Tuesday, September 27, 2011

जा मिल आ ........ज्यादा टाइम मत लगाना

                                                 आजकल यहाँ पंजाब में रहता हूँ ....जालंधर में  .......जहाँ मेरी बीवी का मायका है यानी ससुराल है मेरी ........इस नए शहर में रहते हैं हम लोग .....मेरे  लिए नया है ....मेरी बीवी तो यहीं जन्मी पली है ......वहां उस घर से 3 -4  किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं हम लोग ......और उस घर में अकेला पड़ा रहता है उसका बाप ....यानी मेरा ससुर ........अब तो उम्र दराज़ हो गया है .......अच्छा ख़ासा आदमी था कभी ........भरा पूरा परिवार था .....बीवी थी ...बच्चे थे ......फिर चले गए सब ...अच्छे चरागाहों की तालाश में ....फलने फूलने के लिए ........जैसे चले जाते हैं सभी के बच्चे ........हम भी तो चले आये हैं ...अपने माँ बाप से दूर ........मेरी बीवी की माँ  ...यानी मेरी सास ....बिस्तर पे पड़ी बोलती रहती थी सारा दिन ......परेशान रखती थे उस बेचारे बूढ़े को .........सेवा भी करवाती थी और लडती भी थी ....फिर एक दिन वो चली गयी ......बच्चे आये और फूंक ताप के चलते बने ........और चंद हफ़्तों में वो बूढा ...जो कल तक भागता फिरता था ........बिस्तर पे पड़ गया ........छोटी बेटी है , जो अभी कुंवारी है वही सेवा करती है ..........पिछले  कुछ महीनों में उस आदमी को कंकाल बनते देखा है मैंने .....अच्छा ख़ासा आदमी देखते देखते गठरी बन गया ........
                                              उसी शहर में रहते है हम दोनों ....मैं और मेरी बीवी ........बहुत व्यस्त रहती है वो ..........अक्सर उस घर के सामने से निकल जाते हैं हम लोग .....जल्दी में .......पर कई बार वहां से निकलते हुए ....चुपके से लेट जाता हूँ ....उस बूढ़े के बगल में ...और चुपचाप देखता रहता हूँ अपनी बेटी को ......जो अक्सर निकल जाती है मेरे सामने वाली सड़क से .....जल्दी में .....मुझसे मिले बिना ........वही जो बचपन में रोने लगती थी अगर मैं दो मिनट के लिए आँखों से दूर हो जाता था ...........पर अब बड़ी हो गयी है .........बहुत busy  रहती है बेचारी
                                                    आजकल उधर  से जब भी निकलते हैं हम लोग ............अनायास ही ब्रेक लग जाते हैं मेरी गाडी के .........घूम जाता है handle  ......ओफ़्फ़  ओह्ह  .....चलो भी ....लेट हो रहे हैं ...शाम को आयेंगे .......जा मिल आ .....ज्यादा टाइम मत लगाना ....एक मिनट ही सही ...पर जा मिल आ .......कई बार मैं साथ चला जाता हूँ .....और कई बार बाहर ही खडा रहता हूँ .......फिर दो मिनट बाद होर्न बजा के इशारा करता हूँ ........चल देर हो रही है ..........पर यकीन मानिए उस दो मिनट की मुलाक़ात से ही ..........जब वो आती है .............बड़ा सुकून मिलता है ..........और दिन बहुत अच्छा बीत जाता है ......बड़ी आसानी से बीत जाता है .........

Monday, September 26, 2011

इस चाँद को धरती पे उतरने तो दो ........

                                               मेरी बेटी  .....आज से कोई 18  साल पहले .....जब पैदा हुई , तो सच कहूं , बड़ी निराशा हुई थी मुझे .....एक क्षण के लिए ...पर फिर मैं जल्दी ही इस सदमे से उबार गया .....निराशा इस लिए नहीं कि  बेटी हुई ...बल्कि निराशा इसलिए हुई कि बेटा न हुआ .......दरअसल चक्कर ये है की हम ठहरे खानदानी पहलवान ........सो जब पहले पहल बेटा हुआ तो हम सब लोग ,यानी कि पूरा खानदान बहुत खुश हुए .....इसलिए नहीं कि बेटा हुआ ......बल्कि इसलिए की घर में नया पहलवान पैदा हुआ ........अब बात ये है कि जो असली पहलवान होता है उसका सोचने का दायरा बहुत सीमित होता है और बड़ा सपाट होता है .....सो जब मैंने शादी करने के लिए लड़की भी पसंद की तो उसमे भी deciding  factor  ये नहीं था कि वो बहुत सुन्दर है या बड़ी पढ़ी लिखी है या और बहुत कुछ ........बल्कि वहां भी कमबख्त सबसे पहले यही ख्याल आया कि इसके लड़के बहुत तगड़े होंगे ....और फिर भैया जब पहली संतान लड़का हुई तो हमने तो उसी दिन declare  कर दिया कि लो भाई .......घर में हिंद केसरी पैदा हो गया ........और फिर चंद महीने बाद श्रीमतीजी ने फिर घोषणा कर दी कि वो एक बार फिर उम्मीद से हैं .........इतनी जल्दी एक और बच्चा .......कमबख्त परिवार नियोजन वाले चिल्ला चिल्ला के मर गए कि पांच साल का रेस्ट दो , पर हम जैसे गंवार अनपढ़ ....इन्हें कोई सुधार सकता है ?????  तो जब इस खबर का सदमा कुछ कम हुआ तो मैंने calculator  से हिसाब लगाया कि छोटा लड़का बड़े से कोई डेढ़ साल छोटा होगा .....और दिल को तसल्ली दी कि चलो दोनों पहलवान साथ साथ पहलवानी कर लेंगे ........चूंकि पहलवान को एक पार्टनर भी चाहिए होता है ........प्रक्टिस करने के लिए ........तो फिर भैया बड़ी बेसब्री से इंतज़ार होने लगा छोटे पहलवान का ...और जब वक़्त आया ,तो धोखा हो गया .....कमबख्त लड़की हो गयी .........मुझे तो एक बार यूँ लगा मानो मेरी बीवी ने मुझे धोखा दिया है .........कहाँ तो सोच रहे थे की पहलवान पैदा होगा .........और पैदा कर दी ये लड़की ......वो भी मरियल सी  ...एकदम चूहे जैसी.........खैर अब कर क्या सकते थे .......घर आये ...वहां माहौल एकदम सामान्य था .....
                                             जब पहला बेटा हुआ था तो मेरी माँ ने उसे जनमते ही थाम लिया था ........तब से ले कर आज तक उसी की गोद में पला ............जब 6 -7  साल का हुआ तो एक दिन उसे किसी ने ये बताया की ये तो तेरी दादी है जिसे तू मम्मी कहता है ...और वो जो मोनिका है न वो तेरी माँ है .......उस बेचारे को तो सदमा हो गया कि लो ......मेरी तो माँ ही बदल गयी ..........पर जब बेटी पैदा हुई तो दादी के मन में उसके लिए वो ममता जागृत न हुई जो बेटे के लिए हुई थी ........बेटी जो बेचारी मरियल सी हुई थी ( दो महीने premature  थी जिसका हमें पता ही न था ) किसी तरह पल रही थी घर में ........फिर दो महीने बाद जब वो थोड़ी ठीक ठाक हुई ....गोद में उठाने लायक ........तो न जाने कैसे मेरी गोद में आ गयी ......और वो दिन और आज का दिन ...आज तक मेरी गोद में है ........मेरी गोद में वो दिन रात बढ़ने लगी ...पनपने लगी .....तंदरुस्त होने लगी ....और न जाने कब वो मेरा एक हिस्सा बन गयी .......या मैं उसका एक हिस्सा बन गया .........दुनिया जहान का सुख उसे मेरी गोद में मिलता था और वही दुनिया जहान का सुख मुझे उसे गोद में उठा के मिलता था .........धीरे धीरे वो मेरे जीवन की सबसे कीमती सबसे प्यारी चीज़ बन गयी ........
                                           फिर हमारे परिवार में जो professional  sports  की जो परंपरा थी उसमे वो भी शामिल हो गयी ......दोनों बेटे ( कुछ साल बाद एक और बेटा हो गया था ) पहलवानी करने लगे ...और बेटी boxing  करने लगी ..........इस गेम का चुनाव खुद उसने किया जिसमे थोड़ी बहुत मदद मैंने भी की .........पिछले 4  साल से वो रोजाना 32  किलोमीटर साइकिल चला के ट्रेनिंग करने जाती है .वहां 5 घंटे तक जी तोड़ मेहनत करती है ....दो बार national  level पे गोल्ड मेडल जीत चुकी है .........आज मैं अभी उस से मिल के लौटा हूँ ........पटियाला से , जहाँ वो boxing की national championship  में पंजाब का प्रतिनिधित्व कर रही है ........आज वहां पटियाला में ......बेटियों का उत्सव चल रहा था .......देश भर की बेटियाँ ....दूर दराज़ के राज्यों से ...न जाने कहाँ कहाँ से ...आयी  हुई हैं .......एक से एक खूबसूरत ......फूल सी कोमल ....पर इस्पात सी मज़बूत .....एक से एक तगड़ी ......मज़बूत .....हंसती ....खिलखिलाती ......उत्साह से भरी हुई ........कुछ कर गुजरने पे उतारू ......बोक्सिंग जैसे खेल में ....जिसे कल तक मर्दों का खेल कहा जाता था ........वहां उस बोक्सिंग रिंग में .....उनका शौर्य देखते ही बनता था ........इतना आत्मविश्वास ........अंतिम क्षण तक उनका संघर्ष , जीतने की ललक ,  और हार कर भी मुस्कुराते हुए अपने प्रतिद्वंदी को गले लगाती ......आज मुझे गर्व हुआ अपनी बेटी पे ....हे इश्वर .....अगर मेरी बेटी न हुई होती तो अधूरा रह जाता मेरा जीवन .......
                                 न जाने कैसे लोग मार देते हैं ,बेटियों को ..........अरे उन्हें एक मौका तो दो जन्म लेने का ..... उन्हें मौका तो दो कुछ कर गुजरने का .......कितना सुख देती हैं बेटियां .........बेटों से कहाँ कम हैं बेटियाँ .........चाँद को छू लेने की कूबत है उनमे .....इस चाँद को धरती पे उतरने तो दो  ........








