Wednesday, June 12, 2013

अपन तो इस खिचड़ी से ही काम चला लेंगे

भाषण बाजी काफी देर तक चलती रही .वो खुश होता रहा .तालियाँ बजाता रहा . बीच बीच में खुशी से उछल पड़ता था .इस उछल कूद में वक़्त कब बीत गया पता ही न चला . खैर , रेला मेला ख़तम हुआ तो घर पहुचा . वहाँ बच्चे इंतज़ार कर रहे थे .पापा क्या लाये .लाना क्या था . वादों की पोटली और उम्मीदों की गठरी . पर वादों से पेट नहीं भरता . बच्चे भूखे थे . भूख बड़ी अजीब से फीलिंग देती होगी . आज जब ये लिख्र रहा हूँ तो यकीन मानिए सुनी सुनायी किताबी बातें लिख रहा हूँ . भूख का मुझे कोई first hand experience नहीं है . कई बार सोचता हूँ की इसका भी अनुभव करना चाहिए . सुनते हैं की मुंशी प्रेम चंद को गरीबी , मुफलिसी और भूख का लंबा अनुभव था .शायद इसी अनुभव ने उन्हें सदी का महान लेखक बना दिया ...........
                               खैर दोनों मियाँ बीवी ने किसी तरह दो मुट्ठी चावल और दाल जुगाड़ के उसमे ढेर सा पानी डाला और चढ़ा दी हांडी . दाल जब उबलती है तो बड़ी सोंधी सी खुशबू आती है . बच्चे बड़े उम्मीद से उस हांडी को देख रहे थे जिस से इतनी सोंधी खुशबू आ रही थी . तभी साले ना जाने कहाँ से टपक पड़े . पूरा गैंग ही आ गया . कोई समाजवादी था कोई साम्य वादी  . कोई अगड़ा था .कोई पिछड़ा .कुछ दलित थे कुछ महा दलित .ज़्यादातर सेक्युलर थे पर कुछ हिंदूवादी भी थे . NGO वाले भी थे और मीडिया वाले भी . झोपडी के बाहर OB वैन लगा दी . लगे हांडी में झाँकने . ये क्या बना रखा है . बच्चों को भूखा मरोगे .उनमे से एक nutrtion का एक्सपर्ट था . बहुत बड़ा विद्वान् था . वो लगा बताने की इसमें न तो विटामिन है  न मिनरल ......और उसने वो सारे तेरह विटामिन और ग्यारह मिनरल गिना डाले जो पौष्टिक भोजन में होने चाहिए .इस खिचडी को खा के तो बच्चे कुपोषण के शिकार हो जायेंगे . तभी एक नेता जी आ गए . जाली दार गोल टोपी लगाए . उन्होंने चूल्हे में झांका . और लगे गला फाड़ फाड़ के चिल्लाने ...हाय हाय .....ये खिचडी तो सेक्युलर नहीं है .......इसमें से साम्प्रदायिकता की बदबू आ रही है .......वो बेचारा हलकान ....... बच्चे परेशान ......अब क्या होगा ...खिचडी तो सेक्युलर नहीं है .........कैसे खाएं ....... TV पे लाइव आ रहा था ......खिचडी साली साम्प्रदायिक है ....नाली में फेंक दो ............लम्बी बहस हुई ....नेता जे ने तफसील से बताया .........चूल्हे में जो उपले थे वो गाय के गोबर के थे ....गाय को हिन्दू पूजते हैं सो गाय के गोबर का उपला सेक्युलर कैसे हो सकता है ......ये साम्प्रदायिक खिचडी नाली में फेंक दो ........भैंस का गोबर लो ....गधे की लीद ले आओ ....कुछ भी ले आओ ....पर गाय का गोबर नहीं चलेगा ........चारो तरफ लोलो कोको मची थी ......तुझे शर्म नहीं आती ....बच्चों को खिचड़ी खिलाता है वो भी साम्प्रदायिक ........एक मोहतरमा बोली नयी dishes try  करो . कभी शाही पनीर बनाओ ....साथ में पाइनएप्पल रायता ....लच्छा परांठा के साथ ........एक बोली पिज्जा try करो .......चारों तरफ से एक ही आवाज़ आ रही थी .....इस खिचडी को नाली में फेंक दो .......वो बेचारा कंफ्यूज हो गया ....उसने हांडी उठायी और चल दिया नाली के तरफ ....पर बच्चों ने आगे बढ़ के हाथ पकड़ लिया .........बोले .......बापू ......इनके चक्कर में मत पड़ .....अभी यही खिचड़ी खा लेते हैं ........जब शाही पनीर आयेगा तो इसे फेंक देंगे ......एह तुम लोग उठो ......चलो ....जाओ शाही पनीर ले के आओ .....तब तक हम यही खिचड़ी खा के गुज़ारा कर रहे हैं ........
                                     भैया मेरी भी यही गुजारिश है . माना की अपने नरेन्द्र मोदी साम्प्रदायिक हैं .........एक दम बेकार थर्ड क्लास कैंडिडेट हैं .....किसी लायक नहीं हैं ......सो हमें ये बता दो की बढ़िया कौन सा है .........माना की ये खिचडी बेकार है ....हमें शाही पनीर ल दो ...वरना अपन तो इस खिचडी से ही काम चला लेंगे








