मेरे दो दोस्तों ने ग़दर मचा रखा है . एक हैं Tarun Goyal . श्री मान जी इंजिनियर हैं .ऐसे वैसे नहीं , सचमुच के .........क्योंकि आजकल तो BTech करने वालों ने भी ग़दर मचा रखा है .......जिसे देखो वही BTech लिए घूम रहा है .....घर घर खुल गए हैं इंजीनियरिंग कालेज ....साली BTech की तो कोई इज्ज़त ही नहीं रही ........MBA से भी गए गुजरे हो गए . खैर मुद्दे पर वापस आते हैं . तो तरुण गोयल साहब इंजिनियर बन के अब घूमने निकल पड़े हैं . घुमक्कड़ी का भूत सवार हो गया है . सुना है की अभी 6 महीने हिमालय पे घूम के आये हैं .....फिर सुनते हैं की पकिस्तान चले गए थे .......बेचारे माँ बाप ....... क्या बीतती होगी उनके दिल पे ........एक दुसरे हैं जनाब नीरज जाट जी ........वो तो बड़े बदनाम घुमक्कड़ हैं ......... कई बार मैं सोचता हूँ की ये METRO वाले इसे बर्दाश्त कैसे करते होंगे . इतनी छुट्टी इसे मिलती कैसे होगी ......... नीरज जाट के ब्लॉग पे उनकी अलमस्त घुमक्कड़ी पे कई कमेंट्स पढने को मिलते हैं .........टूरिस्ट किस्म के लोग उन्हें समझ नहीं पाते .....लिखते हैं की क्या फ़ालतू का घूम रहे हो ....वो बेचारे सफ़ाइयाँ देते फिरते हैं ....अरे भाई टूरिज्म और घुमक्कड़ी में फर्क होता है ......क्या फर्क होता है .......
इसके अलावा एक और लड़की है जिसने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में ग़दर मचा रखा है . वो है स्नेहा खानवलकर . पिछले साल रिलीज़ हुई अनुराग कश्यप की बहु चर्चित फिल्म gangs of wasseypur में उन्होंने म्यूजिक दिया है जिसकी चहु ओर प्रशंसा हो रही है . पिछले दिनों उनका एक इंटरव्यू देख रहा था मैं . वो बता रही थी की अपनी फिल्मों का म्यूजिक तैयार करने के लिए वो सारे हिन्दुस्तान और सारी दुनिया में घूमती हैं . फिर वो बताती हैं की उनका बचपन इंदौर में बीता , एक साधारण मिडिल क्लास परिवार में , और उन्हें बचपन में बिलकुल घूमने को नहीं मिला .उम्र इंदौर में ही बीत गयी . फिर जब फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मौक़ा मिला तो profession की मांग ही ऐसी थी जहां उन्हें दुनिया जहान की music , sounds और beats को जानने की ज़रुरत थी . और वो थी कूप मंडूक .सो वो निकल पडी दुनिया घूमने .अकेली ही . उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म oye lucky .........lucky oye में एक रागिनी कंपोज़ करनी थी , जिसके लिए वो 6 महीना पंजाब में घूमती रही .....सैकड़ों गायकों से मिली पर वो रागिनी मिलती भी कैसे .....क्योंकि वो तो हरियाणवी थी ......तू राजा की राज दुलारी ........फिर अंत में उन्हें वो हरियाणा में मिली .........सो वो GOW के लिए पूरा UP ,Bihar ,Mauritius, Trinidad & Tobago हर उस जगह पे घूमी जहां हिंदी और भोजपुरी भाषी बसते हैं . और वो शहरों में नहीं बल्कि गाँव गाँव , गली गली , बस्तियों और झोपड़ियों में घूमती फिरी , और इस मेहनत के बाद जो म्यूजिक उन्होंने तैयार किया उसने दुनिया का दिल जीत लिया .
