Tuesday, April 30, 2013

महारानी जी ...इसे एक lollypop दीजिये

                                                           एकदा भारत देशे , एक राजा रहता था . अपनी राज्य पे राज करता था . उसकी प्रजा थी .जो लगान देती थी . रानियाँ थीं .जो उसका मनोरंजन करती थीं . महारानी थी .......पट रानियाँ थीं और ढेरों रानियाँ थीं . उनसे उसके ढेरों बच्चे थे . खेती बाड़ी बस ठीक ठाक ही थी . उद्योग धंदे थे नहीं .अलबत्ता उसने अपने राज्य में lollypop बनाने की फैक्ट्री लगवा दी थी . वो फैक्ट्री अच्छी चलती थी .उसका पूरा माल राज्य स्वयं खरीद लेता था , ऊंचे दामों पर . फिर मुफ्त में या susidized रेट पे जनता जनार्दन को बाँट दिया जाता था . यूँ तो राज्य के सभी बच्चे , जो बहुत ज़्यादा थे , राजा के ही थे . पर उसके अपने बच्चे जो कम ही थे उसके फेवरिट थे .उसके अपने जो ठहरे . राज्य की जनता परिश्रमी थी , किसी तरह अपने बच्चों का पेट पाल ही लेती थी .पर राजा साहब के बच्चे चूंकी शाही संतानें थीं सो भूखी मरती थॆ. राजा की  संतान भूखी ? दरअसल रानी साहिबा लोग को तो जापे से ही फुर्सत नहीं मिल पाती थी . सो कौन बनाए खिलाये .और ढेरों थे .किसको किसको बनाए खिलाये . राजा मस्त रहता था .उसे राज काज से ही फुर्सत न थी .
                                      फिर एक दिन पता नहीं कहाँ से एक जांच कमीसन बैठ गया .और जब वो खड़ा हुआ तो उसने सच सच बता दिया राजा  को , की बाकी जो हो सो हो , पर ये जो तुम्हारे वाले हैं न , न ये पढ़े , न लिखे , न कुछ आता न जाता , न नौकरी न काम धंदा .........ये बेचारे भूखे मर रहे हैं . इनका कुछ करो . राजा का माथा ठनका . दरबार की  शानो शौकत छोड़ सीधे अन्दर गया . वहाँ चिल्ल पों मची थी . फटेहाल बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे . मक्खियाँ भिन भिना रही थी . चारों ओर गंदगी का आलम था . राजा का दिल भर आया .उसने उन्हें गले से लगा लिया . जेब से lollypop निकाला और मुह में डाल दिया .भूखे बच्चे लपर लपर चुभलाने लगे .रोआ राट बंद हो गयी . राजा ने चैन की साँस ली . रानियों को बुलाया .कारिंदों को बुलाया .बहुत नाराज़ हुआ . बहुत हड़काया . बोला , इनका ध्यान रखा करो ........... यही तो हैं मेरे ..........अरे मेरा क्या है .......इन्हीं का है सब .......इन्ही से सब कुछ है .............. इन्हीं से ये रौनक मेला है ............अरे ये नहीं रहेंगे तो यहाँ चमगादड़ उड़ेंगे ..........इनका ख्याल रखा करो ....इनके खाने पीने पे ध्यान दो .........अब मैं भी ध्यान दूंगा . और जेब से lollypop निकाल के पकड़ा दिये . जब रोए तो दे देना .दूसरी जेब से झुनझुना निकाला ......और हिलाने लगा ........झन झन झन झन ....बच्चे खुश हो गए ...........राजा दरबार में चला गया .
                                        कुछ दिन बाद उसे फिर याद आया . अन्दर गया तो देखा, फटेहाल भूखे बच्चे रो रहे थे . चिल्ल पों मची थी . मक्खियाँ भिनक रही थी . उसे देखते ही बच्चे उसकी ओर लपके .उसने lollypop निकाली . मुह में डाल दी .बच्चे लपर लपर चुभलाने लगे .........झुनझुना हाथ में पकड़ा दिया . रानियों को बुला के समीक्षा बैठक की . योजना आयोग को lollypop की एक और factory की योजना बनाने को कहा . health hygiene और nutrition पे एक करारा सा लेक्चर दिया .बच्चे खुशी से झूमने लगे . ताली बजाने लगे .
                                         राजा की ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी थी . लोग बाग़ impress हो गए थे . वाह क्या मैनेजमेंट है राजा का .......वाह .......हमें भी बताइये राजा साहेब ....कैसे करते हैं इतना बढ़िया मैनेजमेंट .सुदूर राज्यों से न्योते आने लगे .और राजा साहब जाने लगे .वहाँ  लोगों ने पहले सलाम बजाया ........फिर पूछा , राजा साहब ............... हुज़ूर ..........कैसे भूख से बिलबिलाते बच्चों को इतनी आसानी से चुप करा लेते हैं आप ......... राजा भड़क गया .....मेरे बच्चों का अपमान किया ....उन्हें भूखा बताया .......नहीं दूंगा management पे लेक्चर ..........और राजा उठ खडा हुआ ....बाज़ार से बच्चों के लिए कुछ lollypop लिए ........कुछ झुनझुने .....और वापस चल पडा ....उधर महल में हंगामा बरपा था ........बच्चे खुश थे ......राजा ने अपमानित नहीं होने दिया ....... ये भी चर्चा ए आम थी , की राजा lollypop और झुनझुने ला रहा है ...........बच्चे खुशी से नाचने लगे ...........













Monday, April 29, 2013

हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है

                                                       एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ .दोनों के अपने अपने फायदे हैं . जिसे आप मछली देंगे वो आपका ज़बरदस्त fan हो जाएगा . उसे बैठे बिठाए मुफ्त का खाना जो मिल गया . अब वो अक्सर आपका दरबार लगाएगा . जी हुजूरी करेगा . रोज़ आपसे मछ्ले मांगेगा .अगर आप उसे मछली पकड़ना सिखा दें तो इसमें भी एक बहुत बड़ा रिस्क है . अगर वो मछली पकड़ना सीख गया तो शायद फिर आपकी जी हुजूरी करने , आपको तेल लगाने नहीं आयेगा ............... बहुत से राजनैतिक , सामाजिक और धार्मिक लीडर्स पे ये आरोप लगते रहे हैं की उन्होंने अपने followers को जान बूझ के , planning करके , by design अनपढ़ , जाहिल , और दीन हीन बना के रखा .जान बूझ के उन्हें शिक्षा से वंचित रखा .लड़ाई झगडे , दंगे फसाद में उलझा के रखा .
                                                       UPA सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना रही है , नरेगा और मनरेगा . ये योजना गाँव के unskilled मजदूर को साल में सौ दिन, मिटटी फेंकने के, 140 रु रोज़ देती है. सुनते हैं की एक लाख चालीस हज़ार करोड़ रु खर्च दिए पिछले 5 साल में ,सरकार ने , इस योजना पे . सुनते हैं की अकेले इस योजना ने देश की economy का भट्ठा बैठा दिया . इसके कारण महंगाई आसमान पे पहुँच गयी . देश के करोड़ों लोग अब फावड़े से मिटटी खोद के, उसे तसले में भर के , सर पे रख के ,फेंक के , खुश हैं ...........उन्हें 6 घंटे के एक सौ चालीस रु मिल जाते हैं .

