Tuesday, June 28, 2011

शहीदों की चिताओं पर ....नहीं लगते हैं अब मेले

                                                             दोस्तों आज 28 जून है ....हम लोगों के लिए एक और सामान्य सा दिन ........ आज सुबह सो कर उठे तो बूंदा बंदी हो रही थी ........बारिश की सुबह कितनी रोमांटिक होती है .........अपनी पत्नी के साथ आज बालकनी   में बैठ के चाय पीते हुए अखबार देख रहा था ......दो दो अखबार देख डाले ........कहीं कोई ज़िक्र नहीं था ....कल टीवी पे सारे news channels खंगाले ....कुछ नहीं था .....हिन्दुस्तान gas और diesel के दामों में उलझा हुआ है ..........मेरी पत्नी मेरे भावों को पढ़ लेती है ........... उसने पूछा क्या हुआ .....अचानक इतने serious क्यों हो गए ..........मैंने कहा कितनी रोमांटिक लगती है न ये बूंदा बांदी .....बारिश  की ये फुहार .........उस दिन भी हलकी बूंदा बांदी  हो रही थी ....जब  वो लोग .....उस रात अपने घर आखिरी ख़त लिख रहे थे  ..........आज से 12 साल पहले ......सब 20 से 25   के बीच थे .......यानी मेरे बेटे से सिर्फ 2 -3 साल बड़े .........मेरा बेटा तो मुझे बच्चा लगता है अभी..... आखिर  20 - 22 साल भी कोई उम्र होती है जान देने की ........
                                                            दोस्तों शहादत दिवस है आज .........major P P Acharya ,Capt kenguruse  और Capt Vijayant Thaapar ....सिपाही जगमाल सिंह और नायक तिलक सिंह का ....12 साल पहले आज की रात वो सब  शहीद हुए थे वहां दूर .....drass में ....knoll नामक चोटी को फतह करते हुए .........कारगिल युद्ध में .........27 जून को एक पूरी प्लाटून शहीद हो गयी थी उसी चोटी पर .........शाम की roll call खुद commanding officer ..... colonel M B Ravindra naathan ने ली ...........वहां ये बताया की आज हमारी पूरी प्लाटून शहीद हो गए knoll पर .......सबने 2 मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी .........फिर colonel ने कहा ......कल के assault में जो जाना चाहता है ...एक कदम आगे आयेगा ....बाकी अपनी जगह खड़े रहेंगे ...........पूरी regiment एक कदम आगे आ गयी .......तब major आचार्य ने कहा की कल A कंपनी ने assault किया था .......आज B कंपनी करेगी .......और फिर उन्होंने अपनी टीम बनाई .........और कहा की चूंकि मैं कंपनी कमांडर हूँ इसलिए मैं लीड करूँगा .........उनकी टीम में 12   लोग थे...... अगले दिन  सुबह निकलना था .....उस रात सबने अपने घर चिट्ठी लिखी .....major आचार्य ने भी लिखा था ....अपने पिता को .......हतॊ वा पराप्स्यसि सवर्गं जित्वा वा भॊक्ष्यसे महीम.........तस्माद उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः......गीता का ये श्लोक quote किया था ..........उस रात वो लोग जानते थे की लौट कर नहीं आयेंगे .............और नहीं आये ......capt थापर ने जो पत्र अपने घर लिखा था ....उस पर मैं पहले ये लेख .....http://akelachana.blogspot.com/2011/03/chief-of-army-staff.html लिख चुका हूँ ...........उन्होंने भी लिखा था की जब तक ये पत्र आप लोगों को मिलेगा ...मैं वहां अप्सराओं के बीच स्वर्ग का सुख भोग रहा होऊंगा ......... वो जानते थे की लौट के नहीं आएंगे ..........फिर भी गए .......उस  रात हलकी बूंदा बांदी हो रही थी .........पर अगली सुबह मौसम साफ़ था एकदम ...और उस रात जब उन्होंने चढ़ना शुरू किया ................full moon night थी .......full moon night भी रोमांटिक लगती है  कुछ लोगों को ............चाँद आसमान में चमक रहा था ........रात में भी सब कुछ साफ़ साफ़ दिख रहा था ..........