एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ .दोनों के अपने अपने फायदे हैं . जिसे आप मछली देंगे वो आपका ज़बरदस्त fan हो जाएगा . उसे बैठे बिठाए मुफ्त का खाना जो मिल गया . अब वो अक्सर आपका दरबार लगाएगा . जी हुजूरी करेगा . रोज़ आपसे मछ्ले मांगेगा .अगर आप उसे मछली पकड़ना सिखा दें तो इसमें भी एक बहुत बड़ा रिस्क है . अगर वो मछली पकड़ना सीख गया तो शायद फिर आपकी जी हुजूरी करने , आपको तेल लगाने नहीं आयेगा ............... बहुत से राजनैतिक , सामाजिक और धार्मिक लीडर्स पे ये आरोप लगते रहे हैं की उन्होंने अपने followers को जान बूझ के , planning करके , by design अनपढ़ , जाहिल , और दीन हीन बना के रखा .जान बूझ के उन्हें शिक्षा से वंचित रखा .लड़ाई झगडे , दंगे फसाद में उलझा के रखा .
UPA सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना रही है , नरेगा और मनरेगा . ये योजना गाँव के unskilled मजदूर को साल में सौ दिन, मिटटी फेंकने के, 140 रु रोज़ देती है. सुनते हैं की एक लाख चालीस हज़ार करोड़ रु खर्च दिए पिछले 5 साल में ,सरकार ने , इस योजना पे . सुनते हैं की अकेले इस योजना ने देश की economy का भट्ठा बैठा दिया . इसके कारण महंगाई आसमान पे पहुँच गयी . देश के करोड़ों लोग अब फावड़े से मिटटी खोद के, उसे तसले में भर के , सर पे रख के ,फेंक के , खुश हैं ...........उन्हें 6 घंटे के एक सौ चालीस रु मिल जाते हैं .
एक बार हमारे गाँव में बड़ा बवाल मचा . फसल पाक के तैयार थी .पर कोई मजदूर काटने नहीं जा रहा था . क्योंकि गाँव में नरेगा का काम चल रहा था . सब लोग गाँव प्रधान के पास पहुंचे . भैया क्या चाहते हो ? फसल खेत में सड़ जायेगी .........कुछ दिन के लिए बंद करो ये नरेगा ............पर मजदूर बिलकुल नहीं चाहते थे की बंद हो नरेगा . सो प्रधान ने नया रास्ता निकाला .उसने सभी मजदूरों को बुला के कहा , देखो भैया , मुझे तुम्हारी हाजिरी से कोई मतलब नहीं . मुझे तो एक दिन में इतने वर्ग फुट मिटटी का काम चाहिए . चाहे सारा दिन में करो , चाहे दो घंटे में करो ............. चाहे दस आदमी करो , चाहे पचास आदमी मिल के करो .अगले दिन सब मजदूर सुबह 5 बजे ही काम पे लग गए और दो घंटे में उन्होंने वो मिटटी फेंक दी और फिर सार दिन फसल काटी ....दस दिन में सारे गाँव की फसल भी कट गयी .
- भारत सरकार न by design ....... देश के करोड़ों लोगों को मिटटी फेंकने में लगा रखा है .
- वो लोग इस काम में इस कदर उलझे हैं , इतने मगन हैं की उन्हें स्किल डेवलपमेंट पे दिमाग लगाने के फुर्सत नहीं .
- जो काम दो घंटे में हो सकता है , उसे सारा दिन में, धीरे धीरे, मस्ती से करते हैं .productivity गयी तेल लेने .
- घर बैठे सौ रु मिल जाते हैं ( चालीस प्रधान और system खा जाता है ), क्या ज़रुरत है किसी फैक्ट्री में या खेत में काम करने की .
सुनने में आया की इस योजना से मजदूर इतने खुश थे की UPA को दुबारा चुनाव जिताने में इसी योजना का हाथ रहा . पर अब समस्या पैदा हो गयी है .देश भर के मजदूर अब मांग कर रहे हैं की हमें साल में दो सौ दिन और दो सौ चालीस रु रोज़ दिए जाएँ .और सरकार के पास फूटी कौड़ी नहीं है देने के लिए . क्योंकि सरकार ऐसी ही दो नयी योजनाओं पे काम कर रही है. एक है खाद्यान्न सुरक्षा योजना और दूसरी है direct cash transfer .पहली में गरीब तपके को दो रु किलो गेहूं चावल और एक रु किलो मोटा अनाज .जौ , ज्वार ,बाजरा , मक्का मिलेगा . अब तक गाँव का भूमिहीन मजदूर इसलिए खेत में काम करता था की उसे साल भर का अनाज मिल जाता था . अब सरकार ने वो समस्या भी हल कर दी है . दो रु किलो अनाज मिल गया . क्या ज़रुरत है किसी फैक्ट्री या खेत में जा के काम करने के . मिटटी फेक , मस्त रह .ऊपर से सरकार हर महीने हज़ार दो हज़ार खाते में भी डलवा देगी ........ subsidy वाला .....उस से फोन रिचार्ज करवा लेंगे ..........अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम ....दास मलूका कह गए सबके दाता राम ...........
यूँ इन सभी योजनाओं परियोजनाओं के पक्ष विपक्ष में ढेरों तर्क वितर्क दिए जा सकते हैं . बड़े लाभ हानि गिनाये जा सकते हैं . पर मैं इसके सिर्फ एक पहलू पे जोर दे रहा हूँ . ये सभी योजनायें गरीब unskilled लोगों को सारे ज़िन्दगी unskilled बना के रखने का षड़यंत्र है .
- शुरू से ही दलित , आदिवासी , मुसलमान , और गरीब लोग कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं . उनकी गरीबी और जहालत ही कांग्रेस की ताकत है. अगर ये लोग socio-economic सीढ़ी पे ऊपर चढ़ गए तो तुरंत पाला बदल लेंगे .उन्हें गरीब और जाहिल बना के रखने में ही कांग्रेस का फायदा है
- जितना पैसा पिछले पांच साल में इन योजनाओं पे खर्च हुआ और आने वाले दस सालों में खर्च होगा , उतने पैसे में पूरे देश की पूरी नयी पीढी को शिक्षित और skilled बनाया जा सकता है .गरीबी , बेरोजगारी और खैरात पे पलने की मजबूरी से ऊपर उठाया जा सकता है .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज की ब्लॉग बुलेटिन गुम होती नैतिक शिक्षा.... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteयही हो रहा है !!
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