हजरात , मुहम्मद अफरोज नाम है मेरा .जी हाँ मैं वही हूँ , वो छठा मुलजिम . जिस पे आरोप है उस लड़की के बलात्कार और क़त्ल का .......लोग बाग़ कह रहे हैं कि मैं ना बालिग़ हूँ . और मुझे ये भी पता है कि सब लोग मुझसे बेहद खफा हैं .....गुस्से से उबल रहे हैं ..........और यूँ कि मुझे फांसी पे लटकाने की बात कर रहे हैं . अब सच कहूं तो मुझे तो खुद नहीं मालूम कि मैं कितने साल का हूँ .......मैं नहीं जानता कि ये बालिग़ नाबालिग क्या होता है ...........मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि छोटा सा था मैं , यही कोई 10-11 साल का जब मेरी माँ ने यहाँ दिल्ली भेज दिया था मुझे ........खाने कमाने . वहाँ गाँव में बहुत गरीबी थी .बाप मेरा पागल था . मेरी और भी 4-5 बहनें थीं , मुझसे छोटी ..............खाना .. कभी मिलता था , कभी यूँ ही सो जाया करते थे हम . भूखे ही .....फिर एक दिन गाँव के कुछ लोग दिल्ली आ रहे थे उन्ही के साथ भेज दिया माँ ने , इस आस में कि लड़का कमाएगा . यहाँ दिल्ली आ के यूँ लगा कि किसी जंगल में आ गया हूँ . यहाँ न रहने का कोई ठिकाना था न खाने का ..........भूख यहाँ भी लगती थी , उतनी ही , जितनी वहाँ लगती थी , गाँव में . पर वहाँ कम से कम माँ तो थी .
याद है मुझे , मैं उस ढाबे के पास खडा था एक दिन , भूख प्यास से बिलबिलाता , टुकुर टुकुर देख रहा था , लोगों को खाते ......... न जाने क्यूँ उस ढाबे के मालिक ने यूँ ही पूछ लिया , खाना खायेगा ? और उस दिन से मैं वहाँ उस ढाबे पे जूठे बर्तन धोने लगा .........बदले में पेट भर खाना मिलने लगा , और कुछ पैसे भी . मुझे याद है अपने गाँव के उस लड़के के हाथ मैंने कुछ पैसे भी भेजे थे माँ के लिए .फिर कुछ दिनों बाद कुछ लोग पकड़ के ले गए मुझे . मुझसे भीख मंगवाने लगे . जो पैसे मैं सारा दिन मांगता , वो ले लेते थे शाम को . वहीं बगल की झोपड़ पट्टी में रहता था मैं .......फिर एक दिन उसी झोपड़ पट्टी के एक आदमी ने मुझे अपनी झुग्गी में रहने की जगह दे दी ........और उसी रात से मेरा शारीरिक शोषण शुरू हुआ ..........
मुझे नहीं मालूम मैं बालिग़ हूँ या नाबालिग . ये भी याद नहीं की कितने साल से रह रहा हूँ यहाँ दिल्ली में . इस दौरान यहाँ दिल्ली में जूठी प्लेटें धोई , सड़कों पर भीख मांगी , अखबार बेचे , ट्रेनों में झाडू लगा के पैसे बटोरे , ट्रेनों से खाली बोतलें इकट्ठी कर के कबाड़ी को बेचीं , झुग्गी झोपड़ियों में स्मैक बेचीं , कालोनियों में गाड़ियां धोईं , और फिर न जाने कब और कैसे खलासी बन गया बस का . उस रात मैं राम सिंह के घर गया था , वो पैसे मांगने , जो उसने उधार ले रखे थे मुझसे . वो 8000 रु जो माँ को भेजने के लिए जोड़े थे मैंने .........राम सिंह ने पैसे तो नहीं दिए पर घुमाने ले गया मुझे , अपने दोस्तों के साथ , अपनी बस में .
उस लड़की और उस लड़के को मैंने ही आवाज़ दे कर बैठाया था बस में . फिर मैंने ही सबसे पहले उस के साथ छेड़ खानी शुरू की . वैसे ही जैसे सब लोग किया करते थे मेरे साथ , उस झोपड़ पट्टी में ........... फिर मार पीट शुरू हो गयी बस में ..........अब मार पीट कौन सी नयी चीज़ है अपने लिए ..........और बलात्कार ??????? अमां छोडो भी .......कौन सी बड़ी बात है ........हज़ारों बार हुआ है मेरे साथ ....तब से हो रहा है जब मैं , शायद 11 साल का था ...........तो उस रात जो कुछ हुआ उस बस में , आम तौर पे होता ही रहता है मेरे जीवन में .......यही सब देख सुन के बड़ा हुआ हूँ मैं ...........पर अफ़सोस है मुझे , की वो लड़की मर गयी . सुना है की लॊग मुझे फांसी पे लटकाने की बात कर रहे है . और ये , की लॊग मोमबत्तियां जला के दुआ कर रहे हैं उसके लिए ..........दोस्तों , ये मत सोचना के आप लोगों से रहम की भीख मांगूंगा . मुझे तो मर ही जाना चाहिए . पर मुझे मार के एक मोमबत्ती जलाना मेरे लिए भी .....उस मासूम से लड़के के लिए जो भूखा प्यासा .......रोटी कमाने के लिए इस शहर आया था ..........और मेरे जैसे उन हज़ारों लड़कों के लिए भी जो शहर में पल रहे हैं आज भी .......और मेरे बाद उसे भी फांसी पे लटकाना जो भीख मंगवाता था मुझसे ....वो जो स्मैक बिकवाता था .....वो जो यौन शोषण करता था मेरा ...........और उस पुलिस वाले को भी , जो हफ्ता लेता था मुझसे ........ हर उस शख्स को जिसने मुझे वो बनाया , जो मैं आज हूँ ..........और अपनी बच्चियों को सम्हाल के रखना , क्योंकि मुझ जैसे हज़ारों लाखों हैं , पल रहे , इस शहर में .
