Tuesday, January 25, 2011

अकेला चना

सो फ्रेंड्स स्वागत है आप सबका ...... कहते है की अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता पर किसी ने कहा है कि जनाब अकेला चना ही भाड़ फोड़ता है ....इतिहास गवाह है की आज तक जिसने भी भाड़ फोड़ा वो अकेला ही चला था ........ उसने कभी परवाह नहीं की कि वो अकेला है .......वो तो बस चल पड़ा.....फिर लोग जुड़ते गए ... कारवां बनता गया ......चाहे गाँधी हो ...या फिर महर्षि दयानंद या फिर और कितने ही लोग ....दरअसल हम लोग ये सोच लेते हैं की हाय मै तो अकेला हूँ मेरे अकेले के ऐसा सोचने से क्या फर्क पड़ता है.... पर नहीं मेरे भाई .....फर्क पड़ता है बहुत फर्क पड़ता है ....इसलिए , सोच......... हट के सोच .....बिंदास सोच........ और यार ... सोचने के कौन से पैसे लगते हैं ? अरे इसपे तो कोई पाबन्दी भी नहीं है ....बोलने पे तो पाबन्दी है पर भला सोचने पे कौन पाबन्दी लगा सकता है ....अरे सोचने की पाबन्दी तो इस्लाम में भी नहीं है ( शायद) ......किसी मौलाना से पूछना पड़ेगा...... चलो अगली बार लिखने से पहले कन्फर्म कर लेंगे ....पर तब तक ....सोच मेरे भाई....... सोच , बिंदास सोच ..........इसपे कौन सा सर्विस टैक्स लगता है ? ........ पर एक बात तय है की जिस दिन हम सब अकेले चने सोचने लग गए .....तो याद रखना ..... वही दिन क़यामत का दिन होगा....गौर से देखा जाये तो इन सभी लोगों ने .......धर्म गुरुओं ने ....पंडित मौलानाओं ने हमेश हमारी सोच को ही तो बांधने की कोशिश की है .....पर कुछ हम जैसे ...कमबख्त .....कुछ कुछ नया सोचते ही रहते है.........और हिमाकत तो देखिये ..औरों को भी कह रहे है की ....सोच मेरे भाई सोच ...कुछ हट के सोच ...नया सोच .....

तो फिर दोस्तों ....... जल्दी ही फिर मिलते है ........तब तक ....सोच ........

No comments:

Post a Comment