अय्यप्पन और सुधा की प्रेम कथा

                               एक बार मशहूर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने एक चुटकुला नुमा कविता पढी थी एक कवि सम्मलेन में . एक जाट की जाटनी बीमार हो गयी .डॉक्टर बोल्या ....रै जाट , तेरी जाटनी घणी बीमार सै ....तीन हज़ार रुप्यां मैं बिलकुल ठीक हो जागी ........जाट बोल्या , रै दाग्दर , रहण दे , क्यों  मखौल करै सै , पंद्रह सौ रुप्यां में नयी जाटनी ना आ जावेगी ......... खैर ये तो हुई चुटकुले की बात ........ यूँ पति पत्नी के बीच नोक झोंक , गिले शिकवे , प्यार मोहब्बत की दास्तानें सुनते ही रहते हैं ........पति पत्नी के बीच अथाह मोहब्बत का एक किस्सा या यूँ कहें चुटकुला मैंने यूँ भी सुना है की शाहजहाँ ने अपनी बेगम के इंतहाँ प्यार में उसकी याद में मकबरा बनवा दिया जिसे लोग देखने और सराहने पूरी दुनिया से खिचे चले आते हैं . यूँ उसके बारे में विद्रोही शायर साहिर लुधियानवी ने लिख दिया कि  इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ....मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे .........
                              कल अखबारों में अय्यप्पन के बारे में पढ़ा तो आंख की कोर गीली हो गयी ....... निश्छल प्रेम की जो मिसाल उस आदमी ने कायम कर दी उसे दुनिया सदियों तक याद करेगी .......अपनी बीमार गर्भवती बीवी सुधा को घनघोर बारिश में जंगल के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पे , पीठ पे लाद के वो आदमी अकेला चालीस किलोमीटर पैदल ले आया ....... जहां उसे एक जीप मिल गयी ....और सुधा को अस्पताल तक पहुचाया जा सका ....खबर है की सुधा तो बच  गयी पर बच्चे को नहीं बचाया जा सका ........
                              मेरी बुढिया बीवी , उनकी बहन और  मेरी बेटी पिछले साल मनाली स्थित Atal Bihari Vaajpeyee Institute of mountaineering में basic mountaineering course करने गए थे . वहाँ वो लोग उन्हें रोजाना 6 से 8 घंटे , पीठ पे बीस किलो का बैग लाद के ट्रैकिंग करवाते थे .दस हज़ार फुट की ऊँचाई पे , जहां यूँ ही खड़े खड़े ही सांस फूलने लगती हो , ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्तों पे पंद्रह किलोमीटर चलना , वो भी पीठ पे बैग लादे , बड़ा हे दुष्कर कार्य होता है .......वहाँ trainers एक ही बात सिखाते थे .......थकावट एक मानसिक अवस्था है ....इसका शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं होता ....शरीर तभी थकता है जब मन थक जाता है .....शरीर तभी हारता है जब मन हार जाता है ........कोर्स में कुल सौ से ज़्यादा लोग थे .....तकरीबन सभी जवान थे ........सभी इन्हें मम्मी जी कह के ही बुलाते थे ....एक तरह से कोर्स में इनका नाम ही मम्मी जी पड़ गया ........जब भी कोई नौजवान थकने लगता , हार मानने लगता , तो ट्रेनर्स उसे यूँ उत्साहित करते की देखो अगर मम्मी जी कर सकती हैं तो तुम क्यों नहीं .........एक महीने में कई बार ऐसे मौके आये जब मेरी पत्नी ने हार मान ली .....तब trainers ने इन्हें यूँ समझाया की आपसे ही प्रेरणा पा कर तो ये बच्चे लगे हुए हैं .......अगर आप ही बैठ गयीं तो इनका क्या होगा .....और वो सब एक दूसरे से प्रेरणा लेते , एक दूसरे का हाथ बटाते , उत्साह वर्धन करते पहाड़ चढ़ गए .........बहुत दुष्कर कार्य करने के लिए .......... थके टूटे शरीर को चलाते रहने के लियी बहुत तीव्र मानसिक शक्ति और बहुत तीव्र मानसिक संवेग की आवश्यकता होती है .....
                                         उस रात अपनी बीमार मरणासन्न गर्भवती पत्नी को पीठ पे लादे , मूसलाधार बारिश में बिना थके लगातार चलते अय्यप्पन को कौन हौसला दे रहा था ......कौन सा मानसिक संवेग उसे चलाये जा रहा था ......अपनी पत्नी सुधा के प्रति अगाध , अथाह प्रेम ही वो ताकत थी जो उस रात उस मरियल से आदिवासी को सारी रात चलाती रही ..........निश्छल प्रेम की ये गाथा आज के उन नौजवानों के लिए प्रेरणा बन सकती है जो रिश्तों की अहमियत नहीं समझ पाते ...........


