ......ये सुन कर हमने भी हाथ खड़े कर दिए ......चलो बहुत हो गया tourism ........चलो घर चलो .....खैर साहब वापस चल पड़े .........रास्ते में एक पहाड़ी नदी पड़ी ........एकदम साफ़ पानी ...ठंडा ...वहां गाँव के लोग नहा धो रहे थे ......मैडम जी ने भी ब्रेक मार दी ........यहाँ तो मै भी नहाउंगी ......और फिर हम दोनों उस नदी के थोडा और ऊपर की तरफ चले गए .......और सिमुलतला को हमने गोवा बना दिया .........घंटों हम उस में नहाते रहे ......और फिर अचानक बहुत तेज भूख लगी ......वहां क्या मिलना था .......वापस पहुंचे सिमुलतला ........काम आया वही चाय वाला .......हमें देखते ही बोला ....क्यों बाबूजी ...आ गए वापस .....वहाँ नहीं जमा आप लोगों को .....उस भाई ने अपने लिए मछली और भात बना रखा था ......और साथ में पकोड़े ....वही खाए पेट भर के ......छोड़ी दूर पे एक चर्च थी ...वो भी उजाड़ ...उसी के पास एक पेड़ के नीचे चादर बिछा के थोड़ी देर आराम किया ..........शाम को ट्रेन पकड़ी घर चले आये ........ काफी दिनों तक सिमुलतला की याद आती रही ....अब जब मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया तो मैडम जी बोलीं की सिमुलतला पे भी लिखो ......मैंने सोचा क्या लिखूं ....उसकी खूबसूरती पे लिखूं या उसकी बदहाली पे लिखूं ......और किसी देश में होता ...या गुजरात जैसे किसी राज्य में ही होता तो आज सिमुलतला एक शानदार tourist spot होता, वहां के लोगों को भी रोज़गार मिलता .........अब जबकि वहां अपने नितीश बाबू की सरकार है .....तो शायद सिमुलतला के दिन भी फिरें ........वो शानदार जगह अपने पुराने गौरव को प्राप्त हो ......मैं आपको ये सलाह तो नहीं दूंगा की आप वहां घूमने जाएँ ...पर उधर से निकलते समय इस शानदार जगह का नज़ारा एक बार ज़रूर लें ....सिमुलतला पटना हावड़ा मेन लाइन पर हावड़ा से 350 और पटना से लगभग 200 किलोमीटर दूर है ....प्रसिद्ध तीर्थस्थल देवघर वहां से सिर्फ 160 कम दूर है .......कुछ एक सुपर फास्ट गाड़ियों को छोड़ कर बाकी सब वहां रूकती हैं .........अब सुनते हैं की वहां एक दो guest houses भी खुल गए हैं .........इसलिए मुझे लगता है की इस शानदार जगह को एक और मौका मिलना ही चाहिए ..........वैसे मेरे हिसाब से वहां जाने का सबसे अच्छा मौसम वर्षा ऋतु ही रहेगा ......बारिश के बाद jungle कितना सुन्दर हो जाता है ............अंत में मैं यही कामना करूँगा की हे इश्वर .....सिमुलतला को बुरी नज़र से बचाए रखना .
नोट: भ्रमण संगी अक्सर रेलवे platforms पर दिख जाती है ,wheeler के bookstalls पर 300-350 रु की आती है ...प्रकाशक का नाम देख के बताऊंगा .......encyclopedia टाइप बुक है .









Saturday, May 21, 2011

हमारा खान पान ........भारत महान ........कश्मीरी भोजन ....भाग 1

इतना सारा घूमने के बाद मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी क़ि मैं कुछ अन्य अनुभव शेयर करूँ अपनी घुमक्कड़ी के .....अब भाई नीरज जाट जी से प्रेरणा मिल गयी है .....और लिखने की .....सो मन किया क़ि आज भारत के खान पान पे ही कुछ लिखा जाए ......सो मैंने बहुत सुना था कश्मीर की पाक कला के बारे में और मेरे कुछ दोस्त जो जम्मू में रहते थे बहुत तारीफ करते थे कश्मीरी खाने की .......तो हम लोग एक बार जब जम्मू गए तो उन्होंने बड़े प्रेम से कश्मीरी खाना बनवाया हमारे लिए ....... श्रीमतीजी साथ थीं .....और सच कहूं तो हमें बिलकुल भी पसंद नहीं आया .......खैर शिष्टाचार वश मेजबान का सम्मान करते हुए तारीफ तो की पर कुछ भी अच्छा नहीं लगा .........ऐसा ही एक बार दिल्ली में हुआ हमारे साथ ......दिल्ली के kareems restaurant का बहुत नाम सुना था ...हमारे एक दोस्त तो बस उसके गुणगान ही किया करते थे ......सो एक दिन हम पहुँच गए उनके निज़ामुद्दीन वाले restaurant में .......2 -3 dishes मंगाई .....यहाँ भी वही हुआ .......कुछ भी नहीं भाया .....बस किसी तरह खाना ख़तम किया और खुद को कोसते हुए चले आये ........अब kareems का इतना नाम था सो उन दोस्त से ज़िक्र किया इस बात का जो सचमुच खाने पीने के शौक़ीन हैं .