मेरी बेटी .....आज से कोई 18
साल पहले .....जब पैदा हुई , तो सच कहूं , बड़ी निराशा हुई थी मुझे
.....एक क्षण के लिए ...पर फिर मैं जल्दी ही इस सदमे से उबार गया
.....निराशा इस लिए नहीं कि बेटी हुई ...बल्कि निराशा इसलिए
हुई कि बेटा न हुआ .......दरअसल चक्कर ये है की हम ठहरे खानदानी पहलवान
........सो जब पहले पहल बेटा हुआ तो हम सब लोग ,यानी कि पूरा खानदान बहुत
खुश हुए .....इसलिए नहीं कि बेटा हुआ ......बल्कि इसलिए की घर में नया
पहलवान पैदा हुआ ........अब बात ये है कि जो असली पहलवान होता है उसका
सोचने का दायरा बहुत सीमित होता है और बड़ा सपाट होता है .....सो जब मैंने
शादी करने के लिए लड़की भी पसंद की तो उसमे भी deciding factor
ये नहीं था कि वो बहुत सुन्दर है या बड़ी पढ़ी लिखी है या और बहुत कुछ
........बल्कि वहां भी कमबख्त सबसे पहले यही ख्याल आया कि इसके लड़के बहुत
तगड़े होंगे ....और फिर भैया जब पहली संतान लड़का हुई तो हमने तो उसी दिन
declare कर दिया कि लो भाई .......घर में हिंद केसरी पैदा हो
गया ........और फिर चंद महीने बाद श्रीमतीजी ने फिर घोषणा कर दी कि वो एक
बार फिर उम्मीद से हैं .........इतनी जल्दी एक और बच्चा .......कमबख्त
परिवार नियोजन वाले चिल्ला चिल्ला के मर गए कि पांच साल का रेस्ट दो , पर हम
जैसे गंवार अनपढ़ ....इन्हें कोई सुधार सकता है ????? तो जब इस खबर का सदमा
कुछ कम हुआ तो मैंने calculator से हिसाब लगाया कि छोटा
लड़का बड़े से कोई डेढ़ साल छोटा होगा .....और दिल को तसल्ली दी कि चलो
दोनों पहलवान साथ साथ पहलवानी कर लेंगे ........चूंकि पहलवान को एक पार्टनर
भी चाहिए होता है ........प्रक्टिस करने के लिए ........तो फिर भैया बड़ी
बेसब्री से इंतज़ार होने लगा छोटे पहलवान का ...और जब वक़्त आया ,तो धोखा
हो गया .....कमबख्त लड़की हो गयी .........मुझे तो एक बार यूँ लगा मानो मेरी
बीवी ने मुझे धोखा दिया है .........कहाँ तो सोच रहे थे की पहलवान पैदा
होगा .........और पैदा कर दी ये लड़की ......वो भी मरियल सी ...एकदम चूहे
जैसी.........खैर अब कर क्या सकते थे .......घर आये ...वहां माहौल एकदम
सामान्य था .....
जब पहला बेटा हुआ था तो मेरी माँ ने उसे जनमते ही थाम लिया था ........तब
से ले कर आज तक उसी की गोद में पला ............जब 6 -7 साल का हुआ तो एक दिन उसे किसी ने ये बताया की ये तो तेरी दादी है जिसे तू मम्मी
कहता है ...और वो जो मोनिका है न वो तेरी माँ है .......उस बेचारे को तो
सदमा हो गया कि लो ......मेरी तो माँ ही बदल गयी ..........पर जब बेटी पैदा
हुई तो दादी के मन में उसके लिए वो ममता जागृत न हुई जो बेटे के लिए हुई
थी ........बेटी जो बेचारी मरियल सी हुई थी ( दो महीने premature
थी जिसका हमें पता ही न था ) किसी तरह पल रही थी घर में ........फिर दो
महीने बाद जब वो थोड़ी ठीक ठाक हुई ....गोद में उठाने लायक ........तो न
जाने कैसे मेरी गोद में आ गयी ......और वो दिन और आज का दिन ...आज तक मेरी
गोद में है ........मेरी गोद में वो दिन रात बढ़ने लगी ...पनपने लगी
.....तंदरुस्त होने लगी ....और न जाने कब वो मेरा एक हिस्सा बन गयी
.......या मैं उसका एक हिस्सा बन गया .........दुनिया जहान का सुख उसे मेरी
गोद में मिलता था और वही दुनिया जहान का सुख मुझे उसे गोद में उठा के
मिलता था .........धीरे धीरे वो मेरे जीवन की सबसे कीमती सबसे प्यारी चीज़
बन गयी ........
