Friday, August 5, 2011

1984 का नरसंहार .....जैसा मैंने देखा .......2

1984 में दिल्ली का वो दंगा मैंने देखा ...शुरू से आखिर तक ......इसके अलावा भी बहुत दंगे होते ही रहते हैं हमारे देश में ....छोटे या बड़े .........रोज़ होते हैं .....पर दिल्ली वाला दंगा देख के मैं सिर्फ एक बात कह सकता हूँ ........अगर सरकार या प्रशासन चाहे तो मुझे या आपको सांस भी लेने दे .....लड़ाई झगडा मार पीट या दंगा फसाद तो बड़ी दूर की बात है .........ये जो कहा जाता है की लोगों में गुस्सा था जो फूट पड़ा ...ये सब बकवास है .....ये सच है की उस दिन इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद लोगों में ज़बर्दत गुस्सा था ........आम आदमी अन्दर से जल रहा था ....फिर भी एक थप्पड़ तक नहीं चला था ........ह्त्या के 36 घंटे बाद भी सब शांत थे ....गुस्से में थे ....पर शांत थे ........शाम को कुछ एक जगहों पर थोड़ी बहुत लूट पाट तो हुई पर मार काट नहीं ........फिर 48 घंटे बाद ...बाकायदा सुनियोजित ढंग से मार काट शुरू कराई गयी .......राजीव गाँधी ने सारे आम कहा था ....इन्हें सबक सिखाओ ......जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांपती ही है ..........एक बार एक प्रेस कांफेरेंस में कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी नरेन्द्र मोदी को आदम खोर पिरान्हा मछली बता रहे थे ........तो मैंने उनसे पूछा था लुधियाना में ......मनीष जी दिल्ली की आदम खोर पिरान्हा मछली का नाम भी बता दीजिये लगे हाथ ........लीजिये आज मैं चिल्ला चिल्ला के कह रहा हूँ .....दिल्ली का आदमखोर भेड़िया था राजीव गाँधी ..........पूरे 48 घंटे थे राजीव गाँधी के पास ....हालात को काबू करने के लिए ........48 मिनट काफी होते हैं हालात पे काबू पाने के लिए .....क्योंकि मैंने उस दिन देखा था उस आदमी को ..........जो अकेला वहां बैठा था लुंगी पहने ...और उसकी सिर्फ एक घुड़की से वो 400 लोगों की भीड़ चुप चाप खड़ी रही .......लोगों के आक्रोश को भांप के पहले दिन से ही एहतियातन कर्फ़ु लगा कर शांति बहाल करनी चाहिए थी ....पर पूरे तीन दिन तक दिल्ली में भयंकर मार काट होती रही ....फिर धीरे धीरे पूरे उत्तर भारत में फैला दी गयी .........और फिर तीन दिन बाद शाम को सेना ने फ्लैग मार्च किया ....और कुछ ही घंटों में सब शांत हो गया ........वो तीन दिन अब भी याद हैं मुझे .......हमारे घर के सामने गली में एक छोटे से कमरे में एक सिख दंपत्ति रहता था .........वो लोग पूरे समय हमारे घर में ही रहे .......एक एक घर को चुन चुन कर आग लगाई गयी थी ........जो बच गए उनकी बाकायदा लिस्ट बनती थी रोज़ शाम को ....फिर रात को नाम tick करते जाते थे और आग लगाते जाते थे .........वहां कोल्हापुर रोड पे एक सिख की बहुत बड़ी दूकान थी crockery की .....उसे सब लूट रहे थे ....उसका लड़का वही गली के नुक्कड़ पे खड़ा देख रहा था .......बाल कटा रखे थे उसने इसलिए वो सुरक्षित था ..........हम वहीं बगल में खड़े थे ......हमारे सामने से एक आदमी dinner set का एक डब्बा हाथ में लिए निकला .........1200 रु का पीस है ये ......सिर्फ इतना निकला उसके मुह से .....और वो चुप चाप अपनी सारी जिंदगी की कमाई लुटते देखता रहा ........6000 लोगों को ज़िंदा जला दिया गया ........लोगों को पकड़ कर उनके गले में जलते हुए टायर दाल दिए गए ..........हमारे घर के बगल में...... मलका गंज चौक पे ........एक लड़के को जिंदा जला रहे थे .........वो निकल के वहां से भागा ........उसे लोगों ने दौड़ा के पकड़ा .........घसीट के फिर लाये ...और फिर से उस आग में फेंक दिया ........लोग ऐसे घेर के खड़े थे जैसे मोहल्ले में होली जला रहे हों ............यहाँ प्रश्न ये उठता है की मनुष्य जब भीड़ का हिस्सा बन जाता है तो अपना स्वयं का चरित्र क्यों खो देता है ........1980 से ले कर आज तक मैंने इस देश को एक भीड़ में तब्दील होते देखा है ..........और चन्द वोटों की खातिर ...किसी एक राज्य में अपनी सत्ता बचाने के लिए या हासिल करने के लिए देश को गर्त में धकेलते राज नेताओं को देखा है ..........कांग्रेस पार्टी ने पंजाब में अकालियों को कमज़ोर करने के लिए पहले भिंडरां वाले भस्मासुर को पैदा किया और वही भस्मासुर फिर सबको खा गया ........पंजाब ने और पूरे देश ने इसकी कीमत 20 साल तक चुकाई ........