                                                         एक बार हमारे गाँव में बड़ा बवाल मचा . फसल पाक के तैयार थी .पर कोई मजदूर काटने नहीं जा रहा था . क्योंकि गाँव में नरेगा का काम चल रहा था . सब लोग गाँव प्रधान के पास पहुंचे . भैया क्या चाहते हो ? फसल खेत में सड़ जायेगी .........कुछ दिन के लिए बंद करो ये नरेगा ............पर मजदूर बिलकुल नहीं चाहते थे की बंद हो नरेगा . सो प्रधान ने नया रास्ता निकाला .उसने सभी मजदूरों को बुला के कहा , देखो भैया , मुझे तुम्हारी हाजिरी से कोई मतलब नहीं . मुझे तो एक दिन में इतने वर्ग फुट मिटटी का काम चाहिए . चाहे सारा दिन में करो , चाहे दो घंटे में करो ............. चाहे दस आदमी करो , चाहे पचास आदमी मिल के करो .अगले दिन सब मजदूर सुबह 5 बजे ही काम पे लग गए और दो घंटे में उन्होंने वो मिटटी फेंक दी और फिर सार दिन फसल काटी ....दस दिन में सारे गाँव की फसल भी कट गयी .

  •  भारत सरकार न by design ....... देश के करोड़ों लोगों को मिटटी फेंकने में लगा रखा है .

  •  वो लोग इस काम में इस कदर उलझे हैं , इतने मगन हैं की उन्हें स्किल डेवलपमेंट पे दिमाग लगाने के           फुर्सत नहीं .
  • जो काम दो घंटे में हो सकता है , उसे सारा दिन में, धीरे धीरे, मस्ती से करते हैं .productivity गयी तेल लेने .
  • घर बैठे सौ रु मिल जाते हैं ( चालीस प्रधान और system खा जाता है ), क्या ज़रुरत है किसी फैक्ट्री में या खेत में काम करने की .

                                             सुनने में आया की इस योजना से मजदूर इतने खुश थे की UPA को दुबारा चुनाव जिताने में इसी योजना का हाथ रहा . पर अब समस्या पैदा हो गयी है .देश भर के मजदूर अब मांग कर रहे हैं की हमें साल में दो सौ दिन और दो सौ चालीस रु रोज़ दिए जाएँ .और सरकार के पास फूटी कौड़ी नहीं है देने के लिए . क्योंकि सरकार ऐसी ही दो नयी योजनाओं पे काम कर रही है. एक है खाद्यान्न सुरक्षा योजना और दूसरी है direct cash transfer .पहली में गरीब तपके को दो रु किलो गेहूं चावल और एक रु किलो मोटा अनाज .जौ  , ज्वार ,बाजरा , मक्का मिलेगा . अब तक गाँव का भूमिहीन मजदूर इसलिए खेत में काम करता था की उसे साल भर का अनाज मिल जाता था . अब सरकार ने वो समस्या भी हल कर दी है . दो रु किलो  अनाज मिल गया . क्या ज़रुरत है किसी फैक्ट्री या खेत में जा के काम करने के . मिटटी फेक , मस्त रह .ऊपर से सरकार हर महीने हज़ार दो हज़ार खाते में भी डलवा देगी ........ subsidy वाला .....उस से  फोन रिचार्ज करवा लेंगे ..........अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम ....दास मलूका कह गए सबके दाता राम ...........

                                                यूँ इन सभी योजनाओं परियोजनाओं के पक्ष विपक्ष में ढेरों तर्क वितर्क दिए जा सकते हैं . बड़े लाभ हानि गिनाये जा सकते हैं . पर मैं इसके सिर्फ एक पहलू पे जोर दे रहा हूँ . ये सभी योजनायें गरीब unskilled लोगों को सारे ज़िन्दगी unskilled बना के रखने का षड़यंत्र है .

  • शुरू से ही  दलित , आदिवासी , मुसलमान , और गरीब लोग कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं . उनकी गरीबी और जहालत ही कांग्रेस की ताकत है. अगर ये लोग socio-economic सीढ़ी पे ऊपर चढ़ गए तो तुरंत पाला बदल लेंगे .उन्हें गरीब और जाहिल बना के रखने में ही कांग्रेस का फायदा है 
  • जितना पैसा पिछले पांच साल में इन योजनाओं पे खर्च हुआ और आने वाले दस सालों में खर्च होगा , उतने पैसे में पूरे देश की पूरी नयी पीढी को शिक्षित और skilled बनाया जा सकता है .गरीबी , बेरोजगारी और खैरात पे पलने की मजबूरी से ऊपर उठाया जा सकता है . 
पश्चिमी देशों की तरक्की के कारण जब गिनाये जाते हैं तो अक्सर कहा जाता है की उन्होंने third world  का  शोषण करके ये समृद्धि अर्जित की.कुछ हद तक ये सही भी है . परन्तु उनकी तरक्की में उनके work culture इमानदारी और हाड तोड़ मेहनत का भी बहुत बड़ा हाथ रहा . मेरे एक मित्र कुछ साल UK में बिता के आये हैं . वो वहाँ मजदूरी करते थे . उनकी मेहनत और work culture के किस्से सुन के मेरा दिल दहल जाता है .हमारे देश में employers हमेशा इस बात से परेशान रहते हैं की लोग बिलकुल भी काम करना ,नहीं चाह्ते.  मैं अक्सर कहता हूँ की जितनी मेहनत और productivity अँगरेज़ एक महीने में देते हैं उतना हमारा आम मजदूर एक साल में नहीं देता .परन्तु विडंबना ये है की हमारा वही मजदूर UK में जा के उतनी ही मेहनत और लगन से काम करता है . मेहनत और लगन से काम करना UK का राष्ट्रीय चरित्र है .हम भी वहाँ जा के तुरंत उनके राष्ट्रीय चरित्र को अंगीकार कर लेते हैं .   हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है .नरेगा जैसी योजनाओं ने हमारे  हरामखोरी वाले work culture को और पुख्ता किया है .



















Sunday, April 28, 2013

ज़िल्लत ज़लालत ......मेहनत की कमाई

                                लोगान एयर पोर्ट पे अपने साथ हुई तथाकथित बदसलूकी , अपमान , ज़िल्लत , ज़लालत पे आज़म खान साहब ने बड़े वाजिब सवाल उठाये हैं .

बारह लोगों के बीच सिर्फ मुझे ही क्यों रोका गया पूछताछ के लिए ?

मुझे वहाँ कमरे में अकेले बैठे हुए ज़िल्लत महसूस हुई .

45 मिनट बाद बोले जाओ . मैं नहीं जाउंगा . पहले मुझे बताओ की मुझे क्यों ज़लील किया गया ? और सिर्फ मुझे ही क्यों ज़लील किया गया ?

आज़म खान साहेब , इबारत साफ़ साफ़ दीवार पे लिखी है . आप को और आपके साथ पूरे मुस्लिम समाज को पढ़ लेना चाहिए और समझ लेना चाहिए . खान साहेब , बहुत पुरानी बात नहीं है . जब सारी  दुनिया में लोग बेफिक्र अलमस्त घूमा करते थे .कोई रोक टोक नहीं थी . मामूली जांच के बाद लोग हवाई जहाज में चढ़ जाते थे . हाल ही में देश में common wealth गेम्स हुए . इतना ज़बरदस्त सिक्यूरिटी प्रोटोकॉल था की दर्शकों को टिकेट लेने के लिए ऐसे ऐसे फॉर्म भरने पड़े की उन्हें लगा , तोप का लाइसेंस लेने का फॉर्म भर रहे हैं . नतीजा ये निकला की तकरीबन सभी स्टेडियम खाली पड़े रहे . ऐसे आयोजनों में खिलाड़ी  मस्त घूमते थे शहर में ...स्थानीय लोगों से , दर्शकों से ,मिलते जुलते , खाते पीते . स्थानीय बाजारों में शौपिंग करते . पर इस बार दिल्ली  में खिलाड़ियों को गेम्स विलेज से बाहर निकलने पे सख्त पाबंदी थी . मानो वो जेल में बंद हों . विलेज में ही खाना पीना ....वहीं एक स्थानीय बाज़ार लगवा दिया था ....कुछ handicrafts थे ....देख लो भैया ......जो लेना हो ले लो ..........खेल की मूल भावना ही मर गयी ........सिक्यूरिटी सब चीज़ों पे भारी थी .

