Wednesday, May 25, 2011

अस्पृश्यता............तेरी छूआछूत बहुत खराब ..........मेरी छुआछूत बहुत अच्छी......

दो तीन साल पुरानी बात है ......हमारे गाँव में , घर पे कुछ निर्माण  कार्य चल रहा था.......बगल के गाँव के मिस्त्री और मजदूर काम कर रहे थे ....हमारे यहाँ ,पूर्वी उत्तरप्रदेश में मजदूरों को मजदूरी के साथ दिन का भोजन देना पड़ता है ......ग्रामीण समाज ,भारत में आज भी बहुत दकियानूसी सोच रखता है ........दलितों से आज भी अस्पृश्यता  का व्यवहार होता है .........लोग उन्हें आज भी पत्तल और कुल्हड़ में ही भोजन कराते हैं .......पर मैंने आज तक कभी इस  पुरानी ,घटिया , सड़ी गली परंपरा का पालन नहीं किया ........ मिस्त्री और दोनों मजदूर हरिजन ....यानी जात के चमार थे ...........पहले दिन जब भोजन का समय हुआ ,और जब भोजन परोसा गया तो वो लोग असहज हो गए .....और उन्होंने सकुचाते हुए कहा की बाबू ....हम तो चमार है ......यानी हम ठाकुर साहब कि थाली में कैसे खायेंगे .......हमारे लिए तो पत्तल लगाओ .......पर मैंने उन्हें समझा  दिया कि हम लोग कोई छुआछूत  नहीं मानते हैं .......मनुष्य तो सभी बराबर होते हैं ....वगैरा वगैरा .......और एक छोटा सा lecture पिला के उसको normal किया और बड़े प्रेम से .......बढ़िया भोजन कराया ..........अब वो तो साहब अपना फैन  हो गया ....एकदम भक्त टाइप ... हम तो उसके लिए एकदम गाँधी जी हो गए ......सारा दिन काम करता ......गप्पें मारता रहता ......काम करता रहता .......अब बातचीत में अक्सर ऐसे topic छिड़ ही जाते थे जहाँ मैं अपनी progressive सोच ज़ाहिर कर देता ........तो साहब 4 -5 दिन में तो वो एकदम परमानेंट भक्त बन गया ........उसका बस चलता तो वो अपने गाँव में  बाबा साहेब की मूर्ति के बगल में मेरी भी मूर्ती लगवा देता .........खैर साहब छठे दिन हुआ यूँ कि काम कुछ ज्यादा था सो एक मजदूर और बढ़ा दिया गया ,और वो चौथा मजदूर हमारे ही गाँव का एक मुसहर था ........मुसहर यानि एक अति दलित जाति जो कि दलितों में भी सबसे निचले पायदान पे हैं ....... यानी महा दलित .......तो जब दोपहर में जब भोजन का समय हुआ और सब लोग खाने बैठे तो मुसहर की भी थाली लगी ........और वो पट्ठा हाथ मुह धो के जब लाइन में बैठा तो मिस्त्री भड़क गया ..........हे तू यहाँ कैसे ........चल उधर चल के बैठ ........मैंने उस से पूछा कि क्यों क्या हुआ ?????   तो वो बोला हमलोग इसके साथ बैठ के नहीं खायेंगे ......इसके लिए अलग से पत्तल लगाओ ........इतना सुन के मैंने वो गाँधी जी वाला चोंगा जो मैंने 5 -6 दिन से ओढ़ रखा था उतार फेंका ....और असली ठाकुर साहब हो गया ......और उसे मैंने समझा दिया कि बेटा ....ये तो यहीं खायेगा ......हाँ तुम्हारे लिए अब अलग से पत्तल और पुरुआ लगेगा .........तो साहब उन  श्रीमानजी  ने दो दिन तक सबसे अलग बैठ के पत्तल में भोजन ग्रहण किया .....और पूरे दो दिन तक उनको महात्मा गाँधी से ले कर  नेल्सन मंडेला तक का दर्शन शास्त्र पढ़ाया गया .......और फिर तीसरे दिन उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की कि उन्हें वापस बिरादरी में शामिल कर लिया जाए ......और वो उस मुसहर के साथ बैठ के एक ही थाली में खाने को तैयार हो गए .......
                                            ये हमारे देश के दलित आन्दोलन की बहुत ही कडवी सच्चाई है .....हमारे पोलिटिकल  लीडर्स ने सामजिक न्याय के नाम पर ये नकली लड़ाई पिछले पैंसठ  साल में लड़ी है ..........दलितों में भी एक creamy layer बना दी गयी है ....और आरक्षण की पूरी मलाई इस creamy layer ने ही खाई है ......इस से वो creamy layer तो मोटी  होती चली गयी और बेचारे महा दलितों की स्थिति और ज्यादा खराब होती चली गयी .........आज देश में जो naxalite और माओवादी movement चल रहा है उसके मूल कारणों  में ये भी एक है .......इन महा दलितों को समाज की मुख्या धारा में शामिल करने का कभी प्रयास नहीं किया गया ......राम विलास पासवान ,मायावती ,लालू प्रसाद यादव ,मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस हमेशा से अपने आप को इनका मसीहा घोषित करते रहे हैं ....अब बिहार में पहली बार नितीश कुमार ने इन महा दलितों के लिए एक सकारात्मक पहल की है .....बाबा रामदेव जी के नेतृत्व में भी इस दिशा में बहुत अच्छा काम हो रहा है .....दिव्य योग पीठ हरिद्वार के कार्यकर्ता सुदूर गाँव में जा कर जगह जगह सामूहिक  योग शिविर लगा के जनजागरण का कार्य कर रहे हैं ......इनके शिविरों में सभी लोग जात पात भुला कर एक साथ भोजन करते हैं ......राष्ट्र को एक नए समाज सुधार आन्दोलन की ज़रुरत है .......honour killing जैसी समस्याओं से  सिर्फ क़ानून बना कर नहीं निपटा जा सकता .





4 comments:

  1. यह लोग वह वोटर है जिन को चुनाव घोषणा पत्र नहीं दिखाना पड़ता
    और यह लोग उस को देखना भी नहीं चाहते
    यह लोग अपने लेबल से खुश भी हैं
    नहीं तो caste portability की बात करते

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  2. गाँवो की यही स्थिति है, मैं भी इससे दो-चार हो चुकी हूँ। इन्‍होने आपस में ही कई वर्ग बना लिए हैं। बहुत अच्‍छा कार्य कर रहे हैं आप।

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  3. ek sawaal: kya is blog ko likhne wale ki itani aukaat hai ki PM ki thali me khana kha ke dikha de..... nahi kyuki wo usaki nazro me kuch nahi hai.... aur dalito ko khana isliye khilatey ho kyuki tumko jaroorat hai

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