एक बार की बात है ...हम दोनों मियां बीवी को सैदपुर से बनारस किसी काम से जाना था .......दूरी है यही कोई 40 किलोमीटर ......और हमारे यहाँ उस route पर बस सेवा बहुत अच्छी है ...हर पांच मिनट में बस है ..पर बस की यात्रा बहुत नीरस होती है ...ट्रेन की यात्रा में जो मज़ा है .....जो रोमांच है ......वो बस या कार में कहा .....ट्रेन से भी अच्छी यात्रा अगर कोई है तो वो bike पे ...वरना ट्रेन इस द बेस्ट ......सो हम लोग भैया स्टेशन पहुंचे तो पता लगा की शाम तक कोई गाड़ी नहीं है ........अब ???? तभी एक परिचित मिल गए ...वो वहीँ उसी रेलवे स्टेशन पर किसी विभाग में तैनात थे ...दुआ सलाम के बाद उन्होंने बताया की गाडी तो कोई नहीं है ....हाँ ये जो माल गाडी खड़ी है ये जायेगी थोड़ी देर में ....पर फिर उन्होंने मैडम को देखा और सकपका गए ...... हमने उन्हें ढाढस बधाया और कहा की परेशान न हों ...इन्हें मालगाड़ी की यात्रा से कोई परहेज़ नहीं है ......बल्कि इनको तो अगर option दे दिया जाए की मालगाड़ी में चलना है या passenger ट्रेन में, तो ये शायद माल गाड़ी को ही prefer करेंगी ......ये सुन के उन्हें भी संतोष हुआ और हम लोग हो गए सवार.... पीछे गार्ड के डिब्बे में ... ( मेरी बीवी की ये खासियत है की उसने हर अच्छे और बुरे काम में मेरा भरपूर साथ दिया है ...जैसे की मैं जब भी रेड लाइट jump करता हूँ तो इसके पीछे उसी की प्रेरणा होती है) ......और हमारे बैठते ही माल गाडी चल पड़ी ....और चली भी धुआंधार......दो स्टेशन तो वो नॉन स्टॉप गयी ....और गार्ड का डब्बा भी क्या हिचकोले खाता है ....जब गाड़ी चलती है फुल स्पीड से .......तब तक गार्ड साहब से दोस्ती हो ही गयी थी ...वो भी अपने आप को धन्य समझ रहे थे हमें लिफ्ट दे के .......और हमने भी उस यात्रा में खूब अपना GK बढ़ाया ...और रेलवे का आधा ज्ञान तो अर्जित कर ही लिया उस दिन ........गाडी दो स्टेशन बाद जा के रुक गयी ...चलो भैया ....crossing .......गार्ड साहब ने वाकी टाकी पर संपर्क कर के बताया की दो गाड़ियाँ cross होंगी तब अपनी गाडी चलेगी यानी कम से कम आधा घंटा .....तो हमने सुझाव दिया की चल के चाय पी जाए ....गाडी एक बहुत छोटे से स्टेशन पर खड़ी थी ....जहाँ एक छोटी सी दुकान थी ....उसने चने की घुघनी बना रखी थी ....ये एक ऐसी dish है जो पूर्वांचल की हर दुकान पे सुबह सुबह मिल ही जाती है ........घुघनी यानि भीगे चने थोड़े से तेल में प्याज और हरी मिर्च के साथ भून दिए जाते हैं कडाही में .....एकदम देसी और मस्त .....फिर हमने सिफारिश कर दी की भैया मकुनी बनाओ ......वो भी तकरीबन हर चाय की दुकान पर बनती ही है ....दुकान दार ने फट से कडाही चढ़ाई और ताज़ी ताज़ी मकुनी गढ़ दी ....मकुनी means ......आटे में सत्तू की filling ...... सत्तू mixed with प्याज ....and different masalas ...and deep fried ....eaten with चटनी ....... दो रूपये की एक ..सस्ती सुन्दर ..टिकाऊ .......इस मस्त नाश्ते के दौरान ही स्टेशन मास्टर का मेसेज आ गया गार्ड साहब को की भैया जल्दी करो लाइन clear दे रहा हूँ ...... हम लोग भाग के अपने डब्बे में पहुंचे और चल पड़ी गाडी ......तभी धर्मपत्नी को ध्यान आया की उन्होंने बचपन में किसी क्लास में पढ़ा था की चलती गाडी में पत्थर उछालो तो वो पीछे नहीं छूट जाता बल्कि आपके साथ साथ ही चलता है और वापस हाथ में ही आता है .......पर ये तो सिर्फ theory में पढ़ा था ...प्रैक्टिकल थोड़े ही किया था .......सो आज मौका मिल गया था इस theory की सत्यता को जांचने का .......पर पत्थर कहाँ से आये ...चलती गाड़ी में ........चलो पत्थर न सही ...पेन ही सही .......तो साहब हम लोग लगे पेन उछाल उछाल के catch करने ....पर अभी थोड़ा थोड़ा उछाल रहे थे .....