और kareems के इतने बड़े फेन भी ..और बचपन के दोस्त ठहरे तो मुहलगे भी हैं .......सो जब उनको पता लगा की हमें kareems का खाना अच्छा नहीं लगा तो बहुत जोर से हँसे और बोले ......साले तुम्हारी औकात है kareems में खाने की .....दरअसल kareems का इतिहास ये है क़ि जनाब अब्दुल करीम खां साहब मुग़लिया दरबार के खानदानी खानसामे थे और उनके पूर्वज शहंशाह शाहजहाँ के ज़माने से महल में खाना बनाया करते थे .....तो जब बहादुर शाह ज़फर साहब को अंग्रेजों ने रंगून भेज दिया कैद कर के तो लाल किले में खाना बनना बंद हो गया और महल का पूरा स्टाफ सड़क पर आ गया ......तो परिवार का पेट पालने के लिए अब्दुल करीम साहब ने बाहर जामा मस्जिद के पास एक ढाबा खोल दिया और वहां लोगों को खाना खिलाने लगे ....अब शाही रसोइया तो शाही खाना ही बनाएगा सो जो dishes अब तक शहंशाह और राजा लोग खाया करते थे वो आम लोग खाने लगे ......वही करीम का ढाबा आज kareems बन गया है .....और जो रोगन जोश उस दिन हमने खा के fail कर दिया सुनते हैं की बादशाह सलामत शाहजहाँ साहब की favourite dish थी और खुद उन्होंने develop की थी...... सो वो हमारे मित्र बोले की साले तुम्हारी औकात है रोगन जोश खाने की ....शाहजहाँ खाता था ...तख्ते ताउस पे बैठ के .....फिर उन्होंने हमें खोल के समझाया क़ि kareems में रोगन जोश जैसी dishes घी या तेल में नहीं बल्कि रोग़न यानि चर्बी यानि animal fat में बनती हैं सो जब हमने कभी रोग़न में बना कुछ खाया ही नहीं तो पहली बार क्या खाक अच्छा लगेगा ......इसलिए ....taste develop करो .......कोई भी नया cuisine खाओ तो पहले उसका taste develop करो .....सो अब बात हमारी समझ में आ गयी और हमने कई बार खा के जो कश्मीरी और मुगलाई खाने का taste develop किया तो वो कुछ ज्यादा ही develop हो गया .....और उसके बाद तो हम दोनों मिया बीवी ने कश्मीरी खाने पर PhD कर डाली और finally ये रिजल्ट निकाला की कश्मीरी पाक कला से अच्छा इस धरती पे और कुछ नहीं है .........आह हा हा...... रिस्ता ....गुश्ताबा ....रोगन जोश ....तबक माज......क्या बात है ..उनकी non veg dishes का तो कोई जवाब ही नहीं है .......क्या cuisine है ...क्या preparations हैं ......कश्मीरी भोजन में meat की तैयारी 48 घंटे पहले शुरू की जाती है और फिर ढेरों तैयारी और marinations के बाद एक dish तैयार होती है .....एक एक ingredient क़ि तैयारी में घंटों लगते हैं......... सो सब लोग ये कहते थे की ये जो भी खाना आप लोग खाते हो ये तो restaurants की preparations हैं और ये authentic कश्मीरी भोजन नहीं है ...असली कश्मीरी खाना तो यहाँ किसी शादी में खाओ ....तो साहब हमने कश्मीर में डुगडुगी पिटवा दी क़ि भाइयों ...please हमें किसी शादी में invite कर लो यार .....खैर साहब मौका मिला 2 -3 साल बाद ........एक शादी में invite हो गए हम ......तो कश्मीरी भाई एक साथ चार लोग एक थाली में बैठ के खाते हैं जिसे तरामी कहते हैं ...और थाली क्या भैया पूरी परात होती है .....बड़ी वाली ......और फिर दस्तरख्वान बिछता है ......मसनद से पीठ टिका के बैठते हैं लोग ....फिर एक आदमी वहीँ एक बर्तन ला के आपके हाथ धुलवाता है ......फिर आती है वो तरामी .......और फिर चलते हैं कम से कम 7 -8 दौर dishes के ......पहले रिस्ता .....यानि meat balls in gravy .(असली रिस्ता भेड़ के meat का बनता है )...फिर रोगन जोश ..और तबक माज .....और न जाने क्या क्या .....सब लोगों को 1 -1 piece हर dish का serve किया जाता है ...और वो 1 पीस भी ऐसा की हमारे जैसे के लिए काफी .......अब समस्या ये की भैया इतना कुछ तो हमसे 4 दिन में भी न खाया जाये ...और वो पट्ठा तो डाल के चला गया ........और हमने देखा की हमारे कश्मीरी भाई सब साफ़ भी कर गए ...तो जनाब घबराइये मत इसका भी इंतज़ाम है ...हर गेस्ट को एक प्लास्टिक बैग दिया जाता है क़ि जो कुछ आपसे न खाया जाये उसे घर ले जाइए .......तारामी में मत छोडिये .......वाह क्या culture है ......