बात लगभग 16 साल पुरानी है .तब मेरी बेटी डेढ़ या दो साल की रही होगी । हम दोनों कहीं जा रहे थे ट्रेन से । बनारस के रेलवे स्टेशन से हमें गाड़ी पकडनी थी । बनारस में स्टेशन पर लकड़ी के खिलोने बिकते हैं .....शायद शहर में ही कहीं बनते होंगे ......हाकर टोकरियों में रख कर बेचते हैं .....उसके हाथ में एक झुनझुना था .....एक लकड़ी के टुकड़े पर spring से दो छोटे छोटे लट्टू से fix थे ....हिलाने पर टिक टिक बजता था ..... उसे मालूम था माल कैसे बिकेगा ........वह मेरी बेटी के सामने उसे टिक टिक बजाने लगा .......मेरी बेटी ने तुरंत हाथ बढ़ा दिए । पापा.......दो रुपये की चीज़ थी ....मैंने ले दी ..........वो घटना आज भी मेरी आँखों के सामने घूम रही है ......खिलौना हाथ में आते ही .....मानो सारी दुनिया जीत ली हो ......सारी कायनात मुट्ठी में हो ....उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था .......पूरे जोश के साथ वह उसे जोर जोर से हिलाने लगी ....टिक टिक टिक टिक .......उसे खुश होते देख मुझे उससे भी ज्यादा ख़ुशी हो रही थी ........हम दोनों के सुख का कोई थाह नहीं था .......सुख एक मानसिक अवस्था है .......इसका बाहरी आडम्बर से कोई लेना देना नहीं है ...पर विडंबना यही है कि हम हमेशा सुख को बाहरी आडम्बर में ही खोजते हैं ......जीवन में ख़ुशी और सुख तो चारों ओर बिखरे हुए हैं ...कोई चुनने वाला चाहिए .....पर इश्वर से हम दोनों की वह ख़ुशी देखी नहीं गयी ......दो रु का वह खिलौना ....पतले से स्प्रिंग से जो लट्टू जुड़े हुए थे .....वो स्प्रिंग टूट गया ......मुझे एक झटका सा लगा ....एक क्षण के लिए निराशा हुई .....हमारे उस असीम आनंद में बाधा जो पड़ गयी थी .....पर अपनी डेढ़ साल की बेटी की पहली प्रतिक्रिया मुझे आज तक याद है .......उसे एकदम झटका सा लगा .......मानो सब कुछ बर्बाद हो गया हो .....जैसे दुनिया ही लुट गयी हो ......उसके चेहरे पर निराशा के भाव आए .....उसने सिर्फ इतना ही कहा ....ओह्ह्ह ......टूट गया .....पर तुरंत .......मुश्किल से एक दो क्षण बाद उसने खुद को सम्हाल लिया ......उसने उस झुनझुने के वो सारे टुकड़े समेटे और मुस्कुरा कर बोली ...कोई बात नहीं ...मैं इसे ठीक कर लूंगी .....
मुझे नहीं पता ...डेढ़ साल के बच्चे में इतनी अक्ल होती है क्या ....कि किसी चीज़ को ठीक किया जा सकता ......शायद उसने मेरे चेहरे पर पर निराशा के भाव पढ़ लिए थे और मुझे तसल्ली देना चाहती थी .....या ये उसकी एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी ....शायद और कोई बच्चा होता तो जोर जोर से रोता .........पर उस दिन इस छोटी सी घटना से मेरी डेढ़ साल कि बेटी मुझे ये सिखा गयी कि .......कोई बात नहीं ....दुनिया ख़तम नहीं हुई है .....कोई बात नहीं ....मैं इसे ठीक कर लूंगी .....लोग पता नहीं क्यों जीवन में इतनी जल्दी हार मान लेते हैं .......
मशहूर गायक गुलाम अली की मशहूर ग़ज़ल की या पंक्तियाँ मुझे हमेशा याद रहती हैं
वक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर
गम न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
और अपनी बेटी का मुस्कुराता हुआ चेहरा और ये कहना की ...कोई बात नहीं मैं इसे ठीक कर लूंगी ..........
बहुत अच्छा संस्मरण है और बड़ों को सबक भी लेना चाहिए...जब ये बात बच्चा समझ सकता है तो हम बड़े क्यों नहीं ...क्यों जरा से नुकसान पर हाय-तौबा मचाते हैं...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट भा गई और आपको फॉलो भी कर लिया...
आप भी जरूर आइए...
http://veenakesur.blogspot.com/
thanks veena ji
ReplyDeleteaapka post bhi padha asha hai aage se lagatar padhne ko milega aap ki kavitayen achhi lagi
thank u.......papa love u.... mujhe to ye baat yaad bhi nahi hai....i can feel it. its lovely...
ReplyDeleteAjit bhaiya, you write very well! I confess, this is the first time I've been able to read your blog, caught up with the little one, who is now a full-time job. I like the simplicity of your expression, so easy to grasp, so apt. Enjoyable, certainly! Do continue with this endeavor, it's worth every word!!
ReplyDeleteBest regards,
Shalaka
thanks shaka,
ReplyDeleteyour comments are so encouraging
love you
Ajit JI, you write simple things and make them so unique.
ReplyDeleteCheers!
प्रेरक
ReplyDeletesuperb दादा
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