हमारे गाँव में मुसहर जाती के लोग रहते हैं ......पूरे UP और बिहार में रहती है ये जाती .....बड़े फक्कड़ मस्त किस्म के लोग होते है ....आज़ाद पंछी .......कहीं एक जगह टिक के नहीं रहते .......अलग पहचान में आते हैं ...एकदम काले रंग के ....गाँव से अलग दूर बस्ती होती है इनकी.....अक्सर सूअर पालते हैं .........पर कोई काम या नौकरी टिक के नहीं करते ....जब मन किया उठ के चल दिए .........पर बड़े मेहनती होते हैं ....बहुत ही जीवट वाले ....अब इनके बारे में एक और बात जो बहुत प्रचलित है ,वो ये की ये चूहे मार के खाते है ....इस से इन बेचारों को बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है ..........समाज में अगर कोई अति दलित ...बल्कि महा दलित .......वो तथा कथित सीढ़ी के आखिरी पायदान पर बैठा व्यक्ति अगर कोई है ........तो मुसहर ...........अब मैंने एक बार ये जानने की कोशिश की, की ये चूहे किसी मजबूरी में खाते हैं क्या ?????? तो जो बात निकल के ई वो ये की हो सकता है कभी कोई मजबूरी रही होगी पर आज अगर कोई मुसहर चूहा खा रहा है तो वो अपनी जातिगत ....सांस्कृतिक ...अति प्राचीन परंपरा का निर्वाह कर रहा है ....मज़े लेने के लिए खा रहा है ............भूख कोई कारण नहीं है .....अक्सर इनके बच्चों की शिकायत आती है की आज मुसहरों के लड़कों ने बहुत उत्पात मचाया ....हमारे गन्ने या गेहूं के खेत में सब घुस के चूहे पकड़ रहे थे .........अब चूहे कोई छोटे मोटे नहीं भैया .....एक एक चूहा एक एक किलो का होता है ...अब उसे पकड़ने के लिए ये सब उनके सारे बिल बंद कर के .....उनमे पानी भरते हैं ...बाल्टियों से ...फिर जब चूहे भागते हैं तो सब उन्हें दौड़ा के डंडों से मारते है ........अब इतनी धमाचौकड़ी होगी किसी के खेत में ,तो नुकसान तो होगा ही ....पर ये कोई भूख की मजबूरी नहीं ...उनकी तो ये मौज मस्ती है ...शिकार समझ लीजे.......इसके अलावा जो मिल जाए ,ये नहीं छोड़ते ....केकड़ा ,कछुआ ,और कोई भी वन्य जीव ......इसके अलावा और भी अन्य तथा कथित छोटी जातियां और उनके बच्चे तालाबों के किनारे घोंघा सीप वगैरा भून के खाते है ....अब हम so called उंच जाती के लोग इसे अच्छा नहीं समझते ........एक बार हमारे घर के बच्चों ने अपने उन दोस्तों के साथ घोंघा खा लिया था सो हमारी ताई जी ने बाकायदा गंगा जल से नहला के हवन कराया था ...........तो भैया ये तो भूमिका है मेरी आज की पोस्ट की ...असली किस्सा तो अब शुरू हो रहा है ............सो हुआ यूँ की श्रीमती जी संजीव कपूर साहब की recipe book ले आयीं खरीद के और लगी उसमे से देख देख के बनाने पकवान ...रोज़ रोज़ ..........सो एक दिन बोली की आज ये गोवा की dish है prawn balchao इसको बनाते हैं ........अब सैदपुर क़स्बे में कहाँ से आते prawns ....यानी झींगा मछली ....तो हमने कहा झींगा न सही कोई और सही ....सो मछली आयी और बहुत कायदे से बनी ..........अब goan cuisine की ये खासियत है की उसमे तकरीबन हर dish में vinegar ...यानी गन्ने का सिरका पड़ता है .......और उस से बहुत ही अच्छा taste आता है ............और ख़ास बात ये की पूर्वांचल में गन्ने का सिरका काफी प्रचलित है ...बहुत ही अच्छी quality का बनता है और खूब खाया जाता है आंचार में और प्याज आदि में सो हमें तो उस goan dish में सिरके की वजह से बहुत मज़ा आया ........पर दिक्कत ये है की सिरके का taste सबको नहीं भाता ....धीरे धीरे डेवेलोप होता है ........