Thursday, August 4, 2011

पंजाब के वो काले दिन ........भाग 1

अम्बाला में रहते थे हम उन दिनों ..........एक ही अखबार था जो पंजाब के आतंकवादियों का खुल कर विरोध करता था .........पंजाब केसरी ....लाला जगत नारायण का अखबार था और वो हिन्दुओं के बड़े नेता माने जाते थे ....उनकी हत्या कर दी गयी 9 सितम्बर 1981 को .......फिर भी अखबार का मुह बंद न कर सके ...पंजाब केसरी ने आतंकवादियों का खुल कर विरोध करना जारी रखा .........तो उनके बेटे और अखबार के तत्कालीन सम्पादक रमेश कुमार की भी हत्या कर दी गयी ........अब हालात तेज़ी से बिगड़ रहे थे .......केंद्र सरकार मूक दर्शक बनी हुई थी ....भिंडरां वाला सरे आम हिन्दुओं के खिलाफ ज़हर उगल रहा था ...समाज में नफरत फैलाई जा रही थी ....उन दिनों हम लोग कोटा ...राजस्थान में थे ....वहां के अखबार भी पंजाब की ख़बरों से भरे रहते थे ........आम हिन्दू जन मानस बड़ा बेचैन और उद्वेलित था .......केंद्र सरकार के नाकारापन से आक्रोश भी बहुत था ....तभी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से खबरें आने लगीं की वहां भिंडरावाले और उसके गुर्गे घुस गए हैं .......1983 की बात है ...स्वर्ण मंदिर परिसर में सिविल कपड़ों में जायजा लेने पंजाब पुलिस का एक DIG A S Atwaal जब बाहर निकल रहा था तो उसकी परिसर में ही हत्या कर दी गयी ........इसकी पूरे देश में बड़ी तीखी और व्यापक प्रतिक्रिया हुई और केंद्र सरकार का नाकारापन और बेबसी जगजाहिर हो गयी .......इसके बावजूद केंद्र सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये ........इंदिरा गांधी देश की प्रधान मंत्री थीं .......भिंडरावाले और उसके गुर्गों ने स्वर्ण मंदिर की किले बंदी शुरू कर दी थी ..........सरेआम अखबारों में छप रहा था ....बताया जा रहा था की पंजाब का हर गुरुद्वारा आतंकवादियों का अड्डा बन चुका है और वहां भारी मात्रा में हथियार जमा किये जा रहे हैं ...फिर भी इंदिरा गाँधी कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी ....... हालात बद से बदतर होते चले गए .......और फिर जून 1984 में....जब पानी सर से ऊपर आ गया ...... इंदिरा गाँधी ने कार्यवाही करने का निर्णय लिया ..........इसके बारे में कहा जाता है की अमेरिका से इंदिरा गाँधी को बताया गया की एक दो दिनों में खालिस्तान की घोषणा कर दी जाएगी और पाकिस्तान , लीबिया इत्यादि देश उसे मान्यता भी दे देंगे ..........ऐसी परिस्थितियों में स्वर्ण मंदिर पे कार्यवाही करने का निर्णय लिया गया जिसे भारत के इतिहास में ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से जाना जाता है ......इसके ऊपर बहुत सी किताबें लिखी गयी हैं और काफी जानकारी नेट पर उपलब्ध है ...........मुझे अच्छी तरह याद है ........उन दिनों हम अम्बाला में रहा करते थे .....काफी तनाव भरे माहौल में था देश ........परन्तु मोटे तौर पे हिन्दू जनमानस इस कार्यवाही का समर्थन करता था......... अपनी तो भैया सीधी सादी सी सोच है की हमारा ( हिन्दुओं का ) कोई भी धर्म स्थल अगर अपराधियों का अड्डा बन जाए तो ऐसे अड्डे पर तो bulldozer फेर देना चाहिए ...............हिन्दू एवं सिख समाज पूरी तरह विभाजित हो चुके थे ......बहुसंख्यक सिखों का समर्थन भिन्डरांवाले को था ........और सिख समुदाय इस कार्यवाही से बड़ी बुरी तरह आहत हुआ था ......सिख intelligentsia भी इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना ही करता था..... भिंडराँ वाले की आलोचना कर सके इतनी हिम्मत किसी में थी नहीं .......संत जरनैल सिंह भिंडरां वाले सिख कौम के शहीद हो गए थे ....पर आम हिन्दू जनमानस प्रसन्न था .........गली मोहल्ले में जो चर्चा होती उसमें यही तर्क दिए जाते थे की क्यों तुमने अपने गुरु द्वारे को आतंकियों का अड्डा बनने दिया ......ये सिख कौम की जिम्मेवारी बनती थी की वो अपने गुरुद्वारे की शुचिता का ध्यान रखे .....अब वहां इतना गोला बारूद है ...इतने लड़ाकू हैं तो फ़ौज भेजना तो मजबूरी थी सरकार की ....और सरकार और इंदिरा गांधी का नाकारापन ये था की उसने तब कार्यवाही की जब हालात एकदम बेकाबू हो गए .........ऑपरेशन ब्लू स्टार में अकाल तख़्त को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा .......उस पर tank से गोला बारी की गयी थी .....जब उसकी फोटो पत्रिकाओं में छपी तो सिखों का गुस्सा सातवें आसमान पे पहुँच गया .....उधर पूरे देश में हिन्दुओं ने सिखों की खिल्ली उडानी शुरू कर दी थी .........पूरे देश में एक अजीब सा तनाव था .....पंजाब में हिन्दू डर डर के जी रहे थे ....पंजाब से बाहर सिख अपने मुहल्लों में गुरुद्वारों में unite होते थे .......फ़ौज अब भी स्वर्ण मंदिर में थी ........सरकार के सामने पहली जिम्मेवारी किसी तरह अकाल तख़्त को ठीक कराना थी .......कोई सिख संत ये जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं था...इंदिरा गांधी ने ये जिम्मेवारी अपने गृह मंत्री बूटा सिंह को दी ,की जाओ कोई ऐसा सिख खोज के लाओ जो अकाल तख़्त की कार सेवा कर मरम्मत करा सके .....जब कोई नहीं मिला तो एक मिला बाबा संता सिंह ..वो एक निहंग था ....बुड्ढा दल का ....एक नंबर का अफीमची .......सिख समाज में उसकी कोई इज्ज़त नहीं थी ....ऐसा कहा जाता है की सिख समाज तो ये चाहता था की अकाल तख़्त को ऐसे ही छोड़ दिया जाए हमेशा के लिए ...... जिससे सिख कौम को अपने ऊपर हुए अत्याचार हमेशा याद रहे ..........