Sunday, November 20, 2011

महाराजा भूपेन्द्र सिंह का ......चैल ...land of romance

                                            दो तीन साल पहले की बात है .....हम दोनों मियाँ बीवी घूमने गए .....शिमला .......मैं तो पहले हो आया था पर श्रीमती जी ने देखा नहीं था ....जब भी कहीं घूमने का प्रोग्राम बनता वो हर बार कहतीं शिमला चलो शिमला चलो .........अब चूँकि मैं इन्हें अच्छी तरह जानता हूँ  सो मैं हर बार टाल जाता था .......अरे किसी नई जगह चलते हैं .....किसी छोटे हिल स्टेशन पे चलते हैं ....... अच्छा खुद तो देख आये .......इसलिए मुझे नहीं ले के जाना चाहते ........  अच्छा भाग्यवान चल .......और चल पड़े हम दोनों .........कालका से शिमला  toy ट्रेन से गए .....बड़ा अच्छा सफ़र रहा ........कालका से शिमला ....by  train ......आपकी जिंदगी का एक यादगार सफ़र हो सकता है ...... खैर शिमला पहुंचे .......स्टेशन की सीढियां चढ़ के ऊपर आये ........पैदल ही चलते हुए मेन  मार्केट में पहुंचे  ......मैडम जी ने नाक भौं सिकोडी .......ये कहाँ ले आये ............बाप रे बाप ...इतनी भीड़ .......इतना traffic .....धुंआ .....धूल .....शोर शराबा ........चिल्ल पों मची थी ........खैर अब पहली समस्या थी वो पहाड़ जैसे बैग जो हमने कंधे पे लाद रखे थे  ......इनसे तो छुटकारा हो ........होटल में कमरे ढूँढने लगे .....घटिया से कमरे 2-2 हज़ार के ......मुझे मसूरी का emerald  heights  और camel back road  याद आ गया .........शहर के बीचो बीच ....मेन बाज़ार से सिर्फ 200  मीटर की दूरी पे शांत सुनसान सी रोड ....जहां बरसती बूंदों की झिमिर झिमिर और झींगुरों की आवाज़ के अलावा कुछ सुनायी नहीं देता .....और उस बेहद खूबसूरत होटल के शानदार कमरे ..........सन 2000  में हम पहली बार गए थे वहाँ तब 125  रु में ठहरे थे फिर 200  हुआ ....फिर 350  ...इस साल गए तो 500  लगे ( off  season  में ) ....और यहाँ शिमला में 2000 रु ......खैर भैया ......रूम लिया नहाए धोये .....एक बार शहर घूमने की formalty  की ( वही घिसी पिटी माल रोड ) और अगली सुबह भाग लिए ..........मैडम जी का मूड खराब था ....बिलकुल मज़ा नहीं आया ..........तो मैंने उन्हें ढाढस बंधाया ........मैं हूँ न ......चलो चैल चलें ....वो कहाँ है ....अरे बस बगल में ही ............फिर ट्रेन पकड़ी , कंडाघाट उतरे ......वहाँ से सिर्फ 30  किलो मीटर .....चैल ........शिमला से  by road  बमुश्किल 45  किलोमीटर ...चैल पहुँचने से पहले ही नज़ारा बदल चुका था ......2250  मीटर यानी 7380  फीट की ऊंचाई पर चैल देवदार, pine और oak  के   घने जंगलों के बीच शांत ...........सुनसान ........बेहद खूबसूरत , चैल ....न कोई शोर शराबा ....न चहल पहल ..........न कोई traffic  न tourists  की  भीड़ .........मज़े की बात किसी होटल का कोई agent  नहीं , आपसे ये पूछने के लिए कि....कमरा दिखा दूं सर  ....जब हम उस मिनी बस से उतरे तो हमारे साथ कुछ स्थानीय  लोग थे और बस हम दोनों .....उस दिन शायद उस शहर में ( अगर उसे शहर कहा जाए ) बस हम ही दोनों tourists  थे....... शहर के नाम पे एक चौक में 15-20  छोटी छोटी दुकानें .......दो एक रेस्तौरंट्स ...............और शहर शुरू होने से पहले ख़तम ........