तो हमने अपने एक दोस्त को भी वो dish खिलाई पर उन्हें कतई पसंद नहीं आयी .......और इस तरह goan dishes अक्सर हमारे घर में बनने लगी ........अब goan cuisine में sea food काफी खाया जाता है .......सो हमारे मन में बड़ी तीव्र इच्छा थी की हम भी sea food खाएं ...........और एक दिन भैया चल दिए हम दोनों मियां बीवी गोवा की ओर ......पर गलती ये हो गयी की हमारे साथ हमारे एक मित्र भी सपत्नीक लटक लिए ...........अब वो दोनों खाँटी पूर्वांचल के ........दाल भात चोखा .........पूड़ी कचौड़ी वाले..... चटनी के साथ ....और हम दोनों ठहरे मार्को पोलो और वास्को दी गामा के बाप .........हम तो दो साल से ठान के बैठे थे की गोवा में तो goan food और उसमे भी ख़ास तौर पे sea food .......सो वहां पहुँचते ही शुरू हो गए .........और हमने एक बार तो मित्र महोदय को taste कराया और न उनको पसंद आना था न आया .....सो हमने उनसे कह दिया की भैया ....हमारी तुम्हारी कोई रिश्तेदारी नहीं खाने पीने में ...तुम अपना जुगाड़ देख लो ...हमारे चक्कर में तो भूखे मर जाओगे ...........और भैया हम दोनों जो शुरू हुए ........50 किस्म की तो मछली मिलती है वहां .......और क्या restaurent में ...क्या ठेले पे ....क्या सड़क पे और क्या beach पे ....जहाँ मिली वहां खाई ....जो मिली वो खाई ........सबसे बड़ी बात की थी भी बड़ी सस्ती 5 -10 रु में पूरी साबुत मछली आधा किलो की ....तवे पर fried .......इतना तक तो ठीक था ....फिर आयी see food की बारी ......... वो वहां के एक बड़े नामी restaurant में गए खाने .......सारी dishes 120 से ले के 180 रु plate .........( बात दस साल पुरानी है ) ....खैर खूब जम के खाया ...अच्छी भी लगी सारी dishes ............अब ये पूछिए खाया क्या क्या ....oysters ,lobsters ,और shell fish ....इसके अलावा एक plate prawn balchao .....और एक mackarel fried .........बिल ज्यादा नहीं यही कोई 1200 रु आया था .......खा पी के निकले तो श्रीमती जी बहुत खुश थीं .....तृप्ति का भाव उनके चेहरे पर झलक रहा था ...वैसे भी 5 star type restaurant का मज़ा ही कुछ अलग होता है ...और इससे पहले तो हमने सारा भोजन सड़क छाप ठेलों और beach पर ही खाया था ....निपट सस्ता .....10 -20 रु का ........खाया पीया सो गए ...अगले दिन सुबह गप्पें मार रहे थे ........हमने अपनी उन भाभी जी को बताया की कैसे हमने कल रात सी फ़ूड खाया .......और ये की बड़ा मज़ा आया ...और ये की अब तो घर जा के भी बनायेंगे ....recipe मैंने कल उस restaurant के कुक से पूछ ली है .........इस पे दोनों महिलायें बोल पडीं ...वहां सैदपुर में see food कहाँ से आएगा ........मैंने कहा .....अबे काहे का सी फ़ूड .........lobster माने केकड़ा .....धक्के खाते हैं हमारे यहाँ तालाबों में ......और oyster और shell fish माने घोंघा और सीप जो उन्ही तालाबों के किनारे बस यूँ ही पड़े रहते हैं ...और गाँव के बच्चे बरसात के दिनों में गोहरे की आग पे भून के खाते हैं .........वही घोंघा जिसे खाने पर ताई जी ने बच्चों को गंगा जल से नहला के हवन कराया था घर में .......अब हमारी वो भाभी जी बोल पड़ी ...राम राम कैसे मलेच्छ लोगों से पाला पड़ा ....घोंघा खा के आये वो भी 1200 रु में ......ऊपर से तुर्रा ये की goan food खाया ....sea food खाया .............और आपकी जानकारी के लिए बता दूं की समुद्र की मछली और see food से लाख दर्जे अच्छी और tasty , pond की fish और oysters , lobsters और shell fish होते हैं ...