                                                      खान साहेब ....जब से ये इस्लामिक आतंकवाद आया है न ???????    दुनिया वो पहले वाली दुनिया नहीं रही .........फक्कड़ ....अलमस्त .......बेफिक्र ........अब तो बेचारी डरी डरी सी है .....सहमी सी ....उदास .........चलते चलते ठिठक सी जाती  है .....सिक्यूरिटी चेक पोस्ट पे .......

दूसरी बात आपने पूछी है .....कि  सिर्फ मुझे ही क्यों ? क्या सिर्फ इसलिए की मैं मुसलमान हूँ ? अब यार देखो न .....दुनिया में 99 % दहशत गर्दी मुसलामानों ने ही मचा रखी है न ? लिहाज़ा शक की निगाह से भी मुसलामानों को ही देखा जाता है .......अब देखो भैया ....ये हमने मान लिया की आप आतंकवादी नहीं . पर ये तो आप जानते हैं की आप आतंकवादी नहीं . आपके चेहरे पे न ये लिखा है की आप टेररिस्ट हैं , न ये लिखा है की आप टेररिस्ट नहीं है ..........किसी के चेहरे पे नहीं लिखा होता . इसलिए कम्बखत सबको शक की निगाह से देखना पड़ता है . दुर्भाग्य से आपके पासपोर्ट पे ये लिखा है की आप मुसलमान हैं . सो आपके टेररिस्ट होने की संभावना बन जाती है .....चाहे 0.0001%  ही  क्यों न हो . अब देखो भैया , यहाँ हिन्दुस्तान में आप हो सोलह करोड़ . हमको आपका वोट लेना है . सो यहाँ आपको कोई चेक नहीं करेगा , सब आपको तेल लगायेंगे . आपके नाज़ो नखरे उठाएंगे . पर वहाँ अमेरिका में न उन्हें आपका वोट चाहिए , न आपका तुष्टिकरण . वहाँ तो भैया ऐसे ही तलाशी होगी . हमारी नहीं होगी , आपकी ज़रूर होगी . क्योंके हमने सदियों से एक शान्ति प्रिय कौम की छवि बनायी है .और आपने चौदह सौ सालों में एक दहशतगर्द , लड़ाकू , झगडालू , उपद्रवी , असहिष्णु ,जाहिल ,ज़ालिम , अत्याचारी कौम की छवि बनायी है . पिछले बीस पचीस बरसों में ये छवि और पुख्ता हुई है . ऐसे बहुत से मुसलमान मुल्क जो किसी ज़माने में आज़ाद , प्रगतिशील और लिबरल होते थे , अब कट्टरपंथी हो गए हैं . इस दहशतगर्द ,कट्टरपंथी ,असहिष्णु छवि का खामियाजा आज पूरा मुस्लिम समुदाय भुगत रहा है

                                                       दीवार पे इबारत साफ़ लिखी है ......अगर मुसलमान खुद को नहीं बदलेंगे तो  इसी तरह तलाशी होगी . ये ज़िल्लत ज़लालत आप लोगों ने बड़ी मेहनत से कमाई है .
                         
















china ने हमारी ज़मीन पे नहीं , इंडिया की ज़मीन पे कब्ज़ा किया है ..............

                                      घबराई  हुई Biaanca  ने फोन किया ........mom चाइना ने हमारी जमीन पे कब्जा कर लिया है .......बेटा कैसी बात करती हो .....अपनी गवर्नमेंट है , अपनी पुलिस है , अपना गृह मंत्री है . ऐसे कैसे कोई हमारी ज़मीन पे कब्ज़ा कर लेगा . मम्मी ....बात को समझो .....पुलिस का matter  नहीं है ....china ने कब्जा किया है ....ये आर्मी का matter है . ohhh ....army का matter है ....ये antony कर क्या रहा है ......मन्नू .....मन्नू ....where are you .......देखो china ने हमारी ज़मीन पे कब्जा कर लिया है .........आर्मी लगाओ .....एयर फ़ोर्स को लगाओ ........हमारी ज़मीन से कब्जा छुड़ाओ ........Raul ...बेटा Raul Vinci ........अरे कहाँ चला गया ....ये Raul भी न .......फ्राइडे को गायब होता है तो मंडे तक इसका भी न ....पता नहीं लगता .........

                                        Biaanca , कौन से वाले प्लाट पे कब्जा किया है china ने ? ohhh mom ....ये तो पता नहीं . मुझे तो Robert  ने फोन किया था .....अभी पूछ के बताती हूँ ..........अरे सुनो .....कौन से वाले प्लाट पे कब्जा किया है चीन ने ? बीकानेर वाले या गुडगाँव वाले प्लाट पे ?       क्या ??????     गुडगाँव .......बीकानेर ......अरे बेवक़ूफ़ ......तुम और तुम्हारा वो भाई .......तुम दोनों कब बड़े होगे ...........वहां लद्दाख रीजन में बॉर्डर पे चाइना ने कब्जा कर लिया है .............. ओह्ह्ह वहाँ किया है ? तुम भी न ...confuse कर देते हो ......ऐसे  बोलो न .....की इंडिया की  ज़मीन पे चाइना ने कब्जा कर लिया है .........तुम तो कह रहे थे हमारी ज़मीन पे कब्ज़ा कर लिया ....यूँ ही डरा दिया .........देखो वहाँ ....पूरी govt में हडकंप मचा है .........आर्मी Nuclear weapons ले के तैयार है ...........
                                       
                                        Mom ....sorry ....थोडा confusion हो गया ...china ने हमारी ज़मीन पे नहीं , इंडिया की ज़मीन पे कब्ज़ा किया है .............. ohhhh , तुमने तो यूँ ही डरा दिया ........
                                                         
                                         मन्नू .....Relaxe . कोई tension नहीं है ......वो ज़रा चेक करवा लो ........कहाँ वहाँ लद्दाख बॉर्डर पे चाइना घुस आया है ......... ohh dont worry मैडम ....वो तो no mans land है .......barren land है ..........उसके लिए क्या लड़ना .....उसपे तो हम बयान बाज़ी कर के ही काम चला लेंगे .....और कोई काम मैडम ......तो फिर मैं जाऊं ? हाँ जाओ .....और सुनो .......देखो .........और कोई plot है ? गुडगाँव में .....या बीकानेर में .........