सो बूटा सिंह ने वो अफीमची तैयार कर लिया और उसके कुछ चेलों की आड़ में सरकार ने अपनी लेबर और ठेकेदार मिस्त्री लगवा के आनन फानन में अकाल तख़्त की repair करवा दी....उसमें फ़ौज के MES के कुछ लोग भी शामिल थे और एक सज्जन हमारी कालोनी में रहते थे उन्होंने भी वहां ड्यूटी की थी ...उन्होंने बताया की उसके repair वर्क में भी भाई लोगों ने जम के पैसा बनाया ..........खैर इंदिरा गाँधी की ढुलमुल पंजाब नीति और अकर्मण्यता ही उन्हें ले डूबी और 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही दो अंग रक्षकों ने उनके घर में ही उनकी ह्त्या कर दी .मुझे अच्छी तरह याद है वो दिन ....मैं अपने एक दोस्त के साथ अम्बाला से दिल्ली जा रहा था .......... दोपहर की बात है ....हम लगभग करनाल के आस पास रहे होंगे ..........तभी हमारी बस एक जगह रुक गयी .....लंबा जाम लगा था .......हम सब लोगों ने सोचा बस यूँ ही जाम लग गया होगा ...........पर जब 3-4 घंटे बीत गए तो लोग परेशान होने लगे .........आखिर जाम में भी तो कुछ हलचल तो होती ही है सड़क पर .......पर यहाँ सब शांत था ........कोई traffic नहीं ......फिर तभी एक काफिले में हरियाणा और पंजाब के मुख्य मंत्री दिल्ली की तरफ गए .......हमें वहां खड़े ५-६ घंटे बीत चुके थे ....तभी रेडियो पे एक खबर आयी की इंदिरा गाँधी पे हमला हुआ है ......और मैंने वो बस यूँ ही अनसुनी कर दी .....ये नेता सहानुभूति बटोरने के लिए ऐसी ऊट पटांग खबरें उड़ाते रहते हैं ............खैर 5 -6 घंटे बाद हमारी बस चली ..........शाम का धुंधलका हो चुका था ,जब हम दिल्ली बस अड्डे पर उतरे .........एक कुली से मैंने पूछा ....अरे क्या हुआ ?????? वो बोला इंदिरा जी नहीं रहीं ..........वो अदना सा कुली भी दुखी नज़र आ रहा था ........आज बड़ी बेबाकी से मैं ये बातें सब लिख रहा हूँ .......19 साल उम्र थी मेरी .......मेरी पहली प्रतिक्रिया थी ........चलो अच्छा हुआ .......एक कोढ़ तो इस देश से ख़त्म हुआ ........दिल्ली सुनसान पड़ी थी ...सब बंद था ........दिल्ली शोक में डूबी हुई थी .......मेरी मौसी दिल्ली में रहती थीं ....मैं उनके घर पहुंचा ...सब्जी मंडी घंटाघर के पास,चंद्रावल मोहल्ले में ..........मरघट सी ख़ामोशी थी .......फिर मैंने अपनी इन आँखों से वो दृश्य देखा जिसकी मैं आज कल्पना भी नहीं कर सकता ..........कोल्हापुर रोड पर एक बेकरी होती थी,सेठी बेकर्स नाम था शायद ...शायद आज भी है .......उसके सामने ढोल बजा के कुछ सिख नाच रहे थे ....और मिठाइयाँ बाँट रहे थे .......ख़ुशी मना रहे थे ..........ये देख के मेरे तन बदन में आग लग गयी ......मुझे गुस्सा आया .......सिखों की मूढ़ता पे , मूर्खता पे ,उनकी arrogance पे ........इस से आपको हिन्दू एवं सिख ...दोनों की उन दिनों की मनः स्थिति का अंदाजा लग जाएगा ......पिछले 3 -4 सालों में आम सिख समुदाय ने बहुसंख्यक हिन्दू समाज का गुस्सा और दुर्भावना अपने व्यवहार से अर्जित की थी .........वहां अम्बाला में भी हमारे साथ के सिख लड़के हम लोगों के साथ मनसा वाचा कर्मणा आक्रामक व्यवहार करते थे .........आम हिन्दू जनमानस में सिखों के प्रति घृणा का वो फोड़ा पक चुका था ......उसे बस एक हलके से नश्तर का इंतज़ार था ........दिल्ली की वो रात बेहद तनाव और गुस्से में, पर शांति पूर्वक बीत गयी ..........सुबह दिल्ली उठी तो इंदिरा गाँधी का शव दर्शनार्थ रखा था और टीवी पर उसका live telecast आ रहा था ........दिन भी बीत गया ...अब तक शांति थी ..........पे भेड़िये कहीं इकट्ठे हो के प्लान बना चुके थे ............शाम लगभग 5 बजे कुछ हलचल होनी शुरू हुई .........लोग सड़कों पर इकट्ठे होने लगे .....हम भी तमाशा देख रहे थे ..........फिर धीरे धीरे नारे लगने लगे .........इंदिरा गाँधी अमर रहे .......खून का बदला खून से लेंगे .........कमला नगर मार्केट में एक सिख की बहुत बड़ी ready made garments की दुकान थी ...... भीड़ उसकी तरफ बढ़ना चाहती थे ........पर तभी वहां न जाने कहाँ से एक आदमी आ गया .......देसी सा आदमी था .......लुंगी बाँध रखी थी उसने और बनियाइन पहन रखी थी .....उसने बस एक बार डांटा और वो वहीं चबूतरे पर बैठ गया ......3 -400 लोग रहे होंगे उस भीड़ में ....किसी की हिम्मत न हुई आगे बढ़ने की ..........लगभा आधे घंटे बाद वो वहां से चला गया ......और फिर भीड़ टूट पड़ी ......और उसने उस दुकान का ताला तोड़ डाला और लूट पाट शुरू हो गयी ...... यहाँ ध्यान देने की बात ये है की उस अकेले आदमी ने सिर्फ एक बार घुड़क के उस भीड़ को आधे घंटे तक रोक के रखा था ........एक बार लूट पाट शुरू हुई तो मार काट भी शुरू हो गयी ...........और फिर तीन दिन तक दिल्ली और पूरे उत्तर भारत में हिंसा का नंगा नाच होता रहा ..........सिर्फ दिल्ली मात्र में हज़ारों सिखों को बेरहमी से मार डाला गया ......ये संख्या 6000 तक बतायी जाती है .......घर, दुकानें लूट ली गयीं ....ट्रक बस ,गाड़ियां जला दी गयीं ...........सिखों की फक्ट्रियाँ जला दी गयीं ........दंगाइयों को तीन दिन की खुली छुट्टी दी गयी थी ........जहाँ दंगा नहीं था वहां बाकायदा शुरू कराया गया ........लड़के शाम को मोहल्ले में आ कर सारे दिन की उपलब्धियों का बखान करते थे .........jagdeesh tytler ,सज्जन कुमार , ललित माकन ,H K L bhagat ये तो चंद नाम हैं इसके अलावा सैकड़ों कांग्रेस नेता परदे के पीछे से दंगे का संचालन कर रहे थे .......
अगले अंक में जारी ...........