अय्यप्पन अपनी पत्नी सुधा के साथ अस्पताल में ............










Sunday, June 9, 2013

अपनी मर्जी से शादी करने का हक़

                                            आम तौर पे कातिलों के पक्ष में लेख लिखना सभ्य आचरण नहीं माना जाएगा . पर आज का अखबार पढ़ कर मुझे तुरंत इस लेख को लिखने की तीव्र इच्छा हुई . आज से चार दिन पहले हरियाण के सोनीपत जिले के दीपालपुर गाँव में एक युवक बसंत कुमार उर्फ़ बंटी ने अपनी तथाकथित प्रेमिका सरिता के नवविवाहित पति और सास की ह्त्या कर दी और सरिता को भगा ले गया .आज का समाचार ये है की कल देर रात जब वो दोनों चंडीगढ़ के सेक्टर 17 में घूम रहे थे तो एक इंस्पेक्टर सुच्चा सिंह ने उन्हें रोका . बसंत कुमार बंटी ने सुच्चा सिंह को चाकू से गोद दिया और उसकी मृत्यु हो गयी . अखबारों में बड़ी चर्चा है इस घटना की . लोग बसंत और सरिता को कोस रहे हैं . सरिता के बाप ने कहा है की अगर मिल गयी तो खुद अपने हाथ से गाँव के चौराहे पे टुकड़े टुकड़े कर के कुत्तों को डाल दूंगा .बसंत के बाप ने कहा है की पुलिस को उसे गोली मार देनी चाहिए , अगर वो न मारें तो मैं मार दूंगा . और ये दोनों बयान हेड लाइन बना कर अखबारों ने प्रमुखता से छापे हैं . स्टोरी का टोन कुछ यूँ है मानो अखबार इस उदगार का समर्थन कर रहे हों .लड़के लडकी के माँ बाप को तकरीबन शाबाशी देते हुए समाचार लिखा गया है .
                                   मित्रों , स्टोरी का एक दूसरा एंगल भी है जिसे देखने , सोचने , लिखने और छापने की ज़रूरत किसी अखबार ने नहीं समझी . बसंत और सरिता दोनों बालिग़ हैं . बसंत चंडीगढ़ पुलिस में नौकरी करता था . उसने एक लडकी सरिता से पिछले महीने आर्य समाज मंदिर में बाकायदा शादी की . उसका मैरिज सर्टिफिकेट , जिसपे दोनों की फोटो लगी है , हस्ताक्षर हैं , और दो गवाहों के भी हस्ताक्षर हैं  आज अखबार में छपा है . कानूनन ये पूरी तरह एक valid शादी है जिसे हमारा कानून मान्यता देता है .और इस से ये सिद्ध होता है की सरिता बसंत कुमार के प्रेमिका नहीं बल्कि पत्नी थी . उसकी इस शादी को यदि लडकी का परिवार या समाज मान्यता नहीं देता तो ये उनकी समस्या है . 
                                  सरिता के परिवार ने ज़बरदस्ती सरिता की शादी किसी और से कर दी . ये नयी शादी पूरी तरह गैरकानूनी है. अगर इस देश में कानून का राज होता तो इसमें सरिता का पूरा खानदान और उस लड़के का , जिससे उसकी जबरन शादी की गयी आज जेल में बंद होते और बसंत कुमार अपने पत्नी सरिता देवी के साथ सुख पूर्वक रह रहा होता .पर दोस्तों मुझे ये कहते हुए दुःख है की हम एक गंदे और घटिया समाज में रहने को मजबूर हैं .