हमें भी  और दुश्मन को भी .........भयंकर गोला बारी हो रही थी .....सबसे आगे major आचार्य थे ......वही सबसे पहले शहीद हुए .....फिर सिपाही जगमाल सिंह ........वो अर्दली था capt थापर का ......major आचार्य ने उसे अपनी टीम में चुना नहीं था .....उस रात जब उसे पता चला की उसे नहीं चुना गया है तो वो खुद major आचार्य के टेंट में गया .......अगर मेरे साहब जायेंगे ....(यानी capt थापर) ......तो मैं भी जाऊंगा .......वो capt थापर से पहले शहीद हुआ उस रात .........उनकी बाहों में .........२२ साल उम्र थी उसकी ......आजकल इस उम्र के लड़के सारी रात अपनी girl friends को SMS भेजने  में बिता देते हैं .......उनमे एक capt kenguruse था ....25 साल का .....वो नागा था ....नागालैंड का .......सुना है नागालैंड में लोग नफरत करते हैं ....हिन्दुस्तान से और हिन्दुस्तानी फ़ौज से ........graduation के बाद सरकारी स्कूल में teacher हो गया था ........दो साल मास्टरी की भी ......फिर बोला फ़ौज में जाऊंगा ........हिन्दुस्तानी फ़ौज में ....उस फ़ौज में जिससे उसका समाज नफरत करता है ...दिल से ......उस रात एक  LMG चढ़ानी थी ऊपर .....बहुत फिसलन थी उस नंगे पहाड़ पे ......उस कडकडाती ठण्ड में ........अपने जूते उतार दिए उसने ......जिससे की पैरों को अच्छी पकड़ मिले चट्टानों पे .......सबसे पहले ऊपर चढ़ा, चोटी पे .........नंगे पाँव...... फिर कमर में बंधी रस्सी से अकेले दम वो LMG ऊपर खींची ......मरियल सा था ....मुश्कल से 50 किलो का .......5 फुट दो इंच का .......फिर उसी रस्सी को पकड़ के पूरी प्लाटून ऊपर आयी .....वहां दो पाकिस्तानी rifle से मारे और एक को अपनी उस नागा खुकरी से .....hand to hand combat में .......एकदम नज़दीक एक हथगोला फटा ...पेट में splinter लगा .......उस खड़े पहाड़ से 100 फुट नीचे गिरा .....वहां शहादत हुई .......capt थापर को बाईं आँख में गोली लगी थी ........जब body घर पहुंची तो चश्मा पहना दिया था ......दाढ़ी बढ़ी हुई थी .....6 फुट 1 इंच height थी .......इतना सजीला और ख़ूबसूरत जवान अपनी जिंदगी में नहीं देखा मैंने ............शहादत से दो दिन पहले का फोटो है उसी दाढ़ी में ........अगर फ़ौज में न होता तो मॉडल होता ....या फिर फिल्म स्टार .....24 साल की उम्र में शहादत दे दी ......वो जो आखिरी चिट्ठी लिखी उसने अपने माँ बाप को ...उसमें भी सब कुछ दे गया देश को ......मरने के बाद भी ...........निकाल लेना सारे अंग ....फूंकने से पहले .....ताकि काम आ सकें किसी के .......
                                                                           आज सुबह के अखबार देख के बहुत दुःख हुआ ..........इतनी जल्दी भुला दिया इस अहसान फरामोश मुल्क ने ..........पूरे देश में चर्चा है आज ........ऐश्वर्या राय pregnent हो गयी है .......major आचार्य की बीवी भी pregnent थी .........जब उसका पति शहीद हुआ .........तीन महीने बाद जन्मी वो बच्ची  ...........क्या सोच रही होगी वो लड़की आज के अखबार देख के ...........उस रात .......उस खड़ी चट्टान से 100 फुट नीचे गिर कर ......ज़िदगी के उन आखिरी क्षणों में .....मरने से पहले .....क्या कुछ सोचा होगा उस नागा लड़के ने ..........संवेदना शून्य हो जाता होगा ऐसी स्थिति में दिमाग आदमी का ........आज जैसे हमारा हो गया है ....जीते जागते भी .........वो लड़के उस रात अच्छी तरह जानते थे की वापस नहीं आयेंगे लौट के .....फिर भी गए .....क्या जज्बा होता होगा .......देश के प्रति ......क्या सोच के गए होंगे .........क्यों पैदा नहीं होता वो जज्बा हम लोगों में ....अपने देश के प्रति ......