सो हमने देखा क़ि हमारे जैसे कुछ guests अपना रिस्ता गुश्ताबा घर भी ले गए ....पर कश्मीरी सब खा के साफ़ कर गए सो हमारे दोस्त ने बताया की कश्मीर में 4 आदमियों के लिए 5 किलो ग़ोश्त तैयार किया जाता है यानी सवा किलो एक आदमी का .......सो हमें ये ग़लतफ़हमी थी की कश्मीरी खाना यानि non veg .......तो एक बार हम लोग श्रीनगर के tyndale biscoe school के मेहमान हो गए पूरे एक हफ्ते के लिए और हमारे मेज़बान ...प्रिंसिपल साहब वाकिफ थे हमारे भोजन प्रेम से सो उन्होंने एक ख़ास कश्मीरी रसोइया लगा दिया हमारे साथ और साहब वो लगा चुन चुन के dishes बनाने ......और उस भाई ने जो हमें एक से एक vegetarian dishes खिलाई .......उसमे सबसे ख़ास थी वो लौकी की बनी ....अल यखन ...यानि लौकी इन लहसुन flavoured दही ..वाह साहब वाह .....इसके अलावा शलगम ...पालक ....beans ..पनीर .....इत्यादि की इतनी laajawaab dishes .......नादिर यखन यानि कमल ककड़ी दही में ,दम आलू ,पलक चमन ....चमन यानि cottage cheese ,नादिर कबाब यानि कमल ककड़ी के कबाब,अखरोट की चटनी,सेब की चटनी ,कश्मीरी पुलाव और न जाने क्या क्या ..........वहां क़ि एक और बेहतरीन चीज़ है कहवा यानि एक स्थानीय हर्बल चाय जो बादाम और केसर डाल के बनती है ....इसके अलावा वहां क़ि नून चाय यानी नमकीन चाय .....कश्मीरी भोजन को वहां की स्थानीय भाषा में कहते हैं .....वाज़वान...waazwan ...और traditional खानसामे जो वहां भोजन बनाते हैं उन्हें कहते हैं वाज़ा .....सो इसी वाज़वान नाम से एक recipe बुक भी है मार्केट में जिसे आप खरीद के कश्मीरी भोजन का आनंद अपने घर पे भी ले सकते हैं ...एक दम authentic तो नहीं बनेगा पर कम से कम taste तो develop होगा तब तक ...और अगर दिल्ली में इसका मज़ा लेना हो तो निज़ामुद्दीन पे है एक भूरा सा कश्मीरी ...एकदम छोटी सी दूकान है उसकी ......वहां आपको इसका कुछ कुछ मज़ा मिल सकता है .....पर अगर असली मज़ा लेना है तो .....जाइए कश्मीर .......पर पहले taste develop करके .......बाकी अगले अंक में ......

Friday, May 20, 2011

lansedown.......उत्तरा खंड का एक छुपा हुआ स्वर्ग.

कई साल पुरानी बात है ....मै और धर्मपत्नी , हम लोग लखनऊ से जालंधर जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए .....ट्रेन थी हावड़ा अमृतसर एक्सप्रेस...जिसे duplicate हावड़ा भी कहते हैं .....ट्रेन थोड़ी लेट थी ......फिर भी हमें तसल्ली थी की सुबह 9 बजे तक तो जालंधर पहुँच ही जाएगी .......खैर खाया पिया और सो गए .......सुबह नींद खुली तो देखा की ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर खड़ी है ......मुझे अंदाजा था की अम्बाला आने वाला होगा ......पर पता लगा की भैया ये तो बस अभी मुरादाबाद से निकली ही है ......अरे बाप रे ...मर गए ......अब तो ये ट्रेन सारा दिन झेला देगी ......कमबख्त पता नहीं कहाँ खड़ी रही सारी रात .......सुबह सुबह मेरा मूड ऑफ हो गया ......सारा दिन इस गन्दी सी ट्रेन में बिताना पड़ेगा ..........और मैं इसके लिए कतई तैयार नहीं था ......सो मैंने अपने दिमाग को ठंडा किया और गंभीर चिंतन में डूब गया........और दुनिया भर की किताबें अखबार और magazines पढ़ के जो कुछ भी general knowledge जुटाया था अब तक ,उसे टटोलने लगा .......श्रीमती जी गधे बेच के सो रही थीं ........ ......ट्रेन उस छोटे से स्टेशन से चल चुकी थी ....10 मिनट बाद ही एक और स्टेशन आया ...नजीबा बाद .......और नजीबा बाद का बोर्ड देखते ही मेरे कान अल्सेशियन कुत्ते की तरह खड़े हो गए ......श्रीमती जी को झिंझोड़ के उठाया ......जल्दी उठो.......जल्दी करो ....उतरो ....उतरो जल्दी करो ......एक हाथ में चद्दर ,दुसरे में बैग और जूते और चप्पलें और और बाकी सारा सामन ले कर हम गिरते पड़ते ट्रेन से बहार आए और वो चल पड़ी .......खैर जब ट्रेन चली गयी तो श्रीमती जी नींद से जागी .......और धीरे धीरे उन्हें मामला समझ आया .......ये कहाँ उतर गए ......नजीबाबाद ???????? ये कहाँ आ गए ????? मैं तो समझी जालंधर आ गया .......फिर मैंने उन्हें पूरी बात शांति से समझाई ...