Saturday, April 27, 2013

अब Harvard में दसौता भरिन का लेक्चर

                                                                      हमारे गाँव में  महिला हुआ करती थी . दसौता नाम था उसका , जात की राजभर थी,  सो सब उसे दसौता भरिन बुलाते थे . गाँव की सामान्य महिला .उपलब्धि के नाम पे बस यही था  की उसके चौदह बच्चे हुए . 9 ज़िंदा रहे , पांच मर गए . भूमिहीन कृषक परिवार था .एक झोपड़ी में रहते थे . किसी तरह बच्चे बड़े हुए . सयाने हुए .फिर अपने अपने हिसाब से जहां किस्मत ले गयी , वहाँ चले गए . उनमे से कुछ आज भी गाँव में रहते हैं . उनके भी आगे घर परिवार हैं . बच्चे हैं . आज से कोई पांच साल पहले दसौता भरिन का देहांत हो गया . आज यूँ ही बैठे बैठे मुझे उसकी याद आ गयी . दसौता मर गयी , पर इंग्लॅण्ड अमेरिका के बेचारे होनहार छात्रों का कितना बड़ा नुक्सान हो गया . वरना मेरा मूड था की कैम्ब्रिज , ऑक्सफ़ोर्ड , wharton और हार्वर्ड में उसके लेक्चर करवाता . ये भी तो शोध और मैनेजमेंट का विषय हो सकता है की कैसे एक औरत ने दर्ज़न  भर से ज्यादा बच्चे पैदा कर दिए . एक झोपडी में कैसे पाला . क्या खाती खिलाती थी , कैसे सोती थी .
                                                हार्वर्ड वाले अखीलेश यादव और आज़म खान से सीखना चाहते हैं की उन्होंने कुम्भ मेला कैसे करवा दिया . बात भी सही है . सीखने लायक है . जो शहर बीस पचीस लाख लोगों की अपनी जनसंख्या के बोझ तले मरा जा रहा हो , वहाँ एक दिन में दो करोड़ लोग नए आ जायें , तो कैसे मैनेज किया होगा आज़म खान ने और अखिलेश यादव ने . यही गुरु मंत्र देने गए थे दोनों , वहाँ हार्वर्ड में . अब ये काम अमेरिका इंग्लॅण्ड वालों के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है , पर हम हिन्दुस्तानी तो यूँ ही चुटकी बजाते कर डालते हैं . अब आपको अन्दर की  बात बताता हूँ . आज़म खान ने ये गुर हमारी दसौता भरिन से सीखा . कैसे?
वो यूँ ......कितना भी मुश्किल काम हो मजे मजे से करो . बस पैदा कर दो , आगे अल्लाह मालिक. अल्लाह ने पैदा किया तो खाना भी देगा . जिसकी किस्मत में जितने दिन जीना लिखा होगा , जीएगा .जिसे मरना होगा मर जाएगा . live with nature .नंग धडंग घूम के जी गए दसौता भरिन के बच्चे . जो nature में रहता है उसमे immunity ....... रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है . कुछ भी खा पी ले , सब पचा जाएगा ......और मरना होगा तो साला मर जाएगा . उसकी किस्मत .हम भी फूंक ताप के भूल भुला जायेंगे .
                                                                          समझे भैया ? यही है हमारे देश की  total governance . अब चाहे कुम्भ हो या common wealth गेम्स .........सब ऐसे ही  होता है . अब हारवर्ड वालों को कौन समझाए की कुम्भ कोई आज से थोड़ी हो रहा है . अरे इसे होते तो हज़ारों लाखों साल हो गए . हमेशा से आते रहे हैं लाखों करोड़ों लोग उसमे . पहले पैदल आते थे , बैल गाड़ियों में आते थे .साथ में चना चबेना , सतुआ मरचा बाँध लाते थे . कुछ रास्ते में ही मर खप जाते . कोई बीमारी से मर जाता कोई थकावट से . हज़ारों लोग एक दूसरे से बिछुड़ जाते थे . हाल तक हिंदी फिल्में बनती रही हैं कुम्भ में बिछुड़े भाइयों पर . तब से अब तक कुछ नहीं बदला . हाँ पहले गंगा यमुना साफ़ होती थी , अब देश भर का मल मूत्र और सीवर लिए आती हैं . तब भी श्रद्धालुओं की दुर्गति होती थी , आज भी होती है . मेला लगता है संगम पे . तीस किलोमीटर दूर गाड़ियां रोक दी जाती हैं लोग बाग़ पैदल किसी तरह पहुँचते हैं . फिर मेला स्थल पे ही घुमावदार रास्ते बना के दसियों किलोमीटर लंबा चक्कर लगवा के डुबकी लगाने को  मिलता है . ज़बरदस्त भीड़ भाड़ . न दाना न पानी . फिर जैसे आये थे वैसे ही गिरते पड़ते,  अगर भगदड़ में ना मरे ............तो घर वापस ...............
                                                 ये तो है आम आदमी का कुम्भ . अलबत्ता VIPs के लिए ठीक रहता है . वो सीधे गाडी में बैठ के किनारे तक जाते हैं , ठाठ से डुबकी लगाई , फोटो खिचाया और वापस . मालदार असामियों और अंग्रेजों के लिए 5 स्टार टेंट व्यवस्था भी होती है जहां दारु , भांग , गांजा की भी चौचक व्यवस्था मिलती है .इस बार सुना है केंद्र सरकार ने 1200 करोड़ दिए थे , कुम्भ के लिए , जिसमे से , चर्चा है की आज़म  खान and party 600 करोड़ खा गयी , और सरकार ने कुल 1800 करोड़ रूपये कमा लिए कुम्भ से , सरचार्ज और टैक्स लगा के . बाकी जैसा की स्वाभाविक था, स्टेशन पे हुई भगदड़ में सैकड़ों लोग (सरकारी आंकडा 38 का है ) कुचल के मर गए . यही सिखाने गए थे , हार्वर्ड वालों को , आज़म खान ..........मैंने लिखा है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को .......अबे चेले से क्या सीखोगे , सीधे गुरु से सीखो ........किसी दसौता भरिन का लेक्चर करवाओ ...........





















