हमारे गाँव में एक यादव जी के लड़के कि शादी थी पिछले साल। जैसा कि अक्सर गाँव में होता है यादव जी के घर में एक ही कमरा था कायदे का...तो अब समस्या यह थी कि आखिर नई बहू आयेगी तो रहेगी कहाँ..........नव विवाहित जोड़े के लिए तो एक कमरा होना ही चाहिए अलग से......सो यादव जी ने किसी तरह रूपया पैसा जुटा के एक कमरा बनवा लिया । नया......कमरा ..या यूँ कहें कि ईंटें cement से जोड़ के छत डाल दी गयी । प्लास्टर इत्यादि का कोई झंझट नहीं .....फर्श वगेराह बनता रहेगा बाद में.........हाँ अन्दर से प्लास्टर करा के रंग रोगन हो गया ...अलबत्ता बेचारे यादव जी पे 10 -12 हज़ार का कर्जा हो गया.....पर उन्होंने अपने दिल कों तसल्ली दी कि चलो घर में एक कमरा और बन गया इसी बहाने..............
हाँ शादी बड़ी धूम धाम से हुई........ बैंड बाजा बारात सब कुछ था ....तम्बू ताना.... यादव जी के लड़के कि बरात बड़ी धूम धाम से बस और taxi में बैठ के शान से गयी .यादव जी का लड़का घोड़ी पर सवार हो कर किसी राजा से कम नहीं लग रहा था । और इस तरह यादव जी नई बहू को विदा करा लाये......अलबत्ता सारा खर्च उस पैसे से हुआ जो उनके समधी यानि लड़की के बाप ने दहेज़ में दिया था.......अब वो बेचारा कहाँ से इतना पैसा लाया ...ये यादव जी कि समस्या नहीं है........फिर ज़माने का दस्तूर है जनाब...शादी में धूम धाम तो होनी ही चाहिए...........सारी दुनिया करती है...तो फिर हम क्या कम है किसी से ........तो फिर जनाब ...बड़ा मज़ा आया....सारे गाँव ने enjoy किया ......डी जे पर डांस भी हुआ...नाचने वालियां भी आई थीं ....यादव जी ने बन्दूक कि नाल पे 10 के नोटों कि गड्डी रख के फायर किया....इसकी चर्चा गाँव में काफी दिन रही.......खैर साहब अब बात पुरानी हो गयी है ......यादव जी का परिवार पुराने ढर्रे पर लौट आया है........रोजाना कि रोटी के लिए संघर्ष फिर शुरू हो गया है......यादव जी बच्चों का पेट काट के शादी में हुए कर्जे को भर रहे हैं.........गाँव के लोग अब भी कभी कभी शादी के डांस के ठुमके याद करके खुश हो लेते हैं .......
पिछले दिनों दिल्ली में बड़े जोर शोर से कामन वेल्थ गेम्स कराइ गई । बड़ा ही भव्य आयोजन हुआ । पैसा पानी कि तरह बहाया गया..........दिल्ली को तो दुल्हन कि तरह सजा दिया गया ......सड़कें नई बनी....फ्लाई ओवर बने....सड़कों के किनारे फूलों के गुलदस्तों कि भरमार थी........गरीबों कि बस्तियां दिखाई न दें इसके लिए सड़क के किनारे पर्दा लगा दिया गया ............मेट्रो कि नई लाइन भी बनी.....सरकार ने प्रचार किया कि वो देश में खेलों पर सत्तर हज़ार करोड़ रु खर्च कर रही ही.......नेहरु stadium के रंग रोगन पर 960 करोड़ रु खर्च हो गए......टी वी पर चर्च होने लगी कि क्या अब हमारा देश अब एक sporting नेशन हो गया है ........हमारे देश के खिलाडियों ने ढेरों मेडल जीते .....या यूँ कहें मेडल के तो ढेर लग गए..............