और उन्हें ये बताया की हम अब जालंधर नहीं lansdowne जा रहे हैं .....और वाह रे मेरी बीवी ...एक समझदार आज्ञाकारी पत्नी की तरह मेरे पीछे पीछे चल दी .......वेटिंग रूम में हम फ्रेश हुए और स्टेशन से बहार एक शेयर taxi ले ली कोटद्वार के लिए ......कोटद्वार वहां से 20 किलो मीटर दूर है ......20 मिनट में ही पहुच गए .......अच्छा ख़ासा शहर है ,वहां से दूसरी share taxi ली .....और एक घंटे में हम lansdowne में थे ......कोटद्वार से lansdowne सिर्फ 40 किलोमीटर दूर है और तक्सी चलने के थोड़ी देर बाद ही नज़ारे आ जाते हैं ........यात्रा बड़ी मजेदार थी ......पिछली रात जम के बारिश हुई थी ....और एक दो जगह ठीक ठाक सी landslide हुई थी ...फिर भी रास्ता चालू था .....और जल्दी ही हम lansdowne पहुच गए ......और साहब क्या नज़ारा था ....चारो तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ ....सामने बर्फ से ढकी चोटियाँ दिख रही थी दूर दूर तक फैले oak और pine के जंगल ....पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा खेतों में धान की लहलहाती फसल ......बहुत ही खूबसूरत जगह थी .......हिल स्टेशन और वो भी बारिश के मौसम में ...वाह ......पहाड़ बरसातों में और भी खूबसूरत हो जाते हैं ..........घास हरी हो जाती है ....छोटी छोटी झाड़ियाँ पनप जाती हैं ...और धान के खेत लहलहाने लगते हैं .......और ऐसे मौसम में तो lansdowne का मज़ा ही कुछ और था ...यह लगभग 6000 फुट की ऊँचाई पर बसा हुआ एक छोटा सा पर बेहद खुबसूरत हिल स्टेशन है .......और इसकी खूबसूरती ये है की यह एक बहुत ही छोटा सा शहर है .....हमारी taxi शहर के बीचोबीच एक छोटे से मैदान में खड़ी हो गयी.और उस मैदान के इर्द गिर्द कोई 40 -50 दुकानें हैं ...छोटी छोटी .....जैसी किसी कसबे में होती हैं ....बस यही lansdowne शहर है ........और पूरे शहर में बमुश्किल 100 घर होंगे .......अब पहली समस्या थी होटल ....तो पता लगा की यहाँ कोई होटल वोटेल नहीं हैं .......एक कोई गुप्ता जी हैं जो कि एक हलवाई की दूकान चलते हैं और restaurant भी .....उन्होंने अपनी दूकान के ऊपर 2 कमरे बना रखे हैं .......सो उनका होटल तो हमने दूर से देख के ही रिजेक्ट कर दिया ........फिर पता लगा की गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस है ,थोड़ी दूर पे .........हम पैदल ही निकल लिए ....डर था की कमरा मिलेगा भी कि नहीं .....वहां पहुचे तो जी खुश हो गया ....क्या रेस्ट हाउस था .....बेहद खूबसूरत ...साफ़ सुथरा .......चमकता हुआ ........उत्तरा खंड सरकार के सारे गेस्ट हाउस शहर की सबसे अच्छी location पर बने होते हैं ........हमें देखते ही वहां का स्टाफ उछल पड़ा ...आइये आइये .....हमने डरते डरते पूछा ...कमरा है ......वो बोले हाँ साहब ज़रूर है .....दरअसल पूरा रेस्ट हाउस ही खली पड़ा था ........खैर हमने checkin किया .......और नहा धो के निकल पड़े घूमने .......पहले सोचा नाश्ता कर लेते हैं .......बाज़ार का चक्कर लगाया .....जहाँ भी गए तो दुकानदार ने खड़े हो के हँसते मुस्कुराते हुए स्वागत किया .......हम बड़े खुश कि देखो कितनी अच्छी जगह है ...कितने अच्छे लोग हैं ......इसका राज़ तो बहुत बाद में खुला ...दरअसल उस दिन उस हिल स्टेशन पर हम एक मात्र टूरिस्ट थे .....इसलिए लोग खुश थे कि चलो कोई तो आया ........हमें पता चला कि गर्मियों में तो कुछ लोग आते हैं पर बाकी सारा साल lansdowne एकदम खाली रहता है ......हमने एक छोटी सी दूकान पे हल्का सा नाश्ता किया और टहलने निकल गए ...........lansdowne दरअसल एक सैनिक छावनी है ....garhwaal regiment का सेण्टर है ....इस लिए इसका मुख्य आकर्षण वो आर्मी एरिया ही है .......और आर्मी एरिया ...आप जानते ही हैं कि कितना साफ़ सुथरा और शांत होता है ....सो दूर दूर तक साफ़ सुथरी ...सुनसान सडकें ....जगह जगह view points .....वहां फ़ौज ने बेंच लगा रखे थे .......tourists के बैठने के लिए .......हम बहुत देर तक उन सुनसान सड़कों पर टहलते रहे और प्रकृति का आनंद लेते रहे ...........