4 comments:

  1. Nothing of this sort would have happened if there was no religious fanaticism and political opportunism ..
    Being an atheist makes sense

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  2. अभी मैं शाह नवाज के ब्लॉग पर भी यही पढ रहा था कि इस देश में धर्म कितनी बडी चीज बन गया है।

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  3. इंसान को यह कभी नहीं भूलना चाहिए....
    दुश्मनी जम के करो मगर इतनी गुंजाईश रहे ...
    गर कभी दोस्त बन जाएँ तो शर्मिंदा न हो..

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  4. पंजाब का तो कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि वो एक उग्रवाद था जिसे पाकिस्तान ने भड़काया था! लेकिन दिल्ली मे जो कुछ हुआ और जिसे हिन्दू- सिख दंगे का नाम दिया गया वो गलत है क्यंकि हवानियत का जो नंगा नाच दिल्ली मे उस समय हुआ था वो सिर्फ कांग्रेस प्रायोजित था. कांग्रेस के गुंडों के दुआरा किया गया था. इसे हिन्दू-सिख दंगे का नाम देकर के हिन्दुओ और सिखों के बीच मतभेद ही बढ़ाये गएँ है!

    (आपका मेरे ब्लॉग mereapnevichaar.blogspot.com पर स्वागत है!)

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