गत वर्ष कोलकाता के la martinier स्कूल के 13 वर्षीय छात्र rauvanjit rawala ने आत्महत्या कर ली.....अत्यंत संपन्न परिवार का यह बालक कोलकाता के एक अत्यंत प्रतिष्ठित विद्यालय की आठवीं कक्षा का छात्र था । ऐसा आरोप है की विद्यालय के प्राचार्य श्री सुनिर्मल चक्रवर्ती ने उसे अनुशासन हीनता के लिए 8 फरवरी को 2 डंडे मारे थे......इसके अतिरिक्त चार अन्य अध्यापकों पर उसे परेशान करने (haressment) और यातना देने (torture) का आरोप है । rauvanjit ने इस घटना के 4 दिन बाद अपने घर में रस्सी से लटक कर आत्महत्या कर ली । इस घटना से पूरा देश स्तब्ध रह गया । सर्वत्र इसकी निंदा हुई । प्राचार्य समेत चारों अध्यापकों को गिरफ्तार कर उन पर मुकद्दमा चलाया गया ।ये चारों लोग आजकल जमानत पर छूट कर अपना मुकद्दमा लड़ रहें है । सभी समाचार पत्रों और समाचार चैनेलों ने विद्यालय समेत प्राचार्य , अध्यापकों एवं शिक्षा व्यवस्था की एक सुर में निंदा की । बंगाल के शिक्षा मंत्री , भारत सरकार के शिक्षा मंत्री से ले कर तकरीबन सभी सामाजिक संगठनों ने प्राचार्य को आड़े हाथों लिया और उनके लिए मृत्यु दंड से ले कर आजीवन कारावास तक की मांग भी की गयी । इस घटना की पूरे देश में इतनी चर्चा हुई कि इस से एक जागरूकता पैदा हुई और स्कूलों में शारीरिक दंड देने के खिलाफ एक माहौल बना।
मै स्वयं स्कूलों में शारीरिक दंड के खिलाफ हूँ । स्कूलों में किस प्रकार बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है , इस का मैं स्वयं भुक्तभोगी हूँ । इस पूरे घटना क्रम पर मैंने पूरे साल नज़र रखी है और इसके बारे में मै विस्तार से पढता रहा हूँ । इस पूरे घटना क्रम का एक निराशा जनक पहलू यह है की हमने इस घटना को बहुत ही सतही ढंग से देखा है .शिक्ष व्यवस्था में सुधार करना एक गंभीर विषय है और इस पर बहुत ज्यादा कार्य करने की ज़रुरत है । परन्तु बालक की आत्महत्या पर गहराई से विचार नहीं हुआ है . मुख्य अभियुक्त साफ़ बच गए हैं उन से कभी कोई प्रश्न नहीं पूछा गया । उन के ऊपर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई है । अब वह दूसरों को जेल भिजवाने के लिए मुकद्दमा लड़ रहे हैं । कौन हैं वो लोग ????????????
वो हैं rauvanjit के मां बाप .....श्रीमती एवं श्री ajay rawala । बच्चों की सफलता या नाकामी का श्रेय या जिम्मेवारी सबसे पहले माँ बाप की होती है । rawala दंपत्ति अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करने में पूरी तरह असफल रहे हैं । यदि rouvanjeet ने आत्महत्या की है तो इसकी जिम्मेवारी रावला दंपत्ति को लेनी पड़ेगी . आइये इस पूरी घटना का पुनः विश्लेषण करें ।
१)प्राचार्य ने अनुसाशन हीनता के लिए बालक को दो छड़ी मारी और अगले दिन अपने पिता को स्कूल लाने के लिए कहा ।
२)बालक 3 दिन तक स्कूल से अनुपस्थित रहा और चौथे दिन उसने आत्महत्या कर ली ।
३)बालक 3 दिन इस तनाव में रहा की अब उसके पिता को यह पता लग जायेगा की वह स्कूल में क्या कर रहा है ।
आप सब इस बात से सहमत होंगे की यह एक बेहद सामान्य घटना है और ऐसा तो अक्सर लड़कों के साथ होता ही रहता है । 3 दिन के लम्बे समय में बालक को विद्यालय की घटना के तनाव से उबर जाना चाहिए . लड़के शैतानियाँ करते हैं और रोजाना डांट खाते हैं .कभी एक दो हाथ लग भी जाते हैं । और ऐसा सिर्फ स्कूल में ही नहीं ,घर , खेल का मैदान , गली मोहल्ला , सड़क , आपसी लड़ाई कही भी हो सकता है। भारतीय समाज में ये एक मामूली बात है और हमारे लड़के इन सब बातों के आदी होते हैं । भारत के स्कूलों में ऐसी घटनाएँ रोजाना हजारों की संख्या में होती हैं .................. घर में भी तो हम कभी बच्चों को मार ही देते हैं. और जीवन में ऐसे उतार चढाव तो आते रहते हैं । जीवन बहुत कठिन है ...