आज एक पुराने सूटकेस में कपडे की पोटली  में लिपटा एक बण्डल मिला .....खोल के देखा तो वो वो तमाम चिट्ठियां और  greeting  cards  थे जो मैंने पिछले  20 -22  सालों में अपनी पत्नी को  लिखे  थे  .....ये सिलसिला शादी से पहले शुरू हुआ था और तब तक चलता रहा जब  तक ये कमबख्त मोबाइल फोन नहीं आ गया ......वो पोटली खोली और पढने लगा  .......तब तक श्रीमती जी भी आ गयीं ......वो भी साथ में शामिल हो गयीं  ....बहुत सी  पुरानी यादें ताज़ा हुई ...वो तमाम घटनाएं जो भुला दी गयी थीं  एक एक कर याद आने लगीं ........बहुत सी लड़ाइयाँ याद आयीं ...बहुत से गिले  शिकवे .....बहुत सी मान मनौव्वल ......और कुछ नसीहतें .....और ढेर सारी  प्यार मोहब्बत ......वो कागज़ को मुड़े तुड़े टुकड़े ....कुछ तो एकदम फटे हुए  थे .....पर कितनी कहानियों की याद दिला गए ........कायदे से खाया पिया करो  ....इस से तुम्हारे गर्भ में पल रहा हमारा बच्चा हृष्ट पुष्ट होगा  ......माँ की बातों का बुरा मत माना करो ....वो दिल की बहुत साफ़ है  ........उसकी बातों की टेंशन मत लिया करो ......आज फलानी फिल्म देखी मैंने  .......या आज ये कुछ हुआ ऑफिस में ....या ये की कितना मिस कर रहा हूँ  तुम्हे .....वो चिट्ठी जो मैंने अपनी बेटी के पैदा होने के बाद लिखी थी  .......या वो कुछ छोटे छोटे नोट्स ....i  am  sorry  वाले ......वो सब  सम्हाल के रखे थे .....और मेरी बीवी ......कमबख्त....... उसे यहाँ तक याद  था की ये वाली लड़ाई किस बात पर हुई थी ......जवानी के 10 -12  सालों की  यादें ताज़ा हो गयीं ....पर जब से ये मोबाइल का ज़माना आया .....चिट्ठियों का  ये सिलसिला बंद हो गया ......ज़रुरत भी क्या थी ....खट्ट  से एक सेकंड में  बात हो जाती है ....या बहुत किया तो SMS भेज दिया .......अब sms  को कौन  सम्हाल कर रखेगा .............और रखे भी तो कैसे .......पिछले दिनों एक  गाने के बोल सुने ....आशिकी कितनी आसान हो गयी है आजकल .....और वो भी क्या  ज़माना था .....communication  का कोई तरीका ही नहीं था ......एह ही तरीका  था, पत्र लिखो ....प्रेम पत्र ....अब लिख तो दिया ....पर पहुंचाएं कैसे  .......किसी तरह पहुचाते थे ...अपने किसी छोटे भाई बहन से ...या फिर  मोहल्ले के किसी बच्चे से ....बहुत हिम्मत की तो खुद पकड़ा दिया ......पर  ऐसा मौका या इतना बड़ा कलेजा तो नसीब वालों को ही मिलता था .....फिर अब  बेचारी लड़की की मुसीबत ...पढ़े कहाँ ...कहाँ छुपा कर रखे .....कई कई बार  पढना जो होता था ...सहेली को भी दिखाना है अभी ..........और इसी बीच कभी  कभार माँ या घर का कोई देख लेता था ....किताब में पड़ा मिल जाता था  ........फिर बेचारी की कुटम्मस होती ........माँ चुटिया पकड़ के पिटाई करती  ....उस जमाने की माएँ भी तो एकदम सोलहवीं शताब्दी की थीं ......एकदम  दकियानूसी ......अब तो भैया ज़माना ही बदल गया है ........लड़के लड़कियां भी  modern  उनके माँ बाप भी modern  ....आशिकी भी modern  ......तो फिर प्यार  के इज़हार का तरीका भी modern  ...अब तो मुझे लगता है की शायद sms  भेज के  ही काम चल जाता होगा .....घंटों बातें होती हैं ......सबसे बड़ी सुविधा तो  मोबाइल कम्पनियों ने दे दी है ....मुफ्त में बतियाओ रात भर ......पर इस सब  के बीच चिट्ठियां ग़ुम हो गयीं ......कागज़ का वो छोटा  सा  टुकड़ा  जो सुख  देता था .......वो इस sms  या email  में कहाँ मिलता है ....और फिर डाकिये  का इंतज़ार .......रोज़ उस से पूछना ..........भैया हमारी कोई चिट्ठी नहीं  आयी   आज ?????.माँ कहती थी बहुत दिनों से बेटे की चिट्ठी नहीं आयी  .........और जब आती थी तो  वो किसी से पढवाती थी ....फिर उससे request   करती की भैया जवाब भी लिख दे .....मुझे याद है ...बचपन में हमारी एक चचेरी  भाभी थी .......भैया हमारे कलकत्ता .....(अब तो कोलकाता हो गया वो भी ) में  रह के कमाते थे ...सो जब उनकी चिट्ठी आती तो हम सब बच्चे  बाकायदा शोर  मचाते .....एक जलूस की शकल में ....