धर्म पत्नी यहाँ सुल्तानपुर लोधी में एक स्कूल की प्रिंसिपल है . मैं बच्चों के साथ वहाँ पटियाला में रहता हूँ .जब कभी मौक़ा मिलता है तो यहाँ आता हूँ .और जब यहाँ आता हूँ तो कोई काम नहीं होता ......सारा दिन नेट पे बैठ के पढ़ना या लिखना ........अभी तीन दिन पहले एक पोस्ट लिखी है ......हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है .......सारा दिन कुर्सी तोड़ते , नेट पे बैठे ऐसे ही ऊल जुलूल खयालात आया करते हैं .............
साल भर पहले की बात है . शाम का समय था .अंधेरा हो चला था .हम दोनों नीचे लॉन में बैठे चाय पी रहे थे . इस बिल्डिंग की तीसरी मंजिल बन रही थी . एक ट्रक रेत आयी हुई थी .और वो अकेला लगा हुआ था .उम्र रही होगी यही कोई पचास पचपन . पता नहीं कब से लगा था . हम दोनों बतिया रहे थे और चाय की चुस्कियां ले रहे थे . फिर पता नहीं कैसे उसकी तरफ ध्यान चला गया . धर्म पत्नी ने बताया सुबह से लगा है .आठ सौ रु में ठेका लिया है इसने . पूरी रेत तिमंजिले पर चढ़ानी है .
हम घंटों वहाँ बैठ के बतियाते रहे . वो लगा रहा .लक्ष्मी एक कप चाय और बना लाई .मुझे याद नहीं , पर शायद हमने उसे भी चाय पिलाई . या नहीं पिलाई , ठीक से याद नहीं . 9 बज गए .हम अन्दर चले गए .
सुबह की चाय फिर उसी लॉन में . बाहर निकले तो वो फिर लगा हुआ था .रात को थोड़ा सा रेत बच गया था .उसे उसने सुबह 7 बजे तक निपटा दिया . धर्मपत्नी बोलीं , कितना मेहनती है ये आदमी . फिर जब 9 बजे काम लगा , तो वो फिर हाज़िर था .
स्कूल की बिल्डिंग अब बन के तैयार है . आज सुबह फेसबुक खोला तो सामने मई दिवस पे मजदूरों पे कई पोस्ट चिपके हुए थे . बरबस उस गुमनाम मजदूर की याद आ गयी . मई दिवस पे उस के अनवरत बहते पसीने को सलाम .......
साल भर पहले की बात है . शाम का समय था .अंधेरा हो चला था .हम दोनों नीचे लॉन में बैठे चाय पी रहे थे . इस बिल्डिंग की तीसरी मंजिल बन रही थी . एक ट्रक रेत आयी हुई थी .और वो अकेला लगा हुआ था .उम्र रही होगी यही कोई पचास पचपन . पता नहीं कब से लगा था . हम दोनों बतिया रहे थे और चाय की चुस्कियां ले रहे थे . फिर पता नहीं कैसे उसकी तरफ ध्यान चला गया . धर्म पत्नी ने बताया सुबह से लगा है .आठ सौ रु में ठेका लिया है इसने . पूरी रेत तिमंजिले पर चढ़ानी है .
हम घंटों वहाँ बैठ के बतियाते रहे . वो लगा रहा .लक्ष्मी एक कप चाय और बना लाई .मुझे याद नहीं , पर शायद हमने उसे भी चाय पिलाई . या नहीं पिलाई , ठीक से याद नहीं . 9 बज गए .हम अन्दर चले गए .
सुबह की चाय फिर उसी लॉन में . बाहर निकले तो वो फिर लगा हुआ था .रात को थोड़ा सा रेत बच गया था .उसे उसने सुबह 7 बजे तक निपटा दिया . धर्मपत्नी बोलीं , कितना मेहनती है ये आदमी . फिर जब 9 बजे काम लगा , तो वो फिर हाज़िर था .
स्कूल की बिल्डिंग अब बन के तैयार है . आज सुबह फेसबुक खोला तो सामने मई दिवस पे मजदूरों पे कई पोस्ट चिपके हुए थे . बरबस उस गुमनाम मजदूर की याद आ गयी . मई दिवस पे उस के अनवरत बहते पसीने को सलाम .......
No comments:
Post a Comment