लंच
अब तक भूख लग आयी थी ......गुप्ता जी का restaurant देख के तो सुबह ही पेट भर गया था सो तय यह हुआ कि खाना ऐसी जगह खाया जाये जहाँ कि स्थानीय लोग खाते हों .....सो पूरा बाज़ार घूम दिया पर कुछ नहीं मिला ........तभी एक बहुत ही छोटी सी दूकान दिखी ......साफ़ सुथरी सी ......ऐसा लगा कि शायद यहाँ खाना मिलता
होगा .....जी हाँ .....एकदम सादा सा ढाबा था ..दाल 10 रु plate .....हमने कहा हम 15 देंगे पर तड़का हम लगायेंगे ......वो लड़का राज़ी हो गया ......उसने जल्दी से प्याज़ टमाटर काटे और हमने दाल सब्जी को तड़का लगाया ......और उस लड़के ने गरमा गरम रोटियां उतारनी शुरू की........वाह ....मज़ा आ गया ......आज 10 साल बाद भी मुझे उस दिन खाया वो खाना याद है ........कितने प्रेम से उस लड़के ने हमें भोजन कराया ....वो आज तक मेरे जीवन का सबसे स्वादिष्ट भोजन था .......और उस दिन हमें एक सबक मिल गया कि जहाँ भी जाओ कोई ऐसी जगह ढूंढो जहाँ मालिक आपको अपनी kitchen में घुसा ले ..........और उसके बाद हम न जाने कितनी ही बार ऐसा कर चुके हैं और हर जगह हमें कोई न कोई ऐसी दूकान मिल ही जाती है ......
शाम को हम फिर टहलने निकले ........और हमने एक पगडण्डी पकड़ ली ........और बहुत दूर तक उस पर चलते चले गए ........बहुत ही सुन्दर जगह थी ...बड़ा अच्छा लग रहा था .......अँधेरा धीरे धीरे होने लगा था ....सोचा किसी से रास्ता पूछ लेंगे आगे ....पर ऐसा सुनसान कि हमें दूर दूर तक कोई दिखा ही नहीं ......अब अचानक डर लगने लगा था .......हे भगवान् शहर से इतनी दूर jungle में और रास्ता बताने वाला भी कोई नहीं .........खैर बहुत देर बाद एक आदमी मिला और उसने रास्ता बताया ...और जब उस रस्ते पर चले तो ये क्या ....5 मिनट बाद हम शहर के बीचोबीच खड़े थे ......दरअसल हम पूरे शहर का चक्कर लगा आये थे .....उसके बाद हम एक दिन और वहां रहे ....अगले दिन हमने कुछ और view points से प्रकृति का नज़ारा लिया .......आर्मी का एक museum भी था ...वहां गए पर वहां धर्मपत्नी का प्रवेश वर्जित हो गया क्योंकि ..महिलाएं वहां सिर्फ saree या suit में ही जा सकती है और मैडम जी ने jeans पहन रखी थी .......लंच में हमने सिर्फ fruits खाने का निर्णय लिया और बाज़ार से ढेर सारे फल ले लिए ........रेस्ट हाउस कि kitchen से plate और चाकू लिया और बाहर बेंच पर बैठ गए ......fruit chaat बन ही रही थी कि अचानक एक बहुत बड़ा बादल आसमान से उतर के हमारे पास आ गया ....उस घने बादल के बीच वो fruit chaat .......मुझे वो दृश्य भुलाए नहीं भूलता है ...........हम कुल दो दिन वहां रहे ......उस शांत, सुनसान ,साफ़ सुथरे ,खाली खाली से हिल स्टेशन कि वो सैर मेरे जीवन के सबसे यादगार ट्रिप्स में से एक है .......यदि आप शहर के शोरगुल और भाग दौड़ से दूर कुछ दिन एकदम शांति और सुकून से बिताना चाहते हैं तो lansdowne से अच्छा कुछ नहीं ....वहां जाने के लिए दिल्ली से mussori express में 2 डब्बे कोटद्वार के लिए लगते हैं .....वैसे नजदीकी स्टेशन नजीबाबाद अम्बाला मुरादाबाद मेन लाइन पर पड़ता है ......अगर अप्रैल मई जून में जाना चाहें तो रेस्ट हाउस की अडवांस बुकिंग कराएँ ....बाकी साल भर तो lansdowne खाली ही रहता है ........पर सावधान ...बच्चों के लिए यहाँ कोई आकर्षण नहीं है ...और शौपिंग का कोई scope नहीं है ....पर वहां की लाल बर्फी ज़रूर taste करें ......



