                                                                          सलाम है ....कारगिल शहीदों के उस जज्बे को ............13 july को capt विक्रम बत्रा का शहीदी दिवस है ....पूर्व में एक लेख उनपे भी लिख चूका हूँ ......http://akelachana.blogspot.com/2011/03/r.html ......इस बार 13 जुलाई को उनके घर पालम पुर जाने  का विचार है ........ सुना था की ...शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ....वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा ...........अब तो कमबख्त वो मेले लगने भी बंद हो गए .....UPA  सरकार कारगिल विजय की बरसी नहीं मनाती .......चलो हम ही मना लें ......

Saturday, June 25, 2011

मैडम का योगा .......और घुरहू का योग

                                            एक ज़माना था .....मारुती 800 नई नई हिन्दुस्तान में launch हुई थी .........और रातों रात पूरे देश की चहेती बन गयी ........वाह क्या ज़माना था .......फुर्र से निकल जाती थी बगल से .....कितनी सुन्दर लगती थी .........status symbol बन गयी थी सोसाइटी का .......बड़े बड़े रईस लोग  चलते थे ........उनकी बीवियां इठलाती थीं उसमें बैठ के ............मारुती ने भारत देश को कार में चढ़ना सिखाया .........फिर ज़माना बदला .....नयी नयी गाड़ियाँ बाज़ार में आने लगीं ...एक से एक शानदार .....लम्बी लम्बी ......महँगी महँगी .....और मारुती आम आदमी तक पहुँचने लगी .....जो लोग कल तक स्कूटर और साईकिल पर चलते थे ...वो भी मारुती पर चढ़ने लगे ....मारुती अब जन जन की कार बन गयी थी .......अदना सा आदमी भी मारुती खरीद रहा था ......अरे क्या है ...सिर्फ 3000 रु की तो किश्त है महीने की ...ले लो .........और ये क्या ....अचानक वही मारुती ,जो कल तक देश की आँख का तारा थी .......लोगों की दरिद्रता का द्योतक बन गयी .........पिछले दिनों एक बड़ा मजेदार किस्सा हुआ .......हुआ यूँ की हमारे एक दोस्त हैं .......दो गाड़ियाँ है उनके पास ........एक फाबिया है शायद और एक पुरानी मारुती 800 .........मारुती अक्सर खड़ी रहती है और दोनों लोग ज़्यादातर फाबिया पे चलते है ....एक दिन यूँ हुआ की मित्र महोदय 2 -3 दिन के लिए कहीं बाहर गए और फाबिया ले गए.....अब उनकी मैडम को पीछे से किट्टी पार्टी में जाना था पर उन्होंने कहा की .........मारुती 800 में   ???????   कभी नहीं .....मेरी इज्ज़त का फलूदा हो जायेगा शहर में .........वाह क्या बात है ....जो लोग कल तक मारुती में बैठ कर इठलाते थे वो अब उसके पास खड़े होने में भी तौहीन महसूस करते है .........क्योंकि मारुती अब गरीब की गाडी हो गयी है ......हाय  राम........ मैं मारुती में चलूंगी तो लोग क्या कहेंगे ....मेरे इतने खराब दिन आ गए हैं की मैं मारुती में ......
