कुछ साल पहले की बात है ...सुबह सुबह शिव खेडा का interview आ रहा था टीवी पर ......देश में आम चुनाव होने वाले थे और वो चुनाव लड़ने जा रहे थे ......सो interview में वो व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे थे . पूछने वाले ने पूछा की आप अकेले क्या कर लेंगे ......अकेला चना कौन सा भाड़ फोड़ लेगा .....जो जवाब उन्होंने दिया वो आज तक याद है मुझे ....अरे आज तक जिसने भी भाड़ फोड़ा वो अकेला ही था .....गाँधी ......महर्षि दयानंद....राम मोहन रॉय .....बुद्ध ....सब अकेले ही तो चले थे ......जब मैं अपने ब्लॉग का नाम रखने लगा तो यूँ ही मुझे ये बात याद आ गयी और मैंने नाम रख दिया........ अकेला चना ........कल बैठे बैठे एक और किस्सा याद आ गया ..........एक और अकेला चना हुआ है हमारे देश में जिसने ऐसा भाड़ फोड़ा जो सरकार नहीं फोड़ पायी 60 साल में ........
बिहार के गया जिले में एक गाँव है गहलौर ......उसमे एक आदमी हुआ है ....नाम था दशरथ मांझी .......अब गहलौर गाँव की समस्या ये है की वो एक छोटी सी पहाड़ी से घिरा हुआ है और गाँव वालों को हर काम करने के लिए उसके उस पार जाना पड़ता है .....सबसे नज़दीक क़स्बा लगभग 60 किलोमीटर दूर है ......हुआ यूँ की एक दिन दशरथ मांझी पहाड़ी के उस पार खेतों में काम कर रहे थे और उनकी पत्नी फागुनी देवी उनके लिए भोजन पानी ले के आ रही थीं .....तभी उनका पाँव फिसल गया और वो घायल हो गयी ........इस एक छोटी सी घटना ने दशरथ मांझी को प्रेरित किया और उन्होंने ठान लिया की इस पहाड़ी को काट कर के आने जाने लायक रास्ता बनाना है .........एक हथौड़ी ....एक छेनी ...और एक तसला ले कर जुट गया वो आदमी अपने काम में ........शुरू में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ..........घरवाली बोली ये क्या काम फान दिया ....लड़के बोले पागल है .....पर दशरथ मांझी लगे रहे .......बस लगे रहे ....और दो चार दिन या महीना दो महीना नहीं .........पूरे 22 साल अकेले लगे रहे ........इस बीच गाँव वालों को कौतूहल तो होता था .....कुछ लोग आते थे कभी कभी देखने ....बाद में कुछ लोगों ने दशरथ को छेनी ..हथौड़ी वगैरह देना शुरू कर दिया ...अपनी तरफ से ....पर पूरे 22 साल वो अकेले लगे रहे ......हाँ एक अच्छी ...आज्ञाकारी पतिव्रता पत्नी का धर्म निर्वहन करते हुए उनकी पत्नी रोज़ दिन में दो बार उनका खाना पानी ले कर आती थी ....और अंत में 22 साल बाद उस आदमी का सपना पूरा हुआ जब उसने उस पहाड़ी की छाती चीर के 360 फुट ( 110 मीटर ) लम्बा ,25 फुट (7 .6 मीटर ) गहरा और 30 फुट ( 9 .1 ) मीटर चौड़ा रास्ता बना डाला ...........एकदम निपट अकेले ....बिना किसी सहायता के .......बिना किसी प्रोत्साहन के ....और बिना किसी प्रलोभन के .......वो आदमी पूरे 22 साल लगा रहा ........न दिन देखा न रात ....न धूप देखी, न छाँव .......न सर्दी न बरसात ......वहां न कोई पीठ ठोकने वाला था ....न शाबाशी देने वाला ....उलटे गाँव वाले मज़ाक उड़ाते थे ....परिवार के लोग हतोत्साहित करते थे .......22 साल तक वो आदमी अपना काम धाम छोड़ के लगा रहा .....अरे कही किसी के खेत में काम करता तो पेट भरने लायक अनाज या मजदूरी तो पाता .......हम लोग exercise करने जाते हैं तो एक ग्रुप बना लेते हैं ...अकेले मन नहीं करता ...कुछ लोग साथ होते हैं तो अच्छा लगता है .....वो आदमी अकेला लगा रहा ...उस सुनसान बियाबान में .......और एक बात बता दूं ....गर्मियों में उस जगह का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच जाता है .......खैर 22 साल बाद, जब वो सड़क या यूँ कहें रास्ता बन कर तैयार हो गया तो उस इलाके के गाँव वालों को अहसास हुआ अरे ........ये क्या हुआ ......गहलौर से वजीरगंज की दूरी जो पहले 60 किलोमीटर होती थी अब सिर्फ 10 किलोमीटर रह गयी है ............बच्चों का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब सिर्फ 3 किलोमीटर रह गया है .......पहले अस्पताल पहुँचने में सारा दिन लग जाता था ...उस अस्पताल में अब लोग सिर्फ आधे घंटे में पहुँच जाते हैं ......आज उस रास्ते को उस इलाके के 60 गाँव इस्तेमाल करते हैं ............