Saturday, May 14, 2011

मेरी पहली कश्मीर यात्रा....धरती का स्वर्ग ???????????

घुमक्कड़ लोगों को कश्मीर ने हमेशा से ही आकर्षित किया है .कश्मीर की सुन्दरता के बारे में इतना कुछ लिखा और कहा जा चुका है कि और कुछ लिखने कि शायद गुंजाइश ही नहीं बची है .......मेरे पिता जी तो यहाँ तक कहते हैं कि पौराणिक और वैदिक साहित्य में जो स्वर्ग कि परिकल्पना है वो और कुछ नहीं यही कश्मीर का इलाका था जहाँ देवता वास करते थे और इन्द्र यहाँ का राजा था ...... सो मेरे जैसे खांटी घुमक्कड़ कि लिस्ट में कश्मीर का नुम्बर सबसे पहले आता ही था पर दुर्भाग्य से कभी मौका ही नहीं मिला ......30 -३२ साल का मै हो चुका था और तकरीबन सारा हिन्दुस्तान घूम ही चुका था पर कश्मीर अभी बाकी था और मुझे मेरा जो भी घुमक्कड़ मित्र मिलता वो यही कहता कि ...अररररे कश्मीर नहीं देखा तो क्या देखा ........हर बार मुझे लगता कि ये सब मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं ......मुझमे एक हीन भावना सी आने लगी थी ........तब तक मेरे एक स्वयंभू ज्योतिषी मित्र ने मुझे बता दिया कि बेटा तुम्हारी तो कुल उम्र ही ३५ साल है भगवान् के खाते में ......अब मुझे और टेंशन हो गयी ......कि लो बेटा तुम तो कश्मीर देखे बिना ही मर खप जाओगे .......अब मैंने ठान लिया कि चाहे कुछ हो जाये मुझे अब कश्मीर देख ही लेना है ...अब तो मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य था ..........कश्मीर .......सो मैंने अपने दो मित्रों से संपर्क किया जो मूलतः जम्मू के रहने वाले हैं और उन दिनों श्रीनगर में पोस्टेड थे .....और चल पड़ा अकेला ही ......जी हाँ श्रीमती जी साथ नहीं थीं .......रात जम्मू रुका ...अल्ल्स्सुबह बजे ही शेयर taxi पकड़ के श्रीनगर निकलने का विचार था ........ख़ुशी और उत्साह इतना था कि हद नहीं ......मुझे उन तमाम लोगों के कथन याद रहे थे .........गर बर रूहे फिरदौस ज़मीं अस्त ....हमीं अस्त हमीं अस्त हमीं अस्त ....अर्थात अगर धरती पे कहीं स्वर्ग है तो यही है यही है यही है .......सुनते हैं कि ऐसा बादशाह जहाँगीर ने कहा था ........तो साहब मैं स्वर्ग में जा रहा था ......मारे excitement के सारी रात नींद नहीं आई ........और कमबख्त आँख लगी तो नींद खुली सुबह बजे .......खैर भागा भागा बस स्टैंड पहुंचा .......सूमो पकड़ी और बैठ गए आगे वाली सीट पर ......विंडो साइड .....थोड़ी ही देर में गाड़ी चल पड़ी .........लगभग एक घंटे बाद ही पहाड़ी इलाका शुरू हो गया था ...सामान्य से पहाड़ थे जैसे हर जगह होते हैं .......पर मैं आँखें फाड़ फाड़ के देख रहा था .......मुझे मेरे दोस्तों ने बता दिया था कि रास्ते में पत्नी टॉप पड़ेगा ...वो बहुत सुन्दर है ..........खैर साहब पत्नी टॉप आया और निकल गया .........ठीक ठाक सा था ....या यूँ कहें ठीक ही था ...पर मै तो स्वर्ग ढूंढ रहा था ......पूरे रास्ते मैंने आँख तक नहीं झपकाई .......- घंटे में हम जवाहर tnnnel पहुँच गए ....वहां सड़क पे ज्यादा नहीं कोई - किलो मीटर का जाम लगा हुआ था .......मेरे तो प्राण ही निकल गए देख कर ......इतने सारे ट्रक ....खैर तसल्ली हुई जब हमारे ड्राईवर ने गाडी तकरीबन सबसे आगे ही लगा दी ........पता लगा कि एक tunnel कि मरम्मत चल रही है इस लिए one way traffic है ...जल्दी ही रास्ता खुल जायेगा ......खुल भी गया .....पर जनाब एक बार tunnel के अन्दर घुसे तो ...फिर अन्दर ही रह गए .......फिर jam .......इतनी सारी गाड़ियाँ ...और उनका इतना सारा धुआं .....एक दम घने कोहरे जैसा ....आप यूँ मान लीजिये कि आपको किसी मिल कि चिमनी के ऊपर बैठा दिया हो ...कि लो बेटा सांस ......पूरे एक घंटा ......मुझे तो यूँ लगा कि आज नरक और स्वर्ग दोनों के दर्शन एक साथ ही हो जायेंगे .........ऊपर से मेरी परेशानी का एक और कारण ये था कि मैंने बचपन में अपनी NCERT कि बुक में ये पढ़ा था कि जवाहर tunnel से बहार निकलते ही दृश्य अचानक बदल जाता है और यूँ लगता है कि मानो आप स्वर्ग में गए हों ........और मैं यहाँ स्वर्ग के इतना नज़दीक कर फंसा हुआ था इस नरक में .......तब तक कोढ़ में खाज हो गयी ........हमारी गाडी में बैठी एक मोहतरमा को कोई दमा टाइप attack हो गया ....और उनकी आँखें वांखें पलट गयीं ......अब मुझे वो सारे किस्से याद आने लगे जो मैंने इतने साल तक अखबारों में पढ़े थे .....कि फलां जगह इतने आदमी मर गए दम घुटने से ...वगैरा वगैरा ......मैंने कहा लो बेटा अजित सिंह तुम तो स्वर्ग से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर शहीद हो जाओगे ........इस से अच्छा तो तुम वहीँ ठीक थे काशी में ....उसको भी तो लोग स्वर्ग ही कहते हैं ..........