                                    देखो भैया सीधी सी बात है . अगर कोई मेरी बीवी को यूँ मुझसे छीन ले जाये और उसकी ज़बरदस्ती शादी कही और करने लगे तो मैं भी यही करूँगा जो बसंत कुमार ने किया . और हर पानीदार मर्द को यही करना चाहिए ( यदि अन्य सारे विकल्प समाप्त हो जायें ). अब बसंत कुमार ने वो अन्य विकल्प try किये या नहीं ये जांच का विषय है .पर जहां तक मेरा अनुभव है समाज और हमारी प्रशासनिक एवं न्याय प्रणाली ऐसे cases में आम तौर पे प्रेमी युगल की कोई मदद नहीं कर पाती या करना चाहती .
                                        मुझे कुछ साल पहले का एक किस्सा याद आता है   जब मेरा एक दोस्त ऐसी ही परिस्थिति में घिर गया था पर उसकी ये खुशकिस्मती थी की उसके पास मुझ जैसा घाघ एक दोस्त था , और हमने बाकायदा एक टीम बना कर उसकी पत्नी को , जिसे उसका ससुर हर ले गया था , वापस प्राप्त कर लिया.ये अलग बात है की पूरे प्रकरण में , शहर में हमारी बहुत थू थू हुई . .और लोगों ने यहाँ तक कहा की साले तुम तो लफंडर थे ही , तुम्हारी बीवी भी इस लफंडरी में शामिल थी .दरअसल मेरी पत्नी ने हमारे साथ जिले के SP , SDM और स्थानीय SHO से बाकायदा एक युद्ध लड़ कर उस लडकी को वापस प्राप्त किया. पर शायद बसंत कुमार और सरिता देवी इतने खुशनसीब नहीं थे की उन्हें इस निष्ठुर निर्दय समाज में कोई support group मिल पाता .
                                          मुझे उस दिन बड़ी शिद्दत से इस बात की ज़रुरत महसूस हुई थी की हमारे समाज में ऐसा एक support system होना चाहिए , ऐसे NGOs होने चाहिए , स्थानीय bar council में एक cell होना चाहिए जो ऐसे नौजवानों की मदद कर सकें और उन्हें उचित सलाह दे सकें . याद कीजिये वो दिन जब नेपाल के शाही खानदान में उनके युवराज ने , जो की देश के राजा बनने वाले थे और अत्यंत लोकप्रिय थे , अपने माता पिता  समेत पूरे खानदान को गोली मार कर स्वयं भी खुदकुशी कर ली थी . उनकी माँ  उन्हें अपनी मनपसंद लडकी से शादी करने की इजाज़त नहीं दे रही थी . किसी भी सभ्य समाज में बालिग़ लोगों को मर्यादित आचरण करते हुए अपना जीवन जीने और जीवन साथी चुनने की आजादी होनी ही चाहिए. यूँ तो पुराने ज़माने में संकुचित सोच वाली ऐसी बहुत सी कुप्रथाएं थी ही जिनका हमारे leaders ने उन्मूलन किया . पर आज के इस आधुनिक युग में भी इस कुप्रथा को छूने से क्यों डरते हैं हमारे leaders ,  धर्मगुरु , हमारे  प्रचार माध्यम , मीडिया  और हमारा एजुकेशन सिस्टम . इंग्लैंड का समाज और उनका एजुकेशन सिस्टम अपने बच्चों को ये सिखाता है की अगर तुम्हारे माँ बाप तुम्हारे साथ  मार पीट करें , दुर्व्यवहार करें , आपस में लड़ें तो उन्हें थाने में बंद करवा दो . हमारा समाज और हमारा education सिस्टम कब अपने नौजवानों को सिखाएगा की बालिग़ होकर अपनी मर्जी से शादी करना तुम्हारा अधिकार है और इसे तुम इस इस तरह प्राप्त कर सकते हो .
                                            मेरी पूरी सहानुभूति बसंत कुमार और उसकी  पत्नी के साथ है 










