Saturday, May 21, 2011

हमारा खान पान ........भारत महान ........कश्मीरी भोजन ....भाग 1

इतना सारा घूमने के बाद मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी क़ि मैं कुछ अन्य अनुभव शेयर करूँ अपनी घुमक्कड़ी के .....अब भाई नीरज जाट जी से प्रेरणा मिल गयी है .....और लिखने की .....सो मन किया क़ि आज भारत के खान पान पे ही कुछ लिखा जाए ......सो मैंने बहुत सुना था कश्मीर की पाक कला के बारे में और मेरे कुछ दोस्त जो जम्मू में रहते थे बहुत तारीफ करते थे कश्मीरी खाने की .......तो हम लोग एक बार जब जम्मू गए तो उन्होंने बड़े प्रेम से कश्मीरी खाना बनवाया हमारे लिए ....... श्रीमतीजी साथ थीं .....और सच कहूं तो हमें बिलकुल भी पसंद नहीं आया .......खैर शिष्टाचार वश मेजबान का सम्मान करते हुए तारीफ तो की पर कुछ भी अच्छा नहीं लगा .........ऐसा ही एक बार दिल्ली में हुआ हमारे साथ ......दिल्ली के kareems restaurant का बहुत नाम सुना था ...हमारे एक दोस्त तो बस उसके गुणगान ही किया करते थे ......सो एक दिन हम पहुँच गए उनके निज़ामुद्दीन वाले restaurant में .......2 -3 dishes मंगाई .....यहाँ भी वही हुआ .......कुछ भी नहीं भाया .....बस किसी तरह खाना ख़तम किया और खुद को कोसते हुए चले आये ........अब kareems का इतना नाम था सो उन दोस्त से ज़िक्र किया इस बात का जो सचमुच खाने पीने के शौक़ीन हैं .और kareems के इतने बड़े फेन भी ..और बचपन के दोस्त ठहरे तो मुहलगे भी हैं .......सो जब उनको पता लगा की हमें kareems का खाना अच्छा नहीं लगा तो बहुत जोर से हँसे और बोले ......साले तुम्हारी औकात है kareems में खाने की .....दरअसल kareems का इतिहास ये है क़ि जनाब अब्दुल करीम खां साहब मुग़लिया दरबार के खानदानी खानसामे थे और उनके पूर्वज शहंशाह शाहजहाँ के ज़माने से महल में खाना बनाया करते थे .....तो जब बहादुर शाह ज़फर साहब को अंग्रेजों ने रंगून भेज दिया कैद कर के तो लाल किले में खाना बनना बंद हो गया और महल का पूरा स्टाफ सड़क पर आ गया ......तो परिवार का पेट पालने के लिए अब्दुल करीम साहब ने बाहर जामा मस्जिद के पास एक ढाबा खोल दिया और वहां लोगों को खाना खिलाने लगे ....अब शाही रसोइया तो शाही खाना ही बनाएगा सो जो dishes अब तक शहंशाह और राजा लोग खाया करते थे वो आम लोग खाने लगे ......वही करीम का ढाबा आज kareems बन गया है .....और जो रोगन जोश उस दिन हमने खा के fail कर दिया सुनते हैं की बादशाह सलामत शाहजहाँ साहब की favourite dish थी और खुद उन्होंने develop की थी...... सो वो हमारे मित्र बोले की साले तुम्हारी औकात है रोगन जोश खाने की ....शाहजहाँ खाता था ...तख्ते ताउस पे बैठ के .....फिर उन्होंने हमें खोल के समझाया क़ि kareems में रोगन जोश जैसी dishes घी या तेल में नहीं बल्कि रोग़न यानि चर्बी यानि animal fat में बनती हैं सो जब हमने कभी रोग़न में बना कुछ खाया ही नहीं तो पहली बार क्या खाक अच्छा लगेगा ......इसलिए ....taste develop करो .......कोई भी नया cuisine खाओ तो पहले उसका taste develop करो .....सो अब बात हमारी समझ में आ गयी और हमने कई बार खा के जो कश्मीरी और मुगलाई खाने का taste develop किया तो वो कुछ ज्यादा ही develop हो गया .....और उसके बाद तो हम दोनों मिया बीवी ने कश्मीरी खाने पर PhD कर डाली और finally ये रिजल्ट निकाला की कश्मीरी पाक कला से अच्छा इस धरती पे और कुछ नहीं है .........आह हा हा...... रिस्ता ....गुश्ताबा ....रोगन जोश ....तबक माज......क्या बात है ..उनकी non veg dishes का तो कोई जवाब ही नहीं है .......क्या cuisine है ...क्या preparations हैं ......कश्मीरी भोजन में meat की तैयारी 48 घंटे पहले शुरू की जाती है और फिर ढेरों तैयारी और marinations के बाद एक dish तैयार होती है .....एक एक ingredient क़ि तैयारी में घंटों लगते हैं......... सो सब लोग ये कहते थे की ये जो भी खाना आप लोग खाते हो ये तो restaurants की preparations हैं और ये authentic कश्मीरी भोजन नहीं है ...असली कश्मीरी खाना तो यहाँ किसी शादी में खाओ ....तो साहब हमने कश्मीर में डुगडुगी पिटवा दी क़ि भाइयों ...please हमें किसी शादी में invite कर लो यार .....खैर साहब मौका मिला 2 -3 साल बाद ........एक शादी में invite हो गए हम ......