अब लाख टेक का सवाल तो ये हुआ भैया की सारी दुनिया सीप ,घोंघा ,केकड़ा ,कछुआ ,बिल्ली और कुत्ता खा के मज़े ले रही है ....तो इन बेचारे मुसहरों को क्यों गाँव से बाहर लखेद रखा है .............उन्हें पढ़ा लिखा के आदमी बनाओ और गाँव के अन्दर ला के बसाओ यार ........अब काला कलूटा होना या मौज मस्ती के लिए चूहा खाना कोई disqualification तो नहीं ..........तो फिर अगली बार ........हो जाए एक plate चूहा curry ..... वहाँ china में ???????
भाई हो सकता कुछ शाकाहारी किस्म के लोग आपका ये लेख देख के ही भाग जायें, पर हमें तो खूब मज़ा आया कसम से...सी फ़ूड खाने की इच्छा तो हमें भी बहुत ज्यादा है..... prawns, shrimps वगैरह तो हमने भी खूब खाए हैं...
ReplyDeleteऔर जहाँ तक रही मुसहरों की बात भाई इंसान से बढ़कर अजीब प्राणी तो कोई है ही नहीं...जिनके पास पैसा होता है वो खुद का महिमामंडन करते हैं और बाकी लोग उसे छोटे दिखाई देते हैं...यही समाज की सच्चाई है...
अब वो बेचारे लंगोट पहनते हैं और काले हैं, तो गंदे हो गए और जो और समुन्दर के किनारे कच्छे और बिकिनी में घूमते लोग हाई क्लास....:)
he he ....choti -moti baateon se badi baat keh di.....waise maine bhi try kiya tha, magar muh me taste ke aane se pehle mujhe aankhon ke saamne pair kaantein, aur ajeeb ajeeb si aakritiyan nazar aane lagti thi , so kabhi gale se neeche gaya hi nahi.....
ReplyDeleteअजीत जी,स्थानपरिवर्तन पर अंतर आ जाता है,समय बदल चुका है, मुसहर लोगों को भी बदलना चाहिए।
ReplyDeleteवैसे जायका इंडिया का मैने खूब लिया है। सी फ़ूड में कुछ ही खाया जा सकता है। पर घोंघा खाना मुस्किल है।
समुद्री मछली में महक अधिक होती है, साफ़ पानी की मछली में नहीं। हमारे यहां भी छोकरे टोली में घूम के चूहा, मछली, केकड़ा, चिड़िया जो भी हाथ लगे। भुंज के सब निपटा देते हैं।
अच्छी लगी आपकी पोस्ट
गोवा फूड में किंगफिश का स्वाद ही चढ पाया अपने को तो
ReplyDeleteप्रॉन्स और लोबस्टर तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगा
सुरमई मछली और इनके अलावा बाकि कुछ खाया नही है आजतक
हम तो ऐसे मुसहर लोगों के साथ भी खाने-पीने का एडवेंचर लेने वालों में से हैं :)
प्रणाम