Sunday, September 25, 2011

अजी जनाब ....गरीब अब सचमुच गरीब नहीं रहा

                                         पिछले कुछ दिनों से बवाल मचा है मीडिया में ........जी हाँ हमारे देश में जो भी बवाल होता है मीडिया में ही होता है ..........चिहाड़ मची है .........लोग चिंता में मरे जा रहे हैं ........पता नहीं किस ने कहाँ लिख दिया की  ३२ रु खर्च करते हो तो गरीब नहीं माने जाओगे ....अब लोग गरिया रहे हैं सरकार को और योजना आयोग को ...और न जाने किसे किसे .......चर्चा परिचर्चा ....वाद विवाद .......आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं .......भाई लोग कह रहे हैं की  सरकार संवेदन हीन है .....गरीबों का मज़ाक उड़ा रही है ........योजना आयोग में बैठे लोगों को क्या पता की गरीबी किसे कहते हैं .......और न जाने क्या क्या .....और हमारे जैसे लोग चिप्स और कुरकुरे के साथ चाय की चुस्कियां लेते ये सब देख रहे हैं ........बात भी सही है की वो लोग क्या जानें की गरीबी क्या होती है ........पर एक दिक्कत है छोटी सी ....जानते तो हम आप भी नहीं की गरीबी क्या होती है ..........
हुआ यूँ की NDA  की सरकार में जार्ज  फर्नान्डीज़ साहब रक्षा मंत्री थे . रक्षा मंत्रालय में सियाचीन में सेना के लिए स्नो स्कूटर खरीदने का प्रस्ताव सालों से अटका पड़ा था ..........आर्मी चीफ ने एक मीटिंग में जब जोर्ज साहब से ये चर्चा की तो उन्होंने तुरंत वो फाइल मंगवाई .........तो ये पाया गया की उसपे सेक्रेटरी लेवल के दो अधिकारियों ने ये नोट लगा रखा था की पहले ये पता लगाया जाए की ऐसे स्नो स्कूटरों की ज़रुरत है भी या यूँ ही मंगवाए जा रहे हैं ....सो जोर्ज साहब ने उन दोनों अफसरों को बुलवा के बात की ...सारी बात सुन के बोले ....आप लोग एकदम ठीक सोचते हैं ........बिलकुल देखा जाना चाहिए की वाकई ऐसे स्नो स्कूटरों की ज़रुरत है भी या नहीं ...........सो आप दोनों बोरिया बिस्तर  बांधिए .........वहां सियाचीन में जा कर तीन महीना रहिये ........फिर बताइये की ज़रुरत है या नहीं ..........और वो दोनों लाख रोये पीटे ....चीखे चिल्लाये ...पर जोर्ज साहब नहीं माने ...अंत में उन दोनों अफसरों को वहां जा के एक महीना रहना ही पड़ा .........और सिर्फ चंद हफ़्तों बाद ही स्नो स्कूटर आ गए .........सो अपनी भी एक सलाह है ,  बिन मांगी .........योजना आयोग को और सभी मीडिया वालों को .........३२ रु रोज़ मिलेंगे .........जाओ साल दो साल जियो अपने परिवार के साथ किसा गाँव या झोपड़ पट्टी में ....गरीबी और महंगाई को महसूस करो ........first hand experience  .........गरीबी का ....उस तरह नहीं जैसे हमारे युवराज जाते हैं पूरे तामझाम के साथ ....किसी झोपडी में खाना खाते हैं ....रात सोते हैं ......फोटो खिचाते हैं ...और अगले दिन फ्रंट पेज पे छा जाते हैं ..........चलो हो गया गरीबी से साक्षात्कार ........ये तो हुआ सिक्के का एक पहलू .आइये अब ज़रा दूसरा पहलू देखते हैं .
                                    मेरे पिता जी वहां UP में अपने गाँव में रहते हैं ........पढ़े लिखे प्रबुद्ध आदमी हैं .....जब भी ऐसी किसी चर्चा में गरीबी या गरीबों का ज़िक्र आता है तो अपनी फुल फॉर्म में आ जाते हैं और इन तथाकथित गरीबों को खूब बहिन मतारी गरियाते हैं ...........शुरू में तो मैं इसे उनकी सामंतवादी सोच से उपजी प्रतिक्रिया मानता था ........पर बीस साल वहां गाँव में रह कर मैंने भी इन तथाकथित गरीबों की गरीबी को बड़े नज़दीक से देखा ...महसूस किया ......और आज मेरा भी मन कर रहा है की मैं भी शुरू हो जाऊं ....अपने बाप की तरह ...गरियाने ....पर क्या करूँ ,  एक ब्लॉग राइटर होने के नाते कुछ सभ्यता का तकाजा है .....( हालांकि फिल्म delhi  belly  देख के कुछ कोशिश इधर मैंने भी की है ).....खैर छोडिये .......भाव समझ जाइए .....एक किस्सा बयां कर रहा हूँ ............उन दिनों जब हम वहां स्कूल चलाया करते थे तो बगल के गाँव से कुछ बच्चे आते थे ......दो ढाई किलोमीटर की दूरी रही होगी ......सो हमने सोचा की एक रिक्शा लगा देते हैं .......सौ रुपया प्रति बच्चा देने को तैयार थे मां बाप .......कोई एक आदमी ले आएगा ....काम ही क्या है ......एक घंटा सुबह एक घंटा दोपहर .......बाकी सारा दिन अपना काम करे ,जो वो पहले करता है ........और 1200  रु ......उन दिनों बड़ी रकम थी ये ,1990  में ......हम तो समझते थे की लाइन लग जायेगी लोगों की ...पर भैया ....कोई गरीब नहीं आया वो 1200  रु कमाने ....खैर किसी तरह हमने ढूँढा एक गरीब ........पर वो कमबख्त ...हर दूसरे दिन छुट्टी करता था ......हज़ार मुसीबतें थीं नन्ही सी जान पे .......अजी साहब इतनी सुबह .....8  बजे मेरा खाना ही नहीं बन पाता ......कैसे मैं गरीब आदमी भूखे पेट रिक्शा खींचूंगा .....तो फिर भैया ...बाकायदे मीटिंग बुलाई गयी उन 12  परेंट्स की ...उसमे ये समस्या discuss  हुई और ये निर्णय हुआ की हर रोज़ एक बच्चा उसका भोजन ले के आएगा अपने घर से ....तो फिर साहब रोज़ान परांठा सब्जी आने लगा उसके लिए ........ पर वो नालायक कुछ हफ़्तों बाद भाग गया .......मुझे याद है ,सालों हम उन रिक्शों को किसी तरह चलवाने की नाकाम कोशिश करते रहे........फिर किसी तरह कुछ दिन चले भी ....उसी गाँव के कुछ लोग जो रिक्शा चलाते थे उन्हें नए रिक्शे खरीद कर दिए भी ....उनके बच्चों को फ्री में कई साल पढ़ाया भी ....उनके जीवन में एक मौका था की उनके बच्चे भी एक अच्छे  इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ लें ......पर अंत में वही ढाक के तीन पात .....वो सब आज भी गरीब हैं और उनके बच्चे आज भी अनपढ़ .....और आज भी किसी स्कूल में कोई आदमी नहीं मिलता वो रिक्शा चलाने के लिए ....३६०० रु में ...कहने को बेचारे गरीब भूखे मर रहे हैं .......सारा दिन बैठ के ताश खेलते हैं ....बेचारे भूखे पेट .....सो राजमाता सोनिया गांधी जी से बेचारों की गरीबी और भूख देखी न गयी और उन्होंने अपने अर्थशास्त्री  परधान मंत्री से कहा की इन बेचारों के लिए कुछ करो .और उन्होंने अपने मोंटेक भैया के साथ मिल के ये नरेगा और मनरेगा दो बहने पैदा की ....... इसमें ये प्रावधान रखा की हर गाँव का हर गरीब साल में 100  दिन चार खांची माटी ढोयेगा तो हम उसे 120  रूपया रोज़ देंगे ....