                                             एक बहुत बड़े योगाचार्य हुए हैं हमारे देश में .......BKS  AIYANGAR  साहब ...........सुना है की 95 साल के हैं .........पिछले 75 साल से योगा  सिखा रहे हैं पूरे विश्व में .........अभी पिछले दिनों चीन में थे ...वहां उन्होंने फरमाया की इस रम देउआ ( बाबा राम देव )   ने योग का भट्ठा  बैठा दिया है ............एकदम सड़क छाप बना दिया है ........योग तो बहुत ऊंची चीज़ है .........ये इसे कपाल भाती का package बना के बेच रहा है ........अय्यंगर साहब की व्यथा मैं समझ सकता हूँ .......आखिर 75 साल से योगा  सिखा रहे हैं वो .......यानी की जब रम देउआ पैदा हुआ तो उनको योगा  सिखाते 30 साल हो गए थे ...........मुझे याद है.....आज से लगभग 30 साल पहले .....हम लोग स्टुडेंट थे तब....... किताबों में पढ़ा करते थे ...की हमारे देश में किसी ज़माने में .........बड़े बड़े ग्रन्थ होते थे .........वेद ....उपनिषद ..........दर्शन शास्त्र .....और योग होता था ...बड़े बड़े योगी होते थे ...........सालों गुफाओं में बैठ के तपस्या और योग करते थे ....फिर जब योग सिद्ध हो जाता था तो बड़ी अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो जाती थीं .......हवा  में उड़ जाते थे .......पानी पर चलने लगते थे ........ये की भगवान् कृष्ण बहुत बड़े योगी थे ......यानी की भगवान् टाइप लोग योग से ही भगवान् हो गए थे ........इस से बड़ी श्रद्धा होती थी योग के प्रति ......फिर अस्सी के दशक में एक धीरेन्द्र ब्रह्मचारी प्रकट हुए ..........वो भी पहुंचे हुए योगी थे .......उनके बारे में पता लगा की ये इंदिरा गाँधी के गुरु हैं .......अरे वाह ......इंदिरा जी योगा  भी करती थीं और इसी से इतनी बड़ी नेता हो गयीं विश्व की ........सो धीरेन्द्र ब्रह्मचारी रोज़ टीवी पर आ कर योगा  सिखाने लगे ............और सुना जाने लगा की देश की बहुत बड़ी बड़ी हस्तियाँ ....टाटा .बिडला और अम्बानी जैसे लोग उनसे सीखने लगे ............तो साहब अपने दिमाग में तो ये बात एकदम पत्थर की लकीर बन गयी की योगा  कर के तो आदमी परधान मनतरी  तक बन जाता है ....टाटा बिडला बन सकता है .......स्वाभाविक सी बात है हम लोगों के दिल में योगा  के लिए अपार श्रद्धा पैदा हो गयी ......फिर एक दिन मेरे पिता जी मुझे बताने लगे की वैसे ये धीरेन्द्र ब्रह्मचारी  है तो बहुत बड़ा चोर  पर योग इसका  एकदम सिद्ध है क्योंकि ये कलकत्ते  में मजमा  लगा के लोगों को दिखाता  था की कैसे  योग से आदमी को एक बाल्टी पानी पिलाते है तो उसका पूरा digestive system साफ़ हो जाता है ...और ये की पहले तो पेट से मल द्वार से गन्दा पानी निकलता है पर बाद में एकदम साफ़ पानी निकलता है .........एकदम इतना साफ़ जैसा नल से निकलता है ...........अब ये सुन के तो योगा  के प्रति हमारी श्रद्धा और बढ़   गयी ........हे भगवान् .....न     जाने कैसी कैसी विलक्षण योगिक क्रियाएं होती होंगी  ....काश हम भी कभी कर पाते  .........ख़ास  तौर पे जब कभी कब्ज हो जाती थी तो पिता जी की वो बात ....पेट साफ़ करने वाली बहुत याद आती थी .........और मैं कोसता  था की देखो  ये धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ...स्साला मर गया ......और इतनी विलक्षण योगिक क्रिया का ज्ञान  भी अपने साथ  ही ले गया .............
                                                            फिर भैया हुआ यूँ की अस्सी के दशक में ही अमेरिका से ये खबर आयी  की भैया ये जो योगा है न ...ये बहुत अच्छी  चीज़ है ....और ये की अमेरिका और यूरोप  में  अंग्रेज  सब  बहुत ज्यादा  पैसा  दे  कर सीखते  हैं और उनको इस से बहुत लाभ हो रहा है ........अब इस से तो योगा की इज्ज़त देश में बहुत जादा  बढ़ गयी  ........की देखो भगवान् कृष्ण योगा  करते थे ......इंदिरा गाँधी करती थी ....टाटा बिडला करते है ...और अब अंग्रेज भी करते हैं तो निश्चित   रूप से योगा बहुत अच्छी चीज़ है ......अब अंग्रेज जिसकी  तारीफ  कर रहा है वो चीज़ कैसे खराब हो सकती  है ....मुफ्त में तो अंग्रेज अपने बाप की भी तारीफ नहीं करता ...........सो अपने गुरु अय्यंगर जी ...और ऐसे  ही न जाने कितने  ( महेश  योगी ,हरभजन  योगी ) जैसे international योगी गुरुओं ने खूब चाँदी काटी .......बड़े बड़े आश्रम बनाए देश विदेश में ........और योगा को खूब popular किया .......पर दिक्कत ये थी की योगा popular तो बहुत था पर लोकप्रिय नहीं हो पा रहा था .........बस ऊंची सोसाइटी की चीज़ बन कर रह गया था ..........हेमा मालिनी ....elizabeth taylor और jane fonda तो योगा करती थी पर अपनी कोसल्या मौसी को इसके बारे में कुछ पता नहीं था ........
