मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आती है ............... गर्मी की छुट्टियों में हम अपने गाँव आये हुए थे . रात को सब बाहर सोये थे .......... तभी बगल की बस्ती से कुछ आवाजें आने लगी .मोहल्ले में जाग हो गयी .......क्या हुआ ? क्या हुआ ? तभी हमारे ताऊ जी ने हम सब लोगों को डांट के चुप कराया और ध्यान से सुनने लगे ........फिर उन्होंने बताया की दूर कहीं किसी को सांप ने काट लिया है .......मदद चाहिए ..........फिर वो बाहर निकल के ऊंची आवाज़ में चिल्ला चिल्ला के कुछ बोलने लगे ...........इसके बाद मेरे दो बड़े भाइयों ने टोर्च ली , लाठी उठायी और बाहर चले गए . मेरे लिए ये एक नया अनुभव था . ये वो ज़माना था जब हर हाथ में मोबाइल फोन नहीं थे .घर घर बाइक और गाड़ियाँ नहीं थी . दूर दराज़ के गावों में लोग खटिया पे लाद के मरीजों को अस्पताल पहुंचाते थे . उस रात लोग चिल्ला रहे थे . क्यों ? क्योंकि दूर एक गाँव में एक सोखा रहता था .सोखा ,यानी झाड फूंक करने वाला .............अब पैदल इतनी दूर रात में जाना आसान नहीं ....सो लोग चिल्ला के अपनी बात कहते . वो आवाज़ आधा किलोमीटर दूर तक जाती .......उसे सुन के अगले गाँव के लोग चिल्लाते .....और इसी तरह 5 मिनट में खबर फ़ैल जाती , और फिर सब लोग मदद के लिए जुट जाते . पुराने ज़माने में यही संचार व्यवस्था थी . आज संचार व्यवस्था तो सुधर गयी है पर संवेदनाएं मर गयी हैं .
पर ये बात तय है की अगर ये दिल्ली वाली घटना किसी गाँव में या किसी बस्ती के नज़दीक होती तो नज़ारा कुछ और ही होता .सड़क किनारे दो लोग घायल पड़े हैं .ये बात जंगल की आग की तरह फैलती .आनन फानन में सैकड़ों लोग जुट जाते .और किसी पुलिस या एम्बुलेंस की इंतज़ार किये बिना घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाते , औरतें उस लड़की की सेवा में जुट जाती . लोग अपनी शर्ट उतार के उस बेटी को पहना देते . इलाज कराने के लिए पैसे न होते तो तुरंत दस लोग मिल के कुछ पैसे जुटा लेते .........कोई लड़का साइकिल उठा के उनके घर वालों को खबर करने के लिए दौड़ पड़ता .वहाँ सबको यूँ लगता मानो अपनी ही बेटी है .
दोस्तों ,यही फर्क है India और भारत में
पर ये बात तय है की अगर ये दिल्ली वाली घटना किसी गाँव में या किसी बस्ती के नज़दीक होती तो नज़ारा कुछ और ही होता .सड़क किनारे दो लोग घायल पड़े हैं .ये बात जंगल की आग की तरह फैलती .आनन फानन में सैकड़ों लोग जुट जाते .और किसी पुलिस या एम्बुलेंस की इंतज़ार किये बिना घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाते , औरतें उस लड़की की सेवा में जुट जाती . लोग अपनी शर्ट उतार के उस बेटी को पहना देते . इलाज कराने के लिए पैसे न होते तो तुरंत दस लोग मिल के कुछ पैसे जुटा लेते .........कोई लड़का साइकिल उठा के उनके घर वालों को खबर करने के लिए दौड़ पड़ता .वहाँ सबको यूँ लगता मानो अपनी ही बेटी है .
दोस्तों ,यही फर्क है India और भारत में
भारत अब india बन रहा है न..
ReplyDeleteक्या करेँ यही बात का तो रोना हैँ
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