लो भैया हो गयी गरीबी दूर ....हो गया देश का कल्याण .....एक एक गाँव में दो दो सौ आदमी 100  दिन माटी खोदेंगे ......यानी एक साल में २० हज़ार दिहाड़ी ......सो भैया खुद रही है माटी अपने देश में पिछले कई साल से .....कहाँ खुद रही है ....कौन ढो रहा है ..कहाँ डाल रहा है ....कोई पता नहीं ...और कोई पूछने वाला नहीं ........खूब चांदी कट रही है .....सुनते हैं 40  -50  हज़ार करोड़ का बजट है नरेगा मनरेगा का ......अब कहाँ से आएगा इतना पैसा ...सो योजना आयोग ने नया फंडा निकाल दिया है ...गरीब की परिभाषा ही बदल दो सो गरीब कम हो जायेंगे .....तो गरीब को दी जाने वाली subsidy  भी कम हो जाएगी .......जो पैसा बचेगा उसी से नरेगा मनरेगा का पेट भरेगा ....क्योंकि ये दोनों तो बेचारे गरीब के लिए हैं ........
पर कमबख्त कोढ़ में नयी खाज हो गयी है .......पिछले दिनों घर गया तो पिता जी गरीबों को गरिया रहे थे ....मैंने पूछा अब क्या हो गया ........पता लगा की पशुपालन और खेतीबाड़ी सब बंद होने की कगार पर हैं ...वो भला क्यों .........सधुआ का परिवार मोटा गया है  ( साधू मुसहर पिछले 10  -15  साल से हमारे यहाँ खेती बाड़ी करते रहे हैं ........जिसके बदले उन्हें 1500  रु महीना ....एक किलो दूध रोजाना .......सारी फसल का एक चौथाई अनाज और खेत से सब्जी और पपीता ,अमरुद केले जैसे फल चाहे जितने........ मिलते रहे हैं ) पर जब से ये नरेगा शुरू हुई है ,  उन्होंने इसमें रूचि लेनी बंद कर दी है .......सो ठकुरायिनें तो पाँव में अलता और हाथ में मेहदी लगाती हैं सो अपने खेत में जा नहीं सकती .....ठाकुर साहब पगड़ी सम्हालें या फरसा चलायें ....और साधू अब मनरेगा खट रहे हैं .........उनके परिवार में 6 जॉब कार्ड हैं ....... 8000  रु हर महिना मिलता है उन्हें नरेगा से ........सो अब न वो खेती करते हैं...न गाय पालते हैं ........लम्बी चादर तान के सो रहे हैं ..........हम यहाँ बौराए  टीवी पे गरमा गरम बहस देख रहे हैं और लेख लिख रहे हैं ..........
अजी जनाब ....गरीब अब सचमुच गरीब नहीं रहा







4 comments:

  1. Ajit ji,

    Bahut Bahut Achha...U r indeed a great writer.

    Rakesh Tiwari
    Hindi Times

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  2. "बहिन मतारी" lol

    ek film hi Swades, main na kabhi UP/Bihar mein raha aur na West Bengal/Jharkhand/Chhatisgarh mein. par ek film aayi thi Swades, aapne bhi dekhi hogi, gareebi usmein bhi dikhayi thi , mujhe to wo gareebi yad hai aur janab 32 rupaye mein to aapko bhi pata hai ki ghar nahin chal sakta.

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  3. भाई ये तो आज की हकीकत है नरेगा या मनरेगा ने तो खेती को नरक बना दिया है गांव के मजदूरो का कहना है मनरेगा मे जायेगे इधर उधर कमर मट्कायेगे १२० रु० पायेगे और घर चले आयेगे पर खेती करने को न जायेगे पर इन सालो को समझाये कौन कि उनके मुह मे लगने वाली नरेगा की हराम कल उनके ही पेट पे लात मारेगी .........

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