  

Saturday, June 8, 2013

एक दिन का राजा और एक दिन की रानी

                                                 महलों का राजा मिला , रानी बेटी राज करे .......ख़ुशी ख़ुशी कर दो विदा , की रानी बेटी राज करे .अनोखी रात फिल्म का गाना है.   ये फ़िल्मी गाना देश में इतना लोकप्रिय हुआ की इसने लोक गीत का रूप ले लिया .आज भी ये ब्याह शादियों में लेडीज संगीत में गाया जाता है . गाँव में मेरे घर के सामने वाली सड़क पे काफी ट्रैफिक हो जाता है .......शादी ब्याह के दिनों में ........ भाग दौड़ लगी रहती है सारा दिन . फिर शाम को बरातें जाने  लगती हैं . अब चूंकी हिन्दुस्तान अमीर देश है ....सो बारात में आजकल सौ सौ गाडियों का काफिला जाता है . उसमे भी नए नए शिगूफे आते रहते हैं . भाई लोग एक छोटे  ट्रक में बाकायदा बड़े बड़े स्पीकर लगा के एकदम फुल वॉल्यूम पे गाना बजाते जाते हैं . पूरी शानो शौकत से जाते हैं ....आखिर क्यों न जाएँ भाई .........अरे दुल्हे राजा की बारात है ........ मेरे पिता जी बड़े दिल से गरियाते थे ......साले राजा बनते हैं .....एक दिन के राजा .......साला हर किसी को राजा बनने का शौक है ......हर कोई राजा बनना चाहता है .......शादी ब्याह में दुल्हे को dress up भी राजा की तरह ही किया जाता है ........शेरवानी , मोतियों का हार , ऊपर से मुकुट नुमा पगड़ी ........कमर में लटकी तलवार ........घोड़े पे सवार ....और ज़्यादा बड़ा राजा हुआ तो रथ पे सवार .....जिसे कई कई घोड़े खींच रहे हों .........अब लड़का अगर राजा होगा तो लडकी रानी क्यों न होगी भैया ..........सो जब महलों का राजा मिल ही गया तो रानी बेटी राज करेगी ही .......शादी पे खर्च भी खुले दिल से और  खुले हाथ से होता है .......जिस साले को ज़िन्दगी में नमक नसीब न हुआ वो भी उस दिन सलाद में नीबू खोजता है .......वो भी द्वार पूजा पे छह पीस छेना खाता है ........
                                                मैंने हिन्दुस्तान के घोर देहात में पचीस बरस तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया है . इन पचीस बरसों में लोगों को और उनके बच्चों को बड़े नज़दीक से देखा है . ये देखा है की कैसे बच्चे दो रु की पेंसिल के लिए तरसते हैं . फटे हुए जूते  पहन के स्कूल आते हैं . साल साल  भर की  फीस बकाया हो जाती है स्कूल में .........लड़का तो फिर भी किसी तरह चालीस रु फीस वाले प्राइवेट स्कूल में भेज दिया जाता पर लडकी वही सरकारी स्कूल में मिड डे मील की खिचड़ी खाती है , लाइन में बैठ के ........ घर में माँ सारी ज़िन्दगी अपना और अपने बच्चों का पेट काट के लड़की की शादी के लिए दहेज़ इकट्ठा करती है .........फिर खोज शुरू होती है , बाज़ार में दुल्हे राजा की ........कुछ दिन के लिए साले भिखारी भी राजा बन जाते हैं ........हम तो भाई पूरी शानो शौकत से बारात ले के आएंगे ....जिसका खर्चा तुम दोगे .....वरना हमारे पास तो झांट नहीं है सुलगाने को .........लो भैया , लडकी वाले के पैसे से हम हो गए राजा .....एक दिन के ही सही .........और फिर रानी बेटी राज करने के लिए ससुराल पहुँच जाती है ........और चौथे दिन चौके चढ़ा दी जाती है ....आइये रानी साहिबा .....खानदान भर के लिए पसेरी भर आटा पोइये ....... चूल्हे पे ......गैस तो कमबख्त सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह ने हज़ार रु की कर दी है ........ और चार छह साल में रानी साहिब दो तीन अदद युवराज पैदा कर के हड्डियों का ढांचा भर रह जाती हैं .........पूरा राजमहल कुपोषण का शिकार .....
                                                  सबसे बड़ी विडंबना ये है की आम जनता एक दिन का राजा और एक दिन की रानी बनना चाहती है . और समाज के राजनैतिक सामाजिक और धार्मिक नेता भी उन्हें इसी में उलझाए रखना चाहते हैं . मीडिया , प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक उनकी इस fantasy को बाज़ार का माध्यम बन के और पुष्ट करता है .........जबकि उसे चाहिए की वो समाज को वास्तविकता के धरातल पे उतार के आइना दिखाए .....समय समय पे हमारे समाज सुधारकों ने आडम्बर पूर्ण सामाजक आयोजनों का विरोध किया है .......परन्तु बाज़ार का तंत्र इतना मज़बूत है की वह इस fantasy को इतना मजबूत कर देता है और आदमी बेचारा इस कुचक्र में फंसा परिवार की  आधारभूत ज़रूरतों में  सारी ज़िन्दगी कटौती करता है ........ शादी में एक दिन की शानो शौकत दिखाने के लिए .........देश को एक नए समाज सुधार आन्दोलन की सख्त ज़रूरत है 