दुनिया ने तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है लौटा रहा हूँ मैं ..........साहिर लुधियानवी
याद है मुझे , मैं उस ढाबे के पास खडा था एक दिन , भूख प्यास से बिलबिलाता , टुकुर टुकुर देख रहा था , लोगों को खाते ......... न जाने क्यूँ उस ढाबे के मालिक ने यूँ ही पूछ लिया , खाना खायेगा ? और उस दिन से मैं वहाँ उस ढाबे पे जूठे बर्तन धोने लगा .........बदले में पेट भर खाना मिलने लगा , और कुछ पैसे भी . मुझे याद है अपने गाँव के उस लड़के के हाथ मैंने कुछ पैसे भी भेजे थे माँ के लिए .फिर कुछ दिनों बाद कुछ लोग पकड़ के ले गए मुझे . मुझसे भीख मंगवाने लगे . जो पैसे मैं सारा दिन मांगता , वो ले लेते थे शाम को . वहीं बगल की झोपड़ पट्टी में रहता था मैं .......फिर एक दिन उसी झोपड़ पट्टी के एक आदमी ने मुझे अपनी झुग्गी में रहने की जगह दे दी ........और उसी रात से मेरा शारीरिक शोषण शुरू हुआ ..........
मुझे नहीं मालूम मैं बालिग़ हूँ या नाबालिग . ये भी याद नहीं की कितने साल से रह रहा हूँ यहाँ दिल्ली में . इस दौरान यहाँ दिल्ली में जूठी प्लेटें धोई , सड़कों पर भीख मांगी , अखबार बेचे , ट्रेनों में झाडू लगा के पैसे बटोरे , ट्रेनों से खाली बोतलें इकट्ठी कर के कबाड़ी को बेचीं , झुग्गी झोपड़ियों में स्मैक बेचीं , कालोनियों में गाड़ियां धोईं , और फिर न जाने कब और कैसे खलासी बन गया बस का . उस रात मैं राम सिंह के घर गया था , वो पैसे मांगने , जो उसने उधार ले रखे थे मुझसे . वो 8000 रु जो माँ को भेजने के लिए जोड़े थे मैंने .........राम सिंह ने पैसे तो नहीं दिए पर घुमाने ले गया मुझे , अपने दोस्तों के साथ , अपनी बस में .
उस लड़की और उस लड़के को मैंने ही आवाज़ दे कर बैठाया था बस में . फिर मैंने ही सबसे पहले उस के साथ छेड़ खानी शुरू की . वैसे ही जैसे सब लोग किया करते थे मेरे साथ , उस झोपड़ पट्टी में ........... फिर मार पीट शुरू हो गयी बस में ..........अब मार पीट कौन सी नयी चीज़ है अपने लिए ..........और बलात्कार ??????? अमां छोडो भी .......कौन सी बड़ी बात है ........हज़ारों बार हुआ है मेरे साथ ....तब से हो रहा है जब मैं , शायद 11 साल का था ...........तो उस रात जो कुछ हुआ उस बस में , आम तौर पे होता ही रहता है मेरे जीवन में .......यही सब देख सुन के बड़ा हुआ हूँ मैं ...........पर अफ़सोस है मुझे , की वो लड़की मर गयी . सुना है की लॊग मुझे फांसी पे लटकाने की बात कर रहे है . और ये , की लॊग मोमबत्तियां जला के दुआ कर रहे हैं उसके लिए ..........दोस्तों , ये मत सोचना के आप लोगों से रहम की भीख मांगूंगा . मुझे तो मर ही जाना चाहिए . पर मुझे मार के एक मोमबत्ती जलाना मेरे लिए भी .....उस मासूम से लड़के के लिए जो भूखा प्यासा .......रोटी कमाने के लिए इस शहर आया था ..........और मेरे जैसे उन हज़ारों लड़कों के लिए भी जो शहर में पल रहे हैं आज भी .......और मेरे बाद उसे भी फांसी पे लटकाना जो भीख मंगवाता था मुझसे ....वो जो स्मैक बिकवाता था .....वो जो यौन शोषण करता था मेरा ...........और उस पुलिस वाले को भी , जो हफ्ता लेता था मुझसे ........ हर उस शख्स को जिसने मुझे वो बनाया , जो मैं आज हूँ ..........और अपनी बच्चियों को सम्हाल के रखना , क्योंकि मुझ जैसे हज़ारों लाखों हैं , पल रहे , इस शहर में .
दुनिया ने तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है लौटा रहा हूँ मैं ..........साहिर लुधियानवी
बहुत सही .सार्थक अभिव्यक्ति भारत सदा ही दुश्मनों पे हावी रहेगा .
ReplyDelete@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .