पिछला एक महीना सफ़र में बीता ... अपने गाँव जाने का मौका मिला ..और फिर कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पंद्रह दिन बिताये ..... हमारा देश कितना खूबसूरत है ....ये देखने का मौका मिला....इस के अतिरिक्त यात्रा का सुख ....travelling से बड़ी कोई education नहीं .... कुछ अनुभव बड़े ही मजेदार रहे ..... टीवी पर नई फिल्म ......ये साली ज़िन्दगी .....के प्रोमो देख कर ही मैंने ये मन बना लिया था कि ये फिल्म ज़रूर देखनी है ....अच्छी फिल्म मैं हमेशा सिनेमा हॉल में ही बैठ कर देखता हूँ ....और अच्छी फिल्म देखना और संगीत सम्मलेन सुनना , ये दो काम मेरी ज़िन्दगी के अत्यंत ज़रूरी काम हैं सो इनके लिए मैं समय निकाल ही लेता हूँ ...या यूँ कहिये कि ये दो निहायत ज़रूरी काम करने के बाद अगर समय बच जाए तो बाकी के काम हो पाते हैं ...... हॉल में बैठ कर फिल्म देखने का मज़ा ही कुछ और है .....सो बनारस के ip mall में देखी .......mall में तीन बार पूरी तलाशी ले कर ही अन्दर जाने दिया गया .....हॉल में घुसने से पहले तीसरी बार तलाशी कि बाद सुरक्षा कर्मियों ने मेरी पानी कि बोतल वही रखवा ली ......मैंने पूछा क्यों ?????? तो उन्होंने कहा कि पानी की बोतल और खाने पीने का कोई सामन अन्दर नहीं ले जा सकते......मैंने पूछा क्यों ????? जवाब मिला अन्दर कैंटीन में सब कुछ मिलता है ..... मैंने कहा की जब मेरे पास अपना पानी है तो मैं क्यों आप की कैंटीन से 25 रु की पानी की बोतल खरीद कर पीयूं ?????? जवाब मिला ....यहाँ का यही नियम है ....देखिये बाकी सब लोग भी तो अपनी बोतल यही रख के गए हैं........मैंने सुरक्षा कर्मियों से कोई बहस नहीं की ......सीधा मेनेजर के ऑफिस में गया .......वहां उनसे कहा की आप कैसे मुझे अपनी कैंटीन से पानी खरीदने के लिए मजबूर कर सकते हैं .....उसने मुझसे तर्क करने की कोशिश की पर मैं अड़ा रहा ......अंत में उसने अपने आदमी से कहा ...साहब की बोतल वापस दे दो ......इस पूरे प्रकरण में पूरे तीन मिनट की फिल्म छूट गयी ......फिल्म बहुत ही अच्छी थी ....मज़ा आ गया .......अरसे बाद एक अच्छी फिल्म देखी ........
अगले दिन वाराणसी के रेलवे स्टेशन की irctc की कैंटीन में मेरे बेटे ने राजमा चावल की प्लेट मंगाई । राजमा क्या थे बस रंगीन पानी में कुछ राजमा पड़े थे .......तभी मैंने ध्यान दिया की मेरी बगल वाली टेबल पर एक लड़का अपनी प्लेट यूँ ही बिना खाए छोड़ कर चला गया था .......मैंने मेनेजर को अपने पास बुलाया ......पहले तो वो आ नहीं रहा था ....फिर जब मैंने अपनी आवाज़ ज़रा ऊंची की तो वो आया ....मैंने उससे कहा ज़रा गिन कर बताइये इस में राजमा के कितने दाने हैं .......इतना सब कुछ देख कर बाकी लोग भी शुरू हो गए और मेरी हाँ में हाँ मिलाने लगे और कैंटीन की खराब व्यवस्था को कोसने लगे .....मैंने शिकायत पुस्तिका मंगाई तो मेनेजर गिडगिडाने लगा ......एक अच्छा ख़ासा नाटक हो गया .....मेरे बेटा इस पूरे प्रकरण में असहज महसूस कर रहा था ......क्या पापा ...आप भी ...छोटी सी बात पे पीछे ही पड़ जाते हैं ........वह मुझे रोज़ देखता है छोटी छोटी ऐसी ही बातों पर बहस करते हुए ....लोगों से उलझते हुए ......