Sunday, June 2, 2013

स्वर्ग सी ...........खूबसूरत......... मनाली

                                                       बहुत पहले जब बनारस से जालंधर शिफ्ट हुए तो मोटर साईकिल गाँव में पडी थी . उसे जालंधर ले जाना था .धर्म पत्नी से झूठा वादा किया की बनारस से बुक करा दूंगा ट्रेन में . गाँव से चला और चलाता हुआ सीधे जालंधर  ले आया . वो मेरी पहली यात्रा थी , लम्बी , बाइक से .बड़ा मज़ा आया और चस्का लग गया .फिर उसके बाद धर्म पत्नी को पीछे बैठा के कई टूर मारे . एक बार तो तपती गर्मी में , जून के महीने में हम दोनों जालंधर से बनारस गए . इन दिनों यहाँ पंजाब से अक्सर हिमाचल में डलहौजी , मनाली और धर्मशाला मैक्लोडगंज के चक्कर लगते रहते हैं . मुझे अपने पहली मनाली यात्रा याद आती है .
                                 बड़ा नाम सुना था मनाली का . मेरे एक घुमक्कड़ मित्र फ़िदा थे मनाली पे .........उसकी शान में कसीदे पढ़ा करते थे ........देव भूमि ....स्वर्ग ....और न जाने क्या क्या ......... हम दोनों मियाँ बीवी अपने पल्सर से निकले . होशियारपुर , कांगड़ा , पालमपुर , मंडी होते हुए मनाली पहुंचे . गर्मियों का सीज़न था . यात्रा इतनी लम्बी थी की बुरी तरह थक गए . भुंतर आ के रास्ता पूछा तो लोगों ने दो रास्ते बताये . पहला NH और दूसरा नग्गर होता हुआ state highway . पर उस भाई ने हमें ये बताया की स्टेट हाईवे सुनसान और खतरनाक है सो आप NH से ही जायें . सो हम NH पे हो लिए . कुल्लू पहुँचते पहुँचते 8 बज चुके थे . मुझे होटल के कमरे की चिंता सताने लगी थी . मनाली के होटलों का अंदाजा था मुझे . सो हमने उस रात कुल्लू में ही रुकने का फैसला किया . रास्ते में पड़ने वाले हर होटल को देखा . कहीं कमरा नहीं मिला . ऊपर से NH पे काम चल रहा था .जगह जगह टूटा हुआ था . बुरा हाल था . किसी तरह गिरते पड़ते मनाली पहुंचे . वहाँ किसी तरह होटल मिला . दो हज़ार में . यूँ मैं इतने गंदे और घटिया कमरे के सौ रु भी न देता पर भैया सड़क पे रात बिताना संभव न था . धर्म पत्नी चूंकी इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ के खानदान से ताल्लुक रखती हैं सो उनका तो उस कमरे को देखते ही पारा चढ़ चुका था . वो कमरे को कम और मुझे ज्यादा कोस रही थीं . खैर ....नहा धो के बाहर निकले .....सामने मेन  मार्किट थी .....वहाँ का नज़ारा देख के तो होश उड़ गए ....... हावड़ा स्टेशन से निकली लोकल ट्रेन की  भीड़ का दृश्य उपस्थित था .........बाप रे बाप ....... इतनी भीड़ ....... पहली समस्या थी भोजन .........यूँ भी मनुष्य की मूल समस्या है तो भोजन ही ........वहाँ सामने बोर्ड लगा था chawla chicken  .......ये एक ऐसा नाम है जहां उत्कृष्ट स्वाद और गुणवता की गारंटी होती है , देश भर में ......सो हम निश्चिन्त हो अन्दर घुस गए . पर कमबख्त मनाली शहर ने यहाँ भी धोखा दे दिया .......गंदे घटिया माहौल में घटिया भोजन ......चावला चिकन के नाम पे कलंक ..........बहार आये .....घटिया गुलाब जामुन खाए ........हावड़ा स्टेशन की भीड़ में आधा घंटा टहले ............भड़ास निकाली ........ कितने चूतिया लोग हैं हिन्दुस्तान में .........साले गर्मियों में मनाली चले आते हैं ............घूमने ..........और कमरे में जा के सो गए . 

