कल जब बनारसी भोजन पे लिख रहा था तो सोचा की चलो बहुत हो गया ......पर फिर
कुछ ऐसी लाजवाब चीज़ें याद आ गयी जिनके बिना ये पोस्ट अधूरी है
...........यूँ तो बनारस की सारी मिठाई है ही लाजवाब , पर वहां एक ऐसी
मिठाई बनती है जो और कहीं नहीं बनती या बिकती ..........उसे कहते हैं लौंग
लता ........वैसे पाक कला के विश्लेषक इसे मिठाई मानने से इनकार कर सकते
हैं ............मेरे एक मित्र ने इसका विश्लेषण यूँ किया की .........अरे
भाई मिष्ठान्न ....यानी की मिठाई .....ये बड़ा नफासत भरा शब्द है
...........इसमें स्वाद ,सुन्दरता ,नजाकत ,मिजाज़ ,होना ज़रूरी है
........ उसमे महँगी महँगी item पड़नी चाहिए .....खोया ,छेना होना चाहिए ......महंगे मेवे ,बादाम ,काजू ,किशमिश ,पिस्ता ,केसर होना चाहिए ......उसे चांदी की वर्क से सजा होना चाहिए ..........अबे मिठाई कोई पेट भरने की चीज़ थोड़े ही होती है ..........ये तो
मज़ा लेने की चीज़ होती है .........कमबख्त लौंगलता इनमे से किसी पैमाने पर
खरा नहीं उतरता ..........न इसमें मिजाज़ है ....न नफासत ........न सौंदर्य
........न नजाकत ........मेरे एक और मित्र ने इसका बड़ा अच्छा विश्लेषण
किया ........वो कहते हैं की ये बनारस की मिठाई है ही नहीं .........ये
गाजीपुर की मिठाई है ( गाजीपुर ,बनारस का पडोसी जिला है ) ........इतनी
बेढब ......बेडौल चीज़ बनारसी हो नहीं सकती .....ये गाजीपुर के अहीरों की
मिठाई है .........इसे देख के लगता है की गाजीपुर का कोई लठैत खड़ा है
........दुकान में पड़ा यूँ लगता है जैसे stage पर विश्व
सुंदरियो के बीच कोई पहलवान खडा हो ..........जी हाँ , कमबख्त लौंगलता है
ही ऐसा .........मैदे को गूंद कर ........उसे रोटी की तरह बेल लेते हैं
........फिर उसमे थोडा सा खोया और एक चुटकी लौंग डाल के उसे fold करके घी
में deep fry कर लेते हैं ....फिर खूब गाढ़ी चाशनी में डुबो कर निकाल
लेते हैं ..........एक खा लो ,पेट भर जाता है ........गली गली में बिकता है
.......जितनी दुकान की सब मिठाई बिकती है उतना अकेला बिकता है .......और
जो एक बार खा लेता है दीवाना हो जाता है ..........इसके बारे में एक बड़ा
मजेदार किस्सा याद आता है मुझे .....मेरे एक मित्र कलकत्ते में रहते हैं
.....घूमने फिरने और खाने पीने के बेहद शौक़ीन ....बनारस आये तो हमने उन्हें लौंगलता भी खिलाया ........वो उन्हें इतना भाया की उन्होंने 32 पीस घर के लिए pack करा लिए ......और रास्ते में ही सारे खा गए .....घर तक एक न पहुंचा ....... banaaras में इसकी लोकप्रियता को देख के दिल्ली के कुछ हलवाइयों ने इसे दिल्ली में भी introduce किया था .....इसे नया नाम दिया .......लवंग लतिका ......अब दिल्ली की designer मार्केट में वो कितना टिका होगा ये मुझे मालूम नहीं ......... पर एक बात तो तय है की दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ....और आजकल के इस फैशन के दौर में जहां looks का महत्व बहुत बढ़ गया है .....इन बड़े शहरों के हलवाइयों और chefs ने मिठाइयों की शक्ल बदल कर रख दी है....जहां सारा focus शक्ल पर आ गया है ...वहाँ का तो slogan हो गया है ....fashion के इस दौर में स्वाद की आशा न करें ....स्वाद कहीं पीछे छूट गया है , पर बनारस की पारंपरिक मिठाई बनाने की शैली में कोई बदलाव नहीं आया है ...वहां आज भी वही पारंपरिक looks हैं ....पर स्वाद गज़ब का है ......और एक बात मैं इसमें जोड़ना चाहता हूँ की अगर आप कभी बनारस जाएँ तो मिठाई खाने के लिए उन दुकानों को ढूंढें जो टूरिस्ट
एरिया से दूर ....कहीं किसी कोने में ......तंग गलियों में हों
.......क्योंकि tourists को तो कुछ भी परोस दिया जाता है जनाब ....पर
असली खांटी बनारसी को आप यूँ ही कुछ भी नहीं खिला सकते .......इसलिए मिठाई
उसी दुकान पे खाइए जहाँ लोकल बनारसी खाता है ........पर एक बात
और भी है .......बनारस की छोटी से छोटी और घटिया से घटिया दुकान की मिठाई
भी किसी बड़े शहर की बड़ी दूकान की मिठाई से अच्छी होती है .........
लवंगलता की बात ही कुछ और है ..
ReplyDeleteबहुत खूब
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