Tuesday, May 31, 2011

गीला जैसलमेर और सूखी चेरापूंजी

पिछले दिनों एक लेख  पढ़ा ...शायद भास्कर में ......की जैसलमेर में साल में औसतन 11 दिन बारिश होती है और चेरापूंजी में 180 दिन .......सो मन हुआ की इसपे ज़रा और जानकारी जुटाई जाये .......सो पता लगा की जैसलमेर जो की एक सूखा रेगिस्तान है ...जहाँ रेत के सिवाय और कुछ नहीं है औसतन 150 मिली मीटर यानी 6 इंच ही बारिश होती है साल भर में ..........और चेरापूंजी .जो की विश्व का दूसरा सर्वाधिक गीला यानि  wet स्थान है वहां औसतन 11777 मिली मीटर या 464 इंच वर्षा होती है हर साल ....यानि की साल में औसतन 180 दिन जम के पानी बरसता है ......अब सुनिए असली बात ...वो ये की जैसलमेर में कभी भी यानी साल भर लोगों को पानी की कमी से नहीं जूझना  पड़ता यानी की .....पीने और नहाने धोने के लिए पर्याप्त पानी लोगों के पास रहता है साल भर और सुनते हैं की अपनी चेरापूंजी का ये हाल है भैया की वहां के लोग पानी की भयंकर कमी से परेशान हैं और बेचारी औरतें कई कई किलोमीटर पैदल चल के पीने लायक पानी ढो कर लाती हैं ........क्यों चकरा गए न आप भी   ? ? ? ? तो भैया सोचने वाली बात है की ऐसा क्यों है  ? सीधी सी बात है ......जैसलमेर तो सदियों से सूखा रहा है ....पानी हमेशा से ही वहां एक दुर्लभ और अत्यंत कीमती संसाधन रहा है इस लिए हमेशा से ही लोग उसे सहेजते आये हैं ...उन्हें मालूम है की पानी की एक एक बूँद की क्या कीमत होती है ......और उसे कैसे बचा के रखना है ............इस लिए वहां एक बूँद पानी भी सम्हाला जाता है ........हर घर में एक छोटी सी बावड़ी होती है और वर्षा का सारा पानी उसमे इकठ्ठा होता है ...गाँव और शहर के चारों ओरे तालाब ही तालाब होते हैं .......बावड़ियाँ होती हैं ....और उन्हें भी हमेशा सहेज के रखते हैं लोग .........जहाँ कहीं भी पानी है उसके आसपास एकदम साफ़ सफाई रखते हैं ....समाज का सबसे बड़ा धार्मिक कार्य बावड़ी ,तालाब और कूआं खुदवाना ही माना जाता है ...लोग धर्मार्थ  प्याऊ चलते हैं .......स्वाभाविक सी बात है ऐसी जगह पानी की कमी कैसे हो सकती है .........
                                   अब देखिये चेरापूंजी वालों को ....उन्होंने पानी की इज्ज़त कभी की नहीं .....ये तो उनके संस्कारों में ही नहीं है .....सो लो भोगो अब ......श्रीमान जी लोग एक एक बूँद के लिए तरस रहे हैं .......पर फिर भी सुधरने को तैयार नहीं हैं ....अभी भी वाटर मैनेजमेंट सीखने को तैयार नहीं हैं ..........हाँ सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन चालू आहे .......हुआ यूँ की एक घुड़सवार सरपट दौड़ा चला जा रहा था ...रास्ते में उसने देखा की दो लोग आम के पेड़ के नीचे लेटे हैं  और उनमे से एक हाथ हिला कर उसे बुला रहा है ....उसने सोचा की मुसीबत में लगते है........ भला आदमी था .....घोडा मोड़ के वापस लाया ....तो एक आदमी बोला ....भैया वो सामने जो आम पड़ा है वो पकड़ा दो .....अब घुड़सवार को बहुत गुस्सा आया ...उसने कहा की बड़े आलसी आदमी हो यार तुम ....एक आम नहीं उठा कर खा सकते ........इसपर वो दूसरा आदमी जो लेटा था बोल पड़ा की ठीक कहते हो भाई तुम ....ये सचमुच बहुत ही निकम्मा और आलसी आदमी है ......कल सारी रात कुत्ता मेरा मुह चाटता रहा पर इसने एक बार भी नहीं भगाया .........ठीक यही हाल है अपने चेरापूंजी वालों का ....प्यासे मर जायेंगे पर सुधरेंगे नहीं ..........
                                       तो भाइयों मुझे तो ये समझ आया की महत्व इस बात का नहीं है की ईश्वर ने आपको कितना दिया ....बल्कि ये महत्त्वपूर्ण है की उसने आपको जो कुछ भी, थोडा बहुत, दिया है उसे आपने कितना सम्हाल कर रखा और उसका कितना सदुपयोग किया ......अब चाहे वो बुद्धि हो, बल हो, talent हो ,अवसर हों ,विद्या हो या संसाधन हों ..........बहुत थोड़े से भी असीम सुख प्राप्त किया जा सकता  है .............और बहुत ज्यादा होने पर भी सुख की कोई guarentee नहीं है
.......वैसे जैसलमेर और चेरापूंजी दोनों ही बहुत खूबसूरत जगहें हैं .............घूमने लायक .........जैसलमेर मैं देख आया हूँ ...चेरापूंजी बाकी है .....अगली पोस्ट में आपको जैसलमेर की सैर कराऊंगा ............

3 comments:

  1. भारत के विभिन्‍न भागों में जितनी भौगोलिक विभिन्‍न्‍ता पाई जाती है, वह शायद ही किसी और देश में। चेरापूंजी हो या जैसलमेर, कश्‍मीर की वादियां हों या केरल के वर्षावन सभी अपने आप में अनोखे हैं। भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति डॉ0 राजेन्‍द्र प्रसाद ने तो एक बार कहा था कि यदि किसी विदेशी को पहली बार भारत भ्रमण का अवसर मिले तो वह घबराकर कह उठेगा कि यह कोई एक देश नहीं बल्कि कई देश हैं। अच्‍छी पोस्‍ट, जैसलमेर के यात्रावृत्‍त का इंतजार रहेगा।

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  2. जैसलमेर के यात्रावृत्‍त का इंतजार

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  3. इस प्रसंग के लिये धन्यवाद

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