धीरे धीरे लोगों को दशरथ मांझी की इस उपलब्धि का अहसास हुआ ....बात बाहर निकली ........पत्रकारों तक पहुंची .......news papers , magazines में छपने लगा तो सरकार तक भी खबर पहुंची ........नितीश बाबू ने कहा सम्मान करेंगे ......जो सड़क काट के बनायी है उसे PWD से पक्का करवाएंगे जिससे की ट्रक बस आ सके ..........गहलौर से वजीर गंज तक पक्की सड़क बनवायेंगे ......बिहार सरकार का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया ........भारत सरकार को पद्मभूषण देने के लिए नाम प्रस्तावित किया ...........पर वाह रे मेरे भारत देश ...वाह .......आगे क्या हुआ ?????? सुनिए ........
1 ) वन विभाग बोला की दशरथ मांझी ने गैर कानूनी काम किया है ......हमारी ज़मीन को हमसे पूछे बिना कैसे खोद दिया .........इसलिए उसपे पक्की सड़क नहीं बन सकती .......वन विभाग ने कोर्ट से stay ले लिया है ..........दशरथ मांझी पिछले साल मर गए ........वो रास्ता आज भी वैसा ही है जैसा वो छोड़ कर मरे थे ....गाँव वाले किसी तरह वहां से साइकिल ,मोटर साइकिल वगैरह निकाल लेते हैं ...........
2 ) वजीर गंग से गहलौर वाली सड़क अभी तक अटकी हुई है क्योंकि वन विभाग की ज़मीन पर PWD कैसे सड़क बना देगी ??????
3 ) भारत सरकार के बड़े बाबुओं ने पद्म भूषण ठुकरा दिया .....ये कह के की पहले जांच कराओ की क्या वाकई एक आदमी ने ही अकेले इतना बड़ा पहाड़ खोद दिया ......कैसे खोद सकता है ....ज़रूर अन्य लोगों ने मदद की होगी .........prove करो की अकेले ही खोदा है .........
इस पूरी कहानी का सबसे दर्दनाक पहलू ये रहा की 22 साल की इस लम्बी घनघोर तपस्या में सिर्फ एक आदमी ......जो दशरथ मांझी के साथ खड़ा रहा .........उनकी पत्नी फागुनी देवी ....वो उस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं रही जब वो सपना पूरा हुआ ...........रास्ता बन कर तैयार होने से लगभग दो साल पहले वो बीमार हुई और सारा दिन लग गया उन्हें अस्पताल पहुंचाने में ......और रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी ........
.वो पहाड़ जो दशरथ मांझी ने खोद डाला ....अकेले ......
बिहार के गया जिले में एक गाँव है गहलौर ......उसमे एक आदमी हुआ है ....नाम था दशरथ मांझी .......अब गहलौर गाँव की समस्या ये है की वो एक छोटी सी पहाड़ी से घिरा हुआ है और गाँव वालों को हर काम करने के लिए उसके उस पार जाना पड़ता है .....सबसे नज़दीक क़स्बा लगभग 60 किलोमीटर दूर है ......हुआ यूँ की एक दिन दशरथ मांझी पहाड़ी के उस पार खेतों में काम कर रहे थे और उनकी पत्नी फागुनी देवी उनके लिए भोजन पानी ले के आ रही थीं .....तभी उनका पाँव फिसल गया और वो घायल हो गयी ........इस एक छोटी सी घटना ने दशरथ मांझी को प्रेरित किया और उन्होंने ठान लिया की इस पहाड़ी को काट कर के आने जाने लायक रास्ता बनाना है .........एक हथौड़ी ....एक छेनी ...और एक तसला ले कर जुट गया वो आदमी अपने काम में ........शुरू में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ..........घरवाली बोली ये क्या काम फान दिया ....लड़के बोले पागल है .....पर दशरथ मांझी लगे रहे .......बस लगे रहे ....और दो चार दिन या महीना दो महीना नहीं .........पूरे 22 साल अकेले लगे रहे ........इस बीच गाँव वालों को कौतूहल तो होता था .....कुछ लोग आते थे कभी कभी देखने ....बाद में कुछ लोगों ने दशरथ को छेनी ..हथौड़ी वगैरह देना शुरू कर दिया ...अपनी तरफ से ....पर पूरे 22 साल वो अकेले लगे रहे ......हाँ एक अच्छी ...आज्ञाकारी पतिव्रता पत्नी का धर्म निर्वहन करते हुए उनकी पत्नी रोज़ दिन में दो बार उनका खाना पानी ले कर आती थी ....