Friday, May 20, 2011

lansedown.......उत्तरा खंड का एक छुपा हुआ स्वर्ग.

कई साल पुरानी बात है ....मै और धर्मपत्नी , हम लोग लखनऊ से जालंधर जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए .....ट्रेन थी हावड़ा अमृतसर एक्सप्रेस...जिसे duplicate हावड़ा भी कहते हैं .....ट्रेन थोड़ी लेट थी ......फिर भी हमें तसल्ली थी की सुबह 9 बजे तक तो जालंधर पहुँच ही जाएगी .......खैर खाया पिया और सो गए .......सुबह नींद खुली तो देखा की ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर खड़ी है ......मुझे अंदाजा था की अम्बाला आने वाला होगा ......पर पता लगा की भैया ये तो बस अभी मुरादाबाद से निकली ही है ......अरे बाप रे ...मर गए ......अब तो ये ट्रेन सारा दिन झेला देगी ......कमबख्त पता नहीं कहाँ खड़ी रही सारी रात .......सुबह सुबह मेरा मूड ऑफ हो गया ......सारा दिन इस गन्दी सी ट्रेन में बिताना पड़ेगा ..........और मैं इसके लिए कतई तैयार नहीं था ......सो मैंने अपने दिमाग को ठंडा किया और गंभीर चिंतन में डूब गया........और दुनिया भर की किताबें अखबार और magazines पढ़ के जो कुछ भी general knowledge जुटाया था अब तक ,उसे टटोलने लगा .......श्रीमती जी गधे बेच के सो रही थीं ........ ......ट्रेन उस छोटे से स्टेशन से चल चुकी थी ....10 मिनट बाद ही एक और स्टेशन आया ...नजीबा बाद .......और नजीबा बाद का बोर्ड देखते ही मेरे कान अल्सेशियन कुत्ते की तरह खड़े हो गए ......श्रीमती जी को झिंझोड़ के उठाया ......जल्दी उठो.......जल्दी करो ....उतरो ....उतरो जल्दी करो ......एक हाथ में चद्दर ,दुसरे में बैग और जूते और चप्पलें और और बाकी सारा सामन ले कर हम गिरते पड़ते ट्रेन से बहार आए और वो चल पड़ी .......खैर जब ट्रेन चली गयी तो श्रीमती जी नींद से जागी .......और धीरे धीरे उन्हें मामला समझ आया .......ये कहाँ उतर गए ......नजीबाबाद ???????? ये कहाँ आ गए ????? मैं तो समझी जालंधर आ गया .......फिर मैंने उन्हें पूरी बात शांति से समझाई ...और उन्हें ये बताया की हम अब जालंधर नहीं lansdowne जा रहे हैं .....और वाह रे मेरी बीवी ...एक समझदार आज्ञाकारी पत्नी की तरह मेरे पीछे पीछे चल दी .......वेटिंग रूम में हम फ्रेश हुए और स्टेशन से बहार एक शेयर taxi ले ली कोटद्वार के लिए ......कोटद्वार वहां से 20 किलो मीटर दूर है ......20 मिनट में ही पहुच गए .......अच्छा ख़ासा शहर है ,वहां से दूसरी share taxi ली .....और एक घंटे में हम lansdowne में थे ......कोटद्वार से lansdowne सिर्फ 40 किलोमीटर दूर है और तक्सी चलने के थोड़ी देर बाद ही नज़ारे आ जाते हैं ........यात्रा बड़ी मजेदार थी ......पिछली रात जम के बारिश हुई थी ....और एक दो जगह ठीक ठाक सी landslide हुई थी ...फिर भी रास्ता चालू था .....और जल्दी ही हम lansdowne पहुच गए ......और साहब क्या नज़ारा था ....चारो तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ ....सामने बर्फ से ढकी चोटियाँ दिख रही थी दूर दूर तक फैले oak और pine के जंगल ....पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा खेतों में धान की लहलहाती फसल ......बहुत ही खूबसूरत जगह थी .......हिल स्टेशन और वो भी बारिश के मौसम में ...वाह ......पहाड़ बरसातों में और भी खूबसूरत हो जाते हैं ..........घास हरी हो जाती है ....छोटी छोटी झाड़ियाँ पनप जाती हैं ...और धान के खेत लहलहाने लगते हैं .......और ऐसे मौसम में तो lansdowne का मज़ा ही कुछ और था ...यह लगभग 6000 फुट की ऊँचाई पर बसा हुआ एक छोटा सा पर बेहद खुबसूरत हिल स्टेशन है .......और इसकी खूबसूरती ये है की यह एक बहुत ही छोटा सा शहर है .....हमारी taxi शहर के बीचोबीच एक छोटे से मैदान में खड़ी हो गयी.और उस मैदान के इर्द गिर्द कोई 40 -50 दुकानें हैं ...छोटी छोटी .....जैसी किसी कसबे में होती हैं ....बस यही lansdowne शहर है ........और पूरे शहर में बमुश्किल 100 घर होंगे .......अब पहली समस्या थी होटल ....तो पता लगा की यहाँ कोई होटल वोटेल नहीं हैं .......एक कोई गुप्ता जी हैं जो कि एक हलवाई की दूकान चलते हैं और restaurant भी .....उन्होंने अपनी दूकान के ऊपर 2 कमरे बना रखे हैं .......सो उनका होटल तो हमने दूर से देख के ही रिजेक्ट कर दिया ........फिर पता लगा की गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस है ,थोड़ी दूर पे .........हम पैदल ही निकल लिए ....डर था की कमरा मिलेगा भी कि नहीं .....वहां पहुचे तो जी खुश हो गया ....क्या रेस्ट हाउस था .....बेहद खूबसूरत ...साफ़ सुथरा .......चमकता हुआ ........उत्तरा खंड सरकार के सारे गेस्ट हाउस शहर की सबसे अच्छी location पर बने होते हैं ........हमें देखते ही वहां का स्टाफ उछल पड़ा ...आइये आइये .....हमने डरते डरते पूछा ...कमरा है ......वो बोले हाँ साहब ज़रूर है .....दरअसल पूरा रेस्ट हाउस ही खली पड़ा था ........खैर हमने checkin किया .......और नहा धो के निकल पड़े घूमने .......पहले सोचा नाश्ता कर लेते हैं .......बाज़ार का चक्कर लगाया .....जहाँ भी गए तो दुकानदार ने खड़े हो के हँसते मुस्कुराते हुए स्वागत किया .......हम बड़े खुश कि देखो कितनी अच्छी जगह है ...कितने अच्छे लोग हैं ......इसका राज़ तो बहुत बाद में खुला ...दरअसल उस दिन उस हिल स्टेशन पर हम एक मात्र टूरिस्ट थे .....इसलिए लोग खुश थे कि चलो कोई तो आया ........हमें पता चला कि गर्मियों में तो कुछ लोग आते हैं पर बाकी सारा साल lansdowne एकदम खाली रहता है ......हमने एक छोटी सी दूकान पे हल्का सा नाश्ता किया और टहलने निकल गए ...........lansdowne दरअसल एक सैनिक छावनी है ....garhwaal regiment का सेण्टर है ....इस लिए इसका मुख्य आकर्षण वो आर्मी एरिया ही है .......और आर्मी एरिया ...आप जानते ही हैं कि कितना साफ़ सुथरा और शांत होता है ....सो दूर दूर तक साफ़ सुथरी ...सुनसान सडकें ....जगह जगह view points .....वहां फ़ौज ने बेंच लगा रखे थे .......tourists के बैठने के लिए .......हम बहुत देर तक उन सुनसान सड़कों पर टहलते रहे और प्रकृति का आनंद लेते रहे ...........