खैर तीन दिन बाद कांग्रेस द्वारा प्रायोजित ....आयोजित और अभिनीत वो दंगा रोका गया ....... लाखों सिखों ने दिल्ली हमेशा के लिए छोड़ दी ........हज़ारों लोग मारे गए .......उनमे से कुछ लड़कों ने जो इस दंगे के भुक्त भोगी थे .......बाद में हथियार उठा लिए ........कुख्यात आतंकी पैनटा उनमे से एक था जो बाद में अमृतसर में operation black thunder में मारा गया .......वो खालसा कॉलेज दिल्ली का एक बेहद होनहार hand ball player था ......उसके पिता और भाई को जिन्दा जला दिया था 84 में ..........सुविख्यात फिल्मकार गुलज़ार साहब ने पंजाब के आतंकवाद पे एक बेहतरीन फिल्म बनाई है ............माचिस .........उस में अंत में फिल्म की हेरोइन तब्बू का एक संवाद है ..........क्या बिगाड़ा था हमने किसी का .......सीधे सादे लोग थे हम .......जी हाँ सीधे सादे लोग थे वो सब ......जो इस आग में जले ......कौन जिम्मेवारी लेगा इसकी ......उन घरों की जो इस आग में जले ..........दंगे के बाद जब curfew खुला तो मैं जल्दी से जल्दी दिल्ली से निकल जाना चाहता था ......ये पता लगाने के लिए की बसें चली या नहीं ........मैं साईकिल से बस अड्डे जा रहा था .........एक जगह मुझे बदबू सी आयी .........मैं एक ट्रक के पास खड़ा था .....अचानक मैंने देखा की उस ट्रक से एक जला हुआ हाथ बाहर निकला हुआ है ....मैं घबरा के दूर हो गया ........देखा तो वो ट्रक जली हुई लाशों से भरा हुआ था ........फिर मुझे अहसास हुआ की मैं तीस हजारी पोस्ट मोर्टेम हाउस के सामने खड़ा हूँ ....अन्दर निगाह मारी तो जो दृश्य देखा वो आज भी आँखों के सामने तैरता है .........वहां ढेर लगे थे लाशों के ...एक के ऊपर एक ...फिर चारों तरफ नज़र घुमाई ..तो देखा की वहां ऐसे कम से कम 20 ट्रक और खड़े थे ........मेरे बगल में एक सिख परिवार खड़ा था ....वो अपने बेटे की लाश लेने आये थे .......वो लड़की fiat कार से सर टिका के रो रही थी .....पर उसके मुह से आवाज़ नहीं निकल रही थी .....84 के वो ज़ख्म आज भी हरे हैं ........एक मुल्क के तौर पे क्या सीखा हमने उस दौर से ....जिंदा कौमें अपनी गलतियों से सीखती हैं और उन्हें दोहराने से बचती हैं ........पर वो 84 आज भी रोज़ दोहराया जाता है इस मुल्क में ...कभी गुजरात में ...कभी UP में और कभी कहीं और .......हम आज तक 84 के मुजरिमों को सज़ा नहीं दे पाए ...और वो लोग रोग हमें साम्प्रदायिक सद्भाव ,और secularism का पाठ पढ़ाते हैं .......
अब भी दिल्ली जाता हूँ अक्सर ....वहां शक्ति नगर में एक दुकान हुआ करती थी बहुत बड़ी किराने की......... 84 में 8 -10 दिन तक धुंआ उठा था उस से ....... फिर कुछ महीनों बाद वो फिर उठ खड़ा हुआ और उसने पहले से भी अच्छी दुकान बनाई ..........आज भी है खूब चलती है .......एक और सरदार जी थे ....नाम था DPS कोहली .....वो भी बर्बाद हो गए थे ८४ में .....आज वो koutons कम्पनी के मालिक हैं .....हज़ारों उदाहरण हैं ऐसे जो उस राख के ढेर से फिर उठ खड़े हुए ........और वो लूटपाट करने वाले आज भी उन्ही झुग्गियों में रहते हैं जहाँ पहले रहते थे .......दिल्ली के वो दंगा पीड़ित आज भी न्याय की बाट जोह रहे हैं .....अब भी उम्मीद है उन्हें की देर सबेर न्याय ज़रूर मिलेगा ......












