Monday, January 28, 2013

आँखों को वीज़ा नहीं लगता

रात शायद जल्दी सो गया था . दो बजे नींद टूट गयी और कमबख्त फिर नहीं आई .( बुढापा आ गया क्या ? ) हार के कंप्यूटर  पे बैठ गए . you  tube पे गुलज़ार साब का इंटरव्यू देखने  लगा . नज़्म सुनी ............

आँखों को वीज़ा नहीं लगता
सपनों की सरहद होती नहीं
बंद आँखों से रोज़ चला जाता हूँ मिलने
मेहदी हसन साहब से
सुनता हूँ उनकी आवाज़ को चोट लगी है
और ग़ज़ल खामोश है सामने बैठी हुई
कांप रहे हैं ओठ ग़ज़ल के

लेकिन उन आँखों का लहज़ा बदला नहीं
जब कहते हैं , सूख गए हैं फूल किताबों में
राहगीर भी बिछड़ गए
अब शायद मिलेंगे ख़्वाबों में

बंद आँखों से मैं रोज़ सरहद पार चला जाता हूँ
मिलने मेहदी हसन से
आँखों को वीज़ा नहीं लगता
सपनों की सरहद कोई नहीं


गुलज़ार साहब आज भी फक्र से कहते हैं , मेरा वतन है वो , मेरी पैदाईश वहाँ की है ,
मिटटी की सुगंध कहाँ से छूटेगी आपकी ?




1 comment:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है

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