Friday, April 26, 2013

जब नहीं पास में गूदा , तो क्यों लंका में कूदा

                                                आज़म खान साहेब अमेरिका गए थे .सुनते हैं वहाँ उन्हें रोक के अलग कमरे में बैठा के पूछ ताछ की गयी .दस मिनट तक रोक के रखा गया . इस से पहले सुनते हैं की शाहरूख खान से नेवार्क अड्डे पे दो घंटे पूछ ताछ हुई थी .जोर्ज फर्नांडीज़ के कपडे उतरवा के तलाशी ली थी ......पूर्व राष्ट्रपति के शायद जूते उतरवा दिए थे .......कोई एक सरदार जी की  पगड़ी उतरवा दी थी .........
                                                मेरे एक मित्र हैं . उनके घर का नियम है .वो लोग घर में जूता चप्पल नहीं ले जाते .अब भैया उनका घर है और उनका नियम है .मैं इसमें क्या कर सकता हूँ . जब भी उनके घर जाता हूँ , चुप चाप बाहर जूते  उतार देता हूँ . सरदार जी लोगों के घर में वो सिगरेट नहीं पीते .उनके घर जा के हमें भी नहीं पीनी चाहिए .हर घर के अपने अपने नियम होते है . होने भी चाहिए .अगर  ज़्यादा दिक्कत है तो मत जाओ उनके घर .पर भाई लोग लाइन लगा के उनके घर जाते हैं .उनके दरवाज़े पे जा के रोते गिडगिडाते है .प्लीज़ मुझे आने दो . मुझे वीज़ा  दे दो . इंग्लॅण्ड अमेरिका वाले वीज़ा फीस लेते है , हज़ारों रूपये .आप बाकायदा फॉर्म भर के, पैसे जमा कर के उनके सामने लिखित रूप में गिडगिडाते है ......प्लीज़ मुझे आने दो अपने यहाँ . देखो मैं रईस आदमी हूँ .देखो इतनी ज़मीन  जायदाद है , इतना बैंक बैलेंस है . इतनी FD है मेरे पास . इतना इनकम टैक्स देता हूँ .वादा करता हूँ वापस आ जाउंगा . वो कहते हैं , अच्छा चल फार्म जमा करा दे , देखेंगे . फिर वो देखते हैं की ये साला  भूखा नंगा है या है किसी काम का .पूरी  जनम पत्री चेक करते हैं .फिर कहते हैं .........ओये ..........श्ह्ह्ह्ह ....इतनी तारिख को आ जा ...तेरा इंटरव्यू लेंगे .....और हम पहुँच जाते हैं  टाई शाई लगा के ........वो पूछते  हैं ....क्यों  भाई , क्यों आना चाहता है तू हमारे  घर . हम कहते है फलाना फलाना काम है , घूमना है , मेरी भतीजी की शादी है , मैं बिजनेस करूंगा .....और वो सामने बैठ के मुस्कुराते है .............साले तेरी औकात है घूमने की ? तूने अपना ताज महल देखा है ? जो तू हमारा देखेगा ............कहाँ रहेगा बे ? क्या खायेगा ? सौ रूपये की चाय मिलती है हमारे यहाँ ....... साले भुक्खड़ , चल भाग यहाँ से ..............फ़ार्म फाड़ के कूड़े दान में डाल देते हैं , पैसे जेब में रख लेते हैं ................और हम खुशी खुशी वापस आ जाते हैं ......धन्यवाद देते की वीसा तो refuse हो गया , पर शुक्र है refusal की stamp नहीं लगाई पासपोर्ट पे .............कुछ दिन बाद फिर ट्राई करेंगे .....................अब ऐसा आदमी आपको घर बुलाएगा , और आप जायेंगे , तो नंगा कर के तलाशी तो लेगा ही . और नहीं तो क्या आपकी आरती उतारेगा . देखो भैया , अपनी फटी में जाते हो वहाँ , इसलिए ये इज्ज़त शोहरत , मान सम्मान यहीं टांग के जाया करो ...............और अगर बहुत प्यारी है इज्ज़त , तो मत जाओ .
                                     हाँ एक  तरीका और है . आप मेरे घर आये . मैंने आपके जूते उतरवा दिए .अगर आपको बुरा लगा तो जब मैं आपके घर आऊं , तो घुसने मत दीजिये , या आप मेरी पैंट उतरवा दीजिये .........मैंने आप से दस मिनट पूछ ताछ की थी , आप मुझसे तीन घंटे पूछ ताछ कीजिये .मैंने आपके कपडे उतार के तलाशी ली थी , आप मुझे नंगा कर के , उलटा लटका के तलाशी लो ........मैंने आपके रक्षा मंत्री की तलाशी ली , आप हमारे राष्ट्रपति के तलाशी लो .........पर उसके लिए हिम्मत चाहिए , गूदा चाहिए . हिदुस्तान और हिन्दुस्तानियों में न वो हिम्मत है , न गूदा .जब नहीं पास में गूदा , तो क्यों लंका में कूदा ..........









Sunday, April 21, 2013

संस्कार से हर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है .

                                         1990 में , आज से कोई तेइस साल पहले गाजीपुर जिले  के तथा कथित बैकवर्ड क्षेत्र में  हम लोगों ने एक स्कूल शुरू किया था . कहा जाता है की उन दिनों वो जिले का पहला प्राइवेट अंग्रेजी स्कूल था .ज़्यादातर छोटे बच्चे ही आये पहले साल . हमारे स्कूल में लड़के लड़कियों को अलग नहीं बैठाया जाता था .क्लास की सिटिग प्लान ऐसी थी की हर बेंच पे एक दो लड़के और एक दो लडकियां बैठती थीं . अब बच्चे , जो दुसरे स्कूलों से आये थे वो अपने साथ कुछ पूर्वाग्रह और संस्कार ले के आये थे .5 साल का बच्चा भी लडकी के साथ बैठने में असहज महसूस करता था . पर बच्चे बहुत जल्दी  सीखते हैं .कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो गया .गाँव का नया नया स्कूल था .साल भर नए बच्चे आते रहते थे .और सबसे पहला पाठ जो बच्चा पढता था वो ये की लड़के लडकी में कोई फर्क नहीं होता .एक बार एक नया बच्चा आया .बगल में बैठी लडकी से वो बहुत ज़्यादा असहज था . मैंने उसे समझाया , बैठो  बेटा , कुछ नहीं होगा .तुम्हारी बहन है न घर में ? वो भी तो लडकी है न ....उसे छूने पे कर्रेंट मारती है क्या ? इसे छुओ……  हाँ हाँ छुओ ....... देखो कर्रेंट नहीं लगा ना ? इस तरह सब बच्चे घुल मिल के व्यवहार करने लगे .साथ बैठ के पढ़ते , खेलते और  खाते .हम लोग इस बात का विशेष ध्यान रखते थे की सब बच्चे एक साथ बैठ के, एक दुसरे का लंच बॉक्स शेयर करें . समय समय पे cover dish करते थे ........ उसमे बच्चे ग्रुप बना के अपने घरों से विशेष भोजन बना के लाते थे .फिर सब साथ बैठ के खाते .
                                         समय के साथ बच्चे बड़े हुए .गाँव का हमारा छोटा सा स्कूल सिर्फ आठवीं तक था . उसके बाद ज़्यादातर बच्चे नवीं कक्षा में शहर के बड़े स्कूल में चले जाते थे. बीस पचीस बच्चों का ग्रुप इकट्ठे वहाँ जाता था . वहाँ भी वो ये संस्कार ले के जाते थे .अब उस बड़े स्कूल के भी तो अपने संस्कार थे ..........लड़कियों से अलग , कटे कटे रहना , कनखियों से ताकना और बात करने के लिए ललायित रहना . इन बीस पचीस बच्चों ने वहाँ जा के एक खलबली सी मचा दी . पर जल्दी ही वहाँ भी उन बच्चों ने सबको अपने रंग में रंग दिया . समय के साथ हमारा स्कूल भी दसवीं तक हो गया .पंद्रह साल तक हमने बच्चों के साथ काम  किया .कभी eve teasing की कोई घटना नहीं हुई . कभी किसी लड़के ने किसी लडकी को प्रेम पत्र नहीं लिखा .कभी स्कूल में कोई समस्या नहीं आयी .
                                           एक दिन, स्कूल में छुट्टी थी .स्टाफ आया हुआ था .डाक देख रहे थे हम लोग . तभी एक पत्र दिखा . दसवीं की एक लडकी के नाम था . मैंने देखते ही बता दिया ,प्रेम पत्र है . धर्म पत्नी बगल में बैठी थीं . फिर बिना उसे खोले ही दो लड़कों का नाम लिया ........इन दोनों में से किसी एक ने लिखा है . फिर पत्र खोला .प्रेम पत्र ही था .उन्ही में से एक लड़के ने लिखा था . पंद्रह सालों में पहली घटना थी .दरअसल उस साल वो दो लड़के नए आये थे . दूसरे स्कूलों से . उन्हें वो संस्कार नहीं मिले थे , जो हमारे बच्चों को बचपन से मिल रहे थे . हमारे बच्चों ने कभी एक दुसरे को alien के रूप में नहीं देखा या महसूस किया था . दिलो दिमाग में कोई वर्जना नहीं पलती थी . साथ बैठी लडकी दूसरे ग्रह की प्राणी नहीं लगती थी .सो कभी प्रेम पत्र लिखने की  ज़रुरत ही महसूस नहीं हुई थी .
                                            अब आज के आधुनिक समाज में तो संस्कार की बात करना भी outdated ,old fashioned हो गया  है . TV पे बहस चल रही है . 5  साल की बच्चियों से दुराचार हो रहे हैं ........लोग सुझाव दे रहे हैं ....कानून बना दो , फांसी दो , गोली मार दो. संस्कार की कोई बात भी नहीं करता . चरित्र , संयम ,जैसे शब्द अब प्रयोग में नहीं हैं .दुनिया की हर समस्या का हल कानून नहीं है . संस्कार से हर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है .