एक दुकान में जब मैंने दुकानदार को 100 का नोट पकड़ाया तो उसने मुझे 8 रु के सिक्के देने की बजे 8 टॉफियां पकड़ा दी .....जब मैंने उससे पूछा की ये क्या है ....तो उसने जवाब दिया की खुले नहीं हैं ..... मैंने उससे पूछा की क्या आप मुझसे 92 रु की बजे 92 टॉफियां ले लेंगे ......इस पर वो नाराज़ हो गया और बहस करने लगा .......मेरे बच्चे मुझसे कहते हैं की पापा आप हमेशा 1 या 2 रु के लिए ही झगड़ा करते हैं ......उनको लगता है की मुझे अपनी सोच को थोड़ा बड़ा करना चाहिए .......
पर मैं उनसे एक ही बात कहता हूँ कि...... बेटा ....मेरी औकात इतनी नहीं है की मैं इस देश में एक लाख पचहत्तर हज़ार करोड़ की चोरी रोक सकूं .....इतनी औकात तो बेचारे मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी की भी नहीं है ......पर हाँ मैं ip मॉल में पानी की एक बोतल के लिए तो आवाज़ उठा ही सकता हूँ ......irctc की कैंटीन में अच्छे राजमा चावल के लिए तो लड़ ही सकता हूँ ........ट्रेन में चाय वाले से तो कह ही सकता हूँ की पूरी 150 ml चाय दो .......आपको क्या लगता है ...कि..... अगर वो लड़का........ जो उस दिन उस कैंटीन में अपनी राजमा चावल की प्लेट छोड़ कर चुप चाप चला गया ...अगर वह भी मेरी तरह चिल्लाता ....और रोजाना कुछ लोग इसी तरह चिल्लाते ....तो व्यवस्था में थोडा सुधार नहीं होता ???????
भ्रष्टाचार एक सामाजिक समस्या है और हमेशा एक रु से शुरू होता है ....सबसे खतरनाक स्थिति तब होती है जब इसे सामाजिक मान्यता मिल जाती है ......हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है की अत्याचार को सहन करना सबसे बड़ा पाप है........और अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम आवाज़ तो उठा ही सकते हैं ......इसके लिए कौन सी कुर्बानी देनी है..... भगत सिंह की तरह ......अरे हाँ .....कुर्बानी पर मुझे ध्यान आया की उस दिन वाराणसी के ip mall में कितनी बड़ी क़ुरबानी दी मैंने ...आप सोच भी नहीं सकते .......उस पूरे प्रकरण में पूरे तीन मिनट की फिल्म छूट गयी ........ आप के लिए छोटी सी बात हो सकती है जनाब ....पर मेरे लिये तो कुर्बानी ही है क्योंकि फिल्म मैं हमेशा शुरू से अंत तक ही देखता हूँ ...एक दम पहले frame से आखिरी वाले तक .........तब तक...... जब तक की ये लिखा न आ जाये ..........A vishal bhardwaj film ।
हम चुप क्यों रहते हैं
चुप चाप सहते हैं
मुह खोल
हल्ला बोल
sir very interesting story, i like most of ur stories becoz it is always written in very user frielndly and my local language. by reading this definately if all can think like u definately change will take place.
ReplyDeletea very interesting read.
ReplyDeleteand yes , at least some of us would want to fight for our fair share of tea after reading this . :)
thanks udai and arundhati
ReplyDeletewe should try our own bit....and why should we take things lying down
well said pahji . keep it up. i pesonaly admire ur thought process. its really a serious issue after all its all about our awarness and social responsibility for our coming generation to give them a healthy nd a sound society. Kudos......sss to u.
ReplyDeleteit's nt a piece of story but a thought process on how we, the common man has become used to such exploitation which we think is a small issue but we forget that boond boond se sagar banta hai...Halla bol :)
ReplyDeleteyes nishit
ReplyDeletewhen we raise our voice ...it becomes difficult for the corrupt to carry on .....so halla bol .....open up
dhanyawaad sushil ji
ReplyDeletei will certainly read it and comment
regards
यह सब कुछ आप इस लिए कर पाते है क्यों की आप ek पहलवान हैं, और कोई होता तो पिटता
ReplyDeleteइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteYour observations and little scuffles make me chuckle, Ajit bhaiya, and remind me in some ways of Ma and Pa. :) I wonder where that generation of honest, self-respecting people went. I don't see many lions in the crowd anymore...just lots of hyenas!!
ReplyDeleteRegards,
Shalaka
आप की तरह हर कोई थोडी सी भी हिम्मत दिखा दे तो, बात ही कुछ और हो,
ReplyDeleteअजीत जी आप ने कमाल किया शायद मॆ कभी मुह खोल सकू ह्ल्ला बोल सकू । धन्यवाद
ReplyDeleteहम अपना हक मांगना भी भूल गये थे। आपको पढकर कुछ-कुछ चेतना जागृत होने लगी है।
ReplyDeleteप्रणाम