मेरा एक दोस्त है .....एक अंग्रजी अखबार का एडिटर है . वो अक्सर कहा करता है .सत्ता एक न एक दिन आपको कुत्ता बना ही देती है . कुत्ता ,यानी तलवा चाटने वाला या दुम हिलाने वाला .वैसे कुत्ते का काम तो होता है भोंकना .अजनबी संदिग्ध आदमी को देख के भोंकना , रखवाली करना , काट खाना . उसके दांत भी होते हैं , बड़े तीखे . पर कहाँ काटते हैं आजकल कुत्ते ? किसी कुत्ते को दुम हिलाते , तलवा चाटते देखा है कभी ? बिछ जाते हैं ज़मीन पर , देखते ही . लेट जाते है , पेट दिखाते हैं ....कू कू करते हैं ....उछलते कूदते खुश होते हैं .........तो कहने का मतलब है कि कैसा भी कटखना कुत्ता हो , सत्ता उसे खरीद ही लेती है . सो मेरा वो दोस्त , मैं उस से पूछने लगा , क्यों बन जाते हो तुम लोग कुत्ते . उस निरीह प्राणी ने बड़ी लाचारी से जवाब दिया ......क्या करें भाई , इस अखबार को चलाना है ....... फिर अपने बच्चे भी तो पालने हैं ........ और चार लाइन में जो सीधा सा गणित उसने मुझे समझाया वो ये कि अखबार जो चलता है वो सरकारी विज्ञापन से चलता है . अगर सरकारी विज्ञापन न मिले तो तीसरे दिन ताला लग जाए . सो बेचारा अखबार , मजबूर है सरकार का गुणगान करने के लिए , अगर आलोचना करनी भी है , तो सीमित .....बस उतनी जिस से बस काम भर चल जाए ......... कमोबेश यही स्थिति खबरिया चैनल की दिखती है ......... हालांकि वो इतने मोहताज़ नहीं हैं उनकी इस कृपा के .....पर फिर भी अगर कुछ माल मत्ता मिल जाए तो क्या हर्ज़ है .....अगर आपको याद हो , अन्ना के आन्दोलन के दिनों में , एक बार तो हल्ला बोला इन news channels ने .....फिर अचानक सरकारी विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गयी ...हर दूसरा विज्ञापन सरकारी होता था उन दिनों news channels पे .....और फिर इन्होने भोंकना कम कर दिया ....... उन दिनों मैं पतंजली योग पीठ में था .....केंद्र सरकार ने बाबा राम देव और आचार्य बाल कृष्ण के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ था ...... देहरादून से छपने वाला एक राष्ट्रीय अखबार खूब नमक मिर्च लगा के छाप रहा था उन दिनों ..........सो पतंजलि के एक पदाधिकारी ने फोन किया उन्हें एक दिन .......बस बेटा ...... बस . stop ....no ....enough..... stop ....... सो उधर से उन्होंने खीसें निपोरते हुए हुए इशारा किया ....हे हे हे ......अरे दो चार विज्ञापन ही दिलवा दीजिये .......... ये सुन के पतंजलि ने दुत्कार दिया और अखबार फिर भोंकना शुरू हो गया ............बाद में पता चला कि उन दिनों 4 -4 पेज के विज्ञापन मिल रहे थे केंद्र सरकार से , अखबार को .....पर दैनिक जागरण को नहीं मिले क्योंकि वो पतंजलि के पक्ष में लिखता था . बाद में पता चला की उसे राज्य सरकार विज्ञापन दे रही थी .......पक्ष में लिखने के लिए .........
पर इन सरकारों को आहट सुनायी दे रही है आजकल .....दूर ....... कुत्तों के भोंकने की आवाजें आ रही हैं .......पर ये कुत्ते कुछ अलग हैं .....ये वो जंगली कुत्ते हैं ....जो किसी के टुकड़ों पे नहीं पलते ........जंगल में दौड़ के शिकार करते हैं .....जिसे घेर लेते हैं , फाड़ खाते हैं .......internet और social media किसी का गुलाम नहीं है ....किसी के टुकड़ों पे नहीं पलता .......किसी के आगे दुम नहीं हिलाता .......किसी की खुशामद नहीं करता .........अखबार के पत्रकार और एडिटर को तो नौकरी करनी है ......तनख्वाह लेनी है , इसलिए अपने ज़मीर को मार के भी सलाम बजाता है .........internet और social media का क्या है .....हम तो बनारसी फक्कड़ है ........रगड़ के भांग पियेंगे और तुम्हारे सर पे मूतेंगे ............
सोनिया गांधी और उनके गुर्गों को एक बात समझ आ गयी है की इन्टरनेट की महिमा अपरम्पार है .....इसे रोका नहीं जा सकता ..........वो दिन दूर नहीं जब हिन्दुस्तान में internet users की संख्या भी 50 करोड़ हो जाएगी ........social media में आजकल माहौल मोटे तौर पे anti congress है .....ये माहौल फिलहाल और ज्यादा खराब होता दिख रहा है ...........कपिल सिब्बल की बेचैनी यूँ ही नहीं है .......social media को लगाम लगाने की कवायद जो उन्होंने शुरू की है ये कुछ वैसी ही है जैसे गद्दाफी ने अपने अंतिम दिनों ने सत्ता पे पकड़ बनाने की कोशिश की थी ........देखिये ये कोशिश क्या रंग लाती है .......पर मैं एक बात जानता हूँ ........मैं किसी को अपना गला घोटने नहीं दूंगा .
बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।