हजारोँ-हजार साल पहले, रामायण काल में जब राम जी की सेना लंका पर चढ़ाई के लिए सेतु बना रही थी, तब कहते हैं की एक छोटी सी गिलहरी ने भी अपनी तरफ से जितना बन पडा था योगदान कर प्रभू का स्नेह प्राप्त किया था। वो भी सामर्थ्यानुसार अपने पंजों में रेत भर लाया करती थी . वहीं भीड़ भाड़ में घुसी पिली रहती थी ......... वानर सब उस से चिढ़ते थे ........एक दिन किसी ने घुड़क दिया .....हे तू चल इधर से .....चल फूट ले ........तब प्रभु ने बीच में टोका .......नहीं भाई ...राम जी का काज है .......इसे भी पुण्य कमा लेने दो ......... और उस नन्ही सी गिलहरी ने भी इतना पुण्य कमा लिया की आज तक उसका नाम बजता है ..........बड़े से बड़े काम में भी छोटी से छोटी गिलहरी का भी योगदान हो सकता है . ये उस गिलहरी की फिलोसोफी थी .....आज तक चल रही है अपने हिन्दुस्तान में .......बात भी सही है .......आप बड़ा या छोटा कुछ भी करें ......उस से राष्ट्र का निर्माण होता है ........अगर कोई बाप अपना पेट काट के अपने बच्चे को पढाता है तो उस से राष्ट्र निर्माण होता है ...........भारत का निर्माण होता है ,,,,,और आप तो जानते ही हैं की भारत के निर्माण पे हक़ है मेरा .........
इस महान फिलोसोफी का प्रादुर्भाव आधुनिक काल में जानते हैं किसने किया ? महर्षि रोबर्ट ठठेरा जी ने ........... पर सोचने वाले बात ये है की ऋषि मुनियों के इस प्राचीन देश में इतनी महान फिलोसोफी उनके हाथों कैसे आविष्कृत हो गयी ........ इसका एक लंबा प्राचीन किस्सा है .........हस्तिनापुर में जनपथ में अम्मा एक दिन बहुत नाराज़ हुई .........उन्होंने युवराज को बुलवाया और अपनी व्यथा सुनायी .........मैंने बिटिया को बहुत समझाया था .....इस बन्दर को गले में लटका के मत घूमो .........पर उसे तो इश्क का भूत सवार था .......मैं कहती न थी ...एक दिन ये नाक कटवा देगा .......किसी खानदानी लड़के से शादी की होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता ........कहाँ हम लोग ....और कहाँ ये मुरादाबादी ठठेरा ..........हम सात पुश्त से लूट रहे हैं ....पर आज तक किसी को शक हुआ ? पर देखा इसे ....तीन दिन में पोल खुलवा दी .........खैर किसी तरह अम्मा शांत हुई ........युवराज ने पूछा कैसे याद किया .......चुनाव सर पे आ गए ....कैसे होगा .....लूट खसोट की इस गंगा में प्रवाह निरंतर बने रहना चाहिए ..........अगला चुनाव जीतना ज़रूरी है ....... पार्टी की मीटिंग बुलाने पड़ेगी ........युवराज ने फोन निकाला और नंबर डायल कर ही रहे थे की अम्मा ने टोक दिया ....किसे मिला रहे हो .......दिग्गी राजा को ........ मूरख पूरे मोहल्ले को नहीं बुलाना है .......पार्टी की मीटिंग है .....और पार्टी में सिर्फ तीन लोग है .....मै तुम और तुम्हारी जीजी .......युवराज ने जीजी को फोन लगाया ....उधर से आवाज़ जीजा जी की आयी ..........ज़रा जीजी को फोन दीजिये .......हेलो जीजी ...आज पार्टी की मीटिंग है ....शाम को आ जाइएगा ......5 बजे ....अकेले .......और फोन काट दिया .
शाम को जब अम्मा मीटिंग रूम में पहुँची तो उनका माथा ठनका . बिटिया की जगह दामाद जी बैठे थे . बगल में युवराज थे . मुह फुलाए अम्मा सिंहासन पे विराजमान हुई .
सासू माँ .......ये मुह क्यों फुला रखा है .........
तुमने ये क्या लूट पाट मचा रखी है .......