Sunday, September 25, 2011

अजी जनाब ....गरीब अब सचमुच गरीब नहीं रहा

                                         पिछले कुछ दिनों से बवाल मचा है मीडिया में ........जी हाँ हमारे देश में जो भी बवाल होता है मीडिया में ही होता है ..........चिहाड़ मची है .........लोग चिंता में मरे जा रहे हैं ........पता नहीं किस ने कहाँ लिख दिया की  ३२ रु खर्च करते हो तो गरीब नहीं माने जाओगे ....अब लोग गरिया रहे हैं सरकार को और योजना आयोग को ...और न जाने किसे किसे .......चर्चा परिचर्चा ....वाद विवाद .......आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं .......भाई लोग कह रहे हैं की  सरकार संवेदन हीन है .....गरीबों का मज़ाक उड़ा रही है ........योजना आयोग में बैठे लोगों को क्या पता की गरीबी किसे कहते हैं .......और न जाने क्या क्या .....और हमारे जैसे लोग चिप्स और कुरकुरे के साथ चाय की चुस्कियां लेते ये सब देख रहे हैं ........बात भी सही है की वो लोग क्या जानें की गरीबी क्या होती है ........पर एक दिक्कत है छोटी सी ....जानते तो हम आप भी नहीं की गरीबी क्या होती है ..........
हुआ यूँ की NDA  की सरकार में जार्ज  फर्नान्डीज़ साहब रक्षा मंत्री थे . रक्षा मंत्रालय में सियाचीन में सेना के लिए स्नो स्कूटर खरीदने का प्रस्ताव सालों से अटका पड़ा था ..........आर्मी चीफ ने एक मीटिंग में जब जोर्ज साहब से ये चर्चा की तो उन्होंने तुरंत वो फाइल मंगवाई .........तो ये पाया गया की उसपे सेक्रेटरी लेवल के दो अधिकारियों ने ये नोट लगा रखा था की पहले ये पता लगाया जाए की ऐसे स्नो स्कूटरों की ज़रुरत है भी या यूँ ही मंगवाए जा रहे हैं ....सो जोर्ज साहब ने उन दोनों अफसरों को बुलवा के बात की ...सारी बात सुन के बोले ....आप लोग एकदम ठीक सोचते हैं ........बिलकुल देखा जाना चाहिए की वाकई ऐसे स्नो स्कूटरों की ज़रुरत है भी या नहीं ...........सो आप दोनों बोरिया बिस्तर  बांधिए .........वहां सियाचीन में जा कर तीन महीना रहिये ........फिर बताइये की ज़रुरत है या नहीं ..........और वो दोनों लाख रोये पीटे ....चीखे चिल्लाये ...पर जोर्ज साहब नहीं माने ...अंत में उन दोनों अफसरों को वहां जा के एक महीना रहना ही पड़ा .........और सिर्फ चंद हफ़्तों बाद ही स्नो स्कूटर आ गए .........सो अपनी भी एक सलाह है ,  बिन मांगी .........योजना आयोग को और सभी मीडिया वालों को .........३२ रु रोज़ मिलेंगे .........जाओ साल दो साल जियो अपने परिवार के साथ किसा गाँव या झोपड़ पट्टी में ....गरीबी और महंगाई को महसूस करो ........first hand experience  .........गरीबी का ....उस तरह नहीं जैसे हमारे युवराज जाते हैं पूरे तामझाम के साथ ....किसी झोपडी में खाना खाते हैं ....रात सोते हैं ......फोटो खिचाते हैं ...और अगले दिन फ्रंट पेज पे छा जाते हैं ..........चलो हो गया गरीबी से साक्षात्कार ........ये तो हुआ सिक्के का एक पहलू .आइये अब ज़रा दूसरा पहलू देखते हैं .
                                    मेरे पिता जी वहां UP में अपने गाँव में रहते हैं ........पढ़े लिखे प्रबुद्ध आदमी हैं .....जब भी ऐसी किसी चर्चा में गरीबी या गरीबों का ज़िक्र आता है तो अपनी फुल फॉर्म में आ जाते हैं और इन तथाकथित गरीबों को खूब बहिन मतारी गरियाते हैं ...........शुरू में तो मैं इसे उनकी सामंतवादी सोच से उपजी प्रतिक्रिया मानता था ........पर बीस साल वहां गाँव में रह कर मैंने भी इन तथाकथित गरीबों की गरीबी को बड़े नज़दीक से देखा ...महसूस किया ......और आज मेरा भी मन कर रहा है की मैं भी शुरू हो जाऊं ....अपने बाप की तरह ...गरियाने ....पर क्या करूँ ,  एक ब्लॉग राइटर होने के नाते कुछ सभ्यता का तकाजा है .....( हालांकि फिल्म delhi  belly  देख के कुछ कोशिश इधर मैंने भी की है ).....खैर छोडिये .......भाव समझ जाइए .....एक किस्सा बयां कर रहा हूँ ............उन दिनों जब हम वहां स्कूल चलाया करते थे तो बगल के गाँव से कुछ बच्चे आते थे ......दो ढाई किलोमीटर की दूरी रही होगी ......सो हमने सोचा की एक रिक्शा लगा देते हैं .......सौ रुपया प्रति बच्चा देने को तैयार थे मां बाप .......कोई एक आदमी ले आएगा ....काम ही क्या है ......एक घंटा सुबह एक घंटा दोपहर .......बाकी सारा दिन अपना काम करे ,जो वो पहले करता है ........और 1200  रु ......उन दिनों बड़ी रकम थी ये ,1990  में ......हम तो समझते थे की लाइन लग जायेगी लोगों की ...पर भैया ....कोई गरीब नहीं आया वो 1200  रु कमाने ....खैर किसी तरह हमने ढूँढा एक गरीब ........पर वो कमबख्त ...हर दूसरे दिन छुट्टी करता था ......हज़ार मुसीबतें थीं नन्ही सी जान पे .......अजी साहब इतनी सुबह .....8  बजे मेरा खाना ही नहीं बन पाता ......कैसे मैं गरीब आदमी भूखे पेट रिक्शा खींचूंगा .....तो फिर भैया ...बाकायदे मीटिंग बुलाई गयी उन 12  परेंट्स की ...उसमे ये समस्या discuss  हुई और ये निर्णय हुआ की हर रोज़ एक बच्चा उसका भोजन ले के आएगा अपने घर से ....तो फिर साहब रोज़ान परांठा सब्जी आने लगा उसके लिए ........ पर वो नालायक कुछ हफ़्तों बाद भाग गया .......मुझे याद है ,सालों हम उन रिक्शों को किसी तरह चलवाने की नाकाम कोशिश करते रहे........फिर किसी तरह कुछ दिन चले भी ....उसी गाँव के कुछ लोग जो रिक्शा चलाते थे उन्हें नए रिक्शे खरीद कर दिए भी ....उनके बच्चों को फ्री में कई साल पढ़ाया भी ....उनके जीवन में एक मौका था की उनके बच्चे भी एक अच्छे  इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ लें ......पर अंत में वही ढाक के तीन पात .....वो सब आज भी गरीब हैं और उनके बच्चे आज भी अनपढ़ .....और आज भी किसी स्कूल में कोई आदमी नहीं मिलता वो रिक्शा चलाने के लिए ....३६०० रु में ...कहने को बेचारे गरीब भूखे मर रहे हैं .......सारा दिन बैठ के ताश खेलते हैं ....बेचारे भूखे पेट .....सो राजमाता सोनिया गांधी जी से बेचारों की गरीबी और भूख देखी न गयी और उन्होंने अपने अर्थशास्त्री  परधान मंत्री से कहा की इन बेचारों के लिए कुछ करो .और उन्होंने अपने मोंटेक भैया के साथ मिल के ये नरेगा और मनरेगा दो बहने पैदा की ....... इसमें ये प्रावधान रखा की हर गाँव का हर गरीब साल में 100  दिन चार खांची माटी ढोयेगा तो हम उसे 120  रूपया रोज़ देंगे ....लो भैया हो गयी गरीबी दूर ....हो गया देश का कल्याण .....एक एक गाँव में दो दो सौ आदमी 100  दिन माटी खोदेंगे ......यानी एक साल में २० हज़ार दिहाड़ी ......सो भैया खुद रही है माटी अपने देश में पिछले कई साल से .....कहाँ खुद रही है ....कौन ढो रहा है ..कहाँ डाल रहा है ....कोई पता नहीं ...और कोई पूछने वाला नहीं ........खूब चांदी कट रही है .....सुनते हैं 40  -50  हज़ार करोड़ का बजट है नरेगा मनरेगा का ......अब कहाँ से आएगा इतना पैसा ...सो योजना आयोग ने नया फंडा निकाल दिया है ...गरीब की परिभाषा ही बदल दो सो गरीब कम हो जायेंगे .....तो गरीब को दी जाने वाली subsidy  भी कम हो जाएगी .......जो पैसा बचेगा उसी से नरेगा मनरेगा का पेट भरेगा ....क्योंकि ये दोनों तो बेचारे गरीब के लिए हैं ........
पर कमबख्त कोढ़ में नयी खाज हो गयी है .......पिछले दिनों घर गया तो पिता जी गरीबों को गरिया रहे थे ....मैंने पूछा अब क्या हो गया ........पता लगा की पशुपालन और खेतीबाड़ी सब बंद होने की कगार पर हैं ...वो भला क्यों .........सधुआ का परिवार मोटा गया है  ( साधू मुसहर पिछले 10  -15  साल से हमारे यहाँ खेती बाड़ी करते रहे हैं ........जिसके बदले उन्हें 1500  रु महीना ....एक किलो दूध रोजाना .......सारी फसल का एक चौथाई अनाज और खेत से सब्जी और पपीता ,अमरुद केले जैसे फल चाहे जितने........ मिलते रहे हैं ) पर जब से ये नरेगा शुरू हुई है ,  उन्होंने इसमें रूचि लेनी बंद कर दी है .......सो ठकुरायिनें तो पाँव में अलता और हाथ में मेहदी लगाती हैं सो अपने खेत में जा नहीं सकती .....ठाकुर साहब पगड़ी सम्हालें या फरसा चलायें ....और साधू अब मनरेगा खट रहे हैं .........उनके परिवार में 6 जॉब कार्ड हैं ....... 8000  रु हर महिना मिलता है उन्हें नरेगा से ........सो अब न वो खेती करते हैं...न गाय पालते हैं ........लम्बी चादर तान के सो रहे हैं ..........हम यहाँ बौराए  टीवी पे गरमा गरम बहस देख रहे हैं और लेख लिख रहे हैं ..........
अजी जनाब ....गरीब अब सचमुच गरीब नहीं रहा