लंच
अब तक भूख लग आयी थी ......गुप्ता जी का restaurant देख के तो सुबह ही पेट भर गया था सो तय यह हुआ कि खाना ऐसी जगह खाया जाये जहाँ कि स्थानीय लोग खाते हों .....सो पूरा बाज़ार घूम दिया पर कुछ नहीं मिला ........तभी एक बहुत ही छोटी सी दूकान दिखी ......साफ़ सुथरी सी ......ऐसा लगा कि शायद यहाँ खाना मिलता
होगा .....जी हाँ .....एकदम सादा सा ढाबा था ..दाल 10 रु plate .....हमने कहा हम 15 देंगे पर तड़का हम लगायेंगे ......वो लड़का राज़ी हो गया ......उसने जल्दी से प्याज़ टमाटर काटे और हमने दाल सब्जी को तड़का लगाया ......और उस लड़के ने गरमा गरम रोटियां उतारनी शुरू की........वाह ....मज़ा आ गया ......आज 10 साल बाद भी मुझे उस दिन खाया वो खाना याद है ........कितने प्रेम से उस लड़के ने हमें भोजन कराया ....वो आज तक मेरे जीवन का सबसे स्वादिष्ट भोजन था .......और उस दिन हमें एक सबक मिल गया कि जहाँ भी जाओ कोई ऐसी जगह ढूंढो जहाँ मालिक आपको अपनी kitchen में घुसा ले ..........और उसके बाद हम न जाने कितनी ही बार ऐसा कर चुके हैं और हर जगह हमें कोई न कोई ऐसी दूकान मिल ही जाती है ......
शाम को हम फिर टहलने निकले ........और हमने एक पगडण्डी पकड़ ली ........और बहुत दूर तक उस पर चलते चले गए ........बहुत ही सुन्दर जगह थी ...बड़ा अच्छा लग रहा था .......अँधेरा धीरे धीरे होने लगा था ....सोचा किसी से रास्ता पूछ लेंगे आगे ....पर ऐसा सुनसान कि हमें दूर दूर तक कोई दिखा ही नहीं ......अब अचानक डर लगने लगा था .......हे भगवान् शहर से इतनी दूर jungle में और रास्ता बताने वाला भी कोई नहीं .........खैर बहुत देर बाद एक आदमी मिला और उसने रास्ता बताया ...और जब उस रस्ते पर चले तो ये क्या ....5 मिनट बाद हम शहर के बीचोबीच खड़े थे ......दरअसल हम पूरे शहर का चक्कर लगा आये थे .....उसके बाद हम एक दिन और वहां रहे ....अगले दिन हमने कुछ और view points से प्रकृति का नज़ारा लिया .......आर्मी का एक museum भी था ...वहां गए पर वहां धर्मपत्नी का प्रवेश वर्जित हो गया क्योंकि ..महिलाएं वहां सिर्फ saree या suit में ही जा सकती है और मैडम जी ने jeans पहन रखी थी .......लंच में हमने सिर्फ fruits खाने का निर्णय लिया और बाज़ार से ढेर सारे फल ले लिए ........रेस्ट हाउस कि kitchen से plate और चाकू लिया और बाहर बेंच पर बैठ गए ......fruit chaat बन ही रही थी कि अचानक एक बहुत बड़ा बादल आसमान से उतर के हमारे पास आ गया ....उस घने बादल के बीच वो fruit chaat .......मुझे वो दृश्य भुलाए नहीं भूलता है ...........हम कुल दो दिन वहां रहे ......उस शांत, सुनसान ,साफ़ सुथरे ,खाली खाली से हिल स्टेशन कि वो सैर मेरे जीवन के सबसे यादगार ट्रिप्स में से एक है .......यदि आप शहर के शोरगुल और भाग दौड़ से दूर कुछ दिन एकदम शांति और सुकून से बिताना चाहते हैं तो lansdowne से अच्छा कुछ नहीं ....वहां जाने के लिए दिल्ली से mussori express में 2 डब्बे कोटद्वार के लिए लगते हैं .....वैसे नजदीकी स्टेशन नजीबाबाद अम्बाला मुरादाबाद मेन लाइन पर पड़ता है ......अगर अप्रैल मई जून में जाना चाहें तो रेस्ट हाउस की अडवांस बुकिंग कराएँ ....बाकी साल भर तो lansdowne खाली ही रहता है ........पर सावधान ...बच्चों के लिए यहाँ कोई आकर्षण नहीं है ...और शौपिंग का कोई scope नहीं है ....पर वहां की लाल बर्फी ज़रूर taste करें ......



























