Saturday, August 10, 2013

सारनाथ एक्सप्रेस में नवाज़उद्दीन की फिल्म

                                  पिछले हफ्ते किसी काम से भोपाल गया था। पहुंचा ही था की खबर मिली की माँ बीमार है और अस्पताल में भर्ती  है।  सो सब काम छोड़ कर बनारस जाना  पडा।  जो भी पहली ट्रेन मिली पकड़ ली। sothern express पकड़ के झांसी तक आया।  वहाँ से रात तीन बजे संपर्क क्रांति मिली जिसने सुबह दस बजे मानिक पुर  उतार दिया।  दस मिनट बाद ही दुर्ग छपरा सारनाथ एक्सप्रेस आ गयी।  उसमे स्लीपर क्लास में दरवाज़े के साथ जो एक अकेली सीट होती है TTE वाली , उस पे बैठ गया।  सारनाथ एक्सप्रेस में PANTRY CAR नहीं होती।  मानिक पुर की कैंटीन से खाना चढ़ता है।  सो एक पैंट्री कर्मी वहाँ से सवार हुआ और उसने दरवाज़ा बंद कर वहीं सामने ज़मीन पे  30 -40  प्लेट खाना रख दिया।  ट्रेन चल पडी और वो अलग अलग डिब्बों में खाना , आर्डर के अनुसार पहुंचाने लगा।  तभी वहाँ एक लड़का आया।  उम्र रही होगी यही कोई तेरह चौदह साल। एक दम फटेहाल नहीं था।  बहुत गंदा मैला  कुचैला भी नहीं था।  उसकी निगाह वहाँ रखे खाने की  प्लेटों पे पडी।  दो किस्म की प्लेटें थी।  एक तो सामान्य थर्माकोल की प्लेट थी जिसपे silverfoil चढ़ा था।  उसके ऊपर कुछ hifi किस्म की प्लेटें रखी थी।  एकदम पारदर्शी। और उसमे रखा भोजन बड़ा आकर्षक था। दो तीन किस्म की सब्जी , परांठे ,पुलाव , रायता , सलाद……. और हाँ ……एक गुलाब जामुन भी था।
                                    सामने रखा भोजन देख वो लड़का ठिठक गया। बड़ी गौर से उसने खाने की तरफ देखा। फिर उसकी निगाह मेरे ऊपर पडी।  एक दो मिनट वो वहीं खड़ा रहा।  कभी मुझे देखता था कभी खाने को।  फिर मुझसे बोला ………. अंकल जी ………. पूड़ी खाउंगा……….  मैंने उस से कहा , नहीं बेटा , ये पूड़ी किसी और की है।  अच्छा बैठ , तुझे पूड़ी खिलाते हैं।  वहीं बगल में एक मौलाना साब खड़े थे।  साथ में उनका परिवार था।  उन्होंने अपनी  पत्नी सी पूछा , खाना बचा है ? उन्होंने ना में सर हिला दिया।  मैंने उस लड़के से कहा अच्छा रुक , कोई न कोई तो आयेगा।  कुछ देर बाद एक बिस्कुट बेचने  वाली आयी और मैंने उसे दस रु के बिस्किट दिलवाए और कहा की बेटा , अब कट ले यहाँ से , और वो अगले डिब्बे में चला गया। अभी दो  मिनट भी न बीते थे की एक और भिखारी आ गया। लंबा चौड़ा , हट्टा कट्टा सा था।  मैली कुचैली शर्ट पहने था , लम्बे बिखरे बाल थे।  उसने भूखी नज़रों से वहाँ पड़े उस खाने को देखा।  खाना देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गयी।  फिर उसकी निगाह मुझपे पड़ी और वो ठिठक गया।  वहीं सामने वाले दरवाज़े के पास खडा हो गया।  उसके पास पानी की बोतल थी।  उसने वो पानी की बोतल एक सांस में खाली कर दी।  और फिर ललचाई नज़रों से खाने को देखने लगा।  कुछ दृश्य ऐसे होते हैं जो जीवन भर नहीं भूलते।  ऐसा ही एक दृश्य मैंने NEWYORK फिल्म में  देखा था जिसमे नवाज़उद्दीन ने इतना बेहतरीन अभिनय किया था की वो दृश्य  मेरे ज़ेहन से आज तक नहीं उतरा।  पर वो तो फिर भी अभिनय था।  यहाँ एक भूखा आदमी नज़रें बचा कर सामने रखे खाने को ललचाई नज़रों से देख रहा था और सामान्य होने का अभिनय भी कर रहा था।  मैं हमेशा से कहता आया हूँ  की travelling  से बड़ा दुनिया का कोई अनुभव नहीं होता ………आज ये दृश्य देख के मुझे अजीब सा लग रहा था।  वो भिखारी दो तीन मिनट वहीं  खडा रहा।  कभी मुझे देखता कभी खाने को।  मैंने जान बूझ कर आँखें बंद करने का अभिनय किया और बंद आँखों से सब देखता रहा।  मुझे सोया देख कर फिर उसकी आँखों में चमक आ गयी।  उसने हिम्मत जुटाई और एक झपट्टे में वो ऊपर वाली प्लेट उठा ली और दूसरे डिब्बे में निकल गया।मैं हमेशा ये लिखता हूँ कि  भूख का मुझे कभी कोई First hand experience नहीं हुआ . जब भूख के मारे अतडियों में जलन हो रही हो और सामने खाना पडा हो , तो मन में क्या भाव उठते होंगे।  और उस समय आदमी कैसे मन को समझाता होगा , बहलाता होगा।  रशीद मसूद , राज बब्बर और राहुल गाँधी ने अगर कभी भूख महसूस की होती तो शायद वो भूख और गरीबी पे ऐसे बेशर्म बयान न देते।  मेरी फिल्म का इंटरवल हो गया था