दुनिया में ज़्यादातर लोग घूमना फिरना पसंद करते हैं . पर वो टूरिस्ट होते हैं . घुमक्कड़ नहीं . दरअसल टूरिस्ट तो बड़ा बेचारा किस्म का जीव होता है . अवध के नवाब वाजिद अली शाह जैसा . जब अवध पे अंग्रेजों ने हमला किया तो नवाब साहब सिर्फ इसलिए न भाग पाए क्योंकि महल में कोई उन्हें जूते पहनाने वाला न था . लखनऊ की बात चली तो मुझे एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आता है .उन दिनों हम लखनऊ में रहते थे .एक शाम मैंने यूँ ही धर्मपत्नी के कान में धीरे से कहा .....नैनीताल चलोगी ?और उसने मुंडी हिला दी . तो फिर चल 5 मिनट में तैयार हो जा . 9 बजे की ट्रेन है . 8.30 बज चुके थे .2 मिनट में बैग में कपडे ठूसे , और भाग लिए .....auto पकड़ा .........किसी तरह भागते हुए स्टेशन पहुंचे ....... उन दिनों वो लालकुआं एक्सप्रेस चारबाग़ छोटी लाइन से चला करती थी . वहाँ पहुंचे तो गार्ड हरी झंडी दिखा रहा था और ट्रेन चल पड़ी थी .......... किसी तरह भागते पड़ते गार्ड के डब्बे में ही चढ़ गए .....वो बेचारा भी हमें देख के ही डर गया ........खैर 5 मिनट बाद ट्रेन जब ऐशबाग रुकी तो उतर के अगले डिब्बे में गए .....TTE के कान में गुरु मंत्र मारा और उसने 2 सीट दे दी . सुबह लालकुआ उतरे , टैक्सी पकड़ के नैनी ताल गए . दो दिन वहाँ मस्ती से घूमे फिरे और लखनऊ वापस ...........ये तो हुई घुमक्कड़ी ...... अब अगर इसे टूरिज्म का रूप दिया जाए तो कहानी कुछ यूँ होती ......धर्म पत्नी 2 महीने से मेरा सर खाती .....घूमने चलो घूमने चलो .....अच्छा कहाँ जाना है ....नैनीताल .......नहीं .... मसूरी ....नहीं ....शिमला ....नहीं .....ऊटी ....15 दिन में तो जगह decide होती ....फिर reservation........ मिलता न मिलता ......AC 3 टियर ....नहीं 2 टियर ....स्लीपर में नहीं जाउंगी ....जान दे दूंगी ....ख़ुदकुशी कर लुंगी ......स्लीपर में नहीं जाउंगी ........चलो जी , अब रिजर्वेशन हो गया ....अब होटल बुक करो ........टैक्सी .....पैकिंग ...कपडे ....लहंगा ....घाघरा .......सैंडल ........ वहाँ नाश्ते में maggi खाई ....दिन में शाही पनीर के साथ लच्छा पराँठा ........घोड़े पे चढ़े , फोटो खिचाया , शाल खरीदा ....घर वापस .....हो गया टूरिज्म .
कहने का मतलब की टूरिस्ट बेचारा घूमते फिरते भी अपने comfort zone से बाहर नहीं निकलना चाहता . आम तौर पे टूरिज्म से रहस्य , रोमांच , मस्ती और फक्कडपन गायब होता है . घुमक्कड़ बड़ा मस्त जीव होता है . वो बिना कारण के घूमता है। बिना प्लानिंग के घूमता है . बिना बजट के घूमता है . सो के, बैठ के, खडा हो के, लटक के , छत पे बैठ के यात्रा करता है . ट्रक ,बस, साइकिल ,बैलगाड़ी, ट्रेक्टर, जहां मर्जी लटक लेगा .....लिफ्ट मांग लेगा . गंदे कपडे पहने , दाढ़ी बढाए ,कही भी सो जायेगा , खा लेगा . किसी का भी मेहमान हो जायेगा . जाना था कही ,और पहुँच गया कही और ........स्थानीय लोगों से मिलेगा जुलेग ....स्थानीय भोजन खायेगा .......वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को महसूस करेगा . लोक रीत और लोक संगीत जानेगा ......टूरिस्ट जेब भर के घर से निकलता है और खाली हाथ घर लौट आता है ...........घुमक्कड़ खाली हाथ घर से निकल पड़ता है और अनुभवों का खजाना लिए वापस लौटता है। अक्सर लोग कहा करते हैं की travelling is the best education ........पर अवश्य उनका आशय घुमक्कड़ी से होगा न की टूरिज्म से .