देखिये सासू माँ....ज़रा सम्हाल के बोलिए ......मेरा मुह मत खुलवाइये ......... आप और आपका ये पिल्ला .......... आप दोनों हैं इटली के .........पर मैं यहीं का हूँ ......... एकदम टंच माल मुरादाबादी ........ये भारत देश मेरा है ........इसपे मेरा भी हक है .....और फिर एक चमत्कार हुआ ..........ऋषिवर के मुह से कविता फुट पडी .......भारत के इस निर्माण पे ......हक है मेरा ...........बैकग्राउंड में संगीत बजने लगा .......और ऋषिवर झूम झूम के गाने लगे ......... भारत के इस निर्माण पे हक है मेरा ......अम्मा की सभी शंकाओं का समाधान हो गया था .........उनका मूड ठीक हो गया ....युवराज के चेहरे पे मुस्कान दौड़ गयी ..........ऋषिवर रोबर्ट ठठेरा मुरादाबादी ने झूमते नाचते गाते प्रस्थान किया .........भारत के इस निर्माण पे हक है मेरा .......बाहर मनीष तिवारी सूचना प्रसारण मंत्रालय के अमले के साथ खड़े थे .........समूचे आर्यावर्त में बात फ़ैल गयी ..........भारत के इस निर्माण पे हक है रोबर्ट ठठेरा का ............
इस महान फिलोसोफी का प्रादुर्भाव आधुनिक काल में जानते हैं किसने किया ? महर्षि रोबर्ट ठठेरा जी ने ........... पर सोचने वाले बात ये है की ऋषि मुनियों के इस प्राचीन देश में इतनी महान फिलोसोफी उनके हाथों कैसे आविष्कृत हो गयी ........ इसका एक लंबा प्राचीन किस्सा है .........हस्तिनापुर में जनपथ में अम्मा एक दिन बहुत नाराज़ हुई .........उन्होंने युवराज को बुलवाया और अपनी व्यथा सुनायी .........मैंने बिटिया को बहुत समझाया था .....इस बन्दर को गले में लटका के मत घूमो .........पर उसे तो इश्क का भूत सवार था .......मैं कहती न थी ...एक दिन ये नाक कटवा देगा .......किसी खानदानी लड़के से शादी की होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता ........कहाँ हम लोग ....और कहाँ ये मुरादाबादी ठठेरा ..........हम सात पुश्त से लूट रहे हैं ....पर आज तक किसी को शक हुआ ? पर देखा इसे ....तीन दिन में पोल खुलवा दी .........खैर किसी तरह अम्मा शांत हुई ........युवराज ने पूछा कैसे याद किया .......चुनाव सर पे आ गए ....कैसे होगा .....लूट खसोट की इस गंगा में प्रवाह निरंतर बने रहना चाहिए ..........अगला चुनाव जीतना ज़रूरी है ....... पार्टी की मीटिंग बुलाने पड़ेगी ........युवराज ने फोन निकाला और नंबर डायल कर ही रहे थे की अम्मा ने टोक दिया ....किसे मिला रहे हो .......दिग्गी राजा को ........ मूरख पूरे मोहल्ले को नहीं बुलाना है .......पार्टी की मीटिंग है .....और पार्टी में सिर्फ तीन लोग है .....मै तुम और तुम्हारी जीजी .......युवराज ने जीजी को फोन लगाया ....उधर से आवाज़ जीजा जी की आयी ..........ज़रा जीजी को फोन दीजिये .......हेलो जीजी ...आज पार्टी की मीटिंग है ....शाम को आ जाइएगा ......5 बजे ....अकेले .......और फोन काट दिया .
शाम को जब अम्मा मीटिंग रूम में पहुँची तो उनका माथा ठनका . बिटिया की जगह दामाद जी बैठे थे . बगल में युवराज थे . मुह फुलाए अम्मा सिंहासन पे विराजमान हुई .
सासू माँ .......ये मुह क्यों फुला रखा है .........
तुमने ये क्या लूट पाट मचा रखी है .......
देखिये सासू माँ....ज़रा सम्हाल के बोलिए ......मेरा मुह मत खुलवाइये ......... आप और आपका ये पिल्ला .......... आप दोनों हैं इटली के .........पर मैं यहीं का हूँ ......... एकदम टंच माल मुरादाबादी ........ये भारत देश मेरा है ........इसपे मेरा भी हक है .....और फिर एक चमत्कार हुआ ..........ऋषिवर के मुह से कविता फुट पडी .......भारत के इस निर्माण पे ......हक है मेरा ...........बैकग्राउंड में संगीत बजने लगा .......और ऋषिवर झूम झूम के गाने लगे ......... भारत के इस निर्माण पे हक है मेरा ......अम्मा की सभी शंकाओं का समाधान हो गया था .........उनका मूड ठीक हो गया ....युवराज के चेहरे पे मुस्कान दौड़ गयी ..........ऋषिवर रोबर्ट ठठेरा मुरादाबादी ने झूमते नाचते गाते प्रस्थान किया .........भारत के इस निर्माण पे हक है मेरा .......बाहर मनीष तिवारी सूचना प्रसारण मंत्रालय के अमले के साथ खड़े थे .........समूचे आर्यावर्त में बात फ़ैल गयी ..........भारत के इस निर्माण पे हक है रोबर्ट ठठेरा का ............
बढ़िया......फुल ड्रामा क्रिएट कर रक्खा है इन गंधासुरों ने....!!!
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