                                                            फिर भैया....न जाने कहाँ से ...ये मुआ ....रम देउआ आ गया  ........और इसने  इतनी ऊंची चीज़ को एकदम सड़क छाप बना दिया ..........जिसे भगवान् कृष्ण जैसे लोग करते थे ......उसे अब गाँव में घुरहू कतवारू करने लगे ..........पहले मर्सिडीज़ में बैठ के लोग करते थे ........drawing room में ac चला के करते थे .......अब टूटी चौकी पे फटी हुई दरी बिछा के लोग कर रहे हैं ........और पिछले महीने तो हद ही हो गयी ....यहाँ हरिद्वार में भैया बोले ...चलो आज शंख प्रक्षालन करते हैं ........हमने कहा वो क्या ...अरे कुछ नहीं 2 -2 गिलास पानी पीते जाओ ...ये 6 simple exercise करते जाओ .......15 -20 मिनट में सारा पानी पेट से निकल जाएगा .........पहले एक दो बार गन्दा निकलेगा फिर एकदम साफ़ निकलेगा ..........मुझे वो पिता जी वाली बात याद आ गयी ........और फिर जब मेरा पेट साफ़ हो गया तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई .....ख़ुशी इस बात की तो थी ही  की पेट साफ़ हुआ ...पर इस बात की और ज्यादा थी की वो दुर्लभ विद्या जो मै समझता था की सिर्फ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को आती थी .....मुझे भी आ गयी  थी ...और अब पिछले हफ्ते मैंने अपनी पत्नी को सिखा दी ........
                                                          बाबा राम देव की ये देन है की उन्होंने योगा को, लोगों के drawing room से निकाल के गाँव गिरांव की चट्टी पर योग बना करआम आदमी  तक पहुंचा  दिया ........अब गुरु अय्यंगर जैसे लोग जो अमेरिका और यूरोप के अरबपतियों को सिखा रहे थे .....उनको तकलीफ होना तो स्वाभाविक है .........आपको क्या लगता है ........जिस दिन हिन्दुस्तान के सड़क छाप लोग मर्सिडीज़ चलाने लगे तो क्या ये अरबपति भी उसे चलाएंगे .........अजी नहीं जनाब ....तब ये उसके पास खड़े होने में भी अपनी तौहीन समझेंगे ............याद है न मारुती वाला किस्सा .........
                                                            पिछले 6 हफ्ते में मैंने अपना वज़न 7 -8 किलो कम किया है .....कोई dieting नहीं की ......कोई exercise नहीं की .......सिर्फ प्राणायाम करता हूँ रोज़ सुबह एक घंटा ....उसमे भी ख़ास तौर पे ....कपाल भाती .....बिना रुके आधा घंटा .........अब मुझे किसी  योग गुरु के certificate की ज़रुरत नहीं है की  कपाल भाती फर्जी है या असली .........या बाबा रम देव ठग है या साधू  .........हम तो भैया सुबह सुबह शुरू हो जाते हैं ......कुर्सी पे बैठ के .........फों फों  करने .......अय्यंगर जी कराएं योगा ..........हम तो योग कर रहे हैं ........


Friday, June 24, 2011

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .........

                                                       कुछ साल पहले की बात है ...सुबह सुबह शिव खेडा का interview आ रहा था टीवी पर ......देश में आम चुनाव होने वाले थे और वो चुनाव लड़ने जा रहे थे ......सो interview में वो व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे थे . पूछने वाले ने पूछा की आप अकेले क्या कर लेंगे ......अकेला चना कौन सा भाड़ फोड़ लेगा .....जो जवाब उन्होंने दिया वो आज तक याद है मुझे ....अरे आज तक जिसने भी भाड़ फोड़ा वो अकेला ही था .....गाँधी ......महर्षि दयानंद....राम मोहन रॉय .....बुद्ध ....सब अकेले ही तो चले थे ......जब मैं अपने ब्लॉग का नाम रखने लगा तो यूँ ही मुझे ये बात याद आ गयी और मैंने नाम रख दिया........ अकेला चना ........कल बैठे बैठे एक और किस्सा याद आ गया ..........एक और अकेला चना हुआ है हमारे देश में जिसने ऐसा भाड़ फोड़ा जो सरकार नहीं फोड़ पायी 60 साल में ........