खैर उस मुख्य चौराहे से कुछ दूर घने पेड़ों के बीच हमने एक होटल में कमरा ले लिया ........चाय पी , नहाए धोये और बाहर का जायजा लेने निकल पड़े ........ बाहर प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा कुछ नहीं था .......चैल कि कहानी भी अजीब है .......हर शहर की एक कहानी होती है ....इतिहास है .....पर चैल की कहानी बड़ी अजीब सी है ....इसका इतिहास बड़ा मजेदार है ......पटियाला   के महाराजा भूपेंद्र सिंह ......अरे यही अपने capt  अमरिंदर सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के दादा जी , और अपनी केंद्रीय मंत्री परनीत कौर के ददिया ससुर ....सुनते हैं की बड़े ही रंगीन मिजाज़ आदमी थे ........बिगडैल भी .......सुनते हैं की उन्होंने एक बार शिमला के माल रोड पे घुमते हुए एक लड़की छेड़ दी .......और वो लडकी निकली viceroy  की........... कुछ जगह ये भी   लिखा है की दरअसल उनका viceroy  की लड़की से चुपके   चुपके   affair  चल रहा था ....... पर  महाराजा ने जो स्वयं अपने मुह से  किस्सा बताया वो यूँ था की महाराज सड़क पे घोडा दौड़ा रहे थे .....मोहतरमा वहां पैदल सैर कर रहीं थी ........अब उनपे धुल का गुब्बार जो उड़ा तो उन्होंने गाली दे दी ......bloddy  indian ... सो महाराज ने घोडा मोड़ लिया और खांटी पंजाबी में बोले ....तू गाल किद्दां कड्डी ओये ...तैनू पता मैं कौन आं .......  प्पैन्चोद चक  के लै जूँ  .......( तुने गाली कैसे निकाली ओये ...पता है मैं कौन   हूँ ....उठा के ले जाऊंगा ) .........खैर   साहब जो भी हुआ हो , बात ऊपर   तक पहुंची और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भूपेंद्र सिंह को शिमला से निष्कासित कर दिया .....वहाँ घुसने पर पाबंदी लगा दी गयी ........अब राजा बुरे फंसे ....क्योंकि उनकी तो पूरी गर्मी वहीं कटती थी , शिमला में ........सो बिगडैल राजा ने कह दिया ......अपने पास रखो अपना शिमला ...नहीं चाहिए .....और अपने दरबारियों से बोले नया शिमला बसाओ ....सो दरबारियों ने शिमला से भी खूबसूरत और ऊंची जगह खोज निकाली .......चैल ......और महाराज ने वहाँ एक महल बनवाया , एक क्रिकेट का मैदान बनवाया जो आज भी विश्व का सबसे ऊंचा मैदान है .....और चैल का नैसर्गिक सौंदर्य सचमुच लाजवाब है ...शांत ......स्निग्ध ...... पवित्र .....अनछुआ .......  ज़िदगी की दौड़ भाग से दूर .......चारों तरफ जहां तक निगाह जाती है ,  सिर्फ घने पेड़ों का जंगल .......सामने वाली पहाड़ी पे दूर दूर बिखरे हुए पहाड़ी मकान .........शहर से बाहर निकलते ही सेबों के बाग़ ....जब हम गए तो फसल पूरे शबाब पर थी .........चैल के सौंदर्य को शब्दों में कहना बड़ा मुश्किल है .......माहौल बड़ा ही रोमांटिक था ........एक सज्जन मिल गए .....कोई ठाकुर साहब थे ....लोकल थे ...........पुराने किस्से सुनाने लगे ....कैसे रौनक लगती थे राजा के ज़माने में ......सुनते हैं की बड़े बड़े अँगरेज़ अफसर उस ज़माने में राजा के कार्यक्रमों में न्योता पाने के लिए जुगाड़ लगाते थे .........ये सारे किस्से सुन के मुझे अपने दिन याद आ गए ....वो दिन , जो मैंने खुद महाराजा भूपेंद्र सिंह के घर में बिताये थे .....और दो चार दिन नहीं जनाब , पूरे 4  साल .....