मैं जब Tarun Goyal , Neeraj Jat और Sneha khanwilkar की घुमक्कड़ी के किस्से पढता हूँ तो मुझे बीते जमाने के मूर्धन्य साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का ख्याल आता है जिन्होंने पूरी दुनिया पैदल ही घूम डाली , 36 भाषाओं के ज्ञाता हुए और हिंदी एवं बौद्ध साहित्य के प्रकांड विद्वान् हुए . उन्होंने अपने पूरे जीवन का निचोड़ ही यायावरी ....यानी घुमक्कड़ी को बताया . उन्होंने घुमक्कड़ी के धर्म को सभी धर्मों का आधारभूत धर्म कहा है और पर्यटन की प्रकृति को संसार का सबसे बड़ा सुख बताया है। आपके अनुसार घुमक्कड़ी की महिमा किसी शास्त्र से कम नहीं है। राहुल जी ने संसार के अनेक महापुरूषों की सफलता का रहस्य घुमक्कड़ी को ही बताया है और कोलंबो, डार्विन, वास्कोडिगामा, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, रामानुज, गुरू नानक आदि का उदाहरण सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिये दिया है। वस्तुत: आपके विचारों का आशय यह है कि नई-नई जगहों पर नये-नये देशों मे घूमने से व्यक्ति विभिन्न लोगों और उनकी सभ्यता तथा संस्कृति के संपर्क में आता है और इस प्रकार बहुत कुछ सीखने एवं जानने का मौका उसे मिलता है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है ............
सैर कर दुनिया की गाफिल , जिंदगानी फिर कहाँ
जिंदगानी गर रही तो , नौजवानी फिर कहाँ
इसके अलावा एक और लड़की है जिसने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में ग़दर मचा रखा है . वो है स्नेहा खानवलकर . पिछले साल रिलीज़ हुई अनुराग कश्यप की बहु चर्चित फिल्म gangs of wasseypur में उन्होंने म्यूजिक दिया है जिसकी चहु ओर प्रशंसा हो रही है . पिछले दिनों उनका एक इंटरव्यू देख रहा था मैं . वो बता रही थी की अपनी फिल्मों का म्यूजिक तैयार करने के लिए वो सारे हिन्दुस्तान और सारी दुनिया में घूमती हैं . फिर वो बताती हैं की उनका बचपन इंदौर में बीता , एक साधारण मिडिल क्लास परिवार में , और उन्हें बचपन में बिलकुल घूमने को नहीं मिला .उम्र इंदौर में ही बीत गयी . फिर जब फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मौक़ा मिला तो profession की मांग ही ऐसी थी जहां उन्हें दुनिया जहान की music , sounds और beats को जानने की ज़रुरत थी . और वो थी कूप मंडूक .सो वो निकल पडी दुनिया घूमने .अकेली ही . उन्हें दिबाकर बनर्जी की फिल्म oye lucky .........lucky oye में एक रागिनी कंपोज़ करनी थी , जिसके लिए वो 6 महीना पंजाब में घूमती रही .....सैकड़ों गायकों से मिली पर वो रागिनी मिलती भी कैसे .....क्योंकि वो तो हरियाणवी थी ......तू राजा की राज दुलारी ........फिर अंत में उन्हें वो हरियाणा में मिली .........सो वो GOW के लिए पूरा UP ,Bihar ,Mauritius, Trinidad & Tobago हर उस जगह पे घूमी जहां हिंदी और भोजपुरी भाषी बसते हैं . और वो शहरों में नहीं बल्कि गाँव गाँव , गली गली , बस्तियों और झोपड़ियों में घूमती फिरी , और इस मेहनत के बाद जो म्यूजिक उन्होंने तैयार किया उसने दुनिया का दिल जीत लिया .