तो कश्मीरी भाई एक साथ चार लोग एक थाली में बैठ के खाते हैं जिसे तरामी कहते हैं ...और थाली क्या भैया पूरी परात होती है .....बड़ी वाली ......और फिर दस्तरख्वान बिछता है ......मसनद से पीठ टिका के बैठते हैं लोग ....फिर एक आदमी वहीँ एक बर्तन ला के आपके हाथ धुलवाता है ......फिर आती है वो तरामी .......और फिर चलते हैं कम से कम 7 -8 दौर dishes के ......पहले रिस्ता .....यानि meat balls in gravy .(असली रिस्ता भेड़ के meat का बनता है )...फिर रोगन जोश ..और तबक माज .....और न जाने क्या क्या .....सब लोगों को 1 -1 piece हर dish का serve किया जाता है ...और वो 1 पीस भी ऐसा की हमारे जैसे के लिए काफी .......अब समस्या ये की भैया इतना कुछ तो हमसे 4 दिन में भी न खाया जाये ...और वो पट्ठा तो डाल के चला गया ........और हमने देखा की हमारे कश्मीरी भाई सब साफ़ भी कर गए ...तो जनाब घबराइये मत इसका भी इंतज़ाम है ...हर गेस्ट को एक प्लास्टिक बैग दिया जाता है क़ि जो कुछ आपसे न खाया जाये उसे घर ले जाइए .......तारामी में मत छोडिये .......वाह क्या culture है ......सो हमने देखा क़ि हमारे जैसे कुछ guests अपना रिस्ता गुश्ताबा घर भी ले गए ....पर कश्मीरी सब खा के साफ़ कर गए सो हमारे दोस्त ने बताया की कश्मीर में 4 आदमियों के लिए 5 किलो ग़ोश्त तैयार किया जाता है यानी सवा किलो एक आदमी का .......सो हमें ये ग़लतफ़हमी थी की कश्मीरी खाना यानि non veg .......तो एक बार हम लोग श्रीनगर के tyndale biscoe school के मेहमान हो गए पूरे एक हफ्ते के लिए और हमारे मेज़बान ...प्रिंसिपल साहब वाकिफ थे हमारे भोजन प्रेम से सो उन्होंने एक ख़ास कश्मीरी रसोइया लगा दिया हमारे साथ और साहब वो लगा चुन चुन के dishes बनाने ......और उस भाई ने जो हमें एक से एक vegetarian dishes खिलाई .......उसमे सबसे ख़ास थी वो लौकी की बनी ....अल यखन ...यानि लौकी इन लहसुन flavoured दही ..वाह साहब वाह .....इसके अलावा शलगम ...पालक ....beans ..पनीर .....इत्यादि की इतनी laajawaab dishes .......नादिर यखन यानि कमल ककड़ी दही में ,दम आलू ,पलक चमन ....चमन यानि cottage cheese ,नादिर कबाब यानि कमल ककड़ी के कबाब,अखरोट की चटनी,सेब की चटनी ,कश्मीरी पुलाव और न जाने क्या क्या ..........वहां क़ि एक और बेहतरीन चीज़ है कहवा यानि एक स्थानीय हर्बल चाय जो बादाम और केसर डाल के बनती है ....इसके अलावा वहां क़ि नून चाय यानी नमकीन चाय .....कश्मीरी भोजन को वहां की स्थानीय भाषा में कहते हैं .....वाज़वान...waazwan ...और traditional खानसामे जो वहां भोजन बनाते हैं उन्हें कहते हैं वाज़ा .....सो इसी वाज़वान नाम से एक recipe बुक भी है मार्केट में जिसे आप खरीद के कश्मीरी भोजन का आनंद अपने घर पे भी ले सकते हैं ...एक दम authentic तो नहीं बनेगा पर कम से कम taste तो develop होगा तब तक ...और अगर दिल्ली में इसका मज़ा लेना हो तो निज़ामुद्दीन पे है एक भूरा सा कश्मीरी ...एकदम छोटी सी दूकान है उसकी ......वहां आपको इसका कुछ कुछ मज़ा मिल सकता है .....पर अगर असली मज़ा लेना है तो .....जाइए कश्मीर .......पर पहले taste develop करके .......बाकी अगले अंक में ......

5 comments:

  1. भाई, आज तो अकेले चने ने भाड फोड दी।
    हम तो वैसे शाक भक्षी हैं, कश्मीरी वाजवान अपने ज्यादा काम का नहीं।
    फिर भी मस्त लिखा है।

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  2. Vaah, bahut badhiya post hai.
    Mujhe bhi Khane ka shauk hai,
    vibhinn pradeshon ke gramin anchal se lekar shahri khano swad liya hai.
    Niraj to shakbhakshi hai. par ham to sabhi tarah ke khano ka swad lete hai.

    swagat hai.

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  3. कुछ आपने बताया, कुछ हमें मालूम था,
    लेकिन हमें वहां जाकर खाने को छोडकर सब ठीक लगा, खास कर लेह का खाना अच्छा है,

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  4. मुंह में पानी भर आया :)

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  5. क्या कोई है जो अपनी भूमि में विश्व का अनोखा विषय-आधारित उद्यान सरलता से स्थापित करके उसे एक पर्यटन-स्थल बनाने का इच्छुक हो? सुमित 09425605432

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