                                                       बिहार के गया जिले में एक गाँव है गहलौर ......उसमे एक आदमी हुआ है ....नाम था दशरथ मांझी .......अब गहलौर गाँव की समस्या ये है की वो एक छोटी सी पहाड़ी से घिरा हुआ है और गाँव वालों को हर काम करने के लिए उसके उस पार जाना पड़ता है .....सबसे नज़दीक क़स्बा लगभग 60 किलोमीटर दूर है ......हुआ यूँ की एक दिन दशरथ मांझी पहाड़ी के उस पार  खेतों में काम कर रहे थे और उनकी पत्नी फागुनी देवी उनके लिए भोजन पानी ले के आ रही थीं .....तभी उनका पाँव फिसल गया और वो घायल हो गयी ........इस एक छोटी सी घटना ने दशरथ मांझी को प्रेरित किया और उन्होंने ठान लिया  की इस पहाड़ी को काट कर के आने जाने लायक रास्ता बनाना है .........एक हथौड़ी ....एक छेनी ...और एक तसला ले कर जुट गया वो आदमी अपने काम में ........शुरू में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ..........घरवाली बोली ये क्या काम फान दिया ....लड़के बोले पागल है .....पर दशरथ  मांझी लगे रहे .......बस लगे रहे ....और दो चार दिन या महीना दो महीना नहीं .........पूरे 22 साल अकेले लगे रहे ........इस बीच गाँव वालों को कौतूहल तो  होता था .....कुछ लोग आते थे कभी कभी देखने ....बाद में कुछ लोगों ने दशरथ को छेनी ..हथौड़ी वगैरह देना शुरू कर दिया ...अपनी तरफ से ....पर पूरे 22 साल वो अकेले लगे रहे ......हाँ एक अच्छी ...आज्ञाकारी पतिव्रता पत्नी का धर्म निर्वहन करते हुए उनकी  पत्नी रोज़ दिन में दो बार उनका खाना पानी ले कर आती थी ....और अंत में 22 साल  बाद उस आदमी का सपना पूरा हुआ जब उसने उस पहाड़ी की छाती चीर के 360 फुट ( 110 मीटर ) लम्बा ,25 फुट  (7 .6 मीटर ) गहरा और 30 फुट ( 9 .1 ) मीटर चौड़ा रास्ता बना डाला ...........एकदम निपट  अकेले ....बिना किसी सहायता के .......बिना किसी प्रोत्साहन के ....और बिना किसी प्रलोभन के .......वो आदमी पूरे 22 साल लगा रहा ........न दिन देखा न रात ....न धूप देखी, न छाँव .......न सर्दी न बरसात ......वहां न कोई पीठ ठोकने वाला था ....न शाबाशी देने वाला ....उलटे गाँव वाले मज़ाक उड़ाते थे ....परिवार के लोग हतोत्साहित करते थे .......22 साल तक वो आदमी अपना काम धाम छोड़ के लगा रहा .....अरे कही किसी के खेत में काम करता तो पेट भरने लायक अनाज या मजदूरी तो पाता .......हम लोग exercise करने जाते हैं तो एक ग्रुप बना लेते हैं ...अकेले मन नहीं करता ...कुछ लोग साथ होते हैं तो अच्छा लगता है .....वो आदमी अकेला लगा रहा ...उस सुनसान बियाबान में .......और एक बात बता दूं ....गर्मियों में उस जगह का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच जाता है .......खैर 22 साल बाद, जब वो सड़क या यूँ कहें रास्ता बन कर तैयार हो गया तो उस इलाके के गाँव वालों को अहसास हुआ अरे ........ये क्या हुआ ......गहलौर से वजीरगंज की दूरी जो पहले 60 किलोमीटर होती थी अब सिर्फ 10 किलोमीटर रह गयी  है ............बच्चों का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब सिर्फ 3 किलोमीटर रह गया है .......पहले अस्पताल पहुँचने में सारा दिन लग जाता था ...उस अस्पताल में अब लोग सिर्फ आधे घंटे में पहुँच जाते हैं ......आज उस रास्ते को उस इलाके के 60 गाँव इस्तेमाल करते हैं ............