पर साहब इश्वर को कुछ और ही मंज़ूर था सो हम ठीक ठाक सही सलामत निकल आये tunnel से ......सांस में सांस आयी ...जान में जान आयी.....गाडी चली तो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली........मुझे स्वर्ग के दर्शन जो होने वाले थे ........tunnel का पूरा कष्ट मैं भूल चुका था.....कुछ देर बाद डरते डरते मैंने आँखें खोलीं .....अरे ये क्या ....वो स्वर्ग कहाँ गया .......वहां चारो तरफ धान कटे सूखे खेत थे ........सुनसान बियाबान ......कोई स्वर्ग वर्ग कहीं नहीं था .......खैर मैंने कहा बेटा अजित सिंह धैर्य रखो ....जब इतने सारे लोग कहते हैं तो कहीं तो होगा ही ........१५ -२० मिनट में ही गाडी पहाड़ों से नीचे उतर आयी ....लो पहाड़ भी ख़तम ......अब गाडी एकदम प्लेन सड़क पर सरपट दौड़ रही थी .......छोटे छोटे कसबे .......सामान्य से .....मेरा मूड एकदम खराब हो गया था ....मुह का स्वाद बिगड़ गया .......और मैं सो गया ....बार बार बीच बीच में आँखें खोल लेता था ........क्या पता .....कही गलती से निकल ही जाए ......पर साहब कहीं स्वर्ग था दिखा ........गाडी श्रीनगर पहुची तो दोनों दोस्त लेने आये हुए थे ...उन्होंने मेरा गन्दा मुह देखा ... दुआ सलाम बोले क्यों क्या हुआ ??????मैंने कहा ...वो साला स्वर्ग कहाँ है .........दोनों ठठा के हंस पड़े .बोले ...भाई मेरे ठण्ड रख ...स्वर्ग भी दिखायेंगे .........खैर साहब रात को खाया पीया सो गए ....मेरे अन्दर एक अजीब सी बेचैनी थी ......अगले दिन मेरा एक दोस्त मुझे दल लेक ले गया .....वहां उस सड़क पे टहलते हुए मेरा मूड कुछ फ्रेश हुआ ......वो बोला ....क्या????? ठीक है ???????मैंने कहा ठीक तो है पर वोह स्वर्ग कहाँ है ??????वो बोला ..वहां कल चलेंगे .......खैर जैसे तैसे एक दिन और बीता ......अगले दिन हम सब लोग गुलमर्ग के लिए निकले ........४०-४५ किलोमीटर की एक और सामान्य सी यात्रा ..........पर तंगमर्ग पहुचते पहुँचते मुझे स्वर्ग का ट्रेलर दिखना शुरू हो गया था .........खूबसूरत .......बेहद खूबसूरत ..........मेरा दोस्त बोला ....क्यों ???कैसा है ...मैंने कहा बहुत अच्छा ........वो बोला बेटा ...अभी तो स्वर्ग की पूँछ भी नहीं आयी ......आगे देखना ..........और दोस्तों 15 मिनट बाद हम गुलमर्ग में खड़े थे ...........मैं आँखें फाड़ फाड़ के देख रहा था ..........यकीन मानिये मैंने ऐसा खूबसूरत नज़ारा अपनी जिंदगी में नहीं देखा था .................प्रकृति की ऐसी नैसर्गिक सुन्दरता ....वाह ..........वो दृश्य आँखों में नहीं समा रहा था .........गुलमर्ग इतना सुन्दर था की उसकी सुन्दरता का बखान करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं .......मैं अभिभूत था .....एकदम पागल ........यकीन मानिये ये शब्द लिखते समय भी मेरी आँखों से आंसू निकल पड़े हैं ........सचमुच मैं स्वर्ग में था ........मेरे दोस्त मुझे छेड़ने लगे ..........क्यों दिखा स्वर्ग ........मैंने उनसे .कहा ....please dont disturb me .....let me enjoy the beauty ......उन्होंने मुझे अकेला छोड़ दिया ..........मैं घंटों उस दृश्य को निहारता रहा .....हम तीन चार घंटे वहां रहे ........दोस्तों आज मैं आपसे कह रहा हूँ ...जी हाँ धरती पे स्वर्ग अगर कहीं है तो कश्मीर में है ............ पर एक बात आपको बता दूं ....