12 comments:

  1. umda!! main milunga aapse aur aapki dharampatni se jarur. ye sab pdhke meri aapse milne ki aur ichha hoti hai, bharat mein jahan har addmi ko sbse pehle train mein chadhna aur utarna hota hai, aap chlti train chod k nikal liye, himmat hai janaab aur passion bhi. behtreen

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  2. sir ji aap ke blog main pictures ki kami khalti hai

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  3. aapke har blog main ek uniqueness hoti hai...dil se likhte ho aap, maza aa jaata hai pad ke....jaise sabzi ke upar dhaniya garnishing ke liye daalte hain vaise agar photo bhi daal dete to maza aa jaata :)

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  4. बहुत बढ़िया संस्मरण!
    कभी हम भी नजीबाबाद के ही मूल निवासी थे!
    कोटद्वार में सिद्धबली के दर्शनों को साल में एकबार जरूर जाते थे!

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  5. भाई जी,
    बच्चों के लिये भी कुछ है लैंसडाउन में। भुल्ला ताल है- शायद आपके उस जमाने में इतना विकसित ना हो।
    और भाई आपका स्टाइल बहुत पसन्द है मुझे।

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  6. धन्यवाद सभी दोस्तों को .....कल नीरज जाट जी के संस्मरण पढ़ के मुझे ये पोस्ट लिखने की प्रेरणा मिली .नीरज जी को तो हमने अपना गुरु मान लिया है ...घुमक्कड़ी में ....तरुण, deven ,मयंक जी, निशित जी ....सबको थैंक्स ........आप लोगों का सुझाव बहुत अच्छा है ..की फोटो भी मांगता है पर एक तो आज तक हमारे पास कैमरा ही नहीं था और अगर हुआ भी तो आज तक हमारा कोई टूर planned ही नहीं हुआ ..हमेशा यूँ ही बस चल पड़े ....पर आगे से ध्यान रखूँगा .....थैंक्स आप सब को
    अजित

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  7. u and monika had talked about the place so much that whenever we were planning a vacation,i'd suggest, Lansdowne :D
    so finally one summer we were able to go AND the place was beeautiful ,it was sooo nice and clean (thanx to army),the mad rush that we encounter on all popular hill stations wasnt there ...and what a relief it was
    and as is the case with all the beautiful hill stations we started dreaming about owning a nice cottage over there :P :D :D

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  8. मेरा नमस्कार,
    इसे ही असली घुमक्कडी कहते है, जैसे आप,

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  9. Indeed very good post.....inspiration milti hai aapse jab bhi mein aapka blog padta hun

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  10. एक बार मैं भी लैंसडाऊन के लिये निकला था और गाडी का एक्सीडेंट कर लिया। फिर टैक्सी से खिरसू घूमकर आ गया। वहां भी कुछ ऐसा ही माहौल था। मैं तो हमेशा ऑफसीजन में ही घूमना पसन्द करता हूँ। :)

    प्रणाम

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