Friday, November 11, 2011

बेचारा किसान ........

                                   जब से मैंने होश सम्हाला है दुनिया बदल गयी ...कहाँ से कहाँ पहुँच गयी ..........सब कुछ बदल गया ...पर एक प्राणी नहीं बदला ........हमारा बेचारा किसान ....अन्न दाता .......60  साल पहले भी बेचारा था .........आज भी बेचारा ही है .........पहले भी गरीब था आज भी गरीब ही है ........पर एक बात  है ,  पहले ख़ुदकुशी नहीं करता था ....अब पट्ठा मौका पाते ही ख़ुदकुशी कर लेता है ...........जैसे ही खबर आती है मीडिया में प्रलाप शुरू हो जाता है ........अरुंधती रॉय , तीस्ता सेतलवाड  जैसे professional आलापी प्रलापी शुरू हो जाते हैं ...बेचारा किसान  ....ह्हाय हाय रे  ....मर गया रे  ...कोई बचाओ  रे  ......ज़ालिम  सरकार  है ...सुनती  नहीं है ........कोई किसान के लिए कुछ करो रे ........फिर सरकार चुनाव से एन पहले उठती है और तथाकथित किसान के मुह में एक लालीपॉप घुसेड देती है .............जनता खुश हो जाती है , अखबार और TV वाले भी खुश हो जाते हैं पर कुछ दिन बाद फिर कोई कमबख्त कीट नाशक पी जाता है ....फिर वही प्रलाप शुरू ...........तो कुछ साल पहले की बात है की ये सब देखते देखते एक दिन मेरा ह्रदय एकदम द्रवित हो गया बेचारे किसान की ये दर्द भरी गाथा सुन के .............तो मैंने अपने लेवल पे ये जानने की कोशिश की कि या इलाही ये माजरा क्या है ..........चलो पता लगाया जाए .........सो पहले तो मैंने कोई किसान ढूंढना शुरू किया .........आईडिया ये था कि उसी से पूछा जाए कि बता भाई तेरी प्रॉब्लम क्या है .........सो कई साल ढूंढता रहा कोई किसान न मिला ....अब आप सोचेंगे कि देखो साला क्या फालतू बात लिख रहा ...पर यकीन मानिए जनाब वहाँ मुझे अपने गाँव के आसपास कोई किसान न मिला .........दरअसल हम वहाँ चलाते थे एक स्कूल ...सैकड़ों लोग आते थे हमारे पास ......जिस किसी ठलुए से पूछो ........profession ????? तो वो कह देता कृषि ....फिर हम उससे कहते अबे सही सही बता ....तो पता चलता कि सब कुछ है ज़मीन जायदाद है ......कृषि भूमि है पर खेती कोई नहीं करता .........वो यूँ कि गाँव में दो किस्म के लोग है , एक वो जिनके पास थोड़ी या ज्यादा ज़मीन है .........दूसरे वो जो तथाकथित भूमिहीन हैं .........सो जिनके पास ज़मीन है ...वो और उनकी औलादें तो हैं नवाब वाजिद अली शाह कि औलाद .......उनका तो status down हो जाता है खेत में जा के फावड़ा चलाने से .....इसलिए उन्हें मजदूर चाहिए खेती के लिए ......सो मजदूरी वो करेगा जो भूमिहीन है .......ऐसे लोग भू स्वामी के  साथ या तो आधे कि हिस्सेदारी कर लेते हैं यानी अधियरा ....या अधिया की खेती ....इसमें तय ये होता है की भैया ज़मीन मेरी मेहनत तुम्हारी ....लागत बराबर बराबर और फसल बराबर बराबर ..............पर इसमें होता क्या था की अधियरा ज़मींदार साहब का हिस्सा चुरा लेता था ...सो भू स्वामियों ने चौथी पे खेती कराना शुरू किया ....उसमे ये होता की ज़मीन मेरी ...लागत ( जुताई , खाद , बीज ,कीटनाशक ) सब मेरी ....मेहनत तेरी .....फसल के ३ हिस्से मेरे और एक हिस्सा तेरा यानी २५ % तेरा .................
                                                                     अब इस पूरी स्टोरी में चक्कर ये है की जिसकी ज़मीन है वो खेत में पांव रख के नहीं राज़ी .........और मजदूर वर्ग जिन्हें गाँव में बनिहार कहा जाता था कभी .......उन बेचारों को कुछ मिलता ही नहीं था सो वो किस लिए हाड तोड़ मेहनत करें ...सो उन्होंने इस में interest लेना बंद कर दिया ....उनके लड़के दिल्ली बम्बई जा के मजदूरी करने लगे ....slums में रहने लगे ........कुछ वहाँ हरियाणा पंजाब के भूस्वामियों ( किसान तो मैं उन्हें भी नहीं मानता ) के पास काम करने लगे .......पर वो भी नौकर हुए , किसान न हुए ....अपनी तो एक स्पष्ट सोच है ...वो ये की 6 लोगों का एक परिवार अगर सचमुच किसानी करे ......प्रति दिन दो घंटे ...यानी साल में 730 घंटे काम करे अपने खेत में .....तो आराम से 10 एकड़ की खेती कर सकता है .......पर जिसने कसम खा रखी है की हर काम मजदूरों से ही कराना है वो काहे का किसान ?????? सो पहली बात तो ये की इस किसान word में ही बहुत बड़ा घपला है .........पूरा घोटाला है ......वो कैसे ........सुनिए , किसान क्रेडिट कार्ड है लोगों के पास ......एक लाख तक का लोन मिलता है ......इसपे research करा के देख लो , 95 % लोग ये लोन ले के कृषि के अतिरिक्त अपनी अन्य ज़रूरतों पर खर्च कर देते हैं ......खेती तो बस यूँ ही...... टुटहूँ  टूं ही होती है .........यानि घिसटती पिटती..... सरकार मुफ्त बिजली देती है किसान को ...पर कितने किसान उससे सिचाई कर रहे हैं ....या thrasher चला रहे हैं .........किसान की बीवी heater पे खाना बना रही है .......आज तक सरकार ने कृषि के नाम पे अरबों रूपये की subsidy  दी.....पर उसका असली लाभ चंद  गिने चुने बड़े किसान उठा रहे हैं ...........agriculture का basic infrastructure आज भी zero है .......food supply chain   नदारद है ....food processing industry नहीं है ......फल और सब्जी की 90 % उपज आज भी औने पौने दाम में बिकती है ..........dairy , fishery , piggery , horticulture सबकी growth नगण्य है ......... देश का बहुत बड़ा भाग आज भी असिंचित है .......खेती की return zero है ....जिस venture से return zero है उसमे कोई क्यों अपना टाइम और energy invest करेगा ......दुसरे आज ज़्यादातर किसानों की लैंड होल्डिंग इतनी कम हो चुकी है कि एक किसान के पास बमुश्किल आधा बीघा खेत है उसमे वो बेचारा ......नंगा क्या नहाए क्या निचोड़े .........आज भारत में तथाकथित  70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लिप्त है ....किसी ज़माने में USA में भी ऐसा ही था ....पर वहाँ आज कृषि पूरी तरह mechanize हो चुकी है और अब वहाँ सिर्फ 3 % लोग ही कृषि में लिप्त हैं ........भारत में भी कमोबेश वो स्थिति आ रही है ..........so called किसान कृषि से उदासीन हो रहा है ......मजदूर NAREGA ,  MANREGA में मस्त है .......
                                             तो फिर ख़ुदकुशी कौन कर रहा है  ??????  और क्यों कर रहा है ??????  जरा नज़दीक से झाँक  के देखिये .........ख़ुदकुशी का मूल कारण उपभोक्तावाद का  कुचक्र है .........उस में फंस  कर ऊट पटांग खर्चे करने वाले लोगों ने ख़ुदकुशी की  है ..........कृषि के नाम पर लोन ले कर उसे अन्य कामों में खर्च करने वाले  .........महंगे आडम्बर पूर्ण समारोह ....विवाह ........चैनल टीवी और सिनेमा प्रभावित मूर्खता पूर्ण जीवन शैली ........जहां भी किसी बड़े किसान ने आत्महत्या की है उसका मूल कारण यही रहा है ( जहां तक दक्षिण की बात है , वहाँ तो ख़ुदकुशी का फैशन है ....रजनी कान्त या खुशबू की फिल्म फ्लॉप हो जाए तो लोग फांसी लगा लेते हैं )........अन्यथा फसल खराब होना या दाम न लगना .......भारतीय कृषि में ये कौन सी नयी बात है ......भारतीय किसान तो सदियों से इसका आदी है ...........पंजाब और महाराष्ट्र की बहुत सी NGOs  और सरकारी संस्थाओं ने इसपे जांच की है और ये चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं ....परन्तु इसे सार्वजनिक करने की हिम्मत न मीडिया जुटा पाया है न सरकार ....एक दो लेखकों ने दबे छुपे स्वरों में कुछ लिखा पढ़ा है ....पर सब डरते है क्योंकि ये सच बोलने वालों को तुरंत हृदयहीन , दुष्ट , पापी ,घोषित कर दिया जाएगा ...क्योंकि बेचारे किसान से सहानुभूति रखना आजकल फैशन में जो है ........