Saturday, September 24, 2011

चलते रहो .......चींटियों की तरह

कल रात हम दोनों बाप बेटे सोने की तैयारी कर रहे थे,बिस्तर पर लेटे  ......नींद आने का इंतज़ार कर रहे थे ...सामने दीवार पे चींटियों की कतार .....अपने काम में लगी थी ........कुछ जा रही थीं ,कुछ आ रही थीं .........हम दोनों बस यूँ ही उन्हें लेटे लेटे देखते रहे ,बहुत देर तक ........क्या जीव बनाया है इश्वर ने ......बचपन में एक दंतकथा पढ़ी थी उनके बारे में ........यूँ की एक बार ईश्वर भी बड़ी देर से यूँ ही देख रहा था इन चींटियों को यूँ ही  काम करते और फिर वो इतना इम्प्रेस हो गया इनकी मेहनत को देख के कि उसने इन्हें ये आशीर्वाद दे डाला कि बेटा तुम लोग इतनी मेहनती हो कि अपने इसी गुण के कारण एक दिन इस धरती पर तुम्हारा राज हो जाएगा .........और चींटियों ने  इस बात पे विश्वास भी कर लिया और दूने उत्साह से सारी चींटियाँ अपने अपने काम में लग गयीं ...वो दिन और आज का दिन , धरती की सारी चींटियाँ सारा दिन काम में लगी रहती हैं ....भागी फिरती हैं ........और आज भी हर चींटी , सामने से आती हर चींटी से रुक कर पूछती है ........क्यों हमारा राज हुआ धरती पे ????????  तो सामने वाली कहती है .....बस बस होने ही वाला है .....और इतना सुन के फिर वो आगे बढ़ जाती हैं .....उसी उत्साह से .....जुट जाती हैं अपने काम में .....क्योंकि वो जानती हैं कि उनका राज  बस होने ही वाला है पूरी धरती पे ...........बड़ी छोटी सी , बड़ी simple सी कहानी है .....पर कितनी बड़ी फिलोसोफी छिपी है इसके पीछे ........
                                    बच्चे मेहनत कर रहे हैं दिन रात ........सुबह 5  बजे उठ जाते हैं ....फिर हाड तोड़ मेहनत करते हैं ground  में .......अपना खून जलाते हैं ......पसीना बहाते हैं ....रोज़ चोटें लगती हैं .......पिछले दिनों मेरे बेटे की गर्दन पे एक प्रतिद्वंदी पहलवान ने 20  मिनट तक घुटना रख के रगडा ......गर्दन छिल गयी ......पर अगले दिन वो फिर 5 बजे ground  में था .........दुखते शरीर के सारे कष्ट भुला के ......लक्ष्य प्रप्ति हेतु ....अनवरत संघर्ष करते हुए ........सारी धरती पर राज यूँ ही नहीं हो जाया करता ....स्वयं पर और अपने लक्ष्य  पर अटूट भरोसा कर के ....चींटियों की तरह दिन रात लगे रहना पड़ता है ..........बरसों तक ......फिर एक दिन सारी धरती पे राज हो जाता है तुम्हारा .......
उत्तिष्ठत जाग्रत
प्राप्य वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्ययादुर्गं
पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥ कठोपनिषद 
Arise, awake, and learn by approaching the exalted ones,for that path is sharp as a razor’s edge, impassable,and hard to go by, say the wise.
जागो , उठो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो .......विद्वत जन ने कहा है की ज्ञान प्राप्ति  का मार्ग अत्यंत कठिन हैं .....तेज़ किये हुए उस्तरे पे चलने के समान........फिर भी चलते  रहो .......चींटियों की तरह