                                                               
                                                                                                                        

जैसा ताऊ वैसा कुत्ता

                                                  मेरे पिता जी कुत्तों के बहुत शौक़ीन थे .फ़ौज में नौकरी करते थे .उधमपुर में पोस्टिंग थी . वहीं बगल में एक dog squad की unit थी .सारा दिन वहीं बैठे उन कुत्तों की ट्रेनिंग देखते समझते थे . फिर स्वयं उन्होंने भी एक अल्सेशियन पाल लिया और उसे एकदम फ़ौजी तर्ज़ पे ट्रेनिंग दी . बड़ा हो गया तो गाँव ले आये . मुझे याद है . बड़ा जांबाज़ और दिलेर कुता था , शेर जैसा .उसके किस्से आज भी गाँव में लोग याद करते हैं .
                                                   खैर कुछ सालों बाद जब वो मर गया तो  मेरे ताऊ जी ने नया कुत्ता पाल लिया .छोटा सा पिल्ला था .अब चूंकि अल्सेशियन नस्ल का था सो उस बेचारे से भी यही उम्मीद की जाती थी की वो भी पिछले वाले की तरह खूंखार होगा ....लोगों को काट खायेगा , घर की  रखवाली करेगा . ताऊ जी ठहरे निपट देहाती .घर के बच्चों से भी डपट के बात करते थे और कुत्तों से भी .अब बेचारा छोटा सा बच्चा .वो उसे डराते , चिल्लाते , घुड़कते तो दुम दबा के चारपाई के नीचे छिप जाता . फिर उसका मज़ाक उड़ाते . उसे एकदम डरपोक घोषित कर दिया गया . कोई मेहमान या बाहरी आदमी आता तो बाकायदा प्रदर्शन होता था ......वो जोर से चिल्लाते और पिल्ला  बेचारा दुबक जाता .खैर समय के साथ वो बड़ा हुआ , जवान हुआ . देखने में तो था एकदम ज़बरदस्त , पर ज़रा सा जोर से बोलने पे दुबक जाता था . मुझे याद है , जब तक वो जिया , डरपोक , दब्बू , निकम्मा और नकारा ही कहलाया .मेरे पिता जी अक्सर ताऊ जी से कहा करते थे , आपने अच्छा खासा कुत्ता बर्बाद  दिया , डरपोक बना दिया . ताऊ जी उलटे बहस करते , मैंने क्या बना दिया , ये ससुरा तो जन्मजात ही  डरपोक था .
                                        कल से बवाल मचा है टीवी पे . चिहाड़ मची है . लोगबाग पुलिस को गरिया रहे हैं . ACP  साहब ने चार झापड़ लडकी को मारा , ससपेंड हो गए . कमिश्नर की नौकरी पे तलवार लटक रही है .पुलिस वाला लडकी के बाप को दो हज़ार दे आया . बोला रफा दफा करो . कहाँ FIR और कोर्ट कचहरी के चक्करों में पड़ोगे .पुलिस के पास 17  को गए थे लडकी के माँ बाप . 19 तक कुछ नहीं किया पुलिस ने .कितने भोले भाले लोग हैं हम हिन्दुस्तानी . अबे ये पुलिस नहीं है भैया ...ताऊ जी का कुत्ता है .......जैसा ताऊ वैसा कुत्ता . पुलिस आज भी डंडा ले के चलती है , जानते हैं क्यों ? गाँव में चरवाहे भी डंडा ले के चलते हैं .पुलिस वाले को पहले दिन से ये दिमाग में बैठा दिया जाता है की मारो साले को चार झापड़ .चार डंडे . आज भी पुलिस हाकिम , माई बाप सरीखा व्यवहार करती है लोगों के साथ , सो उसी बेसिक ट्रेनिंग का नतीजा था जब ACP ने उस लडकी को मार दिए चार झापड़ , या तरन तारन में उन पुलिस वालों ने उस औरत को लाठियों से पीटा,    सड़क पे .
                                       आम तौर पे सरकार पे दबाव रहता है , क्राइम के आंकड़ों को कम करके दिखाने का .....याद है अमिताभ  बच्चन का वो विज्ञापन ....UP में दम है , क्योंकि जुर्म यहाँ कम है . Stastically , जुर्म तब होगा जब मुकदमा दर्ज होगा , सो हर सरकार की , हर प्रसाशन की और हर पुलिस की यही कोशिश होती है की FIR न हो , मुकदमा न दर्ज हो , किसी तरह बहार बाहर सलट  जाए , समझा बुझा के , या फिर ले दे के .या फिर यूँ ही घुड़क के भगा दो मुद्दई को . और ये सब पूरा महकमा तय करता है . DGP सब जानता है . सड़क पे खड़े बेचारे सिपाही की क्या औकात है की वो आपकी FIR दर्ज ना करे . और अगर दर्ज हो भी जाए तो उसे क्या फर्क पड़ता है . फर्क तो SSP को पड़ता है , DGP को पड़ता है . मुख्य मंत्री को पड़ता है .इसलिए ये जान जाइये की अगर थाने  में आपकी FIR दर्ज नहीं होती तो इसलिए दर्ज नहीं होती क्योंकि प्रदेश का मुख्य मंत्री नहीं चाहता .                                                     
.हमारी  पुलिस आज भी  सत्रहवी शताब्दी में काम करती है . community policing जो की उसका मूल कार्य है , उसके अलावा सब कुछ करती है , पुलिस के पास manpower की भारी कमी है ,और investigation के लिए आदमी चाहिए , जो है वो VIP ड्यूटी में लगी है , जो बची खुची है वो सड़क पे डंडा पटक के वसूली में लगी है.   . जो इने गिने लोग काम करना भी चाहते हैं उन्हें नेता लोग और सरकार काम नहीं करने देती .
                                       ये तो सत्या नास जाए इस कम्बखत मारी मोबाइल फोन का , सालों ने दो कौड़ी के मोबाइल में भी कैमरा लगा दिया है , और साला  दो कौड़ी का आदमी भी पत्रकार बन जाता है , sting करने लगता है , मुंबई में बेचारे 36 पुलिस वाले ससपेंड करा मारे . अब  ACP साहब ने चार थप्पड़ मार दिए तो क्या आसमान टूट पडा ? अजी साहब , पुलिस तो मार मार के खाल उधेड़ लेती है , हड्डियां तोड़ देती है , उस रात ,रामलीला मैदान के बाहर ( बाबा राम देव ) याद है मुझे  . वो बेचारा अभागा ACP तो यूँ ही ससपेंड हो गया ........... और वो पुलिस वाला लडकी के बाप को दो हज़ार दे रहा था ......दो हज्जार .....चाहता तो यूँ ही घुड़क के भगा देता .......साले कीड़े मकोड़ों के तरह पैदा कर के छोड़ देते हैं , लडकी गुम हो गयी तो खुद ढूंढ . भाग गयी होगी किसी के साथ , जा पहले सब रिश्तेदारियों में पता लगा ........समझे भैया .........ये पुलिस मेरे ताऊ का कुत्ता है .......ताऊ ने जैसी ट्रेनिंग दी वैसा ही हो गया कुत्ता ........ समझे ताऊ ???????????                    












Saturday, April 13, 2013

लाओत्ज़ु का गधा



लाओत्ज़ु अपने गधे पर सवार होकर एक शहर से दूसरे शहर जा रहा था. उसे रास्ते में राजा का दूत मिला. दूत ने लाओत्ज़ु से कहा -”राजा ने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है और वे आपको अपने दरबारियों में सम्मिलित करना चाहते हैं. उन्हें बुद्धिमान जनों की ज़रुरत है.”