पूरा ceremonially  उसे ले के आते  ....और फिर एक रूपये की रिश्वत ले के वो चिट्ठी उनको देते ......अब हमारी  भाभी को तो ये सौदा बहुत महंगा पड़ने लग गया .....ऊपर से हमारी ताई जी ने  उनकी एक आध चिट्ठी गायब कर दी ...सो भैया ने गाँव के डाकिया को चिट्ठी लिख  के बाकायदा ये हिदायत दी की मेरी चिट्ठी मेरी बीवी के हाथ में ही देना  ....सो वो श्रीमान जी एक दिन आ कर दरवाज़े पर डट गए ,,,और फिर भाभी जी घूँघट  निकाल कर आयीं और उन्होंने दरवाज़े के पीछे से हाथ निकाल के चिट्ठी थाम ली   .......अब साहब जब ये बात हमारे ताऊ जी तक पहुंची तो उन्होंने लिया डाकिये  को तरिया ....माँ बहन के गालिया दी अलग से और टांग वांग तोड़ने की धमकी दी  ......इकबाल मियां नाम था उस डाकिये का ...........अब भी है ...बूढा हो गया  है .....अब कभी हमारे घर नहीं आता ....क्योंकि अब कोई चिट्ठी नहीं आती  हमारे घर ......एक और बात याद आयी  ...हमारे बड़े ताऊ जी कलकत्ता से चिट्ठी  लिखते ....पोस्ट कार्ड पे ...साथ में जवाबी पोस्ट कार्ड भी भेजते  .........फिर छोटे ताऊ जी उसका जवाब लिखते ...और उस छोटे से पोस्ट कार्ड पे  इतना कुछ लिखते ...इतने बारीक अक्षरों में ..छोटा छोटा ........पूरी  रामायण लिख देते .......हम कहते थे हे भगवान् पढने वाला कैसे पढता होगा  .......लेंस लगा का पढ़ते रहे होंगे शायद .......और फिर अंतर्देशीय पत्र  .....inland  letters  चूंकि महंगे थे थोड़े ...सो उसे अमीर लोग ही afford   कर पाते थे ....सरकारें सालों तक पोस्ट कार्ड के दाम नहीं बढ़ाती थीं  ....बाद में ये भी पता चला की भैया पोस्ट कार्ड में भी सरकार subsidy  देती  है ......बच्चे डाक  टिकटें जमा करते थे .....एक दूसरे से अदला बदली करते  थे .........हमारा एक दोस्त हुआ करता था .उसके कोई रिश्तेदार बाहर विदेश  में रहते थे सो उसके पास विदेशी सुन्दर सुन्दर stamps  होती थीं ...वो हमें  इतरा के दिखाता था ........ अब हमारे पास कहाँ से आती विदेशी डाक टिकट  ...सो हमने एक जुगाड़ बैठाया .......बनारस की बात है      BHU के बड़े डाक  खाने के एक आदमी से दोस्ती कर ली और वो हमें विदेशी पत्रों से उतार के  stamps  दे देता था ...पर भैया थोड़े दिन बाद उसकी complaint  होने लगी  ...और हमारा ये जुगाड़ ख़तम हो गया ...........एक कहानी पढ़ी थी बचपन में  ......की कोई एक बूढा शिकारी अपनी बेटी की चिट्ठी के इंतज़ार में पूरी  जिंदगी गुज़ार देता है .....रोज़ सुबह आ के डाक खाने के बाहर  बैठ जाता है  ...और जब डाक खाना खुलता है तो पोस्ट मास्टर से पूछता है .......मेरी कोई  चिट्ठी आयी है क्या ...........सारा   दिन वहां बैठ के इंतज़ार करता है  ...और अगले दिन फिर आ जाता है .......बहुत ही मार्मिक कहानी थी .....आज के  बच्चे ....मुझे तो लगता है की ये शायद   मोबाइल हाथ में ले के ही पैदा होते  हैं क्या .....ये बेचारे  चिट्ठियों के उस रोमांच  और रोमांस  से वंचित   रह गए ....कहाँ खो गयीं वो चिट्ठियां ......
wo din n rahe apne raaten n rahi wo ....
ReplyDeleteअच्छा आलेख!
ReplyDeleteसच कहा आज के बच्चे तो जानते भी नही कि वो कैसी आत्मीयता का बोध कराती थीं।
ReplyDeletejyaada to nahi par raakhi par chitthi aaj bhi zaroor likhti hoon
ReplyDeleteसच..क्या याद दिला दिया आपने..चिट्ठियों का और मेरा भी पुराना और यादगार साथ रहा है..मैं तो मोबाइल के आने के बहुत दिन बाद तक चिट्टी लिखते रहा, लेकिन अब तो लिखना होता नहीं..
ReplyDeleteग्रीटिंग्स कार्ड को अच्छे से सजा के लिखना...कोटेसन खोज खोज के कार्ड में लिखना...नए साल में हर ग्रीटिंग्स कार्ड के साथ चिट्ठी भी डालना..
अब लेकिन वो ज़माना नहीं रहा..अब तो ये एस.एम्.एस ही चलन में है...आज के बच्चों को तो पता भी नहीं होगा की चिट्ठी लिखी कैसे जाती है, क्या क्या लिखा जाता है चिट्ठियों में..
कई चिट्ठियां आज भी संभाल के रखी हुई है मैंने..
सब चिट्ठियां आज भी संभाल के रखी हुई है मैंने..
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