                                                सुबह उठे ....बैग उठाया ........नाश्ता किया और निकल लिए .........सोलंग वैली गए ...वहाँ घंटा भर रुके ....चलो जी ....हो गया टूरिज्म मनाली का .....निकलो .........भारी बुझे मन से वापस निकले ....वापसी  में निर्णय किया की नग्गर वाले रोड से चलेंगे .........रोड बढ़िया था और खाली था ...नाम मात्र का ट्रैफिक था ........मूड कुछ ठीक हुआ ......सामने रोड पे बार बार एक नाम आ रहा था .....YES  family restaurant ......हमें लगा कोई हिमाचली परिवार अपने घर में खाना खिलाता होगा ...बार बार बोर्ड पढ़ा तो उत्सुकता जगी ......भूख लगी ही थी ..........सोचा चलो खाना खा ही लेते हैं ........पूछा तो पता लगा की आगे खखनाल गाँव में है .......वहाँ रोड के किनारे बाइक लगाई ........पता लगा की नीचे इस पगडंडी नुमा रास्ते पे कोई दो सौ मीटर आगे है ......आगे घने सेब के बगीचे के बीच से होते हुए वहाँ पहुंचे .....अच्छा  खासा घर था ....गेट बंद था ...खटखटाया ....कोई जवाब न मिला ....खुद ही  खोल के अन्दर चले गए ......वहाँ समझ आया की नीचे घर है और ऊपर restaurant . ऊपर पहुंचे तो एक श्री मान जी निकले ....अँगरेज़ थे ........DANIEL ......खाना मिलेगा .....हाँ हाँ ज़रूर मिलेगा ..........आइये आइये ........restaurant खाली पडा था ....सुनसान .......अन्दर गए ...एक बेहद खूबसूरत हॉल से होते हुए बाहर बरामदे में आये ..........वहाँ सामने Valley में मनाली लेटी हुई थी ........वो मनाली जिसकी खोज में हम निकले थे .......... शांत , सुन्दर ....स्वर्ग सी सुन्दर मनाली .........वो मनाली , जिसे देख के मेरा वो दोस्त आशिक हो गया था ...सामने दूर तक फैली वादी में सेब के बाग़ लहलहा रहे थे ..........नीचे ब्यास नदी थी और उसके उस पार वो हरी  भरी पहाड़ियां और उनके ऊपर वो बर्फ से ढके चांदी से चमकते पहाड़ ......यूँ मानो साक्षात् स्वर्ग धरती पे उतर आया था ........वो नयनाभिराम दृश्य आँखों में समा नहीं रहा था .....वहाँ danial साहब ने दो आधुनिक टेलिस्कोप लगा रखे थे .........हम दोनों कुर्सियों पे जम गए ........ और निहारने लगे खूबसूरत मनाली को ........और मैंने धर्मपत्नी को घोषणा कर दी .....मिल गयी मनाली ....वापसी कैंसिल .......danial ने बताया की भोजन में समय लगेगा ....हमने कहा कोई बात नहीं .........आर्डर दिया .....बेगम ........ तुम निहारो मनाली को ....मैं अभी आया ......... गाँव में घुसते हुए मैंने एक होम स्टे का बोर्ड पढ़ लिया था ....वहाँ उस घर तक गया .......बंद पडा था . जीवन का कोई नामो निशाँ न था ..........आवाज़ लगाई .....कुछ नहीं ....बाहर निकला तो एक महिला दिखी ....हीरा .......उस से पूछा ...पता लगा की बाहर गए हैं .....कोई और है ऐसा घर ???????? जी नहीं ....बड़ी निराशा हुई ..........कमरा चाहिए क्या ? हाँ चाहिए तो ............. उसने बड़ा सकुचाते हुए कहा देखिये यूँ मेरे घर में एक कमरा तो है ......... पर देख लीजिये ...अगर आपको पसंद आ जाए तो .............भगवान् कसम , अपना तो दिल बाग़ बाग़ हो गया ..........उस बेचारी  के घर में एक ही कमरा था कायदे का ......... जिसे वो ड्राइंग रूम , और गेस्ट रूम के रूप में इस्तेमाल करते थे .....साफ़ सुथरा , खूबसूरत सा .........कितने पैसे लोगी ?????? जो आप उचित समझें .........मैंने बहुत सोच समझ के कहा .......डेढ़ सौ रुपया ....वो बोली ....अजी कहाँ मिलेगा डेढ़ सौ रु में कमरा ......और ऊपर से दो लोग का खाना भी  ......दो सौ लगेंगे कम से कम ........मेरे तो दिल में लड्डू फुट रहे थे , पर अब मैं भी एक कमीने धूर्त दुष्ट हिन्दुस्तानी की  तरह फ़ैल गया ........ठीक है , दो सौ मिलेंगे पर भोजन में आपको रोजाना लिंग्डी और दुसरी जंगली देसी साग भाजी खिलानी पड़ेगी ........और वो ख़ुशी खुशी  मान गयी ............ मैं विजयी भाव से इठलाता हुआ वापस पहुंचा , धर्म पत्नी के पास ........ यूँ मानो अश्व मेध यज्ञ से लौटा हूँ ..........और मैंने उसे अपनी विश्व विजय का शुभ समाचार सुनाया ......कसम से , अगर उस दिन उसके पास धूप बत्ती की थाली रही होती तो वो मेरी आरती उतारती ......कहाँ वो गंदा सा दो हज़ार का कमरा और कहाँ ये दो सौ में  भोजन समेत ....