लाओत्ज़ु ने दूत से बहुत सम्मानपूर्ण व्यवहार किया और कहा – “क्षमा करें, पर यह संभव नहीं है. राजा को धन्यवाद दें और कहें कि मैं इस अनुरोध को स्वीकार नहीं कर सकता.”

जब दूत वापस जाने लगा तब लाओत्ज़ु ने अपने कान और अपने गधे के कानों को धोया. यह देखकर पास खड़े एक व्यक्ति ने पूछा – “आप ये क्या कर रहे हैं?”

लाओत्ज़ु ने कहा – “मैं अपने कान धो रहा हूँ क्योंकि राजनीतिक गलियारों से होकर आनेवाले सन्देश अपवित्र और खतरनाक होते हैं.”

आदमी ने पूछा – “लेकिन आपने अपने गधे के कान क्यों धोये?”

लाओत्ज़ुने कहा – “गधों में बड़ी राजनीतिक समझ होती है. वह पहले ही कुछ अजीब तरह से चल रहा था. जब उसने राजा के दूत का सन्देश सुना तो उसे स्वयं पर बड़ा अभिमान हो गया. उसने भी बड़े सपने संजो लिए. राजदरबार की भाषा की इतनी समझ तो मुझमें भी नहीं है जितनी इस गधे में है. ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि दरबार में भी इसके जैसे गधे ही भरे हुए हैं. इन सबकी भाषा एक समान है.”

यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत हंसा. कहते हैं कि यह बात राजा तक भी पहुंची और इसे सुनकर राजा भी बहुत हंसा.

ऐसा था लाओत्ज़ु. उसकी बातें सुनकर सभी हंसते थे. वह अपने समय का सबसे ज्ञानी, सबसे विलक्षण, और बचकाना आदमी था. किसी ने भी उसे गंभीरता से नहीं लिया. उसने लोगों को कभी भी इतना प्रभावित नहीं किया कि वे उसकी शिक्षाओं को सहेजने के बारे में गंभीरता से सोचते. उसने अपने पीछे कोई धर्म या शास्त्र या कोई संगठन नहीं छोड़ा. वह सदैव अकेला ही रहा और सबसे शुद्ध बना रह सका.


copy pasted from randheer chaudhary panipatiya status from facebook 
रणधीर  चौधरी पानीपतिया के फेसबुक स्टेटस को चिपका रहा हूँ , उनकी अनुमति से 