                                               दस मिनट बाद फिल्म फिर शुरू हुई।  वो खाने वाला वापस आया।  उसने वो खाने की प्लेट देखी तो कहा , एक प्लेट कहाँ गयी ? मैंने यूँ नाटक किया जैसे कुछ नहीं जानता। कौन सी प्लेट , कैसी प्लेट ? अरे तुम्ही तो ले गए थे 8 -10 प्लेट ………… अरे नहीं एक प्लेट और थी यहाँ ………. अरे हाँ शायद , यहाँ जो भिखारी खड़ा था , वही ले गया होगा।  उधर गया है शायद।  और वो भाग के उधर गया।  मैं उसके पीछे पीछे चल दिया।  दुसरे डिब्बे में वो भिखारी एक कोने में बैठा जल्दी जल्दी वो खाना खा रहा था।  और वो आदमी , उसने उसे कुछ नहीं कहा।  चुपचाप खडा देखता रहा। मैं सोचता था की चिल्लाएगा , नाराज़ होगा , मारेगा पीटेगा।  पर उसने कुछ नहीं कहा।  बस खड़ा देखता रहा। और मैं दूर से उन दोनों को देखता रहा।  फिर वो मुह लटकाए वापस आ गया।  और बाकी बचे खाने को सहेजने समेटने लगा।  उसके चेहरे पे हताशा और निराशा के भाव थे।  उसे सहज होने में तीन चार मिनट लगे।  मैंने पूछा , कितने की प्लेट थी ? 120 रु की ………   और ये सस्ती वाली ? 50 की ………… मैंने पूछा क्या मिलता है तुम्हें इसमें ? 3 रु प्लेट कमीशन मिलता है ………मैंने हिसाब लगाया ,  आज की दिहाड़ी तो गयी इसकी। फिर मुझे पश्चाताप होने लगा , आत्म ग्लानि हुई . बेटा अजीत सिंह , तुमने खुद मज़ा लेने के चक्कर में इस गरीब आदमी का नुक्सान करा दिया . बड़ी देर तक वो आदमी मुह लटकाए , बुझे मन से लोगों को घूम घूम के खाना खिलाता रहा . मैं उसे देखता रहा . जब सारा खाना ख़त्म हो गया और वो आख़िरी प्लेट उठाने आया . मैंने उसे रोका  और कहा ........ हे , सुनो ........ ये लो 120 रु ....... उसे सहसा विश्वास न हुआ ....किस बात के .......यूँ ही .....रख लो .......उसने कहा , नहीं रहने दीजिये ........ आप क्यों देंगे ? मै बोला , नहीं ले लो ........ मैंने उसे जान बूझ कर नहीं रोक था ....उसने मेरे सामने वो प्लेट उठायी थी ....मैं चाहता तो उसे रोक सकता था . इसलिए ये 120  रु तुम मुझसे ले लो . उसके चेहरे पे एक हल्की से मुस्कान दौड़ गयी . और आँखों में चमक ...... और उसने धीरे से वो 120 रु  थाम लिए . मैं देर तक अपनी सीट पे बैठा सोचता रहा ....हिसाब लगाया ...कमबख्त आज  की फिल्म 130  रु में पड़ गयी.  














15 comments:

  1. Papa I try to avoid crying dese days
    Par apne phir rula diya

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  2. आपकी फिल्म ₹130 की हुई।।मैं तो उस बेचारे का धन्यवाद करना चाहूँगा जो उसने खाते हुए उस भूखे को एक शब्द भी न कहा।।बहुत धन्यवाद आपका और आपके दयालुता का।।भावुक कर दिया आपके इस लेख ने।।।

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  3. Superlative degree of emotions..... अति भावुक लेख... नि:शब्द

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  4. Superlative degree of emotions..... अति भावुक लेख... नि:शब्द

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  5. शायद सब को ऐसे फिल्म देखने कि जरूरत है..............चाहे आज के समय में 1000 का क्यों न हो ....

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  6. waah waah aisa lag rha jaise kiwha pe ajeet singh nahi khud main tha puraa khoo gya kahani me

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  7. वाह-वाह। हमेशा की तरह जबरदस्त।

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  8. वाह-वाह। हमेशा की तरह जबरदस्त।

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  9. मर्म छू गयी आपकी आपबीती

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  10. मर्म छू गयी आपकी आपबीती

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