गुलमर्ग में कोई बाज़ार नहीं है ,कोई सजी धजी दुकानें नहीं हैं .शौपिंग के लिए कुछ नहीं है .......ले दे के दो चार होटल हैं .....चाय नाश्ते की कुछ छोटी छोटी दुकानें ...... वहां सिर्फ एक चीज़ है प्राकृतिक सुन्दरता ......प्रकृति का अप्रतिम सौंदर्य ...........मेरे दोस्तों ने मुझे बताया की ये तो कुछ भी नहीं........ कश्मीर में तो इस से भी सुन्दर सुन्दर जगहें हैं ........दूसरी बात ये की मैं वहां सबसे खराब season में आया हूँ .........मैंने पूछा क्यों ?????तो उन्होंने बताया की अब अक्टूबर का महीना चल रहा है ...पतझर बस आने ही वाला है यानी ये पेड़ पौधे अब लम्बी ठंडी सर्दियों की तयारी कर रहे हैं ........पत्ते सब पुराने पड़ चुके हैं ...बस झड़ने ही वाले हैं .........कश्मीर का असली मज़ा लेना है तो अप्रैल ,मई ,जून जुलाई में आओ .........तब इस सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं ..........तो लीजिये साहब हमें कुछ दिन बाद वापस कश्मीर आने का बहाना मिल गया .........घर पहुंचे तो श्रीमती जी जली भुनी बैठी थीं .......उन दिनों ये मोबाइल तो था नहीं इसलिए बीवियों को पतियों की छाती पर चौबीसों घंटा मूंग दलने की सुविधा उपलब्ध नहीं थी .......नहीं तो वो तो मुझे बीच रस्ते से ही वापस बुला लेतीं ....खैर उन्हें इस बात से बहुत संतोष हुआ की मुझे पूरा मज़ा नहीं आया था और ये की पूरा मज़ा लेने के लिए वापस मई जून में वहां जाना तय हो गया ..........
अगली बार हम दोनों वहां फिर गए मई में .......प्रकृति पूरे शबाब पर थी ...इस बार हम सोनमर्ग ....पहलगाम ....खिलनमर्ग ...जैसी और भी जगहों पर गए .........इस बार वहां एक साहब मिल गए ......professer हामिद भट्ट...... उन्होंने कश्मीर का चप्पा चप्पा घूमा हुआ था . उन्होंने मुझे बताया की कश्मीर में ऐसी ऐसी जगहें हैं जो एकदम अछूती हैं ...जहाँ सिर्फ घंटों trekking कर के ही पहुंचा जा सकता है ......कुछ ऐसी भी जगहें हैं जहाँ अब तक कुछ गिने चुने लोग ही पहुंचे है .......जो गुलमर्ग से भी ज्यादा खूबसूरत हैं ......लो साहब .....डाल दिया हामिद साहब ने आग में घी .......और भैया वो दिन और आज का दिन कश्मीर से हमारा इश्क अब तक चालू है ...........कई बार वहां जा चुके हैं ...पर हर बार कोई न कोई मिल जाता है और ये कह देता है की बेटा अभी तो कश्मीर की पूँछ भी नहीं देखी तुमने .............फिर वहां का खान पान ,रहन सहन ,वहां की शादियाँ ....वाह .......,कश्मीरी पाक कला ....वाज़वान कहते हैं उसे ........शायद धरती का सबसे स्वादिष्ट भोजन होगा .......लिखने के लिए तो बहुत कुछ है .....बाकी अगली बार ...पर कुछ टिप्स दे रहा हूँ
1 ) terrorism ........डरने की कोई बात नहीं ....ये सिर्फ अखबारों में है .....
2 ) धरती पे स्वर्ग ......श्रीनगर तक न ढूँढें ........
3 ) कैमरा ज़रूर ले कर जाएँ .....
4 ) कोई valid ID ज़रूर ले जाएँ ..........
5 )शौपिंग के चक्कर में न पड़ें .....दिल्ली मुंबई में सब कुछ मिलता है .......
6 ) सेब ......दिल्ली में सस्ते है ......अलबत्ता cherries बहुत अच्छी और सस्ती मिलती हैं ....
7 ) वहां की लोकल नमकीन चाय ज़रूर try करें .......
8 ) jawahar tunnel की दोनों लेन अब चालू हैं ...इसलिए डरने की कोई बात नहीं ......
9 ) अगर अकेले जा रहे हों और आपको कंपनी चाहिए तो मुझसे संपर्क करें .......