Thursday, September 22, 2011

myself राजिंदर परसाद .....टिर्पुल MA

पुरानी बात है ...उन दिनों हम अपने गाँव में स्कूल चलाये करते थे ......सो एक दिन एक श्रीमान जी मिलने आये .......जवान लड़का सा था .......यही कोई 27  -28  साल का .......
सर माइसेल्फ़ राजेंदर परसाद ....टिर्पुल MA ....... 
 हाँ कहिये राजेंद्र जी ......कैसे आना हुआ 
सर आपके स्कूल में पढ़ाना चाहता हूँ ........
अच्छा ....क्या सब्जेक्ट पढ़ाना चाहेंगे  ......  
सर हम टिर्पुल MA  किया हूँ .... इंग्लिश ,इकोनोमिक्स और राजनीति शास्त्र से .....कुछ भी पढ़ा सकता हूँ....
मैंने अपनी दाई को आवाज़ लगाई .....माधुरी ज़रा second  ,  third  ,  fourth  , क्लास की इंग्लिश  की बुक ले कर आना ....माधुरी ले आयी ....भाई राजेंद्र जी बहुत देर तक उन किताबों  को पलटते रहे   ......फिर हिम्मत  जुटा  कर बोले  ....सर तैयारी  कर के  सेकंड को पढ़ा लूँगा .........मैंने उन्हें शाबाशी दी ....उत्साहवर्धन किया .....और तैयारी कर के आने के लिए बोला ........फिर कई साल उनके दर्शन नहीं हुए ......एक दिन हम दोनों मियां बीवी कहीं जा रहे थे ...तो राजेंद्र प्रसाद जी मिल गए ......उन्होंने हमें आवाज़ दे के रोका ....बड़ी गर्मजोशी से मिले ....मैंने उनसे कहा ....यार आप आये ही नहीं उसके बाद ...सो उन्होंने बड़े गर्व से बताया की उनका तो appointment एक दूसरे बड़े स्कूल में हो गया था ........उस स्कूल की तारीफ़ ये थी की हमारे इलाके के एक यादव जी किसी ज़माने में अमेरिका जा के किसी university  में प्रोफेसर हो गए थे  ...सो जब वो मरे तो कुछ लाख dollar अपनी वसीयत में यूँ छोड़ गए की मेरे गाँव में ,मेरी पुश्तैनी ज़मीन पर मेरा भतीजा स्कूल खोलेगा ......सो भतीजे ने आनन् फानन में करोड़ों रु लगा कर बिल्डिंग बनायी और CBSE का affiliation  भी ले लिया ......सो उसी स्कूल में राजिंदर परसाद जी इंग्लिश के teacher  हो गए थे और senior  classes  को इंग्लिश पढ़ाते थे ...हम दोनों ने उनको शुभकामनाएं दी .....और उस स्कूल के बच्चों के लिए मन ही मन दुआ की और अपने रास्ते हो लिए .......
                                पिछले दिनों फिर गाँव जाना हुआ तो इत्तेफाकन राजिंदर परसाद जी फिर मिल गए ....इस बार भी तपाक से मिले ....उसी पुरानी गर्म जोशी से .......हाल चाल हुआ ......बताने लगे की आजकल टिशनी पढ़ाते है .......पर आप तो पहले तुलसी कॉन्वेंट में पढ़ाते थे न ?????? अरे सर क्या बताएं ...स्कूलवा तो बंद हो गया ....वो काहें भैया  ?????? अरे सब लड्कवे ही फेल हो जाते थे .....खैर साहब हमने दिल से अफ़सोस जाहिर किया पूरे घटनाक्रम पर ....राजेंद्र जी को शुभकामनाएं दी और आगे  बढ़ गए ........
                                 खैर ये तो पुरानी बात हो गयी ...आजकल यहाँ पंजाब में रहते हैं ........धर्म पत्नी एक अच्छे खासे स्कूल की प्रिंसिपल हैं ....... एक education consultant  होने के नाते मेरा भी आना जाना बड़े बड़े स्कूल कालेजों में लगा रहता है .......य्यय्य्य्ये  बड़े बड़े संस्थान हैं ......करोड़ों की पूँजी लगा रखी है ......5 star होटलों  जैसी बिल्डिंग हैं .......साज सज्जा है ......पूरा ताम झाम है ......मैडम जी लोग फर्राटे से अंग्रेजी बोलती हैं .........बच्चे टाई लगा के स्कूल आते हैं .........ऊपर से सब कुछ बहुत अच्छा लगता है ........पर जब मैनेजमेंट से बात होती है तो बेचारे रो देते हैं ....अरे साहब क्या बताएं ......स्टाफ की बड़ी दिक्कत है .....क्यों क्या हुआ ?????? अजी अच्छा स्टाफ ही नहीं मिलता ........किसी तरह काम चला रहे हैं .....ये तमाम लोग ....अरे किसी काम के नहीं .......ज़्यादातर लोग मजबूरी में टीचर बनते हैं ..........पढने पढ़ाने में कोई रूचि नहीं होती उनकी ..........मैंने पूछा ,  देते क्या हो ?????? यही 5000  ,7000  या दस हज़ार .........आप ये चाहते हैं की 5 -10  हज़ार में एकदम टॉप क्लास आदमी आपके यहाँ पढ़ायेगा  ?????? अजी साहब जिसे तीस हज़ार दे रहे हैं वो कौन सा आसमान से तारे तोड़ के ला देता है ........
                                                जब स्टाफ से बात करो तो कुछ और ही स्टोरी सुनने को मिलती है ....अजी ये लोग लोग खून चूस लेते हैं दस हज़ार दे के .......हमेशा टेंशन बना के रखते हैं माहौल में .......एकदम slave  जैसा महसूस करती हूँ मैं यहाँ पर .......मुझे तो लगता है मेरी तो जिंदगी ही बीत जायेगी कापियां चेक करते ...........अब ऐसे माहौल में आप उस बेचारी teacher  की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने के अलावा कर ही क्या सकते हैं ..........
                                               पिछले दिनों यहाँ पतंजलि योगपीठ में एक नया लड़का आ गया और उसे मेरा रूम मेट बना दिया गया ....वो पूना के एक बहुत बड़े , नामी गिरामी प्राइवेट कॉलेज से MBA की पढ़ाई पढ़ के आया है ......... नई पीढ़ी  के इन पढ़े लिखे technocrats से काफी कुछ सीखने  को मिलता है  , सो मैं उस से घंटों बतियाता रहता था ..........और वो भी मुझे ज्ञान देता रहता  था .....एक दिन वो फट पड़ा .........17  लाख लगा के MBA किया है .........आज मुझे कोई 1700  की नौकरी नहीं दे रहा है .....जबकि मेरा बाप समझता है की मेरे बेटे का तो annual  package  17 लाख का होगा ......इस पूरे किस्से में मुझे फिर राजेंद्र प्रसाद टिर्पुल MA  की याद आ जाती है ....बनारस की काशी विद्या पीठ university  से तीन बार MA करने में भी उसके 1700  रु खर्च न हुए होंगे ........और वो कम से कम अपने गाँव में  tutions  तो पढ़ा लेता है .....ये बेचारा तो MBA का ठप्पा लगवा के वो भी नहीं कर पा रहा ......
बाकी  शिक्षा की दूकान ....या यूँ कहें शो रूम ,  ठीक ठाक चल रहा है











Saturday, September 17, 2011

सब भगवान् भरोसे है .......