5 comments:

  1. क्या कहे साहब बस अवाक् है ये सब पढ़ कर..जरा बताइए कोई जिक्र तक नहीं करता इस बीभत्सता की ..लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं...बेशर्म मनीष तिवरिया कहता है सीख समुदाय उसको भूल जय..नई शुरुआत करे...कमीना...मुझे लगता है की अगर आज राहुल या सोनिया को ऐसे ही कोई वर्ग विशेष मार दे तो ये कांग्रेसी फिर इतिहास दोहराने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगे.....जिन्होंने भी इस तरह का काम किया..वो जरुर कोढ़ से मर गए होंगे या मरने का इंतज़ार कर रहे होंगे...अभी तो पूरा देश सोनिया जी के अच्छे होने की दुआ कर रहा है...कोई इस लेडी की भ्रष्टाचार की बात नहीं करता...कोई करने भी नहीं देता....गुंडों की माल किन है....मैं तो मना रहा हूँ....बिक गएँ इस देश के लोग, बिकाऊ हैं सब...जमीर नहीं रहा इस देश में....वर्ना लोग इन्हें कभी भी माफ न करते..

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  2. आज़ादी के बाद के ६५ वर्षो मई से ६० वर्षो तक कांग्रेस ने इस देश पर सासन किया है! बदले मई दिए है ऐसे जख्म जो कभी भी भरे नहीं जा सकते और वो भी सिर्फ अपनी सत्ता-लोलुपता को पूरी करने के लिए! १९८४ के सिख दंगे इस बात के गवाह है की कांग्रेस अपने इच्छापूर्ति या कहे की कुर्सी के लिए किस हद तक जा सकती है! दंगो मे आजतक मरता आम-इन्सान ही आया है क्या कभी कोई नेता इन दंगो में मारा है! कांग्रेस का दमन लाखो-करोडो बेकसूर लोगो के खून से सना हुआ है! क्या कांग्रेस के पास इस बात का जवाब है की उसने आजतक देश को दंगो के अलावा क्या दिया है!

    कांग्रेस हटाओ देश बचाओ!

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  3. अजित जी आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी है एक बहुत ही सार्थक प्रयास है! कुछ पोस्ट तो इतनी सजीव लगती है जैसे हम खुद वंहा पर मोजूद हो! आपकी इंडियन आर्मी पर लिखी पोस्ट ने मुझे काफी भावुक कर दिया, आँखों मे आये आंसुओं को मुस्किल से हो रोक पाया!
    बहुत अच्छा लिखते है आप!
    बहुत बहुत धन्यवाद्!

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