ajit singh taimur 

Saturday, April 6, 2013

खजुराहो यात्रा

                          पुरानी बात है .उन दिनों हम दोनों मियाँ बीवी की घुमक्कड़ी पूरे शबाब पे थी .तकरीबन हर शुक्रवार ही हम लोग निकल पड़ते थे .उन दिनों गाँव में रहते थे .जिला गाजीपुर में .और कुछ न हुआ तो बनारस ही  घूम आते थे . पर उस दिन कहीं लम्बा जाने का प्रोग्राम था पर कहाँ, ये पता न था .खैर घर से निकले .घुमक्कड़ की ये खासियत होती है की उसे रेलवे का टाइम टेबल तकरीबन कंठस्त होता है .फिर अपनी तो मास्टरी थे रेलवे टाइम टेबल में .कई बार तो अब भी यार  दोस्त मुझसे पूछ लिया करते हैं .......यार इस समय फलां जगह से फलां जगह जाने के लिए कौन सी ट्रेन मिलेगी ......सो उस दिन मुझे ये आईडिया था की इस समय बनारस से रांची जाने के लिए ट्रेन मिलेगी .रांची के बारे में बहुत सुना था और वहाँ जाने का मूड था .स्टेशन  पहुंचे तो रांची वाली गाड़ी में अभी घंटे भर की देर थी .और सामने प्लेटफोर्म पे बुन्देल खंड लगी हुई थी .सो आनन् फानन में प्रोग्राम चेंज हो गया और रांची के जगह खजुराहो का प्रोग्राम बन गया . सो चल दिए खजुराहो .बड़ा नाम सुना था खजुराहो का .बहुत बड़ा और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का पर्यटक स्थल है .ऊपर से बुन्देल खंड में है .बुन्देल खंड  में तो भैया हमने नौकरी की है . तीन साल रहे .खेती बाडी भी की .बड़े किस्से थे वहाँ के .श्रीमती जी ने सुन तो रखे थे पर उन्हें देखने का सौभाग्य प्राप्त न हुआ था . सो हमने उनसे कहा कि  चलो आज बुंदेलखंड  भी देख लो , तुम भी क्या याद करोगी . तुम्हारा भी जीवन सफल हो जायेगा।
                                                             प्रोग्राम यूँ बना की रात में तीन बजे महोबा उतर के एक दम पहली ही बस पकड़ लेंगे ....... वहाँ से सिर्फ अस्सी किलोमीटर है सो दो घंटे में खजुराहो .9  बजे तक पहुँच जायेंगे . यूँ तो मुझे बुन्देल खंड की बस सर्विस का अंदाजा तो था पर हम सोच रहे थे की खजुराहो चूँकि बड़ा पर्यटक स्थल है सो बनारस से आने वाले पर्यटकों के मद्दे नज़र उस समय कोई न कोई कनेक्शन महोबा से ज़रूर होगा .ट्रेन ठीक टाइम से तीन बजे महोबा पहुँच गयी .स्टेशन से बाहर आये .पता लगा की खजुराहो के लिए पहली बस सुबह सात बजे . किसी तरह इधर उधर घूम फिर के 4  घंटे बिताये .लो जी .....7  बजे वाली बस नहीं आयी ......पता लगा की बरात ले के गयी है ....अब 9  बजे वाली जायेगी .किसी तरह 9  भी बजे . बस में सवारियां यूँ भरी थी मानो बोरे  में आलू भरे हों ..........वहाँ से चली तो बाज़ार में जा के खड़ी  हो गयी . उसकी छत पे सामान लोड होने लगा . आधा घंटे बाद वहाँ से चली .और रास्ते में पड़ने वाले हर छोटे  बड़े गाँव कसबे नुक्कड़ पे सवारी  उतारती चढ़ाती चली . मज़े की बात ये की रास्ते में पड़ने वाले हर गाँव पे पूरा सामान छत  से उतारती और नया चढ़ाती ...हर जगह पंद्रह बीस मिनट का stoppage .......सड़क का हाल ये  की उसकी चौडाई थी बमुश्किल दस  फुट .......आगे चले तो बस पंक्चर हो गयी .उसमे भी आधा घंटा लगा .अब ऐसे में सवारियों का ये चरित्र गत गुण होता है की बस रुकी हो तो आम तौर पे लोग बाग़ नीचे उतर जाते हैं .पर साले बुन्देलखंडी टस से मस भी नहीं होते ..........खचा खच भरी बस आधे घंटे से खड़ी हो तो क्या हाल होता है ........धर्म पत्नी का धैर्य चुक रहा था और घुमक्कड़ी का भूत धीरे धीरे उतरने लगा था .
                                     खैर किसी तरह वहाँ से आगे बढे तो एक कस्बा आया ..मेन  रोड से कोई तीन किलो मीटर अन्दर था .पता चला की बस पहले अन्दर जायेगी फिर वहाँ से सवारिया लाद  के चालीस मिनट बाद यहीं वापस आएगी .और हम दोनों वहीं उतर गए , कंडक्टर से कह दिया की बैग छत  पे रखे है , ध्यान रखना . उतरे , खाया  पीया .....घूमे फिरे .......घंटा बीत गया , बस नहीं आयी .दो घंटे बीत गए  तो हमारे होश  गुम ......कमबख्त गयी तो गयी कहाँ ....किसी दूसरे रास्ते से तो नहीं चली गयी .पता लगा की कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं .किसी तरह एक जीप में लटक के बस अड्डे पहुंचे .........वहाँ उस सुनसान अड्डे पे वो बस पूरी शान ओ शौकत से  खड़ी थी ..खाली ....सवारियाँ  और स्टाफ नदारद ....... सामान छत से गायब था ......नज़र दौडाई तो एक कोने में लोग बाग़ बैठे थे ......निर्विकार भाव से .....शांत ......मानो गौतम बुद्ध ध्यान मग्न बैठे हों . बहुत खोजने पे क्लीनर दिखा ........ अबे सामान कहाँ है .....बस क्यों नहीं आयी .....मैंने एक RTI activist की तरह से सवालों के झड़ी लगा दी ........... वो भी मनमोहन सिंह की माफिक शांत बना रहा .....सामान एक कमरे में रखा था ...... बस आगे क्यों नहीं गयी इस प्रश्न का उत्तर इतना जटिल था की मुझे आज तक  समझ ना आया ...........खजुराहो अब भी तीस किलोमीटर दूर था ......दो बज रहे थे ......अगली बस की कोई आस न थी ........सो  हम दोनों ने सच्चे योद्धा की तरह बैग पीठ पे लादे और पैदल ही चल दिए .......यूँ ही किसी से लिफ्ट ले के मेन रोड पे आये ......कोई आधे घंटे बाद एक ट्रक दिखा ......उसने पंद्रह किलोमीटर पहुंचाया .......मंजिल अब भी पंद्रह किलोमीटर दूर थी ....वहाँ से एक जीप मिली .......उस से कुछ दूर और गए .......फिर एक और टेम्पो मिला , उसने खजुराहो पहुंचाया ...... पांच बज  रहे थे ......भूख और थकावट के मारे बुरा हाल था ......होटल लिया और नहाए धोये ..........छोटा  सा होटल था ....साफ़ सुथरा ....नीचे एक भजिया वाला गरम गरम पकोड़े उतार रहा था .......किस्म किस्म के .......शानदार स्वादिष्ट गर्मा  गर्म पकोड़े और चाय ........पेट भर पकोड़े खाए .......पकोड़े जिन्हें मध्य प्रदेश में भजिया कहा जाता यूँ भी MP  की ख़ास चीज़ है .बेसन से नहीं बनाते , दाल भिगा के, पीस के बनाते हैं .......एकदम unique ......पकोड़े खाते उस दुष्कर यात्रा की  सारी  थकावट और खीज उतर गयी .......शाम को टहलने निकले .....बगल में ही वो कॉम्लेक्स था जहां खजुराहो के वो विश्व प्रसिद्ध मंदिर खड़े थे ..........उन मंदिरों में सबसे पहले निगाहें कामसूत्र की उन मूर्तियों को ढूंढती है .....जो नदारद थी .......वहाँ खड़े एक गाइड नुमा बन्दे ने बताया ....देखो ये रही वो  कलाकृति .......विशालकाय मंदिर में बाहरी दीवारों में उकेरी गयी , बमुश्किल चार इंच की छोटी छोटी ....... उन मंदिरों में ऐसी हज़ारों रही होंगी पर अपना कोई इंटरेस्ट जम नहीं रहा था सो अपन यूँ ही घूम फिर के आ गए ......छोटा सा बाज़ार था .....खजुराहो आज भी असल में एक छोटा सा गाँव है जहां बमुश्किल हज़ार आदमी रहते होंगे .......दूर तक फैले खुले मैदानों में विदेशी सैलानियों के लिए तकरीबन हर बड़े ग्रुप के बड़े होटल हैं , हवाई अड्डा है और सुनते है की रोजाना सात आठ फ्लाइट्स उतरती है .........कमबख्त हंसी आती है ...साली बस एक भी कायदे की नहीं आती ...........
                                                          कुछ मंदिर दूर थे . सुबह उन्हें देखने गए .वहाँ बगल में बस्ती थी ......नालियां बजबजा रही थी ......एक सूअर भी कीचड में सना हमारे साथ मंदिर तक हमें कंपनी देता चला आया ........ज़रूर इसमें भी कोई अध्यात्म का राज़ छिपा होगा ........अगले दिन वापस चलने की बारी आयी तो धर्मपत्नी साफ़ नट गयी .......बोली यहीं रह लेते हैं ........कम से कम उस रूट से तो वापस नहीं जायेंगे . एक वैकल्पिक रूट भी था . खजुराहो से सतना होते हुआ वापस बनारस .उस से चलना तय हुआ . पता लगाया .....खजुराहो सतना बस चार घंटे बाद थी ......खजुराहो झांसी सतना रोड से कोई दस किलोमीटर अन्दर पड़ता है .........तय ये हुआ की मेन  रोड पे चला जाए और वहाँ से कोई साधन try किया जाए . वहाँ आये .....कुछ नहीं था ......पता लगा दो घंटे बाद झांसी सतना आएगी .......मुझे पता था ऊपर तक लदी फदी आयेगी .......दो घंटा वहीं सड़क पे खड़े ट्रक टेम्पो ताकते रहे ....साला कोई ट्रक तक न मिला ........ फिर वही आयी  ....झांसी सतना ...उसी में लटक सटक के चार घंटे में सतना पहुंचे .9 बजे महानगरी थी , बनारस के लिए .
                                            वहाँ सतना स्टेशन पे एक नंबर प्लेटफार्म पे हम दोनों  थके मांदे ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे . वहा वो दिखी ........उम्र रही होगी यही कोई चालीस पैंतालिस साल ........भीख मांगती रही होगी . कोई रोग रहा होगा . चला नहीं जाता था उस से . बैठे बैठे ही रेंग कर चलती थी ......... एक बार में बमुश्किल एक इंच सरकती होगी . हम दोनों का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ चला गया .सरकती रेंगती वो हमारे सामने से निकल गयी . हम दोनों उसे देर तक देखते रहे .फिर बातों में मशगूल हो गए . कुछ देर बाद मुझे फिर ध्यान आया .मैं देखना चाहता था की कहाँ तक पहुँची वो . पर कहीं दिखाई न दी ......मैंने उठ के ढूँढने की कोशिश की ...कहीं नहीं दिखी .मैं बैठ गया . पर मेरी जिज्ञासा शांत न हुई . धर्म पत्नी को सामान के पास छोड़ के मैं उसे ढूँढने निकल पड़ा .वहाँ दूर प्लेटफार्म के आखिरी छोर पे सरकती रेंगती वो अब भी  चली जा रही थी . देर तक वहीं खडा उसे तकता रहा .....ट्रेन आ गयी ........खजुराहो की  उस नीरस , बोझिल और थकाऊ यात्रा में वो रेंगती हुई भिखारिन अब भी याद आती  है . motivational speaker के रूप में स्टूडेंट्स को लेक्चर देते अब भी मैं अक्सर उसका ज़िक्र करता हूँ ..........न चल पाओ तो बैठ के रेंगते रहो .....रेंगते हुए भी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है.
                      ये घटना बारह साल पुरानी है .सुनते हैं की पिछले दस सालों में शिवराज सिंह के नेतृत्व में MP का काफी विकास हुआ है . शानदार सडकें बन गयी हैं .महोबा से एक रेल लाइन खजुराहो तक बन गयी है . बनारस से बुंदेलखंड एक्सप्रेस में कुछ डब्बे महोबा से कट के खजुराहो तक जाते हैं . दिल्ली से भी अब खजुराहो तक सीधी ट्रेन हैं . अलबत्ता महोबा से बस सर्विस सुधरी की नहीं इसका कोई अंदाजा नहीं .........वैसे खजुराहो मस्त जगह है .....छोटी सी ...साफ़ सुथरी ...शांत ....खूबसूरत .