सबने बारी बारी try किया और theory प्रथम द्रष्टया तो सही पायी गयी .....गार्ड साहब भी हमारे साथ शामिल हो गए ........जबकि मैंने उन्हें बहुत समझाया की भैया ...तुम हमारे चक्कर में मत पड़ो ...चुप चाप गाडी चला लो अपनी ...वरना बाद में ये मत कहना की इन लोगों के चक्कर में नौकरी चली गयी मेरी ......पर उन्होंने भी अपनी नौकरी की परवाह नहीं की और इस खेल में शामिल हो गए ....पर अभी इस theory के और ज्यादा trials बाकी थे और उसके लिए पत्थरों की सख्त दरकार थी ....अब पत्थर तो तभी मिलेंगे जब गाड़ी रुकेगी .....सो हम लोग मनाने लगे की गाड़ी किसी तरह रुक जाए पर वो कमबख्त दो स्टेशन फिर nonstop पार कर गयी ......पर उस दिन भगवान् जीवन में पहली बार academically हमारे favour में था और वो भी चाहता था की ये बच्चे physics के इस सिद्धांत में पारंगत हो जाएँ सो अगले स्टेशन के outer पे जा के गाडी खड़ी हो गयी. हमलोगों ने जल्दी से 10 -15 पत्थर उठा लिए पटरी से ........और भैया जब मालगाड़ी फिर से चली तो लगे ऊंचा ऊंचा उछाल के देखने .......पहले थोड़ा ऊंचा...... फिर और ज्यादा ...फिर उससे भी ज्यादा ......और यकीन मानिए .....हर बार पत्थर वापस हाथ में ही आता था ........और ये की वो गार्ड साहब सबसे अच्छा उछालते और catch करते थे .........बहुत ऊंचा उछालने की वजह से कुछ पत्थर ज्यादा दूर चले गए ...और वापस हाथ नहीं आये और सबसे ज्यादा पत्थरों का loss श्रीमती जी ने किया .........पर उस दिन ये prove हो गया की ये theory बिलकुल सही है और हमें physics के सभी सिद्धांतों में अटूट श्रद्दा हो गयी ........चाहे कुछ हो जाये physics की book में कुछ गलत नहीं लिखा हो सकता ......खैर रुकते रुकाते वो मालगाड़ी जब बनारस पहुंची तो दिन के डेढ़ बज रहे थे ....यानी 40 किलोमीटर की यात्रा पूरे 4 घंटे में ......थोड़ी धीमी थी पर यकीन मानिए मज़ा बहुत आया उस यात्रा में ....ये बात दीगर है की जिस काम के लिए बनारस गए थे वो नहीं हुआ क्योकि लेट हो गए थे ...........और उस दिन एक और बात ये सीखने को मिली की यात्रा मालगाड़ी की भी..... खराब नहीं होती ........
अजित भाई..
ReplyDeleteअभी ग्रुप से आप का ईमेल मिला...लेख बहुत शानदार है...
अगर आप चाहे आप पूर्वांचल से जुड़े है तो आयें, पूर्वांचल ब्लोगर्स असोसिएसन: पर ..आप का सहयोग संबल होगा पूर्वांचल के विकास में..
अनुभव होना कम महत्वपूर्ण नहीं ... अच्छा ला आपके वृतांत को पढ़ना
ReplyDeletemaalgari ki yatra ....achchhi lagi:)
ReplyDeleteOh, as a student of Physics this blog was unusually entertaining for me :D
ReplyDeleteAnd the adventures that you and Mami have together ALWAYS get me so thrilled!
Now I'll make sure the next time I go to Benaras I'm gonna try this :D
रोचक संस्मरण। खेल-खेल में फिजिक्स का सिद्धांत भी समझा दिया आपने।
ReplyDeleteबहुत रोचक यात्रा वृतांत है ....आपने सफ़र भी अजीब तरीके से किया और सफ़र में समय का पूरा लाभ लेते हुए खेल खेल में भौतिकी के सिद्धांत को भी प्रमाणित किया ....अच्छा है यह प्रयास भी ......!
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .
विज्ञान की प्रयोगशाला और सफर ...
ReplyDeleteवाह सुन्दर अनुभव से रूबरू करवाया.
धन्यवाद सभी दोस्तों को ...ब्लॉग पढने के लिए और मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए .......केवल राम जी को विशेष धन्यवाद .....एक बहुत अच्छे सुझाव के लिए ...केवल जी word verification हटा दिया है
ReplyDeleteॐ
वृतांत अच्छा लगा .. खेल खेल में सिद्धांत की परख और सफर पूरा हुआ
ReplyDeleteएक और शानदार यात्रा संस्मरण
ReplyDeleteमजा आ गया
Waah
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