दुनिया में ज़्यादातर लोग घूमना फिरना पसंद करते हैं . पर वो टूरिस्ट होते हैं . घुमक्कड़ नहीं . दरअसल टूरिस्ट तो बड़ा बेचारा किस्म का जीव होता है . अवध के नवाब वाजिद अली शाह जैसा . जब अवध पे अंग्रेजों ने हमला किया तो नवाब साहब सिर्फ इसलिए न भाग पाए क्योंकि महल में कोई उन्हें जूते पहनाने वाला न था . लखनऊ की बात चली तो मुझे एक बड़ा मजेदार किस्सा याद आता है .उन दिनों हम लखनऊ में रहते थे .एक शाम मैंने यूँ ही धर्मपत्नी के कान में धीरे से कहा .....नैनीताल चलोगी ?और उसने मुंडी हिला दी . तो फिर चल 5 मिनट में तैयार हो जा . 9 बजे की ट्रेन है . 8.30 बज चुके थे .2 मिनट में बैग में कपडे ठूसे , और भाग लिए .....auto पकड़ा .........किसी तरह भागते हुए स्टेशन पहुंचे ....... उन दिनों वो लालकुआं एक्सप्रेस चारबाग़ छोटी लाइन से चला करती थी . वहाँ पहुंचे तो गार्ड हरी झंडी दिखा रहा था और ट्रेन चल पड़ी थी .......... किसी तरह भागते पड़ते गार्ड के डब्बे में ही चढ़ गए .....वो बेचारा भी हमें देख के ही डर गया ........खैर 5 मिनट बाद ट्रेन जब ऐशबाग रुकी तो उतर के अगले डिब्बे में गए .....TTE के कान में गुरु मंत्र मारा और उसने 2 सीट दे दी . सुबह लालकुआ उतरे , टैक्सी पकड़ के नैनी ताल गए . दो दिन वहाँ मस्ती से घूमे फिरे और लखनऊ वापस ...........ये तो हुई घुमक्कड़ी ...... अब अगर इसे टूरिज्म का रूप दिया जाए तो कहानी कुछ यूँ होती ......धर्म पत्नी 2 महीने से मेरा सर खाती .....घूमने चलो घूमने चलो .....अच्छा कहाँ जाना है ....नैनीताल .......नहीं .... मसूरी ....नहीं ....शिमला ....नहीं .....ऊटी ....15 दिन में तो जगह decide होती ....फिर reservation........ मिलता न मिलता ......AC 3 टियर ....नहीं 2 टियर ....स्लीपर में नहीं जाउंगी ....जान दे दूंगी ....ख़ुदकुशी कर लुंगी ......स्लीपर में नहीं जाउंगी ........चलो जी , अब रिजर्वेशन हो गया ....अब होटल बुक करो ........टैक्सी .....पैकिंग ...कपडे ....लहंगा ....घाघरा .......सैंडल ........ वहाँ नाश्ते में maggi खाई ....दिन में शाही पनीर के साथ लच्छा पराँठा ........घोड़े पे चढ़े , फोटो खिचाया , शाल खरीदा ....घर वापस .....हो गया टूरिज्म .
कहने का मतलब की टूरिस्ट बेचारा घूमते फिरते भी अपने comfort zone से बाहर नहीं निकलना चाहता . आम तौर पे टूरिज्म से रहस्य , रोमांच , मस्ती और फक्कडपन गायब होता है . घुमक्कड़ बड़ा मस्त जीव होता है . वो बिना कारण के घूमता है। बिना प्लानिंग के घूमता है . बिना बजट के घूमता है . सो के, बैठ के, खडा हो के, लटक के , छत पे बैठ के यात्रा करता है . ट्रक ,बस, साइकिल ,बैलगाड़ी, ट्रेक्टर, जहां मर्जी लटक लेगा .....लिफ्ट मांग लेगा . गंदे कपडे पहने , दाढ़ी बढाए ,कही भी सो जायेगा , खा लेगा . किसी का भी मेहमान हो जायेगा . जाना था कही ,और पहुँच गया कही और ........स्थानीय लोगों से मिलेगा जुलेग ....स्थानीय भोजन खायेगा .......वहाँ की सभ्यता और संस्कृति को महसूस करेगा . लोक रीत और लोक संगीत जानेगा ......टूरिस्ट जेब भर के घर से निकलता है और खाली हाथ घर लौट आता है ...........घुमक्कड़ खाली हाथ घर से निकल पड़ता है और अनुभवों का खजाना लिए वापस लौटता है। अक्सर लोग कहा करते हैं की travelling is the best education ........पर अवश्य उनका आशय घुमक्कड़ी से होगा न की टूरिज्म से .