कमबख्त नन्ही सी जान पे इतनी मुसीबतें .......कल जब लिखने बैठा था तो सोच के तो कुछ और चला था ....शुरू भी किया ,पर आधे रास्ते में जा के हवा निकल गयी ....बड़ी सफाई से बात बदल दी .....फिर मन में सोचा ....क्यों बेटा डर गए .......फिर हिम्मत जुटाई और सुबह से ही पिल पड़े ....लिख भी डाला .....पर ना जाने कैसे सब उड़ गया .........बड़ा दुःख हुआ ....सोचा, छोडो .....अल्लाह मियां की मर्ज़ी नहीं है की लोग इसे पढ़ें ........पर मन नहीं माना सो फिर लिखने बैठ गया हूँ .....सोच लिया है लिखूंगा ज़रूर ...........तो कल की पोस्ट में लिखा था कि है कोई माई का लाल जो रोक ले आतंकवाद ......कोई मिटा सकता है इसे जड़ से ?????? दरअसल किसी चीज़ को जड़ से मिटाने के लिए जड़ पर प्रहार करना पड़ता है .........सो पहले इस्लामिक आतंकवाद की जड़ ढूंढो ........पर यही तो समस्या है ....जो चीज़ सामने पड़ी है ....उसे क्या ढूँढें ? हमारे सामने पूरा पेड़ खड़ा है ....ये मोटा तना है उसका .....ये मोटी मोटी डालियाँ हैं ..........खूब फल फूल रहा है .......अब उसे ख़तम करना है ....और हम लोग हैं की पत्ते छांट रहे हैं .....हो चुका ख़तम .......पवित्र किताब है ......मैंने पढ़ी है ....बीसों बार ....और ऐसे नहीं जैसे मदरसे में लड़के पढ़ते हैं ....हिल हिल के ....अरबी में .......हिंदी edition पढ़ा है ....एक एक शब्द ...एक एक अक्षर पढ़ा है .......एक एक आयत को समझा है .......जो समझ आयी उसे जानकारों से समझा .....मुल्ला मौलवियों से पूछा .......सो जो समझ आया वो ये की भैया .........सब लोग ईमान ले आओ .......यानी मुसलमान बन जाओ ......फिर बाकी सबको बनाओ ......प्यार से समझाओ .....डराओ धमकाओ .......मार पीट के बनाओ ......फिर भी माने तो काट दो .......तुम्हारा जन्म ये परिवार पालने ,काम धंधा ,बिजनेस करने के लिए नहीं हुआ है ......ये तुम्हारा असली जीवन नहीं .....इस जीवन में तो तुम्हे धर्म ( दीन ) की सेवा करनी है .....जिहाद करना है, काफिरों को या तो मुसलमान बनाना है या फिर उनसे लड़ते हुए , मरते मारते शहीद हो जाना है .....इस तरह तुम जन्नत में जाओगे ..........वहां मीठे पानी की नहरें बह रही हैं ....सब सुख सुविधायें हैं ....तुम्हारी सेवा के लिए हूर परियां इंतज़ार कर रही हैं .....ये है फलसफा .
अब साहब ऐसे 400 करोड़ लोग हैं धरती पे जो ईमान नहीं रखते ......ये सारे इसाई ,यहूदी ,हिन्दू , सिख ,बौद्ध ,जैन और सारे अन्य धर्मावलम्बी ....ये सब काफिर हैं ....इन सबको मुसलमान बनाना है ....नन्ही सी जान और इतना बड़ा काम ..........ऊपर से बेचारे मुसलमान को बचपन से समझाया गया है की जो किताब में लिखा वही ध्रुव सत्य ......पैगम्बर साहब का जीवन ही आदर्श जीवन और अनुकरणीय ........अब बेचारा करे तो क्या करे ........बीवी बच्चे पाले ...काम धंदा करे ., नून तेल लकड़ी का जुगाड़ करे या फिर बम बाँध के घूमता फिरे .......कुल 200 करोड़ हैं पूरी दुनिया में .....बेचारे जी खा रहे हैं ........पर दिक्कत तब जाती है जब ये fundoos ....यानि की fundamentalists जाते हैं .........हज़ारों नहीं लाखों मदरसे हैं ....करोड़ों बच्चे और युवा पढ़ते हैं इनमे .......ज़्यादातर में सिर्फ दीनी तालीम होती है यानी सिर्फ धर्म शिक्षा .........अब उसमे क्या पढ़ा रहे हैं कौन जाने .......पढ़ाते पढ़ाते क्या पढ़ा डालें कौन जाने ..........पर दिक्कत सिर्फ यहाँ तक नहीं है .........पिछले 10 -20 साल में तो डाक्टर इंजिनियर लोग जिहादी बने हैं ...वो कौन से मदरसे में पढ़े थे ........तो ये fundoo किसको क्या पढ़ा डालें ,अल्लाह जाने ........सारी दुनिया की ख़ुफ़िया एजेंसियां ये देख के परेशान है की इधर आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोग ज्यादा आतंकवादी बने हैं ..........कर लो , क्या करोगे .......क्या जाने कौन कब ज़न्नत के चक्कर में बम बाँध ले ............
धर्म ग्रन्थ तो हमारे धर्म में भी है .......एक नहीं सैकड़ों हैं ......... घर में भी है ....बड़ी अच्छी किताब है , पर हम उसे seriously नहीं लेते ....घर का कोई बच्चा ज्यादा पढने लगे तो हम यही कहते हैं कि भाई मेरे ....course की किताब पढ़ ले .......अबे कल तेरा पेपर है .....पढ़ ले बेटा ...पास हो जाएगा .......कुछ नहीं रखा इस धर्म करम में .....और हमारा धर्म हमें इसकी आजादी देता है .....कोई पंडित या मठ - मंदिर हमें कुछ कह के तो देखे ....हम तुरंत उसका collar पकड़ लेंगे ...........तू है कौन बे......... जा नहीं पढ़ते तेरी किताब ....नहीं मानते तेरे भगवान् को .........नहीं पूजते तेरी मूर्ती .......पर बेचारा मुसलमान ......इतनी हिमाकत कर नहीं सकता ........मुल्ला जी का पूरा नियंत्रण है उसकी सोच पे ........वह किसी चीज़ पे प्रश्न चिन्ह लगा ही नहीं सकता .......बोलना तो दूर की बात सोच भी नहीं सकता .........अब बताओ कौन सी सरकार क्या करेगी .........उत्तर प्रदेश में पिछले 5 साल में नेपाल की सीमा पर 25000 से ज्यादा मदरसे खुले हैं .....बिना किसी सरकारी permission के ....किसी का कोई नियंत्रण नहीं ....साउदी अरब से petro dollar आता है ....मदरसा खुल जाता है ........कौन जानता है क्या पढ़ा रहे हैं ......किसे पढ़ा रहे हैं ........नियंत्रण करना तो दूर की बात है ,एक शब्द बोल के तो देखो ....आसमान टूट पड़ेगा .......तीस्ता सेतलवाड और अरुंधती राय अपने कपडे फाड़ लेंगी .......सातवें आसमान पे चिल्लेयेंगे ये न्यूज़ चैनल ......देखो बेचारे मुसलमान को परेशान कर रही है ये सरकार ...........बेचारे को चैन से नमाज़ भी नहीं पढने दे रही .........अब आप अमेरिका में इस तरह से मदरसा खोल के दिखाओ ........वहां घुसने से पहले नंगा कर के तलाशी लेते हैं ....फिर चाहे सामने शाहरूख खान हों या APJ अब्दुल कलाम .....किसी को नहीं पहचानते ...किसी को नहीं छोड़ते .........यहाँ रोज़ बम फूट रहे हैं ......ले के दिखाओ तलाशी .....राजनीतिक दल और नेता मुसलमान को एक मिनट में समझा लेते हैं की देख तेरा शोषण हो रहा है .....तुझे तो B ग्रेड का नागरिक बना दिया है और वो तुरंत समझ जाता है .......60 -65 साल हो गए .......उस बेचारे को lollypop दे रहे हैं .......भूख से रोता है तो सरकार कहती है ....इसे एक lollypop दो .......वो उसे चूसने लगता है .....देखो चुप हो गया न .....वो बेचारा थोड़ी देर बाद फिर रोने लगता है ........इसे एक lollypop और दो .......कभी धर्म का lollypop ....कभी राजनीती का lollypop ....... . कभी नेता दे रहे हैं कभी कठमुल्ले ........कठमुल्ला कहता है की कुछ दिन की बात है बेटा .....भूख प्यास सब बर्दाश्त कर ले ........यार वहां ज़न्नत में मौज करना .......सबके लिए मुसलमान कोई इंसान न हो कर सिर्फ एक हथियार है .......कभी जिहाद करने का ...कभी वोट का .......ऐसे में कौन कब बम बाँध के घूमने लगेगा कौन जाने .
अमेरिका के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है ......उसे न मुसलमान का वोट लेना है न उसकी नाराजगी की परवाह है उसे ..........कठमुल्लों पर उसने सख्ती से डंडा रखा हुआ है ............इसलिए तात्कालिक तौर पे उसने आतंकवाद पे लगाम लगा रखी है .........आतंकवाद की डालियाँ काट दी है उसने अमेरिका में .......पर जड़ तो सलामत है भाई .........हमारे यहाँ तो हम एक पत्ता तक नहीं तोड़ पाए हैं .......हमारे घर का सामजिक और राजनैतिक ढांचा ऐसा है की हम कुछ कर ही नहीं सकते ......सब अल्लाह मियां के भरोसे है ........

Friday, September 16, 2011

सावधान ........बेगम का मूड खराब है

कहा जाता है कि सच पर चाहे जितने परदे डाल दो ......कमबख्त बाहर आ ही जाता है .......चाहे जितना गहरा गाड़ दो ...एक दिन वो अपनी मुंडी बाहर निकाल ही लेगा ........ कितना ही झूठा आदमी हो ....कैसा ही फरेबी हो .......सच तो सच ठहरा .......वो तो मौका देख के बाहर आ ही जायेगा ......पर दिक्कत ये है की इसे सुन पाना ...समझ पाना ...बर्दाश्त कर पाना .....बड़ा मुश्किल है .....मिर्चें लग जाती हैं जनाब ....आग लग जाती है तन बदन में........... सच सुन के ........तलवारें निकल जाती है ....खून की नदियाँ बह जाती हैं .....बहा दी जाती हैं .......फिर भी ये पाजी ....निकल ही आता है ......अब पिछले महीने युवराज ने कह दिया कि अरे भाई आतंकवाद की 98 घटनाएं तो आप रोक सकते हैं ......पर बाकी 2 नहीं रोक सकते ......कितनी सच्ची बात कही लड़के ने ...पर पिल पड़े भाई लोग ...पड़ गए नहा धो के ...बेचारे छोटे से बच्चे के पीछे ....देखो कैसी निकम्मी बात कहता है ....अबे काहे की निकम्मी बात ...एकदम सच तो कहता है .....अब गृह मंत्री जी ने कह दिया .....कौन माई का लाल कहता है कि रोक लेगा आतंकवाद को ......सारे जहां में है ....कैसे रोक लोगे ........अब ये अलापने लगे ...कैसे नहीं रुक सकता ....देखो अमेरिका ने तो रोक लिया ......कितना निकम्मा गृह मंत्री है अपना .......कितनी निकम्मी सरकार है ........सच सुन के कितना बुरा लगता है ..........पर ये सच है की नहीं रुक सकता आतंकवाद .....कभी नहीं .
तो भैया ....आज सुबह की बात है .......अपन चाय की चुस्कियां लेते अखबार पढ़ रहे थे तो यूँ ही मुह से निकल गया ....रोक चुके आतंकवाद .......श्रीमती जी बोलीं तो तुम्ही रोक लो ........मैंने चश्मे के ऊपर से झाँका और बोला मेरे पास है एक नुस्खा आतंकवाद रोकने का .........वो क्या जनाब ??????? जिस प्रकार कबूतर द्वारा दोनों आँखें बंद कर लेने से बिल्ली भाग जाती है उसी प्रकार हम सभी लोग अगर अपनी दोनों आँखें बंद कर लें तो आतंकवाद भी भाग जाएगा .......वाह .......सुभान अल्लाह...... क्या बात कही है ....वाह ......क्या वाह वाह लगा रखी है ...ध्यान से सुनो ....अकेले बम्बई की लोकल ट्रेनों से कट के हर साल 350 आदमी मर जाते हैं ......पूरी रेलवे का आंकड़ा तो शायद 5000 के ऊपर चला जाएगा......... 100 -50 बम धमाके में मर गए तो कौन सी आफत आ गयी.......... road accidents में हज़ारों मर जाते हैं .......बाढ़ में डूब जाते हैं .......भूख से मर जाते हैं ......शीत लहर में मर जाते हैं ........गर्मी से मर जाते हैं .........माँ बाप मार देते हैं ( abortion करा के ) ,बाद में मार देते हैं घर की इज्ज़त के नाम पे .........फिर ये सौ पचास बम धमाके से मर गए तो इतनी हाय तोबा मचाने की क्या ज़रुरत है ........जिस प्रकार ऊपर वर्णित सभी प्रकार की मौतों को हमारे देश में सामजिक मान्यता मिली हुई है उसी प्रकार आतंकवाद से हुई मौतों को भी एक स्वाभाविक ,सामान्य,रूटीन घटना मान कर आगे बढ़ जाना चाहिए .......यही उचित है .......ये इन साले TV और अखबार वालों ने धंधा बना लिया है अपनी TRP और Readership बढाने का .......ज़रा सी कोई बात हो जाए तो महीनों लगे रहते हैं उसके पीछे ......
एक कोई पुराना स्कूल master मर गया उस दिन हाई कोर्ट के सामने .....अगले दिन उसकी बीवी और बेटी चिघाड़ रहे थे टीवी पे ......हाय हाय ....हमारे बाप की लाश देने के लिए भी 3500 मांग रहे थे अस्पताल वाले ........फिर भी 6 घंटे तक इंतज़ार करवाया ............जब हमने कहा की भैया जल्दी करो तो वो बोले ...ज्यादा जल्दी है तो घर चले जाओ ....कल आ जाना .......फिर प्राइवेट एम्बुलेंस वाला 1200 ले कर भाग गया ......6 घंटे बाद लाश मिली तो एकदम निपट नंगी .......अब साहब सरकार शर्माए या न शर्माए ....अस्पताल शर्माए या न शर्माए .......घरवाले शर्मा गए ..........उन्होंने पूछा ...अरे भैया कपडे क्या हुए ....वो तो ले गए पुलिस वाले .....फोरेंसिक जांच के लिए ........अब क्या करें ........करना क्या है ......जाओ कफ़न ले कर आओ .........अब कहाँ से लायें कफ़न ........पर खुदा का लाख लाख शुक्र है ........तभी न जाने कहाँ से एक आदमी प्रकट हुआ ........आदमी न था .......फ़रिश्ता था ..........वो बोला मै लाये देता हूँ कफ़न ....और उसने वो डेढ़ मीटर झीना सा कपडा जिसकी कीमत रही होगी ....यही कोई 50 रुपया .......सिर्फ 400 रु में दे दिया .......अब दोनों माँ बेटी उस दिन टीवी पर रो रही थी ....सहानुभूति बटोरने के लिए ..........और मेरी बीवी खामखाह इमोशनल हुई जा रही थी .......मैंने उसे समझाया ....देखो भाग्यवान ...बात को समझो .......सरकार के लिए , पुलिस के लिए ,अस्पताल के लिए , उस एम्बुलेंस वाले के लिए , उस कफ़न वाले के लिए ......और तो और इन टीवी वालों के लिए भी .......ये एक रूटीन matter है .......ये दोनों मां बेटी और तुम .....तुम लोग खाम खाह इसे personally ले रहे हो ...अरे भाई अस्पताल वाला हर dead body देने के 3500 लेता है ...सो उसने आज भी ले लिए .....ambulance वाला 1200 में क्या ता उम्र तुम्हारी वेट करेगा .......6 घंटे बाद वो चला गया .........कूल n सिम्पल .....पुलिस कपडे ले गयी .......लाश बेचारी नंगी हो गयी ......but darling .....this is routine .....अब कफ़न ले के क्या चिदंबरम आयेंगे ....या राहुल गांधी ........बाप साला तुम्हारा मरा ....कफ़न चिदंबरम कहाँ से लायेंगे .........अपनी सोच को थोडा बड़ा करो ....ये सब छोटी सोच का नतीजा है ......मनुष्य को सुख या दुःख अपनी सोच की वजह से ही होता है ....ऊंचा सोचो ...बड़ा सोचो .........मौत चाहे ट्रक के नीचे आ के हुई चाहे ट्रेन के नीचे .........terrorist के bomb से हुई या पुलिस की गोली से .........
ये सब तुम सोच सकती हो ....system के पास इतना टाइम नहीं है ...........सिस्टम अपने ढंग से काम करता है .........उसे करने दो ...............life is routine....... darling , जाओ चाय बनाओ ........खाम खाह की टेंसन मत लो ......और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा .........श्रीमती जी चाय बना के लाई तो अपना चिंतन बदस्तूर जारी था .........यार ये नेता परेता जब अस्पताल जाते हैं,बम ब्लास्ट के बाद ,कुछ कहते होंगे ,अधिकारियों को दिशा निर्देश देते होंगे .... या बस यूँ ही TA ,DA बना के चले आते हैं ......राहुल बाबा पूरे दस मिनट रहे थे अस्पताल में ....क्या किया ????????? अब तो बताते हैं की बम्बई हमले के बाद सरकार ने बाकायदा महकमा बना दिया है .....ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए ........तो फिर उसमे कोई सिस्टम तो बनाया होगा न ......की जब बम फूटे तो ऐसा ऐसा करना .........घायलों से ऐसे निपटना .......लाशों को ऐसे निपटाना .........फिर भी उस बेचारे मास्टर को नंगा deliver कर दिया family को ........मरणोपरांत ............
श्रीमती जी भुन भुना रही थी .......चाय एकदम कडवी थी ...शायद पत्ती दो बार दाल दी .......शहीद का दर्ज़ा मिलना चाहिए इन लोगों को ....जो बेचारे मरे इन bomb blasts में .........सरकार को बाकायदा coffin में रख के ,तिरंगे में लपेट के घर पहुंचानी चाहिए dead body ......अरे जीते जी इज्ज़त न सही मरे आदमी की इज्ज़त तो होनी ही चाहिए ............मरने से तो नहीं बचा सकते ,पर मरने के बाद तो कुछ कर ही सकते हैं ..........मैंने उनसे कहा की बेगम ......देखो ...एक बात एकदम clear है ...इस बम ब्लास्ट में मेरा कोई हाथ नहीं है ........फिर तुम ये गुस्सा मेरे ऊपर क्यों उतार रही हो यार .....ऐसी चाय पिला के ..........नहीं ....हम यूँ ही बैठे नहीं रह सकते ...हाथ पे हाथ धर के ..........कुछ करना पड़ेगा हमें ...........हाँ ठीक कहती हो तुम .....कुछ करना पड़ेगा .........दुबारा बनानी पड़ेगी .........जाओ और खुद बना लो ..........मुझे पता लग गया था की बेगम का मूड खराब है .....सो उठे और चाय बनाने चल दिए ..........सरकार को अब समझ लेना चाहिए ................सावधान हो जाना चाहिए ......... बेगम का मूड खराब है ....