                                                  धीरे धीरे लोगों को दशरथ मांझी की इस उपलब्धि का अहसास हुआ ....बात बाहर निकली ........पत्रकारों तक पहुंची .......news papers , magazines में छपने लगा तो सरकार तक भी खबर पहुंची ........नितीश बाबू ने कहा सम्मान करेंगे ......जो सड़क काट के बनायी है उसे PWD से पक्का करवाएंगे जिससे की  ट्रक बस आ सके ..........गहलौर से वजीर गंज तक पक्की सड़क बनवायेंगे ......बिहार सरकार का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया ........भारत सरकार को पद्मभूषण देने के लिए नाम प्रस्तावित किया ...........पर वाह रे मेरे भारत देश ...वाह .......आगे क्या हुआ ?????? सुनिए ........
1 ) वन विभाग बोला की दशरथ मांझी ने गैर कानूनी काम किया है ......हमारी ज़मीन को हमसे पूछे बिना कैसे खोद दिया .........इसलिए उसपे पक्की सड़क नहीं बन सकती .......वन विभाग ने कोर्ट से stay ले लिया है ..........दशरथ मांझी पिछले साल मर गए ........वो रास्ता आज भी वैसा ही है जैसा वो छोड़ कर मरे थे ....गाँव वाले किसी तरह वहां से साइकिल ,मोटर साइकिल वगैरह निकाल लेते हैं ...........
2 ) वजीर गंग से गहलौर वाली सड़क अभी तक अटकी हुई है क्योंकि वन विभाग की ज़मीन पर PWD कैसे सड़क बना देगी ??????
3 ) भारत सरकार के बड़े बाबुओं ने पद्म भूषण ठुकरा दिया .....ये कह  के की पहले जांच कराओ की क्या वाकई  एक आदमी ने ही अकेले इतना बड़ा पहाड़ खोद दिया ......कैसे खोद सकता है ....ज़रूर अन्य लोगों ने मदद की होगी .........prove करो की अकेले ही खोदा है .........
                                              इस पूरी कहानी का सबसे दर्दनाक पहलू ये रहा की 22 साल की इस लम्बी घनघोर तपस्या में सिर्फ एक आदमी ......जो दशरथ मांझी के साथ खड़ा रहा .........उनकी पत्नी फागुनी देवी ....वो उस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं रही जब वो सपना पूरा  हुआ ...........रास्ता बन कर तैयार होने से लगभग दो साल पहले वो बीमार हुई और सारा दिन लग गया उन्हें अस्पताल पहुंचाने में ......और रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी ........
.वो पहाड़ जो दशरथ मांझी ने खोद डाला ....अकेले ......


दशरथ मांझी

                                              बुंदेलखंड के जो किसान आत्महत्या कर रहे हैं उनके लिए सन्देश देना चाहता हूँ ....वहां ज्यादातर 60 - 70 फुट पे अच्छा ख़ासा पानी मिल जाता है .........मैंने वहां एक आदमी को अकेले एक कुआँ खोदते देखा है .....उसके जवान लड़के उसे गरियाते थे की बुढवा पागल है और बुढवा रोज़ सुबह गैंती फावड़ा ले कर पहुँच जाता था खेत पे .....और अकेले ही 3 -4 साल में उसने एक विशालकाय कुआँ खोद दिया था ........उस अकेले कुए से उसका परिवार 10 -12 acre की शानदार खेती करता था ......हमारे गाँव के बगल में ही एक विशाल  तालाब है जिसे एक अकेले साधू ने 17 साल में खोदा था ........महाराष्ट्र के लातूर जिले में एक अकेले व्यक्ति ने भी लगातार 17 सालों तक अपने खेत में खुदाई की ........उसके पहले दो कुँए fail हो गए और उनमे पानी नहीं निकला पर उसने हार नहीं मानी और लगा रहा और अंत में तीसरे कुए में से धरती की छाती फोड़ के पानी निकाल ही लिया ....अपनी एक फिल्म में मशहूर फिल्म निर्देशिका सईं परांजपे ने इस घटना का ज़िक्र  किया है ................किस गुमनाम शायर ने लिखा है .........कौन कहता है की आसमान में छेद हो नहीं सकता ........एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों ........ये लेख हिन्दोस्तान के उन किसानों को .......और उन students को......... समर्पित है.......... जिन्होंने हार मान के ख़ुदकुशी कर ली ........