मैं जब Tarun Goyal , Neeraj Jat और Sneha khanwilkar की घुमक्कड़ी के किस्से पढता हूँ तो मुझे बीते जमाने के मूर्धन्य साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का ख्याल आता है जिन्होंने पूरी दुनिया पैदल ही घूम डाली , 36 भाषाओं के ज्ञाता हुए और हिंदी एवं बौद्ध साहित्य के प्रकांड विद्वान् हुए . उन्होंने अपने पूरे जीवन का निचोड़ ही यायावरी ....यानी घुमक्कड़ी को बताया . उन्होंने घुमक्कड़ी के धर्म को सभी धर्मों का आधारभूत धर्म कहा है और पर्यटन की प्रकृति को संसार का सबसे बड़ा सुख बताया है। आपके अनुसार घुमक्कड़ी की महिमा किसी शास्त्र से कम नहीं है। राहुल जी ने संसार के अनेक महापुरूषों की सफलता का रहस्य घुमक्कड़ी को ही बताया है और कोलंबो, डार्विन, वास्कोडिगामा, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, रामानुज, गुरू नानक आदि का उदाहरण सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिये दिया है। वस्तुत: आपके विचारों का आशय यह है कि नई-नई जगहों पर नये-नये देशों मे घूमने से व्यक्ति विभिन्न लोगों और उनकी सभ्यता तथा संस्कृति के संपर्क में आता है और इस प्रकार बहुत कुछ सीखने एवं जानने का मौका उसे मिलता है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है ............
सैर कर दुनिया की गाफिल , जिंदगानी फिर कहाँ
जिंदगानी गर रही तो , नौजवानी फिर कहाँ
राहुल सांकृत्यायन _/\_
ReplyDeletewaise Guru aadmi to aap ho. Ham to bas naye launde hain game me.
Hamne aapse prerna lekar chadha diya tha 'apni waali' ko ek din truck me. Pehle chalti train se utara, fir ghused diya subah 4 bahe chalte truck me. Truck waala bhi SuperSpeet se chala us din ;)
घुमक्कड़ आदमी को बीवी बड़ी छांट के चुननी चहिये .......क्योंकि अगर वो मस्त मौला न हो तो जीवन नर्क हो जाता है
ReplyDeleteसिंह साहब, भगवान् जोडिया ऊपर से ही बनाकर भेजते है , निभ जायेगी!
Deleteवाह... जहां कहीं घुमक्कडी की चर्चा होती है तो इस सैर करने वाले शेर का जिक्र जरूर होता है। इसके शायर थे- इस्माइल मेरठी।
ReplyDeleteरही बात घरवाली की तो तैमूर साहब ने इसके बारे में बडी जबरदस्त बात कही कि छांट के चुननी चाहिये।
वैष्णवी साहब, कोई भगवान ऊपर से नहीं भेजता... बल्कि समाज के ठेकेदार तय करते हैं कि किसको किससे ब्याह करना है। अगर ठेकेदारों के कहे अनुसार अपनी गृहस्थी नहीं बसाई तो बिरादरी और ‘देश’ से बेदखल करने से लेकर ये ठेकेदार जिन्दगी तक से बेदखल कर देते हैं।
पर्यटन और घुमक्कडी...
ReplyDeleteदोनों बिल्कुल अलग अलग चीजें हैं।
मेरे पास अक्सर लोगों के फोन और मेल आते रहते हैं जिनमें वे पूछते हैं- हमें घूमने जाना है, बेस्ट जगह बताओ, बेस्ट होटल बताओ। ये लोग ठेठ पर्यटक होते हैं। मैं इन्हें कहता हूं कि घर से बेस्ट कुछ नहीं है।
अगर हम अपने मन से बेस्ट नामक बला को निकाल फेंके तो इंसान घुमक्कड बनने की ओर अग्रसर होने लगता है।
जबरदस्त।
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