Wednesday, September 7, 2011

मुफ्त का पिल्ला मर जाता है

        दोस्तों बड़े उथल पुथल भरे रहे ...... पिछले कुछ हफ्ते ......राज सिंहासन को डोलते देखा ...........बर्फ को खौलते देखा........राजा भिखमंगा देखा.....रानी को नंगा देखा......अब साहब रानी को ही नंगा देख लिया तो बच ही क्या गया .....पर एक बात है ........नंगी घूम रही थी रानी .......अब ये तो पता नहीं की उसे अपने नंगेपन पे शर्म आयी या नहीं ....पर भैया हमें बहुत शर्म आयी उसे नंगा देख के .......बहुत सुन्दर लगती है औरत पूरे कपड़ों में .......ढकी छुपी ....नंगा शरीर घिनौना लगता है ..........घिन आयी उसका घिनौना शरीर देख कर .......जुगुप्सा ( शायद यही शब्द है ) का भाव पैदा हुआ मन में .......घृणा हुई ....उस से .....और अपने आप से भी ........
                                         अन्ना साहब हजारे के आन्दोलन में शुरू से अंत तक शामिल रहा ........शारीरिक रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी ........अपने शहर में हम लोग भी क्रमिक अनशन पर बैठे थे .....बड़े अजीबो गरीब से अनुभव रहे इस बार .........खट्टे मीठे ......कुछ कडवे भी .......मेरे पिता जी शुरू से ही कुत्ते पालने के शौक़ीन रहे हैं .......सो हमारे घर में हमेशा कुत्ते पलते थे .......पर हम यूँ ही किसी को कोई पिल्ला नहीं देते थे ....हमेशा पैसे ले कर ही देते थे ....पिता जी कहा करते थे कि ....मुफ्त का पिल्ला मर जाता है ..........मुफ्त में मिला होता है न ...इसलिए कोई उसकी केयर नहीं करता .......इस बार अन्ना के आन्दोलन में यही महसूस हुआ ......ये आज़ादी साली ........मुफ्त का पिल्ला  है ......पिल्ला नहीं बल्कि पिल्ली है ....पिल्ले की तो फिर भी कुछ कद्र होती है ..........अब ये पिल्ली बेचारी कितने दिन जिंदा रहेगी कह नहीं सकते .........दरअसल हमने तो कुछ किया नहीं इसके लिए .......उस ज़माने में कुछ दो चार लोग मरे थे .....कुछ ने डंडे खाए थे ......और गांधी के चक्कर में पड़ के अहिंसा की माला जपते ....यूँ ही भजन गाते तो हमें आज़ादी मिल गयी .......मुफ्त में ......अब इस मुफ्त की पिल्ली की कौन परवाह करता है .........इसके लिए अगर हमने अपना खून बहाया होता ............पूरी एक पीढ़ी की अगर कुर्बानी दी होती .....अगर दस बीस लाख लोग कुर्बान हुए होते तो शायद इसकी कीमत आज हम लोगों को पता होती .......उस दिन टीवी पर अमर सिंघवा बोल रहा था ....अरे ये कोई जन आन्दोलन नहीं ......कुछ दो चार दस लोगों का आन्दोलन है .....हाँ अलबत्ता टीवी का आन्दोलन है ......उस दिन ये सुन के मुझे बहुत गुस्सा आया .....मैंने उसे मोटी मोटी गालियाँ दी ....हिंदी में .....पर अब मैं यूँ सोचता हूँ की उस दिन मैं बस यूँ ही इमोसनल हो रहा था .......अमर सिंघवा सही बोलता है ........TRP के चक्कर में टीवी का आन्दोलन था ये ......एक बात एकदम पक्की है ....ये हमारे यहाँ जितने भी धर्म करम के अड्डे चल रहे हैं .......ये मठ मंदिर,गुरद्वारे,church ( मस्जिद नहीं लिखूंगा , कोई सिरफिरा ज़न्नत के चक्कर में गोली मार देगा .......या फिर ईश निंदा का केस लग जाएगा ) इन सब में से पैसे वाला angle हटा दो ......यानी पैसे का चक्कर बंद कर दो ......दो दिन में इन सबकी पोल खुल जायेगी .........चौथे दिन दुकान बंद कर देंगे .......और जितने ये तथा कथित जन आन्दोलन हैं इसमें से ये टीवी ,प्रेस और publicity का चक्कर हटा दो ........इनकी भी पोल खुल जायेगी .....अब साहब हुआ यूँ  की हमें टीवी पे ये बताया गया की अब युवा शक्ति जागृत हो गयी है और अन्ना के साथ आन्दोलन में कूद पड़ी है ........अपना तो दिल बाग़ बाग़ हो गया ......सो हम भी घर से बाहर निकले ...पूरा शहर घूम डाला .....युवा शक्ति कहीं कूदती नज़र न आयी .......कई कॉलेज देखे...स्कूलों के बाहर चक्कर लगाया ......घूमते घुमाते वहां पहुंचे जहाँ अनशन चल रहा था .......वहां पांडाल में दस पंद्रह लोग बैठे थे ........हमारे जैसे मोटे पेट वाले ठलुए .......युवा शक्ति नदारद थी .......अब मुझे तो भाई बड़ी हीन भावना हुई .....सारे देश का युवा कूद फांद रहा ....ये जालंधर वाले कहाँ रह गए .....पूरे शहर में कहीं कोई हलचल नहीं .........शाम को मशाल जलूस निकला ......हमारे लोकल सांसद के घर तक जाना था ....बमुश्किल सौ दो सौ आदमी थे .....रास्ते में कुछ लोग अपने घरों के सामने खड़े तमाशा देख रहे थे ....हमने उनसे  आह्वाहन किया ....आप भी इस जन आन्दोलन में शामिल होइए ......पर क्या कहें भैया ......जन आन्दोलन में जन शामिल न हुए .....पंद्रह लाख की आबादी वाले शहर में 200 लोगों का अपार जन समर्थन इस जन आन्दोलन को मिला ........