मैं पेशे से एक कुश्ती प्रशिक्षक हूँ । हमारा परिवार पारम्परिक रूप से खेलों से जुड़ा रहा है । हमारे परिवार में राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्टार के खिलाडी हुए है। अब हमारे बच्चे भी खिलाडी है और ओलंपिक्स में पदक जीतने का सपना पाल रहे हैं । इन दिनों हम लोग punjab प्रान्त के ludhiana जिले के खन्ना कस्बे में रह कर अभ्यास करते है .खन्ना का अखाड़ा देश के सबसे अच्छे कुश्ती प्रशिक्षण केन्द्रों में गिना जाता है । यहाँ के पहलवान देशके सबसे तगड़े पहलवानों में गिने जाते हैं। पूरे देश से बच्चे यहाँ प्रशिक्षण लेने आते हैं। हम खुद उत्तर प्रदेश से यहाँ आए हैं । यह अखाड़ा एक व्यक्ति विशेष के प्रयासों से चल रहा है.....सरकार या किसी अन्य संस्थान से कोई सहयोग नहीं मिलता....मैं और मेरे एक अन्य सहयोगी श्री सुभाष मलिक अपने व्यक्तिगत समय और प्रेरणा से कार्य करते है .इसके लिए हमें कोई वेतन नहीं मिलता है । अखाड़े कि दशा जर्जर है। कुश्ती आजकल गद्दे पर लड़ी जाती है .हमने अपने प्रयास से एक गद्दा लिया है .दूसरा जो punjab सरकार ने दिया है एकदम घटिया है और उस के ऊपर अभ्यास करने से रोज़ एक दो बच्चों को चोट लग जाती है .कायदन हमारे अखाड़े में बहुत सारे उपकरण होने चाहिए...पर कुछ नहीं है....हमने अपने पैसे से एक दो वेट ट्रेनिंग राड खरीद ली है .अभ्यास के लिए 4-5 फुट बाल होने चाहिए .पर हमारे पास एक है . वह भी फटी हुई । कहने का मतलब है कि हिन्दुस्तन का सबसे अच्छा सेण्टर फटेहाली और बदहाली कि हालत में कुछ लोगों के व्यक्तिगत प्रयासों से किसी तरह चल रहा है ...फिर भी विश्व स्तर के पहलवान पैदा कर रहा है..............
हम ये कामना नहीं करते कि हमारा सेण्टर भी विश्व स्तरीय सुविधाओं से लैस हो। ......... यह तो वही बात होगी कि एक मजदूर महलों का सपना ले ..........पर अगर हमें थोड़ी सी ....कुछ मूल भूत सुविधाए भी मिल जायें (इसके लिए २...४ लाख रु भी पर्याप्त होगा) तो हम और बेहतर results दे सकते हैं ....शायद हमारे यहाँ से भी कोई olympic विजेता पैदा हो जाये। भारत सरकार ने 960 करोड़ रु सिर्फ नेहरु stadium कि मरम्मत और रंग रोगन पर खर्च कर दिए.......नेहरु stadium 1982 के asiad के लिए दिल्ली में बनाया गया था और एक अधुनिक एवं भव्य stadium था जिसमे डेढ़ लाख लोग बैठ सकते थे . उसके रंग रोगन पर 960 करोड़....... अगर सरकार चाहती तो इतने पैसे में हमारे अखाड़े जैसे 960 विश्व स्तरीय सेण्टर तैयार कर सकती थी......(अगर हर एक कों एक करोड़ रु की ग्रांट दे दी जाती तो ......)
भारत सरकार ने हमारे गाँव के यादव जी कि तरह एक भव्य शादी आयोजित कि है । शादी से पहले भी यादव जी के बच्चे आधा पेट खा कर सोते थे .....आज भी आधा पेट ही मिलता है । यही हाल भारत के खिलाडियों का है ......70,000 करोड़ खर्च कर के दिल्ली में कुछ सड़कें , पुल , और मेट्रो की लाइने बन गयी होंगी पर हम खिलाड़ी तो पहले भी भूखे सोते थे आज भी भूखे सोते हैं.......
क्या हमारे 70,000 करोड़ रु वाकई पानी में चले गए .
this thought of criticizing establishment is quite old. now it's time to give a new thought instead of "mere to mil jata to main yeh kar deta".
ReplyDeleteThink out of box and don't glorify poverty.
enjoy life!
The blog was bang-on! The thought too.
ReplyDeleteJust 'cause Delhi had a beautiful make-over for some 20 days, and we won a lot of medals, We really can never ignore the ugly underbelly of the govt. that the CWG episode unveiled.
People work 14 hours a day and give 30% of what they earn to the govt.
20 years worth of tax money was wasted during CWG.
The least we can do is not be lulled by a few medals and an awkwardly large hot air balloon.
u r right sir.....we ought to invest at the grass root level....thousands of coaching centers should be made in villages and small towns to get long term results....spending crores only in delhi is not going to make india a sporting nation....
ReplyDeleteliked the way you've equated the two stories..
ReplyDeletein the whole hullabaloo of organizing things everybody forgets why all of it began in the first place .hence no balls or wrestling mats at basic playgrounds. :(
the only difference is the gaonwallas(we,the common people) will have to keep paying for many years to come ,for the little amount of fun we had.
mr devskool, who is supposed to think out of box..common man who is fighting for bread or our leaders...comon man can only expect and make observations whether steps were taken to achieve expectations or not by those who were supposed to do so,and if not then what was missing or what caused it...
ReplyDeletewhat else u expect from an AAM AADMI...
फिर कलमाडी क्या खाता? :)
ReplyDeleteउचित सवाल उठाये हैं आपने
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