ये दुनिया एक जंगल है ............यहाँ जीवित रहने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत होना पड़ता है .....आखिर इस कठिन जीवन के लिए ऐसी शारीरिक और मानसिक दृढ़ता पैदा करना किसकी जिम्मेवारी है। rawala दंपत्ति अपने बच्चे में ये दृढ़ता पैदा करने में पूरी तरह विफल हुए। बच्चा स्कूल की एक छोटी सी घटना और पिता का सामना न कर पाने के तनाव में टूट गया और उसने इतना बड़ा कदम उठा लिया .....शायद ऐसी ही परिस्थिति में किसी अन्य परिवार के बच्चे ऐसी घटना को हंस के टाल देते . मशहूर वैज्ञानिक stephan hawkins का उदाहरण हमारे सामने है .गर्दन के नीचे पूरी तरह paralyse होकर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जीवन की बुलंदियों को छुआ ।
आज बच्चों को यह सिखाने की ज़रुरत है दुनिया की बड़ी से बड़ी समस्या का हल भी ढूँढा जा सकता है। बड़ी से बड़ी असफलता से भी उबरा जा सकता है । चाहे कितनी ही बड़ी मुसीबत क्यों न आ जाये हिम्मत नहीं हारनी चाहिए । आखिर यह जिम्मेवारी कौन उठाएगा .......परिवार.....माँ बाप ....दादा दादी ........स्कूल का नंबर तो बहुत बाद में आता है ।
आखिर बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से कैसे मज़बूत किया जाये ??????????????
१) उन्हें शारीरिक श्रम की आदत डालें । competitive sports कराएँ। हारने और जीतने की आदत डालें । हार को सम्मानजनक तरीके से स्वीकार करना सिखाएं। जीत के लिए संघर्ष करना सिखाएं। उन्हें बताएं की हार से दुनिया खत्म नहीं हो जाती बल्कि जीतने के लिए हारना ज़रूरी है ।
२) exposure....ज्यादा से ज्यादा exposure देने की कोशिश करें ॥
३) adventure sports एवं activities में भाग लेने दें । इन में बच्चा अत्यधिक कठिन श्रम और कठिन से कठिन परिस्थितियों में जीना सीखता है.....ऐसे कैंप में कई बार भूखा सोना पड़ता है या कच्चा ,अधपका खाना मिलता है .जमीन पर सोना पड़ता है .खुले आसमान में जंगल में रात बितानी पड़ती है....सारा सारा दिन पैदल चलना पड़ता है .पर बच्चा देखता है की मेरे साथी लड़के लड़कियां सब कर रहे हैं तो मै भी कर सकता हूँ ।
४)अच्छी से अच्छी और कठिन से कठिन परिस्थिति में यात्रा करना सिखाएं।
५)पैदल चलना , घर के कामों में मदद करना , श्रम दान, सामाजिक कार्यक्रमों में सहयोग जैसे लंगर में जूठी प्लेट और पत्तल उठाना, मंदिर गुरूद्वारे में लोगों के जूते सम्हालना, पानी पिलाना,सामाजिक कार्यों के लिए चंदा मांगना इत्यादि.इन सब कामों से बच्चों में मानसिक दृढ़ता आती है और ज़मीनी हकीकत से जुड़ाव होता है....
अपने बच्चों को बताएं की जीवन बहुत अनमोल है और संघर्ष ही जीवन है .......
वीर भोग्या वसुंधरा अर्थात वीर ही इस धरती ....जीवन का आनंद उठाते है .......इश्वर करे फिर किसी माता पिता को यह दिन न देखना पड़े जो rawala दंपत्ति को देखना पड़ा ।
अपने बच्चों को बताएं की जीवन बहुत अनमोल है और संघर्ष ही जीवन है .......
ReplyDeletethanx dev ....for your love n support
ReplyDeleteआपकी बात सही है जी
ReplyDeleteआजकल माता-पिता के पास बच्चों के लिये समय ही नही है। जेबखर्च के लिये पैसे दे दिये, स्कूल फीस भर दी, बस!
सहनशीलता, मेहनत, असफलता को भी स्वीकार करना, सामाजिक कार्यों में भागीदारी की आदतें तो शुरु से ही डलवानी चाहिये।
प्रणाम
satik vishleshan
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