                                                खैर हमने अगले दिन अपने शहर की युवा शक्ति को जगाने का निर्णय लिया और अपने एक दोस्त के साथ पहुँच गए खालसा कॉलेज ......वहां कॉलेज के gate पर हमने पोस्टर बनाने शुरू किये ....अन्ना के समर्थन  में ....मै भी अन्ना ...तू भी अन्ना .......कुछ तमाशबीन  इकट्ठे हुए ...पर न कोई हलचल न उत्साह .......कुछ एक के हाथ में हमने आग्रह पूर्वक वो पोस्टर पकडाए ......पर ज़्यादातर युवा शर्मा रहे थे उन्हें पकड़ने में .......हमने उन्हें प्रोत्साहित किया ...अरे भाई ये तुम्हारा ही देश है ......ये तुम्हारा पैसा है जो लूटा जा रहा है ......और इसे लूटने वाले कितनी बेशर्मी से लूट रहे हैं ....बिलकुल नहीं शर्मा रहे ....यार तुम उनके खिलाफ आवाज़ उठाने में क्यों शर्मा रहे हो ......फिर एक लड़का सामने आया ....उसने वो पोस्टर मेरे हाथ से ले लिया .......और तन के खड़ा हो गया ........मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा ..........फिर उसके दोस्त ने अपने मोबाइल में उसकी फोटो खींची .........और उसके बाद उस लड़के ने वो पोस्टर नीचे ज़मीन पर रख दिया ...और वो दोनों वहां से चले गए .........खैर किसी तरह हमने दो तीन लड़कियों को मना लिया की आप भी हमारे साथ ये पोस्टर बनाइये ........वो तीनो भी पोस्टर बनाने लगीं .......उन्हें देख के कुछ लड़के भी रुके ........पर माहौल में कोई गर्मी न आयी ........हम लोग वहां दो तीन घंटे रहे ........इस दौरान हमारे सामने से कोई पांच सात सौ युवा निकले होंगे ......हमने सबसे आह्वाहन किया की आप भी इस जन आन्दोलन में शामिल हों ........पर ........सबसे ज्यादा दुःख इस बात का हुआ कि ज़्यादातर युवा हमें चोरी चोरी .....कनखियों से ताकते हुए .......बच के निकल रहे थे .......उनमे इतनी भी हिम्मत या हौसला न था कि वहां रुक के एक नज़र भर देख ही लें कि आखिर हो क्या रहा है ........और तो और ....उन दो तीन घंटों में कम से कम दस lecturers और professors हमारे सामने से निकले होंगे ........किसी ने हमारी तरफ देखा तक नहीं .....शामिल होना या प्रोत्साहन देना तो दूर की बात है ........जालंधर शहर education का hub माना जाता है punjab में ......सैकड़ों स्कूल कॉलेज हैं यहाँ ......पूरे देश से बच्चे आते हैं पढने ......बड़े बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज है ....lovely university है ...जहाँ सुनते हैं की 35000 युवा पढ़ते हैं .......कही कोई युवा नहीं उठ खड़ा हुआ ......टीवी पर नारे लग रहे थे ........मै भी अन्ना ...तू भी अन्ना ....पर हमारे यहाँ था ....तू ही अन्ना .......फिर मुझे वो दिन याद आया ...पिछले साल ...उस दिन punjab state games का समापन समारोह था .....पंजाब सरकार ने धर्मेन्द्र और उनके दोनों पिटे हुए फिल्म स्टार बेटों को बुला रखा था burlton park में .......मेरी बेटी को भी मेडल मिलना था .......उस दिन देखा था मैंने अपने शहर की युवा शक्ति को ........वहां burlton park में कूदते .......लाखों की भीड़ रही होगी .......एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे लोग .......bobby deol जैसे चूतिया, third क्लास, C grade फिल्म स्टार को देखने के लिए ........
                                         कितना सही कहता है अमर सिंघवा .........अबे कुछ नहीं ....हज़ार दो हज़ार लोग हैं .....काहे का जन आन्दोलन .......बाकी सब टीवी की महिमा है .......सब TRP का चक्कर है ........एक नंबर के चूतिया थे अँगरेज़ ....यूँ ही छोड़ के चले गए ......कहने को आजादी मिल गयी .......मुफ्त का पिल्ला है ...देख लो कद्र .......अब ये लोकपाल बिल भी .....देख लेना ........मुफ्त का पिल्ला है ........इसका भी वही हाल होगा ........और हमारी सरकार ....और ये कांग्रेस पार्टी .........यूँ ही खाम खाह नंगी हो रही है .......अबे झुनझुना है ...पकड़ा दे यूँ ही ....lolly pop है ...डाल दे मुह में .....RTI का lolly pop भी तो दिया है हमारे मुह में .......क्या मिल गया उसे चूस के .......शहल्ला मसूद तेरहवीं है शहीद होने वाली ........बाकी हमारे जैसे .....रोज़ डालते है RTI ...आज तक कही से कोई जवाब नहीं आया ........कोई सूचना नहीं .......एक और मामले में प्रिंट मीडिया ......इलेक्ट्रोनिक मीडिया ......सीबीआई .....state govt ...central govt ....cvc .... मानवाधिकार आयोग ...बाल आयोग....... लोकायुक्त..... सबको लिख चुके हैं .....लूट बदस्तूर जारी है ......मै भी अन्ना .....तू भी अन्ना ....मुफ्त का पिल्ला मत बनाओ यार अन्ना को .............और लोक पाल को ....क्योंकि मुफ्त का पिल्ला मर जाता है .......इसके लिए सचमुच उठाना पड़ेगा .....सचमुच सड़क पर उतरना पड़ेगा पूरे देश को .......अँगरेज़ चूतिया थे ...छोड़ के चले गए यूँ ही .....भ्रष्टाचार यूँ ही नहीं चला जाएगा .......इन चार लोगों के नारे लगाने से ...सबको उतरना होगा सड़क पर इसके खिलाफ ........कीमत चुकानी होगी ........क्योंकि मुफ्त का पिल्ला मर जाता है