फिर हमारे परिवार में जो professional sports
की जो परंपरा थी उसमे वो भी शामिल हो गयी ......दोनों बेटे ( कुछ साल बाद
एक और बेटा हो गया था ) पहलवानी करने लगे ...और बेटी boxing करने लगी ..........इस गेम का चुनाव खुद उसने किया जिसमे थोड़ी बहुत मदद मैंने भी की .........पिछले 4 साल से वो रोजाना 32 किलोमीटर साइकिल चला के ट्रेनिंग करने जाती है .वहां 5 घंटे
तक जी तोड़ मेहनत करती है ....दो बार national level पे गोल्ड मेडल जीत चुकी है
.........आज मैं अभी उस से मिल के लौटा हूँ ........पटियाला से , जहाँ वो boxing की national championship में पंजाब
का प्रतिनिधित्व कर रही है ........आज वहां पटियाला में ......बेटियों का
उत्सव चल रहा था .......देश भर की बेटियाँ ....दूर दराज़ के राज्यों से ...न
जाने कहाँ कहाँ से ...आयी हुई हैं .......एक से एक खूबसूरत ......फूल सी
कोमल ....पर इस्पात सी मज़बूत .....एक से एक तगड़ी ......मज़बूत .....हंसती
....खिलखिलाती ......उत्साह से भरी हुई ........कुछ कर गुजरने पे उतारू
......बोक्सिंग जैसे खेल में ....जिसे कल तक मर्दों का खेल कहा जाता था
........वहां उस बोक्सिंग रिंग में .....उनका शौर्य देखते ही बनता था
........इतना आत्मविश्वास ........अंतिम क्षण तक उनका संघर्ष , जीतने की
ललक , और हार कर भी मुस्कुराते हुए अपने प्रतिद्वंदी को गले लगाती
......आज मुझे गर्व हुआ अपनी बेटी पे ....हे इश्वर .....अगर मेरी बेटी न
हुई होती तो अधूरा रह जाता मेरा जीवन .......
न जाने कैसे लोग मार देते हैं ,बेटियों को ..........अरे उन्हें एक मौका
तो दो जन्म लेने का ..... उन्हें मौका तो दो कुछ कर गुजरने का .......कितना
सुख देती हैं बेटियां .........बेटों से कहाँ कम हैं बेटियाँ
.........चाँद को छू लेने की कूबत है उनमे .....इस चाँद को धरती पे उतरने
तो दो ........
:)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteLoved this one the most
ajit ji, bhagwaan ne mujhe likhne ki kala nahin di hai, par ye jo vichaar aapne likhe mere dil main kab se toofan macha rahe hain, inko likha bhi thha kuchh samay pehle.
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/notes/hemant-bansal/are-we-really-equal-single-ashram-of-an-ordinary-indian-girl/251846271520598
aapko dhanyawaad, mere mann ko shaanti mili kyunki main yahi bolna chahta thha.
sir ab to neha ko dekhane ka man kar raha hain.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपकी बेटी से मिलकर ..
ReplyDeleteआज से १८ साल पहले--कहीं आज उसका जन्मदिन तो नहीं?
आपको बधाई ऐसी बेटी का पिता होने की ..
बेटी को स्नेहाशीष....
बहुत प्रेरक पोस्ट ..चाँद को धरती पर उतरने तो दो ... बेटी की उपलब्धियों पर बधाई
ReplyDeleteसर्वप्रथम बिटिया को और उसकी उपलब्धियों पर आपको बहुत बहुत बधाई…अब रह कहां गया है फ़र्क बेटे और बेटियों मे भाई। बेटे तो कभी कभी दे जाते हैं दगा। फिर भी पता नहीं जगह के कुछ हिस्सों मे समाज अभी भी नही है जगा। पुन: आभार
ReplyDeleteवाह! क्या बात है... आपने बिलकुल सच कहा... बल्कि बेटियां कई मायनों में बेटों से ज्यादा ही होती है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर....वाकई में आज बेटियां बेटों से आगे हैं...
ReplyDeleteयह गर्व की बात है....
दो कुलों की शान होती हैं बेटियां,घर और समाज की जान होती है बेटियां,कोख मे मेरे सिसकती है रात दिन,जीने का हक मुझसे मांगती है बेटियां, पलने,बढने दो बेटों की तरह,बुढापे की लाठी भी अब बनती है बेटियां' बिटिया को प्यार.अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वो देश का नाम रोशन करे.वैसे....आपके पहलवान बेटे क्या कर रहे हैं आजकल? ईश्वर उन्हें भी सफलता दे.
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