                                         जी हाँ , NIS patiala  में ....राष्ट्रीय खेल संस्थान  NIS  ,  दरअसल महाराजा भूपेंद्र सिंह के महल , मोती बाग़ में बसा हुआ है ....वहाँ से मैंने पढ़ाई की और फिर वहीं एक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हो गया ......वहाँ के एक एक कमरे में भूपेंद्र सिंह की छाप दिखती थी .......समय के साथ सब ख़तम हो गया ....सारे कालीन और furniture  या तो टूट फूट गया या तहस नहस हो गया .........पर एक कमरा आज भी है .....महाराज का मुख्य drawing  room , वो आज भी जस का तस सुरक्षित और संरक्षित है .........गाहे बगाहे खुलता है ....जब कोई बहुत ख़ास मेहमान आता है .....एक बार मुझे वहाँ बैठ के चाय पीने का मौका मिला था ...जब महाराजा नेपाल NIS आये थे ..........इतना खूबसूरत की बयान नहीं हो सकता ..........फिर एक पुस्तक हाथ लगी ....दीवान जर्मनी दास की the  prince   .....उसे  पढ़ के उस महल के स्याह किस्से पता चले ....यूँ की राजा के हरम में 365  औरतें ( यूँ तो उन्हें रानी कहते थे ) होती थीं .....फिर राजा का बेडरूम देखा ......महारानी का रूम भी देखा 4 -5  पटरानियाँ होती थीं बाकी 350  के आसपास रानियाँ  ......फिर एक दिन ये अहसास हुआ की वो जो Old  boys  hostel  हुआ करता था .....उन्ही कमरों में वो रानियाँ रहा करती थीं जिन्हें बस एक रात इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता था ........कितनी तो उसमे घुट घुट के मर जाया करती थीं ....पटियाला रियासत की वो मासूम लड़कियां जिनकी खूबसूरती के बारे में राजा के जासूसों ने उसे खबर कर दी थी  और उसने उन्हें उठवा लिया था ...ज़बरदस्ती या उनके बाप की रजामंदी से .......
                                             पर उस धरती के बारे में ये भी कहा जाता है की it is the land of romance  ........हमारे एक DEAN  हुआ करते थे ...... उन्होंने 35  साल बिताये थे NIS में ....जब हमारा आखिरी दिन आया तो बोले ........I hope you would have enjoyed your stay in NIS patiyala ......this is the land of romance ....in the last 35 years ....i have seen so many romances and love stories ....... blooming under the trees of moti bag .....आज भी गूंजते हैं ये शब्द मेरे कानों में .....क्योंकि खुद मेरे जीवन में भी रोमांस वहीं शुरू हुआ ....मोती बाग़ में ......मैंने अपने जीवन का  सबसे बेहतरीन सबसे हसीन समय पटियाला के मोती बाग़ में ही बिताया ......वहीं मेरी शादी हुई ...बेटा भी वहीं पैदा हुआ ........उस दिन वहाँ चैल के जंगलों में भी माहौल बहुत रोमांटिक था ......बहुत देर तक हम उन सुनसान सड़कों पर टहलते रहे ...हाथों में हाथ लिए .......अगर आप अपनों के साथ कुछ फुर्सत के क्षण बिताना चाहते हैं ...चैल से अच्छी जगह कोई नहीं हो सकती ........पर ख्याल रहे ....शौपिंग की कोई गुंजाइश नहीं और बच्चों के लिए कोई आकर्षण नहीं है ....



2 comments:

  1. भाभीजी को शिमला पसन्द नहीं आया, जरा ये भी तो बता देते कि चैल (चायल) पसन्द आया कि नहीं।
    महाराजा भूपेन्द्र सिंह जिन्दाबाद

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    1. abhi 6 mahine pahle hi gaya tha bahut achhi jagah

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