7 comments:

  1. बहुत बढिया।
    अच्छी जानकारी के साथ

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  2. बढ़िया चिंतन/लेखन...
    सादर...

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  3. sayad yeh baat purey bharat ke liye nahi hai , Gujarat mai kissan aaj bhi khet mai jata hai , pehle cycle pe jaata tha abb bike se jaata hai,

    abhi kuch din pehle 1 farmer mera ghar aaya tha , bool rahey tha ki kuch din apne khet mai kaam kartey hai , aur apne khet mai kaam nahi hota tuh duserey ke khet mai 120/day milta hai

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  4. Sirji Jo likha hai bahut had tak sahi hai magar thoda bahut North east walo ke bare mein likh dijiye delhi mein 2 rupaye bhade toh pura bharat hilne lagta hai manipur ki toh halat kharab hai unke liye bhi kuch likh dijiye Sarkar aur media ne toh anath bana rakha hai kam se kam ap toh aisa mat kijiye.

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  5. आपका ये लेख कुछ हद तक सही जानकारी देता है परंतु पूर्ण रूप से नही पूर्वांचल मे किसान अभी भी खेतों में जी तोड़ मेहनत करते हैं, परंतु ये सही है कि खुदकुशी करने वाले सही मायने मे किसान नही...

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  6. आपका ये लेख कुछ हद तक सही जानकारी देता है परंतु पूर्ण रूप से नही पूर्वांचल मे किसान अभी भी खेतों में जी तोड़ मेहनत करते हैं, परंतु ये सही है कि खुदकुशी करने वाले सही मायने मे किसान नही...

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