                                     खाना तैयार था .और उस दिन हमने अपने जीवन का सबसे स्वादिष्ट शाही पनीर खाया . हम वहाँ तीन चार घंटे रुके रहे . बेहतरीन कॉफ़ी पी . डेनियल की  जन्म कुंडली बांची . पता लगा की श्री मान जी स्विट्ज़रलैंड के हैं ....बरसों पहले आये थे ........मनाली की ख़ूबसूरती पे ऐसे मुग्ध हुए की यहीं बस गए . कुल्लू की एक स्थानीय लडकी से शादी कर ली ....ज़मीन खरीदी और ये रेस्टोरेंट बना दिया Yes family restaurant ........हम वहाँ तीन चार घंटे रहे ......कोई झाँकने तक ना आया ....बस एक कुक था और डेनियल .......उस दौरान जनाब डेनियल एक क्षण  भी बैठे नहीं ....कुछ न कुछ करते रहे .....बढ़िया शानदार केक बनाया .....बेहद स्वादिष्ट ..........काफी पिलाई ........धर्मपत्नी बोली ....इस साले के पास एक ग्राहक नहीं फिर भी इतना बिजी ......आने दी सेल नहीं ....24 घंटे वेळ नहीं ........इतनी शानदार जगह और एक भी ग्राहक नहीं ......... यूँ ही हज़ार झंझट थे हमारी ज़िन्दगी में ....एक और आ गया ....ये कमबख्त डेनियल का रेस्टोरेंट .....इस बेचारे ने इतना शानदार रेस्टोरेंट बनाया ....जहां कोई नहीं आता ........ हमें चिंता हो गयी .....कुछ दिन में बंद हो जाएगा ....ताला लग जाएगा ........फिर हमने उन चूतिये हिन्दुस्तानियों को गरिआया जो वहाँ उस नर्क सी मनाली में पड़े हैं और यहाँ ये स्वर्ग सी जगह खाली पडी है ...........और हमने बड़े भारी बुझे मन से Yes family restaurant को श्रद्धांजली देते हुए विदा ली .........शाम को पुनः आने का वादा करते हुए ........उस शाम फुटबाल का वर्ल्ड कप शुरू हो रहा था ....और डेनियल ने हमें इनवाईट किया था ....हम अपने कमरे में पहुंचे .....कुछ देर आराम किया .......... शाम को हीरा के घर लिंग्डी के साग की दावत थी ...........

                                               सात बजे डेनियल के पास पहुंचे तो दृश्य बदला हुआ था ........चालीस अंग्रेजों का एक भरा पूरा ग्रुप वहाँ पसरा हुआ था .....जश्न का माहौल था ....TV की बड़ी स्क्रीन पे शकीरा वाका वाका पे ठुमक रही थी .......पता चला की यहाँ यूँ ही शाम को महफ़िल जमती है .........और डेनियल मियाँ लाख पचास हज़ार  का धंदा कर लेते हैं .........एक अँगरेज़ का average बिल दो ढाई हज़ार का हो जाता है जबकि हम जैसे भुक्खड़ हिन्दुस्तानी चार छे सौ में हांफने लगते हैं ..........हम दोनों ने सुख की सांस ली ....मानो दिल से कोई बोझ उतर गया हो .........मैंने उन चूतिया हिन्दुस्तानियों को गरिआया और कोटिशः धन्यवाद दिया .......अच्छा  है , साले यहाँ नहीं आते .......अगर आने लगे तो इसे भी नर्क कर देंगे ..........हम लोग हफ्ता भर वहाँ खखनाल गाँव में जमे रहे .........हीरा और उसकी सास रोजाना बड़े चाव से हमें स्थानीय साग सब्जियां , जंगल से तोड़ के लाती और खिलाती थी ....उनके घर में भी हफ्ता भर जश्न का माहौल रहा . उनका मोटा चावल हमें भाता नहीं था सो हमने उन्हें दो किलो बासमती ला दिया ..........उस एक हफ्ते में हमने पूरा कुल्लू मनाली छान मारा अपनी  मोटर साईकिल पे ........

                                              अब भी हर साल जाते हैं मनाली हम लोग ......वहाँ उसी सड़क पे एक और जुगाड़ ढूंढ लिया है , जगत सुख गाँव में ....जहां ऑफ सीजन में दो सौ में शानदार कमरा मिल जाता है ....DOMIA PALACE में .........डेनियल ने अब रेस्टोरेंट के साथ चार कमरे भी बना लिए हैं ........थोड़े महंगे हैं ....पर शानदार हैं .......हीरा का परिवार मज़े में है ........स्वर्ग सी खूबसूरत मनाली भी मज़े में है .........