और अंत में 22 साल बाद उस आदमी का सपना पूरा हुआ जब उसने उस पहाड़ी की छाती चीर के 360 फुट ( 110 मीटर ) लम्बा ,25 फुट (7 .6 मीटर ) गहरा और 30 फुट ( 9 .1 ) मीटर चौड़ा रास्ता बना डाला ...........एकदम निपट अकेले ....बिना किसी सहायता के .......बिना किसी प्रोत्साहन के ....और बिना किसी प्रलोभन के .......वो आदमी पूरे 22 साल लगा रहा ........न दिन देखा न रात ....न धूप देखी, न छाँव .......न सर्दी न बरसात ......वहां न कोई पीठ ठोकने वाला था ....न शाबाशी देने वाला ....उलटे गाँव वाले मज़ाक उड़ाते थे ....परिवार के लोग हतोत्साहित करते थे .......22 साल तक वो आदमी अपना काम धाम छोड़ के लगा रहा .....अरे कही किसी के खेत में काम करता तो पेट भरने लायक अनाज या मजदूरी तो पाता .......हम लोग exercise करने जाते हैं तो एक ग्रुप बना लेते हैं ...अकेले मन नहीं करता ...कुछ लोग साथ होते हैं तो अच्छा लगता है .....वो आदमी अकेला लगा रहा ...उस सुनसान बियाबान में .......और एक बात बता दूं ....गर्मियों में उस जगह का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच जाता है .......खैर 22 साल बाद, जब वो सड़क या यूँ कहें रास्ता बन कर तैयार हो गया तो उस इलाके के गाँव वालों को अहसास हुआ अरे ........ये क्या हुआ ......गहलौर से वजीरगंज की दूरी जो पहले 60 किलोमीटर होती थी अब सिर्फ 10 किलोमीटर रह गयी है ............बच्चों का स्कूल जो 10 किलोमीटर दूर था अब सिर्फ 3 किलोमीटर रह गया है .......पहले अस्पताल पहुँचने में सारा दिन लग जाता था ...उस अस्पताल में अब लोग सिर्फ आधे घंटे में पहुँच जाते हैं ......आज उस रास्ते को उस इलाके के 60 गाँव इस्तेमाल करते हैं ............
धीरे धीरे लोगों को दशरथ मांझी की इस उपलब्धि का अहसास हुआ ....बात बाहर निकली ........पत्रकारों तक पहुंची .......news papers , magazines में छपने लगा तो सरकार तक भी खबर पहुंची ........नितीश बाबू ने कहा सम्मान करेंगे ......जो सड़क काट के बनायी है उसे PWD से पक्का करवाएंगे जिससे की ट्रक बस आ सके ..........गहलौर से वजीर गंज तक पक्की सड़क बनवायेंगे ......बिहार सरकार का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया ........भारत सरकार को पद्मभूषण देने के लिए नाम प्रस्तावित किया ...........पर वाह रे मेरे भारत देश ...वाह .......आगे क्या हुआ ?????? सुनिए ........
1 ) वन विभाग बोला की दशरथ मांझी ने गैर कानूनी काम किया है ......हमारी ज़मीन को हमसे पूछे बिना कैसे खोद दिया .........इसलिए उसपे पक्की सड़क नहीं बन सकती .......वन विभाग ने कोर्ट से stay ले लिया है ..........दशरथ मांझी पिछले साल मर गए ........वो रास्ता आज भी वैसा ही है जैसा वो छोड़ कर मरे थे ....गाँव वाले किसी तरह वहां से साइकिल ,मोटर साइकिल वगैरह निकाल लेते हैं ...........
2 ) वजीर गंग से गहलौर वाली सड़क अभी तक अटकी हुई है क्योंकि वन विभाग की ज़मीन पर PWD कैसे सड़क बना देगी ??????
3 ) भारत सरकार के बड़े बाबुओं ने पद्म भूषण ठुकरा दिया .....ये कह के की पहले जांच कराओ की क्या वाकई एक आदमी ने ही अकेले इतना बड़ा पहाड़ खोद दिया ......कैसे खोद सकता है ....ज़रूर अन्य लोगों ने मदद की होगी .........prove करो की अकेले ही खोदा है .........
इस पूरी कहानी का सबसे दर्दनाक पहलू ये रहा की 22 साल की इस लम्बी घनघोर तपस्या में सिर्फ एक आदमी ......जो दशरथ मांझी के साथ खड़ा रहा .........उनकी पत्नी फागुनी देवी ....वो उस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं रही जब वो सपना पूरा हुआ ...........रास्ता बन कर तैयार होने से लगभग दो साल पहले वो बीमार हुई और सारा दिन लग गया उन्हें अस्पताल पहुंचाने में ......और रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी ........
.वो पहाड़ जो दशरथ मांझी ने खोद डाला ....अकेले ......